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Sunit Singh

बेरूबाड़ी  वाद  में  ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना।

इसलिए विधायिका प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती ।

   परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य वाद, 1973 ई. में    कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है।

इसलिए  विधायिका  (संसद) उसमें संशोधन कर सकती है।

केशवानन्द भारती वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने मूल ढाँचा का..............

सिद्धान्त दिया तथा प्रस्तावना को संविधान  का  मूल  ढाँचा  माना। "

       संसद संविधान की मूल ढाँचा में नकारात्मक संशोधन नहीं कर सकती है,..

स्पष्टतः संसद वैसा संशोधन  कर सकती है, जिससे  मूल  ढाँचा का विस्तार व मजबूतीकरण होता है।

42वें  संविधान  संशोधन  अधिनियम, 1976 ई. के द्वारा इसमें  'समाजवादी', 'पंथनिरपेक्ष' और 'राष्ट्र की अखण्डता'                   शब्द जोड़े गये।

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