इसका नामकरण जोस्टन ने 1650 ई. में किया था।
शरीर तीन भागों में विभक्त होता है-सिर, अन्तरांग तथा पाद।
रक्त रंगहीन होता है।
उत्सर्जन वृक्कों के द्वारा होता है।
इनमें कवच सदैव उपस्थित रहता है।
आहारनाल पूर्ण विकसित होता है।
इनमें श्वसन गिल्स या टिनीडिया द्वारा होता है।
जैसे- घोंघा, सीपी, ऑक्टोपस आदि।