प्रोटोजोआ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गोल्डफस ने 1920 ई. में किया था।
इनका शरीर केवल एककोशिकीय होता है।
स्वतंत्र जीवी एवं परजीवी दोनों प्रकार के होते हैं।
सभी जैविक क्रियाएँ (भोजन, पाचन, श्वसन, उत्सर्जन, जनन) एककोशिकीय शरीर के अन्दर होती है।
इनके जीवद्रव्य में एक या अनेक केन्द्रक पाये जाते हैं।
प्रचलन पदाभों, पक्ष्मों या कशाभों के द्वारा होता है।
श्वसन एवं उत्सर्जन कोशिका की सतह से विसरण के द्वारा होते हैं, प्रोटोजोआ एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका का संक्रमण मनुष्य में 30-40 वर्षों के लिए बना रहता है।
जैसे- प्लाज्मोडियम (मलेरिया), ट्रिप्नोसोमा (निद्रा रोग), लेश्मानिया (कालाजार)।