यह एक्ट 10 मार्च, 1919 को पारित किया गया।
उद्देश्यः भारतीयों को स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार से वंचित करना
तथा औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध भारतीयों के विरोध प्रदर्शन को रोकना
यह कानून सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था।
एक्ट का मूल नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 था।
इस एक्ट के अनुसार, ब्रिटिश सरकार के पास यह शक्ति थी कि वह बिना ट्रायल चलाए किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेल में डाल सकती थी।
इसके अंतर्गत राजद्रोह के मुकद्दमे की सुनवाई के लिए एक अलग न्यायालय स्थापित किया गया।
मुकद्दमे के फैसले के बाद किसी उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं दिया गया था।