संविधान की प्रस्तावना को 'संविधान की कुंजी' कहा जाता है।
प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केन्द्रबिन्दु अथवा स्रोत 'भारत के लोग' ही हैं।
प्रस्तावना में लिखित शब्द यथा- "हम भारत के लोग.................
इस संविधान को" अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
भारतीय लोगों की सर्वोच्च सम्प्रभुता का उद्घोष करते हैं।
'प्रस्तावना' को न्यायालय में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता यह निर्णय....
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मदन गोपाल, 1957 के निर्णय में घोषित किया गया।
बेरूबाड़ी यूनियन वाद (1960) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध हो, वहाँ प्रस्तावना विधिक निर्वाचन में सहायता करती है।