(राजा का दरबार। दरबारी अपने-अपने आसन पर पर बैठे हैं। राजा और तेनालीरामन के आसन अभी खाली हैं।)
पहला दरबारी – देखा ! अब तक नहीं आए तेनालीराम।
दूसरा दरबारी – भला क्यों आएँगे? जब स्वयं महाराज उनकी मुट्ठी में हैं तो वे हम जैसों को क्यों पूछेंगे?
तीसरा दरबारी – महाराज ने भी बहुत सिर चढ़ाया है तेनाली को !
चौथा दरबारी – (राजा की नकल करता है) हाँ तेनाली ! वाह तेनाली! क्या पते की बात कही तेनाली ने… तेनाली, तेनाली, तेनाली! कान पक गए हैं प्रशंसा सुनते-सुनते।

पहला दरबारी – महाराज के सिर से से तेनाली का भूत उतारना होगा।
दूसरा दरबारी – कितनी बार प्रयत्न किया। तेनाली की चतुराई के आगे एक नहीं चली।
चौथा दरबारी – कुछ युक्ति निकाली जाए! (सब सोचते हैं।)
पहला दरबारी – (चुटकी बजाते हुए) निकाल लिया मैंने उपाय ! सुनो ! (सब उसे घेर लेते हैं। आपस में खुसुर-फुसुर होती है। सब प्रसन्न दिखते हैं। तभी नगाड़े बजने लगते हैं।)
एक सेवक – सावधान ! महाराजाधिराज कृष्णदेव राय पधार रहे हैं।
राजा – (बैठते ही) तेनालीरामन कहाँ हैं?
पहला दरबारी – (दर्शकों को देखते हुए) लो, आते ही आ गई याद! (राजा से) अभी नहीं आए। लगता है शतरंज का खेल जमा है कहीं।
राजा – शतरंज ? तेनालीरामन क्या शतरंज के शौकीन हैं?
दूसरा दरबारी – हाँ महाराज, वे तो अद्भुत खिलाड़ी हैं।
तीसरा दरबारी – पर महाराज की बराबरी नहीं कर सकते।
चौथा दरबारी – महाराज, आज्ञा हो तो मुकाबला आयोजित किया जाए। एक ओर आप, दूसरी ओर तेनालीरामन। तेनाली जी नहला तो आप भी तो दहला हैं।
राजा – (प्रसन्न होकर) क्या उत्तम सुझाव है! बराबर का खिलाड़ी मिले तभी खेल का आनंद आता है। यह तेनाली भी बड़ा चतुर निकला। मुझे बताया क्यों नहीं?
पहला दरबारी – वह आपकी हार नहीं देखना चाहता महाराज, इसलिए छिपाए रखा। पर वास्तव में बड़ा घाघ है तेनाली। एक से एक खिलाड़ियों को मात दे चुका है।
राजा – घाघ है तो हम भी कुछ कम नहीं। हो जाए दो-दो हाथ !

सेवक – श्री तेनालीरामन जी आ रहे हैं!
(तेनालीरामन का प्रवेश)
तेनाली – (झुककर) प्रणाम! महाराजाधिराज की जय हो !
(राजा मुँह फेरते हैं, तेनाली चौंकता है।)
तेनाली – इस तुच्छ सेवक का प्रणाम स्वीकार करें, महाराज।
राजा – (क्रोधित) तेनाली, तुमने बताया नहीं कि तुम शतरंज में माहिर हो ?
तेनाली – (चकित) शतरंज और मैं! शतरंज के विषय में मैं कुछ नहीं जानता, महाराजा।
राजा – (क्रोधित) मुझे सब पता है तेनाली। बात अब छिप नहीं सकती।
(दरबारियों से) क्यों?
पहला दरबारी – हाँ महाराज, बड़े-बड़ों को मात दी है तेनाली ने।
तीसरा दरबारी – जरा बचके खेलिएगा, महाराज।
सब दरबारी – (मुँह छिपाकर हँसते हुए) क्या आनंद आ रहा है!
तेनाली – (घबराकर) पर… पर… मुझे वास्तव में शतरंज का ज्ञान नहीं महाराज… इस अनाड़ी के संग खेलकर आप पछताएँगे।
राजा – कोई बहाना नहीं चलेगा। (सेवक से) जाओ, व्यवस्था करो।
तेनाली – मैं नहीं खेलता शतरंज !
(सिर ठोकता है।)
पहला दरबारी – तेनाली जी, क्यों अस्वीकार करते हैं?
दूसरा दरबारी – जब महाराज ने स्वयं न्योता दिया है।
तीसरा दरबारी – तेनाली जी, दाँव जरा सोचकर चलिएगा! (सभी हँसकर तेनाली के असमंजस का आनंद नंद लूटते हैं। तेनाली उन्हें देखता हुआ कुछ सोचता है।)
तेनाली : (दर्शकों से) समझा! चाल चली है। है सबने। ठीक है!
(पर्दा गिरता है)
दूसरा दृश्य
दरबार भवन। बीच में चौकी, उस पर गद्दी। एक ओर तकिए से टिके राजा। सामने मुँह लटकाए तेनाली। बीच में में शतरंज की चादर बिछी है। चारों ओर दरबारी और अन्य लोग बैठे हैं।)
दरबारीगण – (दर्शकों से) अब बरसेगा महाराज का क्रोध तेनाली पर!
राजा – हाँ भई तेनाली, खेल आरंभ हो?
तेनाली – (मुँह लटकाए, धीरे से) महाराज, आरंभ करें।
राजा – यह चला मैं पहली चाल। (मोहरा उठाकर रखते हैं।)
चौथा दरबारी – क्या चाल चली महाराज ने ! (ताली बजाता है।)
तेनाली – (सोच में) अँऽऽ क्या चलूँ?
दूसरा दरबारी – पर हमारे तेनाली भी कुछ कम नहीं।
तेनाली – (अपने आप से, एक मोहरा उठाते हुए) चलो, इसको बढ़ाता हूँ।
राजा – (दर्शकों से) ऐंऽऽ? सबसे पहले मंत्री? अवश्य कोई गूढ़ चाल है। सोच-समझकर चलूँ।
तेनाली – (दर्शकों से) कुछ भी चलें, मुझे क्या? (राजा से) लीजिए, यह चला।

राजा – (धीरे से) यह क्या? चतुराई है या मूर्खता?
तेनाली – अब चला यह घोड़ा।
राजा – अरे, यह तो सरासर मूर्खता है। अवश्य जान-बूझकर हार रहा है। (गरजकर) तेनाली मन से खेलो !
पहला दरबारी – ठीक से खेल जमाओ, तभी महाराज को आनंद आएगा।
दूसरा दरबारी – महाराज को अनाड़ी नहीं, बराबरी का खिलाड़ी चाहिए।
चौथा दरबारी – आप कुशल खिलाड़ी हैं, जानकार मत हारिए।

तेनाली – अच्छा तमाशा बन रहा है मेरा।
राजा – (समझाते हुए) ठीक से खेलो ! यह मत समझो कि मैं आसानी से हार जाऊँगा।
तेनाली – मैंने सच कहा महाराज, मुझे खेल का ज्ञान नहीं है।
राजा – (क्रोधित) तो क्या ये सब असत्य बोल रहे हैं?
सब दरबारी – हमने महाराज अपनी आँखों से इन्हें बाजी पर बाजी जीतते हुए देखा है।
राजा – सुना? यदि अब भी हारे तो अच्छा नहीं होगा।
(तेनाली चाल चलता है।)
राजा – (गरजकर) फिर अनाड़ी चाल ! अपना सही रंग दिखाओ, खेल जमाओ!
तेनाली – जैसी आज्ञा ! लीजिए, यह चलता हूँ।
राजा – उड़ गया न तुम्हारा प्यादा! (क्रोधित) फिर जानकर हारे तुम।
पहला दरबारी – महाराज अति चतुर हैं। उनका अपमान किया तो ठीक नहीं होगा तेनाली।
दूसरा दरबारी – (भड़काते हुए) महाराज का क्रोध भयंकर है तेनाली।
राजा – अबकी हारे तो भरी सभा में तुम्हारा सिर मुंडवा दूँगा। (खेल आरंभ करते हुए) यह रही मेरी चाल।
तेनाली – (सिर खुजाते हुए) मैंने इससे दिया उत्तर।

राजा – सँभल जाओ। यह हुई मेरी अगली चाल।
तेनाली – और यह है मेरा दाँव।
राजा – फँसाया न? मंत्री क्यों चले?
तेनाली – राजा के बचाव के लिए मंत्री बढ़ाया।
राजा – और यह गया तुम्हारा मंत्री।
तेनाली – अब आए स्वयं राजा।
राजा – गया तुम्हारा राजा। फिर पिट गए। इतनी मूर्खता? मुझे विश्वास नहीं रहा तुम पर तेनाली। (उठ खड़े होते हैं, शतरंज उलट देते हैं, मोहरें उठाकर जोरों से फेंकते हैं।) अच्छा खेल बनाया हमारा।

(दरबारियों से) कल दरबार में नाई बुलाना। तेनाली के बाल उतरवाऊँगा। अपमान का बदला लूँगा। (तमतमाया चेहरा लिए पाँव पटकते चल देते हैं।)
पहला दरबारी – (प्रसन्न होकर) बन गई न बात !
तेनाली – (मुँह छिपाए) भरी सभा में मुंडन? इससे बढ़कर है कोई अपमान?
(पर्दा गिरता है)
तीसरा दृश्य
(दरबार भवन। बीच में ऊँचा मंच। राजा सिंहासन पर। तेनाली अपने आसन पर। एक सेवक नाई को खींचता हुआ लाता है।)
नाई – (राजा के सामने गिरकर) मैंने कुछ नहीं किया महाराज। मैं निर्दोष हूँ।
राजा – उठो, उठो ! तुम्हें कोई दंड नहीं मिल रहा है।
नाई – (प्रसन्न) नहीं? फिर…?
राजा – अपना उस्तरा निकालो। मुंडन करना है।
नाई मुंडन? तब तो इनाम भी अच्छा मिलेगा। फिर मुझे क्या? राज दरबार में केश उतारूं या नदी किनारे, सब बराबर। (पेटी खोल तैयारी करता है।) (तमाशा देखने के उत्सुक दरबारी धीरे-धीरे मंच के निकट आते हैं।)
तेनाली – क्षमा करें महाराज।
राजा – क्षमा-वमा कुछ नहीं। वह तुम्हे पहले सोचना था जब मेरा अपमान किया । मंच पर चढ़ो।
(तेनाली मंच पर चढ़ता है।)
नाई – अरे, इतने महान आदमी का मुंडन !
राजा – डरो मत, नाई। तुम आज्ञा का पालन करो।
नाई – जो आज्ञा, महाराज। (उस्तरा लेकर तेनाली के पास जाता है।)
तेनाली – महाराज, आज्ञा दें तो एक निवेदन करूँ।
दरबारीगण – (आपस में) अवश्य कोई नई चाल है।
राजा – कहो तेनाली।
तेनाली – महाराज, इन बालों पर मैंने पाँच हजार अशर्फियाँ उधार ली हैं। जब तक ऋण न चुका दूं, केश कटवाने का कोई अधिकार नहीं मुझे।
सब दरबारी – देखा, की न धूर्तता !
राजा – शांत! दंड तो भुगतना पड़ेगा इनको। (सोचकर, एक दरबारी से) जाओ, अभी कोष से पाँच हजार अशर्फियाँ निकालकर इनके घर भिजवाओ। (नाई से) काम पूरा करो। देखना एक बाल भी न छूटे। (दरबारी प्रसन्न। नाई फिर उस्तरा उठाता है।)
तेनाली – (रोककर) क्षण भर भैया। (आसन लगाकर मंच पर बैठ जाता है। आँखें मूंद, हाथ जोड़ मंत्रों का उच्चारण करता है।) ओऽम् नमो शिवाय, ओऽम् नमो…
राजा – (बीच में) तेनाली, यह क्या?
दरबारी – (आपस में) एक नया ढोंग। हद है चतुराई की!
तेनाली – (आँखें खोलकर शांति से से समझाते हुए) कृपया बीच में मत टोकें। मैं आपकी भलाई के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ।
राजा – पहेली मत बुझाओ। नाई, देरी क्यों? उस्तरा उठाओ।
तेनाली – मेरी बात सुनने का कष्ट करें, महाराज।
दरबारी – (अधीर होकर) महाराज, मत सुनिए। नाई, अपना काम करो। (नाई फिर उस्तरा उठाता है। राजा रोकता है।)
तेनाली- हमारे यहाँ माता-पिता के स्वर्ग सिधारने पर ही मुंडन होता है।
राजा – तुम्हारे माता-पिता स्वर्ग सिधार चुके हैं। फिर क्या आपत्ति?
तेनाली – महाराज अब आप ही मेरे माता-पिता हैं। आप सामने विराजमान हैं। फिर मुंडन कैसे कराऊँ? इधर मेरा मुंडन हो, उधर आप स्वर्ग सिधारें तो?

राजा – (घबराकर) अरे, यह कैसे हो सकता है!
तेनाली- आपके स्वर्ग सिधारने से पहले मैं मुंडन कराऊँ तो अवश्य आप पर विपत्ति आएगी। इसलिए प्रभु को याद कर रहा हूँ।
राजा – (सोचते हुए) मुंडन से पहले सच में मृत्यु आ गई तो? नहीं नहीं! रोक दो हाथ, नाई! तेनाली, दंड वापस लिया मैंने।
तेनाली – महाराज, आप दीर्घायु हों, आप महान हैं।
राजा – (मुस्कुराते हुए) और तुम कुछ कम नहीं। तुमसे कौन जीत सकता है? अशर्फियाँ भी लीं और दंड-अपमान से भी बचे। पर मैं तुम्हारी चतुराई से एक बार फिर प्रसन्न हो गया। चलो, बाग में चलें।
(राजा सिंहासन से उतरकर तेनाली को साथ लिए बाहर निकल जाते हैं।)
पहला दरबारी – (सिर ठोकते हुए) फिर छूट गया तेनाली।
दूसरा दरबारी – (ठप्प से से गिरते हुए) पाँच हजार अशर्फियाँ भी मार लीं।
तीसरा दरबारी – (बाल नोचते हुए) हम फिर हार गए।
सब दरबारी – हाय तेनाली ! तुम्हारी बुद्धि ने हमें फिर मात दी।
(पर्दा गिरता है)
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बातचीत के लिए
1. आपको यह नाटक कैसा लगा और क्यों?
Ans. यह नाटक मुझे बहुत रोचक और हास्य से भरपूर लगा क्योंकि इसमें तेनालीरामन अपनी बुद्धिमानी से हर बार कठिन परिस्थिति से बाहर आ जाते हैं और दरबारियों की चाल उलटी पड़ जाती है।
2. आपने तेनालीरामन के किस्सों की तरह और किसके बुद्धिमानी के किस्से सुने हैं? उनमें से कोई एक सुनाइए।
Ans. मैंने बीरबल की बुद्धिमानी के किस्से सुने हैं। एक कहानी में बादशाह अकबर ने उनसे पूछा कि दुनिया में सबसे बड़ी ताकत क्या है? बीरबल ने कहा—“बुद्धि”, और एक चतुर उदाहरण देकर सबको समझा दिया कि बल से नहीं, बुद्धि से बड़ी से बड़ी समस्या हल हो सकती है।
3. तेनालीरामन की तरह क्या आपने भी कभी किसी कठिन परिस्थिति को संभाला है? यदि संभाला है तो कैसे?
Ans. एक बार स्कूल में मेरी टीम का प्रोजेक्ट गड़बड़ा गया था। मैंने तुरंत नया तरीका निकालकर काम बाँट दिया और समय पर प्रोजेक्ट पूरा हो गया। इस तरह मैंने कठिन परिस्थिति संभाली।
4. यदि तेनालीरामन शतरंज का खेल जानते तो नाटक का अंत क्या होता?
Ans. यदि तेनालीरामन शतरंज जानते, तो वे अपने दिमाग से राजा को मात दे सकते थे। तब दरबारियों की योजना पूरी तरह असफल हो जाती और राजा उनकी और भी अधिक प्रशंसा करते।
सोचिए और लिखिए
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पाठ के आधार पर दीजिए-
(क) सभी दरबारी तेनालीरामन से ईर्ष्या क्यों करते थे?
Ans. सभी दरबारी तेनालीरामन से ईर्ष्या करते थे क्योंकि राजा उन पर बहुत विश्वास करते थे और हर बात में उनकी प्रशंसा करते थे। उनकी बुद्धि के सामने कोई भी दरबारी टिक नहीं पाता था।
(ख) दरबारियों ने राजा से तेनालीरामन के बारे में क्या कहा?
Ans. दरबारियों ने राजा से कहा कि तेनालीरामन बहुत बड़े शतरंज खिलाड़ी हैं, वे बड़े-बड़ों को मात दे चुके हैं। उन्होंने राजा को चुनौती देने के लिए उकसाया और तेनाली की क्षमताओं को बढ़ा-चढ़ाकर बताया।
(ग) शतरंज खेलते समय राजा को तेनालीरामन पर क्रोध क्यों आ रहा था?
Ans. राजा को क्रोध इसलिए आ रहा था क्योंकि तेनाली जान-बूझकर गलत चालें चल रहे थे। उन्हें लग रहा था कि तेनाली मज़ाक कर रहे हैं और ईमानदारी से खेल नहीं रहे।
(घ) तेनालीरामन ने मुंडन से बचने के लिए क्या चाल चली?
Ans. तेनालीरामन ने कहा कि उन्होंने अपने बालों पर पाँच हजार अशर्फियाँ उधार ली हैं, इसलिए वे तब तक अपने बाल नहीं कटवा सकते। फिर उन्होंने यह भी कहा कि माता-पिता के जीवित होते हुए मुंडन नहीं होता, और राजा उनके माता-पिता समान हैं—इस कारण मुंडन होने से राजा को हानि पहुँच सकती है। इस चतुराई से वे दंड से बच गए।
(ङ) घर में खेले जाने वाले खेलों में आपको सबसे अच्छा खेल कौन-सा लगता है? वह खेल कैसे खेला जाता है?
Ans. मुझे साँप-सीढ़ी का खेल सबसे अच्छा लगता है। इसे पासा फेंककर खेला जाता है। जितनी संख्या आती है, उतने खाने आगे बढ़ते हैं। सीढ़ी पर पहुँचने पर ऊपर जाते हैं और साँप पर आने पर नीचे। जो सबसे पहले आखिरी खाने तक पहुँच जाता है, वही जीतता है।