UP DELED 1st Semester Shikshan Adhigam Ke Siddhant Question Paper 2025 आप यहां से प्राप्त कर सकते हैं। जिसका कोई भी शुल्क आपसे नही लिया जाएगा, आप आसानी से इसे हल कर सकेंगे । आइए विस्तार से सभी प्रश्नो को जानें –
प्रश्न-पुस्तिका
प्रथम सेमेस्टर-2025
द्वितीय प्रश्न-पत्र
(शिक्षण अधिगम के सिद्धान्त)
1. सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। प्रत्येक प्रश्न के निर्धारित अंक प्रश्न के सम्मुख दिये गये हैं।
2. इस प्रश्न-पत्र में तीन प्रकार के (वस्तुनिष्ठ, अतिलघु उत्तरीय तथा लघु उत्तरीय) प्रश्न हैं। वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के सही विकल्प छाँटकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखें। अति लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग तीस (30) शब्दों में, लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग पचास (50) शब्दों में लिखिए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. ‘पूर्ण से अंश की ओर’ का शिक्षण सूत्र आधारित है-
(1) गेस्टाल्ट मनोविज्ञान (2) बाल मनोविज्ञान
(3) प्राणी मनोविज्ञान (4) जीव विज्ञान
Ans. (1) गेस्टाल्ट मनोविज्ञान
2. बच्चों में कल्पना शक्ति का विकास किया जा सकता है-
(1) समूह कार्य द्वारा (2) कहानी द्वारा
(3) प्रश्नोत्तर द्वारा (4) व्याख्यान द्वारा
Ans. (2) कहानी द्वारा
3. शिक्षण का सामान्य सिद्धान्त निम्न में से नहीं है-
(1) क्रियाशीलता का सिद्धान्त (2) रुचि का सिद्धान्त
(3) नियोजन का सिद्धान्त (4) परिणाम का सिद्धान्त
Ans. (4) परिणाम का सिद्धान्त
4. ‘Becoming better teacher: A micro teaching approach’ निम्न में से किसकी पुस्तक है-
(1) डॉ. बी. के. पासी (2) एन.एल. दोसाज
(3) एलन (4) रेयान
Ans. (3) एलन
5. विज्ञान किट में कितनी वस्तुओं को शामिल किया है-
(1) 110 (2) 85
(3) 105 (4) 80
Ans. (3) 105
6. ‘प्रश्नोत्तर प्रविधि’ के जनक कौन हैं-
(1) प्लेटो (2) सुकरात
(3) अरस्तु (4) डी.वी.
Ans. (2) सुकरात
7. पाठ-प्रस्तावना कौशल का आधार बिन्दु है-
(1) पाठ्यक्रम (2) परिवार
(3) पूर्वज्ञान (4) TLM (टी.एल.एम.)
Ans. (3) पूर्वज्ञान
8. सम्प्रेषण के घटक हैं-
(1) प्रेषक (2) संदेश
(3) ग्राही (4) ये सभी
Ans. (4) ये सभी
9. किस सूत्र का सम्बन्ध आगमन विधि से है-
(1) स्थूल से सूक्ष्म की ओर (2) विशिष्ट से सामान्य की ओर
(3) सामान्य से विशिष्ट की ओर (4) मूर्त से अमूर्त की ओर
Ans. (3) सामान्य से विशिष्ट की ओर
10. सहयोग की भावना का विकास सम्भव है-
(1) समूह कार्य से (2) वाद-विवाद से
(3) प्रश्नोत्तर से (4) सहायक सामग्री से
Ans. (1) समूह कार्य से
11. ‘उपचारात्मक शिक्षण’ का प्रमुख कार्य है-
(1) लेख में सुधार (2) सुलेख पर बल देना
(3) दोषपूर्ण अध्ययन एवं शिक्षण से सम्बन्धित समस्याओं को दूर करना। (4) गृहकार्य देना
Ans. (3) दोषपूर्ण अध्ययन एवं शिक्षण से सम्बन्धित समस्याओं को दूर करना।
12. पाठ योजना का प्रथम विन्दु निम्न में से है-
(1) प्रस्तावना के प्रश्न (2) उद्देश्य कथन
(3) काठिन्य निवारण (4) व्याख्या
Ans. (2) उद्देश्य कथन
13. सूक्ष्म शिक्षण पद्धति के जन्मदाता हैं-
(1) ब्लूम (2) बी.एफ. स्कीनर
(3) रायर्वन (4) डी.एलेन
Ans. (4) डी.एलेन
14. व्याख्यान विधि में प्रायः छात्रों के क्या बनने की सम्भावना रहती है-
(1) मूक (2) सक्रिय
(3) निष्क्रीय (4) इनमें से कोई नहीं
Ans. (3) निष्क्रीय
15. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षण के कितने धुव (Pole) हैं –
(1) एक (2) तीन
(3) चार (4) पाँच
Ans. (2) तीन
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
16. शिक्षण से क्या अभिप्राय है? संक्षिप्त में स्पष्ट कीजिए।
Ans. शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से शिक्षक अपने ज्ञान, कौशल और व्यवहार का उपयोग करते हुए विद्यार्थियों में अधिगम को उत्पन्न करता है। यह योजनाबद्ध, उद्देश्यपूर्ण एवं परस्पर क्रियात्मक प्रक्रिया है।
17. शाब्दिक सम्प्रेषण के दो प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
Ans. शाब्दिक संप्रेषण के दो प्रकार-
(1) मौखिक संप्रेषण (Speaking)
(2) लिखित संप्रेषण (Writing)
18 . शिक्षण-सूत्रों के कोई दो लाभ बताइए।
Ans. शिक्षण-सूत्रों के दो लाभ-
(1) शिक्षण को क्रमबद्ध व सरल बनाते हैं।
(2) कठिन विषय-वस्तु को आसानी से समझाने में सहायता करते हैं।
19. निदानात्मक परीक्षण को परिभाषित कीजिए।
Ans. ऐसे परीक्षण जो विद्यार्थियों की अधिगम त्रुटियों, कमजोरियों तथा अध्ययन संबंधी समस्याओं की पहचान करने के लिए किए जाते हैं, निदानात्मक परीक्षण कहलाते हैं।
20. ज्ञात से अज्ञात सूत्र किस तथ्य पर आधारित है? समझाइए।
Ans. यह सूत्र विद्यार्थियों के पूर्वज्ञान पर आधारित है। शिक्षक पहले ज्ञात तथ्यों से शुरू करके धीरे-धीरे नई एवं अज्ञात जानकारी प्रदान करता है।
21. शिक्षण में ‘रुचि के सिद्धान्त’ को स्पष्ट कीजिए।
Ans. यह सिद्धांत कहता है कि जिस विषय में बच्चे की रुचि हो, उसमें सीखना तेजी से होता है। रुचि आधारित शिक्षण छात्रों को सक्रिय, उत्साही व सीखने के लिए प्रेरित करता है।
22. पुर्नबलन शिक्षण कौशल के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
Ans. विद्यार्थियों के सही उत्तर, अच्छे व्यवहार एवं सकारात्मक क्रियाओं को प्रोत्साहित करना, जिससे उनमें सीखने की प्रेरणा बढ़े और आत्मविश्वास विकसित हो।
23. अनुदेशन से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
Ans. अनुदेशन का अर्थ है—शिक्षक द्वारा छात्रों को व्यवस्थित, चरणबद्ध व लक्ष्य आधारित दिशा-निर्देश देना जिससे अधिगम प्रभावी हो।
24. श्यामपट्ट शिक्षण कौशल के घटकों का नाम लिखिए।
Ans. श्यामपट्ट शिक्षण कौशल के घटक-
(1) साफ-सुथरी लेखन शैली
(2) उचित आरेख व प्रस्तुति
(3) श्यामपट्ट का सही उपयोग
(4) स्पष्टता एवं आकर्षण
25. खेल पर आधारित दो शिक्षण विधियों के नाम लिखिए।
Ans. खेल आधारित शिक्षण विधियाँ-
(1) भूमिका-नियोजन (Role Play)
(2) खेल-आधारित गतिविधि पद्धति (Game-based learning)
26. न्यूनतम अधिगम स्तर का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
Ans. वह न्यूनतम ज्ञान, कौशल या क्षमता जिसे विद्यार्थी को अनिवार्य रूप से प्राप्त करना होता है, न्यूनतम अधिगम स्तर कहलाता है।
27. बालकेन्द्रित शिक्षण की दो विशेषताएँ बताइए।
Ans. बाल-केंद्रित शिक्षण की दो विशेषताएँ-
(1) शिक्षण में बच्चे की रुचि, गति और आवश्यकता को प्राथमिकता।
(2) सक्रिय अधिगम, अनुभव आधारित गतिविधियाँ।
28. क्षेत्रीय पर्यटन शैक्षिक विधि को परिभाषित कीजिए।
Ans. विद्यार्थियों को वास्तविक स्थानों, कारखानों, संग्रहालयों या प्राकृतिक स्थलों पर ले जाकर अनुभवात्मक रूप से शिक्षित करना क्षेत्रीय पर्यटन विधि कहलाती है।
29. शिक्षण उद्देश्यों के आधार पर प्रश्नों का वर्गीकरण कीजिए।
Ans. शिक्षण उद्देश्यों के आधार पर प्रश्न वर्गीकरण-
(1) ज्ञान-आधारित प्रश्न
(2) बोध-आधारित प्रश्न
(3) अनुप्रयोग-आधारित प्रश्न
30. शिक्षण प्रक्रिया को कौशल के रूप में किस संस्था ने सर्वप्रथम अध्ययन किया है?
Ans. शिक्षण प्रक्रिया को कौशल के रूप में सर्वप्रथम स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University, USA) ने अध्ययन किया था।
यहीं पर सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) की अवधारणा विकसित हुई, जिसने शिक्षण को छोटे–छोटे कौशलों के रूप में परिभाषित किया।
लघु उत्तरीय प्रश्न
31. मन्दबुद्धि छात्रों के लिए किस प्रकार उपचारात्मक शिक्षण किया जाना चाहिए?
Ans. मन्दबुद्धि (Slow Learner) छात्रों को उनकी क्षमता, गति और समझ के अनुसार विशेष शैक्षिक सहायता की आवश्यकता होती है। इनके लिए उपचारात्मक शिक्षण निम्न प्रकार से किया जाना चाहिए—
(1) व्यक्तिगत शिक्षण (Individualized Teaching): प्रत्येक छात्र की कमजोरी और सीखने की गति को ध्यान में रखकर अलग-अलग कार्य, उदाहरण और अभ्यास दिए जाएँ।
(2) सरल एवं स्पष्ट भाषा का प्रयोग: पाठ को छोटे-छोटे भागों में बाँटकर सरल भाषा में समझाया जाए ताकि छात्र धीरे-धीरे अवधारणा को पकड़ सकें।
(3) अधिगम सामग्री (TLM) का प्रयोग: चित्र, चार्ट, मॉडल, फ्लैश कार्ड, वस्तुएँ आदि का उपयोग किया जाए जिससे सीखना आसान और रोचक बने।
(4) पुनरावृत्ति और अभ्यास: मन्दबुद्धि छात्र जल्दी भूल जाते हैं, इसलिए निरंतर पुनरावृत्ति और अधिक से अधिक अभ्यास करवाना आवश्यक है।
(5) प्रशंसा एवं प्रोत्साहन: छात्र की छोटी प्रगति पर भी प्रशंसा की जाए। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है और सीखने की रुचि पैदा होती है।
(6) धीमी गति से शिक्षण (Slow Pace Teaching): तेज़ी से पढ़ाने के बजाय धीरे-धीरे, बार-बार और धैर्यपूर्वक समझाया जाए।
(7) सहायक गतिविधियों का उपयोग: खेल, समूह कार्य, रोल-प्ले आदि का प्रयोग किया जाए जिससे छात्र सक्रिय रूप से शामिल हों।
(8) माता-पिता से सहयोग: बच्चों की प्रगति और समस्याओं पर माता-पिता से बातचीत कर अतिरिक्त सहायता सुनिश्चित की जाए।
32. दक्षता आधारित शिक्षण विधि के सोपान लिखिए।
Ans. दक्षता आधारित शिक्षण (Competency Based Teaching) वह प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक विद्यार्थी को किसी कार्य या कौशल में निश्चित दक्षता (Competency) तक पहुँचाना लक्ष्य होता है। इसके प्रमुख सोपान निम्नलिखित हैं—
(1) अधिगम उद्देश्यों का निर्धारण (Setting Learning Objectives): सबसे पहले यह तय किया जाता है कि विद्यार्थी को कौन-सी दक्षता या कौशल प्राप्त करनी है। उद्देश्य स्पष्ट, मापनीय और व्यवहार आधारित होते हैं।
(2) शिक्षण कार्य का विश्लेषण (Task Analysis): निर्धारित दक्षता को छोटे-छोटे, सरल तथा क्रमबद्ध अधिगम चरणों में विभाजित किया जाता है ताकि विद्यार्थी आसानी से सीख सके।
(3) उपयुक्त शिक्षण अनुभव प्रदान करना (Providing Learning Experiences):
अभ्यास, गतिविधियाँ, उदाहरण, प्रदर्शन (Demonstration), मॉडल आदि के द्वारा विद्यार्थी को सीखने में सहायता दी जाती है।
(4) निरंतर मूल्यांकन (Continuous Assessment): हर चरण पर विद्यार्थी की प्रगति को जाँच कर यह तय किया जाता है कि वह कौशल में कितना दक्ष हुआ है।
(5) पुनर्बलन एवं सुधार (Feedback & Remedial Teaching): जहाँ विद्यार्थी कमजोर हो, वहाँ सुधारात्मक शिक्षण दिया जाता है और सही उत्तर या व्यवहार पर तत्काल प्रोत्साहन दिया जाता है।
(6) दक्षता की पुष्टि (Mastery Confirmation): अंत में यह सुनिश्चित किया जाता है कि विद्यार्थी निर्धारित दक्षता स्तर तक पहुँच चुका है और उसे स्वतंत्र रूप से प्रयोग कर सकता है।
33. संश्लेषण से विश्लेषण की ओर शिक्षण-सूत्र की व्याख्या कीजिए।
Ans. संश्लेषण से विश्लेषण की ओर शिक्षण-सूत्र का अर्थ है कि पहले विद्यार्थी को पूरा विषय, संपूर्ण रूप या सम्पूर्ण आकृति दिखाकर समझाया जाए, उसके बाद उसे भागों में विभाजित करके समझाया जाए।
इसका आधार गेस्टाल्ट मनोविज्ञान है, जिसमें कहा गया है कि “मानव मन वस्तुओं को पहले सम्पूर्ण रूप में ग्रहण करता है, फिर उसके भागों को समझता है।”
व्याख्या :
- पहले संश्लेषण (Whole View)
- शिक्षक पहले पूरे विषय, चित्र, कहानी या समस्या की संपूर्ण रूप में प्रस्तुति करता है।
- इससे विद्यार्थी को वस्तु का समग्र अर्थ, रूप और उद्देश्य समझने में आसानी होती है।
- फिर विश्लेषण (Part-wise Study)
- सम्पूर्ण वस्तु को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके अलग-अलग समझाया जाता है।
- इससे विद्यार्थी को गहराई से समझ, तर्क और संबंध स्थापित करने में सुविधा होती है।
उदाहरण :
- यदि किसी आकृति (जैसे त्रिभुज) को पढ़ाना है, तो पहले पूरा त्रिभुज दिखाया जाएगा (संश्लेषण)।
- बाद में उसकी भुजाएँ, कोण, प्रकार आदि का अलग-अलग विश्लेषण किया जाएगा (विश्लेषण)।
34. शिक्षण एवं प्रशिक्षण में अन्तर लिखिए।
Ans. “शिक्षण एवं प्रशिक्षण में अंतर” प्रस्तुत किया गया है:
| क्रम | शिक्षण (Teaching) | प्रशिक्षण (Training) |
|---|---|---|
| 1 | शिक्षण का उद्देश्य ज्ञान प्रदान करना होता है। | प्रशिक्षण का उद्देश्य कौशल विकसित करना होता है। |
| 2 | यह सैद्धान्तिक (theoretical) समझ पर आधारित होता है। | यह व्यावहारिक (practical) क्रियाओं पर आधारित होता है। |
| 3 | शिक्षण दीर्घकालिक प्रक्रिया है। | प्रशिक्षण अल्पकालिक प्रक्रिया है। |
| 4 | शिक्षण में विषय-वस्तु का विस्तार अधिक होता है। | प्रशिक्षण में केवल आवश्यक कौशलों पर ध्यान दिया जाता है। |
| 5 | शिक्षण सभी छात्रों के लिए उपयुक्त होता है। | प्रशिक्षण विशेष कार्य या नौकरी के लिए दिया जाता है। |
| 6 | इसमें सोचने, समझने और विश्लेषण क्षमता विकसित होती है। | इसमें कार्य करने की दक्षता और व्यवहारिक क्षमता विकसित होती है। |
35. शिक्षण में अभिप्रेरणा के सिद्धान्त पर सबिस्तार प्रकाश डालिए।
Ans. अभिप्रेरणा (Motivation) वह आन्तरिक शक्ति है जो विद्यार्थी को सीखने, लक्ष्य प्राप्त करने तथा कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। शिक्षण प्रक्रिया को सफल बनाने में अभिप्रेरणा का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि बिना अभिप्रेरणा के न तो विद्यार्थी शिक्षण-कार्य में सक्रिय सहभागिता करते हैं और न ही सीखने की इच्छा विकसित होती है।
अभिप्रेरणा के प्रमुख सिद्धान्त
1. जैविक अथवा प्रवृत्तिगत सिद्धान्त (Instinct Theory)
इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति के भीतर जन्मजात प्रवृत्तियाँ होती हैं, जैसे– जिज्ञासा, अनुकरण, प्रतिस्पर्धा, आत्मरक्षा आदि।
शिक्षण में शिक्षक को विद्यार्थियों की इन प्रवृत्तियों का उपयोग कर उन्हें सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
2. प्रेरणा-न्यूनता सिद्धान्त (Drive Reduction Theory – Hull)
इस सिद्धान्त के अनुसार मानव तब प्रेरित होता है जब उसके भीतर किसी आवश्यकता या कमी की अनुभूति होती है।
उदाहरण: विद्यार्थी को यदि गणित कमजोर लगे तो वह इसे सुधारने के लिए अधिक अभ्यास करता है।
3. प्रोत्साहन सिद्धान्त (Incentive Theory)
इस सिद्धान्त में बाहरी पुरस्कारों जैसे– प्रशंसा, पुरस्कार, अंक, प्रमाणपत्र आदि से विद्यार्थी प्रेरित होते हैं।
शिक्षक यदि समय-समय पर विद्यार्थियों को सकारात्मक प्रोत्साहन दें तो सीखने में रुचि बढ़ती है।
4. मस्लो की आवश्यकता-सोपान सिद्धान्त (Maslow’s Hierarchy of Needs)
मस्लो के अनुसार व्यक्ति की आवश्यकताएँ श्रेणियों में बँटी होती हैं, जैसे–
- शारीरिक आवश्यकताएँ
- सुरक्षा
- प्रेम एवं सम्बन्ध
- सम्मान
- आत्म-सिद्धि
जब इन आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, तभी विद्यार्थी उच्च स्तर के सीखने के लिए प्रेरित होता है।
5. मैक्डूगल का उद्देश्य-सिद्धान्त (Goal Theory)
इसके अनुसार विद्यार्थी तब अधिक प्रेरित होते हैं जब उनके सीखने से जुड़ा स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित हो।
लक्ष्य जितना स्पष्ट होगा, विद्यार्थी उतनी ही लगन से शिक्षण-कार्य में भाग लेंगे।
6. आत्म-प्रभावकारिता सिद्धान्त (Self-Efficacy Theory – Bandura)
जब विद्यार्थी को अपने ऊपर विश्वास होता है कि वह कार्य कर सकता है, तो उसकी अभिप्रेरणा बढ़ जाती है।
शिक्षक को विद्यार्थियों में आत्मविश्वास को बढ़ावा देना चाहिए।
शिक्षण में अभिप्रेरणा का महत्व
- विद्यार्थी की सीखने की इच्छा व जिज्ञासा बढ़ती है।
- कक्षा में सक्रिय सहभागिता होती है।
- सीखने की गति व गुणवत्ता दोनों बढ़ती हैं।
- अनुशासन स्वतः विकसित होता है।
- कठिन विषय भी आसानी से सीखे जा सकते हैं।
- विद्यार्थियों का संपूर्ण व्यक्तित्व-विकास होता है।
36. उत्तम शिक्षण की विशेषताओं को लिखिए।
Ans. उत्तम शिक्षण वह है जो विद्यार्थी के समग्र विकास को सुनिश्चित करे और सीखने की प्रक्रिया को सरल, रोचक एवं प्रभावी बनाए। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
उत्तम शिक्षण की मुख्य विशेषताएँ
- विद्यार्थी-केंद्रित (Learner-Centered)
- उत्तम शिक्षण में विद्यार्थियों की आवश्यकताओं, क्षमताओं और रुचियों को प्रमुखता दी जाती है।
- स्पष्ट लक्ष्य (Clear Objectives)
- शिक्षण का उद्देश्य स्पष्ट, व्यवहारिक और मापनीय होना चाहिए।
- सक्रिय सहभागिता (Active Participation)
- विद्यार्थियों को प्रश्न, चर्चा, गतिविधियों और प्रायोगिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने का अवसर मिलता है।
- उच्च स्तर की अभिप्रेरणा (High Motivation)
- उत्तम शिक्षण विद्यार्थियों में सीखने के प्रति उत्साह और जिज्ञासा उत्पन्न करता है।
- उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग
- विषय, स्तर और परिस्थिति के अनुसार विभिन्न शिक्षण विधियाँ जैसे—प्रदर्शन, प्रश्न–उत्तर, सहकारी शिक्षण, परियोजना विधि आदि का उपयोग किया जाता है।
- अनुकूल शिक्षण वातावरण (Positive Learning Environment)
- कक्षाकक्ष में सहभागिता, सहयोग, अनुशासन और आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला वातावरण होता है।
- व्यक्तिगत भिन्नताओं का ध्यान (Consideration of Individual Differences)
- प्रत्येक विद्यार्थी की गति, रुचि और क्षमता के अनुसार शिक्षण समायोजित किया जाता है।
- जीवन से संबंधितता (Life-Related Learning)
- शिक्षण वास्तविक जीवन अनुभवों से जुड़ा होता है ताकि विद्यार्थी लागू कर सकें।
- मूल्यांकन की निरंतर प्रक्रिया (Continuous Evaluation)
- सीखने की प्रगति को जाँचने के लिए समय-समय पर प्रारूपिक व समापन मूल्यांकन किया जाता है।
- प्रभावी संप्रेषण (Effective Communication)
- शिक्षक की भाषा सरल, स्पष्ट और रोचक होती है तथा विद्यार्थी-शिक्षक संवाद प्रभावी होता है।
- मल्टीमीडिया एवं सहायक सामग्री का प्रयोग
- चार्ट, मॉडल, प्रोजेक्टर, वीडियो आदि का उपयोग सीखने को अधिक प्रभावी बनाता है।
37. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में संप्रेषण के महत्त्व एवं आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
Ans. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया संप्रेषण (Communication) पर ही आधारित है। शिक्षक और विद्यार्थी के बीच प्रभावी संवाद ही सीखने को सफल बनाता है। यदि संप्रेषण स्पष्ट, सुव्यवस्थित और द्विमुखी हो तो शिक्षण सरल, रोचक और सार्थक बन जाता है। इसका महत्त्व एवं आवश्यकता निम्न प्रकार से समझी जा सकती है—
शिक्षण-अधिगम में संप्रेषण का महत्त्व
1. ज्ञान तथा सूचना का आदान–प्रदान – संप्रेषण ही वह साधन है जिसके माध्यम से शिक्षक अपनी बात, ज्ञान, सूचना और विचार स्पष्ट रूप से विद्यार्थियों तक पहुँचाता है।
2. प्रभावी शिक्षण का आधार – शिक्षक की भाषा, हाव–भाव, उदाहरण एवं प्रस्तुति जितनी स्पष्ट होगी, विद्यार्थियों द्वारा विषय को समझना उतना ही आसान होगा।
3. शिक्षक–विद्यार्थी संबंधों को सुदृढ़ बनाता है – अच्छा संवाद कक्षा में मित्रतापूर्ण वातावरण बनाता है जिससे विद्यार्थी बिना डर के प्रश्न पूछते हैं और सीखने के लिए प्रेरित रहते हैं।
4. विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करता है – संप्रेषण द्विमुखी होने पर विद्यार्थी चर्चा, उत्तर देने, कार्य करने और विचार रखने के लिए प्रेरित होते हैं। इससे सीखना सक्रिय और प्रभावी बनता है।
5. संदेहों का समाधान – यदि संप्रेषण खुला एवं स्पष्ट हो तो विद्यार्थी अपनी समस्याओं को आसानी से बता सकते हैं और शिक्षक भी उनके संदेह दूर कर सकता है।
6. अधिगम का मूल्यांकन संभव होता है – शिक्षक विद्यार्थियों के उत्तर, हावभाव और प्रतिक्रियाओं के आधार पर यह जान पाता है कि उन्होंने विषय को कितना समझा है।
7. सकारात्मक कक्षा वातावरण का निर्माण – संप्रेषण कक्षा में सहयोग, सहभागिता और अनुशासन स्थापित करता है जिससे सीखने की प्रक्रिया सहज हो जाती है।
शिक्षण-अधिगम में संप्रेषण की आवश्यकता
- विषय-वस्तु को सरल व समझने योग्य बनाने के लिए।
- विद्यार्थियों की रुचि एवं प्रेरणा बढ़ाने के लिए।
- व्यक्तिगत भिन्नताओं को समझने और उनके अनुसार शिक्षण करने हेतु।
- सीखने की कठिनाइयों को पहचानने और सुधार हेतु।
- मूल्यांकन को प्रभावी बनाने के लिए।
- कक्षा में अनुशासन और सहयोग का वातावरण बनाने के लिए।
- शिक्षक और विद्यार्थी के बीच विश्वासपूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए।
38. शिक्षण कौशल की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए किन्हीं दो शिक्षण कौशलों को स्पष्ट कीजिए।
Ans. शिक्षण कौशल वे सूक्ष्म, विशिष्ट एवं परिष्कृत व्यवहार (Micro Behaviours) हैं जिन्हें शिक्षक कक्षा में प्रभावी शिक्षण के लिए अपनाता है। ये छोटे–छोटे व्यवहार शिक्षण को योजनाबद्ध, व्यवस्थित, सरल और रोचक बनाते हैं।
शिक्षण कौशल माइक्रो टीचिंग प्रक्रिया से विकसित किए जाते हैं, जिसमें शिक्षक एक ही कौशल का अभ्यास करके उसे दक्ष बनाता है।
संक्षेप में: शिक्षण कौशल शिक्षक की वह क्षमता है, जिसके द्वारा वह विषय-वस्तु को विद्यार्थियों तक सरल, स्पष्ट, व्यवस्थित और प्रभावी रूप से पहुँचाता है।
दो शिक्षण कौशलों का विवरण
1. प्रश्न पूछने का कौशल (Skill of Questioning)
यह कौशल विद्यार्थियों को सोचने, समझने और उत्तर देने के लिए प्रेरित करता है।
मुख्य घटक
- स्पष्ट एवं सरल प्रश्न
- विद्यार्थियों के स्तर के अनुसार प्रश्न
- उचित समय देना
- प्रश्नों में विविधता – तथ्यात्मक, विश्लेषणात्मक, उच्चस्तरीय
- सभी विद्यार्थियों को शामिल करना
लाभ
- सोचने की क्षमता बढ़ती है
- कक्षा सक्रिय रहती है
- शिक्षक को विद्यार्थियों की समझ का स्तर पता चलता है
2. पुनर्बलन (रीइन्फोर्समेंट) कौशल (Skill of Reinforcement)
यह कौशल विद्यार्थी के सही उत्तर और अच्छे व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए उपयोग होता है।
मुख्य घटक
- मौखिक पुनर्बलन – “बहुत अच्छा”, “सही उत्तर”, “शाबाश”
- अमौखिक पुनर्बलन – मुस्कान, सिर हिलाना, ताली
- व्यवहारिक पुनर्बलन – अतिरिक्त अवसर देना, सराहना
- नकारात्मक पुनर्बलन से बचना – डाँट, मजाक उड़ाना, तिरस्कार नहीं
लाभ
- विद्यार्थियों में आत्मविश्वास बढ़ता है
- सीखने की प्रेरणा मिलती है
- कक्षा का वातावरण सकारात्मक बनता है
39. शिक्षण सूत्र एवं शिक्षण सिद्धान्त में अन्तर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
Ans. शिक्षण सूत्र (Teaching Maxims):
• शिक्षण सूत्र वे सरल, व्यावहारिक और अनुभवजन्य नियम हैं, जिनका उपयोग शिक्षक शिक्षण को आसान और प्रभावी बनाने के लिए करता है।
• ये प्रत्यक्ष रूप से कक्षा-व्यवहार पर आधारित होते हैं और “कैसे पढ़ाएँ” का संकेत देते हैं।
उदाहरण
- ज्ञात से अज्ञात की ओर
- सरल से कठिन की ओर
- स्थूल से सूक्ष्म की ओर
- विशिष्ट से सामान्य की ओर (आगमन विधि)
शिक्षण सिद्धान्त (Teaching Principles)
• शिक्षण सिद्धान्त वे वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक एवं तर्कसंगत आधार हैं जिन पर शिक्षण प्रक्रिया टिकी होती है।
• ये व्यापक, शोध-आधारित नियम होते हैं और शिक्षण के मूलभूत आधारों को स्पष्ट करते हैं।
• ये बताते हैं कि शिक्षण क्यों और किस आधार पर किया जाए।
उदाहरण
- रुचि का सिद्धान्त
- प्रेरणा का सिद्धान्त
- क्रियाशीलता का सिद्धान्त
- तत्परता (Readiness) का सिद्धान्त
अन्तर सारणी के रूप में:
| आधार | शिक्षण सूत्र | शिक्षण सिद्धान्त |
|---|---|---|
| स्वरूप | अनुभवजन्य नियम | वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक आधार |
| क्षेत्र | संकीर्ण और व्यावहारिक | व्यापक और सैद्धान्तिक |
| उद्देश्य | शिक्षण को सरल बनाना | शिक्षण के व्यवहार को दिशा देना |
| आधार | प्रत्यक्ष अनुभव | शोध एवं मनोविज्ञान |
| प्रयोग | कक्षा में सीधे उपयोग | शिक्षण पद्धतियों की नींव |
| उदाहरण | ज्ञात से अज्ञात, सरल से कठिन | रुचि, प्रेरणा, क्रियाशीलता |
40. सहभागी शिक्षण का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी विशेषताएँ भी लिखिए।
Ans. सहभागी शिक्षण का अर्थ
• सहभागी शिक्षण (Participatory Teaching) वह शिक्षण पद्धति है जिसमें विद्यार्थी केवल श्रोता नहीं होता, बल्कि सक्रिय रूप से शिक्षण प्रक्रिया में भाग लेता है।
• इसमें शिक्षक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है और विद्यार्थी चर्चा, समूह-कार्य, परियोजना, प्रश्नोत्तर तथा गतिविधियों के माध्यम से सीखते हैं।
• इस पद्धति का उद्देश्य विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, रचनात्मकता, सहयोग तथा समस्या-समाधान क्षमता विकसित करना है।
सहभागी शिक्षण की विशेषताएँ
- विद्यार्थी-केंद्रित पद्धति – इसमें शिक्षण का केंद्र विद्यार्थी होता है, शिक्षक केवल सहायक की भूमिका निभाता है।
- सक्रिय भागीदारी – विद्यार्थी बोलकर, लिखकर, प्रश्न पूछकर, समूह में कार्य करके सीखते हैं।
- सहयोगात्मक अधिगम – समूह चर्चा, जोड़ी कार्य, परियोजना कार्य आदि के माध्यम से आपसी सहयोग बढ़ता है।
- अनुभव-आधारित सीखना – विद्यार्थी अपने अनुभवों, उदाहरणों और वास्तविक जीवन स्थितियों से सीखते हैं।
- रचनात्मकता का विकास – यह पद्धति सोचने, विश्लेषण करने और नए विचार उत्पन्न करने की क्षमता को बढ़ाती है।
- लोकतांत्रिक वातावरण – कक्षा में शिक्षक और विद्यार्थी के बीच खुला, मैत्रीपूर्ण और समानता-आधारित वातावरण बना रहता है।
- समस्या-समाधान क्षमता में वृद्धि – विद्यार्थी स्वयं समस्याओं को समझकर समाधान खोजने का प्रयास करते हैं।
- आत्मविश्वास में वृद्धि – समूह में बोलने और प्रस्तुतिकरण से विद्यार्थी का आत्मविश्वास बढ़ता है।