पहेली और बुझो छुट्टियों में अनेक रोमांचक स्थानों की सैर पर गए। ऐसी ही एक यात्रा पर वे ऋषिकेश में गंगा नदी देखने गए। उन्होंने हिमालय की हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखला के कुछ पर्वतों का पर्वतारोहण किया जहाँ बहुत ठंड थी। इन पर्वतों पर उन्होंने ओक, चीड़ एवं देवदार जैसे अनेक वृक्ष देखे जो उनके मैदानी क्षेत्र के वृक्षों से बहुत अधिक भिन्न थे। एक और अभियान में उन्होंने राजस्थान की यात्रा की एवं ऊँट पर ऊष्ण मरुस्थल भी घूमे। यहाँ से उन्होंने नागफनी के अनेक प्रकार के पौधे एकत्र किए। अंत में वे पुरी गए और उन्होंने समुद्र तट की सैर की और वहाँ कैजुराइना के वृक्ष की कतार देखी। इन स्थानों के भ्रमण के रोमांचक एवं उल्लासपूर्ण क्षणों का स्मरण करते हुए, उन्हें अचानक एक विचार आया। ये सभी स्थान एक-दूसरे से बहुत भिन्न थे। कुछ बहुत ठंडे थे, कुछ बहुत ऊष्ण एवं शुष्क तथा कुछ स्थान आर्द्र थे। परंतु उन सभी स्थानों पर अनेक प्रकार के बहुत सारे जीव (सजीव वस्तुएँ) थे।
उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि क्या पृथ्वी पर कोई ऐसा भी स्थान है, जहाँ कोई भी जीव नहीं पाया जाता। बूझो ने अपने घर के आस-पास के स्थानों का ध्यान किया। घर के अंदर उसने अलमारी एवं दरवाज़ों को देखा। उसने सोचा था कि इनमें कोई सजीव नहीं होगा, परंतु उसे एक छोटी-सी मकड़ी नज़र आई। घर से बाहर भी वह किसी ऐसे स्थान के बारे में नहीं सोच पाया जहाँ किसी न किसी प्रकार के जीव न पाए जाते हों (चित्र 6.1)। पहेली ने दूर-दूर के स्थानों के विषय में पढ़ना एवं सोचना प्रारंभ किया। उसे पता लगा कि लोगों ने तो ज्वालामुखी के मुख (मुहाने) में भी सूक्ष्म जीवों को खोज निकाला है।
6.1 सजीव एवं उनका परिवेश
पहेली एवं बूझो के मस्तिष्क में एक और विचार आया। जिन स्थानों की उन्होंने सैर की थी, वहाँ किस प्रकार के जीव पाए जाते हैं? मरुस्थल में ऊँट थे। पर्वत पर बकरी एवं याक थे। पुरी के समुद्र तट पर केकड़े एवं अनेक प्रकार की मछलियाँ थीं जिन्हें मछुआरे पकड़ रहे थे। साथ ही चींटियों जैसे अनेक प्रकार के जीव इन सभी स्थानों पर उपस्थित थे। इन क्षेत्रों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पौधे अन्य क्षेत्रों के पौधों की प्रजातियों से भिन्न थे। इन विभिन्न क्षेत्रों का परिवेश कैसा था? क्या उनका परिवेश भी एक समान था?
क्रियाकलाप
आइए, एक वन से प्रारंभ करते हैं। यहाँ पाए जाने वाले सभी पौधों, जंतुओं एवं वस्तुओं के बारे में सोचिए। एक जंगल में पाए जाने वाले जंतुओं, पौधों एवं वस्तुओं को सारणी 6.1 के कॉलम 1 में लिखिए। दूसरे क्षेत्रों में पाए जाने वाली वस्तुओं, जंतुओं एवं पौधों के नाम भी सारणी में लिखिए। आप इस अध्याय में दिए गए उदाहरणों को इकट्ठा कर सारणी 6.1 को भर सकते हैं। अपने मित्रों, माता-पिता एवं अध्यापक से भी इस विषय पर विचार-विमर्श कीजिए तथा तालिका में दिए गए अन्य कॉलम में विभिन्न स्थानों पर पाए जाने वाले जंतुओं एवं पौधों के नाम लिखिए। आप पुस्तकालय में उपलब्ध उन पुस्तकों की सहायता ले सकते हैं जिनमें जंतु, पौधों एवं खनिज के विषय में जानकारी दी गई है।
इस सारणी के प्रत्येक कॉलम में अधिकाधिक छोटी-बड़ी वस्तुओं व जीवों को सम्मिलित करने का प्रयास कीजिए। जिस प्रकार की वस्तुएँ हमें मिलती हैं वे शायद जीवित जंतु या पौधे न हों, संभवतः ये पौधे के भाग जैसे सूखी पत्तियाँ या जंतु के अवशेष जैसे हड्डियाँ हों। हमें विभिन्न प्रकार की मिट्टी तथा रोड़े भी मिल सकते हैं। अध्याय 3 में हम इसकी चर्चा कर चुके हैं कि समुद्री जल में लवण घुले हुए हैं। इस प्रकार की कुछ अन्य वस्तुएँ भी हो सकती हैं।
जैसे-जैसे हम अध्याय को पूरा करेंगे सारणी 6.1 में कुछ और उदाहरण सम्मिलित करते जाएँगे। जब हम अन्य रोचक स्थानों की यात्रा करेंगे तब सारणी के बारे में और चर्चा करेंगे।
6.2 आवास एवं अनुकूलन
क्रियाकलाप 1 में आपके द्वारा सूचीबद्ध किए गए पौधों एवं जंतुओं से आपको क्या मिला? क्या आपको अनेक प्रकार के सजीव मिले? तालिका 6.1 के मरुस्थल वाले कॉलम और समुद्र वाले कॉलम को
ध्यान से देखिए। क्या आपको प्रतीत होता है कि इन दोनों कॉलम के जीव बहुत अलग प्रकार के हैं?
इन दोनों क्षेत्रों में किस प्रकार का परिवेश है। समुद्र में जंतु तथा पौधे लवणीय जल (खारे पानी) में रहते हैं तथा श्वसन के लिए जल में विलेय वायु (ऑक्सीजन) का उपयोग करते हैं।
मरुस्थल में जल बहुत कम मात्रा में उपलब्ध होता है। मरुस्थल दिन में बहुत गरम एवं रात में ठंडा होता है। मरुस्थल में पाए जाने वाले पौधे एवं जंतु भूमि पर रहते हैं एवं श्वसन के लिए आस-पास की वायु का उपयोग करते हैं।
समुद्र तथा मरुस्थल भिन्न प्रकार के परिवेश हैं और हम इन दोनों क्षेत्रों में बिल्कुल भिन्न प्रकार के पौधे और जंतु देखते हैं। क्या ऐसा नहीं है? आइए दो भिन्न प्रकार के परिवेश मरुस्थल तथा समुद्र से दो जंतुओं – ऊँट तथा मछली का प्रेक्षण करते हैं। ऊँट की शारीरिक संरचना उसे मरुस्थलीय परिस्थितियों
सारणी 6.1 : विभिन्न परिवेश में पाए जाने वाले जंतु, पौधे एवं अन्य वस्तुएँ
वन में | पर्वतीय क्षेत्र में | मरुस्थल में | समुद्र में | अन्य स्थान |
वनों में | पहाड़ों में | रेगिस्तानों में | समुंद्र में | गलियों में |
जंगलों में | हिमालयों में | बादलों के ऊपर | जलस्रोतों में | महलों में |
अधिकांश वनों में | शिखरों पर | खारा पानी | समुंदर के किनारे | बाजारों में |
वन्य जीवन में | पर्वत श्रेणियों में | खराब संदर्भ में | महासागर में | सड़कों में |
फलदार वृक्षों में | अल्पवन में | जलवायु के लिए | सागरों में | विज्ञान केन्द्रों में |
वन्यप्राणियों में | पहाड़ी क्षेत्रों में | जलवायु विकास के लिए | आखों में | पार्कों में |
में रहने योग्य बनाती है। ऊँट के पैर लंबे होते हैं जिससे उसका शरीर रेत की गरमी से दूर रहता है (चित्र 6.2)। उनमें मूत्रोत्सर्जन की मात्रा बहुत कम होती है तथा मल शुष्क होता है। उन्हें पसीना (स्वेद) भी नहीं आता क्योंकि शरीर से जल का ह्रास बहुत कम होता है। इसलिए जल के बिना भी वे अनेक दिनों तक रह सकते हैं।
आइए, विभिन्न प्रकार की मछलियों को देखें। इनमें से कुछ को चित्र 6.3 में दर्शाया गया है। परंतु इतने अधिक किस्म की मछलियों में क्या आपको इनकी आकृति में कुछ समानताएँ दिखाई देती हैं। इन सभी का शरीर धारा-रेखीय होता है, जिसकी चर्चा हम अध्याय-5 में कर चुके हैं। उनकी यह आकृति उन्हें जल के अंदर विचरण करने में सहायता करती है। मछलियों का शरीर चिकने शल्कों से ढका होता है। ये शल्क मछली को सुरक्षा तो प्रदान करते ही हैं साथ ही उन्हें जल में सुगम गति करने में भी सहायक हैं। हमने अध्याय 5 में चर्चा की थी कि मछली के पंख एवं पूँछ चपटी होती हैं, जो उन्हें जल के अंदर दिशा परिवर्तन एवं संतुलन बनाए रखने में सहायता करते हैं। मछली के गिल (क्लोम) होते हैं जो उसे जल में श्वास लेने में सहायता करते हैं।
हम देखते हैं कि मछली की संरचनाएँ उसे जल में रहने में सहायक होती हैं तथा ऊँट की संरचनाएँ उसे मरुस्थल में रहने में सहायता करती हैं।
हमने पृथ्वी पर पाए जाने वाले असंख्य प्रकार के जंतुओं में से केवल दो उदाहरण लिए। हम देखते हैं कि सजीवों की इन सभी किस्मों में ऐसी कुछ विशिष्ट संरचनाएँ होती हैं जो उन्हें अपने परिवेश में रहने योग्य बनाती हैं जिसमें वे प्रायः पाए जाते हैं। जिन विशिष्ट संरचनाओं अथवा स्वभाव की उपस्थिति किसी पौधे अथवा जंतु को उसके परिवेश में रहने के योग्य बनाती है, अनुकूलन कहते हैं। विभिन्न जंतु भिन्न परिवेश के प्रति अलग रूप से अनुकूलित हो सकते हैं।
किसी सजीव का वह स्थान जिसमें वह रहता है, उसका आवास कहलाता है। अपने भोजन, वायु, शरण स्थल एवं अन्य आवश्यकताओं के लिए जीव अपने आवास पर निर्भर रहता है। आवास का अर्थ है वास स्थान (एक घर)। विभिन्न प्रकार के पौधे एवं जंतु एक ही आवास में संयुक्त रूप से रह सकते हैं।
स्थल (जमीन) पर पाए जाने वाले पौधों एवं जंतुओं के आवास को स्थलीय आवास कहते हैं। वन, घास के मैदान, मरुस्थल, तटीय एवं पर्वतीय क्षेत्र स्थलीय आवास के कुछ उदाहरण हैं। जलाशय, दलदल, झील, नदियाँ एवं समुद्र, जहाँ पौधे एवं जंतु जल में रहते हैं, जलीय आवास हैं। विश्व के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले वनों, घास के मैदानों, मरुस्थलों, तटीय एवं पर्वतीय क्षेत्रों में भी बहुत विषमताएँ हैं। यह सभी जलीय आवासों के लिए भी सत्य है।
किसी आवास में पाए जाने वाले सभी जीव जैसे कि पौधे एवं जंतु उसके जैव घटक हैं। चट्टान, मिट्टी, वायु एवं जल जैसी अनेक निर्जीव वस्तुएँ आवास के अजैव घटक हैं। सूर्य का प्रकाश एवं ऊष्मा भी परिवेश के अजैव घटक हैं।
हम जानते हैं कि कुछ पौधे बीजों से उगते हैं। आइए बीज के अंकुरण से नए पौधे के बनने की प्रक्रिया में कुछ अजैव कारकों की भूमिका का अध्ययन करें।
अपने परिवेश में होने वाले परिवर्तनों के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए कुछ जीवों में थोड़े समय के लिए परिवर्तन हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम मैदानी क्षेत्र में रहते हैं और अचानक ही ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र में चले जाएँ तो हमें कुछ दिनों तक श्वास लेने एवं शारीरिक व्यायाम में असुविधा हो सकती है। पहाड़ पर हमें तीव्र गति से श्वास लेना पड़ता है। कुछ दिनों बाद हमारा शरीर पर्वतीय क्षेत्र के वातावरण के प्रति अपने आप को ढाल लेता है तथा हमें श्वास लेने में कोई परेशानी नहीं होती। अल्प अवधि में किसी एक जीव के शरीर में होने वाले ये छोटे-छोटे परिवर्तन पर्यनुकूलन कहलाते हैं। यह परिवर्तन हजारों वर्षों में हुए अनुकूलन से भिन्न है।
क्रियाकलाप 2
अध्याय 4 में किए गए क्रियाकलाप 7 का स्मरण कीजिए। इस क्रियाकलाप में चने और मक्का और मक्का के बीज से अंकुर निकल आता है, अर्थात् वे अंकुरित हो गए हैं। यह बीज से एक नए पौधे का प्रारंभ है।
मूँग के कुछ सूखे बीजों को एकत्रित कीजिए। कुछ बीजों के एक ढेर को अलग रख दें तथा शेष को एक दिन के लिए पानी में भीगने के लिए रख दें। भीगे हुए बीजों को चार हिस्सों में बाँटें। उसमें से एक हिस्से को तीन-चार दिन के लिए पूरी तरह पानी में डुबोकर रख दें। सूखे हुए बीजों को तथा पानी में पूरी तरह डूबे हुए बीजों को बिल्कुल न हिलाएँ। भीगे बीजों में से एक भाग को धूप वाले कमरे में तथा दूसरे भाग को पूरे अंधेरे क्षेत्र में रख दें, जैसे कि अलमारी, जिसमें धूप नहीं जाती है। अंतिम भाग को बहुत ही ठंडे वातावरण में रखें जैसे कि रेफ्रिजरेटर या उनके चारों ओर बर्फ़ लगा दें। इन तीन भागों को प्रतिदिन जल में नम रखें तथा अधिक जल को निकाल दें। कुछ दिन बाद आप क्या देखते हैं? क्या सभी पाँचों भाग समान रूप से अंकुरित होते हैं? क्या आप प्रकाश से दूर रखे भाग या अत्यधिक ठंडे परिवेश में रखे भाग में अंकुरण की दर में कमी या कोई भी अंकुरण नहीं देखते हैं?
क्या आपने पाया कि वायु, जल, प्रकाश तथा ऊष्मा जैसे अजैव घटक सजीवों के लिए अत्यंत आवश्यक हैं? वास्तव में ये अजैव कारक सभी सजीवों के लिए महत्वपूर्ण है।
हम देखते हैं कि सजीव बहुत ठंडे और बहुत ऊष्ण परिवेश में भी पाए जाते हैं। क्या ऐसा नहीं है? ये जीव इस विषम परिवेश में जीवित रहने के लिए किस विशिष्ट व्यवस्था को अपनाते हैं? यहाँ अनुकूलन काम आता है।
अनुकूलन अल्प काल में नहीं होता है। हजारों वर्षों की अवधि में किसी क्षेत्र के अजैव घटकों में परिवर्तन आते हैं। वे जंतु जो इन परिवर्तनों के प्रति अपने आपको नहीं ढाल पाते, मर जाते हैं। केवल वे जीव ही जीवित रहते हैं जो अपने आपको बदलते परिवेश के अनुसार अनुकूलित कर लेते हैं। जंतु विभिन्न अजैव कारकों के लिए विभिन्न विधि यों से अपने आपको अनुकूलित कर लेते हैं। इसका परिणाम भिन्न आवासों में जीवों की विविधता का होना है।
आइए, कुछ आवासों, इनके अजैव घटकों एवं उसमें रहने वाले विभिन्न जीवों में अनुकूलन का अध्ययन करें।
6.3 विभिन्न आवासों की यात्रा कुछ स्थलीय आवास
मरुस्थल
मरुस्थल के अजैव घटकों एवं ऊँट के अनुकूलन के विषय में हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं। मरुस्थल में पाए जाने वाले अन्य जंतुओं एवं पौधों में क्या होता है? क्या उनमें भी इसी प्रकार के अनुकूलन पाए जाते हैं?
मरुस्थल में रहने वाले चूहे एवं साँप के, ऊँट की भाँति लंबे पैर नहीं होते। दिन की तेज़ गरमी से बचने के लिए वे भूमि के अंदर गहरे बिलों में रहते हैं (चित्र 6.4)। रात्रि के समय जब तापमान में कमी आती है, तो ये जंतु बाहर निकलते हैं।
मरुस्थल में उगने वाले कुछ सामान्य पौधों को चित्र 6.5 में दर्शाया गया है। यह मरुस्थल के प्रति किस प्रकार अनुकूलित हैं?
क्रियाकलाप 3
गमले में कैक्टस तथा पत्तियों वाला एक लगा एक कैक्टस पौधा कक्षा में लाइए। दोनों पौधों के कुछ भाग को पॉलिथीन थैली से ढककर उसी प्रकार बाँधिए, जिस प्रकार अध्याय 4 के क्रियाकलाप 4 में हमने पौधों में वाष्पोत्सर्जन का अध्ययन करते समय बाँधा था। गमले में लगे पौधों को धूप में रख दीजिए तथा कुछ घंटे बाद इनका प्रेक्षण कीजिए। आप क्या देखते हैं? क्या आप दोनों पॉलिथीन थैलियों में एकत्रित जल की मात्रा में कोई अंतर देखते हैं?
मरुस्थलीय पौधे वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की बहुत कम मात्रा निष्कासित करते हैं। मरुस्थलीय पौधों में पत्तियाँ या तो अनुपस्थित होती हैं अथवा बहुत छोटी होती हैं। कुछ पौधों में पत्तियाँ काँटों (शूल) का रूप ले लेती हैं। इससे पत्तियों से होने वाले वाष्पोत्सर्जन में होने वाले जल ह्रास में कमी आती है। नागफनी में पत्ती जैसी जिस संरचना को आप देखते हैं, वह वास्तव में इसका तना है (चित्र 6.5)। इन पौधों में प्रकाश-संश्लेषण सामान्यतः तने में होता है। तना एक मोटी मोमी परत से ढका होता है, जिससे पौधों को जल-संरक्षण में सहायता मिलती है। अधिकतर मरुस्थलीय पौधों की जड़ें जल अवशोषण के लिए मिट्टी में बहुत गहराई तक चली जाती हैं।
पर्वतीय क्षेत्र
ये आवास क्षेत्र सामान्यतः बहुत ठंडे होते हैं और इनमें तेज़ हवा चलती है। कुछ क्षेत्रों में शीतकाल में हिमपात भी होता है।
पर्वतीय क्षेत्रों में पौधों एवं जंतुओं की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। क्या आपने चित्र 6.6 में दर्शाए गए वृक्ष देखे हैं?
यदि आप पर्वतीय क्षेत्र में रहते हैं अथवा वहाँ घूमने गए हैं तो आपने ऐसे अनेक वृक्ष देखे होंगे। परंतु, क्या आपने ऐसे वृक्षों को अन्य क्षेत्रों में भी देखा है?
ये वृक्ष अपने आवास में विद्यमान परिस्थितियों में रहने के लिए किस प्रकार अनुकूलित हैं? ये वृक्ष सामान्यतः शंक्वाकार होते हैं तथा इनकी शाखाएँ तिरछी होती हैं। इनमें से कुछ वृक्षों की पत्तियाँ सुई के आकार की होती हैं। इससे वर्षा का जल एवं हिम सरलता से नीचे की ओर खिसक जाता है। पर्वतों पर इन वृक्षों से अधिक भिन्न आकृति एवं आकार वाले वृक्ष भी मिल सकते हैं। पर्वत पर जीवित रहने के लिए इनमें कुछ अन्य प्रकार का अनुकूलन हो सकता है।
पर्वतीय क्षेत्र में पाए जाने वाले जंतु भी वहाँ की परिस्थितियों के प्रति अनुकूलित होते हैं (चित्र 6.7)। उनकी मोटी त्वचा या फर ठंड से उनका बचाव करती है। उदाहरणतः शरीर को गरम रखने के लिए याक का शरीर लंबे बालों से ढका होता है। पहाड़ी तेंदुए के शरीर पर फर होते हैं। यह बर्फ़ पर चलते समय उसके पैरों को ठंड से बचाता है। पहाड़ी बकरी के मजबूत खुर उसे ढालदार चट्टानों पर दौड़ने के लिए अनुकूलित बनाते हैं।
जैसे-जैसे हम पर्वतीय क्षेत्रों में ऊपर चढ़ते जाते हैं परिवेश का स्वरूप बदलता जाता है और हमें विभिन्न ऊँचाइयों पर पाए जाने वाले जीवों के अनुकूलन में विविधता दिखाई देती है।
घासस्थल
शेर वन में अथवा घासस्थल में रहता है तथा एक ऐसा शक्तिशाली जंतु है, जो हिरण जैसे जंतुओं का शिकार कर उन्हें मारकर खा जाता है। यह मटमैले (हल्के भूरे) रंग का होता है। एक शेर एवं हिरण का चित्र देखिए (चित्र 6.8)। इन दोनों जंतुओं की आँखें उनके चेहरे पर किस प्रकार स्थित हैं? क्या वे चेहरे के सामने हैं अथवा पार्श्व में हैं? शेर के अगले पैर के नखर लंबे होते हैं जिन्हें वह पादांगुलियों के अंदर खींचकर छिपा सकता है। क्या शेर की यह – संरचनाएँ उसके जीवन-यापन में सहायता करती हैं? न्य उसका मटमैला (हल्का भूरा) रंग शिकार के दौरान उसे घास के सूखे मैदानों में छिपाए रखता है और शिकार को पता भी नहीं चलता। चेहरे के सामने की आँखें उसे वन में दूर तक शिकार खोजने में सहायक होती हैं।
एक दूसरा जंतु हिरण है जो वन वन या या घास घासस्थल में रहता है। पौधों के कठोर तनों को चबाने के लिए इसके मजबूत दाँत होते हैं। हिरण को अपने शिकारी (शेर जैसे जंतु जो उसे अपना शिकार बनाते हैं) की उपस्थिति की जानकारी आवश्यक है, ताकि वह उसका शिकार न बन सके और वहाँ से भाग जाए। उसके लंबे कान उसे शिकारी की गतिविधि की जानकारी देते हैं। इसके सिर के पार्श्व में दोनों ओर स्थित आँखें प्रत्येक दिशा में देखकर खतरा महसूस कर सकती हैं। हिरण की तेज गति उसे शिकारी से दूर भागने में सहायक होती हैं।
शेर, हिरण तथा अन्य जंतुओं एवं पौधों में और भी बहुत-सी विशिष्ट संरचनाएँ होती हैं, जो उन्हें उनके आवास में जीवित रहने योग्य बनाती हैं।
कुछ जलीय आवास
समुद्र
समुद्र में रहने के लिए मछली के अनुकूलन के विषय में हम चर्चा कर चुके हैं। दूसरे बहुत से समुद्री जंतुओं का शरीर भी धारा-रेखीय होता है जिससे वह जल में सुगमता से चल सकते हैं। स्क्विड एवं ऑक्टोपस जैसे कुछ समुद्री जंतुओं का शरीर आमतौर पर धारा-रेखीय नहीं होता। वे समुद्र की गहराई में, तलहटी में रहते हैं तथा अपनी ओर आने वाले शिकार को पकड़ते हैं। जब वे जल में चलते हैं तो अपने शरीर को धारा-रेखीय बना लेते हैं। जल में श्वास लेने के लिए इनमें गिल (क्लोम) होते हैं।
डॉलफिन एवं ह्वेल जैसे कुछ जंतुओं में गिल नहीं होते। ये सिर पर स्थित नासाद्वार अथवा वात-छिद्रों द्वारा श्वास लेते हैं। ये जल में लंबे समय तक बिना श्वास लिए रह सकते हैं। वे समय-समय पर समुद्री सतह (जल से बाहर) पर आकर श्वसन-छिद्रों से जल बाहर निकालते हैं एवं श्वास द्वारा स्वच्छ वायु अंदर भरते हैं। क्या आपने कभी दूरदर्शन पर अथवा समुद्री जीवन पर चलचित्र में डॉलफिन की इस रोचक क्रिया को देखा है?
तालाब एवं झील
क्या आपने तालाब, झील, नदियों एवं नालों में पौधों को उगे देखा है? यदि संभव हो तो समीपवर्ती किसी तालाब के भ्रमण पर जाइए और वहाँ दिखाई देने वाले कुछ पौधों को बाहर निकाल लीजिए। इन पौधों की पत्तियाँ, तने और जड़ें किस प्रकार व्यवस्थित हैं?
इनमें से कुछ पौधों की जड़ें जलाशय की तलहटी की मिट्टी में स्थिर रहती हैं (चित्र 6.9)। स्थलीय पौधों में जड़ मिट्टी से जल एवं खनिज पोषकों के अवशोषण का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। परंतु जलीय पौधों में जड़ें आकार में बहुत छोटी होती हैं एवं इनका मुख्य कार्य पौधे को तलहटी में जमाए रखना होता है।
इन पौधों का तना लंबा, खोखला एवं हल्का होता है। तना जल की सतह तक वृद्धि करता है, जबकि पत्तियाँ एवं फूल जल की सतह पर प्लवन करते रहते हैं।
कुछ जलीय पौधे जल में पूर्णरूपेण डूबे रहते हैं। ऐसे पौधों के सभी भाग जल में वृद्धि करते हैं। इनमें से कुछ पौधों की पत्तियाँ संकरी एवं पतले रिबन की तरह होती हैं। यह बहते जल में सरलता से मुड़ जाती हैं। कुछ अन्य जलमग्न पौधों में पत्तियाँ बहुत अधिक विभाजित होती हैं जिससे जल इनके बीच से बहता रहता है और पत्ती को कोई क्षति भी नहीं होती।
मेंढक आमतौर पर तालाब में पाया जाने वाला एक जंतु है। यह तालाब के जल एवं स्थल दोनों पर रह सकता है। इसके पश्चपाद लंबे एवं मजबूत होते हैं जो उन्हें छलांग लगाने एवं शिकार पकड़ने में सहायता करते हैं। इनके पश्चपाद में जालयुक्त पादांगुलियाँ होती हैं जो उन्हें तैरने में सहायता करती हैं।
हमने केवल कुछ ही जंतुओं एवं पौधों की चर्चा की है। जबकि विभिन्न आवास में रहने वाले जीवों की संख्या बहुत अधिक है। अध्याय 4 में सुझाए क्रियाकलाप के अंतर्गत जब आप पत्तियों की एलबम तैयार कर चुके होंगे तब तक आप पौधों की अनेक प्रजातियों के बारे में जानकारी कर चुके होंगे। कल्पना कीजिए कि यदि हम पृथ्वी के सभी क्षेत्रों में उपलब्ध पौधों की पत्तियों का एलबम तैयार करें तो उनमें कितनी विविधता होगी!
6.4 हमारे आर हमारे आस-पास के जीव
हमने विभिन्न आवास क्षेत्रों की यात्रा की तथा अनेक पौधों एवं जंतुओं की चर्चा भी की। क्रियाकलाप 1 में हमने विभिन्न परिवेश में पाए जाने वाली वस्तुओं, पौधों एवं जंतुओं की सूची बनाई। कल्पना कीजिए कि यदि हम जानना चाहें कि हमारी सूची में सजीव के कौन-से उदाहरण हैं? आइए, वन में पाई जाने वाली वस्तुओं के विषय में सोचें। वृक्ष, आरोही-लता, विसर्पी-लता, छोटे-बड़े जंतु, पक्षी, सर्प, कीट, चट्टान, पत्थर, मिट्टी, जल, वायु, सूखी पत्तियाँ, मृत जंतु, छत्रक एवं काई (मॉस) वन में पाई जाने वाली विभिन्न वस्तुओं के कुछ उदाहरण हैं। इनमें से कौन सजीव हैं?
अपने चारों ओर पाई जाने वाली विभिन्न वस्तुओं के विषय में सोचिए तथा उन्हें निर्जीव एवं सजीव समूहों में बाँटिए। कुछ प्रकरणों में हमारे लिए यह आसान होगा। उदाहरणतः हमारे घर की कुर्सी अथवा मेज़ जैसी वस्तुएँ सजीव नहीं हैं। पहेली एडवर्ड लियर द्वारा रचित कम्पलीट नॉनसेन्स का यह छंद पढ़ रही थीः
पहेली और बूझो को कविता बहुत मजेदार लगी, क्योंकि वे जानते थे कि मेज़ और कुर्सी सजीव नहीं हैं। अतः ये न तो चल सकते हैं, न बोल सकते हैं।
हम जानते हैं कि कुर्सी, मेज़, पत्थर अथवा एक सिक्का सजीव नहीं हैं। इसी प्रकार हम जानते हैं कि हम जीवित हैं और हमारी ही तरह संसार के सभी मनुष्य तथा कुत्ता, बिल्ली, बंदर, गिलहरी, कीट जैसे जंतु सभी सजीव हैं।
हमें कैसे पता चलता है कि कोई वस्तु सजीव है? कभी-कभी यह निर्णय करना इतना आसान नहीं होता। हम कहते हैं कि पौधे सजीव हैं, परंतु वे कुत्ते अथवा कबूतर की भाँति चल नहीं सकते। दूसरी ओर एक कार अथवा बस चल सकती है फिर भी हम उन्हें निर्जीव कहते हैं। पौधे एवं जंतु समय के साथ वृद्धि करते हैं। परंतु कई बार ऐसा भी प्रतीत होता है जैसे कि आकाश में बादल अपने आकार में वृद्धि कर रहे हों तो क्या इसका अर्थ है कि बादल सजीव हैं? नहीं। तो, आखिरकार हम निर्जीव एवं सजीवों में अंतर किस प्रकार करेंगे? क्या सजीवों में कुछ विशेष लक्षण होते हैं जो उन्हें निर्जीव पदार्थों से अलग करते हैं।
आप स्वयं सजीवों का एक बहुत अच्छा उदाहरण हैं। आपमें ऐसे कौन-से विशेष लक्षण हैं जो आपको निर्जीव वस्तुओं से अलग करते हैं? अपनी नोटबुक में ऐसे कुछ लक्षणों के नाम लिखिए। अपनी बनाई सूची को ध्यान से देखिए एवं पता लगाइए कि कौन-से लक्षण, अन्य जंतुओं अथवा पौधों में भी पाए जाते हैं। संभवतः इनमें से कुछ लक्षण सभी सजीव वस्तुओं में एक समान होंगे।
क्या सभी सजीवों को भोजन की आवश्यकता होती है?
अध्याय 1 में हमने यह जाना कि सभी जीवों को भोजन की आवश्यकता होती हैं। भोजन हमारे लिए एवं विभिन्न जंतुओं के लिए नितांत आवश्यक है। हमने यह भी सीखा कि पौधे प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। जंतु भोजन के लिए – पौधों अथवा अन्य जंतुओं पर निर्भर रहते हैं।
भोजन सजीवों को उनकी वृद्धि के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है। सजीवों को उनके अंदर होने वाले अन्य जैव-प्रक्रमों के लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता है।
क्या सभी जीवों में वृद्धि परिलक्षित होती है?
क्या चार वर्ष पुराना कुर्ता आपको अभी भी ठीक आता है? इसे आप अब और नहीं पहन सकते। क्या ऐसा नहीं है? इन वर्षों में आप लंबे हो गए हैं। आपको इसका आभास नहीं हो रहा है, लेकिन आप में हर समय वृद्धि हो रही है और कुछ वर्ष बाद आप वयस्क हो जाएँगे (चित्र 6.10)।
जंतुओं के बच्चे भी वृद्धि कर वयस्क जाते हो हैं। आपने अवश्य देखा होगा कि कुत्ते के पिल्ले वयस्क हो जाते हैं। एक अंडे से स्फुटित होकर चूजा (मुर्गी का बच्चा) वृद्धि करके मुर्गी अथवा मुर्गा में परिवर्तित हो जाता है (चित्र 6.11)।
पौधे भी वृद्धि करते हैं। अपने चारों ओर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पौधों का अवलोकन कीजिए। इनमें से कुछ बहुत छोटे तथा नवजात हैं तो कुछ विकसित हैं। ये सभी वृद्धि की विभिन्न स्थितियों में हो सकते हैं।
कुछ दिनों और कुछ सप्ताह बाद पौधों को देखिए। आप देखेंगे कि उनकी लंबाई में वृद्धि हुई है। वृद्धि सभी सजीवों में होती है।
क्या आप सोचते हैं कि निर्जीव वस्तु वृद्धि प्रदर्शित नहीं कर सकते?
क्या सभी सजीव श्वसन करते हैं?
क्या हम श्वसन के बिना जीवित रह सकते हैं? जब हम श्वास लेते हैं तो बाहर की वायु शरीर के अंदर जाती है। जब हम श्वास छोड़ते हैं तो शरीर के अंदर की वायु बाहर निकल जाती है। श्वास लेना श्वसन क्रिया का एक हिस्सा है। श्वसन में अंदर ली गई वायु की ऑक्सीजन की कुछ मात्रा का उपयोग होता है। इस क्रिया में बनी कार्बन डाईऑक्साइड को हम श्वास द्वारा बाहर निष्काषित कर देते हैं।
गाय, भैंस, कुत्ता तथा बिल्ली जैसे कुछ जंतुओं में श्वसन क्रिया मनुष्य की तरह ही होती है। इनमें से किसी भी जंतु का विश्राम की अवस्था में प्रेक्षण कीजिए तथा उसके उदर की गति पर ध्यान दीजिए। यह मंद गति उनकी श्वास लेने की क्रिया को दर्शाती है।
श्वसन सभी सजीवों के लिए आवश्यक है। ग्रहण किए गए भोजन से श्वसन के द्वारा ही हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है।
कुछ जंतुओं में गैस आदान-प्रदान का तरीका भिन्न हो सकता है, जो श्वसन का एक हिस्सा होता है। उदाहरण के लिए केंचुआ त्वचा द्वारा साँस लेता है। हमने पढ़ा है कि मछली के गिल होते हैं जिनकी सहायता से वह जल में विलेय वायु से ऑक्सीजन अवशोषित कर लेती है।
क्या पौधे भी श्वसन करते हैं? पौधों की श्वसन क्रिया में गैसों का आदान-प्रदान मुख्यतः उनकी पत्तियों द्वारा होता है। पत्तियाँ सूक्ष्म रंध्रों द्वारा वायु को अंदर लेती हैं तथा ऑक्सीजन का उपयोग करती हैं। वह कार्बन डाईऑक्साइड वायु में निष्काषित कर देती हैं।
हम जानते हैं कि प्रकाश की उपस्थिति में पौधे वायु की कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग भोजन बनाने के लिए करते हैं तथा ऑक्सीजन छोड़ते हैं। श्वसन क्रिया दिन और रात, दोनों में ही निरंतर चलती रहती है। भोजन बनाने की प्रक्रिया में निष्कासित ऑक्सीजन की मात्रा पौधे द्वारा श्वसन में उपयोग की गई ऑक्सीजन की अपेक्षा बहुत अधिक होती है।
क्या सभी सजीव उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करते हैं?
जब आप नंगे पैर टहल रहे हों तथा आपका पैर अचानक ही किसी काँटे अथवा नुकीली वस्तु पर पड़ जाए, तो आप किस प्रकार अनुक्रिया करेंगे। जब आप अपने प्रिय व्यंजन को देखते हैं अथवा उसके विषय में सोचते हैं तो क्या अनुभव होता है? आप अंधेरे स्थान से अचानक तेज़ धूप में आते हैं तो क्या होता है? आपकी आँखें स्वतः ही कुछ क्षण के लिए बंद हो जाती हैं, जब तक कि वे तेज़ प्रकाश की अभ्यस्त नहीं हो जातीं। आपका प्रिय व्यंजन, तेज़ प्रकाश एवं काँटा उपरोक्त स्थितियों में आपके बाह्य वातावरण में होने वाले पविर्तनों के कुछ उदाहरण हैं। हम इन सभी प्रकार के परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं।वातावरण में होने वाले इन परिवर्तनों को उद्दीपन कहते हैं।
क्या दूसरे जंतुओं में भी उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया होती है? खाना देते समय जंतु (पशु) के व्यवहार को ध्यान से देखिए। क्या वे भोजन देखते ही अचानक अधिक चैतन्य नहीं हो जाते? जब आप एक चिड़िया की ओर कदम बढ़ाते हैं तो वह क्या करती है? जब जंगली जानवरों पर तीव्र प्रकाश डालते हैं, तो वे भाग खड़े होते हैं। इसी प्रकार यदि रात्रि में आप रसोईघर में बल्ब प्रदीप्त कर देते हैं तो कॉकरोच अचानक अपने छिपने के स्थान में भाग जाते हैं। क्या आप जंतुओं में उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया के कुछ और उदाहरण दे सकते हैं?
क्या पौधे भी उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया दर्शाते हैं? कुछ पौधों के पुष्प केवल रात्रि के समय ही खिलते हैं। कुछ पौधों के पुष्प सूर्यास्त के बाद बंद हो जाते हैं। छुई मुई (गुलमेंहदी) के पौधे की पत्तियाँ छूने पर अचानक मुरझा (सिकुड़) जाती हैं। यह पौधों में उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया के कुछ उदाहरण हैं।
क्रियाकलाप 4
एक कमरे की खिड़की जिससे दिन के समय धूप (सूर्य का प्रकाश) आती हो, के पास एक पौधे का गमला रखिए (चित्र 6.12)। कुछ दिनों तक पौधे को नियमित जल देते रहें। क्या यह पौधा खुले स्थान पर रखे पौधे की तरह सीधा ऊपर की ओर वृद्धि करता है? यदि यह सीधा वृद्धि नहीं करता तो ज्ञात कीजिए, यह किस ओर मुड़ता है? आपके विचार में क्या यह किसी उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया है?
सभी सजीव वस्तुएँ अपने परिवेश में होने वाले परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया दर्शाती हैं।
सजीवों में उत्सर्जन
सभी सजीव भोजन करते हैं। जीव इस ग्रहण किए हुए भोजन की संपूर्ण मात्रा का उपयोग नहीं करता। आहार का केवल कुछ ही भाग जीव के शरीर द्वारा उपयोग में आता है। भोजन के बचे हुए शेष भाग का क्या होता है? वे इसे अपशिष्ट के रूप में शरीर से बाहर निकाल देते हैं। विभिन्न जैव-प्रक्रमों के फलस्वरूप हमारे शरीर में कुछ अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते हैं, सजीवों द्वारा इन अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं।
क्या पौधों में भी उत्सर्जन होता है? हाँ, पौधे भी उत्सर्जन करते हैं। परंतु उनमें इस प्रक्रम का ढंग कुछ अलग है। कुछ पौधों में यह अपशिष्ट पदार्थ पौधे के कुछ विशेष भागों में संग्रहित किए जाते हैं, जिससे पौधे को कोई हानि नहीं पहुँचती। कुछ पौधों में अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन स्त्राव के रूप में होता है।
उत्सर्जन सजीवों का एक दूसरा सामान्य लक्षण है।
क्या सभी सजीव प्रजनन करते हैं?
क्या आपने कभी कबूतर अथवा किसी पक्षी के नीड़ (घोंसले) देखे हैं? वे नीड़ में अंडे देते हैं। कुछ अंडे प्रस्फुटित होते हैं तथा उनसे छोटे-छोटे बच्चे बाहर निकल आते हैं (चित्र 6.13)।
जंतु प्रजनन द्वारा अपने समान संतान उत्पन्न करते हैं। भिन्न जंतुओं में प्रजनन का ढंग अलग-अलग होता है। कुछ जंतु अंडे देते हैं जिनसे शिशु निकलते हैं। कुछ जंतु शिशु को जन्म देते हैं (चित्र 6.14)।
पौधे भी प्रजनन करते हैं? जंतुओं की तरह पौधों में भी प्रजनन के तरीके भिन्न-भिन्न हैं। बहुत-से पौधे बीजों द्वारा प्रजनन करते हैं। पौधे बीज उत्पादित करते हैं। हम उन्हें अंकुरित करके नए पौधे उगा सकते हैं (चित्र 6.15)।
कुछ पौधे बीज के अतिरिक्त अपने कायिक भागों द्वारा भी नए पौधे उत्पन्न करते हैं। उदाहरणतः आलू के कलिका वाले भाग से नया पौधा बनता है (चित्र 6.16)।
पौधे कलम द्वारा भी उगाए जाते हैं। क्या आप स्वयं इस विधि द्वारा पौधा उगाना चाहेंगे?
क्रियाकलाप 5
गुलाब अथवा मेंहदी की धड़-कलम लीजिए। इसे मिट्टी में लगाइए। इसे नियमित रूप से जल दीजिए। आप कुछ दिनों के बाद क्या देखते हैं?
कलम से पौधा बनाना सरल कार्य नहीं है। यदि आपकी कलम में वृद्धि नहीं हुई है तो निराश न हों।
यदि संभव हो तो एक माली से बात करके कलम से पौधे बनने के अंतराल में की जाने वाली देखभाल की जानकारी प्राप्त कीजिए।
सजीव प्रजनन प्रक्रिया द्वारा अपने समान अनेक संतान उत्पन्न करते हैं। विभिन्न जीवों में प्रजनन की विधियाँ भी भिन्न प्रकार की होती हैं।
क्या सभी सजीव गति करते हैं?
अध्याय 5 में हमने जंतुओं में गति के विभिन्न तरीकों की चर्चा की थी। वे एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं तथा उनके शरीर में अन्य प्रकार की गति भी दिखाई देती हैं।
पौधों के विषय में क्या विचार है? क्या वे भी गति करते हैं? पौधे सामान्यतः भूमि में जकड़े रहते हैं। अतः वे एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जा सकते हैं। परंतु विभिन्न पदार्थ जैसे कि जल, खनिज एवं संश्लेषित खाद्य पदार्थ पौधे के एक भाग से दूसरे में संवहित होते हैं। क्या आपने पौधों में अन्य प्रकार की गति भी देखी हैं? पुष्पों का खिलना एवं बंद होना। क्या आप याद कर सकते हैं कि कुछ पौधे विभिन्न उद्दीपनों के प्रति किस प्रकार अनुक्रिया करते हैं?
हम कुछ निर्जीव वस्तुओं को भी गति करते देखते हैं। बस, कार, कागज़ का छोटा टुकड़ा, बादल तथा अन्य कुछ वस्तुएँ इसके उदाहरण हैं। क्या इनकी गति सजीवों की गति से किसी प्रकार भिन्न है?
प्रकृति में विविध प्रकार के जीव हैं, लेकिन उन सभी में कुछ लक्षण एक समान होते हैं जिसकी हम पहले चर्चा कर चुके हैं। मृत्यु सजीवों के लिए एक सामान्य लक्षण है। चूँकि जीव की मृत्यु होती है, इसलिए जीवों की प्रजातियाँ हज़ारों वर्षों तक तभी अस्तित्व में रह सकती हैं जबकि वे प्रजनन कर अपने समान संतान उत्पन्न करें। एक अकेला जीव प्रजनन किए बिना भी मर सकता है, परंतु सजीव की प्रजाति तभी अस्तित्व में रहती है जब उसके सदस्यों में प्रजनन होता रहता है।
हमने देखा कि सभी सजीव वस्तुओं में कुछ विशिष्ट लक्षण समान रूप से दिखाई देते हैं। उन सभी को भोजन की आवश्यकता होती है। उनमें श्वसन, – उत्सर्जन, उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया, प्रजनन, गति एवं वृद्धि होती है तथा मृत्यु होती है।
क्या हम ऐसी कुछ निर्जीव वस्तुओं को जानते हैं जिनमें इन लक्षणों में से कुछ लक्षण दिखाई देते हैं? कार, साइकिल, घड़ी एवं नदी का जल गति करते हैं। आकाश में चंद्रमा गति करता है। हमारे देखते-देखते – एक बादल के आकार में वृद्धि हो जाती है। क्या इन वस्तुओं को सजीव कहा जा सकता है? हमें स्वयं से प्रश्न करना होगा कि क्या इनमें सजीवों के अन्य सभी लक्षण भी पाए जाते हैं?
सामान्यतः सजीवों में वे सभी लक्षण पाए जाते हैं, जिनकी हमने चर्चा की हैं परंतु निर्जीव वस्तुओं में वे सभी लक्षण एक साथ दिखाई नहीं देते।
क्या यह हमेशा सत्य है? क्या हमें सभी सजीवों में वे सभी लक्षण जिनकी हमने चर्चा की, हमेशा निश्चित रूप से दिखाई देते हैं? क्या हमें निर्जीवों में वे सभी लक्षण कभी भी एक साथ दिखाई नहीं देते, उनमें से मात्र कुछ लक्षण ही दिखाई देते हैं।
इस विषय को और अच्छी प्रकार से समझने के लिए आइए किसी बीज के विषय में विचार करें। कुछ विशिष्ट उदाहरण देखें। उदाहरणतः मूँग के बीज के बारे में क्या होता है? क्या यह जीवित है? यह एक दुकान अथवा भंडार में महीनों रखा रहता है तथा इसमें कोई वृद्धि नहीं होती अथवा जीवन के कुछ अन्य लक्षण भी दिखाई नहीं देते हैं। परंतु जब हम इन्हीं बीजों को मिट्टी में बोकर जल से सींचते हैं तो यह पौधा बन जाता है। क्या महीनों तक दुकान में रखे बीज को भोजन की आवश्यकता थी अथवा इसमें उत्सर्जन, वृद्धि अथवा प्रजनन हुआ था?
हमने देखा कि कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जब हम सरलता से नहीं कह सकते कि उनमें सजीवों के सभी लक्षण दिखाई दे रहे हैं जिससे इन्हें जीवित कहा जा सके।
फिर, जीवन क्या है?
गेहूँ की बोरी में अपना हाथ डालिए। क्या आपको कुछ गर्मी का अनुभव होता है?
गेहूँ की बोरी में कुछ गर्मी उत्पन्न होती है। यह गर्मी बीजों के श्वसन के कारण उत्पन्न हुई है।
हमने देखा कि बीजों में श्वसन की क्रिया उस समय भी चलती रहती है जबकि अन्य जैव प्रक्रम उतने सक्रिय नहीं होते।
संभवतः हमारे प्रश्न “आखिर जीवन है क्या?” का उत्तर देना इतना सरल नहीं हो सकता। परंतु, अपने चारों ओर पाए जाने वाले जीवों की विविधता को देखकर अचानक ही मुँह से निकल जाता है कि जीवन सुंदर है।
सारांश
• किसी स्थान का परिवेश जिसमें पौधे, जंतु एवं अन्य जीव रहते हैं, उनका आवास कहलाता है।
• विभिन्न प्रकार के पौधे एवं जंतु एक ही आवास में एक साथ रह सकते हैं।
• पौधों और जीवों के विशिष्ट लक्षण एवं स्वभाव जो उन्हें एक आवास विशेष में रहने के अनुकूल बनाते हैं, अनुकूलन कहलाता है।
• आवास अनेक प्रकार के होते हैं, परंतु, सामान्यतः इन्हें स्थलीय (जमीन पर) एवं जलीय आवास (जल में) में वर्गीकृत किया जाता है।
• विभिन्न आवास में सजीवों की विविध प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
• पौधे, जंतु एवं सूक्ष्म जीव संयुक्त रूप से जैव घटक बनाते हैं।
• चट्टान, मिट्टी, वायु, जल, प्रकाश एवं ताप हमारे परिवेश के कुछ अजैव घटक है।
• सजीव वस्तुओं के कुछ सामान्य लक्षण हैं उन्हें भोजन की आवश्यकता होती है, वे श्वसन, उत्सर्जन, पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया, प्रजनन, वृद्धि एवं गति करते हैं।
अभ्यास
1. आवास किसे कहते हैं?
Ans. किसी स्थान का परिवेश जिसमें पौधे, जंतु एवं अन्य जीव रहते हैं, उसे आवास कहते हैं।
2. कैक्टस मरुस्थल में जीवनयापन के लिए किस प्रकार अनुकूलित है?
Ans. इन पौधों में प्रकाश-संश्लेषण सामान्यतः तने में होता है। तना एक मोटी मोमी परत से ढका होता है, जिससे पौधों को जल-संरक्षण में सहायता मिलती है। जड़े विकसित होती है और जल अवशोषण के लिए मिट्टी में बहुत गहराई तक चली जाती हैं।
3. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
(क) पौधे एवं जंतुओं में पाए जाने वाले विशिष्ट लक्षण जो उन्हें आवास विशेष में रहने योग्य बनाते हैं, अनुकूलन कहलाते हैं।
(ख) स्थल पर पाए जाने वाले पौधों एवं जंतुओं के स्थलीय आवास कहते हैं।
(ग) वे आवास जिनमें जल में रहने वाले पौधे एवं जंतु रहते हैं, जलीय आवास कहलाते हैं।
(घ) मृदा, जल एवं वायु किसी आवास के अजैविक घटक हैं।
(ङ) हमारे परिवेश में होने वाले परिवर्तन जिनके प्रति हम अनुक्रिया करते हैं, उद्दीपन कहलाते हैं।
4. निम्नलिखित सूची में कौन-सी निर्जीव वस्तुएँ है?
हल, छत्रक, सिलाई मशीन, रेडियो, नाव, जलकुंभी, केंचुआ।
Ans. निर्जीव वस्तुएँ- हल, सिलाई मशीन,रेडियो,नाव।
5. किसी ऐसी निर्जीव वस्तु का उदाहरण दीजिए जिसमें सजीवों के दो लक्षण दिखाई देते हैं।
Ans. बस, ट्रक सजीवों की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति करते है। सजीवों की तरह इन्हें भी उर्जा की आवश्यकता होती है जो डीजल-पेट्रोल से प्राप्त करते हैं।
6. निम्न में से कौन-सी निर्जीव वस्तुएँ किसी समय सजीव का अंश थीं?
मक्खन, चमड़ा, मृदा, ऊन, बिजली का बल्ब, खाद्य तेल, नमक, सेब, रबड़ा
Ans. मक्खन, चमड़ा, ऊन, खाद्य तेल, सेब, रबड़।
7. सजीवों के विशिष्ट लक्षण सूचीबद्ध कीजिए?
Ans. उत्सर्जन, श्वसन, पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया, प्रजनन आदि।
8. घास के मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले जंतुओं को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए तीव्र गति क्यों आवश्यक है। (संकेत-घासस्थल आवासों में छिपने के लिए वृक्षों की संख्या बहुत कम होती है।)
Ans. घासस्थल आवासों में छिपने के लिए वृक्षों की संख्या बहुत कम होती है। शिकारी जन्तु जैसे बाघ, शेर, चीता आदि घास में बड़ी आसानी से अपने शिकार को खोज लेते हैं। इसलिए अपना अस्तित्व बचाने के लिए मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले जंतुओं को तीव्र गति की आवश्यकता होती है।
यह भी पढ़ें: शरीर में गति : अध्याय 5
1 thought on “सजीव -विशेषताएँ एवं आवास : अध्याय 6”