राज्य, राजा, और एक प्राचीन गणराज्य : अध्याय -5

कुछ लोग शासक कैसे बने ?

लगभग पचास वर्षों से हम अपने शासकों का चुनाव मतदान के जरिए करते आ रहे हैं। लेकिन बहुत प पहले लोग शासक वैसे बनते थे? करीब 3000 साल पहले कुछ लोग बड़े-बड़े यज्ञों को आयोजित कर राजा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।

अश्वमेध यज्ञ एक ऐसा ही आयोजन था। इसमें एक घोड़े को राजा के लोगों की देखरेख में स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ दिया जाता था। इस घोड़े को किसी दूसरे राजा ने रोका तो उसे वहाँ अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा से लड़ाई करनी पड़ती थी। अगर उन्होंने घोड़े को जाने दिया तो इसका मतलब यह होता था कि अश्वमेध यज्ञ करने वाला राजा उनसे ज्यादा शक्तिशाली था। इसके बाद उन राजाओं को यज्ञ में आमंत्रित किया जाता था। यह यज्ञ विशिष्ट पुरोहितों द्वारा सम्पन्न किया जाता था। इसके लिए उन्हें उपहारों से सम्मानित किया जाता था। अश्वमेध यज्ञ करने वाला राजा बहुत शक्तिशाली माना जाता था। यज्ञ में आमंत्रित सभी राजा उसके लिए उपहार लाते थे।

इन सभी आयोजनों में राजा का मुख्य स्थान होता था। उसे राजसिंहासन या बाघ की खाल के एक विशेष आसन पर बिठाया जाता था। युद्ध क्षेत्र में राजा का सारथी ही उसका सहचर होता था। यज्ञ के अवसर पर वह राजा की विजयों तथा अन्य गुणों का गान करता था। राजा के सगे-संबंधी खासकर उसकी रानियों तथा पुत्रों को भी कई छोटे-छोटे अनुष्ठान करने होते थे। अन्य सारे आमंत्रित राजाओं का काम सिर्फ बैठकर यज्ञ की पूरी प्रक्रिया को देखना भर था। राजा के ऊपर पुरोहित पवित्र जल के छिड़काव के साथ-साथ अन्य कई अनुष्ठान करता था। विश् अथवा वैश्य जैसे सामान्य लोग उपहार लाते थे। जिन्हें पुरोहित शूद्र मानते थे उन्हें कई अनुष्ठानों में शामिल नहीं किया जाता था।

वर्ण

उस समय चार सामाजिक वर्ग थे: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। ब्राह्मणों का काम वेदों का अध्ययन-अध्यापन और यज्ञ करना था जिनके लिए उन्हें उपहार मिलता था। क्षत्रियों का काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था। वैश्यों के काम खेती, पशुपालन तथा व्यापार थे। शूद्रों का काम अन्य तीनों वर्गों की सेवा करना था।

चित्रित धूसर पात्र।

इस तरह के पात्रों में. ज्यादातर थालियाँ और कटोरियाँ ही मिली हैं। ये पात्र बहुत ही पतली सतह के सुंदर और चिकने हैं। शायद इसका प्रयोग खास मौकों पर, महत्वपूर्ण लोगों को भोजन परोसने के लिए किया जाता था।

जनपद

महायज्ञों को करने वाले राजा अब जन के राजा न होकर जनपदों के राजा माने जाने लगे। जनपद का शाब्दिक अर्थ जन के बसने की जगह होता है। कुछ महत्वपूर्ण जनपद मानचित्र 4 में दिखाए गए हैं।

पुरातत्त्वविदों ने इन जनपदों की कई बस्तियों की खुदाई की है। दिल्ली में पुराना किला, उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हस्तिनापुर और एटा के पास अतरंजीखेड़ा इनमें प्रमुख हैं। खुदाई से पता चला है कि लोग झोपड़ियों में रहते थे और मवेशियों तथा अन्य जानवरों को पालते थे। वे चावल, गेहूँ, धान, जौ, दालें, गन्ना, तिल तथा सरसों जैसी फ़सलें उगाते थे।

क्या इस सूची में तुम्हें किसी ऐसी फ़सल का नाम मिला जिसका उल्लेख अध्याय 3 में नहीं है?

लोग मिट्टी के बर्तन भी बनाते थे। इनमें कुछ धूसर और कुछ लाल रंग के होते थे। इन पुरास्थलों में कुछ विशेष प्रकार के बर्तन मिले हैं, जिन्हें ‘चित्रित- धूसर पात्र’ के रूप में जाना जाता है। जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है, इन बर्तनों पर चित्रकारी की गई है। ये आमतौर पर सरल रेखाओं तथा ज्यामितीय आकृतियों के रूप में हैं।

महाजनपद

करीब 2500 साल पहले, कुछ जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गए। इन्हें महाजनपद कहा जाने लगा। मानचित्र 4 में कुछ महाजनपदों को दिखाया गया है। अधिकतर महाजनपदों की एक राजधानी होती थी। कई राजधानियों में किलेबंदी की गई थी अर्थात् इनके चारों ओर लकड़ी, ईंट या पत्थर की ऊँची दीवारें बनाई गई थीं।

ऐसा लगता है कि लोगों ने अन्य राजाओं के आक्रमण से डरकर अपनी सुरक्षा के लिए इन किलों का निर्माण किया। कुछ राजा अपनी राजधानी के चारों ओर विशाल, ऊँची और प्रभावशाली दीवार खड़ी कर अपनी समृद्धि और शक्ति का प्रदर्शन भी करते थे। इस तरह से किले के अंदर रहने वाले लोगों और उस क्षेत्र पर नियत्रंण रखना भी सरल हो जाता होगा। इस तरह की विशाल दीवार बनाने के लिए व्यापक योजना की आवश्यकता थी और लाखों की संख्या में ईंटों तथा पत्थरों का इंतज़ाम करना पड़ता था। हज़ारों स्त्री-पुरुषों तथा बच्चों ने इसके लिए अथक परिश्रम किया होगा। इनके लिए संसाधनों की आवश्यकता पड़ती होगी।

कौशाम्बी किले की दीवार। यह चित्र आधुनिक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास मिली ईंट की दीवार का अवशेष है। इसके एक भाग का निर्माण संभवतः 2500 साल पहले हुआ था।

अब राजा सेना रखने लगे थे। सिपाहियों को नियमित वेतन देकर पूरे साल रखा जाता था। कुछ भुगतान संभवतः आहत सिक्कों के रूप में होता था। इन सिक्कों के बारे में तुम अध्याय 8 में पढ़ोगे।

महाजनपदों के राजा ऋग्वेद में उल्लेखित राजाओं से किस प्रकार भिन्न थे? दो अंतर बताओ।

कर

महाजनपदों के राजा विशाल किले बनवाते थे और बड़ी सेना रखते थे, इसलिए उन्हें प्रचुर संसाधनों की आवश्यकता होती थी। इसके लिए उन्हें कर्मचारियों की भी आवश्यकता होती थी। अतः महाजनपदों के राजा लोगों द्वारा समय-समय पर लाए गए उपहारों पर निर्भर न रहकर अब नियमित रूप से कर वसूलने लगे।

• फ़सलों पर लगाए गए कर
• कारीगरों के ऊपर लगाए गए कर
• पशुपालकों को जानवरों या उनके उत्पाद के रूप में कर देना पड़ता था।
• व्यापारियों को सामान पर कर देना पड़ता था।
• आखेटकों तथा संग्राहकों को जंगल से प्राप्त वस्तुएँ देनी होती थीं।

कृषि में परिवर्तन

इस युग में कृषि के क्षेत्र में दो बड़े परिवर्तन आए। हल के फाल अब लोहे के बनने लगे। अब कठोर ज़मीन को लकड़ी के फाल की तुलना में लोहे के फाल बड़े परिवर्तन : से आसानी से जोता जा सकता था। इससे फ़सलों की उपज बढ़ गई। दूसरे, लोगों ने धान के पौधों का रोपण शुरू किया अर्थात् खेतों में बीज छिड़ककर धान उपजाने के बजाए धान की पौध तैयार कर उनका रोपण शुरू किया गया। अब पहले की तुलना में बहुत ज़्यादा पौधे जीवित रह जाते थे, इसलिए पैदावार भी ज्यादा होने लगी।

सूक्ष्म-निरीक्षण

(क) मगध

मानचित्र 4 में मगध ढूँढ़ो। लगभग दो सौ सालों के भीतर मगध सबसे महत्वपूर्ण जनपद बन गया। गंगा और सोन जैसी नदियाँ मगध से होकर बहती थीं। ये – (क) यातायात, (ख) जल-वितरण और (ग) जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण थीं। मगध का एक हिस्सा जंगलों से भरा था। इन जंगलों में रहने वाले हाथियों को पकड़ कर और उन्हें प्रशिक्षित कर सेना के काम में लगाया जाता था। यही नहीं, जंगलों से घर, गाड़ियाँ, तथा रथ बनाने के लिए लकड़ी मिलती थी। इसके अलावा इस क्षेत्र में लौह अयस्क की खदाने हैं। मज़बूत औज़ार और हथियार बनाने के लिए ये बहुत उपयोगी थे।

मगध में दो बहुत ही शक्तिशाली शासक शासक बिम्बिसार तथा अजातसत्तु (अजातशत्रु) हुए। अन्य जनपदों को जीतने के लिए ये हर संभव साधन अपनाते थे। महापद्मनंद एक और महत्वपूर्ण शासक थे। उन्होंने अपने नियंत्रण का क्षेत्र इस उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग तक फैला लिया था। बिहार में राजगृह (आधुनिक राजगीर) कई सालों तक मगध की राजधनी बनी रही। बाद में पाटलिपुत्र (आज का पटना) को राजधानी बनाया गया।

2300 साल से भी पहले की बात है, मेसिडोनिया का राजा सिकन्दर विश्व-विजय करना चाहता था। पूरी तरह सफल न होने पर भी वह मिस्र और पश्चिमी एशिया के कुछ राज्यों को जीतता हुआ भारतीय उपमहाद्वीप में व्यास नदी के किनारे तक पहुँच गया। जब उसने मगध की ओर कूच करना चाहा, तो उसके सिपाहियों ने इंकार कर दिया। वे इस बात से भयभीत थे, कि भारत के शासकों के पास पैदल, रथ और हाथियों की बहुत बड़ी सेना थी।

(ख) वज्जि

जैसा कि तुमने ऊपर पढ़ा, मगध एक शक्तिशाली राज्य बन गया था। उसके नज़दीक ही वज्जि राज्य था, जिसकी राजधानी वैशाली (बिहार) थी। यहाँ एक अलग किस्म की शासन-व्यवस्था थी जिसे गण या संघ कहते थे।

गण या संघ में कई शासक होते थे और इसमें से प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। ये सभी राजा विभिन्न अनुष्ठानों को एक साथ सम्पन्न करते थे। सभाओं में बैठकर ये बातचीत, बहस और वाद-विवाद के ज़रिए तय करते थे कि क्या करना है और किस तरह करना है। शत्रुओं के आक्रमण से निपटने के लिए वे मिलकर चर्चाएँ करते थे। स्त्रियाँ, दास तथा कम्मकार इन सभाओं में हिस्सा नहीं ले सकते थे।

वज्जि संघ का यह वर्णन दीघ निकाय से लिया गया है। दीघ निकाय एक प्रसिद्ध बोद्ध ग्रंथ है, जिसमें बुद्ध के कई व्याख्यान दिए गए हैं। इन्हें करीब 2300 साल पहले लिखा गया था।

अजासत्तु ( अजातशत्रु) और वज्जि-संघ

अजातसतु वज्जि-संघ पर आक्रमण करना चाहते थे। उन्होंने अपने मंत्री वस्सकार को बुद्ध के पास सलाह के लिए भेजा।

बुद्ध ने उनसे पूछा कि क्या वज्जि सभाएँ नियमित रूप से होती हैं। तथा उनमें सभी सदस्य उपस्थित होते हैं? जब उन्हें पता चला कि ऐसा होता है, उन्होंने कहा कि वज्जिवासी तब तक उन्नति करते रहेंगे, जब तकः

• वे पूर्ण और नियमित सभाएँ करते रहेंगे।
• आपस में मिलजुल कर काम करते रहेंगे।
• पारंपरिक नियमों का पालन करते रहेंगे।
• बड़ों का सम्मान, समर्थन और उनकी बातों पर ध्यान देते रहेंगे।
• वज्जि महिलाओं के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करेंगे और उन्हें बंधक नहीं बनाएँगे।
• शहरों तथा गांवों में चैत्यों का रखरखाव करेंगे।
• विभिन्न मतावलंबी संतों का सम्मान करेंगे और उनके आने या जाने पर कोई रोक नहीं लगाएँगे।

कई शक्तिशाली राजा इन संघों को जीतना चाहते थे। इसके बावजूद उनका राज्य अब से लगभग 1500 साल पहले तक चलता रहा। उसके बाद गुप्त शासकों ने गण और संघ पर विजय प्राप्त कर उन्हें अपने राज्य में शामिल कर लिया। इनके बारे में तुम अध्याय 9 में पढ़ोगे।

यह भी पढ़ें: क्या बताती हैं हमे किताबें और कब्रें: अध्याय -4

आओ याद करें

1. सही या गलत बताओ

(क). अश्वमेध के घोड़े को अपने राज्य से गुजरने की छूट देने वाले राजाओं को यज्ञ में आमंत्रित किया जाता था। ( सही )

(ख) राजा के ऊपर सारथी पवित्र जल का छिड़काव करता था। ( गलत )

(ग) पुरातत्त्वविदों को जनपदों की बस्तियों में महल मिले हैं। ( गलत )

(घ) चित्रित-धूसर पात्रों में अनाज रखा जाता था। ( गलत )

(ङ) महाजनपदों में बहुत से नगर किलाबंद थे। ( सही )

2. नीचे दिए गए खानों में निम्नलिखित शब्द भरो। आखेटक-संग्राहक, कृषक, व्यापारी, शिल्पकार, पशुपालक।
Ans.

3. समाज के वे कौन-से समूह थे, जो गणों की सभाओं में हिस्सा नहीं ले सकते थे?
Ans.
स्त्रीयां, दास और कम्मकार

4. महाजनपद के राजाओं ने किले क्यों बनवाए?
Ans.
महाजनपदो में राजाओं ने अपनी सुरक्षा के लिए किले का निर्माण करवाया था। साथ ही इसके द्वारा वे अपनी समृद्धि और शक्ति का प्रदर्शन भी करते थे। किले बनवाने से उसके अंदर के लोगों और क्षेत्र पर नियंत्रण रखना आसान होता होगा।

FAQs

Q1. अश्वमेध यज्ञ में किसे शामिल नहीं किया जाता था?
Ans.
शूद्रों को

Q2. उत्तर वैदिक ग्रंथ किसे कहते हैं?
Ans.
ऋग्वेद के बाद रचे गए ग्रंथ को उत्तर वैदिक ग्रंथ कहते हैं, जैसे- सामवेद, यजुर्वेद, अथर्वेद

Q3. पुरातत्वविदों को जनपदों की बस्तियाँ कहाँ-कहाँ मिली हैं?
Ans.
दिल्ली में पुराना किला, उत्तरप्रदेश में मेरठ के पास हस्तिनापुर, एटा के पास अतरंजीखेड़ा में।

Q4. जनपद के लोग कैसे मकान में रहते थे?
Ans.
झोपड़ियों में

Q5. वे कौन कौन सी फ़सलें उगाते थे?
Ans.
चावल, गेहूँ, धान, जौ, दालें, गन्ना, तिल और सरसों जैसी फ़सलें उगाते थे।

Q6. उस समय किलाबंदी किसे कहते हैं?
Ans.
महाजनपदो में राजधानियों के चारों ओर लकड़ी ईट या पत्थर की ऊँची दीवारें बनाई गई थी, जिसे किलाबंदी कहते हैं।

Q7. इस समय का सबसे महत्वपूर्ण जनपद कौन था?
Ans.
मगध, जिसकी राजधानी बिहार में राजगृह (आधुनिक राजगीर) में बनी थी।

Q8. वर्ण कितने और कौन कौन थे?
Ans.
वर्ण चार थे।

1. ब्राहमणः जिनका काम वेदों का अध्ययन, अध्यापन और यज्ञ करना था।

2. क्षत्रियः इसका काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था।

3. विश या वैश्यः इसमें कृषक, पशुपालक और व्यपारी आते थे।

4. शूद्रः इनका काम इन तीनों वर्गों की सेवा करना था। प्राय महिलाओं को भी शूद्र माना गया था। शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था।

Q9. राजाओं को कर वसूलने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
Ans.
महाजनपदों के राजा विशाल किले बनवाने लगे थे। साथ ही अब वे बड़ी सेना नियमित वेतन देकर सालों भर रखने लगे थे। इन सभी व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए उपहारों पर निर्भर न रहकर उन्हें कर वसूलना पड़ा।

Q10. कर का सबसे बड़ा भार किस पर था?
Ans.
कर का सबसे बड़ा हिस्सा कृषकों को चुकाना पड़ता था। उन्हें अपनी उपज का 1/6 हिस्सा कर के रूप में चुकाना पड़ता था। जिसे भाग कहा जाता था।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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