जल : अध्याय 5

जल के बारे में सोचने पर आपके मस्तिष्क में क्या चित्र बनते हैं? आप नदी, जलप्रपात, वर्षा की रिमझिम, अपने नल के जल के बारे में सोचने लगते हैं… बच्चे वर्षा से भरे गड्ढे में कागज़ की नाव तैराकर बहुत खुश होते हैं। दोपहर तक गड्ढे में जमा जल गायब हो जाता है। वह जल कहाँ चला जाता है?

सूर्य के ताप के कारण जल वाष्पित हो जाता है। ठंडा होने पर जलवाष्प संघनित होकर बादलों का रूप ले लेता है। यहाँ से यह वर्षा, हिम अथवा सहिम वृष्टि के रूप में धरती या समुद्र पर नीचे गिरता है।

जिस प्रक्रम में जल लगातार अपने स्वरूप को बदलता रहता है और महासागरों, वायुमंडल एवं धरती के बीच चक्कर लगाता रहता है, उस को जल चक्र कहते हैं (चित्र 5.1)।

हमारी पृथ्वी थलशाला के समान है। जो जल, शताब्दियों पूर्व उपस्थित था, वही आज भी मौजूद है। जिस जल का प्रयोग आज हम हरियाणा के खेत में सिंचाई के लिए कर रहे हैं, हो सकता है कि वह सैंकड़ों वर्ष पहले अमेज़न नदी में बहता हो।

अलवण जल के मुख्य स्त्रोत नदी, ताल, सोते एवं हिमनद हैं। महासागरों एवं समुद्रों का जल, लवणीय होता है। इसमें अधिकांश नमक-सेोडियम क्लोराइड या खाने में उपयोग किया जाने वाला नमक होता है।

जल का वितरण

हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी की सतह का तीन-चौथाई भाग जल से ढँका हुआ है। यदि धरती पर थल की अपेक्षा जल अधिक है, तो अनेक देशों में जल की कमी का सामना क्यों करना पड़ता है?

क्या पृथ्वी पर मौजूद संपूर्ण जल हमारे लिए उपलब्ध है? निम्नलिखित तालिका में जल वितरण का प्रतिशत दिया गया है।

वस्तुमात्रा
महासागर97.3
बर्फ छत्रक02.0
भूमिगत जल00.68
झीलों का अलवण जल0.009
स्थलीय समुद्र एवं
नमकीन झीलें0.009
वायुमंडल0.0019
नदियाँ0.0001

साधारण क्रियाकलाप द्वारा जल के वितरण को प्रदर्शित किया जा सकता है (क्रियाकलाप बॉक्स देखें)।

जीवन के लिए जल अत्यधिक आवश्यक है। प्यासे होने पर केवल जल ही हमारी प्यास बुझा सकता है। ऐसे में आपको क्या ऐसा नहीं लगता कि लापरवाही से जल का उपयोग करने पर हम बहुमूल्य संसाधन को बरबाद करते हैं?

क्रियाकलाप

दो लीटर जल लें। मान लें, यह पृथ्वी की सतह पर जल की संपूर्ण मात्रा है। बर्तन से 12 चम्मच जल मापकर दूसरे कटोरे में रखें। बर्तन से जल निकालने के बाद शेष जल, लवणीय जल को दर्शाता है, जो महासागर एवं समुद्र में पाया जाता है। यह जल उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं है। यह लवणीय जल (नमक युक्त) होता है।

कटोरे में निकालकर रखा गया 12 चम्मच जल, पृथ्वी पर मौजूद संपूर्ण अलवण जल की मात्रा को दर्शाता है। चित्र में इस जल के वितरण को दर्शाया गया है। आप स्वयं देखें कि आप जल की कितनी मात्रा का उपभोग कर सकते हैं।

महासागरीय परिसंचरण

समुद्री तट पर नंगे पैर चलने से कुछ जादुई-सी अनुभूति होती है। पुलिन पर नम बालू, ठंडी पवन, समुद्री पक्षी, वायु में लवणीय गंध एवं लहरों का संगीत; सब कुछ सम्मोहित करने वाला प्रतीत होता है। ताल एवं झील के शांत जल के विपरीत महासागरीय जल हमेशा गतिमान रहता है। यह कभी शांत नहीं रहता है। महासागरों की गतियों को इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं जैसे-तरंगें, ज्वार-भाटा एवं धाराएँ।

तरंगें

समुद्र तट पर गेंद से खेलते समय जब गेंद जल में गिर जाती है, तो क्या होता है? यह दृश्य बहुत ही मनोरंजक होता है कि कैसे तरंगों के साथ गेंद तट पर वापस लौट आती है। जब महासागरीय सतह पर जल लगातार उठता और गिरता रहता है, तो इन्हें तरंगें कहते हैं।

तूफ़ान में तेज वायु चलने पर विशाल तरंगें उत्पन्न होती हैं। इनके कारण अत्यधिक विनाश हो सकता है। भूकंप, ज्वालामुखी उद्‌गार, या जल के नीचे भूस्खलन के कारण महासागरीय जल अत्यधिक विस्थापित होता है। इसके परिणामस्वरूप 15 मीटर तक की ऊँचाई वाली विशाल ज्वारीय तरंगें उठ सकती हैं, जिसे सुनामी कहते हैं। अब तक का सबसे विशाल सुनामी 150 मीटर मापा गया था। ये तरंगें 700 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की गति से चलती हैं। 2004 के सुनामी से भारत के तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक विनाश हुआ था। सुनामी के बाद अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में इंदिरा प्वाइंट डूब गया था।

सुनामी पृथ्वी का तांडव

26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में सुनामी तरंगों अथवा पोताश्रय तरंगों के कारण अत्यधिक विनाश हुआ। ये तरंगें उस भूकंप का परिणाम थीं, जिसका अधिकेंद्र सुमात्रा की पश्चिमी सीमा पर था। इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 9.0 मापी गई थी। भारतीय प्लेट, बर्मा प्लेट के नीचे धंस गई थी और समुद्र तल में अकस्मात् गति उत्पन्न हो गई, इस कारण यह भूकंप आया। महासागरीय तल लगभग 10-20 मीटर तक विस्थापित हो गया और नीचे की दिशा में झुक गया। इस विस्थापन के कारण निर्मित अंतराल को भरने के लिए विशाल मात्रा में महासागरीय जल उसी ओर बहने लगा। फलस्वरूप, दक्षिणी एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के समुद्री तटों से जल हटने लगा। भारतीय प्लेट के बर्मा की प्लेट के नीचे चले जाने पर जल वापस समुद्र तट की ओर लौटा। यह सुनामी लगभग 800 कि. मी./घंटे की गति से आया, जिसकी तुलना व्यावसायिक वायुयानों की गति से की जा सकती है और इसके परिणामस्वरूप हिंद महासागर के कुछ द्वीप पूर्णतः डूब गए। भारतीय सीमा का धुर दक्षिणी बिंदु, इंदिरा प्वाइंट जो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित पूरी तरह से डूब गया। जब सुमात्रा में भूकंप के अधिकेंद्र से तरंगें सुमात्रा की तरफ से अंडमान द्वीप समूह एवं श्रीलंका की ओर बढ़ीं, तरंगों की लंबाई कम हो गई। जल की गहराई भी कम होने के साथ-साथ इनकी गति भी 700-900कि.मी./घंटे से 70 कि.मी./घंटे तक कम हो गई। समुद्र तट से सुनामी तरंगें 3 कि.मी. तक की गहराई तक गई, जिनके फलस्वरूप 10,000 से भी अधिक लोगों की मृत्यु हो गई और एक लाख से अधिक घर प्रभावित हुए। भारत में आंध्र प्रदेश के तटीय प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, पुदुच्चेरी तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सर्वाधिक प्रभावित हुए।

यद्यपि पहले से भूकंप का अनुमान लगाना संभव नहीं है, फिर भी बड़ी सुनामी के संकेत तीन घंटे पहले मिल सकते हैं। प्रशांत महासागर में प्राथमिक चेतावनी की ऐसी प्रणालियाँ क्रियाशील हैं, लेकिन हिंद महासागर में ये सुविधाएँ नहीं है। प्रशांत महासागर की तुलना में हिंद महासागर में सुनामी कभी-कभी ही आती हैं, क्योंकि यहाँ भूकंपी क्रिया बहुत कम होती है।

दिसंबर 2004 में जिस सुनामी ने दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी एशिया के तटों पर तबाही मचाई वह पिछले कई सौ वर्षों की सर्वाधिक विनाशकारी सुनामी थी। हिंद महासागर में निरीक्षण, आरंभिक चेतावनी की प्रणालियों एवं हिंद महासागर के तटीय निवासियों में जागरूकता की कमी के कारण जीवन एवं संपत्ति की अत्यधिक क्षति हुई।

सुनामी आने का प्रथम संकेत यह होता है कि तटीय क्षेत्र से जल में तेजी से कमी आती है और फिर विनाशकारी तरंगें उठने लगती हैं। जब तट पर ऐसा हुआ था, तो लोग ऊँचे स्थानों पर न जाकर उस अचमे को देखने के लिए तट पर एकत्र होने लगे। इसके फलस्वरूप जब सुनामी की विशाल तरंग आई, तो बड़ी संख्या में उत्सुक खड़े दर्शकों की मृत्यु हो गई।

ज्वार-भाटा

दिन में दो बार नियम से महासागरीय जल का उठना एवं गिरना ‘ज्वार-भाटा’ कहलाता है। जब सर्वाधिक ऊँचाई तक उठकर जल, तट के बड़े हिस्से को डुबो देता है, तब उसे ज्वार कहते हैं। जब जल अपने निम्नतम स्तर तक आ जाता है एवं तट से पीछे चला जाता है, तो उसे भाटा कहते हैं।

सूर्य एवं चंद्रमा के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी की सतह पर ज्वार-भाटे आते हैं। जब पृथ्वी का जल चंद्रमा के निकट होता है उस समय चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से जल अभिकर्षित होता हैं, जिसके कारण उच्च ज्वार आते हैं। पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिनों में सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं और इस समय सबसे ऊँचे ज्वार उठते हैं। इस ज्वार को बृहत् ज्वार कहते हैं। लेकिन जब चाँद अपने प्रथम एवं अंतिम चतुर्थांश में होता है, तो चाँद एवं सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल विपरीत दिशाओं से महासागरीय जल पर पड़ता है, परिणामस्वरूप, निम्न ज्वार-भाटा आता है। ऐसे ज्वार को लघु ज्वार-भाटा कहते हैं।

उच्च ज्वार नौसंचालन में सहायक होता है। ये जल-स्तर को तट की ऊँचाई तक पहुँचाते हैं। ये जहाज़ को बंदरगाह तक पहुँचाने में सहायक होते हैं। उच्च ज्वार मछली पकड़ने में भी मदद करते हैं। उच्च ज्वार के दौरान अनेक मछलियाँ तट के निकट आ जाती हैं। इसके फलस्वरूप मछुआरे बिना कठिनाई के स्थानों पर ज्वार-भाटे से होने वाले जल के मछलियाँ पकड़ पाते हैं। कुछ स्थानों पर ज्वार-भाटे से होने वाले जल के उतार-चढ़ाव का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

महासागरीय धाराएँ

महासागरीय धाराएँ, निश्चित दिशा में महासागरीय सतह पर नियमित रूप से बहने वाली जल की धाराएँ होती हैं। महासागरीय धाराएँ गर्म या ठंडी हो सकती हैं। – सामान्यतः गर्म महासागरीय धाराएँ, धूमध्य रेखा के निकट उत्पन्न होती हैं एवं ध्रुवों की ओर प्रवाहित होती हैं। ठंडी धाराएँ, ध्रुवों या उच्च अक्षांशों से उष्णकटिबंधीय या निम्न अक्षांशों की ओर प्रवाहित होती हैं। लेब्राडोर महासागरीय धाराएँ, शीत जलधाराएँ होती हैं; जबकि गल्फस्ट्रीम गर्म जलधाराएँ होती हैं।

महासागरीय धाराएँ, किसी क्षेत्र के तापमान को प्रभावित करती हैं। गर्म धाराओं से स्थलीय सतह का तापमान गर्म हो जाता है। जिस स्थान पर गर्म एवं शीत जलधाराएँ मिलती हैं, वह स्थान विश्वभर में सर्वोत्तम मत्स्यन क्षेत्र माना जाता है। जापान के आस-पास एवं उत्तर अमेरिका के पूर्वी तट इसके कुछ उदाहरण हैं।

जहाँ गर्म एवं ठंडी जलधाराएँ मिलती हैं, वहाँ कुहरे वाला मौसम बनता फलस्वरूप नौसंचालन में बाधा उत्पन्न होती है।

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अभ्यास

1. निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) वर्षण क्या है?
Ans.
जलवाष्प संघनित होकर बादलों का रूप लेता है। यहाँ से यह वर्षा, हिम, ओस अथवा सहिम वृष्टि के रूप में धरती या समुद्र पर नीचे गिरता है, वर्षण कहलाता है।

(ख) जल चक्र क्या है?
Ans.
जिस प्रक्रम में जल लगातार अपने स्वरूप को बदलता रहता है और महासागरों, वायुमंडल एवं धरती के बीच चक्कर लगाता रहता है, उसको जल चक्र कहते हैं।

(ग) लहरों की ऊँचाई प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
Ans.
लहरों को प्रभावित करने वाले कारक निम्र हैं

1. जल की मात्रा
2. वायु की गति
3. सूर्य एवं चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति

(घ) महासागरीय जल की गति को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से है?
Ans.
महासागरीय जल की गति को प्रभावित करने वाले कारक

1. सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति
2. महासागरीय जल में लवणता की मात्रा
3. वायु की गति
4. तापीय अन्तर
5. पृथ्वी की घूर्णन गति।

(च) ज्वार-भाटा क्या है तथा ये कैसे उत्पन्न होते हैं?
Ans.
दिन में दो बार नियम से महासागरीय जल का उठना एवं गिरना ज्वार भाटा’ कहलाता है। जब सर्वाधिक ऊँचाई तक उठकर जल, तट के बड़े हिस्से को डुबो देता है, तब उसे ज्वार कहते हैं। जब जल अपने निम्रतम स्तर तक आ जाता है एवं तट से पीछे चला जाता है, तो उसे भाटा कहते हैं। सूर्य एवं चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ज्वार-भाटा उत्पन्न होते हैं।

(छ) महासागरीय धाराएँ क्या है?
Ans.
महासागरीय धाराएँ निश्चित दिशा में महासागरीय सतह पर नियमित रूप से बहने वाली धाराएँ होती हैं। महासागरीय धाराएँ गर्म या ठंडी हो सकती हैं।

2. कारण बताइए-

(क) समुद्री जल नमकीन होता है।
Ans. समुद्री जल नमकीन होने के कारण –

1. महासागरों में अधिकांश नमक सोडियम क्लोराइड या खाने में उपयोग किया जाने वाला नमक होता है।
2. समुद्र के जल में लवणता की मात्रा अधिक होती है।
3. समुद्र में जल का नियमित रूप से भारी मात्रा में वाष्पीकरण होता है, किंतु लवणीय पदार्थों का वाष्पीकरण न हो सकने के कारण ये समुद्र में नियमित रूप से बने रहते हैं। इसलिए समुद्री जल में लवणता निरंतर बढ़ती रहती है।

(ख) जल की गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है।
Ans. जल की गुणवत्ता के ह्रास होने के कारण

1. मनुष्य की क्रियाकलापों से काफी मात्रा में जल प्रदूषित हो रहा है।
2. उद्योगों से निकलने वाले रसायन युक्त जल के विभिन्न जलाशयों में मिलने से जल की गुणवत्ता का हास हो रहा है।
3. घरों से निकलने वाले प्रदूषित जल के विभिन्न जलाशयों में मिलने से भी जल की गुणक्ता का हास हो रहा है।

3. सही (✓) उत्तर चिह्नित कीजिए-

(क) वह प्रक्रम जिस में जल लगातार अपने स्वरूप को बदलता रहता है और महासागर, वायुमंडल एवं स्थल के बीच चक्कर लगाता रहता है?

(i) जल चक्र

(ii) ज्वार-भाटा

(iii) महासागरीय धाराएँ

Ans. जल चक्र

(ख) सामान्यतः गर्म महासागरीय धाराएँ उत्पन्न होती है:

(i) ध्रुवों के निकट

(ii) भूमध्य रेखा के निकट

(iii) दोनों में से कोई नहीं

Ans. भूमध्य रेखा के निकट

(ग) दिन में दो बार नियम से महासागरीय जल का उठना एवं गिरना कहलाता है?

(i) ज्वार-भाटा

(ii) महासागरीय धाराएँ

(iii) तरंगें

Ans. ज्वार-भाटा

4. निम्नलिखित स्तंभों को मिलाकर सही जोड़े बनाइए-

वस्तुपरिभाषा
कैस्पियन सागरविशालतम झील
ज्वार-भाटाजल में आवधिक चढ़ाव एवं उतार
सुनामीतीव्र भूकंपी तरंगें
महासागरीय धाराएँनिश्चित मार्ग में प्रवाहित होने वाली जल-धाराएँ
जल चक्र

Ans.

कैस्पियन सागरविशालतम झील
ज्वार-भाटाजल में आवधिक चढ़ाव एवं उतार
सुनामीतीव्र भूकंपी तरंगें
महासागरीय धाराएँनिश्चित मार्ग में प्रवाहित होने वाली जल-धाराएँ

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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