ध्वनि : अध्याय 10

अपने विद्यालय में आपको कैसे ज्ञात होता है कि अ कालांश (पीरियड) समाप्त हो गया है? दरवाजे की घंटी की ध्वनि अथवा खटखटाने (दस्तक) की आवाज़ सुनकर आपको तुरन्त पता चल जाता है कि आपके दरवाजे पर कोई आया है। प्रायः पदचाप सुन कर ही आप जान लेते हैं कि कोई आपकी ओर आ रहा है।

आपने लुका-छिपी का खेल खेला होगा। इस खेल में एक खिलाड़ी की आँखों पर पट्टी बाँध दी जाती है और उसे अन्य खिलाड़ियों को पकड़ना होता है। आँखों पर पट्टी बँधे होने पर भी उस खिलाड़ी को कैसे पता चल जाता है कि उसके सबसे समीप कोई खिलाड़ी है?

ध्वनि का हमारे जीवन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक दूसरे से सम्पर्क करने में यह हमारी सहायता करती है। अपने चारों ओर हमें विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं।

अपने आस-पास सुनाई देने वाली ध्वनियों की एक सूची बनाइए।

अपने विद्यालय के संगीत कक्ष में आप बाँसुरी, तबला, हारमोनियम आदि वाद्य यंत्रों की ध्वनियाँ सुनते हैं (चित्र 10.1)।

ध्वनि कैसे उत्पन्न होती है? यह एक स्थान से दूसरे स्थान तक किस प्रकार पहुँचती है? ध्वनि को हम कैसे सुन पाते हैं? कुछ ध्वनियाँ दूसरों की अपेक्षा प्रबल क्यों होती हैं? इस अध्याय में हम ऐसे ही कुछ प्रश्नों पर विचार-विमर्श करेंगे।

10.1 ध्वनि कंपित वस्तुओं द्वारा उत्पन्न होती है

विद्यालय की घंटी को, जब बज न रही हो, छूकर देखिए। आप कैसा अनुभव करते हैं? जब वह ध्वनि उत्पन्न कर रही हो तो इसे पुनः छूकर देखिए। क्या आप इसे कंपित होता हुआ अनुभव कर सकते हैं?

क्रियाकलाप 10.1

धातु की एक प्लेट (अथवा एक कड़ाही) लीजिए। इसे किसी सुविधाजनक स्थान पर इस प्रकार लटकाइए कि यह किसी दीवार को न छुए। अब इस पर किसी छड़ी से चोट मारिए (चित्र 10.2)। क्या आपको कोई ध्वनि सुनाई पड़ती है? प्लेट अथवा कड़ाही को धीमे से अपनी अँगुली से छूकर देखिए। क्या आप कंपनों का अनुभव करते हैं?

प्लेट पर फिर से छड़ी से चोट मारिए तथा चोट मारने के तुरंत बाद इसे अपने हाथों से कस कर पकड़ लीजिए। क्या आप अब भी ध्वनि सुन पाते हैं? जब प्लेट ध्वनि उत्पन्न करना बंद कर दे तब इसे फिर से छूकर देखिए। क्या अब आप कंपनों का अनुभव कर पाते हैं?

क्रियाकलाप 10.2

रबड़ का एक छल्ला लीजिए। इसे चित्र 10.3 में दिखाए अनुसार एक पेंसिल बॉक्स पर चढ़ाइए। बॉक्स तथा तानित रबड़ के बीच में दो पेंसिलें लगाइए। अब रबड़ के छल्ले को लगभग बीच में से खींच कर छोड़ दीजिए। क्या आपको कोई ध्वनि सुनाई देती है? क्या रबड़ का छल्ला कंपन करता है?

कक्षा सात में आप अध्ययन कर चुके हैं कि किसी वस्तु की अपनी माध्य स्थिति के इधर-उधर या आगे पीछे होने वाली गति को कंपन कहते हैं। जब कस कर तानित एक रबड़ के छल्ले को कर्षित करते हैं या बीच से खींच कर छोड़ते हैं तो यह कंपन करता है और ध्वनि उत्पन्न करता है। जब यह कंपन करना बंद कर देता है तो ध्वनि बंद हो जाती है।

क्रियाकलाप 10.3

धातु की एक थाली लीजिए। इसमें कुछ जल डालिए। एक चम्मच से इसके किनारे पर आघात कीजिए (चित्र 10.4)। क्या आप ध्वनि सुन पाते हैं? थाली पर पुनः आघात कीजिए और तब इसे छूकर देखिए। क्या आप थाली का कंपित होता अनुभव करते हैं? थाली पर पुनः आघात कीजिए। जल की सतह को देखिए। क्या आप वहाँ पर कोई तरंगें देख पाते हैं? अब थाली को पकड़िए। आप जल की सतह पर क्या परिवर्तन देखते हैं? क्या आप इस परिवर्तन की व्याख्या कर सकते हैं? क्या इससे वस्तु के कंपनों को ध्वनि के साथ जोड़ने का कोई संकेत मिलता है?

इस प्रकार हमने देखा कि कंपायमान वस्तुएँ ध्वनि उत्पन्न करती हैं। कुछ स्थितियों में ये कंपन हमें आसानी से दिखाई दे जाते हैं। लेकिन अधिकांश स्थितियों में उनका आयाम  इतना कम होता है कि हम उन्हें देख नहीं पाते। तथापि, हम इन कंपनों का अनुभव कर सकते हैं।

क्रियाकलाप 10.4

नारियल का एक खोखला खोल लीजिए और उससे एक वाद्ययंत्र ‘एकतारा’ बनाइए। इसे आप किसी मिट्टी के बर्तन से भी बना सकते हैं (चित्र 10.5)। इस वाद्ययंत्र को बजाइए और इसके कंपायमान भाग को पहचानिए।

सुपरिचित वाद्ययंत्रों की एक सूची बनाइए और उनके कंपायमान भागों को पहचानिए। कुछ उदाहरण सारणी 10.1 में दिए गए हैं। शेष सारणी को पूरा कीजिए।

सारणी 10.1 : वाद्ययंत्र तथा उनके कंपायमान भाग

क्रम संख्या वाद्ययंत्रध्वनि उत्पन्न करने वाला कंपमान
1.वीणातानित डोरी/तार
2.तबलातानित झिल्ली

सम्भवतः आपने मंजीरा (झाँझ), घटम तथा नूट (मिट्टी के बर्तन) तथा करताल देखे होंगे। ये वाद्ययंत्र सामान्यतः हमारे देश के अनेक भागों में बजाए जाते हैं। इन वाद्ययंत्रों को केवल पीटा या आघात किया जाता है (चित्र 10.6)। क्या आप इस प्रकार के कुछ अन्य वाद्ययंत्रों के नाम बता सकते हैं?

आप भी एक वाद्ययंत्र बना सकते हैं।

क्रियाकलाप 10.5

धातु के 6-8 कटोरे या गिलास लीजिए। इन्हें एक सिरे से दूसरे सिरे तक क्रमशः जल के बढ़ते स्तर तक भरिए। अब एक पेंसिल लेकर कटोरों पर धीमे से एक के बाद एक पर आघात कीजिए। आप एक सुखद ध्वनि सुनेंगे। यह आपका जल तरंग है (चित्र 10.7)।

जब हम किसी वाद्ययंत्र, जैसे सितार, के तार को कर्षित करते हैं तो हमें केवल तार की ही ध्वनि सुनाई नहीं देती है। वास्तव में सम्पूर्ण यंत्र कंपन करता है और इस पूरे यंत्र के कंपन से उत्पन्न ध्वनि को हम सुनते हैं। इसी प्रकार जब हम किसी मृदंगम की झिल्ली पर आघात करते हैं तो हम केवल झिल्ली की आवाज़ ही नहीं सुनते बल्कि सम्पूर्ण यंत्र की आवाज़ सुनते हैं।

10.2 मनुष्यों (मानवों) द्वारा उत्पन्न ध्वनि

कुछ समय तक जोर से बोलिए या गाना गाइए अथवा भौरे की तरह गुंजन कीजिए। चित्रानुसार (10.8) अपने हाथ को अपने कंठ पर रखिए। क्या आपको कुछ कंपनों का अनुभव होता है?

मानवों में ध्वनि वाकयंत्र अथवा कंठ द्वारा उत्पन्न होती है। अपनी अंगुलियों को कंठ पर रखिए तथा एक कठोर उभार को खोजिए जो निगलते समय चलता हुआ प्रतीत होता है। शरीर का यह भाग वाकयंत्र कहलाता है। यह श्वासनली के ऊपरी सिरे पर होता है। वाकयंत्र या कंठ के आर-पार दो वाक्-तंतु इस प्रकार तानित होते हैं कि उनके बीच में वायु के निकलने के लिए एक संकीर्ण झिरी बनी होती है (चित्र 10.8)।

जब फेफड़े वायु को बलपूर्वक झिरी से बाहर निकालते हैं तो वाक्-तंतु कंपित होते हैं जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। वाक्-तंतुओं से जुड़ी मांसपेशियाँ तंतुओं को तना हुआ या ढीला कर सकती हैं। जब वाक्-तंतु तने हुए और पतले होते हैं तब वाक् ध्वनि का प्रकार या उसकी गुणता उस वाक् ध्वनि से भिन्न होती है जब वाक्-तंतु ढीले और मोटे होते हैं। आइए देखें कि वाक्-तंतु किस प्रकार कार्य करते हैं।

क्रियाकलाप 10.6

समान साइज़ की रबड़ की दो पट्टियाँ लीजिए। इन दोनों को एक दूसरे के ऊपर रख कर कस कर तानिए। अब इनके बीच के अन्तराल (दरार) में हवा पूँकिए [चित्र 10.9 (a)]। जब तानित रबड़ की पट्टियों के बीच से हवा फूँकी जाती है तो ध्वनि उत्पन्न होती है।

एक कागज़ के टुकड़े जिसमें एक पतली झिरी बनी हो, की सहायता से भी आप इस क्रियाकलाप को कर सकते हैं। कागज़ को अपनी अँगुलियों के बीच चित्र 10.9 (b) की भांति पकड़िए। अब झिरी के बीच से हवा फूँकिए और ध्वनि सुनिए। हमारे वाक्-तंतु भी ठीक इसी प्रकार ध्वनि उत्पन्न करते हैं।

पुरुषों के वाक्-तंतुओं की लंबाई लगभग 20 mm होती है। महिलाओं में इसकी लंबाई लगभग 15 mm होती है। बच्चों के वाक्-तंतु बहुत छोटे होते हैं। यही कारण है कि पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों की वाक् ध्वनियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं।

10.3 ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है

जब आप कुछ दूरी पर खड़ी अपनी सहेली को पुकारती हैं तो आपकी सहेली आपकी आवाज़ को सुन पाती है। उसके पास तक आपकी ध्वनि कैसे पहुँचती है?

क्रियाकलाप 10.7

धातु अथवा काँच का एक गिलास लीजिए। सुनिश्चित कीजिए कि यह सूखा हो। इसमें एक ‘सेल फोन’ रखिए। याद रखिए कि सेल फोन पानी में न रखा जाए। अपने किसी मित्र से इस ‘सेल फोन’ पर किसी दूसरे ‘सेल फोन’ से टेलीफोन करने के लिए कहिए। घंटी की ध्वनि ध्यानपूर्वक सुनिए। अब गिलास के किनारों को अपने हाथों से सटा कर पकड़िए। अब अपने मुँह को हाथों के बीच की खाली जगह पर सटा कर रखिए (चित्र 10.10)।

अपने मित्र को फिर से टेलीफोन करने के लिए संकेत दीजिए। गिलास में से वायु को मुँह द्वारा खींचते हुए घंटी की आवाज़ को सुनिए।

क्या गिलास में से वायु बाहर खींचने पर घंटी की ध्वनि धीमी हो जाती है?

गिलास को अपने मुँह से हटाइए। क्या ध्वनि फिर से प्रबल हो जाती है?

क्या आप सोच सकते हैं कि ऐसा क्यों हुआ? क्या यह संभव है कि गिलास में वायु की मात्रा कम होने और घंटी की प्रबलता कम होने में कोई संबंध है?

वास्तव में, यदि आप गिलास में से सारी वायु बाहर खींच पाते तो ध्वनि पूरी तरह सुनाई देना बंद हो जाती। इसका कारण यह है कि ध्वनि को संचरण (एक जगह से दूसरी जगह जाने) के लिए कोई माध्यम चाहिए। जब किसी बर्तन में से वायु पूरी तरह निकाल दी जाती है तो कहा जाता है कि बर्तन में निर्वात है? ध्वनि निर्वात में संचरित नहीं हो सकती।

क्या ध्वनि द्रवों में संचरित होती है। आइए ज्ञात करें।

क्रियाकलाप 10.8

एक बाल्टी अथवा स्नान-टब लीजिए। इसे स्वच्छ जल से भरिए। एक हाथ में एक छोटी घंटी लीजिए। ध्वनि उत्पन्न करने के लिए इस घंटी को जल में हिलाइए। ध्यान रखिए कि घंटी बाल्टी या टब की दीवारों को न छुए। अपने कान को जल की सतह पर सावधानीपूर्वक रखिए (चित्र 10.11)। (सतर्क रहे: जल आपके कान में प्रवेश न करे)। क्या आप घंटी की ध्वनि सुन पाते हैं? क्या इससे पता चलता है कि ध्वनि का संचरण द्रवों में हो सकता है?

आइए ज्ञात करें कि क्या ध्वनि ठोसों में भी गमन कर सकती है।

क्रियाकलाप 10.9

धातु का एक मीटर स्केल या धातु की एक लम्बी छड़ लीजिए। इसके एक सिरे को अपने कान से सटा कर रखिए। अपने मित्र से स्केल के दूसरे सिरे को धीरे से खरोंचने या खटखटाने को कहिए (चित्र 10.12)।

क्या आप खरोंचने की ध्वनि सुन पाते हैं? अपने आस-पास खड़े हुए मित्रों से पूछिए कि क्या वे भी इस ध्वनि को सुन पाए

आप अपने कान को लकड़ी या धातु की किसी लंबी मेज के एक सिरे पर रखकर तथा अपने मित्र को दूसरे सिरे को खरोंचने के लिए कह कर भी उपरोक्त क्रियाकलाप कर सकते हैं (चित्र 10.13)।

हमने देखा कि ध्वनि लकड़ी या धातु में चल सकती है। वास्तव में, ध्वनि किसी भी ठोस में संचरण कर सकती है। आप एक मनोरंजक क्रियाकलाप द्वारा यह दर्शा सकते हैं कि ध्वनि डोरियों में भी चल सकती है। अपने बनाए हुए खिलौना टेलीफोन को याद कीजिए (चित्र 10.14)। क्या आप कह सकते हैं कि ध्वनि डोरियों में भी गमन कर सकती है?

अब तक हमने सीखा कि कंपायमान वस्तुएँ ध्वनि उत्पन्न कर सकती हैं तथा यह किसी माध्यम में सभी दिशाओं में संचरित हो सकती है। यह माध्यम गैस, द्रव या ठोस कोई भी हो सकता है। इस ध्वनि को हम सुनते कैसे हैं?

10.4 हम ध्वनि को अपने कानों द्वारा सुनते हैं

कान के बाहरी भाग की आकृति कीप (फनल) जैसी होती है। जब ध्वनि इसमें प्रवेश करती है तो यह एक नलिका से गुजरती है जिसके सिरे पर एक पतली तानित झिल्ली होती है। इसे कर्ण पटह कहते हैं। यह एक महत्वपूर्ण कार्य करता है। यह जानने के लिए कि कर्ण पटह क्या कार्य करता है, आइए टिन के डिब्बे का एक कर्ण पटह बनाएँ।

क्रियाकलाप 10.10

एक प्लास्टिक अथवा टिन का डिब्बा लीजिए। इसके दोनों सिरे काटिए। डिब्बे के एक सिरे पर एक रबड़ के गुब्बारे को तानिए और इसे एक रबड़ के छल्ले से कस दीजिए। तानित रबड़ के ऊपर सूखे अन्न या थर्मोकोल के चार या पाँच दाने रखिए। अब अपने मित्र से डिब्बे के खुले सिरे पर “हुर्रे, हुर्रे” बोलने के लिए कहिए (चित्र 10.15)1 देखिए कि अन्न के दानों का क्या होता है। अन्न के दाने ऊपर और नीचे क्यों उछलते हैं?

कर्ण पटह एक तानित रबड़ की शीट के समान होता है। ध्वनि के कम्पन कर्ण पटह को कंपित करते हैं (चित्र 10.16)। कर्ण पटह कंपनों को आंतर कर्ण  तक भेज देता है। वहाँ से संकेतों को मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है। इस प्रकार हम ध्वनि को सुनते हैं।

10.5 कंपन का आयाम, आवर्तकाल तथा आवृत्ति

हम जानते हैं कि किसी वस्तु का बार-बार इधर-उधर गति करना कंपन कहलाता है। इस गति को दोलन गति भी कहते हैं। आप पिछली कक्षाओं में दोलन गति तथा इसके आवर्तकाल के बारे में पढ़ चुके हैं।

प्रति सेकंड होने वाले दोलनों की संख्या को दोलन की आवृत्ति कहते हैं। आवृत्ति को हर्ट्ज में मापा जाता है। इसका संकेत Hz है। 1 Hz आवृत्ति एक दोलन प्रति सेकंड के बराबर होती है। यदि कोई वस्तु एक सेकंड में 20 दोलन पूरे करती है तो इसकी आवृत्ति क्या होगी?

ध्वनि उत्पन्न करने वाली वस्तु को देखे बगैर भी आप अनेक सुपरिचित ध्वनियों को पहचान सकते हैं। यह कैसे सम्भव हो पाता है? इसके लिए यह आवश्यक है कि ये ध्वनियाँ भिन्न प्रकार की हों। क्या आपने कभी सोचा कि कौन से कारक इन्हें भिन्न बनाते हैं। आयाम तथा आवृत्ति किसी ध्वनि के दो महत्वपूर्ण गुण हैं। क्या हम ध्वनियों में उनके आयामों तथा आवृत्तियों के आधार पर अन्तर कर सकते हैं?

प्रबलता तथा तारत्व

क्रियाकलाप 10.11

एक धातु का गिलास और एक चाय का चम्मच लीजिए। चम्मच को धीमे से गिलास के किनारे से टकराइए। उत्पन्न हुई ध्वनि को सुनिए। अब गिलास पर चम्मच से जोर से आघात कीजिए तथा फिर से उत्पन्न ध्वनि को सुनिए। क्या गिलास पर जोर से आघात करने पर ध्वनि अधिक प्रबल हो जाती है?

अब गिलास के किनारे को छूते हुए थर्मोकोल की एक छोटी सी गेंद लटकाइए (चित्र 10.17)। गिलास को कम्पित कराइए। देखिए कि गेंद कितनी दूर विस्थापित होती है। गेंद का विस्थापन गिलास के कंपन के आयाम की माप है। ध्वनि की प्रबलता इसके आयाम पर निर्भर करती है। जब किसी कंपित वस्तु का आयाम अधिक होता है तो इसके द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रबल होती है। जब आयाम कम होता है तो उत्पन्न ध्वनि मंद होती है।

अब गिलास को पहले धीमे तथा बाद में अधिक बल से आघात कीजिए। अब, दोनों स्थितियों में गिलास के कंपनों के आयामों की तुलना कीजिए। किस स्थिति में आयाम अधिक है?

ध्वनि की प्रबलता ध्वनि उत्पन्न करने वाले कंपनों के आयाम के वर्ग के समानुपातिक है। उदाहरण के लिए, यदि आयाम दुगुना हो जाए तो प्रबलता 4 के गुणक में बढ़ जाती है। प्रबलता को डेसिबेल (dB) मात्रक में व्यक्त करते हैं। निम्न सारणी विभिन्न स्रोतों से आने वाली ध्वनि की प्रबलता का कुछ बोध कराती है।

सामान्य श्वास10 dB
मंद फुसफुसाहट30 dB
सामान्य बातचीत/वार्तालाप60 dB
व्यस्त यातायात70 dB
औसत फैक्टरी80 dB

80 dB से अधिक प्रबल शोर शरीर के लिए कष्टदायक होता है।

ध्वनि की प्रबलता इसके आयाम पर निर्भर करती है। जब किसी कंपित वस्तु का आयाम अधिक होता है तो इसके द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रबल होती है। जब आयाम छोटा होता है तो उत्पन्न ध्वनि मंद होती है।

किसी बच्चे की ध्वनि की तुलना एक वयस्क से कीजिए। क्या इनमें कुछ अन्तर है? चाहे दोनों ध्वनियाँ समान रूप से प्रबल हों, फिर भी उनमें कुछ भिन्नता है। आइए देखें ये किस प्रकार भिन्न हैं।

आवृत्ति ध्वनि की तीक्ष्णता या तारत्व को निर्धारित करती है। यदि कंपन की आवृत्ति अधिक है तो हम कहते हैं कि ध्वनि तीखी है। यदि कंपन की आवृत्ति कम है तो हम कहते हैं कि ध्वनि का तारत्व कम है।

उदाहरण के लिए, ढोल मंद आवृत्ति से कंपित होता है। इसलिए यह कम तारत्व की ध्वनि उत्पन्न करता है। दूसरी ओर, सीटी की आवृत्ति अधिक होती है और इसलिए अधिक तारत्व की ध्वनि उत्पन्न करती है (चित्र 10.18)। पक्षी उच्च तारत्व की ध्वनि उत्पन्न करता है जबकि शेर की दहाड़ का तारत्व मंद होता है। तथापि, शेर की दहाड़ अत्यधिक प्रबल है जबकि पक्षी की ध्वनि दुर्बल होती है।

आप प्रतिदिन बच्चों तथा वयस्कों की आवाजें सुनते हैं। क्या आप उनकी आवाज़ों में कोई अन्तर पाते हैं? क्या आप कह सकते हैं कि बच्चे की आवाज की आवृत्ति वयस्क की आवाज़ की आवृत्ति से अधिक है? सामान्यतः एक महिला की आवाज किसी पुरुष की अपेक्षा अधिक आवृत्ति की तथा अधिक तीखी होती है।

10.6 श्रव्य तथा अश्रव्य ध्वनियाँ

हम जानते हैं कि ध्वनि उत्पन्न करने के लिए हमें एक कंपायमान वस्तु की आवश्यकता होती है। क्या हम सभी कंपायमान वस्तुओं की ध्वनियाँ सुन सकते हैं?

तथ्य यह है कि लगभग 20 कंपन प्रति सेकंड (20 Hz) से कम आवृत्ति की ध्वनियाँ मानव कान सुन नहीं सकता। यह कह सकते हैं कि 20 Hz से कम आवृत्ति की ध्वनियाँ मानव कान द्वारा संसूचित नहीं की जा सकतीं। ऐसी ध्वनियों को अश्रव्य कहते हैं। उधर लगभग 20,000 कंपन प्रति सेकंड (20 kHz) से अधिक आवृत्ति की ध्वनियाँ भी मानव कान द्वारा संसूचित नहीं

कुछ जंतु 20,000 Hz से अधिक की आवृत्ति की ध्वनियों को भी सुन सकते हैं। कुत्तों में यह क्षमता है। पुलिसकर्मी उच्च आवृत्ति की ध्वनि उत्पन्न करने वाली सीटियों का उपयोग करते हैं जिसे कुत्ते सुन सकते हैं लेकिन मानव नहीं सुन पाते।

जाने माने पराश्रव्य ध्वनि (ultrasound) उपकरण जो चिकित्सा के क्षेत्र में अनेक समस्याओं के अनुसंधान एवं निदान के लिए प्रयोग होते हैं, 20,000 Hz से अधिक की आवृत्ति पर कार्य करते हैं।

होतीं। अतः मानव कानों के लिए श्रव्य की आवृत्ति का परास (Range) लगभग 20 Hz से 20,000 Hz तक है। इसका अर्थ यह है कि हम केवल 20 Hz – 20 k Hz के बीच की आवृत्ति वाली ध्वनियाँ ही सुन सकते हैं।

10.7 शोर तथा संगीत

हम अपने चारों ओर विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ सुनते है? क्या ध्वनि सदैव सुखद होती है। क्या ध्वनि कभी-कभी आपको कष्ट पहुँचाती है? कुछ ध्वनियाँ आपको सुखद लगती हैं जबकि कुछ अच्छी नहीं लगतीं।

मान लीजिए आपके अड़ोस-पड़ोस में निर्माण कार्य चल रहा है। क्या निर्माण स्थल से आने वाली ध्वनियाँ सुखद प्रतीत होती हैं? क्या आपको बसों तथा ट्रकों के हॉर्न की ध्वनियाँ अच्छी लगती है? इस प्रकार की अप्रिय ध्वनियों को शोर कहते हैं। कक्षा में यदि सभी विद्यार्थी एक साथ बोलें तो उत्पन्न होने वाली ध्वनि को क्या कहेंगे?

दूसरी ओर आप वाद्ययंत्रों की ध्वनियों का आनन्द लेते हैं। सुस्वर ध्वनि वह है जो कानों को सुखद लगती है। हारमोनियम द्वारा उत्पन्न ध्वनि सुस्वर ध्वनि कहलाती है। (सितार के तार द्वारा उत्पन्न ध्वनि भी सुस्वर ध्वनि कहलाती है।) लेकिन यदि संगीत अत्यंत प्रबल हो जाए, तब भी क्या ये संगीत रहेगा?

10.8 ध्वनि प्रदूषण

आप वायु प्रदूषण के बारे में पहले से ही जानते हैं। वायु में अवांछित गैसों तथा कणों की उपस्थिति वायु प्रदूषण कहलाती है। इसी प्रकार, वातावरण में अत्यधिक या अवांछित ध्वनियों को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। क्या आप ध्वनि प्रदूषण के कुछ स्रोतों की सूची बना सकते हैं? ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं, वाहनों की ध्वनियाँ, विस्फोट जिसमें पटाखों का फटना भी सम्मिलित है, मशीनें, लाउडस्पीकर आदि। घर में कौन से स्रोत ध्वनि उत्पन्न कर सकते हैं? ऊँची आवाज़ में चलाए गए टेलिविज़न तथा ट्रांजिस्टर रेडियो, रसोईघर के कुछ उपकरण , कूलर , वातानुकूलक, सभी ध्वनि प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं।

ध्वनि प्रदूषण की क्या हानियाँ हैं?

क्या आप जानते हैं कि परिवेश में अत्यधिक शोर की उपस्थिति अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बन सकती है। अनिद्रा, अति तनाव (उच्च रक्त-चाप), चिन्ता तथा अन्य बहुत से स्वास्थ्य संबंधी विकार ध्वनि-प्रदूषण से उत्पन्न हो सकते हैं। लगातार प्रबल ध्वनि के प्रभाव में रहने वाले व्यक्ति की सुनने की क्षमता अस्थायी अथवा स्थायी रूप से कम हो जाती है।

ध्वनि प्रदूषण को सीमित रखने के उपाय

ध्वनि को नियंत्रित करने के लिए हमें ध्वनि के स्रोतों पर नियंत्रण करना चाहिए। यह कैसे किया जा सकता है? इसके लिए वायुयानों के इंजनों, यातायात के वाहनों, औद्योगिक मशीनों तथा घरेलू उपकरणों में रवशामक युक्तियाँ  लगानी चाहिए।

आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?

ध्वनि उत्पन्न करने वाले क्रियाकलापों को आवासीय क्षेत्रों से दूर संचालित करना चाहिए। ध्वनि उत्पन्न करने वाले उद्योगों को आवासीय क्षेत्रों से दूर स्थापित करना चाहिए। स्वचालित वाहनों के हॉर्न का उपयोग कम से कम करना चाहिए। टेलिविज़न तथा संगीत निकायों की ध्वनि प्रबलता कम रखनी चाहिए। ध्वनि प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए सड़कों तथा भवनों के आस-पास पेड़ लगाने चाहिए, जिससे कि ध्वनि आवासों तक न पहुँच पाए।

श्रवण क्षति

पूर्णतया श्रवण क्षति जो कि विरले ही होती है, प्रायः जन्म से होती है। आंशिक अशक्तता सामान्यतः किसी बीमारी, चोट या उम्र के कारण होती है। कठिन श्रवण शक्ति वाले बच्चों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। ऐसे बच्चे इगित भाषा (संकेत भाषा) को सीख कर प्रभावशाली ढंग से सम्पर्क कर सकते है। क्योंकि वाक् शक्ति श्रवण के परिणामस्वरूप विकसित होती है, इसलिए श्रवण अशक्तता से ग्रस्त बच्चे की वाकू शक्ति भी दोषपूर्ण हो सकती है। औद्योगिकीय/प्रौद्योगिकीय युक्तियों ने अषण क्षतिग्रस्त व्यक्तियों के जीवन की गुणता में सुधार को सम्भव बना दिया है। अपण क्षतिग्रस्तों के रहन-सहन के वातावरण में सुधार लाने के लिए समाज बहुत कुछ कर सकता है।

आपने क्या सीखा

• ध्वनि कंपन करती हुई वस्तु द्वारा उत्पन्न होती है।

• मानव वाक्-तंतुओं के कंपन द्वारा ध्वनि उत्पन्न करते हैं।

• ध्वनि किसी माध्यम (गैस, द्रव या ठोस) में संचरित होती है।

• यह निर्वात में संचरित नहीं हो सकती।

• कर्ण पटह ध्वनि के कंपनों को अनुभव करते हैं। यह इन संकेतों को मस्तिष्क तक भेज देते हैं। इस प्रक्रिया को श्रवण कहते हैं।

• प्रति सेकंड होने वाले दोलनों या कंपनों की संख्या दोलन की आवृत्ति कहलाती है।

• आवृत्ति को हर्ट्ज (Hz) में व्यक्त करते हैं।

• कंपन का आयाम जितना अधिक होता है, ध्वनि उतनी ही प्रबल होती है।

• कंपन की आवृत्ति अधिक होने पर तारत्व अधिक होता है और ध्वनि अधिक तीक्ष्ण होती है।

• अप्रिय ध्वनियाँ शोर कहलाती हैं।

• अत्यधिक या अवांछित ध्वनियाँ ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करती हैं। ध्वनि प्रदूषण मानवों के लिए स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है।

• ध्वनि प्रदूषण को न्यूनतम करने के प्रयास करने चाहिए।

• सड़क के किनारे तथा अन्य स्थानों पर पेड़ लगाने से ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

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अभ्यास

1. सही उत्तर चुनिए

ध्वनि संचरित हो सकती है:

(क) केवल वायु या गैसों में

(ख) केवल ठोसों में

(ग) केवल द्रवों में

(घ) ठोसों, द्रवों तथा गैसों में

Ans. (घ) ठोसों, द्रवों तथा गैसों में

2 निम्न में से किस वाक् ध्वनि की आवृत्ति न्यूनतम होने की सम्भावना है

(क) छोटी लड़की की

(ख) छोटे लड़के की

(ग) पुरुष की

(घ) महिला की

Ans. (ग) पुरुष की

3. निम्नलिखित कथनों में सही कथन के सामने ‘T’ तथा गलत कथन के सामने ‘F’ पर निशान लगाइए

(क) ध्वनि निर्वात में संचरित नहीं हो सकती। (T)

(ख) किसी कंपित वस्तु के प्रति सेकंड होने वाले दोलनों की संख्या को इसका आवर्तकाल कहते हैं। (F)

(ग) यदि कंपन का आयाम अधिक है तो ध्वनि मंद होती है। (F)

(घ) मानव कानों के लिए श्रव्यता का परास 20 Hz से 20,000 Hz है।  (T)

(ङ) कंपन की आवृत्ति जितनी कम होगी तारत्व उतना ही अधिक होगा। (F)

(च) अवांछित या अप्रिय ध्वनि को संगीत कहते हैं। (F)

(छ) ध्वनि प्रदूषण आंशिक श्रवण अशक्तता उत्पन्न कर सकता है। (T)

4. उचित शब्दों द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(क) किसी वस्तु द्वारा एक दोलन को पूरा करने में लिए गए समय को * अवर्तकाल कहते हैं।

(ख) प्रबलता कम्पन के *आयाम से निर्धारित की जाती है।

(ग) आवृत्ति का मात्रक *हर्ट्ज है।

(घ) अवांछित ध्वनि को *शोर कहते हैं।

(ङ) ध्वनि की तीक्ष्णता कंपनों की *आवृति से निर्धारित होती है।

5. एक दोलक 4 सेकंड में 40 बार दोलन करता है। इसका आवर्तकाल तथा आवृत्ति ज्ञात कीजिए।
Ans.
उत्तरः दोलनों की संख्या = 40
दोलनों द्वारा लिए लगा समय = 4 सेकंड
आवृत्ति = दोलनों की संख्या / समय (सेकंड में)
          = 40 / 4 = 10 Hz.
आवर्तकाल =  1 /आवृत्ति
                = 1 /10   = 0.1 सेकंड

6. एक मच्छर अपने पंखों को 500 कम्पन प्रति सेकंड की औसत दर से कंपित करके ध्वनि उत्पन्न करता है। कंपन का आवर्तकाल कितना है?
Ans. 
500 कंपन द्वारा लिया गया समय = 1 सेकंड
1 कंपन द्वारा लिया गया समय = 1 / 500
                                       =  0.002 सेकंड

7. निम्न वाद्ययंत्रों में उस भाग को पहचानिए जो ध्वनि उत्पन्न करने के लिए कंपित होता है

(क) ढोलक
Ans. तनित झिल्ली

(ख) सितार
Ans. तनित तार

(ग) बाँसुरी
Ans. एयर कॉलम

8. शोर तथा संगीत में क्या अंतर है? क्या कभी संगीत शोर बन सकता है?
Ans.
शोर :- यह वह ध्वनि है जो सुनते हुए हमें कष्टदायक प्रतीत होती है।

संगीत :- यह वह ध्वनि है जो कानों को सुखद लगती है। हाँ, संगीत उस अवस्था में शोर बनता है जब किसी को अच्छे से गाना न आता हो या जब इसका स्वर बहुत ऊंचा हो।

9. अपने वातावरण में ध्वनि प्रदूषण के स्रोतों की सूची बनाइए।
Ans.
गाड़ियों की आवाज, हॉर्न की आवाज, फैक्ट्री से आने वाली आवाज, निर्माण स्थल पर होने वाला काम, आदि।

10. वर्णन कीजिए कि ध्वनि प्रदूषण मानव के लिए किस प्रकार से हानिकारक है?
Ans.
लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण के असर के कारण अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, चिंता और कई अन्य परेशानियों होती हैं। कभी कभी ध्वनि प्रदूषण के कारण सुनने की शक्ति भी खराब हो जाती है।

11. आपके माता-पिता एक मकान खरीदना चाहते हैं। उन्हें एक मकान सड़क के किनारे पर तथा दूसरा सड़क से तीन गली छोड़ कर देने का प्रस्ताव किया गया है। आप अपने माता-पिता को कौन-सा मकान खरीदने का सुझाव देंगे? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
Ans.
मैं सड़क से चार गली छोड़कर स्थित मकान खरीदने की सलाह दूंगा। उस मकान में वाहनों से होने वाले शोर की समस्या कम हो जाएगी। इससे हम ध्वनि प्रदूषण के बुरे असर से बच पाएँगे।

12. मानव वाक्यंत्र का चित्र बनाइए तथा इसके कार्य की अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।
Ans
. इंसानों में स्वरयंत्र या लैरिक्स से ध्वनि उत्पन्न होती है। यह श्वास नली के ऊपरी भाग में स्थित होता है। लैर्रिक्स के आर पार दो वोकल कॉर्ड तने हुए रहते हैं और उन दोनों के बीच एक पतली सी झिरी होती है। जब उस झिरी से हवा तेजी से निकलती है तो वोकल कॉर्ड में कम्पन होता है और ध्वनि उत्पन्न होती है। वोकल कॉर्ड से जुड़ी हुई पेशियों की मदद से हम अपने वोकल कॉर्ड को दीता या तना हुआ कर पाते हैं। वोकल कॉर्ड के ढीले या तने हुए होने के कारण आवाज बदलती रहती है।

13. आकाश में तड़ित तथा मेघगर्जन की घटना एक समय पर तथा हमसे समान दूरी पर घटित होती है। हमें तड़ित पहले दिखाई देती है तथा मेघगर्जन बाद में सुनाई देता है। क्या आप इसकी व्याख्या कर सकते हैं?
Ans.
हम जानते हैं कि प्रकाश की गति, ध्वनि की गति से बहुत अधिक होती है। इसलिए समान दूरी से ध्वनि की तुलना में प्रकाश को हम तक पहुँचने में कम समय लगता है। इसलिए तड़ित पहले दिखाई देता है और मेघगर्जन बाद में सुनाई देता है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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