वैदिक सभ्यता (1500- 600 ई.पू. )
• ‘वेद’ शब्द का अर्थ ‘ज्ञान’ होता है। भारतीय परंपरा में वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। ब्रह्मा ने कुछ ऋषियों को मन्त्रों का प्रकाश दिया। ऋषियों ने अपने शिष्यों को बताया। कालान्तर में वेद व्यास ने इस ज्ञान को संकलित कर लिया। इसी कारण वेदों को श्रुति भी कहा गया है।
• खगोलीय आधार पर जर्मन भारतविद् प्रो. हरमन जैकोबी के अनुसार ऋग्वेद की ऋचाएँ 4500 ई.पू.-2500 ई.पू. संकलित की गई थी।
• हिट्टाइट शासकों द्वारा लिखित बोगजकोइ अभिलेख से यह सिद्ध होता है कि आर्य एशिया माईनर (मध्य एशिया) से भारत आये। मैक्समूलर ने आर्यों का मूल स्थान मध्य एशिया को माना है।
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• बाल गंगाधर तिलक के अनुसार आर्यों का आदि देश उत्तरी ध्रुव था।
• चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद हैं।
• ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद को ‘वेदत्रयी’ या ‘त्रयी’ कहा जाता है।
ऋग्वेद में 10 मण्डल तथा 1028 सूक्त हैं।
• दूसरे से सातवें मण्डल तक को “वंश मण्डल” कहा जाता है। ऋग्वेद के नौवें मण्डल को “सोम मण्डल” कहा जाता है।
• आरंभिक वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था व्यवसाय पर आधारित थी।
• ऋग्वेद के दसवें मण्डल में पुरुष सूक्त है, जिसमें चारों वर्णों की उत्पत्ति का साक्ष्य है।
ऋग्वैदिक कालीन नदियाँ
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
क्रुमु | कुर्रम |
कुंभा | काबुल |
वितस्ता | झेलम |
अस्किनी | चिनाब |
परुष्णी | रावी |
शतुद्रि | सतलज |
विपाशा | व्यास |
सदानीरा | गंडक |
दृशद्वती | घग्घर |
गोमती | गोमल |
सुवास्तु | स्वात् |
सिन्धु | सिन्धु |
• यजुर्वेद (यज्ञ सूत्र) की प्रमुख विशेषता कर्मकाण्ड है। इसमें पहली बार राजसूय एवं वाजपेय यज्ञ का उल्लेख हुआ है। यह वेद पद्य एवं गद्य दोनों में है।
• सुदास ने अनार्यों को पराजित किया था।
• दशराज्ञ युद्ध परुष्णी नदी (रावी) के तट पर सुदास एवं दस जनों के बीच लड़ा गया था।
• ऋग्वैदिक काल की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी सिन्धु थी। ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में गायत्री मन्त्र का उल्लेख है।
• ऋग्वेद के दशम् मण्डल में नदी सूक्त है। ऋग्वेद में सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती को नदियों की माता कहा गया है।
• ऋग्वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहा जाता था।
• यजुर्वेद के पाठकर्त्ता को अध्वर्यु कहा जाता था।
• सामवेद के पाठकर्त्ता को उदागातृ (उद्गाता) कहा जाता था।
• सबसे नया वेद अथर्ववेद है। अथर्ववेद में वेदत्रयी में नहीं आता है। इसमें जादू-टोना तथा तन्त्र-मन्त्र का उल्लेख है।
• वेदों की टीकाओं को ब्राह्मण ग्रंथ कहा जाता है।
वेद-उपवेद और उसके रचनाकार
वेद | उपवेद | रचनाकार |
ऋग्वेद | आयुर्वेद | धन्वन्तरि |
यजुर्वेद | धनुर्वेद | विश्वामित्र |
सामवेद | गंन्धर्ववेद | भरतमुनि |
अथर्ववेद | शिल्पवेद | विश्वकर्मा |
• ऋग्वैदिक काल का समाज कबीले के रूप में संगठित था। आयाँ का प्रारम्भिक जीवन मुख्यतः पशुचारक था तथा कृषि उनका गौण धंधा था।
• भरतकुल के पुरोहित वशिष्ठ थे।
• आयर्यों ने घोड़ों द्वारा चलाए जा रहे रथों का प्रयोग किया।
• ऋग्वेद में 21 नदियों का जिक्र मिलता है।
• आर्यों की सर्वाधिक प्राचीन संस्था विदथ थी। श्रेष्ठ लोगों की संस्था को समिति कहते थे। राजा को चुनने एवं पदच्युत करने का अधिकार समिति को था।
• ऋग्वैदिक काल में पुलिस को उग्र तथा गुप्तचर को स्पश कहते थे।
• ऊनी कपड़े को सामूल्य कहते थे।
• तम्बाकू का ज्ञान वैदिक काल के लोगों को नहीं था।
• इन्द्र ऋग्वैदिक काल के सबसे प्रतापी देवता थे, जिन्हें किला तोड़ने वाला कहा गया है।
• ऋग्वेद में इन्द्र का सर्वाधिक 250 बार उल्लेख हुआ है।
कृषि संबंधी शब्दावली
लांगल | हल |
वृष | बैल |
उर्वरा | जुते हुए खेत |
सीता | हल से बनी नालियाँ |
अवट | कुआँ |
पर्जन्य | बादल |
करीष | गोबर (खाद) |
स्थिवि | अनाज जमा करने वाले कोठार |
कीनांश | हलवाहे |
• उत्तरवैदिक काल के सर्वाधिक प्रतापी देवता प्रजापति थे।
• शूद्रों के देवता पूषन थे, जो पशुओं से भी सम्बद्ध थे।
• आश्रम व्यवस्था का सर्वप्रथम उल्लेख छान्दोग्य उपनिषद् में मिलता है।
• राजा का प्रमुख सलाहकार पुरोहित होता था।
• आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे-संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़ एवं द्यूतक्रीड़ा।
• ऋग्वेद में नाई को वप्ता कहा जाता था।
• वैदिक युग में राजा अपनी जनता से जो कर वसूल करते थे, उसे बलि कहते थे।
• सर्वप्रथम कर लगाने की प्रथा उत्तर वैदिक काल में शुरू हुई।
• मगध में निवास करने वाले लोगों को अथर्ववेद में व्रात्य कहा गया है।
• वैदिक आर्यों का मुख्य भोजन दूध और उसके उत्पाद थे। जौ के सत्तू को दही में मिलाकर करव नामक खाद्य पदार्थ बनाया जाता था। वैदिक काल में जौ, गेहूँ, मूँग, तिल, उड़द आदि प्रमुख अन्न थे।
• ऋग्वैदिक आर्यों को बढ़ईगीरी, कुम्हार, बुनकर, चर्मकार, रथकार, स्वर्णकार आदि के बारे में मालूम था परंतु उस समय लुहारगीरी की जानकारी नहीं थीं परंतु उत्तरवैदिक काल में लोहे की जानकारी आर्यों को हो गयी थी।
• अथर्ववेद में सभा तथा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियों के समान माना गया है।
• यजुर्वेद की रचना गद्य एवं पद्य दोनों में है।
• अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता है।
• यजुर्वेद पर विद्वानों ने सर्वाधिक भाष्य लिखे हैं।
• अगस्त ऋषि ने दक्षिण भारत का आर्यकरण किया था।
विद्वान | आर्यों का मूल निवास स्थान |
1. मैक्समूलर | मध्य एशिया (वैक्ट्रिया) |
2. बाल गंगाधर तिलक | उत्तरी ध्रुव |
3. दयानन्द सरस्वती | तिब्बत |
4. गंगानाथ झा | ब्रह्मर्षि देश |
5. एल. डी. कल्ल. | कश्मीर तथा हिमालय क्षेत्र |
6. गाइल्स | हंगरी अथवा डेन्यूब नदी |
7. गार्डन चाइल्ड्स, मेयर, पीक | दक्षिणी रूस |
8. पेनका, हर्ट | जर्मनी |
9. डॉ. अविनाश चन्द्र दास | सप्त सैंधव प्रदेश |
अन्य प्राचीन शब्दावली
ऊर्दर | अनाज नापने वाले पात्र के लिये। |
गौरी | भैंस को कहते थे। |
होता | प्रार्थना करने वाले पुरोहित। |
उद्गाता | सामवेद का गायन करने वाला पुरोहित। |
अध्वर्यु | कर्मकाण्ड एवं पशुबलि देने वाला पुरोहित। |
ब्रह्मा | यज्ञ विधि पूर्वक कराने वाले अध्यक्ष पुरोहित। |
ब्रीही | चावल। |
तक्षण | बढ़ई। |
निष्क | मुद्रा के लिये प्रयुक्त शब्द। |
व्रजपति | चारागाह का अधिकारी। |
• ऋग्वेद में क्षत्रिय के लिये राजन्य शब्द का प्रयोग होता था।
• ऋग्वैदिक काल में पर्दा प्रथा नहीं थी। इस काल में स्त्रियों की दशा बहुत अच्छी थी।
• ऋग्वैदिक काल में सती प्रथा नहीं थी।
• पर्दा प्रथा का उल्लेख वैदिक काल में नहीं मिलता है।
ऋग्वैदिक देवता
1. आकाश के देवता : सूर्य, द्यौस, मित्र, पूषन्, विष्णु, उषा, अश्विन, सवितृ, आदित्य आदि।
2. अन्तरिक्ष के देवता : इन्द्र, मरुत, रुद्र, वायु, पर्जन्य आदि।
3. पृथ्वी के देवता : अग्नि, सोम, पृथ्वी, बृहस्पति, सरस्वती।
• वैदिक काल में नियोग प्रथा प्रचलित थी। शतपथ ब्राह्मण में पत्नी को अद्धांगिनी कहा गया है।
• ऋग्वैदिक काल में दास प्रथा का प्रचलन था।
• गाय को अघन्या (न मारने योग्य) माना जाता था।
• ऋग्वैदिक काल में संयुक्त परिवार की प्रथा थी।
• ओऽम शब्द का सर्वप्रथम निश्चित वर्णन बृहदारण्यक उपनिषद् में मिलता है।
• “सत्यमेव जयते” शब्द मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।
• पाप-पुण्य तथा स्वर्ग-नरक का उल्लेख सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता है।
• महाभारत काल में अनार्य जातियों को पणि या दास कहा जाता था।
• ऋग्वेद में वैद्य या चिकित्सक को भेषज कहा जाता था।
• ऋत् को नैतिक व्यवस्था का नियामक कहा गया था।
• अग्नि, देवता एवं मानवों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाला देव था।
• मरुत को तूफान का देवता कहा जाता था।
• प्राचीन भारत के दो महाकाव्य हैं तथा महाभारत । रामायण
• वैदिक लोगों द्वारा ताँबा का प्रयोग पहले किया गया था।
शब्द | पुस्तक |
ओऽम | वृहदारण्यक उपनिषद् |
अर्द्धांगिनी (पत्नी) | शतपथ ब्राह्मण |
सत्यमेव जयते | मुण्डकोपनिषद् |
पाप-पुण्य | ऋग्वेद |
स्वर्ग-नरक | ऋग्वेद |
ऋग्वेद में शब्दों का उल्लेख (बारम्बारता)
ॐ या ओऽम | 1028 | समुद्र | 1 | ||
जन | 275 | ग्राम | 13 | पिता | 335 |
वर्ण | 23 | क्षत्रिय | 9 | शूद्र | 1 |
राष्ट्र | 10 | सभा | 8 | विदथ | 122 |
गण | 46 | अग्नि | 200 | विष्णु | 6 |
पुषण | 8 | गंगा | 1 | मित्र | 1 |
गृह | 90 | विश | 171 | कुलप | 2 |
माता | 234 | ब्राह्मण | 14 | वैश्य | 1 |
राजन्य | 1 | सेना | 20 | समिति | 9 |
वरुण | 30 | इन्द्र | 250 | सोम | 120 |
सूर्य | 10 | गौ | 176 | यमुना | 3 |
रुद्र | 3 | अश्व | 315 | कृषि | 24 |
उत्तर वैदिक काल
काल – 1000 ई. पू. 600 ई. पू.
पुरातात्विक स्रोत – चित्रित धूसर मृदभांड, लोहा, स्थायी निवास।
साहित्यिक स्रोत – सामवेद • यजुर्वेद • अथर्ववेद • आरण्यक • उपनिषद्
लोहे के प्रयोग का साक्ष्य – अतरंजीखेड़ा 1050 ई. पू. • गांधार क्षेत्र-1000 ई. पू. • गंगा-यमुना दोआब- 800 ई. पू.
• चार पुरातात्विक स्थलों की खुदाई – जखेड़ा, हस्तिनापुर, नोह तथा अतरंजीखेड़ा में सर्वाधिक लौहास्त्र मिले हैं।
• 700 ई. पू. के लगभग लोहे का प्रसार उत्तर प्रदेश तथा विदेह में हुआ।
• उत्तर वैदिक ग्रंथ में लोहे को ‘श्याम अयस्’ तथा ‘कृष्ण अयस्’ कहा गया है।
• प्रारंभ में उनकी राजधानी असन्दनीवात थी। कालांतर में हस्तिनापुर उनकी राजधानी हुई।
• महत्त्वपूर्ण राजा हुए-बाल्हिक प्रतिपीय, राजा परीक्षित, जन्मेजय आदि।
• अथर्ववेद में परीक्षित का उल्लेख मिलता है।
• जन्मेजय ने एक नागयज्ञ और दो अश्वमेध यज्ञ करवाए थे।
• अंतिम कुरुवंशी शासक निचक्षु ने बाढ़ से विनष्ट होने के कारण हस्तिनापुर की जगह कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया।
• महाभारत-कुरुकुल का गृहयुद्ध-950 ई. पू. में हुआ था।
• इस काल में कबीलों ने जनपद रूप ग्रहण किया। जैसे-भरत एवं पुरु ने मिलकर कुरु जनपद की स्थापना की तथा तुर्वस एवं क्रिवि ने मिलकर पांचाल जनपद की स्थापना की।
• मध्य दोआब, आधुनिक बरेली, बदायूँ, फर्रुखाबाद।
• पांचाल दार्शनिक राजाओं के लिए जाना जाता है। महत्वपूर्ण शासक प्रवाहण जाबालि थे।
• आरुणि व श्वेतकेतु इसी क्षेत्र से संबद्ध थे।
• गंगा-यमुना दोआब से आर्यों का विस्तार सरयू नदी तक हुआ, जिसके किनारे कोशल राज्य स्थित था।
• आर्यों का विस्तार सरस्वती नदी से वर्णवती नदी के किनारे हुआ और काशी की स्थापना हुई।
• सदानीरा (गंडक) के किनारे विदेह माधव ने विदेह की नींव डाली।
• विदेह माधव ने अपने गुरु राहुल गण की सहायता से अग्नि के द्वारा इस क्षेत्र का सफाया किया। यह शतपथ ब्राह्मण में वर्णित है।
• शतपथ ब्राह्मण में महाजनी प्रथा का पहली बार जिक्र हुआ है तथा सूदखोर को कुसीदिन कहा गया है।
पुरुषार्थ-मनुष्य के भौतिक सुख एवं आध्यात्मिक सुखों के मध्य सामंजस्य हेतु
1. धर्म- न्याय, सद्गुण, नैतिकता, कर्तव्य पालन
2. अर्थ- अर्थ (धन) की प्राप्ति और मर्यादा से उपभोग
3. काम- धर्माचरण एवं सृष्टि के विकास हेतु सन्तानोत्पत्ति
4. मोक्ष- जीवन चक्र से मुक्ति
• शतपथ ब्राह्मण में 12 प्रकार के रलियों का विवरण मिलता है।
• पुनर्जन्म का सिद्धांत सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मण में दिखाई देता है।
• ऋग्वेद में राजा के दैवी अधिकारों की पुरु द्वारा घोषणा ‘मैं इन्द्र हूँ’, ‘मैं वरुण हूँ’।
• तैत्तिरीय उपनिषद् में प्रजापति द्वारा इन्द्र को राजा नियुक्त किये जाने की चर्चा।
• सुनियोजित रूप में ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में ‘राजत्व का सिद्धांत’ मिलता है। देवताओं द्वारा निरंतर पराजय के पश्चात् सोम को राजा नियुक्त कर तथा उनके नेतृत्व में जीतना।
• राजा की शक्ति में वृद्धि एवं राजपद वंशानुगत हुआ।
• ‘शतपथ ब्राह्मण’ में ‘राजा के निर्वाचन’ की चर्चा, निर्वाचित राजा ‘विशपति’ कहलाते थे।
• ‘शतपथ ब्राह्मण’ में अत्याचारी शासक दुष्टहीतु पौसायन को सृजन द्वारा सिंहासनाच्युत किये जाने की जानकारी देता है।
• ‘ताण्ड्य ब्राह्मण’ में प्रजा द्वारा राजा के विनाश के लिए एक विशेष यज्ञ किये जाने का उल्लेख है।
• ‘शतपथ ब्राह्मण’ में अब राजा को ‘राष्ट्रिक’ कहा जाने लगा जो निरंकुशता पूर्वक प्रजा की संपत्ति का उपभोग करता था।
‘शतपथ ब्राह्मण’ में राजा को ‘विषमता’ (जनता का भक्षक) कहा गया है।
• ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में राजा को उत्तर में ‘विराट’, दक्षिण में ‘भोज’, पूर्व में ‘सम्राट’ और पश्चिम में ‘स्वराट’ कहा जाता था।
• उत्तर वैदिक काल में तीन आश्रम – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ एवं वानप्रस्थ होता था। परन्तु कालान्तर में संन्यास नाम से चौथा आश्रम भी इस व्यवस्था का अंग बन गया।
• चार आश्रम व्यवस्था बुद्ध काल एवं सूत्रकाल में स्थापित हुई।
• यम और नचिकेता और उनके बीच तीन वर प्राप्त करने की कहानी कठोपनिषद् में वर्णित है।
• छंदोग्य उपनिषद् में ‘इतिहास पुराण’ को स्पष्ट रूप से ‘पंचम वेद’ कहा गया है।
• अथर्ववेद में मवेशियों की वृद्धि के लिए प्रार्थना की गई है।
• उत्तर वैदिक काल में गोत्र व्यवस्था स्थापित हुई।
• उत्तर वैदिक काल में ही मूर्ति पूजा का आरंभ हुआ।
• अथर्ववेद में सभा तथा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।
• जाबालोपनिषद् में प्रथम बार चारों आश्रम की चर्चा हुई है।
• ऐतरेय ब्राह्मण द्वारा बहुविवाह के प्रचलन का संकेत मिलता है।
• विधवा विवाह का प्रचलन – तैत्तिरीय संहिता में मिलता है।
• विधवा पुत्र को ‘देधिपत्य’ कहा जाता था।
• शतपथ ब्राह्मण में कृषि की समस्त प्रक्रिया का वर्णन मिलता है।
• काठक संहिता में 24 बैलों द्वारा खींचे जाने वाले हलों का उल्लेख मिलता है।
• उत्तर वैदिक काल में वेद विरोधी और ब्राह्मण विरोधी धार्मिक अध्यापकों को ‘श्रमण’ नाम से जाना जाता था।
• अथर्वदेव के अनुसार राजा को आय का 16वाँ भाग मिलता था।
• शतपथ ब्राह्मण में एक स्थान पर क्षत्रियों को ब्राह्मणों से श्रेष्ठ बताया गया है।
• अथर्ववेद में सिंचाई के साधन के रूप में वर्णाकूप और नहर (कूल्या) का उल्लेख मिलता है।
• अथर्ववेद में परीक्षित को मृत्युलोक का देवता बताया गया है।
• छांदोग्य उपनिषद् में एक दुर्भिक्ष का उल्लेख मिलता है।
सिन्धु एवं वैदिक सभ्यता में अंतर
वैदिक सभ्यता | सिन्धु सभ्यता |
1. ग्रामीण सभ्यता थी। | 1. नगरीय सभ्यता थी। |
2. लोहे से बने उपकरण प्राप्त हुए हैं। | 2. लोहे से बने उपकरण प्राप्त नहीं हुए हैं। |
3. घोड़ा एक महत्त्वपूर्ण पशु था। | 3. घोड़े के निश्चित साक्ष्य नहीं मिले हैं। |
4. गाय को विशेष स्थान प्राप्त था। | 4. मुद्राओं पर गाय का अंकन नहीं है। |
5. मूर्ति पूजा के निशिचित साक्ष्य नहीं मिले हैं। | 5. मृण्मूर्तियों एवं पाषाण मूर्ति से पता चलता है कि मूर्ति पूजा होती होगी। |
6. आर्य अस्त्र-शस्त्र तथा कवच जैसे उपकरण बनाना जानते थे। | 6. रक्षा उपकरण जैसी वस्तुएं प्राप्त नहीं हुई हैं। |
7. व्याघ्र का उल्लेख नहीं मिलता। हाथी का उल्लेख भी कम ही मिलता है। | 7. मुहरों पर व्याघ्र एवं हाथी का अंकन पर्याप्त मात्रा में है। |
8. वैदिक धर्म पुरुष देवता प्रधान था। | 8. मातृदेवी की पूजा का प्रचलन ज्यादा था। |
सोलह संस्कार
जन्म से मृत्यु तक व्यक्ति के 16 महत्वपूर्ण संस्कार
1. गर्भाधान | संतान की प्राप्ति के लिए |
2. पुंसवन | पुत्र प्राप्ति के लिए |
3. सीमान्तोन्नयन | गर्भ में संतान की रक्षा के लिए |
4. जातकर्म | बच्चे के उत्पन्न होने पर किया जाने वाला संस्कार |
5. नामकरण | नाम रखा जाने वाला संस्कार |
6. निष्क्रमण | पहली बार घर से निकलना |
7. अन्नप्राशन | नवजात शिशु को भोजन के रूप में अन्न देने का प्रारंभ |
8. चूड़ाकर्म | मुण्डन संस्कार |
9. कर्णछेदन | कान में छेद करना |
10. विद्यारंभ | शिक्षा प्रारंभ |
11. उपनयन | यज्ञोपवीत धारण |
12. वेदारंभ | वेद का अध्ययन प्रारंभ |
13. केशान्त | केश का अंत अर्थात् मुण्डन |
14. समावर्त्तन | शिक्षा की समाप्ति पर |
15. विवाह | शादी के समय संस्कार |
16. अन्त्येष्टि | दाह-संस्कार |
रत्निन (पदाधिकारी)
1. राजा
2. सेनानी – सेनापति
3. पुरोहित – मंत्री
4. युवराज – राजा का बड़ा बेटा
5. महिषी – पटरानी
6. सूत – सारथी
7. ग्रामणी – गांव का मुखिया
8. क्षतृ – प्रतिहारी
9. संग्रहीता – कोषाध्यक्ष (खजाँची)
10. भागधुग – कर संग्रहकर्ता (अर्थमंत्री)
11. अक्षवाप – पासे के खेल में राजा का सहयोगी
12. पालागल – राजा का मित्र और विदूषक का पूर्वज
प्रमुख दर्शन एवं रचयिता
दर्शन | रचयिता/प्रवर्तक |
सांख्य | कपिल |
योग | पतंजलि (योग सूत्र) |
न्याय | गौतम (न्याय सूत्र) |
पूर्व मीमांसा | जैमिनी |
उत्तर मीमांसा (वेदान्त) | बादरायण (ब्रह्म सूत्र) |
वैशेषिक | कणाद या उलूक |
चार्वाक | चार्वाक |
तीन ऋण
1. ऋषि ऋण – प्राचीन ज्ञान, विज्ञान व साहित्य के प्रति कर्तव्य
2. पितृ ऋण – पूर्वजों के प्रति कर्तव्य
3. देव ऋण – देवताओं व भौतिक शक्तियों के प्रति दायित्व
ऋषि और मंडल
गृत्समद् | द्वितीय मंडल |
विश्वामित्र | तृतीय मंडल |
वामदेव | चतुर्थ मंडल |
वशिष्ठ | पंचम मंडल |
भारद्वाज | षष्ठ मंडल |
अत्रि | सप्तम मंडल |
पंच महायज्ञ
यज्ञ | उद्देश्य |
1. भूतयज्ञ | जीवधारियों का पालन |
2. अतिथि यज्ञ या नृयज्ञ | अतिथियों की सेवा |
3. ब्रह्म यज्ञ या ऋषि यज्ञ | स्वाध्याय के लिए |
4. देव यज्ञ | अग्नि में हवन के द्वारा देवता को प्रसन्न करने के लिए |
5. पितृ यज्ञ | पितरों का तर्पण या संतानोत्पत्ति के निमित्त |
राजाओं हेतु यज्ञ
1. राजसूय यज्ञ : राज्याभिषेक के समय यह याज्ञिक अनुष्ठान किया जाता था। जिससे प्रजा में विश्वास उत्पन्न होता था कि उसके राजा को दिव्य शक्ति प्राप्त है।
2. अश्वमेध यज्ञ : राज्य विस्तार हेतु घोड़े को छोड़कर दिग्विजयी होने का प्रतीक।
3. वाजपेय यज्ञ : रथों की दौड़ का आयोजन राजा की श्रेष्ठता का प्रतीक।
4. अग्निष्टोम यज्ञ : इसमें सात्विक जीवन व्यतीत करते हुए जन कल्याण हेतु अग्नि को पशुबलि दी जाती थी।
ऐतरेय ब्राह्मण में वर्णित शासन प्रणाली
पूर्व | साम्राज्य-सम्राट |
पश्चिम | स्वराज-स्वराट |
उत्तर | वैराज्य-विराट |
दक्षिण | भोज्य-भोज |
मध्यदेश | राज्य-राजा |
विवाह के प्रकार
1. ब्रह्म विवाह : लड़की का पिता अपनी इच्छा से अपनी पुत्री को किसी उपयुक्त पति को बिना कुछ प्रतिफल लिए देने का प्रस्ताव करता था।
2. दैव विवाह : पिता अपनी पुत्री पुरोहित को ब्याहते थे।
3. आर्ष विवाह : विवाह करने वाला पुरुष कन्या के पिता के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए, न कि प्रतिफल के रूप में, उसे बैलों की एक जोड़ी देता था।
4. प्रजापत्य विवाह : विवाह का प्रस्ताव विवाहार्थी की ओर से आता था ।
5. असुर विवाह : विवाहार्थी पुरुष की ओर से लड़की के पिता को नकद या वस्तुओं के रूप में प्रतिफल दिया जाता था। यह प्रतिफल विवाह के बाद पति को लौटा दिया जाता था।
6. गंधर्व विवाह : प्रेम विवाह, माता-पिता की अनुमति नहीं।
7. राक्षस विवाह : कन्या का अपहरण कर विवाह करना।
8. पैशाच विवाह : कन्या से बलात्कार कर उससे विवाह।
नोट : असुर विवाह केवल वैश्य व शूद्र में । • गंधर्व विवाह केवल क्षत्रियों में । •राक्षस विवाह क्षत्रियों के लिए विहित । •राक्षस और पैशाच विवाह निंदनीय। •ब्राह्मणों के लिए सिर्फ प्रथम चार विवाह ही विहित ।
यह भी पढ़ें: हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी
निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट वैदिक सभ्यता जरुर अच्छी लगी होगी। वैदिक सभ्यता के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में उदाहरण देकर समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
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