बल तथा गति के नियम : अध्याय 8


पिछले अध्याय में हमने एक सरल रेखा में वस्तु की स्थिति, वेग तथा त्वरण के आधार पर वस्तु की गति का वर्णन किया। हमने देखा कि ऐसी गति में कभी एकरूपता होती है तथा कभी नहीं। लेकिन अभी हमने ये चर्चा नहीं की कि गति का कारण क्या होता है। समय के साथ वस्तु की चाल क्यों बदलती है? क्या सभी प्रकार की गतियों का कोई कारण होता है? यदि ऐसा है, तो इस कारण का स्वभाव क्या है? इस अध्याय में हम ऐसी ही सभी जिज्ञासाओं को बुझाएँगे।

सदियों से गति और इसके कारणों ने वैज्ञानिकों और दार्शनिकों को उलझा रखा था। फ़र्श पर रखी एक गेंद को धीमे से ठोकर लगाने पर वह हमेशा के लिए गतिशील नहीं रहती। ऐसी परिस्थितियों से यह पता चलता है कि किसी वस्तु की विराम की अवस्था ही उसकी स्वाभाविक अवस्था है। ऐसी मान्यता तब तक बनी रही जब तक कि गैलीलियो और आइजक न्यूटन ने वस्तुओं की गति के बारे में एक पूर्णतः भिन्न संकल्पना प्रस्तुत की।

अपने प्रतिदिन के जीवन में हम देखते हैं कि एक स्थिर वस्तु को गति देने के लिए या गतिशील वस्तु को रोकने के लिए हमें कुछ प्रयास करना पड़ता है। सामान्य भाषा में इसके लिए हमें शारीरिक प्रयास करना पड़ता है तथा हम कहते हैं कि किसी वस्तु को गति की अवस्था में लाने के लिए हमें उसे खींचना, धकेलना या ठोकर लगाना पड़ता है। खींचने, धकेलने या ठोकर लगाने की इसी क्रिया पर बल की अवधारणा आधारित है। अब हम बल के विषय में विचार करते हैं। यह क्या है? वास्तव में बल को न तो किसी ने देखा है, न चखा है और न ही महसूस किया है। हालाँकि बल का प्रभाव हम प्रायः देखते या महसूस करते हैं। किसी वस्तु पर बल लगाने पर क्या होता है, यह जानकर हम बल की व्याख्या कर सकते हैं। वस्तु को खींचना, धकेलना या ठोकर लगाना, ये सभी क्रियाएँ वस्तु को गति देने की युक्तियाँ हैं (चित्र 8.1)। हमारे द्वारा किसी तरह का बल लगाने पर ही उनमें गति होती है।

पिछली कक्षाओं में अर्जित ज्ञान के आधार पर आप इस बात से परिचित हैं कि किसी वस्तु में वेग का परिमाण बदलने (अर्थात् वस्तु की गति को तेज या धीमी करने) के लिए या उसकी गति की दिशा बदलने के लिए बल का प्रयोग होता है। आप यह भी जानते हैं कि किसी बल के प्रयोग द्वारा वस्तु का आकार या आकृति भी बदली जा सकती है (चित्र 8.2)।

8.1 संतुलित और असंतुलित बल

चित्र 8.3 में लकड़ी का एक पिंड एक समतल मेज पर रखा है। चित्र में दर्शाए अनुसार, दो धागे X और Y पिंड के विपरीत सिरों से जुड़े हैं। अगर हम किसी बल द्वारा धागे x को खींचते हैं, तो पिंड दाहिनी ओर खिसकना शुरू करता है। उसी प्रकार अगर हम धागे Y को खींचते हैं, तो पिंड बाईं ओर खिसकना शुरू करता है। लेकिन अगर पिंड को दोनों ओर से समान बल द्वारा खींचा जाता है, तो ऐसी दशा में पिंड गति नहीं करता। इस तरह के बलों को संतुलित बल कहते हैं तथा यह गति की अवस्था को परिवर्तित नहीं करता। अब एक ऐसी अवस्था की कल्पना करें, जिसमें भिन्न परिमाण के दो विपरीत बल पिंड को खींचते हैं। इस अवस्था में, पिंड अधिक बल वाली दिशा में खिसकना शुरू करेगा। इस प्रकार दोनों बल संतुलित नहीं हैं और असंतुलित बल पिंड के खिसकने की दिशा में कार्य करता है। इससे यह पता चलता है कि किसी भी पिंड पर लगने वाला असंतुलित बल उसे गति प्रदान करता है।

क्या होता है जब कुछ बच्चे एक बक्से को खुरदरे फ़र्श पर धकेलने की कोशिश करते हैं? यदि वे कम बल के साथ बक्से को धकेलते हैं, तो बक्सा नहीं खिसकता है, क्योंकि घर्षण बल धकेलने की विपरीत दिशा में काम कर रहा है [चित्र 8.4.(a)]। यह घर्षण बल दोनों संपर्क सतहों के बीच में उत्पन्न होता है अर्थात् बक्से के नीचे की सतह तथा फ़र्श की खुरदरी सतह के बीच। यह घर्षण बल, धकेलने में लगे बल को संतुलित करता है और यही कारण है कि बक्सा नहीं खिसकता है। चित्र 8.4 (b) में बच्चे बक्से को ज़ोर से धकेलते हैं लेकिन बक्सा फिर भी नहीं खिसकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि घर्षण बल अभी भी धकेलने वाले बल को संतुलित कर रहा है। अगर बच्चे बक्से को ज़्यादा ज़ोर से धकेलते हैं तब धकेलने वाला बल घर्षण बल से अधिक हो जाता है [चित्र 8.4(c)]। यहाँ असंतुलित बल कार्य करता है, इसलिए बक्सा खिसकने लगता है।

जब हम साइकिल चलाते हैं, तो क्या होता है? पैडल चलाना बंद करने पर साइकिल की गति धीमी होने लगती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि घर्षण बल गति की दिशा के विपरीत दिशा में कार्य करता है। साइकिल को गति में रखने के लिए हमें फिर से पैडल चलाना पड़ता है। इस अवस्था में ऐसा प्रतीत होता है कि किसी वस्तु को सतत् गतिशील बनाए रखने के लिए एक असंतुलित बल की आवश्यकता है। तथापि वह बिलकुल गलत है। कोई वस्तु समान वेग के साथ केवल तभी गतिशील रह सकती है, जब उस पर लगने वाला बल (बाह्य तथा घर्षण) संतुलित होते हैं तथा वस्तु पर कोई नेट बाह्य बल कार्य नहीं करता है। अगर किसी वस्तु पर असंतुलित बल लगाया जाता है, तो उसके वेग में परिवर्तन या उसकी दिशा में परिवर्तन होता है। इस प्रकार किसी वस्तु को त्वरित करने के लिए एक असंतुलित बल की आवश्यकता होती है और उसकी गति या गति की दिशा में तब तक परिवर्तन होता रहेगा जब तक यह संतुलित बल उस पर कार्य करता रहेगा। तथापि, यह बल हटा लेने पर, वस्तु प्राप्त हुए वेग से गतिमान रहेगी।

8.2 गति का प्रथम नियम

वस्तुओं की किसी आनत तल पर गति को देखकर गैलीलियो ने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक कोई बाह्य बल कार्य नहीं करता, वस्तुएँ एक निश्चित गति से चलती हैं। उन्होंने देखा कि काँच की गोली आनत तल पर लुढ़कती है तो उसका वेग बढ़ जाता है [चित्र 8.4(a)]। अगले अध्याय में आप पढ़ेंगे कि गोली असंतुलित गुरुत्वीय बल के कारण नीचे गिरती है और नीचे पहुँचते-पहुँचते यह एक निश्चित वेग प्राप्त कर लेती है। चित्र 8.5(b) में दर्शाए अनुसार, जब यह काँच की गोली ऊपर की ओर चढ़ती है तब इसका वेग घटता है। चित्र 8.5 (c) में दोनों ओर से एक आदर्श घर्षणरहित आनत तल पर एक गोली स्थिर है। गैलीलियो ने तर्क दिया कि जब गोली को बाईं ओर से छोड़ा जाता है तब यह ढाल पर नीचे की ओर लुढ़केगी तथा दाईं ओर के आनत तल पर उतनी ही ऊँचाई तक जाएगी, जितनी ऊँचाई से उसे छोड़ा गया था। यदि दोनों ओर के तलों के झुकाव समान हैं तो गोली उतनी ही दूरी चढ़ेगी जितनी दूर तक कि वह लुढ़की थी। अगर दाईं ओर के आनत तल के कोण को धीरे-धीरे कम किया जाए तो गोली को मूल ऊँचाई प्राप्त करने के लिए अधिक दूरी तय करनी होगी। अगर इस तल को क्षैतिज कर दिया जाए (अर्थात् ढाल को शून्य कर दिया जाए) तो गोली मूल ऊँचाई प्राप्त करने के लिए क्षैतिज तल पर लगातार चलती ही रहेगी। यहाँ गोली पर लगने वाला असंतुलित बल शून्य है। इस प्रकार यह ज्ञात होता है कि गोली की गति को बदलने के लिए एक असंतुलित बाह्य बल की आवश्यकता होती है लेकिन गोली की गति को एकरूप बनाए रखने के लिए किसी नेट बल की आवश्यकता नहीं होती है। वास्तविक अवस्था में शून्य असंतुलित बाह्य बल प्राप्त करना कठिन है। ऐसा गति की विपरीत दिशा में लगने वाले घर्षण बल के कारण होता है। इस प्रकार व्यवहार में गोली कुछ दूर चलने के बाद रुक जाती है। घर्षण के प्रभाव को न्यूनतम करने के लिए चिकनी काँच की गोली तथा चिकने समतल का प्रयोग एवं समतल की सतह पर चिकनाईयुक्त पदार्थ (लुब्रीकेंट) का लेप किया जाता है।

न्यूटन ने बल एवं गति के बारे में गैलीलियो के विचारों को आगे विकसित किया। उन्होंने तीन मौलिक नियमों को प्रस्तुत किया जो किसी वस्तु की गति को वर्णित करते हैं। इन नियमों को न्यूटन के गति के नियमों के नाम से जाना जाता है। गति का प्रथम नियम इस प्रकार है:

प्रत्येक वस्तु अपनी स्थिर अवस्था या सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में बनी रहती है जब तक कि उस पर कोई बाहरी बल कार्यरत न हो।

दूसरे शब्दों में, सभी वस्तुएँ अपनी गति की अबस्था में परिवर्तन का विरोध करती हैं। गुणात्मक रूप में किसी वस्तु के विरामावस्था में रहने या समान वेग से गतिशील रहने की प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं। यही कारण है कि गति के पहले नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।

किसी मोटर गाड़ी में यात्रा करते समय होने वाले अनुभवों की व्याख्या जड़त्व के नियम द्वारा की जा सकती है। सीट के सापेक्ष हम तब तक विरामावस्था में रहते हैं जब तक कि मोटरगाड़ी को रोकने के लिए ब्रेक न लगाई जाए। ब्रेक लगाए जाने पर गाड़ी के साथ सीट भी विरामावस्था में आ जाती है, परंतु हमारा शरीर जड़त्व के कारण गतिज अवस्था में ही बने रहने की प्रवृत्ति रखता है। अचानक ब्रेक लगने पर सीट के आगे लगे पैनल से टकराकर हम घायल भी हो सकते हैं। इस तरह की दुर्घटनाओं से बचने के लिए सुरक्षा बेल्ट का उपयोग किया जाता है। ये सुरक्षा बेल्ट हमारे आगे बढ़ने की गति को धीमा करती है। इसके विपरीत अनुभव हमें तब होता है जब हम मोटर बस में खड़े होते हैं एवं मोटर बस अचानक चल पड़ती है। इस स्थिति में हम पीछे की ओर झुक जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि मोटर बस के अचानक गति में आ जाने से हमारा पैर, जो मोटर बस के फर्श के संपर्क में रहता है, गति में आ जाता है। परंतु शरीर का ऊपरी भाग जड़त्व के कारण इस गति का विरोध करता है।

जब कोई मोटरकार तीव्र गति के साथ किसी तीक्ष्ण मोड़ पर मुड़ती है तो हम एक ओर झुकने लगते हैं। इसे भी जड़त्व के नियम से समझा जा सकता है। हमारा शरीर अपनी एक सरल रेखीय गति को बनाए रखना चाहता है। जब मोटर कार की दिशा को बदलने के लिए इंजन द्वारा एक असंतुलित बल लगाया जाता है तब हम अपने शरीर के जड़त्व के कारण सीट पर एक ओर झुक जाते हैं।

एक वस्तु तब तक अपनी विरामावस्था में रहेगी जब तक कि उस पर कोई असंतुलित बल नहीं लगा है। इसे निम्न गतिविधि द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।

गैलीलियो गैलिली का जीवन परिचय

गैलीलियो गैलिली का जन्म 15 फरवरी सन् 1564 में इटली के पीसा शहर में हुआ था। गैलीलियो की बचपन से ही गणित तथा प्राकृतिक दर्शन में रुचि थी। परंतु पिता विनेंजो गैलिली, उन्हें एक चिकित्सक बनाना चाहते थे। तदनुसार गैलीलियो ने सन् 1581 में चिकित्सा उपाधि के लिए पीसा विश्वविद्यालय में नामांकन लिया। इस पाठ्यक्रम को वे कभी पूरा नहीं कर पाए क्योंकि उनकी वास्तविक रुचि गणित में थी। सन् 1586 में उन्होंने अपनी प्रथम वैज्ञानिकी पुस्तक ‘द लिटिल बैलेंस’ (ला वैलेंसिटा) लिखी, जिसमें उन्होंने एक तुला द्वारा पदार्थों के आपेक्षिक घनत्व (अथवा विशिष्ट गुरुत्व) प्राप्त करने की आर्कीमिडीज़ की विधि का वर्णन किया। सन् 1589 में उन्होंने अपनी निबंध श्रेणी ‘डी मौट्’ में नत समतल के प्रयोग से, किसी गिरती हुई वस्तु के गिरने की दर कम होने संबंधी अपने सिद्धांत को प्रस्तुत किया।

सन् 1592 में उन्हें वेनिस गणराज्य के पाडुआ विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर पद पर नियुक्त किया गया था। यहाँ भी उन्होंने लगातार गतिज सिद्धांतों पर प्रेक्षण किया। उन्होंने नत समतल तथा लोलक संबंधी अपने अध्ययन द्वारा नियत त्वरण से गतिशील वस्तुओं से संबंधित परिष्कृत नियम प्रतिपादित किया।

गैलीलियो एक कुशल शिल्पकार भी थे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के दूरदर्शियों की श्रेणी विकसित की जिनकी प्रकाशिक दक्षता उस समय उपलब्ध दूरदर्शियों से काफी उत्तम थी। सन् 1640 के आस-पास उन्होंने प्रथम लोलक घड़ी की संरचना की। उनके खगोलीय आविष्कारों की एक पुस्तक ‘स्टारी मैसेंजर’ में गैलीलियो ने चंद्रमा पर पहाड़ों, छोटे-छोटे सितारों से मिलकर बनी आकाशगंगा तथा बृहस्पति ग्रह के परितः चार छोटे पिंडों को घूमते हुए देखने का दावा किया। उन्होंने अपनी पुस्तकों ‘डिस्कोर्स ऑन फ्लोटिंग बॉडीज़’ तथा ‘लेटर्स ऑन दि सन स्पॉट’ में सूर्य पर उपस्थित धब्बों के संदर्भ में अपने प्रेक्षणों का रहस्योद्घाटन किया।

अपने स्वयं के द्वारा निर्मित दूरदर्शियों के प्रयोग द्वारा शनि तथा शुक्र ग्रह के निरीक्षण से गैलीलियो ने यह तर्क दिया कि सभी ग्रह सूर्य के परितः ही कक्षीय गति करते हैं न कि पृथ्वी के परितः यह विचार उस समय प्रचलित विचारधारा के विपरीत था।

क्रियाकलाप 8.1

• चित्र 8.6 में दर्शाए अनुसार एक ही तरह की कैरम की गोटियों को एक के ऊपर एक रखकर ढेरी बनाएँ।

• एक अन्य गोटी (या स्ट्राइकर) को अपनी अंगुलियों से तीव्रता से क्षैतिज झटका देकर ढेरी की सबसे नीचे वाली गोटी पर टकराइए। यदि आप गोटी को पर्याप्त तीव्रता से टकराते हैं तो आप देखेंगे कि केवल नीचे वाली गोटी ही शीघ्रता से ढेरी से बाहर आती है। नीचे वाली गोटी के बाहर आ जाने के बाद शेष गोटियाँ अपने जड़त्व के कारण लंबवत् दिशा में नीचे की ओर ‘गिर’ जाती हैं।

क्रियाकलाप  8.2

• काँच के एक खाली गिलास के ऊपर एक कड़े ताश का पत्ता रखें।

• अब चित्र 8.7 में दर्शाए अनुसार पत्ते के ऊपर पाँच रुपये का एक सिक्का रखें। पत्ते को अंगुलियों से तीव्र क्षैतिज झटका दें।

• आप पाएँगे कि पत्ता आगे खिसक जाता है तथा सिक्का अपने जड़त्व के कारण नीचे की ओर गिलास में गिर जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पत्ते के हटने के बाद भी सिक्का अपनी विरामावस्था को बनाए रखना चाहता है।

क्रियाकलाप 8.3

• पानी से भरा गिलास किसी ट्रे पर रखिए। ट्रे को हाथ से पकड़कर जितनी तेजी से हो सके, घूम जाइए।

• हम देखते हैं कि गिलास लुढ़क जाता है और पानी छलक जाता है, क्यों?

क्या आप अब समझे कि प्लेट में कप को रखने के लिए खाँचा क्यों बना होता है? अचानक झटका लगने की दशा में, प्लेट का खाँचा कप को गिरने से रोकता है।

8.3 जड़त्व तथा द्रव्यमान

अभी तक दिए सभी उदाहरणों और गतिविधियों से ज्ञात होता है कि प्रत्येक वस्तु अपनी गति की अवस्था में परिर्वतन का विरोध करती है। चाहे वह विरामावस्था में हो या गतिशील, वह अपनी मूल अवस्था को बनाए रखना चाहती है। वस्तु का यह गुण उसका जड़त्व कहलाता है। क्या सभी वस्तुओं का जड़त्व समान होता है? हम जानते हैं कि पुस्तकों से भरे बक्से को धक्का देने की अपेक्षा खाली बक्से को धक्का देना आसान होता है। उसी प्रकार हम एक फुटबॉल को किक लगाते हैं तो वह दूर चली जाती है जबकि अगर हम उतने ही बल से किसी उतने ही बड़े पत्थर पर किक लगाएँ, तो हो सकता है कि वह खिसके भी नहीं। हो सकता है कि ऐसा करते समय हमें ही चोट लग जाए। क्रियाकलाप 8.2 में हम पाँच रुपये के सिक्के के स्थान पर यदि कम द्रव्यमान कि सिक्के का प्रयोग करते हैं तो हम पाते हैं कि उसी क्रिया को करने में हमें कम बल की आवश्यकता होती है। एक ठेलागाड़ी को चलाने के लिए जितने बल की आवश्यकता होती है, उतना बल यदि किसी रेलगाड़ी पर लगाया जाए तो उसकी गति में न के बराबर परिवर्तन होगा क्योंकि ठेलागाड़ी की तुलना में रेलगाड़ी अपनी गति में कम परिवर्तन चाहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि रेलगाड़ी का जड़त्व ठेलागाड़ी से अधिक है। इससे स्पष्ट है कि भारी वस्तुओं का जड़त्व अधिक होता है। मात्रात्मक रूप से, किसी वस्तु का जड़त्व उसके द्रव्यमान से मापा जाता है। अतः हम जड़त्व और द्रव्यमान को निम्न रूप में परिभाषित कर सकते हैं:

किसी भी वस्तु का जड़त्व उसका वह प्राकृतिक गुण है, जो उसकी विराम या गति की अवस्था में परिवर्तन का विरोध करता है। इस प्रकार किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप है।

8.4 गति का द्वितीय नियम

गति का प्रथम नियम यह बताता है कि जब कोई असंतुलित बाह्य बल किसी वस्तु पर कार्य करता है तो उसके वेग में परिवर्तन होता है अर्थात् वस्तु त्वरण प्राप्त करती है। अब हम देखेंगे कि किसी वस्तु का त्वरण उस पर लगाए गए बल पर कैसे निर्भर होता है तथा उस बल को हम कैसे मापते हैं। आइए कुछ दैनिक अनुभवों का अध्ययन करें। टेबल टेनिस खेलने के दौरान यदि गेंद किसी खिलाड़ी के शरीर से टकराती है, तो वह घायल नहीं होता। गति से आती हुई क्रिकेट की गेंद किसी दर्शक को लगने के बाद उसे घायल कर सकती है। सड़क के किनारे खड़े किसी ट्रक से कोई दुर्घटना नहीं होती। परंतु 5 m/s जैसी कम गति से चलते हुए ट्रक से टक्कर, रास्ते में खड़े किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकती है। एक छोटे द्रव्यमान की वस्तु जैसे गोली को अगर बंदूक से तीव्र वेग से छोड़ा जाए तो वह भी किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकती है। इससे पता चलता है कि वस्तु के द्वारा उत्पन्न प्रभाव वस्तु के द्रव्यमान एवं वेग पर निर्भर करता है। इसी प्रकार यदि किसी वस्तु को त्वरित किया जाता है, तो अधिक वेग प्राप्त करने के लिए अधिक बल की आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि वस्तु के द्रव्यमान एवं वेग से संबंधित एक महत्वपूर्ण राशि होती है। संवेग नामक इस राशि को न्यूटन ने प्रस्तुत किया था। किसी वस्तु का संवेग p उसके द्रव्यमान m और वेग के गुणनफल से परिभाषित किया जाता है।

p=mv (8.1)

संवेग में परिमाण और दिशा दोनों होते हैं। इसकी दिशा वही होती है, जो वेग की होती है। संवेग का SI मात्रक किलोग्राम मीटर/सेकंड (kg m/s) होता है। चूँकि किसी असंतुलित बल के प्रयोग से उस वस्तु के वेग में परिर्वतन होता है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि बल ही संवेग को भी परिवर्तित करता है।

एक ऐसी अवस्था के बारे में विचार करें जिसमें खराब बैट्री वाली एक कार को सीधी सड़क पर 1 m/s की गति प्रदान करने के लिए धक्का दिया जाता है, जो कि उसके इंजन को स्टार्ट करने के लिए पर्याप्त है। यदि एक या दो व्यक्ति इसे अचानक धक्का देते हैं तो भी यह स्टार्ट नहीं होती। लेकिन कुछ समय तक लगातार धक्का देने से कार उस गति पर आ जाती है। इससे स्पष्ट है कि कार के संवेग में परिवर्तन केवल बल के परिमाण से नहीं होता है, बल्कि उस समय से है जितने समय तक उस पर बल लगाया जाता है। इससे यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वस्तु के संवेग में परिवर्तन लाने में लगने वाला बल उसकी उस समय दर पर निर्भर करता है, जिसमें कि संवेग में परिवर्तन होता है।

गति का द्वितीय नियम यह बताता है कि किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस पर लगने वाले असंतुलित बल की दिशा में बल के समानुपातिक होती है।

8.4.1 गति के द्वितीय नियम की गणितीय गणना

माना कि m द्रव्यमान की कोई वस्तु य प्रारंभिक वेग से सीधी रेखा में चल रही है। t समय तक एक निश्चित बल F लगाने पर उस वस्तु का वेग v हो जाता है। तब इसका प्रारंभिक और अंतिम संवेग क्रमशः, p₁ = mu और p₂ = mv होंगे।
संवेग में परिवर्तन ∝ p₂ – p₁
                       ∝  mv-mu
                       ∝ m × (v-u)
संवेग में परिवर्तन की दर   ∝ m × (v-u)/t
या लगाया गया बल, F ∝ m ×(v-u)/ t
F= km × (v-u)/t        (8.2)
= k m a                       (8.3)
यहाँ a [= (v-u)/t] वेग में परिवर्तन की दर अर्थात् त्वरण है। k एक आनुपातिकता स्थिरांक है। द्रव्यमान और त्वरण के SI मात्रक क्रमशः kg और ms² हैं। हम बल का मात्रक इस प्रकार लेते हैं कि स्थिरांक k का मान एक हो जाता है। इस इकाई बल को उस मात्रा के रूप में परिभाषित करते हैं, 1 kg द्रव्यमान वाली किसी वस्तु में 1ms² का त्वरण उत्पन्न करती है, अर्थात् 1 इकाई बल = k (1g) x (1 m s²) 1 इस प्रकार k का मान एक हो जाता है। समीकरण (8.3) से,

F = ma (8.4)

बल का मात्रक kg m/s² है, इसे न्यूटन (आइजक न्यूटन के नाम पर) भी कहते हैं, जिसे N द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। गति के द्वितीय नियम से हमें किसी वस्तु पर लगने वाले बल को मापने की विधि मिलती है। बल को उस वस्तु में उत्पन्न त्वरण तथा वस्तु के द्रव्यमान के गुणनफल से प्राप्त किया जाता है।

गति के द्वितीय नियम का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में प्रायः देखते हैं। क्या आपने क्रिकेट मैच के दौरान मैदान में क्षेत्ररक्षक को तेज गति से आ रही गेंद को लपकते समय हाथ को पीछे की ओर खींचते देखा है? इस प्रकार से क्षेत्ररक्षक गेंद के वेग को शून्य करने में अधिक समय लगाता है। इस प्रकार गेंद में संवेग परिवर्तन की दर कम हो जाती है। इस कारण तेज़ गति से आ रही गेंद का प्रभाव हाथ पर कम पड़ता है। अगर गेंद को अचानक रोका जाता है तो तीव्र गति से आ रही गेंद का वेग बहुत कम समय में शून्य होता है अर्थात् गेंद के संवेग में परिवर्तन की दर अधिक होगी, इसलिए कैच लपकने में अधिक बल लगाना होगा जिससे हो सकता है कि खिलाड़ी की हथेली में चोट लग जाए। ऊँची कूद वाले मैदान में, खिलाड़ियों को कुशन या बालू पर कूदना होता है। ऐसा खिलाड़ियों के छलाँग लगाने के बाद गिरने के समय को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस स्थिति में संवेग में परिवर्तन की दर कम होती है। सोचो कि कैसे कराटे का एक खिलाड़ी एक ही झटके में बर्फ़ की एक सिल्ली को तोड़ देता है!

गति के द्वितीय नियम के गणितीय सूत्र [समीकरण (8.4)] के उपयोग से गति के प्रथम नियम को गणितीय रूप से प्राप्त किया जा सकता है। समीकरण (8.4) से,
F = ma
या F = m(v-u) t
या Ft = mv-mu       (8.5)

अर्थात् जब F = 0, तो किसी भी समय । पर, v = u इसका अर्थ यह है कि वस्तु समान वेग से चलती रहेगी। यदि य शून्य है तो भी शून्य होगा अर्थात् वस्तु विरामावस्था में ही रहेगी।

उदाहरण 8.1 एक 5 kg द्रव्यमान वाली वस्तु पर 2s के लिए एक नियत बल कार्यरत होता है। यह वस्तु के वेग को 3 m/s से बढ़ा कर 7 m/s कर देता है। लगाए गए बल की मात्रा ज्ञात करें। यदि इस बल को 5s के लिए आरोपित किया जाए, तो वस्तु का अंतिम वेग क्या होगा?
हल:
हमें ज्ञात है: u = 3 m/s और v = 7 m s-¹, t = 2 s और m = 5 kg
समीकरण (8.5) से F = m(v-u)/t
मान रखने पर
F= 5 kg (7 m/s – 3 m/s)/2 s = 10 N
अब अगर 5s (t = 5s) तक बल लगाया जाता है तो समीकरण (8.5) को पुनः लिखकर अंतिम वेग प्राप्त किया जा सकता है
v = u+ Ft/m
u, F, m और t का मान रखने पर अंतिम वेग
v = 13m/s

उदाहरण 8.2 किसमें अधिक बल की आवश्यकता होगी: 2 kg द्रव्यमान वाली किसी वस्तु को 5 m/s² की दर से त्वरित करने में या 4 kg द्रव्यमान वाली वस्तु को 2 m/s² की दर से त्वरित करने में?
हल:
समीकरण (8.4) से, F = ma

यहाँ m₁ = 2 kg; a₁ = 5 m/s² तथा
m₂ = 4 kg: a₂ = 2 m/s²
इस प्रकार,
F₁ = m₁ a₁ = 2 kg x 5 m/s² = 10 N; तथा
F₂ = m₂a₂ = 4 kg x 2 m/s² = 8 N
⇒ F₁ > F₂
⇒अतः 2 kg द्रव्यमान की वस्तु को 5m/s² की दर से त्वरित करने में अधिक बल की आवश्यकता होगी।

उदाहरण 8.3 एक कार 108 km/h की गति से चल रही है और ब्रेक लगाने के बाद यह रुकने में 4s का समय लेती है। कार पर ब्रेक लगाए जाने के बाद लगने वाले बल की गणना करें। कार का यात्रियों सहित कुल द्रव्यमान 1000 kg है।
हल:

कार का प्रारंभिक वेग u= 108 km/h
= 108 x 1000 m/(60 x 60 s)
= 30 m/s
तथा कार का अंतिम वेग, v = 0 m s-1
कार का कुल द्रव्यमान = 1000 kg तथा
कार को रोकने में लगा समय t = 4s तथा समीकरण (8.5) से ब्रेक लगाने वाले बल F का परिमाण m(v-u)/t है।
मान रखने पर, F = 1000 kg (0-30) m s-1 /4s =-7500 kg m/s² या -7500 N
ऋणात्मक चिह्न दर्शाता है कि ब्रेक के द्वारा लगाया गया बल गाड़ी की गति के विपरीत दिशा में आरोपित है।

उदाहरण 8.4 5 N का एक बल किसी द्रव्यमान m₁ को 10 m s² का त्वरण देता है तथा द्रव्यमान m₂ को 20 m s² का त्वरण देता है। अगर दोनों द्रव्यमानों को एक साथ मिला दिया जाए, तो इस बल के द्वारा क्या त्वरण उत्पन्न होगा?
हल:

समीकरण (8.4) से m₁ = F/a₁; तथा m₂ = F/a₂
यहाँ a₁ = 10 m/s²;
a₂ = 20 m/s² तथा F = 5 N
इस प्रकार, m₁ = 5 N/10 m/s² = 0.50 kg:
तथा m₂ = 5 N/20 m/s² = 0.25 kg
जब दोनों द्रव्यमानों को एक साथ मिलाया जाता है,
पूरा द्रव्यमान = 0.50 kg + 0.25 kg = 0.75 kg अब पूरे द्रव्यमान m पर 5 N बल द्वारा उत्पन्न किया गया त्वरण,
a=F/m = 5 N/0.75 kg = 6.67 m/s²

उदाहरण 8.5 एक लंबी मेज़ पर सीधी रेखा में जा रही 20 g द्रव्यमान की गेंद का वेग-समय ग्राफ़ चित्र 8.9 में दिया गया है। गेंद को विरामावस्था में लाने के लिए मेज़ द्वारा कितना बल लगेगा?

हल:
गेंद का प्रारंभिक वेग 20 cm/s¹ है। मेज़ के द्वारा गेंद पर घर्षण बल लगने के कारण गेंद का वेग 10 s में शून्य हो जाता है। चूँकि वेग-समय ग्राफ एक सीधी रेखा है इससे स्पष्ट है कि गेंद एक नियत त्वरित बल के साथ चलती है।
त्वरण, a = (v-u)/t
= (0 cm/s-20 cm/s)/10 s
=-2 cm/s² = -0.02 m/s² 
गेंद पर लगा घर्षण बल,
F=ma (20/1000) kg x (-0.02 m/s²) =-0.0004 N
ऋणात्मक चिह्न दर्शाता है कि गेंद की गति की दिशा के विपरीत मेज़ द्वारा घर्षण बल आरोपित किया जाता है।

8.5 गति का तृतीय नियम

पहले दोनों गति के नियमों से हमें ज्ञात होता है कि कोई प्रयुक्त बल वस्तु की गति की अवस्था में परिवर्तन लाता है तथा इनसे हमें बल को मापने की विधि भी प्राप्त होती है। गति के तीसरे नियम के अनुसार, जब एक वस्तु दूसरी वस्तु पर बल लगाती है तब दूसरी वस्तु द्वारा भी पहली वस्तु पर तात्क्षणिक बल लगाया जाता है। ये दोनों बल परिमाण में सदैव समान लेकिन दिशा में विपरीत होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि बल सदैव युगल रूप में होते हैं। ये बल कभी एक वस्तु पर कार्य नहीं करते बल्कि दो अलग-अलग वस्तुओं पर कार्य करते हैं। फुटबॉल के खेल में प्रायः हम गेंद को तेज गति से किक मारने के क्रम में विपक्षी टीम के खिलाड़ी से टकरा जाते हैं। इस क्रम में दोनों खिलाड़ी एक-दूसरे पर बल लगाते हैं, अतएव दोनों ही खिलाड़ी चोटिल होते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी एकल बल का अस्तित्व नहीं होता बल्कि ये सदैव युगल रूप में होते हैं। इन दोनों विरोधी बलों को क्रिया तथा प्रतिक्रिया बल कहा जाता है।

माना कि दो स्प्रिंग तुलाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हैं, जैसा कि चित्र 8.10 में दर्शाया गया है। तुला B का स्थिर सिरा दीवार से जुड़ा है। जब तुला A के मुक्त सिरे पर बल लगाया जाता है तब हम पाते हैं कि दोनों तुलाएँ एक ही मान दर्शाती हैं। अर्थात् तुला A द्वारा तुला B पर प्रयुक्त बल तुला B के द्वारा तुला A पर लगाए गए बल के परिमाण में समान है परंतु इन दोनों बलों की दिशाएँ परस्पर विपरीत हैं। इन दोनों बलों में से कोई एक बल क्रिया और दूसरा बल प्रतिक्रिया कहलाता है। अतः गति के तृतीय नियम को इस प्रकार भी व्यक्त किया जाता है: किसी भी क्रिया के लिए ठीक उसके समान किंतु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। यद्यपि यह अवश्य याद रखना चाहिए कि क्रिया और प्रतिक्रिया बल सदैव दो अलग-अलग वस्तुओं पर एक साथ कार्य करते हैं।

माना कि आप विश्राम की अवस्था में हैं और सड़क पर चलना प्रारंभ करते हैं। द्वितीय नियम के अनुसार इसके लिए एक बल की आवश्यकता होती है, जो आपके शरीर में त्वरण उत्पन्न करता है। यह कौन-सा बल है? क्या यह पेशीय बल है जो आप सड़क पर लगाते हैं? क्या यह बल हम उसी दिशा में लगाते हैं जिस दिशा में हम आगे बढ़ते हैं? नहीं, हम नीचे पृथ्वी की सतह को अपने पैरों से पीछे धकेलते हैं। सड़क भी आपके पैर पर उतना ही बल विपरीत दिशा में लगाती है जिसके प्रभाव से आप आगे बढ़ते हैं।

यह जानना आवश्यक है कि यद्यपि क्रिया और प्रतिक्रिया बल मान में हमेशा समान होते हैं फिर भी ये बल एकसमान परिमाण के त्वरण उत्पन्न नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रत्येक बल अलग- अलग द्रव्यमान की वस्तुओं पर कार्य करते हैं।

बंदूक से गोली छोड़ने की अवस्था में, बंदूक द्वारा गोली पर आगे की ओर एक बल निरूपित होता है। गोली भी बंदूक पर एकसमान परंतु विपरीत दिशा में बल लगाती है। इससे बंदूक पीछे की ओर प्रतिक्षेपित होती है (चित्र 8.11)। चूँकि बंदूक का द्रव्यमान गोली के द्रव्यमान से बहुत अधिक होता है, इसलिए बंदूक का त्वरण गोली के त्वरण से काफी कम होता है। एक नाविक द्वारा नाव से आगे की ओर कूदने की स्थिति में भी, गति के तीसरे नियम को प्रदर्शित किया जा सकता है। नाविक आगे की ओर कूदता है तो नाव पर लगने वाला प्रतिक्रिया बल नाव को पीछे की ओर धकेलता है (चित्र 8.12)।

क्रियाकलाप 8.4

• दो बच्चों को पहिए वाली गाड़ी पर खड़ा होने को कहें जैसा कि चित्र 8.13 में दर्शाया गया है।

• उन्हें बालू से भरा थैला या कोई भारी वस्तु दे दें।

अब उन्हें थैले को लपकते हुए खेलने को कहें।

• क्या बालू के थैले को फेंकने के कारण उसमें से प्रत्येक तात्क्षणिक बल का अनुभव करते हैं?

• आप गाड़ी के पहिए पर कोई सफेद रेखा खींच दें, ताकि जब वे दोनों बच्चे थैले को फेंके तो गाड़ी की गति का अवलोकन किया जा सके।

• अब दो बच्चों को किसी एक गाड़ी पर खड़ा कर दें तथा एक अन्य बच्चे को दूसरी गाड़ी पर। आप यहाँ गति के द्वितीय नियम को देख सकते हैं, क्योंकि इस अवस्था में यह बल अलग-अलग त्वरण उत्पन्न करेगा।

इस क्रिया में दिखाई गई गाड़ी 50cm x 100 cm आकार के 12 mm या 18 mm मोटे प्लाइबोर्ड में दो जोड़े पहिए लगाकर बनाई जा सकती है। स्केटबोर्ड प्रभावी नहीं होगा क्योंकि इसका सीधी रेखा में गति करना कठिन है।

■ आपने क्या सीखा

• गति का प्रथम नियमः वस्तु अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा पर एक समान गति की अवस्था में तब तक बनी रहती है, जब तक उस पर कोई असंतुलित बल कार्य न करे।

• वस्तुओं द्वारा अपनी गति की अवस्था में परिवर्तन का प्रतिरोध करने की प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं।

• किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप है। इसका SI मात्रक किलोग्राम (kg) है।

• घर्षण बल सदैव वस्तु की गति का प्रतिरोध करता है।

• गति का द्वितीय नियमः किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर वस्तु पर आरोपित असंतुलित बल के समानुपाती एवं बल की दिशा में होती है।

• बल का SI मात्रक kg m/s² है। इसे न्यूटन के नाम से भी जाना जाता है तथा प्रतीक N द्वारा व्यक्त किया जाता है।। न्यूटन का बल किसी 1 kg द्रव्यमान की वस्तु में 1 m/s² का त्वरण उत्पन्न करता है।

• वस्तु का संवेग, उसके द्रव्यमान एवं वेग का गुणनफल होता है तथा इसकी दिशा वही होती है, जो वस्तु के बंग की होती है। इसका SI मात्रक kg m/s होता है।

• गति का तृतीय नियमः प्रत्येक क्रिया के समान एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है। ये दा विभिन्न वस्तुओं पर कार्य करती है।

यह भी पढ़ें : गति : अध्याय 7

अभ्यास

1. कोई वस्तु शून्य बाह्य असंतुलित बल अनुभव करती है। क्या किसी भी वस्तु के लिए अशून्य वेग से गति करना संभव है? यदि हाँ, तो वस्तु के वेग के परिमाण एवं दिशा पर लगने वाली शर्तों का उल्लेख करें। यदि नहीं, तो कारण स्पष्ट करें।
Ans.

हाँ, वस्तु शून्य बाह्य असंतुलित बल अनुभव करती है। किसी भी वस्तु के लिए अशून्य वेग से गति करना संभव है। एक वर्षा की बूँद स्थिर वेग से नीचे गिरती है। बूँद का वजन उत्क्षेप तथा वायु के वेग द्वारा संतुलित होता है। इस प्रकार, बूँद पर नेट भार शून्य होता है।

या

हाँ, किसी वस्तु के लिए अशून्य वेग से गति करना संभव है। ऐसा निम्नलिखित स्थितियों (शर्ते) में संभव हो सकता है
(a) जब वस्तु एक सीधी सरल रेखा में एकसमान चाल से चल रही हो।
(b) जब चाल के परिमाण (Magnitude of Speed) में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा हो।
(c) जब गति की दिशा में कोई परिवर्तन नहीं हो।
(d) वायु का प्रतिरोध (Air Resistance) अवश्य ही शून्य होना चाहिए।
(e) जब वस्तु की सतह तथा जमीन के बीच घर्षण बल का मान शून्य हो।

2. जब किसी छड़ी से एक दरी (कार्पेट) को पीटा जाता है, तो धूल के कण बाहर आ जाते हैं। स्पष्ट करें।
Ans.
जब किसी छड़ी से दरी को पीटा जाता है तो दरी में मौजूद धूलकण विराम अवस्था में ही रहना चाहते हैं। इसलिए छड़ी से दरी को पीटने पर धूल के कण बाहर आ जाते हैं।

3. बस की छत पर रखे सामान को रस्सी से क्यों बाँधा जाता है?
Ans.
क्योंकि अचानक लगने वाले झटकों तथा सड़क पर तेजी से बस को मोड़ते समय सामान नीचे गिर सकता है। क्योंकि छत पर रखे समान का निचला हिस्सा बस के संपर्क में रहने के कारण गति में आ जाता है। लेकिन समान का उपर हिस्सा स्थिरता के जड़त्व के कारण विरामावस्था में रहता है। इसलिए ऊपरी भाग पीछे छूट जाता है तथा समान गिर जाता है। क्योंकि इसकी प्रवृत्ति अपनी मूल दिशा में लगातार गति करने की होती है। इससे बचाव के लिए सामान को रस्सी से बाँध दिया जाता है।

4. किसी बल्लेबाज द्वारा क्रिकेट की गेंद को मारने पर गेंद जमीन पर लुढ़कती है। कुछ दूरी चलने के पश्चात् गेंद रुक जाती है। गेंद रुकने के लिए धीमी होती है, क्योंकि
(a) बल्लेबाज ने गेंद को पर्याप्त प्रयास से हिट नहीं किया है।
(b) वेग गेंद पर लगाए गए बल के समानुपाती है।
(c) गेंद पर गति की दिशा के विपरीत एक बल कार्य कर रहा है।
(d) गेंद पर कोई असंतुलित बल कार्यरत नहीं है, अतः गेंद विरामावस्था में आने के लिए प्रयासरत है। (सही विकल्प का चयन करें)
Ans.
 (c) गेंद पर गति की दिशा के विपरीत एक बल कार्य कर रहा है।

5. एक ट्रक विरामावस्था से किसी पहाड़ी से नीचे की ओर नियत त्वरण से लुढ़कना शुरू करता है। यह 20s में 400 m की दूरी तय करता है। इसका त्वरण ज्ञात करें। अगर इसका द्रव्यमान 7 टन है तो इस पर लगने वाले बल की गणना करें। (1 टन = 1000 kg)।
Ans.
ट्रक का प्रारंभिक वेग, u = 0 m/s
समय, t = 20s
तथा तय की गई दूरी, s = 400 m
गति के दूसरे समीकरण के अनुसारः
s = ut +1/2at²        जहां, a = त्वरण
400 = 0 × 20 + 1/2 × a × (20)² 
400 = 200a
a = 400/200
a = 2 m/s²   
ट्रक का द्रव्यमान दिया (m) = 7 टन = 7 × 1000 kg = 7000 kg
अब, बल (F) = द्रव्यमान × त्वरण
F = m × a
F=7000×2
F = 14000 N
अतः ट्रक का त्वरण 2 m/s² तथा ट्रक पर लगने वाला बल 14000 N है।

6. 1 kg द्रव्यमान के एक पत्थर को 20 ms के वेग से झील की जमी हुई सतह पर फेंका जाता है। पत्थर 50m की दूरी तय करने के बाद रुक जाता है। पत्थर और बर्फ के बीच लगने वाले घर्षण बल की गणना करें।
Ans.
दिया हुआ द्रव्यमान, m = 1 kg, प्रारंभिक गति, u = 20 m/s, दूरी, s = 50 m अंतिम गति, v = 0
जैसा कि हम जानते हैं,
v² – u² = 2as
0² – 20² = 2a × 50
-400 = a x 100
a = – 400/100
a = -4 m/s²

अतः पत्थर का त्वरण 4 m/s² है अर्थात अवमंदन 4m/s²  है।
पठार और बर्फ के बीच लगाने वाला घर्षण बल (F) = द्रव्यमान × त्वरण
F = mxa
F = 1×4
F = 4 N

7. एक 8000 kg द्रव्यमान का रेल इंजन प्रति 2000 kg द्रव्यमान वाले पाँच डिब्बों को सीधी पटरी पर खींचता है। यदि इंजन 40000 N का बल आरोपित करता है तथा यदि पटरी 5000 N का घर्षण बल लगाती है, तो ज्ञात करें:
(a) नेट त्वरण बल तथा
(b) रेल का त्वरण

Ans. इंजन तथा पाँच डिब्बों का कुल द्रव्यमान (m) = 8000 + 5×2000 = 18,000kg

(a) नेट त्वरण बल (F) = इंजन बल – घर्षण बल
= 40,000-5000
= 35,000 N

(b) बल = द्रव्यमान x त्वरण
F = m × a
→ 35000 = 18000 × a
→ 35 = 18 a
→ a = 35/18
→ a = 1.94 m/s²

8. एक गाड़ी का द्रव्यमान 1500 kg है। यदि गाड़ी को 1.7 m/s² के ऋणात्मक त्वरण (अवमंदन) के साथ विरामावस्था में लाना है, तो गाड़ी तथा सड़क के बीच लगने वाला बल कितना होगा?
Ans.
गाड़ी का द्रव्यमान (m) = 1,500kg
त्वरण (a) = -1.7 m/s²
गाड़ी और सड़क के बीच लगने वाला बल = द्रव्यमान ×  त्वरण
= 1,500 x (-1.7)
= -2550 N
गाड़ी और सड़क के बीच लगने वाला बल गाड़ी की विपरीत दिशा में 2550 N है।

9. किसी m द्रव्यमान की वस्तु जिसका वेग है। का संवेग क्या होगा?

(a) (mv)²

(b) mv²

(c) (1/2) mv²

(d) mv

(उपरोक्त में से सही विकल्प चुनें।)

Ans. (d) mv

10. हम एक लकड़ी के बक्से को 200 N बल लगाकर उसे नियत वेग से फ़र्श पर धकेलते हैं। बक्से पर लगने वाला घर्षण बल क्या होगा?
Ans. हम जानते हैं कि प्रत्येक क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। इसलिए बक्से पर लगने वाला घर्षण बल 200 N होगा।

11. गति के तृतीय नियम के अनुसार जब हम किसी वस्तु को धक्का देते हैं, तो वस्तु उतने ही बल के साथ हमें भी विपरीत दिशा में धक्का देती है। यदि वह वस्तु एक ट्रक है जो सड़क के किनारे खड़ा है; संभवतः हमारे द्वारा बल आरोपित करने पर भी गतिशील नहीं हो पाएगा। एक विद्यार्थी इसे सही साबित करते हुए कहता है कि दोनों बल विपरीत एवं बराबर हैं जो एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं। इस तर्क पर अपने विचार दें और बताएँ कि ट्रक गतिशील क्यों नहीं हो पाता?
Ans.
क्रिया और प्रतिक्रिया हमेशा भिन्न वस्तुओं पर कार्य करती हैं। इसलिए वे एक-दूसरे को नहीं काट सकतीं यदि हम एक भरे हुए ट्रक को धकेलते हैं, तो इसके टायरों के और सड़क के बीच घर्षण बल बहुत अधिक होता है, इसलिए ट्रक गति नहीं करता।

12. 200 g द्रव्यमान की एक हॉकी की गेंद 10 m/s से गति कर रही है। यह एक हॉकी स्टिक से इस प्रकार टकराती है कि यह 5m/s के वेग से अपने प्रारंभिक मार्ग पर वापस लौटती है। हॉकी स्टिक द्वारा आरोपित बल द्वारा हॉकी की गेंद में आये संवेग परिवर्तन के परिमाप का परिकलन कीजिए।
Ans.
m=200g = 0.2 kg
u = 10 m/s, v= 5 m/s
संवेग में परिवर्तन = m(v-u)
= 2(-5-10)
= -3 kg m/s

13. 10 g द्रव्यमान की एक गोली सीधी रेखा में 150 m/s के वेग से चलकर एक लकड़ी के गुटके से टकराती है और 0.03s के बाद रुक जाती है। गोली लकड़ी को कितनी दूरी तक भेदेगी? लकड़ी के गुटके द्वारा गोली पर लगाए गए बल के परिमाण की गणना करें।
Ans.
गोली का द्रव्यमान M = 10 g = 0.01 kg
प्रारंभिक वेग u = 150 m/s
अंतिम वेग v = 0 m/s
तथा लिया गया समय s = 0.03 s
माना तय की गई दूरी s मीटर है
गति के पहले समीकरण से,
v = u+at
→ 0 = 150 + a ×  0.03
→ a = -5000 m/s²
गति के तीसरे समीकरण से,
v² = u² + 2as
0² =150²  + 2 × (-5000) × s
→ 10000s = 22500
→ s = 22500/10000 = 2.25 m
अतः, गोली लकड़ी को 2.25 मीटर तक भेदेगी।
‘लकड़ी के गुटके द्वारा गोली पर लगाए गए बल का पारमाण = द्रव्यमान × त्वरण
F = Ma = 0.01 x 5000 = 50 N
अतः, लकड़ी के गुटके द्वारा गोली पर लगाए गए बल का परिमाण 50 N गोली की विपरीत दिशा में होगा।

14. एक वस्तु जिसका द्रव्यमान 1 kg है, 10 m/s के वेग से एक सीधी रेखा में चलते हुए विरामावस्था में रखे 5 kg द्रव्यमान के एक लकड़ी के गुटके से टकराती है। उसके बाद दोनों साथ-साथ उसी सीधी रेखा में गति करते हैं। संघट्ट के पहले तथा बाद के कुल संवेगों की गणना करें। आपस में जुड़े हुए संयोजन के वेग की भी गणना करें।
Ans.
 m₁ = 1 kg, m₂ = 5kg, u₁ = 10 m/s, u₂ = 0 m/s
संयुक्त वस्तु के संघट्ट के बाद में वेग = v
संघट्ट के पहले कुछ संवेग = m₁u₁ + m₂u₂
= 1×10 + 5×0 = 10 kg m/s
संघट्ट के बाद कुछ संवेग = (m₁+m₂) v = (1+5) v
= 6v kg m/s
संवेग संरक्षण के नियम के द्वारा,
संघट्ट के बाद दोनों बस्तुओं का बाद कुल संवेग संघट्ट के पहले दोनों बस्तुओं का बाद
कुल संवेग
6v = 10
v = 10/6
v = 1.67 m/s

15. 100 kg द्रव्यमान की एक वस्तु का वेग समान त्वरण से चलते हुए 6s में 5 m/s¹ से 8 m/s¹ हो जाता है। वस्तु के पहले और बाद के संवेगों की गणना करें। उस बल के परिमाण की गणना करें जो उस वस्तु पर आरोपित है।
Ans.
m = 100kg
u = 5 m/s
v = 8m/s,
t = 6s
प्रारंभिक संवेग, p₁ = mu = 100 × 5 = 500 kg m/s
अंतिम संवेग, p₂  = mu
= 100 x 8 = 800 kg m/s
इसलिए वस्तु पर लगाए बल का परिणाम
F = (p₂ – p₁)/t
F = (800 – 500)/6
F = 300/6
F = 50N
अतः उस बस्तु पर आरोपित बल 50 N है।

16. अख्तर, किरण और राहुल किसी राजमार्ग पर बहुत तीव्र गति से चलती हुई कार में सवार हैं, अचानक उड़ता हुआ कोई कीड़ा, गाड़ी के सामने के शीशे से आ टकराया और वह शीशे से चिपक गया। अख्तर और किरण इस स्थिति पर विवाद करते हैं। किरण का मानना है कि कीड़े के संवेग परिवर्तन का परिमाण कार के संवेग परिवर्तन के परिमाण की अपेक्षा बहुत अधिक है। (क्योंकि कीड़े के वेग में परिवर्तन का मान कार के वेग में परिवर्तन के मान से बहुत अधिक है।) अख्तर ने कहा कि चूँकि कार का वेग बहुत अधिक था अतः कार ने कीड़े पर बहुत अधिक बल लगाया जिसके कारण कीड़े की मौत हो गई। राहुल ने एक नया तर्क देते हुए कहा कि कार तथा कीड़ा दोनों पर समान बल लगा और दोनों के संवेग में बराबर परिवर्तन हुआ। इन विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया दें।
Ans.
कीड़ा और मोटरकार दोनों समान बल अनुभव करते हैं अतः उनके संवेग में परिवर्तन समान हैं। इसलिए हम राहुल से सहमत हैं, परंतु जड़त्व के बहुत कम द्रव्यमान के कारण कीड़ा मर जाता है।

17. एक 10 kg द्रव्यमान की घंटी 80 cm की ऊँचाई से फ़र्श पर गिरी। इस अवस्था में घंटी द्वारा फर्श पर स्थानांतरित संवेग के मान की गणना करें। परिकलन में सरलता हेतु नीचे की ओर दिष्ट त्वरण का मान 10 ms³ लें।
Ans.
m = 10kg
u = 0 s
= 80cm = 0.8m
a = 10 m/s²
घंटी द्वारा प्राप्त किया गया वेग जैसे ही यह फर्श पर पहुँचाती है, = v
गति के तीसरे समीकरण से
v² – u² = 2as
→v² – u²  = 2 × 10× 0.80
→ v² – 0² = 16
→ v = 4 m/s
घंटी द्वारा फर्श पर स्थानांतरित संवेग,
p = mv
= 10 × 4 = 40 kg m/s

18. दो वस्तुएँ, प्रत्येक का द्रव्यमान 1.5 kg है, एक ही सीधी रेखा में एक-दूसरे के विपरीत दिशा में गति कर रही हैं। टकराने के पहले प्रत्येक का वेग 2.5 ms-1 है। टकराने के पश्चात् यदि दोनों एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं, तब उनका सम्मिलित वेग क्या होगा?

Ans.

पहली बस्तु का द्रव्यमान (m₁) =  1.5 kg
पहली बस्तु का प्रारंभिक गति (u₁) = 2.5 m/s
दूसरी बस्तु का द्रव्यमान (m₂ ) = 1.5 kg दूसरी बस्तु, पहली बस्तु के विपरीत दिशा में गति कर रही हैं। अतः इसका वेग ऋणात्मक लेंगे।

• दूसरी बस्तु का प्रारंभिक गति (u₁) = -2.5 m/s
दो वस्तुओं का टकराने के बाद वेग = v

संवेग संरक्षण के नियम के अनुसार,
टकराने के बाद कुल संवेग टकराने से पहले कुल संवेग
→ (m₁ + m₂)v = m₁u₁ + m₂u₂
→ (1.5+1.5) v = 1.5 x 2.5 + 1.5 x (-2.5)
→ 3 × v = 0
→ v = 0 ms-1

पेज : 102

(a) एक रबर की गेंद एवं उसी आकार का पत्थर,

(b) एक साइकिल एवं एक रेलगाड़ी, 

(c) पाँच रुपये का एक सिक्का एवं एक रुपये का सिक्का।

Ans. (a) पत्थर (b) रेलगाड़ी (c) पाँच रुपये का सिक्का

2. नीचे दिए गए उदाहरण में गेंद का वेग कितनी बार बदलता है, जानने का प्रयास करें:“फुटबॉल का एक खिलाड़ी गेंद पर किक लगाकर गेंद को अपनी टीम के दूसरे खिलाड़ी के पास पहुँचाता है। दूसरा खिलाड़ी उस गेंद को किक लगाकर गोल की ओर पहुँचाने का प्रयास करता है। विपक्षी टीम का गेंदकीपर गेंद को पकड़ता है और अपनी टीम के खिलाड़ी की ओर किक लगाता है।” इसके साथ ही उस कारक की भी पहचान करें जो प्रत्येक अवस्था में बल प्रदान करता है।

Ans. उपरोक्त उदाहरण में गेंद का वेग चार बार बदलता है। प्रथम बार जब खिलाड़ी गेंद पर किक लगाकर अपनी टीम के दूसरे खिलाड़ी के पास भेजता है। दूसरी बार जब गेंद गोल की ओर पहुँचती है औरतीसरी बार जब दूसरी टीम का गोलकीपर को पकड़ता है।चौथी बार, जब गोलकीपर गेंद को अपनी टीम के खिलाड़ी की ओर किक लगाता है।

3. किसी पेड़ की शाखा को तीव्रता से हिलाने पर कुछ पत्तियाँ झड़ जाती हैं। क्यों?

Ans. किसी पेड़ की शाखा को तीव्रता से हिलाने पर कुछ पत्तियाँ झड़ जाती हैं क्योंकि जब पेड़ की शाखा को तीव्रता में हिलाया जाता है तो पत्तियाँ विरामावस्था में होती हैं और शाखाएँ गति अवस्था में। जिसके कारण पत्तियाँ शाखाओं से अलग होकर नीचे गिर जाती हैं।

4. जब कोई गतिशील बस अचानक रुकती है तो आप आगे की ओर झुक जाते हैं और जब विरामावस्था से गतिशील होती है तो पीछे की ओर हो जाते हैं, क्यों?

Ans. जब बस गतिशील होती है और अचानक रुकती है तो हमारे पैर विरामावस्था में होते हैं और शरीर का ऊपर का भाग गति में इसलिए हम आगे की ओर झुक जाते हैं।परंतु जब बस विरामावस्था से गतिशील होती है, तब हमारे पैर गति में होते हैं और ऊपर का भाग विरामावस्था में, इसलिए हम पीछे की ओर हो जाते हैं।

या

प्रथम स्थिति में – जब गतिशील बस अचानक रुकती है, इस स्थिति में हमारा शरीर भी गतिशील होता है। हमारे शरीर का निचला हिस्सा जो बस के साथ-साथ गतिशील है, तुरंत रुक जाता है। परंतु ऊपरी हिस्सा गति के जड़त्व के कारण अभी भी गतिशील ही रहना चाहता है। अतः बस में सवार व्यक्ति आगे की ओर झुक जाता है।

दूसरी स्थिति में – जब हम ठहरी हुई बस में बैठे हों और अचानक बस चल पड़े तो हमारे शरीर का निचला भाग बस की सतह (Floor) के संपर्क में होने के कारण तुरंत गतिशील हो जाता है, परंतु शरीर का ऊपरी भाग विराम- जड़त्व (Inertia of Rest) के कारण विरामावस्था में ही रहने की चेष्टा करता है जिसके परिणामस्वरूप हम पीछे की ओर हो जाते हैं।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

1 thought on “बल तथा गति के नियम : अध्याय 8”

Leave a Comment