विनिर्माण उद्योग : अध्याय 6

दीवाली के अवसर पर हरीश अपने माता-पिता के साथ बाजार गया। उन्होंने उसके लिए कपड़े तथा जूते खरीदे। उसकी माँ ने बर्तन, चीनी, चाय व मृदा के दीप खरीदे। हरीश ने देखा कि दुकानें अत्यधिक सामान से भरी थी। चीजों को इतनी अधिक मात्रा में देखकर वह हैरान था। उसके पिता ने समझाया कि जूते, कपड़े, चीनी आदि बड़े उद्योगों में मशीनों द्वारा बनाए जाते हैं; छोटे उद्योगों में बर्तन बनाए जाते हैं तथा दीप जैसी चीजें व्यक्तिगत तौर पर कारीगरों द्वारा घरेलू उद्योगों में बनाई जाती है।

कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहा जाता है। क्या आप जानते हैं- कागज लकड़ी से, चीनी गन्ने से, लोहा-इस्पात लौह अयस्क से तथा एल्यूमिनियम बॉक्साइट से निर्मित है। क्या आप यह भी है जानते हैं कि कई किस्म के कपड़े ऐसे रेशों से बनते

द्वितीयक कार्यों में लगे व्यक्ति कच्चे माल को परिष्कृत वस्तुओं में परिवर्तित करते हैं। स्टील, कार, कपड़ा उद्योग, बेकरी तथा पेय पदार्थों संबंधी उद्योगों में लगे श्रमिक इसी वर्ग के अंतर्गत आते हैं। कुछ व्यक्ति सेवाएँ प्रदान करने में रोजगार पाते हैं। इस अध्याय में हम द्वितीयक क्रियाओं के अंतर्गत विनिर्माण उद्योगों के विषय में पढ़ेंगे।

किसी देश की आर्थिक उन्नति विनिर्माण उद्योगों के विकास से मापी जाती है।

विनिर्माण का महत्त्व

विनिर्माण उद्योग सामान्यतः विकास की तथा विशेषतः आर्थिक विकास की रीढ़ समझे जाते हैं, क्योंकि ••

• विनिर्माण उद्योग न केवल कृषि के आधुनिकीकरण में सहायक है वरन् द्वितीयक व तृतीयक सेवाओं में रोजगार उपलब्ध कराकर कृषि पर हमारी निर्भरता को कम करते हैं।

• देश में औद्योगिक विकास बेरोजगारी तथा गरीबी उन्मूलन की एक आवश्यक शर्त है। भारत में सार्वजनिक तथा संयुक्त क्षेत्र में लगे उद्योग, इसी विचार पर आधारित थे। जनजातीय तथा पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना का उद्देश्य भी क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना था।

• निर्मित वस्तुओं का निर्यात वाणिज्य व्यापार को बढ़ाता है जिससे अपेक्षित विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।

• वे देश ही विकसित हैं जो कच्चे माल को विभिन्न तथा अधिक मूल्यवान तैयार माल में विनिर्मित करते है। भारत का विकास विविध व शीघ्र औद्योगिक विकास में निहित हैं।

कृषि तथा उद्योग एक दूसरे से पृथक नहीं हैं ये एक दूसरे के पूरक हैं। उदाहरणार्थ, भारत में कृषि पर आधारित उद्योगों ने कृषि पैदावार बढ़ोतरी को प्रोत्साहित किया है। ये उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर निर्भर हैं तथा इनके द्वारा निर्मित उत्पाद जैसे सिंचाई के लिए पंप, उर्वरक, कीटनाशक दवाएँ, प्लास्टिक पाइप, मशीनें व कृषि औजार आदि पर किसान निर्भर हैं। इसलिए विनिर्माण उद्योग के विकास तथा स्पर्धा से न केवल कृषि उत्पादन को बढ़ावा मिला है, अपितु उत्पादन प्रक्रिया भी सक्षम हुई है।

आज वैश्वीकरण के युग में हमारे उद्योगों को अधिक प्रतिस्पर्धी तथा सक्षम होने की आवश्यकता है। केवल आत्मनिर्भरता ही काफी नहीं है। हमारी वस्तुएँ गुणवत्ता में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की हों तभी हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर पाएँगे।

उद्योगों का वर्गीकरण

रोजमर्रा के इस्तेमाल की विभिन्न औद्योगिक उत्पादों की सूची बनाएँ जैसे – ट्रांजिस्टर, बिजली का बल्ब, वनस्पति तेल, सीमेंट, काँच का सामान, पैट्रोल, माचिस, स्कूटर, वाहन, दवाईयाँ आदि। यदि हम विशेष मापदंडों के आधार पर विभिन्न उद्योगों का वर्गीकरण करते हैं तो विनिर्माण को आसानी से समझ सकेंगे।

उद्योगों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-

(i) प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर –

• कृषि आधारित – सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशम वस्त्र, रबर, चीनी, चाय, काफी तथा वनस्पति तेल उद्योग।

• खनिज आधारित – लोहा तथा इस्पात, सीमेंट, एल्यूमिनियम, मशीन, औजार तथा पेट्रोरासायन उद्योग।

(ii) प्रमुख भूमिका के आधार पर –

• आधारभूत उद्योग – जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर हैं जैसे-लोहा इस्पात, ताँबा प्रगलन व एल्यूमिनियम प्रगलन उद्योग।

• उपभोक्ता उद्योग जो उत्पादन उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु करते हैं जैसे चीनी, दंतमंजन, कागज, पंखे, सिलाई मशीन आदि।

(iii) पूँजी निवेश के आधार पर –

• एक लघु उद्योग को परिसंपत्ति की एक इकाई पर अधिकतम निवेश मूल्य के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया जाता है। यह निवेश सीमा, समय के साथ परिवर्तित होती रहती है। अधिकतम स्वीकार्य निवेश के आधार पर की जाती है। यह निवेश मूल्य समय के साथ बदला गया है। वर्तमान में अधिकतम निवेश एक करोड़ रूपये तक स्वीकार्य है।

(iv) स्वामित्व के आधार पर-

• सार्वजनिक क्षेत्र में लगे, सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रबंधित तथा सरकार द्वारा संचालित उद्योग जैसे भारत हैवी इलैक्ट्रिकल लिमिटेड (BHEL) तथा स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) आदि।

• निजी क्षेत्र के उद्योग जिनका एक व्यक्ति के स्वामित्व में और उसके द्वारा संचालित अथवा लोगों के स्वामित्व में या उनके द्वारा संचालित है। टिस्को, बजाज ऑटो लिमिटेड, डाबर उद्योग आदि।

संयुक्त उद्योग – वैसे उद्योग जो राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाये जाते हैं। जैसे ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) I

सहकारी उद्योग – जिनका स्वामित्व कच्चे माल की पूर्ति करने वाले उत्पादकों, श्रमिकों या दोनों के हाथों में होता है। संसाधनों का कोष संयुक्त होता है तथा लाभ-हानि का विभाजन भी अनुपातिक होता है जैसे महाराष्ट्र के चीनी उद्योग, केरल के नारियल पर आधारित उद्योग।

(v) कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर-

• भारी उद्योग जैसे लोहा तथा इस्पात आदि।

• हल्के उद्योग जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं जैसे- विद्युतीय उद्योग।

कृषि आधारित उद्योग

सूती वस्त्र, पटसन, रेशम, ऊनी वस्त्र, चीनी तथा • वनस्पति तेल आदि उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित हैं।

वस्त्र उद्योग – भारतीय अर्थव्यवस्था में वस्त्र उद्योग का अपना अलग महत्त्व है क्योंकि इसका औद्योगिक उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान है। देश का यह अकेला उद्योग है जो कच्चे माल से उच्चतम अतिरिक्त मूल्य उत्पाद तक की श्रृंखला में परिपूर्ण तथा आत्मनिर्भर है।

सूती वस्त्र उद्योग – प्राचीन भारत में सूती वस्त्र हाथ से कताई और हथकरघा बुनाई तकनीकों से बनाये जाते थे। अठारहवीं शताब्दी के बाद विद्युतीय करघों का उपयोग होने लगा। औपनिवेशिक काल के दौरान हमारे परंपरागत उद्योगों को बहुत हानि हुई क्योंकि हमारे उद्योग इंग्लैंड के मशीन निर्मित वस्त्रों से स्पर्धा नहीं कर पाये।

• पहला सफल सूती वस्त्र उद्योग 1854 में मुंबई में लगाया गया।

• यूरोप दो विश्व-युद्धों से जूझ रहा था तथा भारत इंग्लैंड के अधीन था। ऐसे में इंग्लैंड में कपड़े की माँग आपूर्ति हेतु भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहन मिला।

आरंभिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र तथा गुजरात के कपास उत्पादन क्षेत्रों तक ही सीमित थे। कपास की उपलब्धता, बाज़ार, परिवहन, पत्तनों की समीपता, श्रम, नमीयुक्त जलवायु आदि कारकों ने इसके स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया। इस उद्योग का कृषि से निकट का संबंध है और कृषकों, कपास चुनने वालों, गाँठ बनाने वालों, कताई करने वालों, रंगाई करने वालों, डिजाइन बनाने वालों, पैकेट बनाने वालों और सिलाई करने वालों को यह जीविका प्रदान करता है। इस उद्योग के कारण रसायन रंजक मिल स्टोर तथा पैकेजिंग सामग्री और इंजीनियरिंग उद्योग की माँग बढ़ती है फलस्वरूप इन उद्योगों का विकास होता है।

यद्यपि कताई कार्य महाराष्ट्र, गुजरात तथा तमिलनाडु में केंद्रित है लेकिन सूती, रेशम, जरी कशीदाकारी आदि में बुनाई के परंपरागत कौशल और डिजाइन देने के लिए बुनाई अत्यधिक विकेंद्रीकृत है। भारत में कताई उत्पादन विश्व स्तर का है लेकिन बुना वस्त्र कम गुणवत्ता वाला है क्योंकि यह देश में उत्पादित उच्च स्तरीय धागे का अधिक प्रयोग नहीं कर पाता। बुनाई का कार्य हथकरघों, विद्युतकरघों व मिलों में होता है।

हाथ से बुनी खादी कुटीर उद्योग के रूप में बुनकरों को उनके घरों में बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान कराता है।

हमारे देश में विद्युत चालित करघों तथा हथकरघों द्वारा निर्मित लूमेज की अपेक्षा कारखानों द्वारा निर्मित लूमेज (Loomage) को कम रखना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

पटसन उद्योग – भारत पटसन व पटसन निर्मित समान का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा बांग्लादेश के पश्चात् दूसरा बड़ा निर्यातक भी है। वर्ष 2010-11 में भारत में लगभग 80 पटसन उद्योग थे। इनमें अधिकांश पश्चिम बंगाल में हुगली नदी तट पर 98 किमी. लंबी तथा 3 किमी. चौड़ी एक सँकरी मेखला में स्थित है।

पहला पटसन उद्योग कोलकाता के निकट रिशरा में 1855 में लगाया गया। 1947 में देश के विभाजन के पश्चात् पटसन मिलें तो भारत में रह गईं लेकिन तीन-चौथाई जूट उत्पादक क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान अर्थात् बांग्लादेश में चले गए।

हुगली नदी तट पर इनके स्थित होने के निम्न कारण है- पटसन उत्पादक क्षेत्रों की निकटता, सस्ता जल परिवहन, सड़क, रेल व जल परिवहन का जाल, कच्चे माल का मिलों तक ले जाने में सहायक होना, कच्चे पटसन को संसाधित करने में प्रचुर जल, पश्चिम बंगाल तथा समीपवर्ती राज्य उड़ीसा, बिहार व उत्तर प्रदेश से सस्ता श्रमिक उपलब्ध होना, कोलकाता का एक बड़े नगरीय केंद्र के रूप बैंकिंग, बीमा और जूट के सामान के निर्यात के लिए पत्तन की सुविधाएँ प्रदान करना आदि सम्मिलित हैं।

चीनी उद्योग – भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है लेकिन गुड़ व खांडसारी के उत्पादन में इसका प्रथम स्थान है। इस उद्योग में प्रयुक्त कच्चा माल भारी होता है तथा ढुलाई में इसके सूक्रोस की मात्रा घट जाती है। चीनी मिलें उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश राज्यों में फैली है। चीनी मिलों का 60 प्रतिशत उत्तर प्रदेश तथा बिहार में है। यह उद्योग मौसमी है, अतः सहकारी क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। क्या आप बता सकते हैं ऐसा क्यों है?

पिछले कुछ वर्षों से इन मिलों की संख्या दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में विशेषकर महाराष्ट्र में बढ़ी है। इसका मुख्य कारण यहाँ के गन्ने में अधिक सूक्रोस की मात्रा है। अपेक्षाकृत ठंडी जलवायु भी गुणकारी है। इसके अतिरिक्त इन राज्यों में सहकारी समितियाँ भी सफल रही हैं।

खनिज आधारित उद्योग

वे उद्योग जो खनिज व धातुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं, खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं। क्या आप इस वर्ग में आने वाले कुछ उद्योगों का नाम बता सकते हैं?

लोहा तथा इस्पात उद्योग

लोहा तथा इस्पात उद्योग एक आधारभूत (basic) उद्योग है क्योंकि अन्य सभी भारी, हल्के और मध्यम उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर हैं। विविध प्रकार के इंजीनियरिंग सामान, निर्माण सामग्री, रक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन वैज्ञानिक उपकरण और विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण के लिए इस्पात की आवश्यकता होती है।

क्रियाकलाप

इस्पात से बनी उन सभी पदार्थों की सूची बनाएँ जो आप सोच सकते हैं।

इस्पात के उत्पादन तथा खपत को प्रायः एक देश के विकास का पैमाना माना जाता है। लोहा तथा इस्पात एक भारी उद्योग है क्योंकि इसमें प्रयुक्त कच्चा तथा तैयार माल दोनों ही भारी और स्थूल होते हैं और इसके लिए अधिक परिवहन लागत की आवश्यकता होती है। इस उद्योग के लिए लौह अयस्क, कोकिंग कोल तथा चूना पत्थर का अनुपात लगभग 4:2:1 का है। इस्पात को कठोर बनाने के लिए इसमें मैंगनीज की कुछ मात्रा की भी आवश्यकता होती है। इस्पात उद्योगों की आदर्श स्थापना कहाँ होनी चाहिये? यह याद रहे कि इससे निर्मित माल को बाज़ार तथा उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए भी सक्षम परिवहन की आवश्यकता है।

भारत में छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र में अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग संकेंद्रित हैं। इस प्रदेश में इस उद्योग के विकास के लिए अधिक अनुकूल सापेक्षिक परिस्थितियाँ है। इनमें लौह अयस्क की कम लागत, उच्च कोटि के कच्चे माल की निकटता, सस्ते श्रमिक और स्थानीय बाजार में इनके माँग की विशाल संभाव्यता सम्मिलित है।

एल्यूमिनियम प्रगलन (Smelting)

भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है। यह हल्का, जंग अवरोधी, ऊष्मा का सुचालक, लचीला तथा अन्य धातुओं के मिश्रण से अधिक कठोर बनाया जा सकता है। हवाई जहाज बनाने में, बर्तन तथा तार बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है। कई उद्योगों में इसका महत्त्व इस्पात, ताँबा, जस्ता व सीसे के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होने से बढ़ा है।

देश के एल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्र ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र व तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं।

प्रगालकों (smelters) में बॉक्साइट का कच्चे पदार्थ के रूप में (जो भारी, गहरे लाल रंग की चट्टान जैसा होता है) प्रयोग किया जाता है। प्रवाह चार्ट चित्र 6.5 एल्यूमिनियम निर्माण प्रक्रिया दर्शाता है। इस उद्योग की स्थापना की दो महत्त्वपूर्ण आवश्यकताएँ हैं- नियमित ऊर्जा की पूर्ति तथा कम कीमत पर कच्चे माल की सुनिश्चित उपलब्धता।

रसायन उद्योग

भारत में रसायन उद्योग तेजी से विकसित हो रहा तथा फैल रहा है। इसकी भागीदारी सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 3 प्रतिशत है। यह उद्योग एशिया का तीसरा बड़ा तथा विश्व में आकार की दृष्टि से 12वें स्थान पर है। इसमें लघु तथा बृहत् दोनों प्रकार की विनिर्माण इकाइयाँ सम्मिलित है। अकार्बनिक और कार्बनिक दोनों क्षेत्रों में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई है।

अकार्बनिक रसायनों में सलफ्यूरिक अम्ल (उर्वरक, कृत्रिम वस्त्र, प्लास्टिक, गोंद, रंग-रोगन, डाई आदि के निर्माण में प्रयुक्त), नाइट्रिक अम्ल, क्षार, सोडा ऐश (soda ash), (काँच, साबुन, शोधक या अपमार्जक, कागज़ में प्रयुक्त होने वाले रसायन) तथा कास्टिक सोडा आदि शामिल हैं। इन उद्योगों का देश में विस्तृत फैलाव है। क्या आप बता सकते हैं ऐसा क्यों है?

कार्बनिक रसायनों में पेट्रोरसायन शामिल हैं जो कृत्रिम वस्त्र, कृत्रिम रबर, प्लास्टिक, रंजक पदार्थ, दवाईयाँ, औषध रसायनों के बनाने में प्रयोग किये जाते हैं। ये उद्योग तेल शोधन शालाओं या पेट्रोरसायन संयंत्रों के समीप स्थापित हैं।

रसायन उद्योग अपने आप में एक बड़ा उपभोक्ता भी है। आधारभूत रसायन एक प्रक्रिया द्वारा अन्य रसायन उत्पन्न करते हैं जिनका उपयोग औद्योगिक अनुप्रयोग, कृषि अथवा उपभोक्ता बाज़ारों के लिए किया जाता है। ऐसे ही उत्पादों की एक सूची बनाएँ।

उर्वरक उद्योग

उर्वरक उद्योग नाइट्रोजनी उर्वरक (मुख्यतः यूरिया), फास्फेटिक उर्वरक (D.A.P.) तथा अमोनियम फास्फेट और मिश्रित उर्वरक जिसमें तीन मुख्य पोषक उर्वरक नाइट्रोजन, फास्फेट व पोटाश शामिल हैं, के उत्पादन क्षेत्रों के इर्द-गिर्द केंद्रित हैं। तीसरा अर्थात् पोटाश पूर्णतः आयात किया जाता है क्योंकि हमारे देश में वाणिज्यिक रूप से या किसी भी रूप में प्रयुक्त होने वाला पोटाश या पोटाशियम यौगिकों के भंडार नहीं है।

हरित क्रांति के पश्चात् यह उद्योग देश के अन्य अनेक भागों में भी फैल गया। गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब और केरल राज्य कुल उर्वरक उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, असम, पश्चिम बंगाल, गोआ, दिल्ली, मध्य प्रदेश तथा कर्नाटक हैं।

सीमेंट उद्योग

निर्माण कार्यों जैसे – घर, कारखाने, पुल, सड़कें, हवाई अड्डा, बाँध तथा अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के निर्माण में सीमेंट आवश्यक है। इस उद्योग को भारी व स्थूल कच्चे माल जैसे- चूना पत्थर, सिलिका और जिप्सम की आवश्यकता होती है। रेल परिवहन के अतिरिक्त इसमें कोयला तथा विद्युत ऊर्जा भी आवश्यक है।

इस उद्योग की इकाइयों गुजरात में लगाई गई है, क्योंकि यहाँ से इसे खाड़ी के देशों के बाजार की उपलब्धता है।

क्रियाकलाप

भारत में यह उद्योग अन्य किन राज्यों में स्थित है? उनके नाम बताएँ।

पहला सीमेंट उद्योग सन् 1904 में चेन्नई में लगाया गया था। स्वतंत्रता के पश्चात इस उद्योग का प्रसार हुआ।

मोटरगाड़ी उद्योग

मोटरगाड़ी यात्रियों तथा सामान के तीव्र परिवहन के साधन है। भारत में विभिन्न केंद्रों पर ट्रक, बसें, कारें, मोटर साइकिल, स्कूटर, तिपहिया तथा बहुउपयोगी वाहन निर्मित किये जाते हैं। उदारीकरण के पश्चात्, नए और आधुनिक मॉडल के वाहनों का बाजार तथा वाहनों की माँग बढ़ी है, जिससे इस उद्योग में विशेषकर कार, दोपहिया तथा तिपहिया वाहनों में अपार वृद्धि हुई है। यह उद्योग दिल्ली, गुड़गाँव, मुंबई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर, हैदराबाद, जमशेदपुर तथा बेंगलूरु के आस पास स्थित है।

सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलैक्ट्रोनिक उद्योग

इलैक्ट्रोनिक उद्योग के अंतर्गत आने वाले उत्पादों में ट्रांजिस्टर से लेकर टेलीविजन, टेलीफ़ोन, सेल्यूलर टेलीकॉम, टेलीफ़ोन एक्सचेंज, राडार, कंप्यूटर तथा दूरसंचार उद्योग के लिए उपयोगी अनेक अन्य उपकरण तक बनाये जाते है। बेंगलुरु भारत की इलैक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में उभरा है। इलैक्ट्रोनिक सामान के अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक केंद्र मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, कोलकाता तथा लखनऊ हैं। इस उद्योग का सर्वाधिक संकेंद्रण बेंगलुरु, नोएडा, मुम्बई, चेन्नई, हैदराबाद और पुणे में है। यह भी अत्यन्त रोचक है कि भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के सफल होने का कारण हार्डवेयर व सॉफ़्टवेयर का निरंतर विकास है।

औद्योगिक प्रदूषण तथा पर्यावरण निम्नीकरण

यद्यपि उद्योगों की भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका है, तथापि इनके द्वारा बढ़ते भूमि, वायु, जल तथा पर्यावरण प्रदूषण को भी नकारा नहीं जा सकता। उद्योग चार प्रकार के प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है (क) वायु (ख) जल (ग) भूमि (घ) ध्वनि। प्रदूषण करने वाले उद्योगों में ताप विद्युतगृह भी सम्मिलित हैं।

वायु प्रदूषण – अधिक अनुपात में अनचाही गैसों की उपस्थिति जैसे सल्फर डाइऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड वायु प्रदूषण का कारण है। वायु में निलंबित कणनुमा पदार्थों में ठोस व द्रवीय दोनों ही प्रकार के कण होते हैं जैसे धूलि, स्प्रे, कुहासा तथा धुआँ। रसायन व कागज्ज उद्योग, ईंटों के भट्ट, तेल शोधनशालाएँ, प्रगलन उद्योग, जीवाश्म ईंधन दहन तथा छोटे-बड़े कारखाने प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करते हुए धुआँ निष्कासित करते हैं। जहरीली गैसों का रिसाव बहुत भयानक तथा दूरगामी प्रभावों वाला हो सकता है। क्या आप भोपाल गैस त्रासदी के विषय में जानते हैं? वायु प्रदूषण, मानव स्वास्थ्य, पशुओं, पौधों, इमारतों तथा पूरे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डालते हैं।

जल प्रदूषण – उद्योगों द्वारा कार्बनिक तथा अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों के नदी में छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता हैं। जल प्रदूषण के प्रमुख कारक – कागज, लुग्दी, रसायन, वस्त्र, तथा रंगाई उद्योग, तेल शोधन शालाएँ, चमड़ा उद्योग तथा इलैक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग हैं जो रंग, अपमार्जक, अम्ल, लवण तथा भारी धातुएँ जैसे सीसा, पारा, कीटनाशक, उर्वरक, कार्बन, प्लास्टिक और रबर सहित कृत्रिम रसायन आदि जल में वाहित करते हैं। भारत के मुख्य अपशिष्ट पदार्थों में फ्लाई एश, फोस्फो-जिप्सम तथा लोहा-इस्पात की अशुद्धियाँ (slag) हैं।

तापीय प्रदूषण – जब कारखानों तथा तापघरों से गर्म जल को बिना ठंडा किए ही नदियों तथा तालाबों में छोड़ दिया जाता है, तो जल में तापीय प्रदूषण होता है। जलीय जीवन पर इसका क्या प्रभाव होगा बताएँ?

परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अपशिष्ट व परमाणु शस्त्र उत्पादक कारखानों से कैंसर, जन्मजात विकार तथा अकाल प्रसव जैसी बीमारियाँ होती हैं। मृदा व जल प्रदूषण आपस में संबंधित हैं। मलबे का ढेर विशेषकर काँच, हानिकारक रसायन, औद्योगिक बहाव, पैकिंग, लवण तथा कूड़ा-कर्कट मृदा को अनुपजाऊ बनाता है। वर्षा जल के साथ ये प्रदूषक जमीन से रिसते हुए भूमिगत जल तक पहुँच कर उसे भी प्रदूषित कर देते हैं।

ध्वनि प्रदूषण – ध्वनि प्रदूषण से खिन्नता तथा उत्तेजना ही नहीं वरन् श्रवण असक्षमता, हृदय गति, रक्त चाप तथा अन्य कायिक व्यथाएँ भी बढ़ती हैं। अनचाही ध्वनि, उत्तेजना व मानसिक चिंता का स्रोत है। औद्योगिक तथा निर्माण कार्य, कारखानों के उपकरण, जेनरेटर, लकड़ी चीरने के कारखाने, गैस यांत्रिकी तथा विद्युत ड्रिल (Drill) भी अधिक ध्वनि उत्पन्न करते हैं।

पर्यावरणीय निम्नीकरण की रोकथाम

कारखानों द्वारा निष्कासित एक लिटर अपशिष्ट से लगभग आठ गुणा स्वच्छ जल दूषित होता है। औद्योगिक प्रदूषण से स्वच्छ जल को कैसे बचाया जा सकता है, इसके कुछ निम्न सुझाव हैं

(क) विभिन्न प्रक्रियाओं में जल का न्यूनतम उपयोग तथा जल का दो या अधिक उत्तरोत्तर अवस्थाओं में पुनर्चक्रण द्वारा पुनः उपयोग।

(ख) जल की आवश्यकता पूर्ति हेतु वर्षा जल संग्रहण ।

(ग) नदियों व तालाबों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन करना। औद्योगिक अपशिष्ट का शोधन तीन चरणों में किया जा सकता है

(अ) यांत्रिक साधनों द्वारा प्राथमिक शोधन। इसमें अपशिष्ट पदार्थों की छँटाई, उनके छोटे-छोटे टुकड़े करना, ढकना तथा तलछट जमाव आदि सम्मिलित हैं।

(ब) जैविक प्रक्रियाओं द्वारा द्वितयीक शोधन ।

(स) जैविक, रासायनिक तथा भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा तृतीयक शोधन। इसमें अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रण द्वारा पुनः प्रयोग योग्य बनाया जाता है।

जहाँ भूमिगत जल का स्तर कम है, वहाँ उद्योगों द्वारा इसके अधिक निष्कासन पर कानूनी प्रतिबंध होना चाहिये। वायु में निलंबित प्रदूषण को कम करने के लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ, चिमनियों में एलेक्ट्रोस्टैटिक अवक्षेपण (eletrostatic precipitators), स्क्रबर उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को जड़त्वीय रूप से पृथक करने के लिए उपकरण होना चाहिये। कारखानों में कोयले की अपेक्षा तेल व गैस के प्रयोग से धुएँ के निष्कासन में कमी लायी जा सकती है। मशीनों व उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है तथा जेनरेटरों में साइलेंसर (silencers) लगाया जा सकता है। ऐसी मशीनरी का प्रयोग किया जाए जो ऊर्जा सक्षम हों तथा कम ध्वनि प्रदूषण करे। ध्वनि अवशोषित करने वाले उपकरणों के इस्तेमाल के साथ कानों पर शोर नियंत्रण उपकरण भी पहनने चाहिये।

सतत् पोषणीय विकास की चुनौतियों के लिए पर्यावरणीय संचेतना से युक्त आर्थिक विकास की जरूरत है।

राष्ट्रीय ताप विद्युतग्रह (NTPC) द्वारा दिखाया गया मार्ग

भारत में राष्ट्रीय ताप विद्युतगृह कारपोरेशन विद्युत प्रदान करने वाली मुख्य निगम है। इसके पास पर्यावरण प्रबंधनतंत्र (EMS) 14001 के लिए आई एस ओ (ISO) प्रमाण पत्र है। यह निगम प्राकृतिक पर्यावरण और संसाधन जैसे जल, खनिज तेल, गैस तथा ईंधन संरक्षण नीति का हिमायती है तथा इन्हें ध्यान में रखकर ही विद्युत संयंत्रों की स्थापना करता है। ऐसा निम्न उपायों द्वारा संभव है –

(अ) आधुनिकतम तकनीकों पर आधारित उपकरणों का सही उपयोग करके तथा विद्यमान उपकरणों में सुधार।

(ब) अधिकतम राख का इस्तेमाल कर अपशिष्ट पदार्थों का न्यून उत्पादन ।

(स) पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए हरित क्षेत्र की सुरक्षा तथा वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करना।

(द) तरल अपशिष्ट प्रबंधन, राख युक्त जलीय पुनर्चक्रण तथा राख-संग्रह (Ash pond) प्रबंधन द्वारा

पर्यावरण प्रदूषण को कम करना।

(ध) सभी ऊर्जा संयंत्रों का पारिस्थितिकीय रूप से मॉनीटर तथा समीक्षा करना एवं ऑनलाइन आँकड़ों का प्रबंधन करना।

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अभ्यास

1. बहुवैकल्पिक प्रश्न

(i) निम्न से कौन-सा उद्योग चूना पत्थर को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त करता है?
(क) एल्यूमिनियम
(ग) सीमेंट
(ख) प्लास्टिक
(घ) मोटरगाड़ी

Ans. (क) एल्यूमिनियम

(ii) निम्न से कौन-सा उद्योग बॉक्साइट को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करता है?
(क) एल्यूमिनियम प्रगलन
(ख) सीमेंट
(ग) कागज
(घ) स्टील

Ans. (क) एल्यूमिनियम प्रगलन

(iii) निम्न से कौन-सा उद्योग दूरभाष, कंप्यूटर आदि संयंत्र निर्मित करते हैं?
(क) स्टील
(ख) एल्यूमिनियम प्रगलन
(ग) इलैक्ट्रानिक
(घ) सूचना प्रौद्योगिकी

Ans. (ग) इलैक्ट्रानिक

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।

(i) विनिर्माण क्या है?
Ans.
कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को वस्तु निर्माण या विनिर्माण कहते हैं; जैसे-लकड़ी से कागज बनाना, गन्ने से चीनी बनाना तथा लौह अयस्क से लोहा इस्पात संयंत्र लगाना आदि। विनिर्माण उद्योग किसी भी देश के विकास की रीढ़ माने जाते हैं, क्योंकि ये कृषि के आधुनिकीकरण के साथ-साथ अन्य उद्योगों के विकास में भी सहायक होते हैं। |

(ii) आधारभूत उद्योग क्या है? उदाहरण देकर बताएँ।
Ans.
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन भौतिक कारक निम्नलिखित है-
(i) कच्चे माल की प्राप्ति।
(ii) शक्ति के साधन।
(iii) उपयुक्त जलवायु।

अथवा

उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले भौतिक कारक निम्नलिखित हैं

  1. कच्चे माल की उपलब्धता-अधिकांश उद्योग वहीं स्थापित किए जाते हैं जहाँ उनके लिए कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो सके। जैसे-अधिकांश लोहा इस्पात उद्योग प्रायद्वीपीय भारत में ही हैं, क्योंकि वहाँ लोहे की खाने हैं और कच्चा माल आसानी से प्राप्त हो जाता है।
  2. शक्ति के विभिन्न साधन-जहाँ उद्योगों को चलाने के लिए शक्ति के विभिन्न साधन प्राप्त हो जाएँगे वहीं उद्योगों | की स्थापना की जाएगी।
  3. जेल की सुलभता-विभिन्न उद्योगों के लिए जल की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में जल सुलभता से प्राप्त होता है वहाँ उद्योग स्थापित किए जाते हैं। जैसे-प० बंगाल में जूट मीलें इसलिए स्थापित हैं क्योंकि वहाँ हुगली नदी से पानी मिल जाता है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।

(i) उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं?
Ans.
उद्योग पर्यावरण को निम्नलिखित तरीके से प्रदूषित करते है:

(i) वायु प्रदूषण – चिमनी से निकलने वाला धुआँ वायु को प्रदूषित करता है। अनचाही गैसे जैसे सल्फर डाईऑक्साइ तथा कार्बन मोनोऑक्साइड वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। छोटे-बड़े कारखाने प्रदूषण के नियमों का उलंघन करते हुए धुआँ निष्कासित करते है। जहरीली गैसों का रिसाव बहुत भयानक होता है। यह मानव स्वास्थ्य, पशुओं पौधों और पुरे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डालती है।

(ii) जल प्रदूषण – उद्योगों से निकला हुआ जल अपने से 8 गुना अधिक ताजे जल को प्रदूषित करता है। उद्योगों द्वारा कार्बनिक और अकार्बनिक अपशिष्ट प्रदार्थों के नदी में छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता है। जल प्रदूषण के प्रमुख कारक- कागज, रसायन, वस्र चमड़ा उद्योग आदि है। भारी धातुएँ जैसे सीसा, पारा आदि जल में वाहित करते है।

(iii) तापीय प्रदूषण – कारखानों तथा तापघरों से गर्म जल को बिना ठंडा किए नदियों और तालाबों में छोड़ देने पर तापीय प्रदूषण होता है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अपशिष्ट व परमाणु शस्त्र उत्पादक कारखानों से जन्मजात विकार आदि होते है।

(iv) ध्वनि प्रदूषण – कुछ उद्योगों से ध्वनि प्रदूषण भी होता है। इससे श्रवण असक्षमता ही नहीं, रक्तचाप आदि समस्याएँ भी उत्पन्न होती है। औद्योगिक तथा निर्माण कार्य, गैस यांत्रिक, जेनरेटर आदि भी ध्वनि उत्पन करते है जो ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती है।

(ii) उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपायों की चर्चा करें?
Ans.
उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए गए हैं

  1. नदियों व तालाबों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन करना चाहिए
    जिससे जल प्रदूषित न हो।
  2. कोयले, लकड़ी या खनिज तेल से पैदा की गई बिजली जो हवा को प्रदूषित करती है, के स्थान पर जल द्वारा पैदा | की गई बिजली का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे में वातावरण शुद्ध रहेगा।
  3. वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ, चिमनियों में एलेक्ट्रोस्टैटिक अवक्षेपण स्क्रबर उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को जड़त्वीय रूप से पृथक करने के लिए उपकरण होना चाहिए। कारखानों में कोयले की अपेक्षा तेल व गैस के प्रयोग से धुंए के निष्कासन में कमी लायी जा सकती है।
  4. ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए जेनरेटरों में साईलेंसर लगाया जा सकता है। ऐसी मशीनरी का प्रयोग तभी किया जाए जो ऊर्जा सक्षम हों तथा कम ध्वनि प्रदूषण करें। ध्वनि अवशोषित करने वाले उपकरणों के इस्तेमाल के साथ कानों पर शोर नियंत्रण उपकरण भी पहनने चाहिए।
  5. फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित जल को वहीं इकट्ठा करके रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उसे साफ किया जाए और बार बार प्रयोग में लाया जाए। ऐसे में नदियों और आस-पास की भूमि का प्रदूषण काफी हद तक रुक जाएगा।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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