विकास : अध्याय 1

विकास अथवा प्रगति की धारणा हमेशा से हमारे साथ है। हमारी आकांक्षाएँ और इच्छाएँ हैं कि हम क्या करना चाहते हैं और अपना जीवन कैसे जीना चाहते हैं? इसी तरह हम विचार रखते हैं कि कोई देश कैसा होना चाहिए? हमें किन अनिवार्य वस्तुओं की आवश्यकता है? क्या सभी का जीवन बेहतर हो सकता है? लोग मिल-जुलकर कैसे रह सकते हैं? क्या और अधिक समानता हो सकती है? विकास इन सभी प्रश्नों पर विचार करने और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के उपायों से जुड़ा है। यह काम जटिल है और इस अध्याय में हम विकास को समझने की प्रक्रिया शुरू करेंगे। आप उच्च कक्षाओं में इन मुद्दों को अधिक गहराई से सीखेंगे। इसके अतिरिक्त, ऐसे बहुत से प्रश्नों के उत्तर आपको अर्थशास्त्र में ही नहीं बल्कि इतिहास और राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में भी मिलेंगे। ऐसा इसलिए है कि हम आज जो जीवन जी रहे हैं, वह अतीत से प्रभावित है। हम इसे जाने बिना बदलाव की इच्छा नहीं रख सकते। इसी तरह, हम केवल एक लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया के द्वारा ही इन आशाओं और संभावनाओं को वास्तविक जीवन में प्राप्त कर सकते हैं।

विकास क्या वादा करता है-विभिन्न व्यक्ति, विभिन्न लक्ष्य

हम यह कल्पना करने का प्रयास करें कि तालिका 1.1 में दी गई सूची के अनुसार लोगों के लिए विकास का क्या अर्थ हो सकता है। उनकी क्या आकांक्षाएँ हैं? आप देखेंगे कि कुछ स्तम्भ अधूरे भरे हुए हैं। इस तालिका को पूरा करने की कोशिश कीजिए। आप चाहें तो किन्हीं और श्रेणी के व्यक्तियों को जोड़ सकते हैं।

तालिका 1.1 विभिन्न श्रेणी के लोगों के विकास के लक्ष्य

व्यक्ति की श्रेणीविकास के लक्ष्य /आकांक्षाएँ
भूमिहीन ग्रामीण मजदूरकाम करने के अधिक दिन और बेहतर मजदूरीः स्थानीय स्कूल उनके बच्चों को उत्तम शिक्षा प्रदान करने में सक्षमः कोई सामाजिक भेदभाव नहीं और गाँव में वे भी नेता बन सकते हैं।
पंजाब के समृद्ध किसानकिसानों को उनकी उपज के लिए ज्यादा समर्थन मूल्यों और मेहनती और सस्ते मज़दूरों द्वारा उच्च पारिवारिक आय सुनिश्चित करना ताकि वे अपने बच्चों को विदेशों में बसा सके।
किसान जो खेती के लिए केवल वर्षा पर निर्भर है
भूस्वामी परिवार की एक ग्रामीण महिला
शहरी बेरोजगार युवक
शहर के अमीर परिवार का एक लड़का
शहर के अमीर परिवार की एक लड़कीउसे अपने भाई के जैसी आजादी मिलती है और वह अपने फैसले खुद कर सकती है। वह अपनी पढ़ाई विदेश में कर सकती है।
नर्मदा घाटी का एक आदिवासी

तालिका 1.1 को भरने के बाद अब इसका निरीक्षण करते हैं। क्या इन सभी लोगों की विकास या प्रगति के बारे में एक जैसा विचार है? संभवतः नहीं। इनमें से हर एक अलग-अलग चीजें पाना चाहता है। वे ऐसी चीजें चाहते हैं जो उनके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं, अर्थात् वे चीजें जो उनकी आकांक्षाओं और इच्छाओं को पूरा कर सकें। वास्तव में, कई बार दो व्यक्ति या दो गुट ऐसी चीजें चाह सकते हैं, जिनमें परस्पर विरोध हो सकता है। एक लड़की अपने भाई के समकक्ष आजादी और अवसर मिलने और भाई भी घर के कामकाज में हाथ बटायेगा, की आशा रखती है। हो सकता है कि भाई को यह पसंद न हो। इसी तरह, अधिक बिजली पाने के लिए, उद्योगपति ज़्यादा बाँध चाहते हैं। लेकिन इससे जमीन जलमग्न हो सकती है और उन लोगों का जीवन अस्तव्यस्त हो सकता है जो बेघर हो जायें, जैसे कि आदिवासी । वे इसका विरोध कर सकते हैं और हो सकता है कि वे अपने खेतों की सिंचाई के लिए केवल छोटे चैक बाँध या तालाब पसंद करें।

इस तरह दो बातें साफ हैं- एक, अलग-अलग लोगों के विकास के लक्ष्य भिन्न हो सकते हैं और दूसरा, एक के लिए जो विकास है वह दूसरे के लिए विकास न हो। यहाँ तक कि वह दूसरे के लिए विनाशकारी भी हो सकता है।

आय और अन्य लक्ष्य

आप अगर एक बार फिर तालिका 1.1 देखें तो एक बात समान पायेंगे: लोग चाहते हैं कि उन्हें नियमित काम, बेहतर मज़दूरी और अपनी उपज अथवा अन्य उत्पादों के लिए अच्छी कीमतें मिलें। दूसरे शब्दों मे वे ज़्यादा आय चाहते हैं।

किसी भी तरह से ज़्यादा आय चाहने के अतिरिक्त, लोग बराबरी का व्यवहार, स्वतंत्रता, सुरक्षा और दूसरों से आदर मिलने की इच्छा भी रखते हैं। वे भेदभाव से अप्रसन्न होते हैं। ये सभी महत्त्वपूर्ण लक्ष्य हैं। बल्कि, कुछ मामलों में ये अधिक आय और अधिक उपभोग से अधिक महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं, क्योंकि जीने के लिए केवल भौतिक वस्तुएँ ही पर्याप्त नहीं होती।

द्रव्य या उससे खरीदी जा सकने वाली भौतिक वस्तुएँ एक कारक है जिस पर हमारा जीवन निर्भर है। लेकिन हमारा बेहतर जीवन ऊपर लिखी अभौतिक वस्तुओं पर भी निर्भर करता है। अगर आपको यह बात स्पष्ट नहीं लगती है, तो अपने जीवन में अपने मित्रों की भूमिका के बारे में ज़रा सोचिए। आपको उनकी मित्रता की इच्छा हो सकती है। इसी तरह और भी बहुत सी चीजें हैं जिन्हें आसानी से मापा नहीं जा सकता, लेकिन उनका हमारे जीवन में बहुत महत्त्व हैं। इनकी प्रायः उपेक्षा कर दी जाती है। लेकिन, यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि जिसे मापा नहीं जा सकता, वह महत्त्व नहीं रखता।

एक और उदाहरण देखिए। अगर आप को कहीं दूर-दराज के इलाके में नौकरी मिलती है, उसे स्वीकार करने से पहले आप आय के अतिरिक्त बहुत से कारकों पर विचार करेंगे, जैसे कि आपके परिवार के लिए क्या सुविधाएँ उपलब्ध होंगी, काम करने का वातावरण कैसा होगा या सीखने के क्या अवसर हैं? दूसरी नौकरी में यद्यपि आप को वेतन कम मिलता है लेकिन यह नियमित रोजगार हो सकता है, जो आपकी सुरक्षा की भावना को बढ़ाता है। एक अन्य नौकरी अधिक वेतन दे सकती है, लेकिन कार्य की सुरक्षा नहीं, और हो सकता है आपको परिवार के लिए पर्याप्त समय भी न मिले। इससे आपकी सुरक्षा और स्वतंत्रता की भावना कम हो जाएगी।

इसी तरह, विकास के लिए, लोग मिले-जुले लक्ष्यों को देखते हैं। यह सच है कि यदि महिलाएँ वेतनभोगी कार्य करती हैं, तो घर और समाज में उनका आदर बढ़ता है। तथापि, यह भी सच है कि अगर महिलाओं के लिए आदर है, तो घर में उनके काम-काज में ज्यादा हाथ बंटाया जाएगा और घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं को अधिक स्वीकार किया जायेगा। सुरक्षित और संरक्षित वातावरण के कारण ज्यादा महिलाएँ विभिन्न प्रकार की नौकरियाँ या व्यापार कर सकती हैं। इसलिए लोगों के विकास के लक्ष्य केवल बेहतर आय के ही नहीं होते बल्कि जीवन में अन्य महत्त्वपूर्ण चीज़ों के बारे में भी होते हैं।

राष्ट्रीय विकास

जैसा कि हमने ऊपर देखा, यदि लोगों के लक्ष्य भिन्न हैं, तो उनकी राष्ट्रीय विकास के बारे में धारणा भी भिन्न होगी। आपस में इस विषय पर चर्चा कीजिए कि भारत को विकास के लिए क्या करना चाहिए?

संभव है कि कक्षा के विभिन्न विद्यार्थियों ने उपर्युक्त प्रश्नों के अलग-अलग उत्तर दिये होंगे। हो सकता है, आपने स्वयं इन प्रश्नों के बहुत से उत्तर सोचे हों और उनमें से किसी एक के विषय में आप स्वयं भी निश्चित न हो। यह समझना बहुत आवश्यक है कि देश के विकास के विषय में विभिन्न लोगों की धारणाएँ भिन्न या परस्पर विरोधी हो सकती है।

लेकिन क्या सभी विचारों को बराबर का महत्त्व दिया जा सकता है? या यदि परस्पर विरोधी हैं तो निर्णय कैसे किया जाए? सभी के लिए न्यायपूर्ण और सही राह क्या होगी? हमें यह भी सोचना होगा कि क्या कार्य करने का कोई बेहतर तरीका है? क्या इस विचार से बहुत से लोगों को लाभ होगा या कुछ को ही? राष्ट्रीय विकास का अभिप्राय इन सब प्रश्नों पर विचार करना है।

यदि विकास की धारणा में ही भिन्नता और परस्पर विरोध हो सकता है, तो निश्चित रूप से विकास के तरीकों में भी भिन्नता हो सकती है। अगर आप ऐसे किसी विवाद से परिचित हैं, तो आप विभिन्न व्यक्तियों के तर्क जानने का प्रयास कीजिए। यह आप लोगों से बातचीत करके या अखबारों और टेलीविजन के माध्यम से जान सकते हैं।

विभिन्न देशों या राज्यों की तुलना कैसे की जाए?

आप पूछ सकते हैं कि अगर विकास का अर्थ अलग-अलग हो सकता है, तो फिर कुछ देशों को विकसित और कुछ को अविकसित कैसे कहा जा सकता है? इससे पहले कि हम इस विषय पर आएँ, एक अन्य प्रश्न के बारे में सोचते हैं।

जब हम भिन्न-भिन्न चीजों की तुलना करते हैं तो उसमें समानताएँ और अंतर दोनों हो सकते हैं। हम इनकी तुलना करने के लिए किन पहलुओं का प्रयोग करते हैं? कक्षा में विद्यार्थियों को ही देखते हैं। हम विभिन्न विद्यार्थियों की तुलना कैसे करते हैं? उनमें ऊँचाई, स्वास्थ्य, प्रतिभा और रुचि के अनुसार अंतर हैं। हो सकता है, सबसे स्वस्थ विद्यार्थी सबसे पढ़ाकू विद्यार्थी न हो। सबसे बुद्धिमान विद्यार्थी हो सकता है मित्रता व्यवहार न रखता हो। तो, हम विद्यार्थियों की तुलना कैसे करते हैं? हम जो मापदण्ड प्रयोग करेंगे वह तुलना के उद्देश्य पर निर्भर करेगा। खेलकूद टीम, वाद विवाद टीम, संगीत टीम या पिकनिक के लिए टीम, सबके चयन के लिए अलग मापदण्ड होंगे। फिर भी, अगर हमें किसी उद्देश्य से कक्षा के विद्यार्थियों की सर्वांगीण प्रगति के बारे में मानक चाहिए तो हम उसे कैसे चुनेंगे?

सामान्यतया हम व्यक्तियों की एक या दो महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ लेकर उनके आधार पर तुलना करते हैं। तुलना के लिए क्या महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ चुनी जाएँ इस पर मतभेद हो सकते हैं- विद्यार्थियों का मित्रतापूर्ण व्यवहार और सहयोग भावना, उनकी रचनात्मकता या उनके द्वारा प्राप्त अंक ?

यही बात विकास पर भी लागू होती है। देशों की तुलना करने के लिए उनकी आय सबसे महत्त्वपूर्ण विशिष्टता समझी जाती है। जिन देशों की आय अधिक है उन्हें कम आय वाले देशों से अधिक विकसित समझा जाता है। यह इस समझ पर आधारित है कि अधिक आय का अर्थ है मानवीय आवश्यकताओं की सभी वस्तुओं का अधिक होना। जो भी लोगों को पसंद है और जो उनके पास होना चाहिए, वे उन सभी वस्तुओं को अधिक आय के द्वारा प्राप्त कर पायेंगे। इसलिये, ज़्यादा आय अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य समझा जाता है।

अब, एक देश की आय क्या है? अन्तर्दृष्टि से, किसी देश की आय उस देश के सभी निवासियों की आय है। इससे हमें देश की कुल आय ज्ञात होती है।

लेकिन, देशों के बीच तुलना करने के लिए कुल आय इतना उपयुक्त माप नहीं है। क्योंकि देशों की जनसंख्या अलग-अलग होती है, कुल आय की तुलना करने से हमें यह ज्ञात नहीं होगा कि औसत व्यक्ति क्या कमा सकता है? क्या एक देश के लोग दूसरे देश के लोगों से बेहतर हैं? इसलिए, हम औसत आय की तुलना करते हैं जो कि देश की कुल आय को कुल जनसंख्या से भाग देकर निकाली जाती है। औसत आय को प्रतिव्यक्ति आय भी कहा जाता है।

विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार, देशों का वर्गीकरण करने में इस मापदण्ड का प्रयोग किया गया है। वे देश जिनकी 2019 में प्रतिव्यक्ति आय US $49,300 प्रति वर्ष या उससे अधिक है, उसे समृद्ध अथवा उच्च आय देश और वे देश जिनकी प्रतिव्यक्ति आय US $2500 प्रति वर्ष या उससे कम है, उन्हें निम्न आय वाला देश कहा गया है। भारत मध्य आय वर्ग के देशों में आता है क्योंकि उसकी प्रतिव्यक्ति आय 2019 में केवल US $6700 प्रति वर्ष थी। समृद्ध देशों, जिनमें मध्य पूर्व के देश और कुछ अन्य छोटे देश शामिल नहीं हैं, को आमतौर पर विकसित देश कहा जाता है।

औसत आय

यद्यपि ‘औसत आय’ तुलना के लिए उपयोगी है, परंतु इनके द्वारा असमानताओं की जानकारी नहीं मिलती

उदाहरण के लिए, दो देश क और ख पर विचार करते हैं। सरलता के लिए, हम मानते हैं कि प्रत्येक देश में 5 निवासी हैं। तालिका 1.2 में दिए आंकड़ों के अनुसार, दोनों देशों की औसत आय निकालिए।

‘ख’ में रहना पसंद करेंगे अगर हमें यह आश्वासन हो कि हम उस देश के पाँचवें नागरिक होंगे। लेकिन अगर हमारी नागरिकता संख्या लॉटरी के द्वारा निश्चित होगी तो शायद हममें से ज़्यादातर लोग देश ‘क’ में रहना पसंद करेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि यद्यपि दोनों देशों की औसत आय एक समान है, देश ‘क’ के लोग न तो बहुत अमीर हैं न बहुत गरीब, जबकि देश ‘ख’ के ज्यादातर नागरिक गरीब हैं और एक व्यक्ति बहुत अमीर है। इसलिए यद्यपि औसत आय तुलना के लिए उपयोगी है, लेकिन इससे यह पता नहीं चलता कि यह आय लोगों में किस प्रकार वितरित है।

आय और अन्य मापदण्ड

जब हमने व्यक्तिगत आकांक्षाओं और लक्ष्यों को देखा, तो पाया कि लोग केवल बेहतर आय के बारे में ही नहीं सोचते बल्कि वे अपनी सुरक्षा, दूसरों से आदर और समानता का व्यवहार पाना, आज़ादी इत्यादि जैसे लक्ष्यों के बारे में भी सोचते हैं। इसी प्रकार जब हम किसी देश या क्षेत्र के बारे में सोचते हैं तो हम औसत आय के अतिरिक्त अन्य महत्त्वपूर्ण लक्षणों के विषय में भी सोचते हैं।

ये विशेषताएँ क्या हो सकती हैं? इसका निरीक्षण हम एक उदाहरण के द्वारा करते हैं। तालिका 1.3 हरियाणा, केरल और बिहार की प्रति-व्यक्ति आय दर्शाती है। वास्तव में, ये आँकड़े वर्ष 2018-19 की वर्तमान कीमतों पर प्रति व्यक्ति निवल राज्य घरेलू उत्पाद के हैं। अभी हम इस जटिल शब्द का क्या वास्तविक अर्थ है, उसे छोड़ देते हैं। मोटे तौर पर, हम इसे राज्य की प्रति व्यक्ति आय मान सकते हैं। हम देखते हैं कि इन तीनों राज्यों में हरियाणा की प्रति-व्यक्ति आय सबसे अधिक है और बिहार सबसे पीछे है।

इसका अर्थ है कि औसतन, हरियाणा में एक व्यक्ति एक वर्ष में 2,36,147 रुपए कमाता है, जबकि बिहार में औसतन वह केवल 40,982 रुपए कमा पाता है। इसलिए अगर विकास को मापने के लिए प्रति-व्यक्ति आय का प्रयोग किया जाए तो तीनों राज्यों में हरियाणा सबसे अधिक और बिहार सबसे कम विकसित राज्य माना जाएगा। अब हम इन तीनों राज्यों के कुछ और आँकड़ों पर नजर डालते हैं, जो कि तालिका 1.4 में दिये गए हैं।

यह तालिका क्या दर्शाती है? तालिका का पहला स्तंभ दिखाता है कि केरल में 1000 जीवित पैदा हुए बच्चों में से 7 बच्चे 1 वर्ष की आयु तक पहुँचने से पहले मर जाते हैं, लेकिन हरियाणा में यह अनुपात 30 था जो केरल की तुलना में लगभग 3 गुना से ज़्यादा है। दूसरी ओर हरियाणा की प्रति-व्यक्ति आय केरल से ज्यादा है जैसा तालिका 1.3 में दिखाया गया है। ज़रा सोचिए कि अपने माता-पिता के लिए आप कितने प्यारे हैं, यह सोचिए कि सब लोग कितना प्रसन्न होते हैं, जब कोई बच्चा जन्म लेता है। अब ऐसे माता-पिताओं के बारे में सोचिए जिनके बच्चे अपने पहले जन्म दिन से पहले ही मर जाते हैं। ऐसे माता-पिताओं को कितना दुख महसूस होता होगा। दूसरा, यह देखिए कि ये आँकड़े किस वर्ष के हैं। वर्ष 2018-19 के हैं, तो हम बहुत पुराने समय की बात नहीं कर रहे हैं; यह हमारी स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद की बात है जब हमारे देश के बड़े शहर ऊँची-ऊँची इमारतों और खरीददारी के लिए शॉपिंग मॉल से भरे हुए हैं।

समस्या शिशु मृत्यु दर पर समाप्त नहीं हो जाती। तालिका 1.4 का अंतिम स्तंभ दिखाता है कि बिहार के लगभग आधे बच्चे कक्षा आठवीं के बाद स्कूल नहीं जा रहे हैं अर्थात् यदि आप बिहार के किसी स्कूल में पढ़ते होते, तो आपकी प्रारंभिक कक्षा के लगभग आधे से अधिक बच्चे गायब होते। जिन बच्चों को स्कूल में होना चाहिए था, वे वहाँ नहीं होते। अगर ये आपके साथ होता, तो आप अभी यह सब न पढ़ पाते जो पढ़ रहे हैं।

सार्वजनिक सुविधाएँ

ऐसा क्यों है कि हरियाणा में औसत व्यक्ति की आय केरल के औसत व्यक्ति की आय से अधिक है, लेकिन इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में वह केरल से पीछे है? इसका कारण यह है कि यह आवश्यक नहीं कि जेब में रखा रुपया वे सब वस्तुएँ और सेवाएँ खरीद सके, जिनकी आपको एक बेहतर जीवन के लिए आवश्यकता हो सकती है। नागरिक कितनी भौतिक वस्तुएँ और सेवाएँ प्रयोग कर सकते हैं, इसके लिए आय अपने आप में संपूर्ण रूप से पर्याप्त सूचक नहीं है। उदाहरण के लिए, सामान्यता आपका द्रव्य आपके लिए प्रदूषण मुक्त वातावरण नहीं खरीद सकता या बिना मिलावट की दवाएँ आपको नहीं दिला सकता, जब तक आप ऐसे समुदाय में ही जाकर नहीं रहने लग जाते जहाँ ये सुविधाएँ पहले से उपलब्ध हैं। द्रव्य आपको संक्रामक बीमारियों से भी नहीं बचा सकता, जब तक आपका पूरा समुदाय इनसे बचाव के लिए कदम नहीं उठाता।

वास्तव में जीवन में बहुत सी महत्त्वपूर्ण चीज़ों के लिए सबसे अच्छा और सस्ता तरीका इन वस्तुओं और सेवाओं को सामूहिक रूप से उपलब्ध कराना है। जरा सोचिए, किसी स्थानीय इलाके के लिए सामूहिक सुरक्षा प्रदान करना अधिक सस्ता है अथवा हर घर के लिए अलग-अलग सुरक्षा गार्ड रखना? आप क्या करते, अगर आपके गाँव या इलाके में आपके अतिरिक्त कोई और पढ़ने में रुचि नहीं रखता? क्या तुम पढ़ पाओगे? शायद तब तक नहीं जब तक तुम्हारे माता-पिता तुम्हें कहीं और निजी स्कूल में पढ़ने भेजने की क्षमता न रखते हों। आप इसलिए पढ़ पा रहे हो क्योंकि बहुत से अन्य बच्चे पढ़ना चाहते हैं और बहुत से लोग ये मानते हैं कि सरकार को स्कूल खोलने चाहिए और अन्य प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए जिससे सभी बच्चों को पढ़ने का अवसर मिले। अभी भी बहुत से क्षेत्रों में बच्चे, मुख्य रूप से लड़कियाँ, उच्च विद्यालयी शिक्षा भी नहीं ले पाती हैं। क्योंकि सरकार समाज ने इसके लिए पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध नहीं कराई है।

केरल में शिशु मृत्यु दर कम है क्योंकि यहाँ स्वास्थ्य और शिक्षा की मौलिक सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इसी प्रकार, कुछ राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (सा.वि.प्र.) ठीक प्रकार कार्य करती है। ऐसे राज्यों में लोगों के स्वास्थ्य और पोषण स्तर निश्चित रूप से बेहतर होने की संभावना है।

यह ज्ञात करने के लिए कि क्या हम उचित प्रकार से पोषित हैं, एक तरीका है, जिसे वैज्ञानिक शरीर द्रव्यमान सूचकांक (बी.एम.आई.) कहते हैं। इसकी गणना करना सरल है, कक्षा में प्रत्येक विद्यार्थी अपना भार और ऊँचाई ज्ञात करें। प्रत्येक बच्चे का भार किलोग्राम में लें। फिर दीवार पर एक पैमाना बनाकर, सिर को सीधा रखते हुए, ऊँचाई का सही माप करें। सेंटीमीटर में नापी गई ऊँचाई का सही माप करें। किलोग्राम में व्यक्त भार को, ऊँचाई के वर्ग से भाग दें। आपको जो अंक प्राप्त होगा, वही बी.एम. आई. (BMI) कहलाता है। फिर इस पुस्तक के पृष्ठ 90 और 91 पर दी गई, ‘आयु-अनुसार बी.एम.आई.’ तालिका को देखें। विद्यार्थी का बी.एम.आई. सामान्य, सामान्य से कम या सामान्य से अधिक हो सकता है। यदि एक विद्यार्थी की बी.एम.आई-2 एस.डी. से 2 एस.डी. के बीच में है तो उसे सामान्य कहा जाएगा। यदि यह 2 एस.डी. से अधिक है तो वह ‘न्यूनभारित’ है और उसे अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, यदि एक विद्यार्थी की आयु 14 वर्ष 8 माह है और उसकी बी.एम.आई. 15.2 है तो वह अल्प-पोषित है। इसी भांति यदि एक विद्यार्थी जिसकी बी.एम.आई. 28 है और आयु 15 वर्ष 6 माह है, को न्यूनभारित कहेंगे। विद्यार्थियों की जीवन- परिस्थिति, भोजन एवं व्यायाम संबंधी आदतों को बिना किसी को लज्जित किये सामान्य रूप से चर्चा करें।

मानव विकास रिपोर्ट

एक बार यह बात समझ में आ जाए कि यद्यपि आय का स्तर महत्त्वपूर्ण है, पर यह विकास के स्तर को मापने का अपर्याप्त मापदंड है, तो हम अन्य मापदंडों के बारे में सोचने लगेंगे। ऐसे मापदंडों की सूची लम्बी हो सकती है, लेकिन वह इतनी उपयोगी नहीं रहेगी। हमें अधिक महत्त्वपूर्ण चीज़ों की कम संख्या में आवश्यकता है। स्वास्थ्य और शिक्षा के सूचक-जैसे हमने केरल और हरियाणा की तुलना करने के लिए प्रयोग किये, ऐसे ही सूचकों में हैं। पिछले लगभग एक दशक में, स्वास्थ्य और शिक्षा सूचकों का आय के साथ व्यापक स्तर पर विकास के माप के लिए प्रयोग किया जाने लगा है। उदाहरण के लिए, यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर करती है। भारत और उसके पड़ोसी देशों की 2021-22 की मानव विकास रिपोर्ट के कुछ संबद्ध आँकड़ों पर दृष्टि डालना रुचिकर होगा।

क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हमारे पड़ोस का एक छोटा-सा देश श्रीलंका हर विषय में भारत से आगे है और हमारे जैसे बड़े देश का विश्व में इतना नीचा क्रमांक है? तालिका 1.6 यह भी दिखाती है कि यद्यपि नेपाल और बांग्लादेश की प्रतिव्यक्ति आय भारत की तुलना में कम है, फिर भी वे भारत से आयु संभाविता में पीछे नहीं है।

एच.डी.आई. के परिकलन के लिए बहुत से सुधारों का सुझाव दिया गया है। मानव विकास रिपोर्ट में बहुत से नए घटक जोड़े गए हैं, लेकिन मानव के विकास से पहले, यह बात स्पष्ट कर दी गई है कि विकास महत्त्वपूर्ण है – एक देश के नागरिकों के साथ क्या हो रहा है। लोगों का स्वास्थ्य, उनका कल्याण सबसे अधिक ज़रूरी है।

क्या आप सोचते हैं कि मानव विकास को मापने के कुछ और पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए?

विकास की धारणीयता

हम विकास को जिस तरह भी परिभाषित करें, अभी के लिए मान लें कि एक विशेष देश काफ़ी विकसित है। हम निश्चित रूप से यह चाहेंगे कि विकास का यह स्तर और ऊँचा हो या कम से कम भावी पीढ़ी के लिए यह स्तर बना रहे। यह स्पष्ट रूप से वांछनीय है। लेकिन बीसवी सदी के उत्तरार्द्ध से बहुत से वैज्ञानिक यह चेतावनी देते आ रहे हैं कि विकास का वर्तमान प्रकार और स्तर धारणीय नहीं है।

भूमिगत जल नवीकरणीय साधन का उदाहरण हैं। फसल और पौधों की तरह इन साधनों की पुनः पूर्ति प्रकृति करती है, लेकिन यहाँ भी हम इन साधनों का अति-उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, भूमिगत जल का यदि बरसात द्वारा हो रही पुनः पूर्ति से अधिक प्रयोग करते हैं, तो हम इस साधन का अति उपयोग कर रहे होंगे।

गैर नवीकरणीय साधन वो हैं, जो कुछ ही वर्षों के प्रयोग के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं। इन संसाधनों का धरती पर एक निश्चित भण्डार है और इनकी पुनः पूर्ति नहीं हो सकती। कभी-कभी हमें ऐसे नए साधन मिल जाते हैं, जिनके बारे में हमें पहले कोई जानकारी नहीं थी। नये स्रोत भण्डार में वृद्धि करते हैं, लेकिन समय के साथ यह भी समाप्त हो जाएँगे।

उदाहरण 1- भारत में भूमिगत जल

“हाल के प्रमाणों से पता चलता है कि देश के कई भागों में भूमिगत जल के अति-उपयोग होने का गंभीर संकट है। 300 जिलों से सूचना मिली है कि वहाँ पिछले 20 सालों में पानी के स्तर में 4 मीटर से अधिक की गिरावट आयी है। देश का लगभग एक तिहाई भाग, भूमिगत जल भण्डारों का अति उपयोग कर रहा है। यदि इस साधन के प्रयोग करने का वर्तमान तरीका जारी रहा तो अगले 25 वर्षों में देश का 60 प्रतिशत भाग इस साधन का अति उपयोग कर रहा होगा। भूमिगत जल का अति-उपयोग विशेष रूप से पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कृषि की दृष्टि से समृद्ध क्षेत्रों, मध्य और दक्षिण भारत के चट्टानी पठारी क्षेत्रों, कुछ तटवर्ती क्षेत्रों और तेज्जी से विकसित होती शहरी बस्तियों में पाया जाता है।”

1. आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि भूमिगत जल का अति उपयोग हो रहा है?

2 क्या बिना अति उपयोग के विकास हो सकता है?

उदाहरण 2 – प्राकृतिक संसाधनों का दोहन

कच्चे तेल के लिए निम्न आंकड़ों को देखिए।

तालिका 1.7 कच्चे तेल के अतिरिक्त भण्डार

क्षेत्र/देश भण्डार (2017) (हजार मिलियन बैटल)भण्डारों के चलने की अवधि (वर्षों में)
मध्य-पूर्व
संयुक्त राज्य अमरीका
विश्व
807.7
50
1696.6
70
10.5
50.2

यह तालिका कच्चे तेल के भण्डारों के अनुमान (कॉलम 1) को दर्शाती है। अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि यह बताती है कि यदि कच्चे तेल का प्रयोग वर्तमान दर पर चालू रहे तो ये भण्डार कितने वर्ष चलेंगे। यह संपूर्ण विश्व के लिए है। किंतु अलग-अलग देशों की अलग-अलग स्थितियाँ है। यह भण्डार केवल 50 वर्षों में समाप्त हो जाएँगे। भारत जैसे देश इसके आयात पर निर्भर हैं, जिसके पास तेल के पर्याप्त भण्डार नहीं है। तेल की कीमतें बढ़ती है, तो प्रत्येक पर भार पड़ता है। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे कुछ देश हैं जिनके पास भण्डार तो कम है लेकिन वे इसे सैन्य और आर्थिक शक्ति के द्वारा पाना चाहते हैं। विकास की धारणीयता का प्रश्न, इसकी प्रकृति और प्रक्रिया के बारे में कई अन्य मूल नए विषय खड़े कर देता है।

1. क्या किसी देश की विकास प्रक्रिया के लिए कच्चा तेल अनिवार्य है? चर्चा कीजिए।

2. भारत को कच्चे तेल का आयात करना पड़ता है। उपरोक्त स्थिति को देखते हुए आप भारत के लिए आने वाले समय में किन समस्याओं का पूर्वानुमान करते हैं?

पर्यावरण में गिरावट के परिणाम राष्ट्रीय और राज्य सीमाओं का ख्याल नहीं करते; यह एक क्षेत्र या देशगत विषय नहीं रह गया है। हम सब का भविष्य परस्पर जुड़ा हुआ है। विकास की धारणीयता तुलनात्मक स्तर पर ज्ञान का नया क्षेत्र है, जिसमें वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, दार्शनिक और अन्य सामाजिक वैज्ञानिक मिल-जुल कर काम कर रहे हैं।

विकास या प्रगति का प्रश्न हमेशा चलने वाला प्रश्न है। हर वक्त में, हमें व्यक्तिगत स्तर पर और समाज का सदस्य होने के नाते यह प्रश्न पूछने की आवश्यकता है कि हम कहाँ जाना चाहते हैं, हम क्या बनना चाहते हैं और हमारे लक्ष्य क्या हैं? इसलिए विकास पर बहस जारी है।

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अभ्यास

1. सामान्यतः किसी देश का विकास किस आधार पर निर्धारित किया जा सकता है

(क) प्रतिव्यक्ति आय
(ख) औसत साक्षरता स्तर
(ग) लोगों की स्वास्थ्य स्थिति
(घ) उपरोक्त सभी

Ans. (घ) उपरोक्त सभी

2. निम्नलिखित पड़ोसी देशों में से मानव विकास के लिहाज से किस देश की स्थिति भारत से बेहतर है?

(क) बांग्लादेश
(ख) श्रीलंका
(ग) नेपाल
(घ) पाकिस्तान

Ans. (ख) श्रीलंका

3. मान लीजिए कि एक देश में चार परिवार है। इन परिवारों की प्रतिव्यक्ति आय 5,000 रुपये हैं। अगर तीन परिवारों की आय क्रमश: 4000 , 7000 और 3000 रुपये हैं, तो चौथे परिवार की आय क्या है?

(क) 7,500 रुपये
(ख) 3,000 रुपये
(ग) 2,000 रुपये
(घ) 6,000 रुपये

Ans. (घ) 6,000 रुपये

4. विश्व बैंक विभिन्न वर्गों का वर्गीकरण करने के लिये किस प्रमुख मापदण्ड का प्रयोग करता है? इस मापदण्ड की, अगर कोई हैं, तो सीमाएँ क्या है?
Ans.
विश्व बैंक विभिन्न देशों का आर्थिक विकास के आधार पर वर्गीकरण करने के लिए औसत आय अथवा प्रति व्यक्ति आय मापदण्ड का प्रयोग करता है। इसके अनुसार वे देश जिनकी वर्ष 2004 में प्रति व्यक्ति आय 4,53000 रुपये प्रतिवर्ष या उससे अधिक है तो उन देशों को समृध्द देशों की श्रेणी में रखा जाता है। इसी प्रकार जिन देशों में प्रतिव्यक्ति आय 37000 रुपये प्रतिवर्ष या उससे कम है तो उन देशों को निम्नआय वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है। इस मापदण्ड की एक मह्त्त्व्पूर्ण सीमा यह है कि औसत आय प्रायः तुलना में तो सहयोगी सिध्द होती है। 

5. विकास मापने का यू.एन.डी.पी. का मापदण्ड किन पहलुओं में विश्व बैंक के मापदण्ड से अलग है?
Ans.
विकास मापने के विश्व बैंक के मापदण्ड का आधार बिंदु औसत अथवा प्रतिव्यक्ति आय हैं। परंतु यू. एन.डी. पी. अर्थात संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के विकास मापदण्ड में विभिन्न देशों के विकास की तुलना वहाँ के लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती हैं। 

6. हम औसत का प्रयोग क्यों करते हैं? इनके प्रयोग करने की क्या कोई सीमाएँ है? विकास से जुड़े अपने उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
Ans.
जब सैम्पल का आकार बड़ा होता है एक-एक आँकड़े की विवेचना बहुत कठिन होती है। इसलिए जब भी सैम्पल का आकार बड़ा होता है तो हम औसत का प्रयोग करते हैं। औसत से किसी भी कसौटी का मोटा अनुमान मिल जाता है। लेकिन औसत से कई बार सही चित्र नहीं मिल पाता। इसे समझने के लिए प्रति व्यक्ति आय का उदाहरण लेते हैं। जब आर्थिक असमानता बहुत अधिक होती है तो प्रति व्यक्ति आय से आप आय के वितरण के बारे में कुछ नहीं कह सकते।

अथवा

विभिन्न देशों अथवा व्यक्तियों की तुलना करने के लिए सामान्यतया उनकी एक या दो विशिष्टताओं को ही आधार बनाया जाता है जो लगभग सभी व्यक्तियों अथवा देशों का समग्र रूप में प्रतिनिधित्व करती हो और इस उदेश्य की पूर्ति हेतु सामान्यतया औसत का ही प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण के लिए, किसी देश के विकास को मापने के लिए प्रायः कुल आय की तुलना से हमें ये ज्ञात नहीं होता कि देश का औसत व्यक्ति वास्तव में क्या कमा सकता है। दूसरे, विभिन्न देशों की जनसंख्या भी प्रायः अलग-अलग होती है।

जब कुल आय अधिक होती हैं परंतु यदि साथ ही जनसंख्य भी अधिक होती हैं तो इस अधिक आय को कोई विशेष महत्व नहीं रह जाता। अंत: इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रायः औसत आय का ही प्रयोग किया जाता हैं। परंतु तुलनात्मक उद्देश्य के लिए औसत का प्रयोग कई बार भ्रमक भी हो सकता है। 

7. प्रतिव्यक्ति आय कम होने पर भी केरल का मानव विकास क्रमांक हरियाणा से ऊँचा है। इसलिए प्रतिव्यक्ति आय एक उपयोगी मापदण्ड बिल्कुल नहीं है और राज्यों की तुलना के लिए इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। क्या आप सहमत हैं? चर्चा कीजिए।
Ans. प्रति व्यक्ति आय के मामले में पंजाब का स्थान केरल से ऊपर है। लेकिन पंजाब में शिशु मृत्यु दर अधिक है, साक्षरता कम है और कक्षा 1 से 4 में निबल उपस्थिति दर कम है। इसका मतलब है कि मानव विकास सूचकांक में केरल का स्थान पंजाब से ऊपर है। इसलिए हम कह सकते हैं कि प्रति व्यक्ति आय एक उपयोगी मापदण्ड नहीं है। प्रति व्यक्ति आय का उपयोग करते समय अन्य मापदण्डों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए।

अथवा

प्रति व्यक्ति कम होने पर भी केरल का मानव विकास सूचकांक पंजाब से कही ऊँचा है। इस प्रकार प्रतिव्यक्ति आय विकास का एक उपयोगी मापदण्ड बिल्कुल नहीं है। इस कथन से हम पूर्णत: सहमत हैं क्योंकि आय या उससे ख़रीदी जा सकने वाली भौतिक वस्तुएँ एक कारक हैं जिन  पर हमारा जीवन निर्भर हैं।

परंतु हमारा बेहतर जीवन कई अन्य अभौतिक वस्तुओं पर भी निर्भर करता हैं और यही कारण हैं कि पिछले लगभग एक दशक में, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि सूचकों का आय के साथ व्यापक स्तर पर विकास के माप के लिए प्रयोग किया जाने लगा हैं।

दूसरे, आय के द्वारा वे सभी वस्तुएँ एवं सेवाएँ नहीं ख़रीदी जा सकती जो एक बेहतर जीवन जीने के लिए आवश्यक होती है। उदाहरणद के लिए, आप आय के द्वारा प्रदूषण मुक्त वातावरण या बिना मिलावट की दवाएँ नहीं ख़रीद सकते। इस प्रकार विभिन्न राज्यों की तुलना के लिए आय एक उपयोगी मापदण्ड नहीं हैं। 

8. भारत के लोगों द्वारा ऊर्जा के किन स्रोतों का प्रयोग किया जाता है? ज्ञात कीजिए। अब से 50 वर्ष पश्चात् क्या संभावनाएँ हो सकती है?
Ans.
भारत के लोगों द्वारा ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों जैसे- भूमिगत जल, कोयला, कच्चे तेल आदि का प्रयोग किया जाता हैं। भूमिगत जल एक नवीकरणीय साधन है परंतु हाल के प्रमाणो से पता चलता है की देश के कई भू-भागों में इसका अति-उपयोगी हो रहा है।

यदि इस साधन के प्रयोग का 60% भाग इस साधन का अति उपयोग कर रहा होगा। इसी प्रकार कच्चा तेल, कोयला आदि कुछ अनवीकरणीय साधन हैं जो एक बार प्रयोग के बाद समाप्त हो जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ यदि इन सभी संसाधनो का प्रयोग वर्तमान दर पर ही जारी रहा तो सम्पूर्ण विश्व में इनके भण्डार केवल अगले 43 वर्षों में ही समाप्त हो जाएँगे। इस प्रकार भारत में भी यह संकट गम्भीर रूप धारण कर सकता हैं।

9. धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
Ans.
अपना आज संवारने के चक्कर में हम से अधिकांश लोग भविष्य की पीढियों के बारे में नहीं सोचते हैं। धारणीयता का अर्थ है ऐसा विकास जो आने वाले कई वर्षों तक सतत चलता रहे। जब हम संसाधन का दोहन करने की बजाय उनका विवेकपूर्ण इस्तेमाल करते हैं तो हम धारणीयता को संभव कर पाते हैं। ऐसा करके हम आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बहुत कुछ बचाकर रखते हैं।

अथवा

धारणीयता का विषय विकास के लिए अति मह्त्त्व्पूर्ण है क्योंकि लगभग हर व्यक्ति यही चाहता है कि विकास का स्तर निरन्तर ऊँचा रहे तथा यह आने वाली भावी पीढ़ी के लिए भी कम से  कम इसी स्तर पर बना रहे। चूँकि विकास अपने साथ विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय एवं अन्य दुष्परिणाम साथ लेकर आता है जो राष्ट्रीय तथा राज्य सीमाओं का ख़्याल नहीं करते। और यही कारण है कि बहुत से वैज्ञानिक विकास के वर्तमान प्रकार और स्तर को  धारणीय नहीं मानते। इस संदर्भ में विकास की धारणीयता तुलनात्मक स्तर पर ज्ञान का एक नया क्षेत्र हैं जिसमें वैज्ञानिक, दशर्रनिक, अर्थशास्त्री और विभिन्न सामासिक वैज्ञानिक परस्पर मिल-जुल कर कार्य कर रहे हैं।

10. धरती के पास सब लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन एक भी व्यक्ति के लालच को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। यह कथन विकास की चर्चा में कैसे प्रासंगिक है? चर्चा कीजिए।
Ans.
धरती के पास सब लोगों की आवश्यकताओ को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन है, लेकिन एक भी व्यक्ति के लालच को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। यह कथन विकास की चर्चा में पूर्णत: प्रासंगिक हैं। पृथ्वी के अन्दर हमारी वर्तमान व भावी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए अनवीकरणीय संसाधनो का अथाह भण्डार मौजूद हैं। परंतु ये तभी संभव हैं जब इनका विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाए। परंतु बढती मानवीय लालसाओं के  कारण किया जा रहा इनका अंधाधुंध उपयोग मानव के सामने एक गंभीर ख़तरा बनता जा रहा हैं। लोगों के बढते हुए उपयोग, जनसंख्या वृध्दि तथा तीव्र औधोगिक विकास के कारण इन संसाधनो का अत्यधिक दोहन किया जा रहा हैं। 

11. पर्यावरण में गिरावट के कुछ ऐसे उदाहरणों की सूची बनाइए जो आपने अपने आसपास देखे हों।
Ans.
मेरे शहर में पर्यावरण के गिरावट के कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं:

  • शहर के तीन बड़े तालाब आज नाले के पानी से भरे पड़े हैं।
  • शहर में पेड़ इतने कम हैं कोई उन्हें अंगुलियों पर गिन ले।
  • छोटे-छोटे कल कारखानों के कारण हवा प्रदूषित हो चुकी है।
  • वायु प्रदूषण इतना अधिक है कि सांस लेना भी मुश्किल होता है।

12. तालिका 1.6 में दी गई प्रत्येक मद के लिए ज्ञात कीजिए कि कौन-सा देश सबसे ऊपर है और कौन-सा सबसे नीचे।


Ans.
विभिन्न मापदण्डों पर सबसे ऊपर और सबसे नीचे के देश नीचे दिये गये हैं:

मापदण्डसबसे ऊपरसबसे नीचे
सफल राष्ट्रीय आय (प्रति व्यक्ति)श्रीलंकानेपाल
जन्म के समय संभावित आयुश्रीलंकाम्यानमार
विद्यालयी औसत आयुश्रीलंकाम्यानमार और नेपाल
मानव विकास सूचकांक का क्रमांकश्रीलंकापाकिस्तान

13. नीचे दी गई तालिका में भारत में व्यस्कों (15-49 वर्ष आयु वाले) जिनका बी.एम.आई. सामान्य से कम है (बी.एम.आई. <18.5kg/m²) का अनुपात दिखाया गया है। यह वर्ष 2019-21 में देश के विभिन्न राज्यों के एक सर्वेक्षण पर आधारित है। तालिका का अध्ययन करके निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

राज्यपुरुष (%)महिला (%)
केरल8.510
कर्नाटक1721
मध्य प्रदेश2828
सभी राज्य2023

(क) केरल और मध्य प्रदेश के लोगों के पोषण स्तरों की तुलना कीजिए।
Ans.
मध्य प्रदेश की तुलना में केरल के लोगों का पोषण स्तर बेहतर है।

(ख) क्या आप अन्दाज लगा सकते हैं कि देश में लगभग हर पाँच में से एक व्यक्ति अल्पपोषित क्यों है, यद्यपि यह तर्क दिया जाता है कि देश में पर्याप्त खाद्य है? अपने शब्दों में विवरण दीजिए।
Ans.
इसके कुछ संभावित कारण निम्नलिखित हैं:

  • खाद्य उत्पादन का असमान वितरण
  • अकुशल सप्लाई चेन
  • जनवितरण प्रणाली की खराब हालत

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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