आयोग की स्थापना
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, एक सांविधिक (संवैधानिक नहीं) निकाय है। इसका गठन संसद में पारित अधिनियम के अंतर्गत हुआ था, जिसका नाम था, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993। 2006 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया।
यह आयोग देश में मानवाधिकारों का प्रहरी है- अर्थात संविधान द्वारा अभिनिश्चित या अंतर्राष्ट्रीय संधियों में निर्मित और भारत में न्यायालय द्वारा अधिरोपित किए जाने वाले जीवन, स्वतंत्रता समता और व्यक्तिगत मर्यादा से संबंधित अधिकार।
आयोग की स्थापना के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:
1. उन संस्थागत व्यवस्थाओं को मजबूत करना, जिसके द्वारा मानवाधिकार के मुद्दों का पूर्ण रूप में समाधान किया जा सके।
2. अधिकारों के अतिक्रमण को सरकार से स्वतंत्र रूप में इस तरह से देखना ताकि सरकार का ध्यान उसके द्वारा मानवाधिकारों की रक्षा की प्रतिबद्धता पर केंद्रित किया जा सके।
3. इस दिशा में किए गए प्रयासों को पूर्ण व सशक्त बनाना।
आयोग की संरचना
आयोग एक बहु-सदस्यीय संस्था है, जिसमें एक अध्यक्ष व चार सदस्य होते हैं। आयोग का अध्यक्ष भारत का कोई सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। एक सदस्य उच्चतम न्यायालय में कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश एक, उच्च न्यायालय का कार्यरत या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। दो अन्य व्यक्तियों को मानवाधिकार से संबंधित जानकारी अथवा कार्यानुभव होना चाहिए। इन पूर्णकालिक सदस्यों के अतिरिक्त आयोग में चार अन्य पदेन सदस्य भी होते हैं-राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग व राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष। आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गठित छह सदस्यीय समिति की सिफारिश पर होती है। समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उप-सभापति, संसद के दोनों सदनों के मुख्य विपक्षी दल के नेता व केंद्रीय गृहमंत्री होते हैं। इसके अतिरिक्त, भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर, उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय के किसी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति हो सकती है।
आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष अथवा जब उनकी उम्र 70 वर्ष हो (जो भी पहले हो), का होता है। अपने कार्यकाल के पश्चात आयोग के अध्यक्ष व सदस्य, केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों में किसी भी पद के योग्य नहीं होते हैं।
राष्ट्रपति अध्यक्ष व सदस्यों को उनके पद से किसी भी समय निम्नलिखित परिस्थितियों में हटा सकता है:
1. यदि वह दिवालिया हो जाए।
2. यदि वह अपने कार्यकाल के दौरान, अपने कार्यक्षेत्र से बाहर से किसी प्रदत्त रोजगार में संलिप्त होता है।
3. यदि वह मानसिक व शारीरिक कारणों से कार्य करने में असमर्थ हों।
4. यदि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो तथा सक्षम न्यायालय ऐसी घोषणा करे।
5. यदि वह न्यायालय द्वारा किसी अपराध का दोषी व सजायाफ्ता हो।
इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति, अध्यक्ष तथा किसी भी सदस्य को उसके दुराचरण या अक्षमता के कारण भी पद से हटा सकता। हालांकि इस स्थिति में राष्ट्रपति इस विषय को उच्चतम न्यायालय में जांच के लिए सौंपेगा। यदि जांच के उपरांत उच्चतम न्यायालय इन आरोपों को सही पाता है तो उसकी सलाह पर राष्ट्रपति इन सदस्यों व अध्यक्ष को उनके पद से हटा सकता है।
आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के वेतन, भत्तों व अन्य सेवा शर्तों का निर्धारण केंद्रीय सरकार द्वारा किया जाता है परंतु नियुक्ति के उपरांत उनमें अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
उपरोक्त सभी उपबंधों का उद्देश्य, आयोग की कार्यशैली को स्वायत्तता, स्वाधीनता तथा निष्पक्षता प्रदान करना है।
आयोग के कार्य
आयोग के कार्य निम्नानुसार हैं:
1. मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करना अथवा किसी लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत मानवाधिकार उल्लंघन की प्रार्थना, जिसकी कि वह अवहेलना करता हो, की जांच स्व प्ररेणा या न्यायालय के आदेश से करना।
2. न्यायालय में लंबित किसी मानवाधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करना।
3. जेलों व बंदीगृहों में जाकर वहां की स्थिति का अध्ययन करना व इस बारे में सिफारिशें करना।
4. मानवाधिकार की रक्षा हेतु बनाए गए संवैधानिक व विधिक उपबंधों की समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिशें करना।
5. आतंकवाद सहित उन सभी कारणों की समीक्षा करना, जिनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करना।
6. मानवाधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों व दस्तावेजों का अध्ययन व उनको प्रभावशाली तरीके से लागू करने हेतु सिफारिशें करना।
7. मानवाधिकारों के क्षेत्र में शोध करना और इसे प्रोत्साहित करना।
8. लोगों के बीच मानवाधिकारों की जानकारी फैलाना व उनकी सुरक्षा के लिए उपलब्ध उपायों के प्रति जागरूक करना।
9. मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों की सराहना करना।
10. ऐसे आवश्यक कार्यों को करना, जो कि मानवाधिकारों के प्रचार के लिए आवश्यक हों।
आयोग की कार्यप्रणाली
आयोग का प्रधान कार्यालय दिल्ली में स्थित है तथा वह भारत में अन्य स्थानों पर भी अपने कार्यालय खोल सकता है। आयोग की अपनी कार्यप्रणाली है तथा वह यह करने के लिए अधिकृत है। आयोग के पास सिविल न्यायालय जैसे सभी अधिकार व शक्तियां हैं तथा इसका चरित्र भी न्यायिक है। आयोग केंद्र अथवा राज्य सरकार से किसी भी जानकारी अथवा रिपोर्ट की मांग कर सकता है। आयोग के पास मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों की जांच हेतु एक स्वयं का जांच दल है। इसके अतिरिक्त आयोग केंद्र अथवा राज्य सरकारों की किसी भी अधिकारी या जांच एजेंसी की सेवाएं ले सकता है। आयोग व गैर सरकारी संगठनों के बीच एक प्रभावशाली सहभागिता भी है जो प्रथम दृष्टया मानवाधिकार उल्लंघन की सूचना प्राप्ति में सहायक है।
आयोग ऐसे किसी मामले की जांच के लिए अधिकृत नहीं है जिसे घटित हुए एक वर्ष से अधिक हो गया हो। दूसरे शब्दों में, आयोग उन्हीं मामलों में जांच कर सकता है जिन्हें घटित हुए एक वर्ष से कम समय हुआ हो।
आयोग जांच के दौरान या उपरांत निम्नलिखित में से कोई भी कदम उठा सकता है:
1. यह पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति या नुकसान के भुगतान के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण का सिफारिश कर सकता है।
2. यह दोषी लोक सेवक के विरुद्ध बंदीकरण हेतु कार्यवाही प्रारंभ करने के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण को सिफारिश कर सकता है।
3. यह संबंधित सरकार या प्राधिकरण को पीड़ित को तत्काल अंतरिम सहायता प्रदान करने की सिफारिश कर सकता है।
4. आयोग इस संबंध में आवश्यक निर्देश, आदेश अथवा रिट के लिए उच्चतम अथवा उच्च न्यायालय में जा सकता है।
आयोग की भूमिका
उक्त बिंदुओं से स्पष्ट है कि आयोग का कार्य वस्तुतः सिफारिश या सलाहकार का होता है। आयोग मानवाधिकार उल्लंघन के दोषी को दंड देने का अधिकार नहीं रखता है, न ही आयोग पीड़ित को किसी प्रकार की सहायता, जैसे- आर्थिक सहायता दे सकता है। आयोग की सिफारिशों संबंधित सरकार अथवा अधिकारी पर बाध्य नहीं हैं परंतु उसकी सलाह पर की गई कार्यवाही पर उसे, आयोग के एक महीने के भीतर सूचित करना होता है। इस संदर्भ में आयोग के एक भूतपूर्व सदस्य ने यह पाया कि सरकार आयोग की सिफारिशों को पूर्णतः नहीं नकारती है। आयोग की भूमिका सिफारिशें व सलाहकारी हो सकती है तथापि सरकार आयोग द्वारा दिए गए मामलों पर विचार करती है। इस प्रकार यह कहना व्यर्थ होगा कि आयोग शक्तिविहीन है। आयोग अपने अधिकारों का पूर्ण रूप से प्रयोग करता है और कोई भी सरकार इसकी सिफारिशों को नकार नहीं सकती। सशस्त्र बल के सदस्य द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में आयोग की भूमिका, शक्तियां व न्यायिकता सीमित होती है। इस संदर्भ में आयोग केंद्र सरकार से रिपोर्ट प्राप्त कर अपनी सलाह दे सकता है। केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर, आयोग की सिफारिश पर की गई कार्यवाही के बारे में बताना होगा।
आयोग अपनी वार्षिक अथवा विशेष रिपोर्ट केंद्र सरकार व संबंधित राज्य सरकारों को भेजता है। इन रिपोर्ट्स को संबंधित विधायिका के समक्ष रखा जाता है। इसके साथ ही वे विवरण भी होते हैं, जिनमें आयोग द्वारा की गई सिफारिशों पर की गई कार्यवाही का उल्लेख तथा ऐसी किसी सिफारिश को न मानने के कारणों का उल्लेख होता है।
आयोग का कार्य प्रदर्शन
आयोग ने मानवाधिकार संबंधी अनेक विषय हाथ में लिए हैं जो निम्नलिखित हैं:
1. बंधुआ मजदूरी की समाप्ति
2. राँची, आगरा और ग्वालियर में मानसिक अस्पतालों का संचालन
3. आगरा स्थित सरकारी सुरक्षा गृह (महिला) का संचालन
4. भोजन का अधिकार से संबंधित मामले
5. बाल विवाह रोक अधिनियम, 1929 की समीक्षा
6. बाल अधिकार पर कन्वेंशन से संबंधित शिष्टाचार
7. सरकारी सेवकों द्वारा बच्चों को रोजगार में जाने से रोकना; सेवा नियमावली में संशोधन
8. बाल श्रम की समाप्ति
9. बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा पर मीडिया के लिए मार्गदर्शिका
10. महिलाओं एवं बच्चों का अवैध व्यापारः जेन्डर संवेदीकरण के लिए न्यायपालिका के लिए नियम पुस्तक
11. यौन पर्यटन एवं अवैध व्यापार के रोक के लिए संवेदीकरण कार्यक्रम
12. मातृत्व रक्ताल्पता तथा मानवाधिकार
13. वृंदावन परित्यक्त महिलाओं का पुनर्वास
14. कार्यस्थलों पर महिला यौन उत्पीड़न को रोकना
15. रेलगाड़ियों में महिला यात्रियों का उत्पीड़न
16. हाथ से मैला साफ करने की प्रथा का अंत
17. दलितों से संबंधित मामले उन पर किए जाने वाले अत्याचार सहित
18. अनधिसूचित तथा घुमंतू जनजातियों की समस्याएँ
19. विकलांग व्यक्तियों के अधिकार
20. स्वास्थ्य के अधिकार से संबंधित मामले
21. एच.आई.वी./एड्स संक्रमित व्यक्तियों के अधिकार
22. 1999 में उड़ीसा में आए चक्रवाती तूफान से प्रभावित लोगों के लिए राहत कार्य
23. 2001 के गुजरात भूकम्प के बाद राहत उपायों का अनुश्रवण
24. जिला परिवाद प्राधिकार
25. जनसंख्या नीति विकास एवं मानवाधिकार
26. कानूनों की समीक्षा, आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधि अधिनियम, तथा (प्रारूप) आतंकवाद निवारण विधेयक, 2000 सहित
27. विद्रोह एवं आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में मानवाधिकार संरक्षण
28. पुलिस द्वारा गिरफ्तारी भी शक्ति का दुरुपयोग रोकने के लिए दिशा-निर्देश
29. राज्य/ नगर पुलिस मुख्यालयों में मानवाधिकार सेवा का गठन
30. हिरासत में मौत, बलात्कार तथा यंत्रणा को रोकने के लिए उठाए गए कदम
31. यंत्रणा के खिलाफ अभिसमय को अपनाना
32. देश के लिए एक शरणार्थी कानून को अपनाने पर चर्चा
33. पुलिस, बंदीगृह, अभिरक्षा के अन्य केन्द्रों में संरचनात्मक सुधार
34. मानवाधिकार संबंधी कानूनों की समीक्षा, संधियों का कार्यान्वयन तथा अंतर्राष्ट्रीय नियमों की समीक्षा
35. शिक्षा प्रणाली में मानवाधिकार, साक्षरता एवं जागरूकता को बढ़ावा देना
36. सैन्यबलों एवं पुलिस, लोक प्राधिकारियों एवं नागरिक समाज के लिए मानवाधिकार प्रशिक्षण
मानवाधिकार संशोधन अधिनियम, 2006
संसद ने मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 पारित किया है। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में जो प्रमुख संशोधन किए गए वे निम्नलिखित विषयों से संबंधित हैं:
1. राज्य मानवाधिकार आयोगों के सदस्यों की संख्या घटाकर 5 से 3 की गई।
2. मानवाधिकार आयोग के सदस्य की नियुक्ति के लिए अर्हता शर्तों में परिवर्तन किया गया।
3. मानवाधिकार आयोगों के साथ उपलब्ध अनुसंधान मशीनरी को मजबूत बनाना।
4. आयोग को जाँच के दौरान भी क्षतिपूर्ति की अनुशंसा करने का अधिकार देकर सशक्त बनाया गया।
5. राष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षण आयोग को राज्य सरकार को सूचित किए बिना भी बंदीगृहों में जाने का अधिकार दिया गया।
6. गवाहों के साक्ष्य का अभिलेखीकरण करने की प्रक्रिया को मजबूती प्रदान की गई।
7. यह स्पष्ट करना कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष इन दोनों आयोगों के सदस्यों से भिन्न स्थिति रखते हैं।
8. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इस योग्य बनाना कि वह अपने पास आई शिकायतों को संबंधित राज्य मानवाधिकार आयोग को स्थानांतरित कर दे।
9. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को इतना समर्थ बनाना कि वे अपने त्यागपत्र राष्ट्रपति को तथा अध्यक्ष को संबोधित करें तथा राज्य मानवाधिकार के अध्यक्ष एवं सदस्य अपने त्यागपत्र संबंधित राज्य के राज्यपाल को संबोधित करें।
10. यह स्पष्ट करना कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अथवा राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य के चयन के लिए गठित चयन समिति के किसी सदस्य की अनुपस्थिति से चयन समिति के निर्णयों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
11. इसकी व्यवस्था करना कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य होंगे।
12. केन्द्रीय सरकार को भविष्य के किसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्रों तथा परम्पराओं को अधिसूचित करने के योग्य बनाना जिन पर कि अधिनियम लागू होता हो।
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