राजनीतिक दल वे स्वैच्छिक संगठन अथवा लोगों के वे संगठित समूह होते हैं जो समान दृष्टिकोण रखते हैं तथा जो संविधान के प्रावधानों के अनुरूप राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य में चार प्रकार के राजनैतिक दल होते हैं- (i) प्रतिक्रियावादी राजनीतिक दल, जो पुरानी सामाजिक-आर्थिक तथा राजनीतिक संस्थाओं से चिपके रहना चाहते हैं। (ii) रूढ़िवादी दल, जो यथा स्थिति में विश्वास रखते हैं। (iii) उदारवादी दल, जिनका लक्ष्य विद्यमान संस्थाओं में सुधार करना है तथा (iv) सुधारवादी दल, जिनका उद्देश्य विद्यमान व्यवस्था को हटाकर नई व्यवस्था स्थापित करना होता है। राजनीतिक दलों का उनकी विचारधारा के आधार पर वर्गीकरण करते हुए राजनीतिक वैज्ञानिकों ने सुधारवादी दलों को बाईं ओर, उदारवादी दलों को मध्य में तथा प्रतिक्रियावादी दलों तथा रूढ़िवादी दलों को दाईं ओर रखा है। दूसरे शब्दों में इन्हें वाम दल, केंद्रीय दल तथा दक्षिण पंथी दल कहा जाता है। भारत में सीपीआई तथा सीपीएम वाम दलों के उदाहरण हैं। कांग्रेस पंथी केंद्रीय दल तथा भाजपा दक्षिणपंथी दल के उदाहरण हैं।
विश्व में तीन तरह की दल व्यवस्था है। उदाहरण के लिएः (i) एक दल व्यवस्था में केवल सत्तारूढ़ दल होता है और विरोधी दल की व्यवस्था नहीं होती है, जैसे-पूर्व वामपंथी राष्ट्र जैसे-रूस तथा अन्य पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र। (ii) दो दल व्यवस्था, जिसमें दो बड़े दल विद्यमान होते हैं, जैसे-अमेरिका तथा ब्रिटेन’ तथा (iii) कई दल व्यवस्था जिसमें कई दल एक साझा सरकार बनाते हैं, जैसे- फ्रांस, स्विट्जरलैंड तथा इटली।
भारत में दलीय व्यवस्था
भारत में दलीय व्यवस्था के निम्नलिखित गुण-धर्म हैं:
बहुदलीय व्यवस्था
देश का विशाल आकार, भारतीय समाज की विभिन्नता, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की ग्राह्यता, विलक्षण राजनैतिक प्रक्रियाओं तथा कई अन्य कारणों से कई प्रकार के राजनैतिक दलों का उदय हुआ है। वास्तव में विश्व में भारत में सबसे ज्यादा राजनैतिक दल हैं। इसके अलावा, भारत में सभी प्रकार के राजनैतिक दल हैं- वामपंथी दल, केंद्रीय दल, दक्षिण पंथी दल, सांप्रदायिक दल, तथा गैर-सांप्रदायिक दल आदि। परिणामस्वरूप त्रिशंकु संसद, त्रिशंकु विधानसभा तथा साक्षा सरकार का गठन एक सामान्य बात है।
एकदलीय व्यवस्था
अनेक दल व्यवस्था के बावजूद भारत में एक लंबे समय तक कांग्रेस का शासन रहा। अतः श्रेष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रजनी कोठारी ने भारत में एकदलीय व्यवस्था को एक दलीय शासन व्यवस्था अथवा कांग्रेस व्यवस्था कहा। कांग्रेस के प्रभावपूर्ण शासन में 1967 से क्षेत्रीय दलों के तथा अन्य राष्ट्रीय दलों जैसे- जनता पार्टी (1977), जनता दल (1989) तथा भाजपा (1991) जैसी प्रतिद्वंद्विता पूर्ण पार्टियों के उदय और विकास के कारण कमी आनी शुरु हो गई थी। वर्तमान (2013) में देश में देशभर में छह राष्ट्रीय दल, 51 राज्य स्तरीय दल तथा 1415 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल हैं।
स्पष्ट विचारधारा का अभाव
भाजपा तथा दो साम्यवादी दलों (सीपीआई और सीपीएम) को छोड़कर अन्य किसी दल की कोई स्पष्ट विचारधारा नहीं है। अन्य सभी दल एक दूसरे से मिलती-जुलती विचारधारा रखते हैं। उनकी नीतियों और कार्यक्रमों में काफी हद तक समानता है। लगभग सभी दल लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और गांधीवाद की वकालत करते हैं। इसके अलावा सभी दल जिनमें तथाकथित विचार धारावाद दल भी शामिल हैं, केवल शक्ति प्राप्ति से ही प्रेरित हैं। अतः राजनीति विचारधारा की बजाय मुद्दों पर आधारित हो गई है और फलवादिता ने सिद्धातों का स्थान ले लिया है।
व्यक्तित्व का महिमामंडन
बहुधा दलों का संगठन एक श्रेष्ठ व्यक्ति के चारों ओर होता है जो दल तथा उसकी विचारधारा से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। दल अपने घोषणा पत्रों की बजाय अपने नेताओं से पहचाने जाते हैं। यह भी एक तथ्य है कि कांग्रेस की प्रसिद्धि अपने नेताओं जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी की वजह से है। इसी प्रकार तमिलनाडु में एआईएडीएमके तथा आंध्रप्रदेश में तेलगु देशम पार्टी ने एम.जी. रामाचंद्रन तथा एन.टी. रामाराव से अपनी पहचान प्राप्त की। यह भी रोचक है कि कई दल अपने नाम में अपने नेताओं का नाम इस्तेमाल करते हैं, जैसे-बीजू जनता दल, लोकदल (ए), कांग्रेस (आई) आदि। अतः ऐसा कहा जाता है कि भारत में राजनैतिक दलों के स्थान पर राजनैतिक व्यक्तित्व हैं।
पारंपरिक कारकों पर आधारित
– पश्चिमी देशों में राजनैतिक दल सामाजिक-आर्थिक और राजनैतिक कार्यक्रमों के आधार पर बनते हैं। दूसरी ओर, भारत में अधिसंख्यक दलों का गठन धर्म, जाति, भाषा, संस्कृति तथा नस्ल आदि के नाम पर होता है। उदाहरण के लिए-शिव सेना, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, अकाली दल, मुस्लिम मजलिस, बहुजन समाज पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया, गोरखा लीग आदि। ये दल सांप्रदायिक तथा क्षेत्रीय हितों को बढ़ावा देने के लिए कार्य करते हैं और इस कारण सार्वजनिक हितों की अनदेखी करते हैं।
क्षेत्रीय दलों का उद्भव
भारत की दलीय व्यवस्था का एक दूसरा प्रमुख लक्षण राज्य स्तरीय दलों का उदय और उनकी बढ़ती भूमिका है। कई प्रदेशों में वे सत्तारूढ़ दल हैं, जैसे-ओडीशा में बीजेडी, आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम् पार्टी तमिलनाडु में डीएमके या एआईएडीएमके, पंजाब में अकाली दल, असम में असम गण परिषद, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, बिहार में जनता दल (यूनाईड) आदि। प्रारंभ में वे क्षेत्रीय राजनीति तक ही सीमित थे किंतु कुछ समय से केंद्र में साझा सरकारों के कारण राष्ट्रीय स्तर पर इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। 1984 में तेलुगू देशम् पार्टी लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में उभरा था।
दल बनाना तथा दल-परिवर्तन
भारत में दल बनाना, दल-परिवर्तन, टूट, विलय, बिखराव, ध्रुवीकरण आदि राजनैतिक दलों की कार्यशैली के महत्वपूर्ण रूप हैं। सत्ता की लालसा तथा भौतिक वस्तुओं की लालसा के कारण राजनीतिज्ञ अपना दल छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो जाते हैं या नया दल बना लेते हैं। चौथे आम चुनाव (1967) के बाद दल- परिवर्तन में काफी तेजी आयी। इस घटना ने केंद्र तथा राज्य दोनों में राजनैतिक अस्थिरता पैदा की तथा दलों में विघटन को बढ़ावा मिला। अतः दो जनता दल, दो तेलुगू देशम् पार्टी, दो डी.एम.के. दो साम्यवादी दल, तीन अकाली दल, तीन मुस्लिम लीग आदि बने ।
प्रभावशाली विपक्ष का अभाव
भारत में प्रचलित संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए प्रभावशाली विपक्ष अत्यंत आवश्यक है। यह सत्तारूढ़ दल की निरंकुश शासन की प्रवत्ति पर रोक लगाता है और वैकल्पिक सरकार देता है किंतु पिछले 50 वर्षों में कुछ अवसरों को छोड़कर देखा जाये तो ज्ञात होता है कि देश में सशक्त, प्रभावशाली एवं जागरूक विपक्ष का अभाव ही रहा है। विपक्षी दलों में एकता का अभाव है और बहुधा वह सत्तारूढ़ दलों के संदर्भ में आपसी विवाद में उलझ जाते हैं। वे राष्ट्र निर्माण तथा राजनैतिक क्रियाओं में सृजनात्मक भूमिका निभाने में असफल रहे हैं।
तालिका 64.1 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दल (प्रथम चुनाव से लेकर पन्द्रहवें आम चुनाव तक)
आम चुनाव (वर्ष) | राष्ट्रीय दल | राज्य स्तरीय चल |
प्रथम (1952) | 14 | 39 |
द्वितीय (1957) | 4 | 11 |
तृतीय (1962) | 6 | 11 |
चौथा (1967) | 7 | 14 |
पांचवां (1971) | 8 | 17 |
छठां (1977) | 5 | 15 |
सातवां (1980) | 6 | 19 |
आठवां (1984) | 7 | 19 |
नवां (1989) | 8 | 20 |
दसवां (1991) | 9 | 28 |
ग्यारहवां (1996) | 8 | 30 |
बारहवां (1998) | 7 | 30 |
तेरहवां (1999) | 7 | 40 |
चौदहवां (2004) | 6 | 36 |
पन्द्रहवां (2009) | 7 | 40 |
तालिका 64,2 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय दल एवं उनके चुनाव चिन्ह (2013)
क्रम सं. | दल का नाम | चुनाव चिन्ह |
1. | बहुजन समाज पार्टी (बसपा) | हाथी |
2. | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) | कमल |
3. | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी | हंसिया बाली |
4. | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) | हथौड़ा, हंसिया एवं तारा |
5. | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | हाथ |
6. | राष्ट्रवादी कांग्रेस | घड़ी |
तालिका 64.3 राजनीतिक दलों का गठन (कालानुक्रम से)
क्रम सं० | दल का नाम (संक्षिप्त) | गठन वर्ष |
1. | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई.एन.सी.) | 1885 |
2. | शिरोमणी अकाली दल (एस.ए.डी.) | 1920 |
3. | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.आई.) | 1925 |
4. | जम्मू एवं कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (जे.के.एन.सी.) | 1939 |
5. | ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक | 1939 |
6. | रिवोल्यूशनरी सोश्लिस्ट पार्टी (आर.एस.पी.) | 1940 |
7. | इंडियन युनियन मुस्लिम लीग (आई.यू.एम.एस.) | 1948 |
8. | द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डी.एम.के.) | 1949 |
9. | मिजो० नेशनल फ्रंट (एम.एन.एफ.) | 1961 |
10. | महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एम.ए.जी.) | 1963 |
11. | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सी.पी.एम) | 1964 |
12. | शिवसेना (एस.एच.एस.) | 1966 |
13. | मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (एम.पी.सी.) | 1972 |
14. | झारखंड मुक्ति मोर्चा (जे.एम.एम) | 1972 |
15. | ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (ए.आई.ए.डी.एम.के.) | 1972 |
16. | केरल काँग्रेस (एम) (के.ई.सी. (एम)) | 1979 |
17. | भारतीय जनता पार्टी (बी.जे.पी.) | 1980 |
18. | तेलुगू देशम पार्टी (टी.डी.पी.) | 1982 |
19. | असम गण परिषद (ए.जी.पी.) | 1985 |
20. | पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पी.पी.ए.) | 1987 |
21. | समाजवादी पार्टी (एस.पी.) | 1992 |
22. | सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एस.डी.एफ.) | 1993 |
23. | राष्ट्रीय लोकदल (आर.एल.डी) | 1996 |
24. | जोरम नेशलिस्ट पार्टी (जे.एन.पी) | 1997 |
25. | राष्ट्रीय जनता दल (आर.जे.डी.) | 1997 |
26. | बीजू जनता दल (बी.जे.डी.) | 1997 |
27. | ऑल इंडिया तृणमूल काँग्रेस (ए.आई.टी.सी) | 1998 |
28. | इण्डियन नेशनल लोकदल (आई.एन.एल.डी.) | 1998 |
29. | जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) | 1999 |
30. | जनता दल यूनाइटेड (जे.डी.यू.) | 1999 |
31. | जनता दल सेक्यूलर (जे.डी.एस) | 1999 |
32. | नेशनलिस्ट काँग्रेस पार्टी (एन.सी.जी.) | 1999 |
33. | लोक जनशक्ति पार्टी (एल.जे.एस.पी.) | 2000 |
34. | तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस.) | 2001 |
35. | नागा पीपुल्स फ्रंट (एन.पी.एफ.) | 2002 |
36. | ऑल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फंड (ए.यू.डी.एफ.) | 2004 |
37. | देशीय मुरपोप्फु द्रविड़ कषगम (डी.एम.डी.के.) | 2005 |
38. | महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना (एम.एन.एस.) | 2006 |
राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय दलों को मान्यता
निर्वाचन आयोग, निर्वाचन के प्रयोजनों हेतु राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है, और उनकी चुनाव निष्पादनता के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय या राज्यस्तरीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान करता है। अन्य दलों को केवल पंजीकृत-गैरमान्यता प्राप्त दल घोषित किया जाता है।
आयोग द्वारा दलों को प्रदान की गई मान्यता उनके लिए कुछ विशेषाधिकारों के अधिकार का निर्धारण करती है, जैसे-चुनाव चिन्ह का आवंटन, राज्य नियंत्रित टेलीविजन और रेडियो स्टेशनों पर राजनीतिक प्रसारण हेतु समय का उपबंध और निर्वाचन सूचियों को प्राप्त करने की सुविधा।
प्रत्येक राष्ट्रीय दल को एक चुनाव चिन्ह प्रदान किया जाता है जो संपूर्ण देश में विशिष्टतः उसी के लिए आरक्षित होता है। इसी प्रकार प्रत्येक राज्यस्तरीय दल को एक चुनाव चिन्ह प्रदान किया जाता है जो उस राज्य या जिन राज्यों में इसे मान्यता प्राप्त है, विशिष्टतः उसी के लिए आरक्षित होता है। दूसरी ओर, कोई पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल शेष चुनाव चिन्हों की सूची में से चिन्ह का चुनाव कर सकता है। दूसरे शब्दों में आयोग कुछ चिन्हों को आरक्षित चिन्हों, के रूप में निधार्रित करता है, जो मान्यता प्राप्त दलों के अभ्यार्थियों हेतु होते हैं और अन्य शेष चिन्ह, अन्य अभ्यार्थियों हेतु होते हैं।
राष्ट्रीय दलों के रूप में मान्यता के लिये दशायें
वर्तमान में (2013), एक दल को राष्ट्रीय दल के रूप में तब मान्यता दी जाती है, जब वह निम्नलिखित अर्हतायें पूर्ण करता हो’:
1. यदि वह लोकसभा अथवा विधानसभा के आम चुनावों में चार अथवा अधिक राज्यों में वैध मतों का छह प्रतिशत मत प्राप्त करता है तथा इसके साथ वह किसी राज्य या राज्यों से लोकसभा में 4 सीट प्राप्त करता है।
2. कोई दल राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त करता है यदि वह लोकसभा में दो प्रतिशत स्थान जीतता है तथा ये सदस्य तीन विभिन्न राज्यों से चुने जाते हैं।
3. यदि कोई दल कम से कम चार राज्यों में राज्यस्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो।
राज्यस्तरीय दलों की मान्यता के लिये दशायें
वर्तमान में (2013), एक दल को राज्यस्तरीय दल के रूप में तब मान्यता दी जाती है, जब वह निम्नलिखित अर्हतायें पूर्ण करता हो:
1. यदि उस दल ने राज्य की विधानसभा के आम चुनाव में उस राज्य से हुए कुल वैध मतों का छह प्रतिशत प्राप्त किया हो, तथा इसके अतिरिक्त उसने संबंधित राज्य में 2 स्थान प्राप्त किए हों।
2. यदि वह राज्य की लोकसभा के लिये हुये आम चुनाव में उस राज्य से हुए कुल वैध मतों का छह प्रतिशत प्राप्त करता है, तथा इसके अतिरिक्त उसने संबंधित राज्य में लोकसभा की कम से कम 1 सीट जीती हो।
3. यदि उस दल ने राज्य की विधानसभा के कुल स्थानों का तीन प्रतिशत या तीन सीटें, जो भी ज्यादा हों, प्राप्त किए हों।
4. यदि प्रत्येक 25 सीटों में से उस दल ने लोकसभा की कम से कम 1 सीट जीती हो या लोकसभा के चुनाव में उस संबंधित राज्य में उसे विभाजन से कम से कम इतनी सीटें प्राप्त की हों।
5. यदि यह राज्य में लोकसभा के लिये हुए आम चुनाव में अथवा विधानसभा चुनाव में कुल वैद्य मतों का 8 प्रतिशत प्राप्त कर लेता है यह शर्त वर्ष 2011 में जोड़ी गई थी।
आम चुनावों में राजनीतिक दलों के प्रदर्शन के आधार पर मान्यता प्राप्त दलों की संख्या परिवर्तित होती रहती है। वर्तमान में (2013), देश में 6 राष्ट्रीय दल, 51 राज्यस्तरीय दल तथा 1415 गैर-मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल हैं। राष्ट्रीय दलों एवं राज्यस्तरीय दलों को क्रमशः अखिल भारतीय दल एवं क्षेत्रीय दलों के नाम से भी जाना जाता है।
यह भी पढ़ें : विशिष्ट वर्गों से संबंधित विशेष प्रावधान : 63
1 thought on “राजनीतिक दल : 64”