दबाव समूह : 68

‘दबाव समूह’ शब्द का उद्भव संयुक्त राज्य अमेरिका से हुआ है। दबाव समूह उन लोगों का समूह होता है, जो कि सक्रिय रूप से संगठित हैं, अपने हितों को बढ़ावा देते हैं और उनकी प्रतिरक्षा करते हैं। यह जैसा कि कहा गया है कि सरकार पर दबाव बनाकर लोकनीति को बदलने की कोशिश है। ये सरकार और उसके सदस्यों के बीच संपर्क का काम करते हैं।

इन दबाव समूहों को हितैषी समूह या हितार्थ समूह भी कहा जाता है। ये राजनीतिक दलों से भिन्न होते हैं ये न तो चुनाव में भाग लेते हैं और न ही राजनीतिक शक्तियों को हथियाने की कोशिश करते हैं। ये कुछ खास कार्यक्रमों और मुद्दों से संबंधित होते हैं और इनकी इच्छा सरकार में प्रभाव बनाकर अपने सदस्यों की रक्षा और हितों को बढ़ाना होता है।

दबाव समूह विधिक और तर्कसंगत तरीकों द्वारा सरकार की नीति निर्माण और नीति निर्धारण को प्रभावित करते हैं; जैसे कि सभाएं करना, पत्राचार, जनप्रचार, प्रचार-व्यवस्था करना, अनुरोध करना, जन वाद-विवाद अपने विधायकों के संबंधों को बनाकर रखना आदि। हालांकि ये कभी-कभी लोकहितों और प्रशासनिक एकता को नष्ट करने वाले अतर्कसंगत और गैर-विधिक तरीकों का आश्रय लेते हैं, जैसे कि हड़ताल और हिंसक गतिविधियां और भ्रष्टाचार।

ओडिगाड के अनुसार, दबाव समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तीन तकनीकों का सहारा लेते हैं- पहला, ये लोक कार्यालयों में उन कर्मचारियों की नियुक्तियों की कोशिश करते हैं जो कि इनके हितों का पक्ष ले लें। इस तकनीक को नियुक्तिकरण भी कहा जाता है। द्वितीय, वे अपने लिए हितकारी उन नीतियों को स्वीकार करने के लिए लोकसेवकों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। चाहे वे प्रारंभ में इनके पक्षधर हों या विरोधी। इस तकनीक को ‘लॉबिंग’ कहते हैं। तृतीय, वे जनता की राय को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं और सरकार पर इसके परिणामस्वरूप पड़ने वाले परोक्ष प्रभाव का लाभ उठाते हैं। चूंकि सरकार जनतांत्रिक होती है और जनता की राय से पूर्ण प्रभावित रहती है। इसे प्रचार व्यवस्था भी कहते हैं।’

भारत में दबाव समूह

भारत में बड़ी संख्या में दबाव समूह विद्यमान हैं लेकिन ये उस तरह से विकसित नहीं हुए है, जिस तरह संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देशों, जैसे- ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और दूसरे देशों में हुए हैं। भारत के दबावकारी समूहों को इन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

1. व्यवसाय समूह

व्यवसाय समूह में बड़ी संख्या में औद्योगिक एवं वाणिज्यिक इकाइयां शामिल हैं। ये अत्यधिक अनुभवी एवं परिष्कृत, अत्यधिक शक्ति सम्पन्न और भारत में दबावकारी समूहों में से सबसे बड़े होते हैं। उनमें शामिल हैं:

(i) फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) : इसमें शामिल होते हैं इंडियन मर्चेंट चैंबर ऑफ मुंबई, इंडियन मर्चेंट्स चैंबर ऑफ़ कोलकाता और साउथ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ऑफ़ चेन्नई। ये मुख्य औद्योगिक एवं व्यावसायिक हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

(ii) एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ़ इंडिया (एसोचेम)। इसमें सम्मिलित हैं- बंगाल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स ऑफ कोलकाता तथा सैंट्रल कमर्शियल ऑर्गनाइजेशन आफ़ दिल्ली। एसोचैम, विदेशी ब्रिटिश पूंजी का प्रतिनिधित्व करता है।

(iii) फेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया फूडग्रेन डीलर्स एसोसिएशन (फेइफडा)। फेइफडा अनाज डीलरों का पूरी तरह प्रतिनिधित्व करता है।

(iv) ऑल इंडिया मैनुफैक्चरर्स ऑर्गेनाइजेशन (ऐमो)। ऐमो मध्यवर्गीय व्यवसायों से संबंधित मामलों को उठाता है।

2. व्यापार संघ

व्यापार संघ औद्योगिक श्रमिकों की मांगों के संबंध में आवाज उठाते हैं। इन्हें श्रमिक समूहों के नाम से भी जाना जाता है। भारत में व्यापार संघों की एक खास विशेषता यह है कि वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न राजनीतिक दलों से संबद्ध होते हैं, उनमें शामिल हैं:

(i) ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) – सीपीआई से संबद्ध ।

(ii) इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (आईएनटीयूसी) कांग्रेस (आई) से संबद्ध ।

(iii) हिंद मजदूर सभा (एचएमएस) – समाजवादियों से संबद्ध ।

(iv) सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू)- सी.पी.एम से सम्बद्ध

(v) भारतीय मजदूर संघ (बी.एम.एस.) – भाजपा से सम्बद्ध

(vi) ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (सी पी आई (एम एल), लिबरेशन)

(vii) ऑल इंडिया युनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्यूनिस्ट)

(viii) न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (राजनीतिक दलों से असम्बद्ध, लेकिन वामपंथी)

(ix) लेबर प्रोग्रेसिव फेडेरेशन (द्रविड़ मुनेत्र कषगम)

(x) ट्रेड यूनियन कोऑरडीपेशन कमिटी (ऑल इंडिया फॉरवार्ड ब्लाक)

(xi) युनाइटेड ट्रेड यूनियन काँग्रेस (रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी)

(xii) ऑल इंडिया सेंटर ऑफ ट्रेड यूनियंस (मार्क्सिस्ट कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (युनाइटेड)

(xiii) अन्ना तोझिल संगा पेरवई (ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम)

(xiv) भारतीय कामगार सेना (शिव सेना)

(xv) हिंद मजदूर किसान पंचायत (जनता दल (युनाइटेड)

(xvi) इंडियन फेडेरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस (सीपी आई (एम.एल.) लिबरेशन)

(xvii) इंडियन नेशनल तृणमूल ट्रेड यूनियन काँग्रेस (ऑल इंडिया तृणमूल काँग्रेस)

(xviii) पट्टालि ट्रेड यूनियन (पट्टालि मक्कल कची)

(xix) स्वतंत्र तोझिलालीं यूनियन (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग)

(xx) तेलुगू नाडु ट्रेड यूनियन काउंसिल (तेलुगू देशम पार्टी)

भारत का पहला श्रमसंघ

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस (AITUC), की स्थापना 1920 में हुई थी और लाला लाजपत राय इसके प्रथम अध्यक्ष थे। 1945 तक काँग्रेसी, समाजवादी और साम्यवादी एटक (AITUC) में काम करते रहे जो कि भारत का केन्द्रीय श्रमसंघ था। बाद में राजनीतिक आधार पर श्रम संघ आंदोलन बँट गया।

3. खेतिहर समूह

खेतिहर समूह, किसानों और कृषि मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, उनमें शामिल हैं:

(i) भारतीय किसान यूनियन (उत्तर भारत के गेहूं उत्पादक क्षेत्र में महेंद्र सिंह टिकैट के नेतृत्व में)

(ii) ऑल इंडिया किसान सभा (प्राचीनतम एवं सबसे बड़ा खेतिहर समूह)

(iii) रेवोल्यूशनरी पीजेंट्स कन्वेंशन (नक्सलवाड़ी आंदोलन को जन्म देने वाला, जिसे 1967 में सीपीएम ने संगठित किया)

(iv) भारतीय किसान संघ (गुजरात)

(v) आर वी. संघम (तमिलनाडु में सी.एन. नायडू के नेतृत्व में)

(vi) क्षेत्रीय संगठन (महाराष्ट्र में शरद जोश के नेतृत्व में)

(vii) हिंद किसान पंचायत (समाजवादियों द्वारा नियंत्रित)

(viii) ऑल इंडिया किसान सम्मेलन (राजनारायण के नेतृत्व में)

(ix) यूनाइटेड किसान सभा (सीपीएम द्वारा नियंत्रित)

4. पेशेवर समितियां

ये ऐसे लोगों की समितियां होती हैं, जो डॉक्टर, वकील, पत्रकार और अध्यापकों से संबंधित मांगों को उठाती हैं। तमाम अवरोधों के साथ ये समितियां सरकार पर विभिन्न तरीकों से अपनी सेवा शर्तों में सुधार के संबंध में दबाव बनाती हैं। इनमें शामिल हैं:

(i) इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए)

(ii) बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया (बीसीआई)

(iii) इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आईएफडब्लूजे)

(iv) आल इंडिया फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज टीचर्स (एआईएफयूसीटी)

5. छात्र संगठन

छात्र समुदाय के प्रतिनिधित्व के लिए बहुत सारे संघ बनाए गए हैं। हालांकि मजदूर संघों की तरह ये भी विभिन्न राजनीतिक दलों से संबद्ध होते हैं। ये हैं:

(i) अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी, भाजपा से संबद्ध)

(ii) ऑल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ, सीपीआई से संबद्ध)

(iii) नेशनल स्टुडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई, कांग्रेस आई से संबद्ध)

(iv) प्रोग्रेसिव स्टुडेंट्स यूनियन (पीएसयू, सीपीएम से संबद्ध)

6. धार्मिक संगठन

धार्मिक आधार पर बने संगठन भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संकुचित सांप्रदायिक अभिरुचि का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें शामिल हैं:

(i) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस)

(ii) विश्व हिंदू परिषद् (वीएचपी)

(iii) जमात-ए-इस्लामी

(iv) इत्तेहाद-उल-मुसलमीन

(v) एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन

(vi) एसोसिएशन ऑफ़ रोमन कैथालिक्स

(vii) ऑल इंडिया कांफ्रेंस ऑफ़ इंडियन क्रिश्चियन

(viii) पारसी सेंट्रल ऐसोसिएशन

(ix) शिरोमणि अकाली दल

“शिरोमणि अकाली दल को किसी राजनीतिक दल की बजाय धार्मिक दबावकारी समूह माना जाना चाहिए क्योंकि इसका संबंध सिख समुदाय के हिन्दू समाज में विलिन होने के लिए रहा ना कि सिख भूमि की लड़ाई के लिए रहा है।”

7. जातीय समूह

भारतीय राजनीति में धर्म के समान जाति भी महत्वपूर्ण कारक है। प्रयोगात्मक राजनीति में कई राज्यों में जातीय संघर्ष होता है। तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र में ब्राह्मण बनाम गैर-ब्राह्मण, राजस्थान में राजपूत बनाम जाट, आंध्र में कम्मा बनाम रेड्डी, हरियाणा में अहीर बनाम जाट, गुजरात में बनिया ब्राह्मण बनाम पाटीदार, बिहार में कायस्थ बनाम राजपूत, केरल में नैय्यर बनाम ऐज्हावा, कर्नाटक में लिंगायत बनाम ओक्कालिगा। कुछ जाति आधारित संगठन हैं:

(i) नादर कास्ट एसोसिएशन, तमिलनाडु

(ii) मारवाड़ी एसोसिएशन

(iii) हरिजन सेवक संघ

(iv) क्षत्रिय महासभा, गुजरात

(v) बनिया कुल क्षत्रिय संगम

(vi) कायस्थ समूह

8. आदिवासी संगठन

आदिवासी संगठन मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों- असम, मणिपुर, नागालैंड और अन्य में सक्रिय। उनकी मांगें सुधार से लेकर भारत से अलग होने और उनमें से कुछ राजविद्रोही गतिविधियों में शामिल हैं। आदिवासी संगठनों में ये प्रमुख हैं:

(i) नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड

(एनएससीएन)

(ii) ट्राइबल नेशनल वॉलनटियर्स (टीएनयू), त्रिपुरा

(ii) पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी, मणिपुर

(iv) झारखंड मुक्ति मोर्चा

(v) ट्राइबल संघ ऑफ़ असम

(vi) यूनाइटेड मिज़ो फेडरल ऑर्गनाइजेशन

9. भाषागत समूह

भाषा, भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण कारक है। भाषा ही राज्यों के पुनर्गठन का मुख्य आधार है। भाषा, जाति, धर्म और जनजाति के साथ मिलकर राजनीतिक दलों सहित दबाव समूहों के उद्भव के लिए उत्तरदायी है। कुछ भाषागत समूह इस तरह हैं:

(i) तमिल संघ

(ii) अंजुमन तारीकी-ए-उर्दू

(iii) आंध्र महासभा

(iv) हिंदी साहित्य सम्मेलन

(v) नागरी प्रचारिणी सभा

(vi) दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा

10. विचारधारा आधारित समूह

हाल ही में कई दबाव समूह एक विशेष विचारधारा के प्रसार के लिए निर्मित हुए हैं। इनकी उत्पत्ति किसी विशेष कारण, सिद्धांत या कार्यक्रम के तहत हुई है। इन समूहों में शामिल हैं:

(i) पर्यावरण सुरक्षा संबंधी समूह जैसे- नर्मदा बचाओ आंदोलन और चिपको आंदोलन

(ii) लोकतांत्रिक अधिकार संगठन

(m) सिविल लिबर्टीज़ एसोसिएशन

(iv) गांधी पीस फाउंडेशन

(v) महिला अधिकार संगठन

11. विलोम समूह

अलमंड और पॉवेल ने महसूस किया “विलोम समूह द्वारा हमारा तात्पर्य समाज से राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध समान्तर व्यवस्था से है। विद्रोह, प्रदर्शन और धरनों के जरिए ये मांगें उठाते हैं। भारत सरकार और अफसरशाह उपलब्ध स्रोतों के जरिए आर्थिक विकास आदि में दिक्कत महसूस करते हैं क्योंकि गैर राजनीतिक मानसिकता और इनकी कानूनी प्रक्रिया को न मानने से ऐसा होता है।’ जिस कारण हितैषी समूह राजनीतिक तंत्र से दूर हो जाते हैं। कुछ विलोम कारी दबाव समूह इस तरह हैं:

(i) ऑल इंडिया सिख स्टुडेंट्स फेडरेशन

(ii) गुजरात की नव-निर्माण समिति

(iii) नक्सली समूह

(iv) जम्मू एंड कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (जेकेएलएफ़)

(v) ऑल इंडिया स्टुडेंट्स यूनियन

(vi) यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (यूएलएफए)

(vii) दल खालसा

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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