इस लेख के माध्यम से आज आपको सामान्य हृदय रोग के बारे में जानकारी प्राप्त होगी। यह जानकारी हृदय रोग के लिए प्रयाप्त है। आपको सामान्य हृदय रोग के बारे में इससे विस्तृत जानकारी कही नही प्राप्त होगी। आईए आपको मैं आपको इन रोगों के बारे में विस्तार से समझाता हूं-
➤ हृदयावरण शोथ (Pericarditis)
इस दशा में हृदय को ढंकने वाली झिल्ली में सूजन आ जाती है और हृदयावरण कोश (pericardium) में तरल एकत्रित हो जाता है; फलस्वरूप हृदय की मुक्त गति नहीं हो पाती। उपचार के लिए इस तरल के चूषण (aspiration) की आवश्यकता हो सकती है।
➤ Endocarditis
हृदय के कोष्ठों को भीतर की ओर से ढकने वाली कला एण्डोकार्डियम कहलाती है। कुछ अवस्थाओं में इसमें सूजन आ जाती है। ऐसा रूमेटी ज्वर (rheumatic fever) में हो सकता है। प्रायः यह रोग बच्चों तथा युवा व्यक्तियों में होता है और मुख्यतः माइट्रल वाल्व को प्रभावित करता है।
➤ कॉरोनरी धमनी रोग (Coronary artery disease)
शरीर में अन्य स्थानों पर होने वाले धमनी एथेरोस्क्लीरोसिस (कोलेस्ट्राल का जमाव) की भाँति कॉरोनरी धमनी भी धीरे-धीरे संकीर्ण हो सकती है। इसके अतिरिक्त थ्रोम्बोसिस (हृदय धमनी की शाखा में रक्त जमाव) के कारण यकायक भी यह बन्द या अवरुद्ध हो सकती है। दोनों दशाओं में हृदपेशी का रक्त सम्भरण (सप्लाई) घट जाता है, जिससे हृद्येशी स्थानिक अरक्तता (myocardial ischaemia) तथा रोगी को छाती में पीड़ा या हृदयशूल (angina pectoris) होता है। यदि धमनी पूरी तरह अवरुद्ध हो जाय तो उसके रक्त प्राप्त करने वाले पेशी तन्तुओं की मृत्यु हो जाती है तथा यह दशा हृदपेशी विगलन (myocardial infarction) कहलाती है। तीव्र वक्ष पीड़ा तथा परिसंचरण पात (circulatory failure) की इसी दशा को सामान्यतः दिल के दौरे (heart attack) के रूप में – जाना जाता है। विशेष उपचार साधनों तथा परिचर्या द्वारा इन गम्भीर रोगियों में से अधिकांश को बचाया जा सकता है।
➤ अरक्तता (Anaemia)
उस अवस्था को कहते हैं जब रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं अथवा हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। अरक्तता अनेक प्रकार की होती है तथा उसका वर्गीकरण बहुत जटिल होता है, तथापि इस पुस्तक के उद्देश्य के लिए केवल दो प्रकार की अरक्तता का वर्णन महत्वपूर्ण है।
(a) अल्पलौह अरक्तता- इसे लौह अल्पता जन्य अरक्तता (iron deficiency anaemia) भी कहते हैं। इसके अनेक कारण हो सकते हैं।
(b) प्रणाशी रक्तता (Pernicious anaemia, Addison’s anaemia): इस रोग में पाचन तन्त्र से विटामिन B₁₂ का अवशोषण नहीं हो पाता। रोग का मुख्य कारण जठर की क्रियात्मक विकृति है। अरक्तता के मूल लक्षण रक्त की ऑक्सीजन वहन क्षमता में कमी के कारण प्रकट होते हैं। ये निम्नलिखित हैं- सांस फूलना, बेचैनी, थकान, भूख न लगना तथा त्वचा का फीकापन (pallor)। लोहे की कमी के कारण होने वाली अरक्तता को लौह उपचार द्वारा ठीक किया जा सकता है। प्रणाशी अरक्तता के उपचार के लिए विटामिन B₁₂ के अन्तःपेशी इंजेक्शन लगाये जाते हैं।
➤ एथरोक्लीरोसिस (Atherosclerosis)
इसे धमनीकाठिन्य रोग भी कहते हैं। इस दशा में कोलेस्ट्राल मेटाबोलिज्म के विकार के परिणामस्वरूप धमनी की भित्तियां कठोर हो जाती हैं। रोगी को प्रायः अतिरिक्त दाब या हाइपरटेंशन तथा कभी-कभी चिरकारी वृक्क रोग (chronic renal disease) भी होता है। धमनियों में घनास्त्र (thrombus) हो सकता है; घनास्त्र का एक अंश पृथक् होकर अन्तःशल्य (embolus) के रूप में रक्त में प्रवाहित होकर किसी छोटी धमनी को अवरुद्ध कर सकता है। धमनीकाठिन्य के फलस्वरूप अधःशाखा में पीड़ा और सुन्नता हो सकती है तथा रंग फीका पड़ सकता है। इस दशा में हृदय विशेषज्ञ से उपचार कराना चाहिए।
➤ हृदय शूल (Angina)
छाती के मध्य भाग में कुछ अन्तराल से होने वाली तीव्र प्रकार की वेदना को हृदय शूल कहते हैं। यह शूल विशेष रूप से हृदय प्रदेश से वाम स्कन्ध एवं भुजा की ओर फैलता है। एन्जाइना रोग रक्त में कोलेस्ट्राल की वृद्धि, प्लेटलेट्स में चिपचिपापन तथा फाइलीनोजेन आदि के वृद्धि होने के कारण हृदय की भित्ति को भली प्रकार रुधिर प्राप्त न होना, रक्त का थक्का बनना या कोरोनरी धमनी में संकुचन आदि के कारण होता है। ऐसी अवस्था में हृदय पेशियों को ऑक्सीजन प्राप्त नहीं होती। इससे आर्टीरियोस्क्लेरोसिस (arteriosclerosis) हो जाता है और सीने तथा कंधे में तेज दर्द होता है। ऐसी अवस्था में सोरबीट्रेट का टेबलेट देकर विशेषज्ञ द्वारा निदानोपरान्त इलाज करनी चाहिए।
➤ ल्यूकीमिया (Leukaemia)
यह एक प्रकार का कैंसर है जिसमें श्वेत रक्त कोशिकाएं बहुत अधिक संख्या में उत्पन्न होती हैं। जिस प्रकार की श्वेत कोशिकाओं का बाहुल्य होता है उसी के अनुसार इसे लिम्फौयड (lymphoid) अथवा माइलौयड (myloid) ल्यूकीमिया कहा जाता है। यह रोग किसी भी आयु में पाया जा सकता है। माइलौयड ल्यूकीमिया अधिक गम्भीर होता है तथा बाल्यकाल में अधिक होता है। यह दशा तीव्र तथा चिरकारी हो सकती है। तीव्र ल्यूकीमिया में कुछ सप्ताह में ही मृत्यु हो सकती है; चिरकारी ल्यूकीमिया में रोगी कुछ वर्ष तक जी सकता है।
➤ हाइपोटेंशन एवं हाइपरटेंशन (Hypo & Hypertension)
‘ब्लड प्रेशर’ वह प्रेशर है जो धमनियों में रक्त प्रवाह कायम रखता है। हृदय के क्रमशः संकुचित एवं शिथिल होने से इस प्रेशर का सृजन होता है। संकुचित अवस्था के दबाव को ‘सिस्टोलिक’ तथा शिथिल अवस्था के दबाव को ‘डाइस्टोलिक’ कहते हैं।
किसी भी कारण से उत्पन्न रक्त दाब की कमी की अवस्था को हाइपोटेंशन अथवा लो ब्लड प्रेशर कहते हैं। वयस्कों में सिस्टोलिक ब्लड-प्रेसर 100mm Hg से कम मिलने पर भी उन्हें अल्प रक्त दाब का रोगी माना जा सकता है।
खराब स्वास्थ्य, उपवास, भोजन तथा जल की कमी, वमन एवं कुछ रोगों जैसे एडिसन रोग, तथा टी बी आदि के कारण भी अल्प रक्तदाब पाया जाता है।
इसमें रोगी का शरीर ठंडा, त्वचा पीला, सिर पर पसीना, दृष्टि शक्ति कम, शरीर में ऐंठन, कम मूत्र त्याग तथा अधिक अल्प रक्त दाब होने पर रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। इस स्थिति में रोगी के मूल कारण की चिकित्सा करनी चाहिए।
‘सिस्टोलिक’ दबाव यदि 140 मिमी मर्करी से अधिक और डायस्टोलिक दबाव 90 मिमी से अधिक हो जाय तो उस स्थिति को ‘उच्च रक्तचाप’ अथवा ‘हाइपर टेंशन’ कहा जाता है।
ब्लड प्रेशर बढ़ने के प्रमुख कारण हैं – तनाव, धूम्रपान, मदिरापान, नमक का अत्यधिक प्रयोग, मोटापा, असंतुलित एवं वसायुक्त भोजन, गर्भ निरोधक गोलियाँ, व्यायाम की कमी, प्रदूषित वातावरण आदि।
उच्च रक्तचापी व्यक्तियों में हृदय का दौरा पड़ने का खतरा सामान्य व्यक्ति से तीन गुना तथा लकवा होने का भय चार गुना अधिक रहता है। यह सही है कि उच्च रक्तचाप को पूर्णरूपेण नियंत्रित करना असंभव है, लेकिन अपनी दिनचर्या व जीवन शैली में नियमित व्यायाम, धूम्रपान एवं मदिरा का त्याग, वसायुक्त भोजन से परहेज, वजन नियंत्रण, ध्यान, योग तथा संतुलित आहार को शामिल करके उसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
➤ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी
प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी दिल का दौरा पड़ने पर धमनियों में थक्का जमने से बचाव के सिद्धान्त पर आधारित है। यह लोगों को स्वस्थ जीवन जीने में सहायता कर उन कारणों को ही मिटा देता है, जिनके कारण धमनियों में रक्त प्रवाह बाधित होता है। प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी बीमारी की जड़ को ही मिटा देता है। प्रतिदिन व्यायाम, प्राणायाम, भ्रमण, सन्तुलित भोजन तथा दैनिक तनाव पर नियंत्रण रखकर ऐसा किया जाता है। इस बात पर भी ध्यान रखा जाता है कि कैसे धमनियों को लचीला बनाए रखा जाए। प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी कटलेट्स और माइक्रो वेसल्स को खोलकर दिल में रक्त प्रवाह सामान्य बनाए रखता है।
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