यदि हम किसी पिण्ड को एक बिन्दु (Point) पर स्थिर (fix) करके उसके किसी अन्य बिन्दु पर एक बल लगायें (जिसकी क्रिया-रेखा पर स्थिर बिन्दु न हो) तो वह पिण्ड स्थिर बिन्दु के परितः घूमने लगता है। इस प्रकार “बल द्वारा एक पिण्ड को एक अक्ष के परितः घुमाने की प्रवृत्ति को ही बल-आघूर्ण कहते हैं।”
यह प्रवृत्ति (effort) बल के परिमाण व अक्ष (axis) से बल की क्रिया रेखा (axis of rotation) के बीच की लंबवत् दूरी (perpendicular distance) पर निर्भर करता है।
बल आघूर्ण की माप (Measurement of Torque)
किसी अक्ष या बिन्दु के परितः एक बल का बल आघूर्ण, उस बल के परिमाण तथा अक्ष से बल की क्रिया-रेखा के बीच की लम्बवत् दूरी के गुणनफल के बराबर होता है।
τ=Fxd
बल आघूर्ण (τ) = बल (F) × बल बाहु (d)
बल आघूर्ण एक सदिश (vector) राशि (quantity) है।
इसका मात्रक न्यूटन मीटर होता है।
बल आघूर्ण का लाभ (Benefit of Torque)
इसके द्वारा आघूर्ण भुजा की लम्बाई बढ़ाकर कोई कार्य कम बल लगाने पर ही हो जाता है। जैसे घरों में गेहूँ पीसने का जाँता (Quern) का हत्था कील से दूर लगाया जाता है ताकि जाँता को घुमाने के लिए कम जोर या बल (force) लगाना पड़े।* इसी प्रकार पानी निकालने वाले हैण्ड पम्प का हत्था (handle) लम्बा बनाया जाता है।
इस सिद्धान्त के आधार पर विभिन्न सरल मशीनों (simple machine) तथा जटिल मशीनों का निर्माण किया जाता है। यथा उत्तोलक (Lever), घिरनी (pully), आनत तल (Inclined plane), स्क्रू जैक आदि।*
आघूर्णों का सिद्धान्त (Principle of Moments)
यदि किसी पिण्ड पर बहुत से बल आरोपित हों जो उसको किसी अक्ष (Fix point) के परितः (Sorrounding) घुमाने की प्रवृत्ति (nature) रखते हों और वह पिण्ड स्थिर अवस्था में रहे तो घूर्णन गति के लिए वह पिण्ड संतुलन की अवस्था में होता है। अर्थात् उन सभी बलों का उस अक्ष के परितः आघूर्णों का बीजीय योग (Algebraic Sum) शून्य होता है। अर्थात् – वामवर्ती (anti-clockwise) आघूर्णों का योग, दक्षिणावर्ती (clock wise) आघूर्णों के योग के बराबर होता है।
चित्र में xy एक समान मोटी छड़ हैं जो आलम्ब (fix point) O पर टिकी है। इसके विभिन्न बिन्दुओं A, B, C तथा D पर क्रमशः vec F1 vec F2 vec F3 तथा vec F4 भार लटकाये गये हैं परन्तु छड़ संतुलन में है तो,
→ (+F1×d1) + (F2×d2) + (- F3×d3) + (- F4 ×d4) = 0
→ F1d1 + F2d2 = F3d3 + F4d4
बलयुग्म (Couple Force)
यदि दो बराबर तथा विपरीत समान्तर बल जिनकी क्रिया रेखाएं भिन्न हैं, किसी वस्तु पर लगाये जायें तो वे उस वस्तु को घुमाने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार के बलों के जोड़े को बल युग्म कहते हैं। इस प्रकार के बलों का सम्मिलित प्रयास अर्थात् पिण्ड को एक ही दिशा में घुमाने की प्रवृत्ति होती है। जैसे- गाड़ी का स्टियरिंग व्हील घुमाना, पानी का नल खोलना, घड़ी में चाबी भरना इत्यादि।
सरल मशीन (Simple Machine)
सरल मशीन बल आघूर्ण के सिद्धान्त पर कार्य करने वाली एक युक्ति (Technique) होती है जिसमें किसी सुविधाजन (Appropriate) बिन्दु पर थोड़ा सा बल लगाकर किसी कार्य को अपेक्षाकृत आसानी से किया जा सकता है। जैसे – लट्ठे की सहायता से लकड़ी के भारी बोटे या पत्थर को खिसकाना, आनत तल की सहायता से भारी वस्तुओं को ट्रक पर चढ़ाना, सरौते की सहायता से अत्यंत कठोर (Hard) सुपारी (nut) को काटना इत्यादि।
मशीन की दक्षता (Efficiency of Machine)
किसी मशीन को दी गयी ऊर्जा व मशीन द्वारा किये गये कार्य के अनुपात को मशीन की दक्षता कहते हैं।
मशीन द्वारा यद्यपि कम बल लगाकर अधिक भार उठाया जा सकता है, परन्तु निवेशित ऊर्जा (applied or input energy) प्रायः निर्गत ऊर्जा (Output or resultand energy) से अधिक होता है। क्योंकि निवेशित ऊर्जा का कुछ अंश घर्षण बलों के विरुद्ध कार्य करने में खर्च हो जाता है। अतः मशीन की दक्षता भी प्रायः 100% से कम ही होती है। यदि किसी मशीन की दक्षता 100% हो जाय तो हम उसे पूर्ण दक्ष (Perfect efficient machine) मशीन या आदर्श (Ideal) मशीन कहते हैं।
मशीन की दक्षता = मशीन द्वारा कृत कार्य/मशीन को दी गई ऊर्जा × 100 (% में)
अथवा, मशीन की दक्षता (प्रतिशत में) = [यांत्रिक व्यय /वेग अनुपात x 100] %
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