द्रव का स्वतंत्र पृष्ठ सदैव तनाव की स्थिति में रहता है तथा उसमें कम से कम क्षेत्रफल या आकार प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है। द्रव के पृष्ठ का यह तनाव ही पृष्ठ तनाव कहलाता है।

यदि किसी द्रव के पृष्ठ पर एक काल्पनिक रेखा AB खींचे तो इस रेखा के प्रत्येक ओर का पृष्ठ दूसरे ओर के पृष्ठ पर एक आकर्षण बल (Pulling force) लगाता है जो रेखा AB के लम्बवत् तथा द्रवपृष्ठ के तल पर होता है। रेखा AB की एकांक लम्बाई पर कार्य करने वाले इस बल का परिणाम ही द्रव का पृष्ठ तनाव कहलाता है। यदि रेखा AB की लम्बाई ‘I’ हो तथा इसके किसी भी ओर कार्य करने वाला संपूर्ण बल F हो तो पृष्ठ तनाव,
T= F / l
इसका SI मात्रक न्यूटन घीटर या जूल/मीटर होता है व विमीय सूत्र [MT-2] है।*
यदि किसी द्रव (liquid) के पृष्ठ के क्षेत्रफल (Surface Area) AA बढ़ाने के लिए W कार्य करना पड़े तो द्रव का पृष्ठ तनाव T =
W /△A = कार्य / क्षेत्रफल वृद्धि
यदि △A = 1, तो T = W
अतः द्रव के पृष्ठ के क्षेत्रफल में एकांक वृद्धि करने के लिए किया गया कार्य द्रव के पृष्ठ तनाव के बराबर होता है। इसीलिए पृष्ठ तनाव का मात्रक जूल/मीटर2 भी होता है।
➤ पृष्ठतनाव का कारण (Reason of Surface Tension)
द्रव के सभी अणु ससंजक बल के कारण एक दूसरे द्वारा आकर्षित किये जाते हैं। द्रव के भीतर के अणुओं पर चारों तरफ से समान बल लगने के कारण उनका परिणामी खिंचाव शून्य होता है
परन्तु द्रव के ऊपरी सतह (free surface) पर स्थित अणुओं पर सिर्फ अगल-बगल व नीचे के अणुओं द्वारा बल लगाया जाता है। अगल- बगल के अणुओं के खिंचाव भी आपस में निष्प्रभावी हो जाते हैं। केवल नीचे के अणुओं द्वारा लगाया गया बल (खिंचाव) ही प्रभावी होता है (क्योंकि उसके विपरीत ऊपर की ओर से कोई बल नहीं लगता)। अतः सतह के सभी अणु नीचे की ओर खिंचाव महसूस करते हैं। इसलिए द्रव ऐसा व्यवहार करता है मानो कि वह तना हुआ इलास्टिक झिल्ली हो जो यथासंभव अपने आकार को कम करने का प्रयास कर रहा हो। इसीलिए द्रव के पृष्ठ पर तनाव उत्पन्न हो जाता है।
➤ पृष्ठ तनाव पर ताप तथा अशुद्धियों का प्रभाव (Effect of Temperature and Impurities on Surface Tenstion)
सामान्यतः ताप बढ़ाने पर पृष्ठ तनाव कम हो जाता है। क्रांतिक ताप पर पृष्ठ तनाव शून्य हो जाता है। क्योंकि इस ताप पर द्रव को द्रवीभूत नहीं किया जा सकता। यदि किसी द्रव में मिलाई गई अशुद्धि अत्यंत घुलनशील है तो पृष्ठ तनाव का मान बढ़ जाता है, जैसे- नमक। यदि अशुद्धि अघुलनशील है तो यह द्रव के सतह पर एकत्रित होकर उसे संदूषित (Contaminated) करती है जिससे द्रव का पृष्ठ तनाव कम हो जाता है। जैसे- जल में ऐल्कोहल मिलाने पर पृष्ठ तनाव कम हो जाता है।
➤ स्पर्श-कोण (Tangent Angle)
जब कोई द्रव किसी ठोस तल के संपर्क में आता है तो उसका तल क्षैतिज न होकर वक्राकार (Curved) हो जाता है। यदि दो केशनलियों में जल और पारा अलग-अलग भरा जाय तो जल का तल अवतल (concave) तथा पारे का तल उत्तल (Convex) प्राप्त होता है। अतः द्रव के तल पर खींची गई स्पर्श रेखा तथा ठोस तल पर द्रव के अंदर की ओर खींची गई स्पर्श रेखा के बीच बने कोण को उस द्रव एवं ठोस के लिए स्पर्श कोण कहते हैं। जो द्रव ठोस को भिगोते हैं उनका स्पर्श कोण न्यून कोण होता है तथा जो द्रव, ठोस को नहीं भिगोते, उनका स्पर्श कोण अधिक कोण होता है। काँच तथा पारे के लिए स्पर्श कोण का मान 135° होता है। जल तथा चाँदी का स्पर्श कोण 90° होता है। इसी कारण चाँदी के बर्तन में किनारों पर भी जल का तल क्षैतिज रहता है।
केशिकत्व (Capillarity)
यदि काँच के दोनों सिरों पर खुली केशनली को ऐसे द्रव में खड़ा किया जाय जो काँच से चिपकता हो (जैसे- पानी) तो द्रव केशनली में चढ़ जायेगा। यदि केशनली को ऐसे द्रव में खड़ा किया जाय जो केश नली (Capillary Tube) की दीवारों से नहीं चिपकता (जैसे – पारा) तो नली के अंदर पारे का तल बाहरी तल की अपेक्षा नीचे उतर जाता है। इस प्रकार केशनली में द्रव के ऊपर चढ़ने या नीचे उतरने की घटना को केशिकत्व (Capillarity) कहते हैं।

केशनली एक बहुत ही कम व एक समान त्रिज्या वाली खोखली (Hollow) नली (Tube) होती है। केशनली में कोई द्रव कितना चढ़ेगा या उतरेगा यह केशनली के व्यास (या त्रिज्या) पर निर्भर करता है।
यदि केशनली की त्रिज्या, द्रव का पृष्ठ तनाव T, व घनत्व d हो तो नली में चढ़े (या उतरे) द्रव की ऊँचाई (या गहराई)
h = 2T cos θ / r dg h होता है। जहाँ θ = द्रव व नली की दीवार के बीच का स्पर्श कोण है। इससे स्पष्ट है कि का मान जितना ही कम होगा अर्थात् नली जितनी अधिक पतली होगी, द्रव के तल में चढ़ाव या उतार उतना ही अधिक होगा।
केशनली में द्रव के चढ़ने या उतरने का कारण भी पृष्ठ तनाव ही है।
श्यानता (Viscosity)
द्रवों का वह गुण जिसके कारण द्रव अपनी भिन्न-भिन्न पर्तों में होने वाली आपेक्षिक गति का विरोध करते हैं, श्यानता व गाढ़ापन कहलाती है। यह एक तरह का घर्षण बल है जो द्रव की विभिन्न पर्तों के बीच कार्य करता है। जिस द्रव में जितना अधिक श्यानता (Viscosity) का गुण होगा उसे हिलाने में उतना ही अधिक बल लगाना पड़ता है और छोड़ देने पर उतनी ही जल्दी वह विरामावस्था (Position of rest) में आ जाती है। इसके निम्न उदाहरण दिये जा सकते हैं-
(i) किसी बर्तन में रखा द्रव बिलोकर छोड़ने पर द्रवश्यानता के कारण ही थोड़ी देर में स्वयं ठहर जाता है।
(ii) वायु में हम जितना तेज चल सकते हैं उतना तेज जल में नहीं चल सकते। इसका कारण यह है कि वायु की तुलना में जल की श्यानता बहुत अधिक होती है।
(iii) बादल के कण वायु की श्यानता के कारण बहुत धीरे- धीरे नीचे आ पाते हैं तथा वे आकाश में ही तैरते हुए प्रतीत होते हैं। श्यानता का गुण, तरल पदार्थों (द्रव व गैसों) में ससंजक बल (Coherent force) के कारण ही उत्पन्न होता है।
किसी तरल (Liquid) पदार्थ के दो पर्तों के बीच लगने वाला श्यान बल F =-ηA (△Vx)/△y
जहाँ, A = पर्तों को क्षेत्रफल
(△Vx)/△y= पर्तों के बीच की वेग प्रवणता [दूरी के साथ वेग में परिवर्तन की दर]
तथा η एक नियतांक है जिसे द्रव का श्यानता गुणांक (coefficient of viscosity) कहते हैं।
ऋण (-) चिन्ह यह प्रकट करता है कि श्यान बल द्रव प्रवाह के विपरीत दिशा में कार्य करता है।
➤ स्टोक का नियम (Sotck’s Law)
स्टोक ने यह सिद्ध किया कि यदि r त्रिज्या की गोली किसी पूर्णतः समांग व अनन्त विस्तार वाले तरल माध्यम से अंतिम वेग (v) से गति करे तो गोली पर कार्य करने वाला श्यान बल F = 6πηrv होता है जो सदैव ठोस की गति के विपरीत लगता है। जहाँ, η उस द्रव का श्यानता गुणांक है।
➤ आदर्श द्रव (Ideal Liquid)
वह द्रव जिसके लिए संपीड्यता (Compressibility) तथा श्यानता (Viscosity) दोनों ही शून्य होते हैं, आदर्श द्रव कहलाता है।
असंपीड्य होने का अर्थ यह है कि द्रव को दबाने से उसके आयतन अथवा घनत्त्व में कोई परिवर्तन नहीं होता। द्रव के अश्यान होने का अर्थ है कि जब द्रव की विभिन्न पर्तों के बीच आपेक्षिक गति होती है तो परतों के बीच कोई स्पर्श रेखीय घर्षण बल नहीं होता।
➤ धारा रेखीय प्रवाह (Streamline Flow)
जब कोई द्रव इस प्रकार बहता है कि किसी बिन्दु से गुजरने वाले द्रव का प्रत्येक कण उसी मार्ग पर चलता है जिस मार्ग पर उससे पहले वाला कण चलकर गया था। तो द्रव के इस प्रवाह (Flow) को धारारेखीय प्रवाह कहते हैं तथा कण के चलने के मार्ग (Path) को धारा रेखा (Stream line) कहते हैं।
➤ द्रवों के बहने की अविरलता का सिद्धान्त (Principle of Continuity of Liquids Flowing)
यदि कोई असंपीड्य एवं अश्यान द्रव (incompressible and non-viscous liquid) (आदर्श द्रव किसी ‘असमान’ (unequal) अनुप्रस्थ काट (cross section) वाली नली (tube) में धारा रेखीय प्रवाह (streamline flow) में बह रहा है तो नली के प्रत्येक स्थान पर अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल तथा द्रव के वेग का गुणनफल समान रहता है। इस महत्वपूर्ण फल को ‘अविरलता का सिद्धान्त’ कहते हैं।
यदि किसी आदर्श द्रव का किसी नली में धारारेखीय प्रवाह हो तो किसी बिंदु पर द्रव के प्रवाह की दर (Rate of flow of liquid) उस बिंदु पर अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती (inverse proportional) होता है। अतः चौड़ी नली होने पर वेग प्रवाह कम तथा पतली नली होने पर वेग प्रवाह अधिक हो जाता है।
➤ क्रांतिक वेग (Critical Velocity)
यदि किसी द्रव के प्रवाह (Flow) का वेग एक निश्चित वेग से कम हो तो द्रव का प्रवाह धारा रेखीय होता है। इस निश्चित वेग को द्रव का क्रान्तिक वेग (critical velocity) कहते हैं। यह वेग नियमित (continue) होता है, जिसमें किसी निश्चित बिंदु पर प्रवाह की चाल व दिशा निश्चित बनी रहती है। यदि द्रव का वेग क्रांतिक वेग से अधिक हो जाता है तो द्रव का प्रवाह अनियमित हो सकता है जिसे विक्षुब्ध प्रवाह (Turbulent flow) कहते हैं। इसमें द्रव की गति का मार्ग टेढ़ा- मेढ़ा (Zig-zag) या भंवरदार (Whirly) हो जाता है। जैसे – बरसात में नदी नालों की गति।
क्रांतिक वेग से कम वेग होने पर द्रव के बहने पर उसकी श्यानता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और क्रांतिक वेग से अधिक होने पर उसका वेग उसके घनत्व (density) पर निर्भर करता है।
➤ वेग प्रवणता (Velocity Gradient)
एकांक दूरी पर स्थित द्रव की दो पर्तों के बीच प्रवाह की दिशा के लम्बवत् वेग परिवर्तन को वेग प्रवणता कहते हैं। यदि Δy दूरी पर स्थित दो पर्तों के बीच वेग-परिवर्तन Δν हो तो वेग प्रवणता = Δν / Δy
इसे दूरी के साथ वेग परिवर्तन की दर कहते हैं। इसका मात्रक प्रति सेकेंड होता है।
➤ बरनौली प्रमेय (Bernaulli’s Theorem)
जब कोई असंपीड्य तथा अश्यान द्रव (अथवा गैस) एक स्थान से दूसरे स्थान तक धारा-रेखी प्रवाह में प्रवाहित होता है तो उसके मार्ग के प्रत्येक बिन्दु पर इसके प्रति एकांक आयतन की कुल ऊर्जा अर्थात् दाब ऊर्जा, गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा का योग एक नियतांक होता है। बरनौली के प्रमेय का समीकरण अधोलिखित है। यथा-
P+ 1/ 2 dv² + dgh = नियतांक
इस प्रकार बरनौली का प्रमेय एक प्रकार से प्रवाहित द्रव (अथवा गैस) के लिए ऊर्जा संरक्षण का सिद्धान्त ही है।
बरनौली प्रमेय समीकरण से यह स्पष्ट है कि किसी प्रवाहित द्रव (अथवा गैस) में जिस स्थान पर द्रव का वेग कम होता है वहाँ दाब अधिक हो जाता है तथा जिस स्थान पर वेग अधिक होता है, वहाँ दाब कम हो जाता है। यदि हम द्रव को किसी ऐसी नली में प्रवाहित करें जिसके बीच का भाग संकीर्ण हो तो इस भाग में द्रव का वेग सबसे अधिक होगा तथा दाब सबसे कम होगा।
➤ बरनौली प्रमेय के अनुप्रयोग (Applications of Bernaulli’s Theorem)
(i) वेन्चुरी मीटर (Venturimeter)- बरनौली प्रमेय पर आधारित यह एक ऐसी युक्ति है जिसकी सहायता से किसी नली में द्रव के प्रवाह की दर ज्ञात की जाती है। इसमें एक नली XY (चित्र) होती है जिसका बीच का भाग 2 संकीर्णित होता है। X व Z पर दो ऊर्ध्वाधर नलियाँ जुड़ी रहती हैं। इस मीटर को उस नली के साथ जोड़ देते हैं जिसमें जल के बहने की दर ज्ञात करनी होती है।
जब नली XY में जल बहता है तो Z पर जल का वेग, X की अपेक्षा अधिक होता है। अतः Z पर दाब, X की अपेक्षा कम होता है। इस दाबान्तर को ऊर्ध्वाधर नलियों द्वारा नाप लेते हैं। इससे नली में जल के बहने की दर ज्ञात की जा सकती है।

प्रवाह की दर Q = A1A2 √(2gh)/(A12 – A22)
जहां A1 व A2 अनुपस्थ काट वाले दो बिन्दुओं के बीच दाबान्तर h है
(ii) कणित्र (Atomizer)- बरनौली प्रमेय पर आधारित एक ऐसी युक्ति है जिससे किसी द्रव की धार को छोटी-छोटी बूँदों में फुहारा (Spray) जा सकता है।

इसमें एक क्षैतिज व एक ऊर्ध्वाधर नली होती है जो एक दूसरे के लम्बवत् जुड़ी होती है। इसमें पतली वाली नली को पानी में डुबाकर दूसरी में पीछे से हवा वेगपूर्वक प्रवाहित करते हैं। इससे क्षैतिज नली के संकीर्ण भाग में वायु के अधिक वेग के कारण दाब घट जाता है और द्रव पात्र से नली द्वारा ऊपर चढ़ने लगता है और वायु के साथ मिलकर फव्वारे के रूप में बाहर निकलता है। इसका उपयोग चित्रकारी, रंगाई, इत्र छिड़कने तथा डॉक्टरों द्वारा नाक कान आदि धोने में किया जाता है।
➤ निर्वात उत्पन्न करने वाला यंत्र (Vaccume Creator)
किसी पात्र में निर्वात उत्पन्न करने हेतु फिल्टर पम्प का उपयोग किया जाता है जिसका संयोजन चित्रानुसार होता है। इसमें एक चौड़ी नली MN होती है।

इसके ऊपरी भाग में एक अन्य नली A होती है। A के ऊपरी सिरे को जल की टंकी से जोड़ देते हैं। A का निचला सिरा बारीक होता है जिससे जल जेट के रूप में बाहर निकलता है।
जिस बर्तन की वायु निकालनी होती है उसे नली MN से सम्बन्धित कर देते हैं, जैसे चित्र में दिखाया गया है। नली A के बारीक छेद से निकलने वाले जल के जेट का वेग बहुत अधिक है। अतः जेट के समीप वायु का दाब कम हो जाता है। अतः बर्तन की वायु नली MN में प्रवेश करने लगती है। इस प्रकार बर्तन में आंशिक निर्वात् उत्पन्न हो जाता है।
➤ टारसौली का प्रमेय (Tarsauli’s Theorem)
यदि कोई वस्तु h ऊँचाई से स्वतंत्रतापूर्वक गिरती है तो गति के तृतीय समीकरण v² = 2gh के अनुसार उसका वेग निर्धारित होता है। अतः h ऊँचाई से गिरने वाले द्रव का वेग √2gh होता है, (यदि द्रव (Liquid) स्वतंत्रतापूर्वक छोड़ी गई हो अर्थात् उसका प्रारम्भिक वेग शून्य हो।) अतः किसी छिद्र से निकलने वाले द्रव का वेग (बहिःस्राव वेग) वही होता है जो कि द्रव अपने स्वतंत्र तल से छिद्र तक स्वतंत्रतापूर्वक गिरने में प्राप्त कर लेता है।
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