इस लेख में हम गैसों का अणु गति सिद्धान्त के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे । इसमें दी गई जानकारी आपके लिए सहायक सिद्ध होगी तो आइए इसे अपनी पूरी अंतः शक्ति से पढ़ते हैं।
➤ आदर्श गैस (Ideal Gas)
आदर्श गैस एक ऐसी काल्पनिक गैस है जिसके गुण किसी भी वास्तविक गैस के अत्यंत निम्न दाब पर गुणों के समान होते हैं। आदर्श गैस में निम्न गुणों की कल्पना की जाती है –
(1) ये गैस ताप व दाब की सभी अवस्थाओं में बॉयल, चार्ल्स एवं दाब के नियमों का पूर्णतः पालन करती है।
(2) इनके आयतन प्रसार गुणांक व दाब प्रसार गुणांक बराबर होते हैं।
(3) इनके अणुओं के मध्य आकर्षण बल नहीं लगता है।
(4) इनके अणुओं का आकार अत्यंत सूक्ष्म (infinitesimally Small) होता है।
ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन तथा हीलियम को आदर्श गैस की परिकल्पना के काफी करीब माना जाता है।*
➤ आदर्श गैस का गत्यात्मक सिद्धान्त (Mobility Theory of Ideal Gasses)
(1) गैस के सभी अणु एक जैसे दृढ़ व अति सूक्ष्म गोलाकार कण होते हैं।
(2) गैस के अणु निरंतर अनियमित चलते रहते हैं तथापि किसी स्थान पर अणुओं की संख्या निश्चित रहती है।
(3) गैस के अणुओं के बीच आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल कार्य नहीं करता। जैसे ही दो अणु आपस में टकराते हैं उनकी वेग व दिशा बदल जाती है अर्थात् अणुओं की गति अनियमित होती है।
(4) अणुओं की टक्कर पूर्णतः प्रत्यास्थ (Perfect Elastic) होती है। इसीलिए सामान्य ताप व दाब पर गैस की माध्य गतिज ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता।
(5) अणुओं की गति पर गुरुत्वाकर्षण बल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि गैस के अणुओं का वेग अत्यधिक व द्रव्यमान बहुत कम होता है।
“आदर्श गैस का दाब उसके प्रति एकांक आयतन की गतिज ऊर्जा का दो-तिहाई होता है।”
➤ बॉयल का नियम (Boyal’s Law)
यदि गैस का ताप स्थिर रहे तो अणुओं का वेग-वर्ग माध्य ” भी नियत होगा। तब
PV = नियतांक
जहाँ P गैस का दाब व V आयतन है। यह नियम सिर्फ आदर्श गैस के लिए सत्य है।
इस प्रकार, यदि हम किसी गैस के ताप को नियत रखते हुए उसके दाब को दोगुना कर दें तो उसका आयतन आधा रह जायेगा। अथवा दाब को आधा कर देने पर आयतन दोगुना हो जायेगा।
➤ चार्ल्स का नियम (Charl’s Law)
गैस के दिये गये द्रव्यमान के लिए यदि गैस का दाब स्थिर रहे तो गैस का आयतन उसके परम ताप के अनुक्रमानुपाती होता है।
v αT (यदि P नियत हो)
➤ क्रान्तिक ताप (Critical Temperature)
प्रत्येक गैस के लिए एक ऐसा निश्चित ताप होता है कि यदि गैस इस ताप से कम ताप पर है तो उसे केवल दाब डालकर ही द्रवित किया जा सकता है जबकि इस ताप से ऊंचे ताप पर होने से गैस को केवल दाब डालकर द्रवित नहीं किया जा सकता। इस ताप को उस गैस का क्रान्तिक ताप कहते हैं। CO2 का क्रान्तिक ताप 31.1 °C है तथा O2 का क्रान्तिक ताप – 118 °C है। इसीलिए O °C पर केवल CO2 ही केवल दाब डालकर द्रवित किया जा सकता है, O2 को नहीं।
➤ क्रान्तिक दाब (Critical Pressure)
क्रांतिक ताप पर किसी गैस को द्रवित करने के लिए आवश्यक गैस का दाब क्रान्तिक दाब कहलाता है।
➤ क्रान्तिक आयतन (Critical Volume)
क्रांतिक ताप तथा दाब पर एकांक द्रव्यमान की गैस का जितना आयतन होता है, वह गैस का क्रांतिक आयतन कहलाता है।
➤ वाष्प तथा गैस (Vapour and Gas)
जो पदार्थ सामान्य ताप तथा दाब पर ठोस अथवा द्रव अवस्था में होते हैं उनको गैसीय अवस्था में आने पर वाष्प कह देते हैं जैसे जल की वाष्प व कपूर की वाष्प आदि।
जो पदार्थ सामान्य ताप तथा दाब पर गैसीय अवस्था में ही होते हैं। उन्हें गैस कहते हैं। यथा H2, O2, N2 इत्यादि।
वाष्प को केवल दाब डालकर द्रवित किया जा सकता है जबकि गैस को पहले उसके क्रांतिक ताप तक ठंडा करना पड़ता है। फिर दाब डालकर उसे द्रवित किया जा सकता है।
➤ वाण्डरवाल समीकरण (Wanderwal’s Equation)
वाण्डरवाल समीकरण गैसों के अवस्था का समीकरण है जिसे वाण्डरवाल ने 1877 में प्रस्तुत किया था। वास्तविक गैसें, आदर्श गैस समीकरण का ठीक से पालन नहीं करती, जबकि वाण्डरवाल का समीकरण काफी सीमा तक वास्तविक गैसों के व्यवहार का ठीक से वर्णन करता है। अर्थात् PV=nRT का पालन नहीं करती। इसके अनुसार PV का मान सदैव नियत रहता है। जहाँ R सार्वत्रिक गैस नियतांक है, T गैस का ताप है, P दाब है तथा V आयतन है।

परन्तु वास्तविक गैसों का दाब बढ़ाने पर व्यवहार भिन्न-भिन्न होता है। जैसे – हाइड्रोजन का दाब बढ़ाने से उसके दाब (P) व आयतन (V) के गुणनफल का मान बढ़ने लगता है। जबकि ऑक्सीजन का दाब बढ़ाने पर पहले PV का मान घटता है फिर बढ़ने लगता है।
द्रवों तथा ठोसों का अणुगति मॉडल (Kinetic Model of Liquids and Solids)
➤ अन्तराण्विक बल (Inter Molecular Force)
प्रत्येक पदार्थ अणुओं (mole cules) से मिलकर बना है। प्रत्येक अणु में धनावेशित नाभिक तथा ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन होते हैं। अणु के नाभिक का कुल धनावेश, इलेक्ट्रॉनों में कुल ऋणावेश के बराबर होता है। इस प्रकार, पदार्थ के अणु वैद्युत उदासीन होते हुए भी एक दूसरे पर वैद्युत बल आरोपित करते हैं। जब अणु एक दूसरे के पास आते हैं तो उनमें आवेशों का वितरण इस प्रकार होता है कि दो विपरीत आवेशों के बीच आकर्षण बल, समान आवेशों के बीच के प्रतिकर्षण बल से अधिक होता है। इस प्रकार अणुओं के मध्य एक नेट आकर्षण बल कार्य करता है। इसे अंतराण्विक बल कहते हैं।
➤ साम्य दूरी (Equilibrium Distance)
पदार्थ के अणुओं के बीच की दूरी जैसे-जैसे कम होती जाती है उनके बीच नेट आकर्षण बल का मान बढ़ता जाता है। परन्तु जब अणु एक दूसरे के बहुत पास आ जाते हैं तो आवेशों का वितरण बदलने लगता है तथा नेट आकर्षण बल का मान घटने लगता है व प्रतिकर्षण बल का मान बढ़ने लगता है। एक स्थिति ऐसी भी आ सकती है जब नेट आकर्षण बल के बजाय नेट प्रतिकर्षण बल लगने लगे। इन दोनों स्थितियों के बीच एक स्थिति ऐसी होती है जिनमें अणुओं के बीच नेट बल शून्य होता है (अर्थात् आकर्षण बल तथा प्रतिकर्षण बल दोनों एक दूसरे के ठीक बराबर होते हैं।) इस स्थिति में अणुओं के बीच की दूरी को साम्य दूरी (ro) कहते हैं। इसकी कोटि लगभग 10-10 मी. की होती है। इस दूरी से अधिक दूरी होने पर वे एक दूसरे को आकर्षित करते हैं व कम होने पर प्रतिकर्षित।
➤ द्रवों का आण्विक मॉडल (Molecular Model of Liquid’s)
(1) द्रवों में प्रत्येक अणु अनेक समीपवर्ती अणुओं के बल क्षेत्र में होता है परन्तु अणुओं में पर्याप्त गतिज ऊर्जा होने से वे द्रव की परिसीमा (Boundries) के अंदर ही गति करते रहते हैं।
(2) अणुओं का स्थान (Position) व क्रम (order) नियत नहीं होता।
(3) अणुओं के बीच औसत साम्य दूरी (ro) 10 -10 मी. की कोटि की होती है।
(4) द्रवों के अणु मुख्यतः अपने निकटवर्ती अणुओं से ही टकराते हैं फिर भी उनकी स्थिति में निरंतर विस्थापन होता रहता है।
द्रवों का वाष्पन एवं क्वथन (Vaporisation and Boiling)
द्रव के अणु अनियमित गति करते रहते हैं तथा आपस में टकराते रहते हैं और अपनी ऊर्जा का आदान-प्रदान करते रहते हैं।
इससे कुछ अणुओं की गतिज ऊर्जा अधिक तथा कुछ की कम हो जाती है। जब अधिक गतिज ऊर्जा वाला कोई अणु द्रव के पृष्ठ पर पहुँचता है तो वह द्रव के भीतर के अणुओं के आकर्षण के होते हुए भी द्रव के पृष्ठ को छोड़कर बाहर वायुमंडल में चला जाता है। इसी प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।
चूँकि वाष्पीकरण (Vaporisation) की क्रिया में अधिक गतिज ऊर्जा वाले अणु ही द्रव से बाहर निकलते हैं अतः द्रव में शेष अणुओं की औसत ऊर्जा लगातार कम होती है। अतः द्रव का ताप लगातार कम होता रहता है अर्थात् वाष्पीकरण से द्रव ठंडा हो जाता है।
द्रव को बाहर से ऊष्मा मिलने पर (या गर्म करने पर) द्रव के अणुओं की गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) में वृद्धि होती है तथा द्रव का ताप (Temperature) बढ़ने लगता है और द्रव के पृष्ठ से अधिक अणु बाहर जाने लगते हैं अर्थात् वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है। द्रव को गर्म करते जाने पर एक विशेष ताप ऐसा आता है जब द्रव के सभी अणु अंतराण्विक बलों (intermolecular forces) के बंधन (binding power) से मुक्त होकर द्रव से बाहर जाने लगते हैं। इस ताप को द्रव का क्वथनांक (boiling point of liquid) कहते हैं। द्रव को और ऊष्मा देने पर द्रव का ताप नहीं बढ़ता क्योंकि द्रव को दी गई ऊर्जा द्रव के अंदर के अणुओं की गतिज ऊर्जा में और वृद्धि नहीं करती बल्कि अणुओं को उनके पारस्परिक आकर्षण के विरुद्ध दूर-दूर करने में (अर्थात् अणुओं की स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि) व्यय हो जाती है। इसी ऊष्मा को वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।
➤ ठोसों का आण्विक मॉडल (Molecular Model of Solids)
(1) ठोसों में अणु एक नियमित क्रम (Regular order) में सजे रहते हैं। अर्थात् प्रत्येक अणु का स्थान अथवा स्थिति निश्चित होती है।
(2) ठोस के दो अणुओं के मध्य की दूरी की कोटि (Order), द्रव के अणुओं के मध्य दूरी के समान (10-10 m) होती है।
(3) परमाणु अपनी साम्य स्थिति (State of equilibrium) के दोनों ओर कम्पन करते हैं परन्तु अपनी स्थितियों को स्थायी रूप से नहीं छोड़ते।
(4) ठोस के अणुओं की गतिज ऊर्जा द्रव के अणुओं की गतिज ऊर्जा की तुलना में कम होती है।
ठोसों का गलन (Meltting of Solids)
जब किसी ठोस (Solid) को गरम करते हैं तो उसके अणुओं की ऊर्जा बढ़ जाती है और वे अधिक आयाम से कम्पन करने लगते हैं। गर्म करते रहने पर एक ऐसी स्थिति आती है जब अणुओं का कम्पन आयाम इतना बढ़ जाता है कि वे अपनी साम्य स्थितियाँ छोड़ने लगते हैं तथा उनका क्रम अनियमित हो जाता है। अब अणु ठोस में इधर-उधर घूमने- फिरने लगते हैं। इस प्रक्रिया को ठोस का गलना (Melting) कहते हैं।
जब ठोस गलता है उस समय उसका ताप स्थिर रहता है क्योंकि उस समय ठोस को दी जाने वाली ऊष्मा उसके अणुओं के मध्य लगने वाले आकर्षण बलों के विरुद्ध अणुओं को दूर-दूर करने में व्यय हो जाते हैं। इस प्रकार ठोस को दी गई ऊष्मा उसके अणुओं की गतिज ऊर्जा न बढ़ाकर उसकी स्थितिज ऊर्जा बढ़ाती है जिस कारण ठोस का ताप स्थिर रहता है। इस स्थिर ताप को जिस पर ठोस गलता है, ठोस का गलनांक कहते हैं। चूँकि गलते समय ठोस को दी गई ऊष्मा से ठोस का ताप नहीं बढ़ता केवल अणुओं की स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है। अतः इस ऊष्मा को ठोस के गलन की गुप्त ऊष्मा (Latent heat of melting of Solid) कहते हैं। इस प्रकार अणुओं को आकर्षण बलों से मुक्त करने में व्यय ऊर्जा ही उसकी गुप्त ऊष्मा (Latent heat) है।*
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