भ्रंश और भूकम्प (Faults and Earthquakes)

भारत के अधिकांश भूकम्प भ्रंशों के सहारे मिलते हैं। प्रायद्वीपीय पठार पर विभिन्न भ्रंश पाये जाते हैं। जैसे-अरावली के पूरब ग्रेटबाउन्ड्री फाल्ट, सोन के सहारे सोन भ्रंश, नर्मदा के सहारे नर्मदा भ्रंश, ताप्ती के सहारे ताप्ती भ्रंश, दामोदर के सहारे दामोदर भ्रंश, गोदावरी के सहारे गोदावरी भ्रंश, कृष्णा के सहारे कृष्णा भ्रंश, कावेरी के सहारे ग्रेट म्योर भ्रंश तथा महाराष्ट्र के कोयना एवं कुर्दवाड़ी भ्रंश, असोम में कोपिली नदी के सहारे कोपिली भ्रंश स्थित है। इसी प्रकार बृहद् हिमालय तथा मध्य हिमालय के मध्य मेन सेन्ट्रल थ्रस्ट, मध्य एवं शिवालिक श्रेणी के बीच मेन बाउन्ड्री फाल्ट स्थित है। शिवालिक के दक्षिण हिमालयन फ्रन्ट फाल्ट स्थित है।

भारतीय प्लेट के उत्तर-पूरब बढ़कर हिमालय के नीचे क्षेपित होने से इसका उत्तरी क्षेपित किनारा मैग्मा के रूप में परिवर्तित हो रहा है जो हिमालय को तोड़कर ऊपर निकलना चाहता है किन्तु हिमालय के भारी होने के कारण उसे तोड़ने में मैग्मा असफल होता है इसके फलस्वरूप अंशों के सहारे भूकम्पीय तरंगें सतह पर आती हैं। जैसे हाल के वर्षों में उत्तरकाशी एवं चमोली में भ्रंशों के सहारे भूकम्प आये थे। हिमालय की जड़ों के नीचे एस्थिनोस्फीयर में पिघला हुआ मैग्मा दक्षिण की तरफ भी प्रवाहित होता है जो प्रायद्वीपीय पठार के नीचे प्रवाहित होते समय ऊपर की तरफ दबाव डालता है जिसके फलस्वरूप भारत के उपरोक्त अंशों के सहारे भूकम्प आते हैं। जैसे हाल के वर्षों में लातूर, उस्मानाबाद, कोयना, भोपाल तथा जबलपुर में भूकम्पीय धक्के आये।

भूकम्प न्यूनीकरण

दूसरी आपदाओं की तुलना में भूकम्प अधिक विध्वंसकारी हैं। यह परिवहन और संचार व्यवस्था भी नष्ट कर देते हैं। इसलिए लोगों तक राहत पहुँचाना कठिन होता है। भूकम्प को रोका नहीं जा सकता। अतः इसके लिए विकल्प यह है कि इस आपदा से निपटने की तैयारी रखी जाए और इससे होने वाले नुकसान को कम किया जाए। इसके निम्नलिखित तरीके हैं। यथा –

• भूकम्प नियंत्रण केंद्रों की स्थापना, जिससे भूकम्प संभावित क्षेत्रों में लोगों को सूचना पहुँचाई जा सके। जी.पी.एस. (Global Positioning System) की मदद से प्लेट हलचल का पता लगाया जा सकता है।

• देश में भूकम्प संभावित क्षेत्रों का सुभेद्यता मानचित्र तैयार करना और संभावित जोखिम की सूचना लोगों तक पहुँचाना तथा उन्हें इसके प्रभाव को कम करने के बारे में शिक्षित करना।

• भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में घरों के प्रकार और भवन डिजाइन में सुधार लाना। ऐसे क्षेत्रों में ऊँची इमारतें, बड़े औद्योगिक संस्थान और शहरीकरण को बढ़ावा न देना।

• अंततः भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भूकम्प प्रतिरोधी (Resistant) इमारतें बनाना और सुभेद्य क्षेत्रों में हल्के निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करना।

मौसम विभाग देश के भीतर और आस-पास भूकम्प गतिविधियों पर नजर रखने के लिए राष्ट्रीय नेटवर्क के अन्तर्गत 51 भूकम्प विज्ञान वेधशालाएँ चलाता है। इनमें से 24 वेधाशालाओं को नवीनतम डिजिटल ब्रॉडबैंड सिस्मोग्राफ प्रणालियों और आधुनिक संचार सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है।

नई दिल्ली में सेंट्रल रिसीविंग स्टेशन और राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान आंकड़ा केन्द्र (N.S.D.C.) की स्थापना की गई है। इसका कार्य भूकम्प के आकड़ों को एकत्र करना, उनका विश्लेषण करना तथा उन्हें अभिलेखीकृत करना है। केन्द्र पर भूकम्पकारकों की जानकारी एकत्र करने और विभिन्न उपभोक्ता एजेंसियों को वितरित करने की जिम्मेदारी है। हाल ही में वी सेट (VSAT) आधारित 16 एलीमेंट डिजिटल टेलिमीटरी सिस्मोग्राफ केन्द्र नेटवर्क स्थापित किया गया है। इसके दिल्ली स्थित रिसीविंग स्टेशन द्वारा दिल्ली और आस- पास के इलाकों में भूकम्प गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी।

सुनामी (Tsunami)

भूकम्प और ज्वालामुखी से महासागरीय धरातल में अचानक हलचल पैदा होती है और महासागरीय जल का अचानक विस्थापन होता है। परिणामस्वरूप ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं जिन्हें सुनामिस अथवा सुनामी (बंदरगाह लहरें) या भूकंपीय समुद्री लहरें कहा जाता है।* सामान्यतः शुरू में सिर्फ एक ऊर्ध्वाधर तरंग ही पैदा होती है, परंतु कालांतर में जल तरंगों की एक श्रृंखला बन जाती है क्योंकि प्रारंभिक तरंग की ऊँची शिखर और नीची गर्त के बीच जल अपना स्तर बनाए रखने की कोशिश करता है।

महासागर में जल तरंग की गति जल की गहराई पर निर्भर करती है। इसकी गति उथले समुद्र में ज्यादा और गहरे समुद्र में कम होती है। परिणामस्वरूप महासागरों के अदंरुनी भाग इससे कम प्रभावित होते हैं। तटीय क्षेत्रों में ये तरंगे ज्यादा प्रभावी होती हैं और व्यापक नुकसान पहुँचाती हैं। इसलिए समुद्र में जलपोत पर, सुनामी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। समुद्र के आंतरिक गहरे भाग में तो सुनामी महसूस भी नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गहरे समुद्र में सुनामी की लहरों की लंबाई अधिक होती है और ऊँचाई कम होती है। इसलिए, समुद्र के इस भाग में सुनामी जलपोत को एक या दो मीटर तक ही ऊपर उठा सकती है और वह भी कई मिनट में। इसके विपरीत, जब सुनामी उथले समुद्र में प्रवेश करती है, इसकी तरंग लंबाई कम होती चली जाती है, समय वही रहता है और तरंग की ऊँचाई बढ़ती जाती है। कई बार तो इसकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक हो सकती है जिससे तटीय क्षेत्र में भीषण विध्वंस होता है। इसलिए इन्हें उथले जल की तरंगे भी कहते हैं। सुनामी आमतौर पर प्रशांत महासागरीय तट पर, जिसमें अलास्का, जापान, फिलिपींस, दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे द्वीप, इंडोनेशिया और मलेशिया तथा हिंद महासागर में म्यामांर, श्रीलंका और भारत के तटीय भागों में आती है।*

तट पर पहुँचने पर सुनामी तरंगें बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा निर्मुक्त करती हैं और समुद्र का जल तेजी से तटीय क्षेत्रों में घुस जाता है और बंदरगाह शहरों, कस्बों, अनेक प्रकार के ढाँचों, इमारतों और बस्तियों को तबाह करता है। चूँकि विश्वभर में तटीय क्षेत्रों में जनसंख्या सघन होती है और ये क्षेत्र बहुत-सी मानव गतिविधियों के केंद्र होते हैं, अतः यहाँ दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में सुनामी अधिक जान-माल का नुकसान पहुँचाती है।

दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में सुनामी के प्रभाव को कम करना कठिन है क्योंकि इससे होने वाले नुकसान का पैमाना बहुत बृहद है।

किसी अकेले देश या सरकार के लिए सुनामी जैसी आपदा से निपटना संभव नहीं है। 26 दिसंबर, 2004 को सुनामी आने के बाद भारत ने इसके खतरे को कम करने के उपाय पर काम शुरू किया। सुनामी की चेतावनी जारी करने का इंडियन ओसियन सुनामी वार्निंग मिशिगेशन सिस्टम (IOTWMS) विकसित हुआ। भारत आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया समेत 18 देश इस बात पर सहमत हुए कि वे आपस में सुनामी जैसी किसी भी आपदा की भविष्यवाणी सम्बन्धी सूचना एक दूसरे के साथ साझा करेंगे। IOTWMS मुख्यतः दो तरह से काम करता है। पहला – समुद्र में बन रहे दबाव को रिकॉर्ड करता है, दूसरा-लहरों को मापता है। उसके आधार पर सुनामी का कितना खतरा है इसका आकलन किया जाता है।

भूकम्प या सुनामी जैसी किसी आपदा के लिए फिलहाल विश्व में जो भी चेतावनी तंत्र काम कर रहे हैं, उनमें 8 घंटे पहले तक किसी आपदा को लेकर चेतावनी दी जा सकती है। वैज्ञानिक विश्व के 14 देशों में कॉस्मिक रे डिटेक्टर्स स्थापित करने की दिशा में सक्रिय हैं। यदि सभी 14 जगह कॉस्मिक रे डिटेक्टर्स स्थापित कर दिए जाएं तो ऐसी किसी आपदा के सम्बन्ध में 20 से 24 घंटे पहले चेतावनी दी जा सकती है। नासा और आर्मोनिया की प्रयोगशालाओं के सहयोग से ये डिटेक्टर्स अब तक बुल्गारिया, क्रोएशिया और भारत में जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में स्थापित किए जा चुके हैं। अध्ययन से पता चलता है कि भूकम्प आने से पहले कॉस्मिक किरणों की तीव्रता कम हो जाती है। यदि कॉस्मिक किरणों की तीव्रता में कमी का जल्द पता चल जाता है तो उस सूचना को आगे विकसित कर किसी आपदा के सम्बन्ध में सूचना दी जा सकती है। दूसरे कांस्मिक रे डिटेक्टर्स से सूर्य में होने वाले परिवर्तनों का भी आभास हो जाता है।

भारत में ज्वालामुखी क्रिया (Volcanicity in India)

ज्वालामुखी प्रायः एक गोल या कुछ गोल आकार का छिद्र अथवा खुला भाग होता है, जिससे होकर पृथ्वी के अत्यन्त तप्त भूगर्भ से गैस, तरल लावा, जल एवं चट्टानों के टुकड़ों से युक्त गर्म पदार्थ पृथ्वी के धरातल पर प्रकट होते हैं।

भारत में प्रथम ज्वालामुखी क्रिया धारवाड़ युग में हुई तत्पश्चात कुडप्पा, विन्ध्यन, पेलियोजोइक, कार्बोनीफेरस के पश्चात, मेसोजोइक के अन्त तथा टर्शियरी के प्रारम्भ में हुई। क्रिटेशस युग में व्यापक दरारी उद्भदन के कारण दक्कन ट्रैप की उत्पत्ति हुई।* भूवैज्ञानिक के मत में टर्शियरी युग में हिमालय में बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी क्रिया हुई। वर्तमान समय में भारत के मुख्य स्थल पर ज्वालामुखी क्रिया शून्य है। बंगाल की खाड़ी में स्थित बैरन द्वीप में हाल में सक्रिय ज्वालामुखी क्रिया सम्पन्न हुई थी।*

छिब्बर के अनुसार भारत के छः क्षेत्रों में ज्वालामुखी क्रिया हुई-

1. धारवाड़ युग में डालमा सीरीज में।
2. कुडप्पा युग में कुडप्पा-बीजापुर-ग्वालियर प्रदेश
3. पेलियोजोइक युग में कुमायूँ हिमालय, सतलज घाटी तथा पीरपंजाल श्रेणियों में।
4. मैसोजोइक युग में राजमहल पहाड़ियों तथा अबोर श्रेणियों (अरुणाचल प्रदेश) में।
5. क्रिटेशस के अन्त तथा टर्शियरी युग के आरम्भ में दक्कन के पठार पर व्यापक रुप से ज्वालामुखी क्रिया हुई।

यह भी पढ़ें : प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

FAQs

Q1. विश्व मौसम संगठन के अनुसार- भारत में विश्व के लगभग कितने प्रतिशत चक्रवात आते हैं?
Ans.
लगभग 6 प्रतिशत

Q2. राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम कब प्रारम्भ किया गया?
Ans. 
1954 में

Q3. राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की स्थापना कब की गई?
Ans.
 1976 में

Q4. ‘असोम का शोक’ किस नदी की उपमा है?
Ans.
ब्रह्मपुत्र नदी

Q5. बाढ़ पूर्व सूचना संगठन का प्रमुख कार्यालय कहाँ स्थापित किया गया है?
Ans.
पटना

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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