चतुर गीदड़ : पाठ-8

(स्थान – तालाब का किनारा)
मगरमच्छ – (तालाब की ओर देखते हुए, अपने आप से) तालाब की सारी मछलियाँ तो मैं धीरे-धीरे चट कर गया। अब क्या खाऊँ? कई दिन से खाने को कुछ भी नहीं मिला। मुझे बहुत भूख लगी है। आज वह गीदड़ भी तालाब पर पानी पीने नहीं आया।

कछुआ – कहो भाई मगरमच्छ, क्या हाल है? सब ठीक तो है? इतने उदास क्यों हो?

मगरमच्छ – क्या बताऊँ मित्र। भूख के मारे मेरे प्राण निकल रहे हैं।

कछुआ – क्यों, क्या आज खाने के लिए मछलियाँ नहीं मिलीं?

मगरमच्छ – मछलियाँ तो कब की समाप्त हो चुकीं। सोचा था कि गीदड मिलता तो आज का काम चलता। पर वह तो ऐसा चतुर है कि पकड़ में ही नहीं आता।

कछुआ – हाँ, गीदड को पकड़ना तो बहत कठिन है।

मगरमच्छ – मित्र! कोई ऐसा उपाय करो कि वह पकड़ में आ जाए। उसे खाकर आज मैं अपनी भूख मिटा लूँगा। मैं तुम्हारा बहुत उपकार मानूँगा।

कछुआ – अच्छा! तुम कहते हो तो चला जाता हूँ। किसी तरह गीदड़ को इधर लाने का प्रयत्न करता हूँ। (कुछ सोचकर) लेकिन इसके पहले तुम एक काम करो। (कान में कुछ कहता है।)

मगरमच्छ – ठीक है, ठीक है। मैं ऐसा ही करूँगा।

(एक ओर मगरमच्छ साँस रोके मरा हुआ सा पड़ा है और कछुआ पास खड़ा है।)

कछुआ – (दूर से गीदड़ को आते हुए देखकर) हाय! अब मैं क्या करूँ! मेरे प्यारे मित्र को न जाने क्या हो गया! अचानक उसके प्राण निकल गए। अब तो मैं बिलकुल अकेला रह गया।

(गीदड़ का प्रवेश)

गीदड़ – क्या है भाई कछुए? क्यों रो रहे हो?

कछुआ – मेरा प्यारा मित्र मगरमच्छ स्वर्ग सिधार गया। अब दुनिया में मेरा कोई नहीं रहा।

गीदड़ – क्या कहा? मगरमच्छ मर गया? (अपने आप से) अब तो मैं निश्चिंत होकर तालाब का पानी पी सकता हूँ। उसके डर से मैं कई बार प्यासा ही रह जाता था।

कछुआ – क्या कहा, क्या कहा?

गीदड़ – नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं, यह तो बड़े दुख की बात है। मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ?

कछुआ – आओ, उस पर कुछ सूखे पत्ते डालकर उसे ढाँप दें। देखो, मरा पड़ा है।

गीदड़ – (डरते-डरते कुछ पास जाकर, धीमे स्वर से) अरे, यह तो बिलकुल शांत है। नहीं, नहीं (ऊँचे स्वर में) यह तो साँस ले रहा है। भाई कछुए! क्या यह सचमुच मर गया है?

कछुआ – हाँ हाँ! देखते नहीं, यह मरा पड़ा है।

गीदड़ – पर भाई, मैंने तो सुना है कि मर जाने पर मगरमच्छ की पूँछ हिलती रहती है। लगता है, अभी यह पूरी तरह नहीं मरा।

कछुआ – नहीं भाई, यह बिलकुल मर गया है। (तभी मगरमच्छ अपनी पूँछ हिलाने लगता है।)

गीदड़ – (भागकर दूर जाते हुए) ओह! अपने मित्र को देखो, अपने मित्र को देखो।

कछुआ – (ऊँचे स्वर में) खोल दो आँखें। भाग गया गीदड़। तुम बिलकुल मूर्ख हो। तुम उस चतुर गीदड़ की चाल में आ ही गए। अब उसे पकड़ना कठिन है।

यह भी पढ़ें: मित्र को पत्र : पाठ -7

बातचीत के लिए

1. आपको भूख लगती है तो आपको कैसा लगता है?
Ans.
  • पेट में खटखट या भूख की गड़गड़ाहट होती है।

• शरीर में ताकत कम लगती है, ध्यान पढ़ाई/खेल में नहीं रहता।

• मन चिड़चिड़ा या बेचैन महसूस होता है और खाने की लालसा हो जाती है।

2. अपने मित्र की सहायता आप किस-किस प्रकार से करते हैं?
Ans.
पढ़ाई में मदद करना (हौमवर्क समझाना)।

• खाना/पानी बाँटना या जरूरत की चीजें देना।

• गिरने पर उठाना, चोट पर पहल कराना।

• मनोबल बढ़ाना — दुख सुनकर सांत्वना देना।

• किसी काम में हाथ बाँटना — सामान उठाना, समूह कार्य में योगदान देना।

3. कहानी का शीर्षक ‘चतुर गीदड़’ क्यों है?
Ans.
क्योंकि गीदड़ ने अपनी बुद्धिमानी से ख़तरे को समझकर चाल चली और अपने आप को बचाया। इसकी चतुराई ही कहानी की मुख्य सीख है, इसलिए यही उपयुक्त शीर्षक है।

4. आप इस कहानी को और क्या नाम देना चाहेंगे?
Ans.

• “चालाक गीदड़ और मूर्ख मगरमच्छ”

• “कछुआ और चालाक मित्र”

• “तालाब की चाल”

5. अपनी सूझ-बूझ का कोई अनुभव बताइए।
Ans.
“एक बार खेलते समय मेरे एक मित्र का बैग गलती से पानी में गिर गया। सब घबरा रहे थे। मैंने तुरंत पास की शाखा से बैग निकाला और उसके गीले कागज़ों को तौलिए से सुखाने में मदद की। इससे मेरा मित्र शांत हुआ और हम समय पर स्कूल पहुँचे। इस तरह मैंने सोच-समझकर शीघ्र कार्रवाई करके मदद की।”

सोचिए और लिखिए

1. तालाब में मछलियाँ क्यों नहीं थीं?
Ans.
क्योंकि मगरमच्छ ने धीरे-धीरे सारी मछलियाँ खा ली थीं।

2. कछुए ने क्या उपाय सोचा?
Ans.
कछुए ने गीदड़ को बुलाकर फँसाने का उपाय सोचा और मगरमच्छ को मरा हुआ बनने की चाल बताई।

3. गीदड़ ने समझदारी कैसे दिखाई?
Ans.
गीदड़ ने पास जाकर ध्यान से देखा और चालाकी से मगरमच्छ की सच्चाई परख ली। डरने के बजाय उसने चाल चली और बच निकला।

4. गीदड़ को मगरमच्छ की सच्चाई कैसे पता चली?
Ans.
गीदड़ ने कहा कि मरे हुए मगरमच्छ की पूँछ हिलती रहती है। यह सुनकर मगरमच्छ ने पूँछ हिलाई और गीदड़ को पता चल गया कि वह ज़िंदा है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

1 thought on “चतुर गीदड़ : पाठ-8”

Leave a Comment