डायरी का एक पन्ना : अध्याय 9

26 जनवरी : आज का दिन तो अमर दिन है। आज के ही दिन सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। और इस वर्ष भी उसकी पुनरावृत्ति थी जिसके लिए काफ़ी तैयारियाँ पहले से की गई थीं। गत वर्ष अपना हिस्सा बहुत साधारण था। इस वर्ष जितना अपने दे सकते थे, दिया था। केवल प्रचार में दो हजार रुपया खर्च किया गया था। सारे काम का भार अपने समझते थे अपने ऊपर है, और इसी तरह जो कार्यकर्ता थे उनके घर जा-जाकर समझाया था।

बड़े बाजार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और कई मकान तो ऐसे सजाए गए थे कि ऐसा मालूम होता था कि मानो स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के प्रत्येक भाग में ही झंडे लगाए गए थे। जिस रास्ते से मनुष्य जाते थे उसी रास्ते में उत्साह और नवीनता मालूम होती थी। लोगों का कहना था कि ऐसी सजावट पहले नहीं हुई। पुलिस भी अपनी पूरी ताकत से शहर में गश्त देकर प्रदर्शन कर रही थी। मोटर लारियों में गोरखे तथा सारजेंट प्रत्येक मोड़ पर तैनात थे। कितनी ही लारियाँ शहर में घुमाई जा रही थीं। घुड़सवारों का प्रबंध था। कहीं भी ट्रैफ़िक पुलिस नहीं थी, सारी पुलिस को इसी काम में लगाया गया था। बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को पुलिस ने सवेरे से ही घेर लिया था।

मोनुमेंट के नीचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो भोर में छह बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में घेर लिया था पर तब भी कई जगह तो भोर में ही झंडा फहराया गया। श्रद्धानंद पार्क में बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तो पुलिस ने उनको

पकड़ लिया तथा और लोगों को मारा या हटा दिया। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह झंडा फहराने गए पर वे भीतर न जा सके। वहाँ पर काफ़ी मारपीट हुई और दो-चार आदमियों के सिर फट गए। गुजराती सेविका संघ की ओर से जुलूस निकला जिसमें बहुत-सी लड़कियाँ थीं उनको गिरफ्तार कर लिया।

11 बजे मारवाड़ी बालिका विद्यालय की लड़कियों ने अपने विद्यालय में झंडोत्सव मनाया। जानकीदेवी, मदालसा (मदालसा बजाज नारायण) आदि भी गई थीं। लड़कियों को, उत्सव का क्या मतलब है, समझाया गया। एक बार मोटर में बैठकर सब तरफ़ घूमकर देखा तो बहुत अच्छा मालूम हो रहा था। जगह-जगह फ़ोटो उतर रहे थे। अपने भी फ़ोटो का काफ़ी प्रबंध किया था। दो-तीन बजे कई आदमियों को पकड़ लिया गया। जिसमें मुख्य पूर्णादास और पुरुषोत्तम राय थे।

सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था पर यह प्रबंध कर चुका था। स्त्री समाज अपनी तैयारी में लगा था। जगह-जगह से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने की तथा ठीक स्थान पर पहुँचने की कोशिश कर रही थीं। मोनुमेंट के पास जैसा प्रबंध भोर में था वैसा करीब एक बजे नहीं रहा। इससे लोगों को आशा होने लगी कि शायद पुलिस अपना रंग न दिखलावे पर वह कब रुकने वाली थी। तीन बजे से ही मैदान में हजारों आदमियों की भीड़ होने लगी और लोग टोलियाँ बना-बनाकर मैदान में घूमने लगे। आज जो बात थी वह निराली थी।

जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी। पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था कि अमुक अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती। जो लोग काम करने वाले थे उन सबको इंसपेक्टरों के द्वारा नोटिस और सूचना दे दी गई थी कि आप यदि सभा में भाग लेंगे तो दोषी समझे जाएँगे। इधर कौसिल की तरफ़ से नोटिस निकल गया था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए। खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।

ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू जुलूस लेकर आए। उनको चौरंगी पर ही रोका गया, पर भीड़ की अधिकता के कारण पुलिस जुलूस को रोक नहीं सकी। मैदान के मोड़ पर पहुँचते ही पुलिस ने लाठियाँ चलानी शुरू कर दीं, बहुत आदमी घायल हुए, सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ पड़ीं। सुभाष बाबू बहुत जोरों से वंदे मातरम् बोल रहे थे। ज्योतिर्मय गांगुली ने सुभाष बाबू से कहा, आप इधर आ जाइए। पर सुभाष बाबू ने कहा, आगे बढ़ना है।

यह सब तो अपने सुनी हुई लिख रहे हैं पर सुभाष बाबू का और अपना विशेष फ़ासला नहीं था। सुभाष बाबू बड़े जोर से वंदे मातरम् बोलते थे. यह अपनी आँख से देखा। पुलिस भयानक रूप से लाठियाँ चला रही थी। क्षितीश चटर्जी का फटा हुआ सिर देखकर तथा उसका बहता हुआ खून देखकर आँख मिच जाती थी। इधर यह हालत हो रही थी कि उधर स्त्रियाँ मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़ झंडा फहरा रही थीं और घोषणा पढ़ रही थीं। स्त्रियाँ बहुत बड़ी संख्या में पहुँच गई थीं। प्रायः सबके पास झंडा था। जो वालेंटियर गए थे वे अपने स्थान से लाठियाँ पड़ने पर भी हटते नहीं थे। सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठाकर लालबाजार लॉकअप में भेज दिया गया। कुछ देर बाद ही स्त्रियाँ जुलूस बनाकर वहाँ से चलीं। साथ में बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई। बीच में पुलिस कुछ ठंडी पड़ी थी, उसने फिर डंडे चलाने शुरू कर दिए। अबकी बार भीड़ ज्यादा होने के कारण बहुत आदमी घायल हुए। धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस टूट गया और करीब 50-60 स्त्रियाँ वहीं मोड़ पर बैठ गईं। पुलिस ने उनको पकड़कर लालबाजार भेज दिया। स्त्रियों का एक भाग आगे बढ़ा जिसका नेतृत्व विमल प्रतिभा कर रही थीं। उनको बहू बाजार के मोड़ पर रोका गया और वे वहीं मोड़ पर बैठ गई। आस-पास बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई, जिस पर पुलिस बीच-बीच में लाठी चलाती थी।

इस प्रकार करीब पौन घंटे के बाद पुलिस की लारी आई और उनको लालबाजार ले जाया गया। और भी कई आदमियों को पकड़ा गया। वृजलाल गोयनका जो कई दिन से अपने साथ काम कर रहा था और दमदम जेल में भी अपने साथ था, पकड़ा गया। पहले तो वह झंडा लेकर वंदे मातरम् बोलता हुआ मोनुमेंट की ओर इतने जोर से दौड़ा कि अपने आप ही गिर पड़ा और उसे एक अंग्रेजी घुड़सवार ने लाठी मारी फिर पकड़कर कुछ दूर ले जाने के बाद छोड़ दिया। इस पर वह स्त्रियों के जुलूस में शामिल हो गया और वहाँ पर भी उसको छोड़ दिया तब वह दो सौ आदमियों का जुलूस बनाकर लालबाजार गया और वहाँ पर गिराफ्तार हो गया। मदालसा भी पकड़ी गई थी। उससे मालूम हुआ कि उसको थाने में भी मारा था। सब मिलाकर 105 स्त्रियाँ पकड़ी गई थीं। बाद में रात को नौ बजे सबको छोड़ दिया गया। कलकत्ता में आज तक इतनी स्त्रियाँ एक साथ गिरफ्तार नहीं की गई थीं। करीब आठ बजे खादी भंडार आए तो कांग्रेस ऑफ़िस से फ़ोन आया कि यहाँ बहुत आदमी चोट खाकर आए हैं और कई की हालत संगीन है उनके लिए गाड़ी चाहिए। जानकीदेवी के साथ वहाँ गए, बहुत लोगों को चोट लगी हुई थी। डॉक्टर दासगुप्ता उनकी देख-रेख तथा फ़ोटो उतरवा रहे थे। उस समय तक 67 आदमी वहाँ आ चुके थे। बाद में तो 103 तक आ पहुँचे।

अस्पताल गए, लोगों को देखने से मालूम हुआ कि 160 आदमी तो अस्पतालों में पहुँचे और जो लोग घरों में चले गए, वे अलग है। इस प्रकार दो सौ घायल जरूर हुए है। पकड़े गए आदमियों की संख्या का पता नहीं चला, पर लालबाजार के लॉकअप में रिलयों की संख्या 105 थी। आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया और लोग सोचने लग गए कि यहाँ भी बहुत सा काम हो सकता है।

यह भी पढ़ें : बड़े भाई साहब : अध्याय 8

प्रश्न-अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

1. कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था?
Ans.
26 जनवरी, 1931 का दिन कलकत्तावासियों के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि सन् 1930 में गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। इस वर्ष उसकी पुनरावृत्ति थी, जिसके लिए काफ़ी तैयारियाँ पहले से ही की गई थीं। इसके लिए लोगों ने अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया था और उन्हें इस तरह से सजाया गया था कि ऐसा मालूम होता था, मानों स्वतंत्रता मिल गई हो।

2. सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?
Ans.
सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था जिन्होंने इस जुलूस का पूरा प्रबंध किया था उन्होंने जगह-जगह फोटो का भी प्रबंध किया था और बाद में पुलिस द्वारा उन्हें पकड़ लिया गया था।

3. विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
Ans.
विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया तथा अन्य लोगों को मारा और वहाँ से हटा दिया।

4. लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे?
Ans.
लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर झंडा फहराकर इस बात का संकेत देना चाहते थे कि वे भी अपने देश । की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय झंडे का पूर्ण सम्मान करते हैं।

5. पुलिस ने बड़े-बड़े पाकों तथा मैदानों को क्यों घेर लिया था?
Ans.
पुलिस ने बड़े-बड़े पार्को तथा मैदानों को इसलिए घेर लिया था ताकि लोग वहाँ एकत्रित न हो सकें। पुलिस नहीं। चाहती थी कि लोग एकत्र होकर पार्को तथा मैदानों में सभा करें तथा राष्ट्रीय ध्वज फहराएँ। पुलिस पूरी ताकत से गश्त लगा रही थी। प्रत्येक मोड़ पर गोरखे तथा सार्जेंट मोटर-गाड़ियों में तैनात थे। घुड़सवार पुलिस का भी प्रबंध था।

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

1. 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गई?
Ans.
26 जनवरी, 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए निम्नलिखित तैयारियाँ की गईं :

1. कलकत्ता के लोगों ने अपने-अपने घरों को खूब सजाया।
2. अधिकांश मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया।
3. कुछ मकानों और बाज़ारों को ऐसे सजाया गया कि मानो स्वतंत्रता ही प्राप्त हो गई हो।
4. कलकत्ते के प्रत्येक भाग में झंडे लहराए गए।
5. लोगों ने ऐसी सजावटे पहले नहीं देखी थी।

2. आज जो बात थी वह निराली थी’ किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।
Ans.
26 जनवरी का दिन अपने-आप में निराला था। कलकत्तावासी पूरे उत्साह पूरी नवीनता के साथ इस दिन को यादगार दिन बनाने की तैयारी में जुटे थे। अंग्रेज़ी सरकार के कड़े सुरक्षा प्रबंधों के बाद भी हज़ारों की संख्या में लोग लाठी खाकर भी जुलूस में भाग ले रहे थे। सरकार द्वारा सभा भंग करने की कोशिशों के बावजूद भी बड़ी संख्या में आम जनता और कार्यकर्ता संगठित होकर मोनुमेंट के पास एकत्रित हो रहे थे। स्त्रियों ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस दिन अंग्रेज़ी कानून को खुली चुनौती देकर कलकत्तावासियों ने देश-प्रेम और एकता का अपूर्व प्रदर्शन किया।

3. पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?
Ans.
दोनों में यह अंतर था कि पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती और जो लोग सभा में भाग लेंगे, वे दोषी समझे जाएँगे; जबकि कौंसिल के नोटिस में था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडी फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। इसमें सर्व-साधारण की उपस्थिति होनी चाहिए।

4. धर्मवल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?
Ans.
सुभाष बाबू के नेतृत्व में जुलूस पूरे जोश के साथ आगे बढ़ रहा था। थोड़ा आगे बढ़ने पर पुलिस ने सुभाष बाबू को पकड़ लिया और गाड़ी में बिठाकर लाल बाज़ार के लॉकअप में भेज दिया। जुलूस में भाग लेनेवाले आंदोलनकारियों पर पुलिस ने लाठियाँ बरसानी शुरू कर दी थीं। बहुत से लोग बुरी तरह घायल हो चुके थे। पुलिस की बर्बरता के कारण जुलूस बिखर गया था। मोड़ पर पचास साठ स्त्रियाँ धरना देकर बैठ गईं थीं। पुलिस ने उन्हें पकड़कर लालबाज़ार भेज दिया था।

5. डॉ. दाममुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर ही रहे थे, उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फोटो खींचने की क्या वजा हो सकती थी? स्पष्ट कीजिए।
Ans.
डॉ० दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख के साथ उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे, ताकि पूरा देश अंग्रेज़ प्रशासकों के जुल्मों से अवगत होकर उनका विरोध करके उन्हें देश से बाहर निकालने के लिए तैयार हो जाए।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

1. सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?
Ans.
सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री-समाज ने एक अहम भूमिका निभायी थी। स्त्री समाज ने जगह-जगह से जुलूस निकालने की तथा ठीक स्थान पर पहुँचने की तैयारी और कोशिश की थी। स्त्रियों ने मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहरा करे घोषणा-पत्र पढ़ा था तथा पुलिस के बहुत-से अत्याचारों का सामना किया था। विमल प्रतिभा, जानकी देवी और मदालसा आदि ने जुलूस का सफल नेतृत्व किया था।

2 जुलूस के लालबाजार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?
Ans.
जुलूस के लालबाज़ार आने पर पुलिस ने एकत्रित भीड़ पर लाठियों से प्रहार किया। सुभाष बाबू को पकड़कर लॉकअप में भेज दिया गया। स्त्रियों का नेतृत्व करनेवाली मदालसा भी पकड़ी गई थी। उसको थाने में मारा भी गया । इस जुलूस में लगभग 200 व्यक्ति घायल हुए जिसमें से कुछ की हालत गंभीर थी।

3. ‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
Ans.
जब पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकला कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती और सभा में भाग लेने वालों को दोषी समझा जाएगा, तो कौंसिल की तरफ़ से भी नोटिस निकाला गया कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। इस तरह से पुलिस कमिश्नर द्वारा सभा स्थगित करने जैसे लागू कानून को कौंसिल की तरफ़ से भंग किया गया था; जोकि उचित था, क्योंकि इसके बिना आज़ादी की आग प्रज्वलित न होती।

4. बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गई, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।
Ans.
हमारे विचार में 26 जनवरी 1931 का दिन अद्भुत था क्योंकि इस दिन कलकतावासियों को अपनी देशभक्ति, एकता व साहस को सिद्ध करने का अवसर मिला था। उन्होंने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया। अंग्रेज़ प्रशासकों ने इसे उनका अपराध मानते हुए उनपर और विशेष रूप से महिला कार्यकर्ताओं पर अनेक अत्याचार किए लेकिन पुलिस द्वारा किया गया क्रूरतापूर्ण व्यवहार भी उनके इरादों को बदल नहीं सका और न ही उनके जोश कम कर पाया । एकजुट होकर राष्ट्रीय झंडा फहराने और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा करने का जो संकल्प उन सबने मिलकर लिया था उसे उन्होंने यातनाएँ सहकर भी उस दिन पूरा किया।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

1. आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में घुल गया।

Ans. इसका आशय है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए इतना बड़ा आंदोलन बंगाल या कलकत्ता में नहीं हुआ था। यहाँ के विषय में लोगों के मन में जोश नहीं था, यह बात कलकत्ता के माथे पर कलंक थी। लेकिन इसे 26 जनवरी, 1931 को हुई स्वतंत्रता संग्राम की पुनरावृत्ति ने धो दिया। इस संग्राम में लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था और लोग जेल भी गए। लोगों के अंदर देशभक्ति की भावना का संचार हो चुका था।

2 खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।

Ans. प्रस्तुत पंक्ति का यह आशय है कि जब 26 जनवरी सन् 1931 के दिन कलकत्ता में स्थान-स्थान पर झंडोत्सव मनाए गए तो ब्रिटिश सरकार को यह बात मान्य नहीं थी इसलिए उन्होंने भारतीयों पर अनेक जुल्म किए। कलकत्ता के इतिहास में यह पहली बार हुआ था कि पुलिस कमिश्नर दूद्वारा निकाले गए नोटिस के बावजूद भी कौंसिल द्वारा उन्हें खुली चुनौती दी गई कि न केवल एकजुट होकर झंडा फहराया जाएगा अपितु स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा भी पढ़ी जाएगी। पुलिस द्वारा यह नोटिस भी जारी किया गया कि इन सभाओं में भाग लेनेवालों को दोषी समझा जाएगा तब भी बड़ी संख्या में न केवल पुरुषों ने बल्कि स्त्रियों ने भी जुलूस में भाग लिया और सरकार द्वारा बनाए गए कानून को भी भंग किया। आजादी के इतिहास में ऐसी खुली चुनौतियाँ देकर पहले कभी कोई सभा आयोजित नहीं हुई थी।

1. रचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-

सरल वाक्य – सरल वाक्य में कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया और क्रिया विशेषण घटकों या इनमें से कुछ घटकों का योग होता है। स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होने वाला उपवाक्य ही सरल वाक्य है।

उदाहरण-लोग टोलियाँ बनाकर मैदान में घूमने लगे।

संयुक्त वाक्य –  जिस वाक्य में दो या दो से अधिक स्वतंत्र या मुख्य उपवाक्य समानाधिकरण योजक से जुड़े हों, वह संयुक्त वाक्य कहलाता है। योजक शब्द और, परंतु, इसलिए आदि।

उदाहरण-मोनुमेंट के नीचे झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पड़ी जाएगी।

मिश्र वाक्य – वह वाक्य जिसमें एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हो, मिश्र वाक्य कहलाता है।

उदाहरण-जब अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तब पुलिस ने उनको पकड़ लिया।

निम्नलिखित वाक्यों को सरल वाक्यों में बदलिए-

I. (क) दो सौ आदमियों का जुलूस लालबाजार गया और वहाँ पर गिराफ्तार हो गया।
Ans.
दो सौ आदमियों का जुलूस लाल बाज़ार जाकर गिरफ्तार हो गया।

(ख) मैदान में हत्तारों आदमियों की भीड़ होने लगी और लोग टोलियाँ बना बनाकर मैदान में घूमने लगे।
Ans.
मैदान में हजारों आदमियों की भीड़ टोलियाँ बना-बनाकर घूमने लगी।

(ग) सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठाकर लालबाजार लॉकअप में भेज दिया गया।
Ans.
सुभाष बाबू को पकड़ कर गाड़ी में बिठाकर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया।

II. ‘बड़े भाई साहब’ पाठ में से भी दो-दो सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य छाँटकर लिखिए।
Ans.
सरल वाक्य- (क) वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे।
(ख) उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह बड़ी बात थी।

संयुक्त वाक्य- (क) मैं पास हो गया और दरजे में प्रथम आया।
(ख) भाई साहब ने मानो तलवार खींच ली और मुझ पर टूट पड़े।

मिश्र वाक्य- (क) मेरी शालीनता इसी में थी कि उनके हुक्म को कानून समझें।
(ख) मैं इरादा करता कि आगे से खूब जी लगाकर पढ़ेगा।

2. निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िाए और समझिए कि जाना, रहना और चुकना क्रियाओं का प्रयोग किस प्रकार किया गया है।

(क) 1. कई मकान सजाए गए थे।
2. कलकत्ते के प्रत्येक भाग में झंडे लगाए गए थे।

(ख) 1. बड़े बाज़ार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था।
2. कितनी ही लारियाँ शहर में घुमाई जा रही थीं।
3. पुलिस भी अपनी पूरी ताकत से शहर में गश्त देकर प्रदर्शन कर रही थीं।

(ग) 1. सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था, वह प्रबंध कर चुका था।
2. पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था।

Ans. उपरिलिखित वाक्यों को पढ़ने और समझने से पता चलता है कि इनमें ‘जाना’, ‘रहना’ और ‘चुकना’ क्रियाओं का प्रयोग मुख्य क्रिया के रूप में न करके रंजक क्रिया के रूप में किया गया है। इससे इनकी मुख्य क्रियाएँ संयुक्त क्रिया बन गई हैं।

3. नीचे दिए गए शब्दों की संरचना पर ध्यान दीजिए-
विद्या + अर्थी – विद्यार्थी
‘विद्या’ शब्द का अंतिम स्वर ‘आ’ और दूसरे शब्द ‘अर्थी’ की प्रथम स्वर ध्वनि ‘अ’ जब मिलते हैं तो वे मिलकर दीर्घ स्वर ‘आ’ में बदल जाते हैं। यह स्वर संधि है जो संधि का ही एक प्रकार है।

संधि शब्द का अर्थ है- जोड़ना। जब दो शब्द पास-पास आते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि बाद में आने वाले शब्द की पहली ध्वनि से मिलकर उसे प्रभावित करती है। ध्वनि परिवर्तन की इस प्रक्रिया को संधि कहते हैं। संधि तीन प्रकार की होती है-स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि। जब संधि युक्त पदों को अलग-अलग किया जाता है तो उसे संधि विच्छेद कहते हैं;
जैसे- विद्यालय – विद्या + आलय
नीचे दिए गए शब्दों की संधि कीजिए-

श्रद्धा + आनंद = ….
प्रति + एक = …….
पुरुष + उत्तम = ………
झंडा + उत्सव = ……..
पुनः + आवृत्ति = ………
ज्योतिः + मय = …….

Ans.

श्रद्धा + आनंद = श्रद्धानंद
प्रति + एक = प्रत्येक
पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
झंडा + उत्सव = झंडोत्सव
पुनः + आवृत्ति = पुनरावृत्ति
ज्योतिः + मय = ज्योतिर्मय

1. भौतिक रूप से दबे हुए होने पर भी अंग्रेजों के समय में ही हमारा मन आजाद हो चुका था। अत: दिसंबर सन् 1929 में लाहौर में कांग्रेस का एक बड़ा अधिवेशन हुआ, इसके सभापति जवाहरलाल नेहरू जी थे। इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव पास किया गया कि अब हम ‘पूर्ण स्वराज्य से कुछ भी कम स्वीकार नहीं करेंगे। 26 जनवरी 1930 को देशवासियों ने पूर्ण स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार के बलिदान । की प्रतिज्ञा की। उसके बाद आज़ादी प्राप्त होने तक प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। आजादी मिलने के बाद 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

Ans. यह छात्रों की जानकारी के लिए है।

2. डायरी-यह गद्य की एक विधा है। इसमें दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं, अनुभवों को वर्णित किया जाता है। आप भी अपनी दैनिक जीवन से संबंधित घटनाओं को डायरी में लिखने का अभ्यास करें।

Ans.

10 जनवरी, 2015
शनिवार

जनवरी महीने का पूर्वार्ध बीतने को है। लगता है इस बार दिल्ली से सरदी रूठी ही रहेगी। सरदी का बहाना करके भी बिस्तर में देर तक नहीं पड़ा रह सकता। अरे! हाँ, याद आया आज तो हमें माता-पिता के साथ चिड़ियाघर देखने जाना है। उठकर जल्दी तैयार होता हूँ। अरे! यह क्या पिता जी कार साफ़ करा रहे हैं। लगता है, वे कार से चिड़ियाघर जाना चाहते हैं। लगता है कि उन्हें याद नहीं कि आज तो दिल्ली की सड़कों पर आड (विषम) नंबर की गाड़ियाँ ही चलेंगी। हमारी कार तो इवन (सम) नंबर की है। पिता जी, उसमें समान रखवाएँ, इससे पहले यह याद दिलाता हूँ। उनसे कहता हूँ कि या तो मेट्रो से चलें या कल रविवार को। आज तो इवन नंबर की कार में चलना ठीक न रहेगा, है न।

शिवम्

3. जमना लाल बजाज, महात्मा गांधी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाने जाते हैं, क्यों? अध्यापक से जानकारी प्राप्त करें।

Ans. जमनालाल बजाज, बजाज उद्योग घराने के संस्थापक थे। कभी वे राजस्थान के प्रसिद्ध व्यापारी हुआ करते थे। ये अपनी व्यावसायिक एवं प्रशासनिक कुशलता से अंग्रेजों के प्रिय बन गए। इन्हें राय बहादुर की उपाधि देकर अंग्रेजों ने सम्मानित किया। जमनालाल को जब गांधी जी का सान्निध्य मिला तो वे गांधी जी से अत्यंत प्रभावित हुए और गांधी जी के शिष्य बन गए। इससे उनका स्वाभिमान जाग उठा और उन्होंने अंग्रेजों का सम्मान लौटाया ही नहीं बल्कि गांधी जी अनुयायी भी बन गए। उनके द्वारा वर्धा में सेवा संघ की स्थापना की गई। वे गांधी जी के सिद्धांत सत्य और अहिंसा का पालन करते थे। अपने सिद्धांत के प्रति ऐसा समर्पण देख गांधी जी उन्हें अपना पुत्र मानने लगे। कालांतर में जमनालाल को गांधी जी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाना जाने लगा।

1. स्वतंत्रता आंदोलन में निम्नलिखित महिलाओं में जो होगदान दिया, उसके बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए-
(क) सरोजिनी नायडू
(ख) अरुणा आसफ अली
(ग) कस्तूरबा गांधी

Ans. छात्र स्वयं करें।

2. इस पाठ के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में कलकलाई कोलकाता ) के योगदान का चित्र स्पष्ट होता है। आजादी के आंदोलन में आपके क्षेत्र का भी किसी न किसी प्रकार का योगदान रहा होगा पुस्तकालय, अपने परिचितों या फिर किसी दूसरे स्त्रोत से इस संबंध में जानकारी हासिल कर लिखिए।

Ans. छात्र स्वयं करें।

3. ‘केवल प्रचार में दो हजार रुपया खर्च किया गया था। तत्कालीन समय को मद्देनज़र रखते हुए अनुमान लगाइए कि प्रचार-प्रसार के लिए किन माध्यमों का उपयोग किया गया होगा?

Ans. तत्कालीन समय अर्थात् 1930-31 में प्रचार-प्रसार के लिए बहुत सारे झंडे बनवाए गए होंगे, प्रचार के पंपलेट (इश्तिहार) छपवाकर बाँटे गए होंगे, दीवारों पर नारे या स्लोगन लिखे गए होंगे। इसके अलावा कार्यकर्ताओं को दूर-दराज के क्षेत्रों में आने-जाने (प्रचारार्थ) के लिए कुछ नकद भी दिया गया होगा।

4. आपको अपने विद्यालय में लगने वाले पल्स पोलियो केंद्र की सूचना पूरे मोहल्ले को देनी है। आप इस बात का प्रचार बिना पैसे के कैसे कर पाएँगे? उदाहरण के साथ लिखिए।

Ans. मैं अपनी कॉलोनी के आसपास स्थित झुग्गी बस्तियों में अपने मित्रों के साथ जाऊँगा और पल्स पोलियो ड्राप पिलवाने का अनुरोध करूँगा तथा पोलियो के खतरे से भी सावधान करूंगा।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. 26 जनवरी, 1931 को पार्को और मैदानों में पुलिस ही पुलिस दिखती थी, क्यों?

Ans. 26 जनवरी, 1931 को कोलकाता में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए क्रांतिकारियों और देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इसके अंतर्गत ध्वजारोहण और प्रतिज्ञा लेना तय किया गया था। इसे रोकने के लिए पार्क और मैदान में पुलिस ही पुलिस दिखती थी।

2. तारा सुंदरी पार्क में पुलिस ने लोगों को रोकने के लिए क्या किया?

Ans. तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद सिंह को झंडा फहराने भीतर न जाने दिया। पुलिस ने वहाँ काफ़ी मारपीट की जिसमें दो-चार आदमियों के सिर फट गए। गुजराती सेविका संघ की ओर से निकाले गए जुलूस में शामिल लड़कियों को गिरफ्तार कर उन्हें रोकने का प्रयास किया गया।

3. पुलिस कमिश्नर द्वारा निकाली गई नोटिस का कथ्य स्पष्ट करते हुए बताइए कि यह नोटिस क्यों निकाली गई होगी?

Ans. पुलिस कमिश्नर द्वारा निकाली गई नोटिस का कथ्य यह था कि अमुक-अमुक धारा के अंतर्गत सभा नहीं हो सकती है। यदि आप भाग लेंगे तो दोषी समझे जाएँगे। यह नोटिस इसलिए निकाली गई होगी ताकि इस दिन झंडा फहराने और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा लेने के कार्यक्रम को विफल बनाया जा सके।

4. कौंसिल की तरफ़ से निकाली गर्ट नोटिस का प्रकट एवं उद्देश्य क्या था?

Ans. कौंसिल द्वारा निकाली गई नोटिस का मूलकथ्य यह था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए। इस नोटिस का उद्देश्य था स्वतंत्रता दिवस मनाने की पुनरावृत्ति करना तथा पूर्ण आजादी की माँग करना।

5. जुलूस को न रोक पाने की दी। पुलिस ने किस तरह उतारी ?

Ans. भीड़ की अधिकता के कारण पुलिस जुलूस को जब न रोक सकी तो उसने अपनी खीझ उतारने के लिए मैदान के मोड़ पर पहुँचते ही जुलूस पर लाठियाँ चलानी शुरू कर दी। इसमें बहुत से आदमी घायल हुए। पुलिस की लाठियों से सुभाष चंद्र बोस भी न बच सके।

6. झंडा दिवस के अवसर पर पुलिस का कृर प देखने को मिला। स्पष्ट कीजिए।

Ans. झंडा दिवस अर्थात् 26 जनवरी 1931 को भारतीयों द्वारा जो कार्यक्रम मनाने का निश्चय किया गया था, उसे रोकने के प्रयास में पुलिस का क्रूरतम रूप देखने को मिला। पुलिस जुलूस में शामिल लोगों पर लाठी चार्ज कर रही थी, जिससे लोग। लहूलुहान हो रहे थे। पुलिस महिलाओं और लड़कियों के साथ भी मारपीट कर रही थी।

7. पुलिस जिस समय मोनुमेंट की मोटियाँ न हो थी, उस समय दूसरी ओर महिलाएँ किस काम में लगी थी ?

Ans. मोनुमेंट के नीचे पुलिस जिस समय लोगों पर लाठियाँ भाँज रही थी और लोग लहूलुहान हो रहे थे उसी समय दूसरी ओर महिलाएँ मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। ऐसा करके वे झंडा दिवस कार्यक्रम को सफल एवं संपन्न करने में जुटी थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. 26 जनवरी, 1937 को कोलकाता के स्तों पर उत्साह और नवीनता देखते ही बनती थी। इसके कारणों एवं नएपन का वर्णन कीजिए।

Ans. 26 जनवरी, 1931 को कोलकाता में स्वतंत्रता दिवस मनाये जाने की पुनरावृत्ति होनी थी। इस दृष्टि से इस महत्त्वपूर्ण दिन को अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जाना था। इस बार का उत्साह भी देखते ही बनता था। इसके प्रचार मात्र पर ही दो हज़ारे रुपये खर्च किए गए थे। कार्यकर्ताओं को झंडा देते हुए उन्हें घर-घर जाकर समझाया गया था कि आंदोलन की सफलता उनके प्रयासों पर ही निर्भर करती है। ऐसे में आगे आकर उन्हें ही सारा इंतजाम करना था। इसे सफल बनाने के लिए घरों और रास्तों पर झंडे लगाए गए थे। इसके अलावा जुलूस में शामिल, लोगों का उत्साह चरम पर था। उन्हें पुलिस की लाठियाँ भी रोक पाने में असमर्थ साबित हो रही थीं।

2. 26 जनवरी, 1931 को सुभाषचंद्र ४ का एक नया रूप एवं सशक्त नेतृत्व देखने को मिला। स्पष्ट कीजिए।

Ans. 26 जनवरी, 1931 को कोलकाता में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाना था। गतवर्ष इसी दिन पूर्ण स्वराज्य पाने के लिए झंडा तो फहराया गया था पर इसका आयोजन भव्य न बन सका था। आज झंडा फहराने और प्रतिज्ञा लेने के इस कार्यक्रम में सुभाषचंद्र के क्रांतिकारी रूप का दर्शन हो रहा था। वे जुलूस के साथ असीम उत्साह के साथ मोनुमेंट की ओर बढ़ रहे थे। उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने लाठियाँ भाँजनी शुरू कर दी थी फिर भी वे चोट की परवाह किए बिना निडरता से आगे ही आगे बढ़ते जा रहे थे और ज़ोर-ज़ोर से ‘वंदे मातरम्’ बोलते जा रहे थे। पुलिस की लाठियाँ उन पर भी पड़ी।
यह देख ज्योतिर्मय गांगुली ने उन्हें पुलिस से दूर अपनी ओर आने के लिए कहा पर सुभाषचंद्र ने कहा, आगे बढ़ना है। उनका यह कथन जुलूस को भी प्रेरित कर रहा था।

3. वृजलाल गोयनका कौन थे? झंडा दिवस को सफल बनाने में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालिए।

Ans. वृजलाल गोयनका स्वतंत्रता सेनानी थे, जो कई दिनों से लेखक के साथ काम कर रहे थे। वे दमदम जेल में भी लेखक के साथ थे। वे झंडा दिवस 26 जनवरी, 1931 को सभास्थल की ओर जाते हुए पकड़े गए। पहले तो वे झंडा लेकर ‘वंदे मातरम्’ बोलते हुए इतनी तेज गति से भागे कि अपने आप गिर गए। एक अंग्रेज घुड़सवार ने उन्हें लाठी मारी और पकड़ा परंतु थोड़ी दूर जाने के बाद छोड़ दिया। इस पर वे स्त्रियों के झुंड में शामिल हो गए, तब पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। तब वे दो सौ आदमियों का जुलूस लेकर लालबाजार गए जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

4. ‘डायरी का एक पन्ना’ नामक पाठ के माध्यम से क्या संदेश दिया गया है?

Ans. ‘डायरी का एक पन्ना’ नामक पाठ स्वतंत्रता का मूल्य समझाने एवं देश प्रेम व राष्ट्रभक्ति को जगाने तथा प्रगाढ़ करने का संदेश छिपाए हुए है। पाठ में सन् 1931 के गुलाम भारत के लोगों की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की गई है कि किस प्रकार निहत्थे किंतु संगठित भारतवासियों के मन में स्वतंत्रता पाने की भावना बलवती हुई और इसे पाने के लिए लोगों ने न लाठियों की चिंता की और न जेल जाने की। वे आत्मोत्सर्ग के लिए तैयार रहते थे। यह पाठ हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा । करने की जहाँ प्रेरणा देता है, वहीं यह संदेश भी देता है कि संगठित होकर काम करने से कोई काम असाध्य नहीं रह जाता है।

सीताराम सेकसरिया (1892-1982)

1892 में राजस्थान के नवलगढ़ में जन्मे सीताराम सेकसरिया का अधिकांश जीवन कलकत्ता (कोलकाता) में बीता। व्यापार-व्यवसाय से जुड़े सेकसरिया अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और नारी शिक्षण संस्थाओं के प्रेरक, संस्थापक, संचालक रहे। महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के करीबी रहे। सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल यात्रा भी की। कुछ साल तक आजाद हिंद फ़ौज के मंत्री भी रहे। भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया।

सीताराम सेकसरिया को विद्यालयी शिक्षा पाने का अवसर नहीं मिला। स्वाध्याय से ही पढ़ना-लिखना सीखा। स्मृतिकण, मन की बात, बीता युग, नयी याद और दो भागों में एक कार्यकर्ता की डायरी उनकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

Leave a Comment