सभागार में शिविर लगने के दो दिन बाद तोत्तो-चान के लिए एक स बड़ा साहस करने का दिन आया। इस दिन उसे यासुकी-चान से मिलना था। इस भेद का पता न तो तोत्तो-चान के माता-पिता को था, न ही यासुकी-चान के। उसने यासुकी चान को अपने पेड़ पर चढ़ने का न्योता दिया था।
तोमोए में हरेक बच्चा बाग के एक-एक पेड़ को अपने खुद के चढ़ने का पेड़ मानता था। तोत्तो-चान का पेड़ मैदान के बाहरी हिस्से में कुहोन्बुत्सु जानेवाली सड़क के पास था। बड़ा सा पेड़ था उसका, चढ़ने जाओ तो पैर फिसल-फिसल जाते। पर, ठीक से चढ़ने पर जमीन से कोई छह फुट की ऊँचाई पर एक द्विशाखा तक पहुँचा जा सकता था। बिलकुल किसी झूले सी आरामदेह जगह थी यह। तोत्तो-चान अकसर खाने की छुट्टी के समय या स्कूल के बाद ऊपर चढ़ी मिलती। वहाँ से वह सामने दूर तक ऊपर आकाश को या नीचे सड़क पर चलते लोगों को देखा करती थी।
बच्चे अपने-अपने पेड़ को निजी संपत्ति मानते थे। किसी दूसरे के पेड़ पर चढ़ना हो तो उससे पहले पूरी शिष्टता से, “माफ़ कीजिए, क्या मैं अंदर आ जाऊँ?” पूछना पड़ता था।
यासुकी-चान को पोलियो था, इसलिए वह न तो किसी पेड़ पर चढ़ पाता था और न किसी पेड़ को निजी संपत्ति मानता था। अतः तोत्तो-चान ने उसे अपने पेड़ पर आमंत्रित किया था। पर यह बात उन्होंने किसी से नहीं कही, क्योंकि अगर बड़े सुनते तो जरूर डाँटते । घर से निकलते समय तोत्तो-चान ने माँ से कहा कि वह यासुकी-चान के घर डेनेनचोफु जा रही है। चूँकि वह झूठ बोल रही थी, इसलिए उसने माँ की आँखों में नहीं झाँका। वह अपनी नज़रें जूतों के फीतों पर ही गड़ाए रही। रॉकी उसके पीछे-पीछे स्टेशन तक आया। जाने से पहले उसे सच बताए बिना तोत्तो-चान से रहा नहीं गया।
“मैं यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ने देनेवाली हूँ”, उसने बताया। जब तोत्तो-चान स्कूल पहुँची तो रेल-पास उसके गले के आसपास हवा में उड़ रहा था। यासुकी चान उसे मैदान में क्यारियों के पास मिला। गरमी की छुट्टियों के कारण सब सूना पड़ा था। यासुकी चान उससे कुल जमा एक ही वर्ष बड़ा था, पर तोत्तो-चान को वह अपने से बहुत बड़ा लगता था।
जैसे ही यासुकी-चान ने तोत्तो-चान को देखा, वह पैर घसीटता हुआ उसकी ओर बढ़ा। उसके हाथ अपनी चाल को स्थिर करने के लिए दोनों ओर फैले हुए थे। तोत्तो-चान उत्तेजित थी। वे दोनों आज कुछ ऐसा करनेवाले थे जिसका भेद किसी को भी पता न था। वह उल्लास में ठिठियाकर हँसने लगी। यासुकी-चान भी हँसने लगा।
तोत्तो-चान यासुकी-चान को अपने पेड़ की ओर ले गई और उसके बाद वह तुरंत चौकीदार के छप्पर की ओर भागी, जैसा उसने रात को ही तय कर लिया था। वहाँ से वह एक सीढ़ी घसीटती हुई लाई। उसे तने के सहारे ऐसे लगाया, जिससे वह द्विशाखा तक पहुँच जाए। वह कुरसी से ऊपर चढ़ी और सीढ़ी के किनारे को पकड़ लिया। तब उसने पुकारा, “ठीक है, अब ऊपर चढ़ने की कोशिश करो।”
यासुकी-चान के हाथ-पैर इतने कमजोर थे कि वह पहली सीढ़ी पर भी बिना सहारे के चढ़ नहीं पाया। इस पर तोत्तो-चान नीचे उतर आई और यासुकी-चान को पीछे से धकियाने लगी। पर तोत्तो-चान थी छोटी और नाजुक-सी, इससे अधिक सहायता क्या करती! यासुकी चान ने अपना पैर सीढ़ी पर से हटा लिया और हताशा से सिर झुकाकर खड़ा हो गया। तोत्तो-चान को पहली बार लगा कि काम उतना आसान नहीं है जितना वह सोचे बैठी थी। अब क्या करे वह?
यासुकी-चान उसके पेड़ पर चढ़े, यह उसकी हार्दिक इच्छा थी। यासुकी-चान के मन में भी उत्साह था। वह उसके सामने गई। उसका लटका चेहरा इतना उदास था कि तोत्तो-चान को उसे हँसाने के लिए गाल फुलाकर तरह-तरह के चेहरे बनाने पड़े।
“ठहरो, एक बात सूझी है।”
वह फिर चौकीदार के छप्पर की ओर दौड़ी और हरेक चीज उलट-पुलटकर देखने लगी। आखिर उसे एक तिपाई सीढ़ी मिली जिसे थामे रहना भी जरूरी नहीं था।
वह तिपाई-सीढ़ी को घसीटकर ले आई तो अपनी शक्ति पर हैरान होने लगी। तिपाई की ऊपरी सीढ़ी द्विशाखा तक पहुँच रही थी।
“देखो, अब डरना मत,” उसने बड़ी बहन की-सी आवाज़ में कहा, “यह डगमगाएगी नहीं।”
यासुकी-चान ने घबराकर तिपाई सीढ़ी और पसीने से तरबतर तोत्तो-चान की ओर देखा। उसे भी काफी पसीना आ रहा था। उसने पेड़ की ओर देखा और तब निश्चय के साथ पाँव उठाकर पहली सीढ़ी पर रखा।
उन दोनों को यह बिलकुल भी पता न चला कि कितना समय यासुकी-चान को ऊपर तक चढ़ने में लगा। सूरज का ताप उन पर पड़ रहा था, पर दोनों का ध्यान यासुकी-चान के ऊपर तक पहुँचने में रमा था। तोत्तो-चान नीचे से उसका एक-एक पैर सीढ़ी पर धरने में मदद कर रही थी। अपने सिर से वह उसके पिछले हिस्से को भी स्थिर करती रही। यासुकी चान पूरी शक्ति के साथ जूझ रहा था और आखिर वह ऊपर पहुँच गया।
“हुर्रे!” पर, उसे अचानक सारी मेहनत बेकार लगने लगी। तोत्तो-चान तो सीढ़ी पर से छलाँग लगाकर द्विशाखा पर पहुँच गई, पर यासुकी-चान को सीढ़ी से पेड़ पर लाने की हर कोशिश बेकार रही। यासुकी-चान सीढ़ी थामे तोत्तो-चान की ओर ताकने लगा। तोत्तो-चान की रुलाई छूटने को हुई। उसने चाहा था कि यासुकी-चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित कर तमाम नयी-नयी चीजें दिखाए।
पर, वह रोई नहीं। उसे डर था कि उसके रोने पर यासुकी चान भी रो पड़ेगा। उसने यासुकी-चान का पोलियो से पिचकी और अकड़ी उँगलियोंवाला हाथ अपने हाथ में थाम लिया। उसके खुद के हाथ से वह बड़ा था, उँगलियाँ भी लंबी थीं। देर तक तोत्तो-चान उसका हाथ थामे रही। तब बोली, “तुम लेट जाओ, मैं तुम्हें पेड़ पर खींचने की कोशिश करती हूँ।”
उस समय द्विशाखा पर खड़ी तोत्तो-चान द्वारा यासुकी-चान को पेड़ की ओर खींचते अगर कोई बड़ा देखता तो वह जरूर डर के मारे चीख उठता। उसे वे सच में जोखिम उठाते ही दिखाई देते। पर यासुकी चान को तोत्तो-चान पर पूरा भरोसा था और वह खुद भी यासुकी चान के लिए भारी खतरा उठा रही थी। अपने नन्हें-नन्हें हाथों से वह पूरी ताकत से यासुकी-चान को खींचने लगी। बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच-बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था।
काफ़ी मेहनत के बाद दोनों आमने-सामने पेड़ की द्विशाखा पर थे। पसीने से तरबतर अपने बालों को चेहरे पर से हटाते हुए तोत्तो-चान ने सम्मान से झुककर कहा, “मेरे पेड़ पर तुम्हारा स्वागत है।”
यासुकी-चान डाल के सहारे खड़ा था। कुछ झिझकता हुआ वह मुसकराया। तब उसने पूछा, “क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”
उस दिन यासुकी-चान ने दुनिया की एक नयी झलक देखी, जिसे उसने पहले कभी न देखा था। “तो ऐसा होता है पेड़ पर चढ़ना”, यासुकी चान ने खुश होते हुए कहा।
वे बड़ी देर तक पेड़ पर बैठे-बैठे इधर-उधर की गप्पें लड़ाते रहे। “मेरी बहन अमरीका में है, उसने बताया है कि वहाँ एक चीज़ होती है-टेलीविजन।” यासुकी चान उमंग से भरा बता रहा था, “वह कहती है कि जब वह जापान में आ जाएगा तो हम घर बैठे-बैठे ही सूमो कुश्ती देख सकेंगे। वह कहती है कि टेलीविजन एक डिब्बे जैसा होता है।”
तोत्तो-चान उस समय यह तो न समझ पाई कि यासुकी चान के लिए, जो कहीं भी दूर तक चल नहीं सकता था, घर बैठे चीज़ों को देख लेने के क्या अर्थ होंगे? वह तो यह ही सोचती रही कि सूमो पहलवान घर में रखे किसी डिब्बे में कैसे समा जाएँगे? उनका आकार तो बड़ा होता है, पर बात उसे बड़ी लुभावनी लगी। उन दिनों टेलीविजन के बारे में कोई नहीं जानता था। पहले-पहल यासुकी-चान ने ही तोत्तो-चान को उसके बारे में बताया था।
पेड़ मानो गीत गा रहे थे और दोनों बेहद खुश थे। यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम मौका था।
पाठ के बारे में
‘तोत्तो-चान’ विश्व साहित्य की एक अमूल्य निधि है, जो मूलतः जापानी भाषा में लिखी गई है। इसका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में हो चुका है। यह एक ऐसी अद्भुत पाठशाला और उसमें पढ़नेवाले बच्चों की कहानी है जिनके लिए रेल के डिब्बे कक्षाएँ थीं, गहरी जड़ोंवाले पेड़ पाठशाला का गेट, शाखा बच्चों के खेलने के कोने। इस अनोखे स्कूल के संस्थापक थे श्री कोबायाशी। लेखिका स्वयं इस स्कूल की छात्रा थीं। उन्हीं के बचपन के अनुभवों पर आधारित है पुस्तक ‘तोत्तो-चान’ का यह अंश ‘अपूर्व अनुभव’।
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प्रश्न – अभ्यास
पाठ से
1. यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने के लिए तोत्तो-चान ने अथक प्रयास क्यों किया? लिखिए।
Ans. यासुकी-चान तोत्तो-चान का प्रिय मित्र था। वह पोलियोग्रस्त था, इसलिए वह पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था, जबकि जापान के शहर तोमोए में हर बच्चे का एक निजी पेड़ था, लेकिन यासुकी-चान ने शारीरिक अपंगता के कारण किसी पेड़ को निजी नहीं बनाया था। तोत्तो-चान की अपनी इच्छा थी कि वह यासुकी चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित कर दुनिया की सारी चीजें दिखाए। यही कारण था कि उसने यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया।
2. दृढ़ निश्चय और अथक परिश्रम से सफलता पाने के बाद तोत्तो-चान और यासुकी-चान को अपूर्व अनुभव मिला, इन दोनों के अपूर्व अनुभव कुछ अलग-अलग थे। दोनों में क्या अंतर रहे? लिखिए।
Ans. दृढ़ निश्चय और अधक परिश्रम से पेड़ पर चढ़ने की सफलता पाने के बाद तोत्तो-चान और पासुकीचान को अपूर्व अनुभव मिला। इन दोनों के अपूर्व अनुभव का अंतर निम्र रूप में कह सकते हैं तोत्तो-चान-तोत्तो-चान स्वयं तो रोज़ ही अपने निजी पेड़ पर चढ़ती थी। लेकिन पोलियों से ग्रस्त अपने मित्र यासुकी चान को पेड़ की द्विशाखा तक पहुँचाने से उसे अपूर्व आत्म-संतुष्टि व खुशी प्राप्त हुई क्योंकि उसके इस जोखिम भरे कार्य से यासुकी-चान को अत्यधिक प्रसन्नता मिली। मित्र को प्रसन्न करने में ही वह प्रसन्न थी।
यासुकी-चान पासुकी चान को पेड़ पर चढ़कर अपूर्व खुशी मिली। उसके मन की चाह पूरी हो गई। पेड़ पर चढ़ना तो दूर वह तो निजी पेड़ बनाने के लिए भी शारीरिक रूप से सक्षम न था। उसे ऐसा सुख पहले कभी न मिला था।
3. पाठ में खोजकर देखिए कब सूरज का ताप यासुकी-चा और तोत्तो-चान पर पड़ रहा था, वे दोनों पसीने से तरबतर हो रहे थे और कब बादल का एक टुकड़ा उन्हें छाया देकर कड़कती धूप से बचाने लगा था। आपके अनुसार इस प्रकार परिस्थिति के बदलने का कारण क्या हो सकता है?
Ans. पहली सीढ़ी से यासुकी चान का पेड़ पर चढ़ने का प्रयास जब असफल हो जाता है तो तोत्तो-चान तिपाई सीढी खींचकर लाई। अपने अधक प्रयास से उसे ऊपर चढ़ाने का प्रयास करने लगी तो दोनों तेज़ धूप में पसीने से तरबतर हो रहे थे। दोनों के इस अधक संघर्ष के बीच बादल का एक टुकड़ा छायाकर उन्हें कड़कती धूप से बचाने लगा। उन दोनों की मदद के लिए वहाँ कोई नहीं था। संभवतः इसीलिए प्रकृति को उन दोनों पर दया आ गई थी और घोड़ी खुशी और राहत देन का कोशिश कर रहा था।
4. ‘यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह….. अंतिम मौका था।’ इस अधूरे वाक्य को पूरा कीजिए और लिखकर बताइए कि लेखिका ने ऐसा क्यों लिखा होगा?
Ans. यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह अंतिम मौका था लेखिका ने ऐसा इसलिए लिखा क्योंकि यासुकी-चान पोलियो ग्रस्त था। उसके लिए पेड़ पर चढ़ जाना असंभव था। उसे आगे तोत्तो-चान जैसा मित्र मिल पाना मुश्किल था। तोत्तो-चान के अधक परिश्रम और साहस के बदौलत वह पहली बार पेड़ पर चढ़ पाया था। यह अवसर मिलना और कभी असंभव था। अगर उनके माता-पिता को इसकी जानकारी मिल जाती तो कभी यह काम करने नहीं देते। शायद दोबारा ऐसा कभी नहीं कर पाते।
पाठ से आगे
1. तोत्तो-चान बड़ों से इसलिए छिपा लिया कि उसमें जोखिम था, यासुकी-चान के गिर जाने की संभावना थी। फिर भी उसके मन में यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाने की दृढ़ इच्छा थी। ऐसी दृढ़ इच्छाएँ बुद्धि और कठोर परिश्रम से अवश्य पूरी हो जाती है। आप किस तरह की सफलता के लिए तीव्र इच्छा और बुद्धि का उपयोग कर कठोर परिश्रम करना चाहते हैं?
Ans. किसी भी काम में सफलता पाने के लिए तीव्र इच्छा, लगन, कठोर परिश्रम, की आवश्यकता होती है। छात्र परीक्षा में उच्च कोटि की सफलता प्राप्त करने के लिए इनका उपयोग करें तथा छात्र स्वयं अपने अपने विचार प्रस्तुत कर सकते हैं।
2. हम अकसर बहादुरी के बड़े-बड़े कारनामों के बारे में सुनते रहते हैं, लेकिन ‘अपूर्व अनुभव’, कहानी एक मामूली बहादुरी और जोखिम की ओर हमारा ध्यान खींचती है। यदि आपको अपने आसपास के संसार में कोई रोमांचकारी अनुभव प्राप्त करना हो तो कैसे प्राप्त करेंगे?
Ans. बच्चे स्वयं करेंगे।
अनुमान और कल्पना
1. अपनी माँ से झूठ बोलते समय तोत्तो-चान की नज्ज़रें नीचे क्यों थीं?
Ans. तोत्तो-चान ने यासुकी चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित किया था। यह बात उसने अपनी माँ से छिपाई थी क्योंकि उसे मालूम था कि माँ यह जोखिम भरा कार्य नहीं करने देगी। जब माँ ने उससे पूछा कि वह कहाँ जा रही है तो उसने झूठ कहा कि वह यासुकी-चान से मिलने उसके घर जा रही है। यह कहते समय उसकी नज़रे नीची थीं क्योंकि वह माँ से झूठ बोत रही थी। उसे डर था कि शायद वह माँ से नजरें मिलाकर जब यह बात कहेगी तो उसका झूठ पकड़ा जाएगा।
2. यासुकी-चान जैसे शारीरिक चुनौतियों से गुजरनेवाले व्यक्तियों के लिए चढ़ने-उतरने की सुविधाएँ हर जगह नहीं होतीं। लेकिन कुछ जगहों पर ऐसी सुविधाएँ दिखाई देती हैं। उन सुविधावाली जगहों की सूची बनाइए।
Ans. विद्यालयों में अपंग बच्चों के लिए रेप बना रखे हैं। मेट्रो रेल में भी अपंगों को चढ़ने-उत्तरने के लिए विशेष प्रकार की लिफ्ट लगा रखी है। अस्पतालों में व्हील चेयर होती है। हवाई अड्डों पर भी यह सुविधा उपलब्ध है।
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