जन्तु ऊतक | Animal Tissues |


मानव शरीर औसतन 1014 कोशिकाओं का बना होता है जो श्रम-विभाजन (Division of Labour) के कारण रचना और कार्यिकी में लगभग 200 प्रमुख प्रकार की कोशिकाओं में विभेदित होती हैं। रचना और कार्यिकी में समान कोशिकाएँ शरीर में निश्चित स्थानों पर सुसंघठित समूहों या स्तरो में सुव्यवस्थित रहती हैं।

इस प्रकार समान कोशिकाओं के इन्हीं सुसंघठित पिण्डों एवं स्तरों को ऊतक (tissues) कहते हैं। इनके अध्ययन को ऊतक विज्ञान या औतिकी (Histology) कहते हैं। “औतिकी” (Histology) की स्थापना मारसेलो मैल्पीघी इटली ने की, परन्तु, “हिस्टोलॉजी” का नाम इसे मेयर ने दिया था।

➤ ऊतकों की सामान्य रचना (General structure of Tissues)

जैसे मकान में ईंटें एवं सीमेन्ट परस्पर जुड़ी होती हैं, वैसे ही ऊतकों में कोशिकाएँ एक अन्तरकोशिकीय पदार्थ (intercellular substance) द्वारा परस्पर जुड़ी रहती हैं। इस पदार्थ का स्रावण स्वयं कोशिकाएँ करती हैं। यह निर्जीव एवं अर्धतरल या जैली जैसा होता है, परन्तु कहीं-कहीं, कोलैजन (collagen) प्रोटीन के तन्तुओं की उपस्थिति के कारण, यह दृढ़ होता है। इसके आधारभूत तरल को ऊतक द्रव्य या अन्तरालीय तरल (tissue fluid or interstitial fluid) कहते हैं। ऊतक की प्रत्येक कोशिका इस तरल द्वारा घिरी रहती है। कोशिकाओं का सारा रासायनिक आदान-प्रदान, कोशिकाकला के आर-पार, इसी तरल से होता है। अन्तरकोशिकीय पदार्थ में रुधिर एवं लसिका केशिकाओं (blood and lymph capillaries) का जाल फैला होता है। रुधिर केशिकाओं से रुधिर प्लाज्मा (blood plasma) का कुछ तरल अंश निरन्तर रिस-रिसकर ऊतक द्रव्य में घुलता रहता है। इस तरल में वे सभी पदार्थ (ग्लूकोस, ऐमीनो अम्ल, वसाएँ आदि पोषक पदार्थ, O2 हॉरमोन्स, विटामिन्स आदि) घुले होते हैं जिनकी कि कोशिकाओं को निरन्तर आवश्यकता होती है। कोशिकाएँ ऊतक द्रव्य से इन पदार्थों को ग्रहण करके बदले में अपने उपापचय (metabolism) के अपशिष्ट पदार्थों ( CO2 , जल, नाइट्रोजनीय एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थों) को इसमें मुक्त करती रहती हैं। ऊतक द्रव्य की बढ़ी हुई मात्रा, जिसमें कि अपशिष्ट पदार्थ घुले रहते हैं, वापस रुधिर एवं लसिका केशिकाओं में रिसकर जाती रहती है। इस प्रकार, ऊतक द्रव्य उस माध्यम का काम करता है जिसमें होकर रुधिर एवं कोशिकाओं के बीच रासायनिक आदान-प्रदान होता हैं।

➤ ऊतकों के प्रकार (Kinds of Tissues)

समस्त त्रिस्तरीय (triploblastic) जन्तुओं के भ्रूणीय परिवर्धन में तीन प्राथमिक जनन स्तर (primordial germinal layers) बनते हैं- एक्टोडर्म, मीसोडर्म एवं एण्डोडर्म (ectoderm, mesoderm and endoderm)। इन्हीं स्तरों से वयस्क शरीर के सारे ऊतक बनते हैं। ऊतकों की चार प्रमुख या प्राथमिक श्रेणियाँ होती हैं-

1. उपकला ऊतक (Epithelial Tissue)- इनमें कोशिकाएँ एक पतले आवरण की चादर के रूप में होती है, जो शरीर की बाहरी सतह को ढकने का कार्य करती है। शरीर की विभिन्न ग्रन्थियाँ (glands) भी इसी ऊतक से बनती है। हमारे शरीर की बाहरी त्वचा (skin) तथा शरीर के भीतरी अंगों जैसे मुख-गुहा (buccal cavity) आहार नाल, श्वास-नलिकाएँ (trachea) आदि की आन्तरिक श्लैष्मिक झिल्ली (mucous membrane) ऐसे ऊतक के प्रमुख उदाहरण हैं।*

2. संयोजी ऊतक (Connective Tissue)- ये ऊतक अनेक प्रकार की कोशिकाओं तथा अन्तरा-कोशिकीय द्रव्य से मिल कर बनते हैं। अस्थि (bone), उपास्थि (cartilage), कंडरा (tendons), स्नायु (ligarments) एवं रुधिर (blood) की कोशिकाएँ संयोजी ऊतकों का निर्माण करती है।

3. पेशी ऊतक (Muscular Tissue)- शरीर की समस्त ऐच्छिक (voluntary) तथा अनैच्छिक (involuntary) पेशियों का निर्माण पेशी ऊतकों से होता है। शरीर के विभिन्न अंग, जैसे हृदय, फेफड़े, आमाशय, आंतें, वृक्क आदि का निर्माण भी पेशी ऊतकों से होता है।*

4. तंत्रिका ऊतक (Nervous Tissue)- ये ऊतक ऐसी विशेष कोशिकाओं से बनते हैं जो शरीर में संवेदनों (impulses) को अंगों से मस्तिष्क तक तथा मस्तिष्क से अंगों तक ले जाने का कार्य करती हैं। मस्तिष्क भी ऐसी ही कोशिकाओं से बना होता है।

उपकला ऊतक (Epithelial Tissue)

ये जन्तु शरीर के त्वचा एवं खोखले आन्तरांगों जैसे- मुख गुहा (buccal cavity), श्वासनाल (trachea), आहारनाल तथा रुधिर वाहिनियों आदि के बाहरी तथा भीतरी भागों का रक्षात्मक आवरण बनाते हैं। ये ठोस आन्तरांगों जैसे- जीभ, गुर्दा, यकृत तथा तिल्ली आदि के बाहरी सतह पर भी पाये जाते हैं। इस ऊतक की कोशिकायें कोलैजन (collagen) प्रोटीन तथा प्रोटियोग्लाइकन्स (proteoglycans) द्वारा निर्मित निर्जीव आधारकला (basement membrane) पर व्यवस्थित होते हैं। इनकी कोशिकायें आपस में सटी रहती हैं।

इपिथीलियम ऊतक के कार्य-

(1) इसका मूल कार्य शरीर एवं आन्तरांगों के लिए सुरक्षात्मक आवरणों के रूप में होता है। ये भीतर स्थित ऊतकों की कोशिकाओं को चोट से, हानिकारक पदार्थों तथा जीवाणुओं (bacteria) आदि के आक्रमण एवं दुष्प्रभावों से और सूख जाने से बचाती हैं।

(2) शरीर पर त्वचा की एपिथीलियम एक अभेद्य बाड़ (impervious barrier) का काम करती है।

(3) आन्तरांगों का अपने-अपने वातावरण से पदार्थों का सारा आदान-प्रदान इनके एपिथीलियमी आवरणों के ही आर-पार होता है। अतः ये आवरण चयनात्मक (selective) होते हैं।

(4) आहारनाल की दीवार की भीतरी सतह की एपिथीलियम पाचक रसों के स्त्रावण (secretion) का या पोषक पदार्थों एवं जल के अवशोषण (absorption) का, श्वसनांगों की गैसीय विनिमय (gas- eous exchange) का और उत्सर्जन अंगों की ऊत्सर्जन (excretion) का कार्य करती है।

(5) त्वचा तथा संवेदांगों की उपकलाएँ (epithelium) संवेदना ग्रहण (sensory reception) का कार्य करती हैं।

(6) कई नालवत् अंगों (श्वासनालों, जननवाहिनियों, मूत्रवाहिनियों, आदि) में एपिथीलियम, श्लेष्म (mucus) या अन्य तरल पदार्थों के संवहन में सहायता करती हैं।

(7) एपिथीलियम कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता के कारण पुनरुद्भवन (regeneration) की बहुत क्षमता होती है। अतः क्षत ऊतकों पर शीघ्रतापूर्वक पुनरुत्पादित होकर ये घावों के भरने में सहायता करती हैं।

➤ आवरण एपिथीलियम (Covering epithelium)

इसकी कोशिकायें एक या अधिक स्तरों में व्यवस्थित होकर अंगों पर रक्षात्मक आवरण बनाती है। आकार के आधार पर ये तीन प्रकार की होती हैं। यथा-

1. शल्की एपिथीलियम
2. घनाकार एपिथीलियम
3. स्तम्भी एपिथीलियम

(1) शल्की एपिथीलियम (Squamous epithelium)- इनकी कोशिकायें चपटी, तश्तरी या शल्क की तरह होते हैं इसलिए इन्हें शल्की एपिथीलियम कहते हैं। व्यवस्था के आधार पर इन्हें दो भागों में बाटा गया है-

(i) सामान्य शल्की एपिथीलियम
(ii) स्तरित एपिथीलियम

(i) सामान्य शल्की एपिथीलियम- इनके कोशिकाओं का आकार चपटी तथा बहुभुजीय (polygonal) होता है। ये अंगों पर केवल एक पर्त का आवरण बनाते हैं। ये अन्तरांगों जैसे-फेफड़े के वायु कोष, रुधिर वाहिनियों के चारों तरफ तथा देहगुहा आदि की सतहों पर पाये जाते हैं। पदार्थों का विसरण द्वारा एक ओर से दूसरी ओर पहुँचाना इनका मुख्य कार्य है।

(ii) स्तरित एपिथीलियम- ये ऊतक कई स्तरों के बने होते हैं। सबसे निचले स्तर को जनन स्तर कहते हैं जो लगातार विभाजित होकर नई-नई कोशिकाओं का निर्माण करता है। सबसे बाहरी स्तर की कोशिकायें चपटी, शल्कों जैसी होती हैं जो पुरानी होकर निर्जीव हो जाती है और निरंतर रगड़ से गिरती रहती है। यह ऊतक त्वचा, मुखगुहा, ग्रसनी तथा आंखों की कॉर्निया पर वाह्य आवरण बनाती है। इनका मुख्य कार्य संक्रमण तथा घर्षण से बचाना है। ये जल रोधक का भी कार्य करती हैं।

(2) घनाकार एपिथीलियम (Cuboidal epithelium)- इनकी कोशिकायें चौकोर होती हैं। केन्द्रक मध्य में होता है। कोशिकाओं की व्यवस्था के आधार पर इन्हें दो भागों में बाँटा गया है।

(i) सामान्य घनाकार एपिथीलियम

(ii) स्तरित घनाकार एपिथीलियम

(i) सामान्य घनाकार एपिथीलियम (Simple cuboidal epithelium)- इस ऊतक में कोशिकायें एक स्तर में व्यवस्थित होते हैं। इनका मुख्य कार्य स्त्रावण, अवशोषण तथा उत्सर्जन है। ये वृक्क नलिकाओं, श्वासनलिकाओं तथा ग्रन्थि नलिकाओं (glandular ducts) जैसे- थाइरॉइड ग्रन्थि, स्वेद ग्रन्थि, लार ग्रन्थि, अग्नाशय (pancreas) तथा यकृत आदि में पाये जाते हैं।

(ii) स्तरित घनाकार एपिथीलियम (Stratified cuboidal epithelium)- इनकी कोशिकायें कई पर्तों में व्यवस्थित होती हैं। ये मुख्यतः स्त्रियों के मूत्रमार्ग (urethra) तथा गुदानाल (anal canal) आदि में पाये जाते हैं।

(3) स्तम्भी एपिथीलियम (columnar epithelium)- इन ऊतकों की कोशिकायें लम्बी तथा ईंट की तरह आयताकार होते हैं। इनके केन्द्रक कोशिका के आधार भाग में स्थित होते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं।

(i) सामान्य स्तम्भी एपिथीलियम (Simple columnar epithe- lium)- इस ऊतक में कोशिकाओं का एक ही स्तर होता है। कोशिकाओं के स्वतंत्र छोर पर कोशिका झिल्ली अंगुली के समान अनेक सूक्ष्मांकुर (microvilli) का निर्माण करते हैं जो अवशोषण तल को बढ़ाता है। ये आंत तथा आमाशय के भीतरी सतह पर पाये जाते हैं। इनका मुख्य कार्य पचे हुए भोज्य पदार्थों का अवशोषण करना है। इनकी कुछ कोशिकायें श्लेष्म (mucous) का भी स्त्रावण करती हैं जिन्हें चूषक कोशिका (goblet cell) कहते हैं।

अण्डवाहिनियों (ovident) मूत्रवाहिनियों (ureters), गर्भाशयी नाल आदि में भी यह ऊतक पाया जाता है परन्तु इनमें पाये जाने वाले कोशिकाओं में सूक्ष्मांकुर के स्थान पर रोमाभि (Cilia) पाये जाते हैं। अतः इन कोशिकाओं को सामान्य स्तम्भी रोमाभि एपिथीलियम (simple columnar ciliated epithelium) कहते हैं। (ii) स्तरित स्तम्भी एपिथीलियम (stratified columnar epithelium)- इनकी कोशिकायें कई पर्तों में व्यवस्थित होती हैं। ये स्तन ग्रन्थियों की वाहिनियों की गुहा का आवरण बनाती हैं।

• विशेषीकृत एपिथीलियम (Specialized epithelium)- कुछ एपिथीलियम ऊतक विशेष प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित हैं-

1. अन्तर्वर्तीय उपकला (Transitional epithelium)- ये ऊतक मूत्राशय (urinary bladder) तथा मूत्रवाहिनियों (ureter) के भीतरी दीवार का निर्माण करते हैं। ये खिंचाव तथा फैलाव को सहन करने के लिये अनुकूलित होते हैं।

2. तंत्रिका संवेदी एपिथीलियम (Neurosensory epithelium)- इनके स्वतंत्र सिरों पर संवेदी रोम होते हैं तथा आधार महीन तंत्रिका तन्तुओं से सम्बन्धित रहते हैं। ये कोशिकायें घ्राण अंगों की श्लेष्मिका कला, स्वाद कलिकाओं, आंखों की मूर्तिपटल (रेटिना) तथा सामान्य एपिथीलियम कोशिकाओं के बीच-बीच में पायी जाती हैं।

➤ ग्रन्थिल एपिथीलियम (Glandular epithelium)

वैसे तो प्रत्येक सजीव कोशिका कुछ-न-कुछ पदार्थों का स्त्रावण (secretion) करती है, लेकिन कुछ, जो इसी कार्य के लिए विशिष्टीकृत होती हैं, स्त्रावी या ग्रन्थिल (secretory or glandular) कोशिकाएँ कहलाती हैं। इनका आकार स्तम्भी कोशिकाओं की भांति होता है। इनकी कोशिकायें शरीर में पायी जाने वाली विभिन्न प्रकार की ग्रन्थियों का निर्माण करती हैं। इनके द्वारा किसी विशेष प्रकार के रसों का स्त्राव होता है। जैसे हार्मोन, एन्जाइमों, श्लेष्मरस (Mu- cinogen) आदि। रचना के अनुसार ये दो प्रकार की होती हैं।

1. एक कोशिकीय ग्रन्थियाँ (Unicellular glands)- चूषक या गोब्लेट कोशिकायें (mucous or goblet cells) एक कोशिकीय ग्रंथि (gland) हैं। यह कशेरुकियों की नासागुहा, श्वसन तंत्र तथा आहारनाल की गुहा पर आच्छादित श्लेष्मिक कला आदि में पायी हैं। इनका कार्य श्लेष्मरस (mucinogen) स्स्रावित करना है।

2. बहुकोशिकीय ग्रन्थियाँ (Multicellular glands)- ये सब एपिथीलियम स्तरों के वलन (folding) से बनती हैं। शरीर में दो प्रमुख श्रेणियों की बहुकोशिकीय ग्रन्थियाँ होती हैं-बहिर्सावी (Exocrine) एवं अन्तः स्त्रावी (Endocrine), ये कई ग्रन्थिल कोशिकाओं से बनती हैं जो निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं-

(i) नलिकाकार (tubular)- ये नलिका सदृश्य होती है जैसे स्तनियों की त्वचा में पायी जाने वाली स्वेद ग्रंथियां तथा तेल ग्रंथियां (sebaceous glands)।

(ii) कुपिका या गोलाकार (alveolar)- ये थैले सदृश्य होती हैं जो एक छिद्र द्वारा बाहर खुलती हैं जैसे मेंढक की त्वक् ग्रंथियां तथा स्तनियों की लार ग्रंथियां। यह दो प्रकार की होती हैं-सरल कूपिका एवं संयुक्त कूपिका।

(iii) संयुक्त नालवत कूपिकीय (compound tubular alveolar)- जैसे- स्तनग्रंथियां।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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