रुधिर वर्ग और इनकी वंशागति

कभी-कभी, गहरी चोट के कारण, बहुत-सा रक्त बह जाता है और रोगी की मृत्यु हो जाती है। इसी प्रकार, जल जाने, लम्बी बीमारी आदि कई कारणों से शरीर में रक्त की इतनी कमी हो जाती है कि रोगी के जीवन को खतरा हो जाता है। प्राचीनकाल से वैज्ञानिक दूसरे स्वस्थ मनुष्यों या जन्तुओं का रक्त चढ़ाकर ऐसे रोगियों को बचाने का प्रयास करते रहे हैं। इसी को रुधिर-आधन (blood transfusion) कहते हैं। कुछ रोगी तो इससे बच जाते थे, लेकिन अधिकांश के लिए यह पिछली सदी के अन्त तक घातक सिद्ध होता रहा और वैज्ञानिक इसक बात के कारणों की खोज करते रहे। सन् 1902 में, नोबेल पुरस्कार (1930) विजेता, कार्ल लैण्डस्टीनर ने पता लगाया कि मनुष्यों में रुधिर सब का समान नहीं होता और रुधिर-आधन की सफलता के लिए आवश्यक है कि रुधिर-दान देने वाले अर्थात् दाता (donor) का रुधिर लेने वाले रोगी अर्थात् प्रापक (receiver) के रुधिर के समान हो। अन्यथा रोगी के रुधिर में पहुँचते ही दाता के रुधिर के लाल रुधिराणु (RBCs) परस्पर बड़े-बड़े समूहों में चिपकने लगते हैं। इसे रूधिराणुओं का अभिश्लेषण (clumping or agglutination) कहते हैं। इसी से रोगी की शीघ्र मृत्यु हो जाती है।

रुधिर के प्रतिजन एवं प्रतिरक्षी (Antigens and Antibodies)

लैण्डस्टीनर ने पता लगाया कि मानव के लाल रुधिराणुओं की कोशाकला और रुधिर के प्लाज्मा (plasma) में रुधिराणुओं के अभिश्लेषण से सम्बन्धित प्रोटीन पदार्थ होते हैं। लाल रुधिराणुओं की कला में उपस्थित ऐसे पदार्थों को प्रतिजन (anigens) तथा प्लाज्मा में उपस्थित पदार्थों को प्रतिरक्षी (antibodies) कहते हैं। प्रतिजन दो प्रकार के ग्लाइकोप्रोटीन्स (glycoprotein) के रूप में होते हैं-“ए” एवं “बी” (A dnd B)। प्रतिरक्षी भी दो प्रकार के होते हैं। A रोधी (Anti a) तथा B-रोधी (Anti b,) परन्तु ये विशुद्ध प्रोटीन्स के रूप में होते हैं। A ऐन्टीजेन a प्रतिरक्षी की उपस्थिति में और B ऐन्टीजन b प्रतिरक्षी की उपस्थिति में अत्याधिक चिपकने (sticky) लगते हैं। सम्बन्धित लाल रुधिराणुओं का अभिश्लेषण इसलिए हो जाता है।

मानव के विभिन्न रुधिर वर्ग

लाल रुधिराणुओं के कोशाकला में उपस्थित प्रतिजनों के आधार पर लैण्डस्टीनर मानवों को चार श्रेणियों में बाँटा, जिन्हें रुधिर वर्ग कहते हैं। ये निम्न चार्ट के अनुसार होते हैं।

रुधिर वर्गप्रतिजन (Antigen)प्रतिरक्षी (Antibodies)भारतीयों में % संख्या
AAAnti-‘b’23.5
BBAnti-a’34.5
A BA तथा Bकोई नहीं7.5
Oकोई नहींदोनों ‘a’ तथा ‘b’34.5

रुधिर वर्गों का महत्व-रुधिर आधान (Blood Transfusion)

जैसा कि चार्ट से स्पष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य में लाल रुधिराणुओं के प्रतिजन और प्लाज्मा के प्रतिरक्षी का तालमेल ऐसा होता है कि साधारणतया रुधिराणुओं के अभिश्लेषण की कोई सम्भावना नहीं होती। अतः रूधिर-आधान सामान्यतः सवर्गीय (Same group) व्यक्तियों के बीच ही उत्तम होता है। फिर भी, आवश्यकता पड़ने पर, चित्र के अनुसार निर्धारित, आन्तर-वर्गीय रुधिर-आधान किया जा सकता है।

चूंकि वर्ग के व्यक्ति के रुधिर में कोई प्रतिजन नहीं होता, इसका रुधिर सभी वर्ग के व्यक्तियों को चढ़ाया जा सकता है।* दूसरी ओर, इसके प्लाज्मा में दोनों प्रतिरक्षियों की उपस्थिति के कारण, किसी भी अन्य वर्ग के व्यक्ति का रुधिर इस वर्ग के व्यक्तियों को नहीं चढ़ा सकते। इस प्रकार, ० वर्ग के व्यक्ति सर्वदाता (universal donor) होते हैं। ज्ञातव्य है कि O ब्लडग्रुप यूनिवर्सल डोनर होता है और यह ब्लड ग्रुप केवल O का ही रक्त ग्रुप स्वीकार करता है।

इसके विपरीत, AB वर्ग के व्यक्तियों का रुधिर, दोनों प्रतिजनों की उपस्थिति के कारण, अन्य वर्ग के व्यक्तियों के लिए निरर्थक होता है, परन्तु दोनों प्रतिरक्षियों की अनुपस्थिति के कारण, ये व्यक्ति सभी वर्गों के व्यक्तियों का रक्त ले सकते हैं। अतः ये सर्वप्रापक (Universal recepints) होते हैं।

रुधिर दान एवं रुधिर बैंक (Blood Donation and Blood Bank)

आजकल बड़े चिकित्सालयों में रुधिर बैंक खोले गये हैं। यहाँ दाताओं का रुधिर लिया जाता है और इसके वर्ग का निर्धारण करके इसे उपयुक्त आधुनिक उपकरणों एवं विधियों द्वारा सुरक्षित रखा जाता है। आवश्यकतानुसार इसे रोगियों को चढ़ाते हैं। बैंकों में रुधिर को ज्यों-का-त्यों केवल तीस दिन तक रख सकते हैं। केवल प्लाज्मा को भी बैंकों में रुधिर आधान के लिए रखा जाता है। इसे अधिक दिनों तक रख सकते हैं। इसमें वर्ग की भी झंझट नहीं होती, क्योंकि रोगी के रुधिर में कोई प्रतिजन नहीं पहुँचता, प्लाज्मा को सुखाकर पाउडर के रूप में रख सकते हैं। आधान के समय बस इसमें पानी मिलाकर इसका प्रयोग कर सकते हैं। गत महायुद्ध में घायल सैनिकों के लिए तो यह विधि वरदान सिद्ध हुई। इसी महायुद्ध में साधारण शर्करा से बनाये गये डेक्सट्रान (dextran) नामक पदार्थ से कृत्रिम प्लाज्मा बनाकर बड़े पैमाने पर इसका उपयोग किया गया। बाद में आधुनिक वैज्ञानिकों ने रुधिर के स्थान पर पोलीविनाइल पाइरोलिडॉन (polyvinyl pyrolidone) का सफल उपयोग किया। हाल ही में रुसी वैज्ञानिकों ने डेक्सट्रान से ही तैयार किये गये पालीग्लेसोल (polyglesol) का तथा चीनी वैज्ञानिकों ने तरल फरफ्लूक्रो कार्बन (perflucro carbon) से तैयार किये गये एक अन्य पदार्थ का रक्त के स्थान पर उपयोग किया है। चीनी वैज्ञानिकों ने तो दावा किया कि उनके द्वारा तैयार किये गये पदार्थ में O₂ एवं CO₂ के संवहन की क्षमता होती है।

रुधिर वर्गों की वंशागति

बर्नस्टीन (Bernstein, 1924, 25) ने पता लगाया कि ABO रुधिर वर्ग मनुष्य का एक आनुवंशिक लक्षण होता है। अतः यह सन्तानों में, मेण्डल के नियमों के अनुसार, माता-पिता से प्राप्त जीन्स के आधार पर ही विकसित होता है। इसकी वंशागति दो के बजाय, तीन तुलनात्मक लक्षणों (contrasting characters) के जीन्स अर्थात् ऐलील्स (genes or alleles) पर निर्भर करती है। इसीलिए, इस वंशागति को बहुगुण एलीलवाद (multiple allelism) भी कहते हैं।

क्योंकि ऐलील्स समजात गुणसूत्रों (homologous chromosomes) पर समान व निश्चित स्थानों (locus) पर ही स्थित होते हैं, किसी एक व्यक्ति में तो दो ही एलील्स हो सकते हैं, परन्तु आबादी के जीन-समूह (gene pool) में तीनों ऐलील्स होते हैं। सन्तान के लाल रुधिराणुओं में प्रतिजन (antigen) बनेगा या नहीं बनेगा और बनेगा तो कौन-सा, इसी का निर्धारण जीन्स करते हैं। ये जीन्स होते हैं-एन्टीजेन A के विकास का I^ जीन, एन्टीजेन B के विकास का I जीन तथा ऐन्टीजेन की अनुपस्थिति का 10 जीन। I^ तथा IB जीन 10 जीन के लिए प्रबल (dominant) होते हैं, लेकिन ये परस्पर एक-दूसरे के लिए प्रबल नहीं होते। अतः माता-पिता से IA IA या I^ 10 जीन्स प्राप्त करने वाली सन्तान के लाल रुधिराणुओं में प्रतिजन A और 18 18 या 18 10 जीन्स प्राप्त करने वाली सन्तान में प्रतिजन B बनता है। जिस सन्तान को माता-पिता से I^ IB जीन्स प्राप्त होंगे उसमें एन्टीजेन A और B दोनों बनेंगे, क्योंकि इस जीन्स में परस्पर प्रबलता का अभाव अर्थात् सहप्रभाविता होती है। जीन्स 10 10 प्राप्त करने वाली सन्तान में कोई ऐन्टीजन नहीं बनेगा IA I° या IB 10 जीन्स प्राप्त करने वाली सन्तानों में क्रमशः प्रतिजन A एवं B इसलिए बनते हैं कि जीन्स 10 अन्य दोनों जीन्स के लिए सदैव सुप्त (recessive) होता है। इस प्रकार ABO रुधिर वर्णों की वंशागति को पृष्ठ के चार्ट से समझा जा सकता है।

ABO रुधिर वर्गों की उपरोक्त वंशागति के आधार पर सन्तानों के रुधिर वर्ग आगे दिये गये चार्ट (चित्र) के अनुसार ही सम्भव हो सकते हैं।

रुधिर वर्ग और वल्दियत

रुधिर वर्ग की आनुवंशिकी से किसी बच्चे की विवादास्पद वल्दियत का तो सही पता नहीं लगा सकते, लेकिन यह बताया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति इसके माता-पिता हो सकते हैं या नहीं।* मान लें कि एक AB रुधिर वर्ग के बच्चे का वल्दिय का झगड़ा है। जो माँ-बाप इसे अपना बच्चा बताते हैं वे O और B रुधिर वर्ग के हैं। तो जैसा कि चार्ट से स्पष्ट है, यह बच्चा उनका नहीं हो सकता। रुधिर वर्ग की वंशागति से चिकित्सा-कानून के ऐसे ही मुकद्दमों (meicolegal suits) में सहायता मिलती है।

Rh-तत्व या प्रतिजन (Rh-Factor or Antigen)

लैण्डस्टीनर एवं वीनर (Land-steiner And Weiner, 1940) ने रहीसस बन्दर (Rhesus monkey) के लाल रुधिराणुओं की कला में एक प्रतिजन की उपस्थिति का पता लगाया और इसे रहीसस तत्व या प्रतिजन का नाम दिया। पहले उन्होंने इन बन्दरों के रुधिर को खरगोश एवं गिनी पिग्स के शरीर में इंजेक्ट किया। इन जन्तुओं के रुधिर में रहीसस प्रतिजन को प्रभावहीन और चिपकना बनाने वाले प्रतिरक्षी (antibodies) बन गये। अब इन जन्तुओं के रुधिर का सीरम तैयार किया गया जिसमें कि ये प्रतिरक्षी उपस्थित थे। फिर इस Rh-एन्टीसीरम से बन्दरों के ही नहीं वरन् न्यूयार्क के अनेक व्यक्तियों के रुधिर वर्ग का भी, लाल रुधिराणुओं के अभिश्लेषण के आधार पर, जाँच की गयी तो पता चला कि रहीसस बन्दरों के अतिरिक्त, गोरी प्रजाति के 85% मनुष्यों में भी यह प्रतिजन पाया जाता है।* भारतीयों में 97% व्यक्तियों में यह पाया गया है।*

जिन व्यक्तियों में यह होता है उन्हें Rh-साकारी (Rh-positive, Rh*) तथा जिनमें नहीं होता उन्हें Rh-नकारी (Rh- negative, Rh-) कहते हैं।

रुधिर-आधन में Rh- तत्व का महत्व-वैसे तो मनुष्य के रक्त में Rh-प्रतिरक्षी (Rh-antibodies) नहीं होते, लेकिन यदि रुधिर आधान में किसी Rh- को किसी Rh+ का रुधिर चढ़ा दिया जाता है तो प्रापक के प्लाज्मा में धीरे-धीरे Rh-प्रतिरक्षी बन जाते हैं। इन प्रतिरक्षियों का, मात्रा कम होने के कारण, तुरन्त तो प्रापक पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन यदि ऐसे प्रापक को दुबारा किसी Rh+ का रुधिर चढ़ा दिया जाये तो इन प्रतिरक्षियों के कारण दाता के लाल रुधिराणु चिपकनें लगेंगे और प्रापक की मृत्यु हो सकती है। अतः अब रुधिर-आधन में ABO रुधिर वर्गों के ऐन्टीजनों की भाँति Rh- तत्व का भी पहले पता लगा लेना आवश्यक होता है।

Rh तत्व की वंशागति-Rh-तत्व का लक्षण भी आनुवंशिक होता है। इसकी वंशागति, मेन्डेलियन नियमों के अनुसार, दो ऐलीली जीन्स (R, r) द्वारा होती है। इनमें जीन R (Rh’ लक्षण) जीन्स (Rh लक्षण) पर प्रबल (dominant) होता है।

एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटैलिस (Erythroblastosis fetalis)

यह Rh-तत्व से सम्बन्धित रोग है जो केवल शिशुओं में, जन्म से पहले ही, गर्भावस्था में होता है। यह बहुत कम लेकिन घातक होता है। इससे प्रभावित शिशु की गर्भावस्था में ही, या जन्म के शीघ्र बाद, मृत्यु हो जाती है। ऐसे शिशु सदा Rh होते हैं। इनकी माता Rh तथा पिता Rh होते हैं। इन्हें यह गुण पिता से ही वंशागति में मिलता है। परिवर्द्धन काल में भ्रूण के कुछ लाल रुधिराणु प्रायः माता के रुधिर में पहुँच जाते हैं। अतः माता के रुधिर में Rh-प्रतिरक्षी (Rh-antibody) का संश्लेषण होने लगता है। यह प्रतिरक्षी, माता के रुधिर में Rh-प्रतिजन की अनुपस्थिति के कारण, माता को कोई हानि नहीं पहुँचाता, लेकिन जब यह माता के रुधिर के साथ भ्रूण में पहुँचता है तो इसकी लाल कणिकाओं को चिपकाने लगता है। साधारणतः प्रथम गर्भ के शिशु को विशेष हानि नहीं होती, क्योंकि इस समय तक माता में Rh-प्रतिरक्षी की थोड़ी-सी ही मात्रा बन पाती है। बाद के गर्मों के Rh शिशुओं में इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती है।

अन्य रुधिर वर्ग; M, N वर्ग

ABO तथा Rh तत्व रुधिर वर्गों के अतिरिक्त लगभग एक दर्जन श्रेणियों के अन्य विविध प्रकार के रुधिर वर्गों के ऐन्टीजेन्स मनुष्यों एवं कुछ अन्य स्तनियों के लाल रुधिराणुओं की कोश-कला में पाये जाते हैं। इनमें से M, N रुधिर वर्ग के अतिरिक्त अन्य वर्गों का कोई विशेष महत्व अभी ज्ञात नहीं है। M, N रुधिर वर्गों के ऐन्टीजेन्स मनुष्यों के अतिरिक्त, शिम्पांजी, ओरंग-उटान तथा कुछ बन्दरों में पाये जाते हैं। इन ऐन्टीजेन्स की वंशागति ऐलीली जीन्स की एक जोड़ी पर आधारित होती है। ये दोनों जीन-IM एवं IN-एक दूसरे के लिए समान रुप से प्रभावी अर्थात् सहप्रबल (co- dominant) होते हैं। अतः इस श्रेणी में तीन प्रकार के जीनप्ररूपों (genotypes)-MM, NN एवं MN-के अनुसार तीन प्रकार के दर्शरूप (phenotypes)-M, N एवं MN रुधिर वर्गों के व्यक्ति समाज में होते हैं।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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