मंत्रिमंडलीय समितियां : 21

मंत्रिमंडलीय समितियों की विशेषताएं

मंत्रिमंडलीय समितियों की निम्न विशेषताएँ हैं:

1. अपने प्रादुर्भाव में ये समितियाँ गैर-संवैधानिक अथवा संविधानेत्तर हैं। दूसरे शब्दों में इनका उल्लेख संविधान में नहीं है। तथापि कार्य-नियमों (Rules of Busi- ness) में इनकी स्थापना के लिए कहा गया है।

2. ये समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थाई तथा तदर्थ। स्थाई समितियाँ स्थाई प्रकृति की होती हैं जबकि तदर्थ अस्थाई प्रकृति की। तदर्थ समितियों का गठन समय-समय पर विशेष समस्याओं को सुलझाने के लिए किया जाता है। प्रयोजन पूरा होते ही इन्हें विघटित कर दिया जाता है।

3. ये समितियाँ प्रधानमंत्री द्वारा समय की अनिवार्यता तथा परिस्थिति की माँग के अनुसार गठित की जाती हैं। इसलिए इनकी संख्या, संज्ञा तथा गठन समय के साथ बदलता रहता है।

4. इनकी सदस्य संख्या तीन से आठ तक हो सकती है। सामान्यतः इनके सदस्य केवल कैबिनेट मंत्री होते हैं, तथापि गैर-कैबिनेट मंत्री इनकी सदस्यता से प्रतिबंधित नहीं होते।

5. इन समितियों में मामले से जुड़े मंत्री ही नहीं, बल्कि वरिष्ठ मंत्री भी हो सकते हैं।

6. समितियों के प्रमुख प्रायः प्रधानमंत्री होते हैं। कभी-कभी गृह-मंत्री या वित्त मंत्री भी इनकी अध्यक्षता करते हैं। लेकिन यदि किसी समिति में प्रधानमंत्री सदस्य हों, तो अध्यक्षता वही करते हैं।

7. समितियाँ न सिर्फ मुद्दों का हल तलाशती हैं और मंत्रिमंडल के विचार के लिए प्रस्ताव बनाती हैं, बल्कि निर्णय भी लेती हैं। हालाँकि मंत्रिमंडल इनके निर्णयों की समीक्षा कर सकता है।

8. समितियाँ मंत्रिमंडल के कार्य की अधिकता को कम करने के लिए सांगठनिक युक्ति की तरह हैं। ये नीतिगत मुद्दों का गहन अध्ययन करती हैं तथा प्रभावकारी समन्वय स्थापित करती हैं। ये श्रम और प्रतिनिधिमंडल के विभाजन के सिद्धांतों पर आधारित हैं।

मंत्रिमंडलीय समितियों की सूची

1994 में निम्नलिखित 13 मंत्रिमंडलीय समितियाँ कार्यरत थीं:

1. राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति

2. प्राकृतिक प्रकोपों के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

3. संसदीय मामलों के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

4. मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति

5. आवास के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

6. विदेशी निवेश के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

7. औषधि दुरुपयोग नियंत्रण के लिए मंत्रिमंडलीय समिति (नशीली दवाओं के सेवन पर नियंत्रण से सम्बन्धित)

8. कीमतों (Prices) के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

9. अल्पसंख्यक कल्याण के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

10. आर्थिक मामलों के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

11. व्यापार एवं निवेश के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

12. व्यय (Expenditure) के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

13. आधारभूत संरचना के लिए मंत्रिमंडलीय समिति वर्तमान में (2013) निम्नलिखित 10 समितियाँ कार्यरत हैं:

1. आर्थिक मामलों के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

2. कीमतों के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

3. राजनीतिक मामलों के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

4. मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति

5. सुरक्षा के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

6. विश्व व्यापार संगठन (WTO) के मामलों के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

7. निवेश के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

8. यू.आई.डी.ए.आई (Unique Indentification Authority of India) के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

9. संसदीय मामलों के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

10. आवास (Accommodation) के लिए मंत्रिमंडलीय समिति

मंत्रिमंडलीय समितियों के कार्य

निम्नलिखित चार अधिक महत्वपूर्ण मंत्रिमंडलीय समितियाँ हैं:

1. राजनीतिक मामलों की समिति राजनीतिक परिस्थितियों से सम्बन्धित सभी मामलों को देखती है।

2. आर्थिक मामलों की समिति आर्थिक क्षेत्र की सरकारी गतिविधियों को निर्देशित करती है तथा उनमें समन्वय भी स्थापित करती है।

3. नियुक्ति समिति केन्द्रीय सचिवालय, लोक उद्यमों, बैंकों, तथा वित्तीय संस्थाओं में सभी उच्च पदों पर नियुक्तियों के सम्बन्ध में निर्णय लेती है।

4. संसदीय मामलों की समिति संसद में सरकार की भूमिका एवं कार्यों को देखती है।

उपरोक्त चार में पहली तीन समितियों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं तथा अंतिम चौथी समिति के अध्यक्ष गृह मंत्री होते हैं। सभी मंत्रिमंडलीय समितियाँ सर्वशक्तिशाली समिति राजनीतिक मामलों की समिति मानी जाती हैं, जिसे ‘सुपर कैबिनेट’ भी कहा जाता है।

मंत्रियों के समूह

मंत्रिमंडलीय समितियों के अतिरिक्त विभिन्न मुद्दों/ विषयों को देखने के लिए कुछ मंत्री-समूहों का भी गठन किया गया है। इनमें से कुछ मंत्री-समूहों को मंत्रिमंडल की ओर से निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है जबकि शेष समूह अपनी अनुशंसाएँ मंत्रिमंडल को भेजते हैं।

पिछले दो दशकों में मंत्री-समूह नामक संस्था विभिन्न मंत्रालयों के बीच तालमेल बैठाने के लिए वहनीय तथा प्रभावकारी उपकरण के रूप में सामने आई है। ये वे तदर्थ निकाय हैं जो कुछ आवश्यक विषयों तथा नाजुक समस्याओं पर मंत्रिमंडल को अपनी अनुशंसाएँ देने के लिए गठित किए जाते हैं। जिस मंत्रालय के लिए मंत्री समूह का गठन होता है, उसका मंत्री मंत्री-समूह में शामिल रहता है और जब सलाह देने का काम समाप्त हो जाता है, मंत्री-समूह भी भंग कर दिया जाता है। अभी (2013) निम्नलिखित 21 मंत्री-समूह अस्तित्व में हैं:

1. जल प्रबंधन की समेकित रणनीति के विकास के लिए मंत्री समूह

2. प्रशासनिक सुधार आयोग के प्रतिवेदनों पर विचार के लिए मंत्री-समूह

3. नागरिक उड्डयन क्षेत्र के लिए मंत्री समूह

4. राष्ट्रीय औषधि नीति, 2006 के लिए मंत्री-समूह

5. ऊर्जा क्षेत्र के मामलों के लिए मंत्री समूह

6. प्रसार भारती के संचालन से सम्बन्धित विविध विषयों के लिए मंत्री-समूह

7. भोपाल गैस लीक आपदा से सम्बन्धित मंत्री-समूह

8. भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए उपाय सुझाने के लिए मंत्री-समूह

9. कोयला खनन तथा अन्य विकास परियोजनाओं से सम्बन्धित पर्यावरणीय एवं विकास सम्बन्धी विषयों के लिए मंत्री-समूह

10. मीडिया के लिए मंत्री-समूह

11. राष्ट्रमण्डल खेल, 2010 के प्रतिवेदन पर विचार करने एवं अनुशंसा करने के लिए मंत्री-समूह

12. कोयला क्षेत्र के लिए विनियमन स्वतंत्र विनियम प्राधिकार के गठन के सम्बन्ध में विचारण के लिए मंत्री-समूह- संसद में कोयला विनियमन प्राधिकार विधेयक, 2012 प्रस्तुत करने के लिए स्वीकृति

13. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया निधि (National Disaster Response Fund) / राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि- (State Disaster Response Fund) के अंतर्गत सहायता प्राप्त करने के लिए अपरदन (Erosion) को अर्ह विपदा मानने पर विचार करने के लिए मंत्री-समूह

14. भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास तथा पुनर्स्थापन विधेयक 2011 में संशोधन पर विचार के लिए मंत्री-समूह

15. पहले से विद्यमान यूरिया इकाइयों को नयी दर योजना (NPS) के चरण-III से अधिक करने के लिए नीति निर्धारण हेतु गठित मंत्री-समूह

16. राष्ट्रीय कौशल विकास प्राधिकार गठित करने पर विचारण हेतु मंत्री-समूह

17. देश भर में 18 वर्ष या अधिक उम्र के निवासियों के लिए पहचान पत्र (Resident Identity Cards) जारी करने पर विचारण के लिए मंत्री-समूह

18. केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों में सुधार के लिए विशेषज्ञों की नामसूची (Panel) की अनुशंसाओं पर विचारण हेतु मंत्री-समह

19. अर्द्ध-सरकारी न्यायाधिकरणों/आयोगों/नियामक निकायों आदि के अध्यक्षों तथा सदस्यों की एक समान सेवा शर्तों को लागू करने पर विचार करने के लिए मंत्री-समूह

20. भारतीय राजस्व सेवा की उपयुक्त संवर्ग संरचना तथा अन्य सहायक प्रणालियों पर विचार एवं सुझाव के लिए मंत्री-समूह

21. भारत संचार निगम लिमिटेड तथा महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड को पुनरुज्जीवित करने सम्बन्धी मामलों को देखने के लिए मंत्री-समूह

वर्तमान में (2013) निम्नलिखित 6 शक्ति संपन्न मंत्री-समूह (Empowered Groups of Ministers) कार्यरत हैं:

1. सभी केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के शेयर मूल्य-पट्टी (price band) तथा उनकी बिक्री के अंतिम मूल्य के निर्धारण के लिए शक्ति संपन्न मंत्री-समूह

2. गैस के मूल्य निर्धारण तथा गैस के व्यावसायिक उपयोग पर विचार के लिए शक्ति सम्पन्न मंत्री-समूह

3. अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट्स के लिए शक्ति सम्पन्न मंत्री-समूह

4. मास रैपिड ट्रांसिट सिस्टम (MRTS) के लिए शक्ति सम्पन्न मंत्री-समूह

5. स्पेक्ट्रम खाली करने (Vacation of Spectrum) तथा 3 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए तथा 22 सेवा क्षेत्रों में अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) प्रदान करने तथा 2 जी बैंड में स्पेक्ट्रम आवंटन के मामले देखने के लिए शक्ति सम्पन्न मंत्री-समूह।

6. सूखे (drought) पर शक्ति सम्पन्न मंत्री-समूह द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2005-2009) ने मंत्री-समूहों के कामकाज पर निम्नलिखित टिप्पणी दी तथा अनुशंसाएँ कीं-

1. आयोग की राय में बड़ी संख्या में मंत्री-समूहों के गठन से अनेक मंत्री-समूह अपने निर्धारित कार्य पूर्ण करने के लिए नियमित रूप से एकत्रित नहीं हो पाते, जिससे कई बड़े मामलों में काफी विलम्ब हो जाता है।

2. आयोग ने अनुभव किया कि मंत्री-समूहों की संख्या के अधिक चयनात्मक उपयोग (selective use) से उनके बीच बेहतर समन्वय स्थापित होगा, विशेषकर तब जब उन्हें मंत्रिमंडल की ओर से एक निर्णय तक पहुँचने की शक्ति प्राप्त हो अपने कार्य को तय समय सीमा में पूर्ण करने के लिए।

3. आयोग ने अनुशंसा की कि इस बारे में सुनिश्चित हो लेने की आवश्यकता है कि मंत्री-समूहों में विद्यमान समन्वय प्रणाली प्रभावी ढंग से कार्य करती है तथा उससे मुद्दों के शीघ्र समाधान में सहायता मिलती है। चयनात्मक, लेकिन प्रभावकारी उपयोग साथ ही स्पष्ट आदेश तथा निर्धारित समय सीमा के रहते ही मंत्री-समूहों का लाभ उठाया जा सकता है।

जीओएम तथा ईजीओएम की समाप्ति

अतीत से अलग हटकर कार्य करने का संकेत करते हुए नरेन्द्र मोदी सरकार ने 31 मई, 2014 को सभी मंत्री समूहों (Group of Ministers) तथा शक्ति संपन्न मंत्री समूहों (Empowered Group of Ministers) की “अधिक जवाबदेही एवं सशक्तीकरण” के लिए समाप्ती की घोषणा की। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा नौ ईजीओएम तथा 21 जीओएम की स्थापना विभिन्न मामलों पर निर्णय लेने के लिए की थी, जैसे भ्रष्टाचार, अंतर राज्य जल विवाद, प्रशासनिक सुधार एवं दूरसंचार के लिए मूल्य-निर्धारण आदि। इन विषयों को मंत्रिमंडल के विचारार्थ प्रस्तुत करने के पहले इन समूहों में इन पर चर्चा करके निर्णय लिया जाता था।

यूपीए II के दौरान 27 मंत्री समूह तथा 24 शक्तिसंपन्न मंत्री समूह गठित किए थे जिनमें से अधिकांश के अध्यक्ष रक्षा मंत्री ए.के. अंधोनी बनाए गए थे।

प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में मंत्रालयों और विभागों को सशक्त और सक्षम बनाने की दिशा में इस पहल को ‘बड़ा कदम’ बताया गया। अपने मंत्रिपरिषद के सदस्यों को विभागों का आबंटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा- “सभी महत्वपूर्ण नीतिगत मामले उनके अधिकार क्षेत्र में होंगे।

ईजीओएमएस तथा जीओएमएस के स्तर से जो मामले लम्बित होंगे उनका निपटारा अब मंत्रालयों और विभागों द्वारा किया जाएगा। इससे निर्णय प्रक्रिया में तेजी आएगी और व्यवस्था में अधिक जवाबदेही भी बढ़ेगी। अब कभी मंत्रालयों के समक्ष कठिनाई प्रस्तुत होगी मंत्रिमंडल सचिवालय और प्रधानमंत्री कार्यालय निर्णय प्रक्रिया में सहयोग देंगे”-विज्ञप्ति में कहा गया।

यह घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा 10 सूत्री एजेंडा की शुरुआत करने के दो दिन बाद हुई जब उन्होंने अपने मंत्रियों से कहा कि वे उन मुद्दों की सूची बनाएं जिन्हें पहले 100 दिनों के अंदर हाथ में लेना चाहते हैं, इस मामले में पूरा ध्यान कार्यकुशलता, डिलिवरी प्रणाली तथा कार्यान्वयन पर होना चाहिए।

पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि जीओएमएस तथा ईजीओएमएस विभिन्न मंत्रालयों से जुड़े मामलों के निवारण के लिए एकल खिड़की निस्तारण के तौर पर शुरू कर रहे थे।

अनौपचारिक मंत्री समूह स्थापित

अप्रैल 2013 में कहा गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे प्रस्तावों के परिणामस्वरूप कम से कम 16 अनौपचारिक मंत्री समूह बन गए हैं। एक बार जब यह अनौपचारिक समूह अपनी सहमति दे देता है तो प्रस्ताव मंत्रिमंडल में बिना अधिक चर्चा के पारित हो जाता है।

राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष के चयन से लेकर इंटरनेट गवर्नेस के लिए दिशा-निर्देश जारी करने जैसे मामलों तक में अनौपचारिक मंत्री-समूह ही नया मंत्रिमंडल है।

यह अभिशासन की इस पद्धति को छोड़ने जैसा है जिसके तहत मोदी सरकार ने शुरूआत में ही जो शक्ति सम्पन्न मंत्री-समूहों तथा 21 मंत्री-समूहों को समाप्त कर दिया था। सरकार के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि इन अनौपचारिक मंत्री-समूहों के दौरान असली अध्यक्ष वित्त मंत्री अरुण जेटली हैं।

इसके पहले एक प्रारूप कैबिनेट नोट से संबंधित मंत्रालय में प्रस्तावित किया जाता था, पर प्रधानमंत्री कार्यालय की सहमति की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। यदि प्रधानमंत्री कार्यालय इसके कोई परिवर्तन चाहता था तो पहले परिवर्द्धित कर इसको स्वीकृति के लिए भेजा जाता था इसके पहले कि उसे मंत्रिमंडल में प्रस्तुत किया जाए।

प्रधानमंत्री नीतिगत निर्णयों की विशिष्टताओं और उससे जुड़े प्रत्येक विवरण के लिए रखते हैं। लेकिन ये बात भी समझते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस चीज में संलग्न नहीं कर सकता क्योंकि अभिशासन में नीति सी है। इसलिए ऐसे अनौपचारिक समूहों के पीछे विचार यह था कि विषय पर गुणवत्तापूर्ण चर्चा की जाए इसके पहले कि इसे मंत्रिमंडल में निर्णय के लिए लाया जाए, सूत्रों का कहना है।

लेकिन मंत्रिमंडल के कुछ लोगों का विश्वास है कि कार्यशैली में यह एक परिवर्तन का कारण है। मनमोहन सिंह को कोयला घोटाला में अभियुक्त बनाया जाना क्योंकि उन्होंने फाइलों का स्वयं निस्तारण किया था।

इसके अलावा निम्नलिखित नियमों के लिए अनौपचारिक समूहों को अहत् किया गया कि किशोर न्याय अधिनियम में सयंशोधन, इंटरनेट गवर्नेस के लिए दिशा निर्देश, बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम में संशोधन तथा ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टूडेंट्स (संशोधन) विधेयक।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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