अग्नि पथ : अध्याय 9

अग्नि पथ

अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! वृक्ष हों भले खड़े,हों घने, हों बड़े,एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत !अग्नि …

Read more

गीत – अगीत : अध्याय 8

गीत - अगीत

गीत, अगीत, कौन सुन्दर है? (1) गाकर गीत विरह के  तटिनीवेगवती बहती जाती है,दिल हलका कर लेने कोउपलों से कुछ कहती जाती है।तट पर एक …

Read more

दोहे : अध्याय 7

दोहे

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय ।टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय ।। रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो …

Read more

पद : अध्याय 6

पद

(1) अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग अँग बास समानी।।प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे …

Read more

शुक्रतारे के समान : अध्याय 5

शुक्रतारे के समान

आकाश के तारों में शुक्र की कोई जोड़ नहीं। शुक्र चंद्र का साथी माना गया है। उसकी आभा-प्रभा का वर्णन करने में संसार के कवि …

Read more

तुम कब जाओगे अतिथि : अध्याय 3

तुम कब जाओगे अतिथि

आज तुम्हारे आगमन के चतुर्थ दिवस पर यह प्रश्न बार-बार मन में घुमड़ रहा है- तुम कब जाओगे, अतिथि ? तुम जहाँ बैठे निस्संकोच सिगरेट …

Read more

दुःख का अधिकार : अध्याय 1

दुःख का अधिकार

मनुष्यों की पोशाके उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती है। प्रायः पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्जा निश्चित करती है। वह …

Read more