सवैये : अध्याय 9

सवैये

1 मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं व्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ।।पाहन …

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वाख : अध्याय 8

वाख

1 रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।जी …

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साखियाँ एवं सबद : अध्याय 7

वैष्णव जन तो तेने कहीये

वैष्णव जन तो तेने कहीये …… वैष्णव जन तो तेने कहीयेजे पीड़ पराई जाणे रे।पर दुःखे उपकार करे तोयेमन अभिमाण न आणे रे। सकल लोकमां …

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मेरे बचपन के दिन : अध्याय 6

मेरे बचपन के दिन

बचपन की स्मृतियों में एक विचित्र-सा आकर्षण होता है। कभी-कभी लगता है जैसे सपने में सब देखा होगा। परिस्थितियाँ बहुत बदल जाती है। अपने परिवार …

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ल्हासा की ओर : अध्याय 2

ल्हासा की ओर

वह नेपाल से तिब्बत जाने का मुख्य रास्ता है। फरी-कलिङ्योङ् का रास्ता जब नहीं खुला था, तो नेपाल ही नहीं हिंदुस्तान की भी चीजें इसी …

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दो बैलों की कथा : अध्याय 1

दो बैलों की कथा

जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते …

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