कैथोड किरणें (Cathode Rays)

जब किसी विसर्जन नलिका (Discharge Tube) में किसी गैस का दाब 10-2 से 10-3 मिमी (पारा) के मध्य रखकर इसके इलेक्ट्रोडों के बीच 1000 वोल्ट का विभवान्तर उत्पन्न किया जाता है तो नली में कैथोड से कुछ अदृश्य किरणें निकलती हैं जो एनोड की ओर चलती हैं तथा कैथोड के सामने वाली दीवार से टकराकर चमक (Fluorescence) उत्पन्न करती हैं जिनका रंग कांच (Glass) की प्रकृति पर निर्भर करता है। चूंकि ये किरणें कैथोड से निकलती हैं अतः इन किरणों को कैथोड किरणें (Cathode Rays) कहते हैं।

सर जे.जे. टामसन ने प्रयोग कर यह पता लगाया कि कैथोड किरणें वास्तव में ऋणावेशित सूक्ष्म कणों का पुंज (Series) हैं। इन कणों को ही इलेक्ट्रॉन कहा गया जो कि सभी परमाणुओं के मूल कणों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं और नाभिक के परितः चक्कर लगाते हैं।

कैथोड किरणों के प्रमुख गुण (Characteristics of Cathode Rays)

(i) ये किरणें सीधी रेखा में गमन करती हैं।

(ii) ये किरणें (कण) जिस पदार्थ से टकराती हैं उसे गर्म कर देती हैं।

(iii) ये किरणें प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती हैं।

(iv) ये किरणें जब अधिक परमाणु क्रमांक वाले धातुओं पर आपतित होती हैं; तो X किरण उत्पन्न करती हैं।

(v) ये किरणें पदार्थों के भौतिक तथा रासायनिक गुण परिवर्तित करने की क्षमता रखती हैं।

(vi) कैथोड किरणें गैसों का आयनीकरण करने में सक्षम होती हैं।

(vii) ये किरणें विद्युत व चुम्बकीय क्षेत्रों में विक्षेपित हो जाती हैं।

(viii) इन किरणों पर ऋण आवेश होता है। (1.6 × 10-19C)

(ix) ये किरणें न केवल फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती हैं अपितु धातु की प्लेट का भेदन भी कर देती हैं।

धन किरणें या कैनाल किरणें (Positive or Canal Rays)

सन् 1886 ई० में गोल्डस्टीन नामक वैज्ञानिक ने एक विसर्जन नलिका में लगे कैथोड को छिद्रमय व गैस का दाब लगभग 10-5 मिमी० (पारा) रखा। उन्होंने देखा कि जब इलेक्ट्रोडो (कैथोड व एनोड) के बीच उच्च विभवान्तर लगाया जाता है तो कैथोड के पीछे नली का भाग चमकने लगता है। यह चमक कैथोड किरणों द्वारा उत्पन्न चमक से भिन्न होती है। ये किरणें एनोड से उत्पन्न होकर छिद्रमय कैथोड से निकल कर नली के सिरे तक पहुँचती हैं, इसलिए उन्होंने इन्हें कैनाल किरणें कहा। इसी प्रकार ये किरणें एनोड से निकलती हैं तथा धनावेशित होती हैं, इसलिए इन्हें धन किरणें भी कहा गया।

धन किरणों के प्रमुख गुण (Important Characteristics of Canal Rays)

(1) ये किरणें सरल रेखीय तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती हैं।

(2) ये किरणें प्रतिदीप्ति तथा स्फुरदीप्ति उत्पन्न करती हैं।

(3) इन किरणों के लिए आवेश व द्रव्यमान का अनुपात (e/M) इलेक्ट्रॉन के (e/M) के मान से बहुत कम होता है।

(4) ये किरणें वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में विक्षेपित हो जाती हैं।

(5) इन किरणों का वेग कैथोड किरणों के वेग से बहुत कम होता है।

(6) ये किरणें गैसों का आयनीकरण कर देती हैं।

(7) ये किरणें अपारदर्शक वस्तुओं (जैसे-एल्यूमीनियम) की पतली चादरों को भेदकर पार निकल जाती हैं।

(8) ये किरणें भी भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन उत्पन्न करने में सक्षम होती हैं।

धन किरणों के उपयोग (Usages of Canal Rays)

(i) इनकी सहायता से किसी तत्व के धनायन के आवेश (e) व द्रव्यमान (m) का अनुपात (e/m) ज्ञात किया जा सकता है।

(ii) किसी तत्व में उपस्थित विभिन्न समस्थानिकों का अध्ययन करना।

(iii) किसी तत्व के परमाणु का द्रव्यमान (mass-M) ज्ञात करना।

प्रकाश वैद्युत प्रभाव (Photo Electric Effect)

जब किसी धातु (metal) की सतह (Surface) पर अधिक आवृत्ति (frequency) की प्रकाश किरणों को डाला जाता है तो उस धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होने लगता है, जिसे प्रकाश वैद्युत प्रभाव कहते हैं। इसके लिए उच्च आवृत्ति (i.e. लघु तरंग दैर्ध्य) के किरणों, यथा पराबैगनी विकिरण, X-किरणें एवं दृश्य प्रकाश अधिक प्रभावी होते हैं। इस प्रक्रिया में उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश इलेक्ट्रॉन (Photo Electron) तथा इन इलेक्ट्रॉनों के कारण उत्पन्न धारा को प्रकाश वैद्युत धारा (Photo Electric Current) कहते हैं। इसकी खोज सर्वप्रथम हेनरिच हर्ज ने 1887 ई० में की थी।

परन्तु इसकी विस्तृत व्याख्या आइन्स्टीन एवं मिलिकन ने की थी। इस कार्य के लिए आइन्स्टीन को 1921 ई0 में व मिलिकन को 1923 ई० में नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। ज्ञातव्य है कि वह न्यूनतम आवृत्ति जो किसी पदार्थ से प्रकाश इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन कर सके, देहली आवृत्ति (U) कहते हैं। देहली आवृत्ति से कम आवृत्ति की प्रकाश किरण द्वारा धातु से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन नहीं होता। देहली आवृत्ति का मान अलग- अलग धातुओं के लिए अलग-अलग हो सकता है। इसीप्रकार, किसी धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों को बाहर निकालने के लिए आवश्यक गतिज ऊर्जा को उस धातु का कार्य फलन (w) कहते हैं।

प्रकाश वैद्युत प्रभाव के नियम (Laws of Photo-electric Effect)

(i) किसी धातु की सतह से प्रकाश इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर धातु पर आपतित प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।

(ii) प्रकाश इलेक्ट्रानों की गतिज ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति के अनुक्रमानुपाती होती है, परन्तु इसका प्रकाश की तीव्रता से कोई संबंध नहीं होता।

(iii) धातु की सतह पर प्रकाश गिरते ही इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं (i.e. no time log)।

प्रकाश वैद्युत प्रभाव की आइंस्टीन द्वारा व्याख्या (Explanation of Photo electric Effect by Einstein)

प्लांक का क्वाण्टम सिद्धान्त बताता है कि प्रकाश, ऊर्जा के छोटे-छोटे बंडलों (Photons) के रूप में चलता है। प्रत्येक फोटान की ऊर्जा hv (h = प्लांक नियतांक व v = प्रकाश की आवृत्ति) होती है।

E = hv

जहाँ h = 6.62 * 10-34 JS होती है, जिसे प्लांक नियतांक (Plank’s Constant) कहते हैं।

आइंस्टीन के अनुसार जब किसी आवृत्ति (माना v) का कोई फोटॉन किसी धातु पर आपतित होता है तो वह अपनी ऊर्जा (hv) धातु के किसी इलेक्ट्रॉन को दे देता है।

इस स्थानान्तरित ऊर्जा (hv) का एक भाग (उस धातु के कार्यफलन (w) के बराबर) इलेक्ट्रान को बाहर निकालने में खर्च हो जाता है। शेष भाग (hv – w) इलेक्ट्रान की गतिज ऊर्जा (1/2 mv2) बढ़ाने में खर्च होता है। धातु की सतह से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों गतिज ऊर्जा, धातु के अंदर से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा से अधिक होता है। कारण यह कि अंदर से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन सतह तक पहुँचने में अन्य परमाणुओं से टक्कर द्वारा अपनी गतिज ऊर्जा का कुछ भाग खर्च कर देते हैं।

इस प्रकार, Ek = hv – W जूल

या, Ek = hv – Hvo

जहाँ Ek = सतह से उत्सर्जित इलेक्ट्रान की अधिकतम गतिज ऊर्जा।

hv = धातु में इलेक्ट्रान द्वारा अवशोषित फोट्रॉन की ऊर्जा।

w = hVo = धातु का कार्य फलन चूंकि, E k = 1/2 m v2max भी होता है

जहां m = अधिकतम वेग है। इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान व vmax = इलेक्ट्रॉन का

अतः 1/2 m v2max = h (v – vo)

यह समीकरण आइंस्टीन का प्रकाश वैद्युत समीकरण कहा जाता है।

प्रकाश विद्युत सेल (Photo-electric Cell)

प्रकाश वैद्युत सेल (Photo-electric Cell) वह युक्ति है जो प्रकाश ऊर्जा को सीधे ही वैद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है। यह प्रकाश वैद्युत प्रभाव के सिद्धान्त पर ही आधारित होता है।

प्रकाश विद्युत सेल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। यथा : प्रकाश उत्सर्जक सेल (Photo emissive cell), प्रकाश चालकीय सेल (Photo conductive cell) एवं प्रकाश वोल्टीय सेल (Photo voltaic cell)

इसमें क्वार्ट्ज अथवा काँच का एक बल्ब होता है जिसके भीतर कुछ स्थान छोड़कर किसी क्षारीय धातु (Na, K आदि) का पतला लेप कर दिया जाता है। यह पर्त कैथोड का कार्य करती है तथा प्रकाश सुग्राही होती है। बल्ब के बीच में धातु का एक वृत्ताकार तार लगा होता है। यह एनोड का कार्य करता है। बल्ब में या तो कोई अक्रिय गैस (Ar, Ne….) भर देते हैं या निर्वात कर देते हैं। सेल के एनोड व कैथोड को एक बैटरी (E), प्रतिरोध (R), तथा धारामापी (G) से श्रेणी क्रम में जोड़कर परिपथ पूरा करते हैं।

जब इसके कैथोड पर देहली आवृत्ति से अधिक आवृत्ति का प्रकाश आपतित होता है तो इससे प्रकाश इलेक्ट्रानों का उत्सर्जन होने लगता है जो एनोड की ओर आकर्षित हो जाते हैं। इस प्रकार परिपथ में धारा बहने लगती है। फलतः परिपथ में संलग्न सेल का आवेशन होने लगता है जिसका प्रयोग बाद में आवश्यकतानुसार किया जा सकता है। इनका उपयोग मानवनिर्मित उपग्रहों, स्वचालित दरवाजों (Auto- matic Doors), गणित्रों (Calculators), घड़ियों (Watches), स्वचालित स्विचों (यथा-सड़कों या स्ट्रीट लाइटों में) चोर सूचक घण्टियों (Burgulars Alarm), प्रकाश तीव्रता मापक यंत्रों (Photo Intensity Measures), ध्वनि पुनरुत्पादन (Sound Regenration), द्रवों तथा ठोसों की अपारदर्शिता (Opacity) मापन, आकाशीय पिण्डों के ताप मापन, स्पेक्ट्रमों के अध्ययन व सुदूर स्थानों पर फोटो भेजने इत्यादि में किया जाता है।

तापायनिक व प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन में अंतर

तापायनिक उत्सर्जन (Thermionic Emission) में धातु के मुक्त इलेक्ट्रान वाह्य ऊष्मा अवशोषित करके उत्सर्जन योग्य ऊर्जा प्राप्त करते हैं जबकि प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन (Photo electric Emission) में धातु के मुक्त इलेक्ट्रान, सतह पर आपतित प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण कर उत्सर्जन योग्य होते हैं।

तापायनिक उत्सर्जन में इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन की दर धातु के ताप पर निर्भर करती है जबकि प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन में इलेक्ट्रानों के उत्सर्जन की दर प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है।

प्रतिदीप्ति (Fluorescence)

कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिन पर ऊँची आवृत्ति का प्रकाश (यथा-नीला, पराबैगनी (Ultraviolet) इत्यादि) डाला जाता है तो वे उस प्रकाश को अवशोषित कर लेते हैं फलस्वरुप अपेक्षाकृत निम्न आवृत्ति (या अधिक तरंगदैर्ध्य) का प्रकाश उत्सर्जित करने लगते हैं। यह उत्सर्जन तब तक होता है जब तक उन पर प्रकाश डाला जाता है। इस घटना को प्रतिदीप्ति (Fluorescence) तथा ऐसे पदार्थों को प्रतिदीप्ति पदार्थ (Fluorescent Substance) कहते हैं। अलग-अलग प्रतिदीप्त पदार्थ अलग-अलग रंगों की किरणों का उत्सर्जन करते हैं। उदाहरणस्वरुप- कुनीन सल्फेट के विलयन में जब बैगनी रंग की प्रकाश किरण डाली जाती है तो वह नीले रंग की प्रतिदीप्ति (Fluorescence) देता है। इसी प्रकार जिंक सल्फाइड नीले रंग की, कैडमियम बोरेट गुलाबी रंग की व फ्लोरिसीन हरे रंग की प्रतिदीप्ति देते हैं। इसके अलावा फ्लोरस्पार (Fluorspar), यूरेनियम आक्साइड, पेट्रोल, बेरियम प्लेटिनो सायनाइड आदि भी प्रतिदीप्त पदार्थ हैं।

➤ उपयोग

(1) इसकी सहायता से अदृश्य विकिरण (X किरणों, पराबैगनी किरणों आदि) का पता लगाया जा सकता है। X-किरणों का पता लगाने के लिए हम बेरियम प्लेटिनो सायनाइड का प्रयोग करते हैं। जब इस पर X किरण पड़ती है तो यह हरे रंग के प्रकाश की प्रतिदीप्ति देता है।

(2) फ्लोरोसेन्ट ट्यूबों में। यथा- घरों में प्रयुक्त होने वाले ट्यूब लाइटों में अंदर की तरफ फ्लोरोसेन्ट पदार्थों (यथा-जिंक बेरीलियम सिलिकेट, जिंक सिलिकेट, जिंक सल्फाइड आदि) का लेप लगा रहता है।

(3) जटिल कार्बनिक यौगिकों की आन्तरिक संरचना ज्ञात करने में।

स्फुरदीप्ति (Phosphorescence)

ऐसे पदार्थ जिन पर उच्च आवृत्ति (निम्न तरंग दैर्ध्य) का प्रकाश आपतित होता है तो वे उच्च आवृत्ति के प्रकाश का अवशोषण कर लेते हैं और अपेक्षाकृत कम आवृत्ति (i.e. उच्च तरंग दैर्ध्य) का प्रकाश उत्सर्जित करने लगते हैं। जब उन पर प्रकाश पड़ना बंद हो जाता है तब भी वे कुछ समय तक प्रकाश का उत्सर्जन करते रहते हैं, इस प्रक्रिया को स्फुरदीप्ति व ऐसे पदार्थों को स्फुरदीप्त पदार्थ कहते हैं।

जैसे-जिंक सल्फाइड (ZnS) के पर्दे पर जब हम नीला या पराबैगनी प्रकाश डालते हैं तो वह हरे रंग की स्फुरदीप्ति देता है। इसी प्रकार, कैल्सियम सल्फाइड, बेरियम सल्फाइड एवं जिंक सल्फाइड इत्यादि नीले रंग की स्फुरदीप्ति देते हैं। अधिकांश स्फुरदीप्त पदार्थ प्रतिदीप्ति के गुण भी देते हैं।

उपयोग (Usage)

स्फुरदीप्त (Phosphorescent) पदार्थों का लेप घड़ियों की सूइयों पर, बिजली के स्विचों पर तथा साइन बोर्डों पर किया जाता है। ये पदार्थ दिन में सूर्य का प्रकाश अवशोषित करते हैं तथा रात में स्फुरदीप्ति द्वारा चमकते हैं।

यह भी पढ़ें : इलेक्ट्रानिकी (Electronics)

FAQs

Q1. कैथोड किरणों की खोज किसने किया ?
Ans.
 जे.जे. टॉमसन ने।

Q2. धन किरणों या कैनाल किरणों की खोज किसने किया ?
Ans.
गोल्ड स्टीन ने।

Q3. प्रकाश वैद्युत प्रभाव की खोज किसने किया?
Ans.
हेनरिच हर्ज (1887)

Q4. आइंस्टीन को नोबेल पुरस्कार किस कार्य हेतु प्रदान किया गया था?
Ans.
प्रकाश वैद्युत प्रभाव की व्याख्या करने पर। (IAS)

Q5. देहली आवृत्ति किसे कहते हैं?
Ans
. प्रकाश की वह न्यूनतम आवृत्ति,जो किसी धातु की सतह से इलेक्ट्रानों का उत्सर्जन करने में सक्षम हो।

Q6. किसी धातु का कार्य फलन क्या है?
Ans.
किसी धातु की सतह से इलेक्ट्रानों को बाहर निकालने के लिए आवश्यक न्यूनतम गतिज ऊर्जा।

Q7. प्रकाश के कण-प्रकृति (Particle nature) की पुष्टि कैसे होती है?
Ans.
प्रकाश विद्युत प्रभाव से

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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