कोशिकीय श्वसन

सभी जीवधारियों को चाहे वह पौधा हो या सूक्ष्मजीवी या जन्तु, अपनी क्रियाशीलता (वृद्धि, गति, जल एवं खनिज पदार्थों का अवशोषण, इत्यादि) के लिए ऊर्जा की अनिवार्य रूप से आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा पौधों में विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थों में संचित रहती है। विभिन्न जैविक कार्यों के लिये आवश्यक यह ऊर्जा कार्बनिक पदार्थों मुख्यतः ग्लूकोस के ऑक्सीकरण के द्वारा उन्मुक्त (release) होती है। इस क्रिया में जटिल कार्बनिक पदार्थों के विघटन से ऊर्जा (energy), कार्बन डाईऑक्साइड CO2 और जल H2O का उत्पादन होता है। सभी जीवों में यह क्रिया श्वसन (respiration) द्वारा सम्पन्न होता है। इस क्रिया को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-

C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + 673 kcal

जीव-रासायनिक दृष्टि से निम्नलिखित समीकरण उपयुक्त है-

C6H12O6 + 6O2 + 10H2O + 38ADP + 38Pi → 6CO2 + 16H2O + 38ATP

श्वसन के समय पौधे वायुमण्डल से ऑक्सीजन O2 प्राप्त करते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड CO2 वायुमण्डल में निष्कासित करते हैं। श्वसन पौधों की सभी जीवित कोशाओं में निरन्तर होता रहता है। दिन के समय हरे पौधों में प्रकाश संश्लेषण भी होता है अतः श्वसन के द्वारा उत्पन्न होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड उसी समय प्रकाश-संश्लेषण के प्रयोग में आ जाती है। परन्तु प्रकाश- संश्लेषण में आवश्यक कार्बन डाइऑक्साइड की पूर्ति इस (श्वसन में उत्पन्न होने वाली) कार्बन डाइऑक्साइड से नहीं होती जिस कारण दिन के समय शेष आवश्यक CO2 वायुमण्डल से ली जाती है। इस प्रकार प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा उत्पन्न होने वाली O2 इतनी अधिक होती है कि उसमें से कुछ तो पौधों द्वारा श्वसन में प्रयोग में आ जाती है और शेष ऑक्सीजन वायुमण्डल में चली जाती है।

श्वसन के प्रकार (Types of Respiration)

श्वसन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। यथा-

1. ऑक्सी श्वसन (Aerobic Respiration)
2. अनॉक्सी श्वसन (Anaerobic Respiration)

जिस समय श्वसन स्वतन्त्र ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है तो इसे ऑक्सी-श्वसन (aerobic respiration) कहते हैं और ऐसी क्रिया करने वाले पौधों को ऑक्सी-जीव (aerobes) कहते हैं। इस क्रिया में खाद्य-पदार्थों का पूर्ण ऑक्सीकरण (complete oxida- tion) हो जाता है जिसके फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और जल (H₂O) बनते हैं तथा ऊर्जा मुक्त होती है। इस क्रिया में अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसे निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है-

C6H12O6 +6O2 → 6CO2 + 6H2O +673 kcal/mol

उत्पादित ऊर्जा एडिनोसीन डाई फास्फेट (ADP) के द्वारा अवशोषित होकर एडिनोसीन ट्राइफास्फेट (ATP) के रूप में एकत्रित हो जाती है और जरूरत पड़ने पर ATP का जलीय अपघटन* (hydrolysis) हो जाता है तथा पुनः ऊर्जा प्राप्त हो जाती है। श्वसन क्रिया को ऊपर सिर्फ एक समीकरण द्वारा दर्शाया गया है परन्तु यह अत्यन्त जटिल क्रिया है जो कि अन्य बहुत से पदों (steps) में पूरी होती है। सभी पदों को दो मुख्य चरणों में रखा गया है-

(1) ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis),
(2) क्रेब्स चक्र (Kreb’s Cycle)

इसके विपरीत जब श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है तो उसे अनॉक्सी-श्वसन (anaerobic respiration) कहते हैं और इस प्रकार के श्वसन करने वाले जीवों को अनॉक्सी-जीव (Anaerobes) कहते हैं। इस क्रिया में खाद्य-पदार्थों का अपूर्ण ऑक्सीकरण (incomplete oxidation) होता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और एथिल ऐल्कोहॉल (ethyl alcohol) बनते हैं।* कभी-कभी अन्य विभिन्न कार्बनिक पदार्थ, जैसे सिट्रिक अम्ल (citric acid), मैलिक अम्ल (malic acid), ऑक्सैलिक अम्ल (oxalic acid), ब्यूटिरिक अम्ल (butyric acid), लैक्टिक अम्ल (lactic acid) भी बनते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप अपेक्षाकृत बहुत कम ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस प्रकार के श्वसन को अन्तराणुक श्वसन (intramolecular respiration) भी कहते हैं। * यह क्रिया निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित होती है-

C6H12O6 → 2C2H5OH + 2CO2 + 28 kcal

अनेक उच्च वर्ग के पौधों के ऊतकों (tissues), अंकुरित होते हुए तथा एकत्रित बीज, फल जैसे सेब, आदि कुछ समय के लिये अस्थायी रूप से अनॉक्सी-श्वसन करते हैं। अनेक कवकों (fungi) तथा जीवाणुओं (bacteria) में इस प्रकार का श्वसन नियमित रूप से होता है।*

श्वसन की क्रिया-विधि (Mechanism of Respiration)

श्वसन की क्रियाविधि काफी जटिल है। इसके द्वारा भोज्य पदार्थो, विशेषकर शर्करा (sugar) का ऑक्सीकरण होता है जिससे कि शर्करा के अन्दर के ‘रासायनिक प्रतिबंध (Chemical bonds) टूटते हैं तथा हाइड्रोजन निकल जाती है। इसी के साथ-साथ ऊर्जा निकलती है जो ADP से ATP के बनाने में इस्तेमाल होती है। इस अवस्था में हाइड्रोजन आयन (ion) के रूप में विच्छेदित होकर इलेक्ट्रान (electrons) को निकालती है जिनका स्थानान्तरण होता है।

ऑक्सी तथा अनाक्सी श्वसन दोनों में ही कार्बोहाइड्रेट्स की टूट-फूट एक अवस्था तक ठीक एक जैसी होती है जिसमें कि पाइरुविक अम्ल का निर्माण होता है। इसके बाद पाइरुविक अम्ल का भविष्य ऑक्सीजन की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति पर निर्भर करता है। ऑक्सीजन की उपस्थिति में (ऑक्सी-श्वसन में) अन्तिम उत्पाद CO₂ तथा जल बनते हैं जबकि इसकी अनुपस्थिति में (अनाक्सी श्वसन में) CO₂ तथा एथिल एल्कोहल बनते हैं।

इस प्रकार श्वसन का उभयनिष्ठ अवस्था, जिसमें ग्लूकोज से पाइरुविक अम्ल का निर्माण होता है, ग्लाइकोलिसिस (glycolysis) कहलाती है।*

➤ आक्सीश्वसन (Aerobic Respiration)

कोशिकीय श्वसन सभी जीवित कोशिकाओं में होता रहता है। इसकी क्रिया-विधि सामान्यतः सभी छोटे-बड़े जीवों में एक समान होती है। इस क्रिया को अध्ययन की दृष्टि से निम्नलिखित दो भागों में बाँटते हैं-

1. ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis) तथा
2. क्रेब्स चक्र (Krebs cycle)।

1. ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis)-

कोशिकाओं में ग्लूकोज के जारण में प्रथम चरण ग्लाइकोलाइसिस होता है।* ये प्रक्रियाएँ कोशिकाद्रव्य में होती है जिसमें ग्लूकोज का एक अणु विघटित होकर पाइरुविक अम्ल के दो अणु बनाता है।* ग्लूकोज 6 कार्बन परमाणु वाला तथा पाइरुविक अम्ल 3 कार्बन परमाणु वाला यौगिक है। इन प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न ऊर्जा से चार ATP अणुओं का निर्माण होता है, किन्तु फास्फोरिलिकरण की अभिक्रियाओं को सम्पन्न करने के लिए दो ATP अणु पहले काम में आ चुके होते हैं। अतः उपलब्धि केवल दो ATP अणुओं की ही होती है। दो स्वतन्त्र H+ आयन भी प्राप्त होते हैं जो प्रायः NAD या NADP पर चले जाते हैं। ये क्रियाएँ एन्जाइम्स तथा सह-एन्जाइम्स की सहायता से श्रृंखलाबद्ध रूप में घटित होती है।

ग्लाइकोलाइसिस का सारांश निम्नलिखित समीकरण से प्रदर्शित कर सकते हैं-

C6H12O6 (ग्लूकोज) + 2ATP + 2ADP + 2H3PO4 +2NAD → 2CH3COCOOH (पाइरूविक अम्ल) +4ATP+2NADH2 + 2H2O

• ग्लाइकोलिसिस की पूर्ण अभिक्रिया में 4-2=2 ATP अणुओं का मूल लाभ होता है।

• ग्लाइकोलिसिस में NAD के दो अणु अपचयित होकर NADH2 के दो अणु बनाते हैं। जो बाद में ऑक्सी ढंग से आक्सीकृत होकर ATP के अणुओं का निर्माण करते हैं (एक NAD अणु के आक्सीकरण से 3 ATP के अणु बनते हैं)। अतः O₂ की उपस्थित में ग्लाइकोलिसिस की क्रिया में ATP के अणु दो से बढ़कर कुल आठ हो जाते हैं।*

2. क्रेब्स-चक्र (Kreb’s Cycle)-

एक अंग्रेज जीव रसायनज्ञ एच.ए. क्रेब्स (H.A. Krebs) ने सन् 1937-43 में इस चक्र का पता लगाया। इसीलिये इसे क्रेब्स चक्र (Kreb’s cycle) कहते हैं। उसकी इस खोज के लिए उन्हें नोबुल पुरस्कार (Nobel prize) दिया गया। क्रेब्स चक्र की सभी अभिक्रियायें माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria) में होती है तथा इसके द्वारा पायरुविक अम्ल (pyruvic acid), वसा अम्ल व वसा (fatty acids and fats) तथा अमीनो अम्ल (Amino acids) का ऑक्सीकरण होकर CO2 तथा जल बनता है। इस प्रकार यह चक्र कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन के उपापचय (metabolism) के सामान्य पथ (Common path) का प्रतिनिधित्व करता है।

इस चरण में ग्लाइकोलिसिस से प्राप्त पाइरुविक अम्ल के दोनों अणुओं का ऑक्सीजन की उपस्थिति में पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। इस चरण में होने वाले प्रमुख परिवर्तन निम्न प्रकार हैं। यथा-

(1) क्रेब्स चक्र में प्रवेश करने से पहले पाइरुविक अम्ल से CO2 के एक अणु का तथा दो हाइड्रोजन परमाणुओं का विमोचन होता है। बचा हुआ अणु, कोएन्जाइम-ए से संयुक्त होकर ऐसीटाइल कोएन्जाइम-ए बनाता है। यह प्रक्रिया ऑक्सीकृत डिकार्बोक्सिलेशन कहलाती है।*

(ii) ऐसीटाइल कोएन्जाइम-A अब कोशिका में उपस्थित ऑक्ज़लों ऐसीटिक अम्ल व जल से क्रिया करके साइट्रिक अम्ल बनाता है।

(iii) साइट्रिक अम्ल का क्रेब्स चक्र में धीरे-धीरे कई अभिक्रियाओं के माध्यम से क्रमबद्ध विघटन होता है। इन अभिक्रियाओं के फलस्वरूप कई मध्यवर्ती अम्ल बनते हैं (जैसे, ऑक्जैलोसक्सिनिक अम्ल, अल्फा-कीटोग्लूटेरिक अम्ल, सक्सिनिक अम्ल, फ्यूमेरिक अम्ल, मैलिक अम्ल)। इन परिवर्तनों के दौरान CO2 के 2 अणु व हाइड्रोजन के 8 परमाणु मुक्त होते हैं।

(iv) अन्त में मैलिक अम्ल का परिवर्तन ऑक्जैलोग्लिसरिक अम्ल में हो जाता है। यह पुनः दूसरे पाइरुविक अम्ल के अणु के साथ संयुक्त होकर क्रेब्स चक्र में पुनः प्रवेश करता है।*

इस प्रकार से एक क्रैब्स चक्र में पाइरुविक अम्ल के एक अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण द्वारा CO2 के 3 अणु निकलते हैं। क्योंकि एक ग्लूकोस अणु से पाइरुविक अम्ल के 2 अणु बनते हैं इस कारण ग्लूकोस के एक अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से CO₂ के 6 अणु निकलते हैं।

पूर्ण TCA cycle को संक्षेप में निम्नलिखित समीकरण द्वारा दर्शाया जा सकता है।

Acetyl-CoA+2H2O+3NAD+ +FAD+ +GDP + Pi →  2CoA.SH + 2CO2+3NAD.2H + FAD.H2 + GTP

चूँकि ग्लूकोस के एक अणु के विघटन से ऐसीटिल कोएन्जाइम के दो अणु बनते हैं अतः ग्लूकोस के एक अणु के अपघटन से उपरोक्त क्रिया 2 बार (twice the above) होती है-

TCA Cycle में कुल ऊर्जा लाभ =

• 6NAD.2H(NAD.2H → 3АТР) 18АТР

• 2GTP (GTP→ 1ATP) 2ATP

• 2FAD.H2 (FAD.H2→ 2ATP) 4АТР (24ATP)

➤ ग्लूकोज के ऑक्सी-श्वसन का सारांश

1. ग्लूकोज →2 पाइरुविक अम्ल

(ग्लाइकोलाइसिस) = 8ATP

2. 2 पाइरुविक अम्ल → 2 ऐसीटाइल कोएन्जाइम A-(2turns) = 6ATP

3. 2 ऐसीटाइल कोएन्जाइम A → 2 कोएन्जाइम (क्रेब्स चक्र)-(2 turns) = 24ATP
शुद्ध = 38 ATP

श्वसन-गुणांक (Respiratory-Quotient = R .Q )

श्वसन क्रिया में निष्कासित हुई CO2 गैस तथा अवशोषित O2 गैस के आयतनों के अनुपात (ratio) को श्वसन-गुणांक (respiratory quotient) कहते हैं। अतः

R.Q. = निष्कासित CO₂ का आयतन /अवशोषित O₂ का आयतन

श्वसन-गुणांक (R.Q.) का मान (value), श्वसन क्रिया में विघटित होने वाले पदार्थों की रासायनिक प्रकृति पर निर्भर करता है। अतः R.Q. का मापन करके यह ज्ञात किया जा सकता है कि श्वसन क्रिया में किस प्रकार के पदार्थ का ऑक्सीकरण हो रहा है। यदि श्वसन क्रिया में किसी भी प्रकार के कार्बोहाइड्रेट का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है तो R.Q. का मान ‘एक’ होता है। यदि फैट (वसीय) पदार्थ अथवा प्रोटीन का ऑक्सीकरण होता है तो R.Q. सर्वदा एक से कम (0.5-0.9) होता है। इसके विपरीत यदि कार्बनिक अम्लों का ऑक्सीकरण होता है तो R.Q. सर्वदा एक से अधिक (1.3-4.0) होता है।* नागफनी इत्यादि गूदेदार-रसदार (succulents) पौधों में कार्बोहाइड्रेट के अपूर्ण ऑक्सीकरण से CO2 उत्पन्न नहीं होती वरन् मैलिक अम्ल (malic acid) का संश्लेषण होता है। अतः R.Q. का मान शून्य (zero) होता है। अनॉक्सी-श्वसन में R.Q. का मान अनन्त (infinite) होता है। ध्यातव्य है कि R.Q. का मापन गैनांग श्वसन-मापी द्वारा किया जाता है।*

प्रकाश-श्वसन (Photorespiration)

प्रकाश-श्वसन (photorespiration) क्रिया अधिकतर हरे पौधों (C3 plants) में केवल तीव्र प्रकाश की उपस्थिति में होती है। इस क्रिया में पौधें ऑक्सीजन (O2) ग्रहण कर कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का निष्कासन करते हैं। इस पूर्ण क्रिया में हरिमकणक (chloroplast), माइटोकॉण्ड्रिया (mitochondria) तथा परऑक्सीसोम्स (peroxisomes) तीन कोशिकांगों (cell organelles) की आवश्यकता होती है। यह क्रिया पौधों में दिन के समय अधिक तापक्रम एवं अधिक प्रकाश की उपस्थिति में होती है। पत्ती में जब कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की अपेक्षा ऑक्सीजन (O₂) की सान्द्रता बढ़ जाती है तब प्रकाश-श्वसन (photorespiration) की क्रिया प्रभाव में आती है। इस क्रिया द्वारा पौधे ऑक्सीजन की अधिक मात्रा को CO₂ में बदलकर की सान्द्रता को CO₂ की अपेक्षा कम कर देते हैं। जिससे सामान्य प्रकाश-संश्लेषण क्रिया सुचारू रूप से कार्य करने लगती है। इस क्रिया में भोजन का विघटन तो होता है, परन्तु एटीपी (ATP) का निर्माण नहीं होता, अतः यह नष्टकारी क्रिया (waste- ful process) है।* इस क्रिया में NAD का अपचयन (reduction) भी नहीं होता। इस क्रिया में उत्पन्न ऊर्जा, ऊष्मा (heat) के रूप में विकिरित हो जाती है।

किण्वन (Fermentation)

किण्वन वह क्रिया है, जिसमें सूक्ष्म जीव ग्लूकोज या शर्करा का अपूर्ण विघटन (incomplete oxidation) करके CO₂ (कार्बन डाइ-ऑक्साइड) तथा सरल कार्बनिक पदार्थों जैसे-ऐसीटिक ऐसिड, लैक्टिक ऐसिड, ऐल्कोहॉल इत्यादि का निर्माण करते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप कुछ ऊर्जा भी मुक्त होती है।

किण्वन, अनॉक्सी श्वसन का ही एक प्रकार है, जो सूक्ष्मजीवों द्वारा सम्पादित होता है। सूक्ष्मजीव विभिन्न प्रकार के एन्जाइम्स पैदा करते हैं, जो विकसित होकर कोशिका से बाहर आ जाते हैं तथा शर्करा का अपघटन कर देते हैं। किण्वन का नामकरण उसके फलस्वरूप बने पदार्थ के नाम पर किया जाता है।

किण्वन के कुछ प्रमुख उदाहरण अधोलिखित हैं :

1. ब्यूटेरिक ऐसिड किण्वन : इस प्रकार के किण्वन में बैसिलस ब्यूटीरिकस एवं क्लॉस्ट्रीडियम ब्यूटीरिकम नामक जीवाणु शर्करा का किण्वन करके ब्यूटीरिक अम्ल बनाते हैं।

2. लैक्टिक ऐसिड किण्वन : इस प्रकार के किण्वन में लैक्टोबैसिलस लैक्टाई नामक जीवाणु दूध की शर्करा लैक्टोज या ग्लूकोज को लैक्टिक अम्ल (दही) में बदल देता है।

3. ऐल्कोहॉली किण्वन : इस प्रकार के किण्वन में यीस्ट नामक कवक के द्वारा उत्पादित एन्जाइम, जाइमेज, ग्लूकोज को इथाइल ऐल्कोहॉल तथा CO₂ में परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार के किण्वन का उपयोग शराब बनाने में किया जाता है।* ऐल्कोहॉली किण्वन के कुछ अन्य उपयोग इस प्रकार हैं :

(i) औषधियां बनाने में।
(ii) बियर बनाने में।
(iii) प्लास्टिक, रंग, साबुन, रेजिन एवं ईथर के निर्माण में
(iv) ईंधन के रूप में इथाइल ऐल्कोहॉल को गैसोलीन के साथ मिलाकर कार, हवाई जहाज एवं अन्य इंजनों में ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।

मिस्र के निवासी 4000ई.पू. यीस्ट का प्रयोग डबलरोटी बनाने में करते थे।

➤ श्वसन क्रिया को प्रभावित करने वाले कारक

1. कार्बन डाइऑक्साइड : प्रकृति में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने पर श्वसन दर कम हो जाती है।

2. प्रकाश : प्रकाश की उपस्थिति में श्वसन दर बढ़ जाती है।

3. आक्सीजन : आक्सीजन की मात्रा बढ़ने-घटने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता जब तक आक्सीजन की मात्रा 19% से ऊपर हो।

4. तापक्रम : 0°C से 30°C तक ताप बढ़ने पर श्वसन की दर लगातार बढ़ती रहती है।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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