मुख्यमंत्री : 27

संविधान द्वारा सरकार की संसदीय व्यवस्था में राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जबकि मुख्यमंत्री वास्तविक। दूसरे शब्दों में, राज्यपाल राज्य का मुखिया होता है, जबकि मुख्यमंत्री सरकार का। इस तरह राज्य में मुख्यमंत्री की स्थिति उसी तरह है, जिस तरह केंद्र में प्रधानमंत्री की।

मुख्यमंत्री की नियुक्ति

संविधान में मुख्यमंत्री की नियुक्ति और उसके निर्वाचन के लिए कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है। केवल अनुच्छेद 164 में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि राज्यपाल किसी भी व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र है। संसदीय व्यवस्था में राज्यपाल, राज्य विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही मुख्यमंत्री नियुक्त करता है लेकिन यदि किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री की नियुक्ति में अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। ऐसी परिस्थिति में राज्यपाल सबसे बड़े दल या दलों के समूह के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है और उसे एक माह के भीतर सदन में विश्वास मत प्राप्त करने के लिए कहता है।

राज्यपाल अपने व्यक्तिगत फैसले द्वारा मुख्यमंत्री की नियुक्ति तब कर सकता है, जब कार्यकाल के दौरान उसकी मौत हो जाए और कोई उत्तराधिकारी तय न हो। हालांकि मुख्यमंत्री की नियुक्ति के पश्चात सत्तारूढ़ दल सामान्यतः नये नेता का चुनाव कर लेता है और राज्यपाल के पास उसे मुख्यमंत्री नियुक्त करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता।

संविधान में ऐसी कोई अपेक्षा नहीं है कि मुख्यमंत्री नियुक्त होने से पूर्व कोई व्यक्ति बहुमत सिद्ध करे। राज्यपाल पहले उसे बतौर मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकता है फिर एक उचित समय के भीतर बहुमत सिद्ध करने को कह सकता है। ऐसा बहुत से मामलों में हो चुका है।

एक ऐसे व्यक्ति को जो राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं भी हो, छह माह के लिए मुख्यमंत्री नियुक्त किया जा सकता है। इस समय के दौरान उसे राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचित होना पड़ेगा, ऐसा न होने पर उसका मुख्यमंत्री का पद समाप्त हो जाएगा।

संविधान के अनुसार, मुख्यमंत्री को विधानमंडल के दो सदनों में से किसी एक का सदस्य होना अनिवार्य है। सामान्यतः मुख्यमंत्री निचले सदन (विधानसभा) से चुना जाता है लेकिन अनेक अवसरों पर उच्च सदन (विधान परिषद) के सदस्य को भी बतौर मुख्यमंत्री – नियुक्त किया गया है।

शपथ, कार्यकाल एवं वेतन

कार्य ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल उसे पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है।

अपनी शपथ में मुख्यमंत्री कहता है किः

1. मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और सत्यनिष्ठा रखूंगा।

2. भारत की प्रभुता और अखंडता बनाए रखूंगा।

3. वह अपने दायित्वों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निवर्हन करेगा।

4. मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा।

अपनी शपथ में मुख्यमंत्री वचन देता है कि जो विषय राज्य के मंत्री के रूप में मेरे विचार में लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को तब के सिवाए जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूंगा।

मुख्यमंत्री का कार्यकाल निश्चित नहीं है और वह राज्यपाल के प्रसादपर्यंत अपने पद पर रहता है। यद्यपि इसका तात्पर्य यह नहीं है कि राज्यपाल उसे किसी भी समय बर्खास्त कर सकता है। राज्यपाल द्वारा उसे तब तक बर्खास्त नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसे विधानसभा में बहुमत प्राप्त है’, लेकिन यदि वह विधानसभा में वह विश्वास खो देता है तो उसे त्यागपत्र दे देना चाहिए अन्यथा राज्यपाल उसे बर्खास्त कर सकता है।

मुख्यमंत्री के वेतन एवं भत्तों का निर्धारण राज्य विधानमंडल द्वारा किया जाता है। राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदस्य को मिलने वाले वेतन-भत्तों सहित उसे व्यय विषयक भत्ते, निःशुल्क आवास, यात्रा भत्ता और चिकित्सा सुविधायें आदि मिलती हैं।

मुख्यमंत्री के कार्य एवं शक्तियां

मुख्यमंत्री के कार्य एवं शक्तियों का विवेचन हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर कर सकते हैं:

मंत्रिपरिषद के संदर्भ में

मुख्यमंत्री राज्य मंत्रिपरिषद के मुखिया के रूप में निम्न शक्तियों का प्रयोग करता है:

1. राज्यपाल उन्हीं लोगों को मंत्री नियुक्त करता है, जिनकी सिफारिश मुख्यमंत्री ने की हो।

2. वह मंत्रियों के विभागों का वितरण एवं फेरबदल करता है।

3. मतभेद होने पर वह किसी भी मंत्री से त्यागपत्र देने के लिए कह सकता है या राज्यपाल को उसे बर्खास्त करने का परामर्श दे सकता है।

4. वह मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता कर इसके फैसलों को प्रभावित करता है।

5. वह सभी मंत्रियों के क्रियाकलापों में सहयोग, नियंत्रण, निर्देश और मार्गदर्शन देता है।

6. अपने कार्य से त्यागपत्र देकर वह पूरी मंत्रिपरिषद को समाप्त कर सकता है। चूंकि मुख्यमंत्री, मंत्रिपरिषद का मुखिया होता है, उसके इस्तीफे या मौत के कारण मंत्रिपरिषद अपने आप ही विघटित हो जाती है। दूसरी ओर यदि किसी मंत्री का पद रिक्त होता है तो मुख्यमंत्री उसे भर या नहीं भी भर सकता।

राज्यपाल के सम्बन्ध में

राज्यपाल के संबंध में मुख्यमंत्री को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं:

(अ) राज्यपाल एवं मंत्रिमरिषद के बीच संवाद का वह प्रमुख तंत्र है। मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य है कि वहः

1. राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रिपरिषद् के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित करे।

2. राज्य के कार्यों के प्रशसन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी राज्यपाल मांगे, वह दे, और

3. किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने निश्चिय कर दिया है किन्तु मंत्रिपरिषद् ने विचार नहीं किया है, राज्यपाल द्वारा अपेक्षा किए जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिए रखे।

(ब) वह महत्वपूर्ण अधिकारियों, जैसे-महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों और राज्य निर्वाचन आयुक्त आदि की नियुक्ति के संबंध में राज्यपाल को परामर्श देता है।

राज्य विधानमंडल के संबंध में

सदन के नेता के नाते मुख्यमंत्री को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं:

(अ) वह राज्यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाने एवं उसे स्थगित करने के संबंध में सलाह देता है।

(ब) वह राज्यपाल को किसी भी समय विधानसभा विघटित करने की सिफारिश कर सकता है।

(स) वह सभापटल पर सरकारी नीतियों की घोषणा करता है।

अन्य शक्तियां एवं कार्य

उपरोक्त शक्तियों एवं कार्यों के अलावा मुख्यमंत्री के निम्नलिखित कार्य भी हैं:

(अ) वह राज्य योजना बोर्ड का अध्यक्ष होता है।

(ब) वह संबंधित क्षेत्रीय परिषद के क्रमवार उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करता है। एक समय में इसका कार्यकाल एक वर्ष का होता है।

(स) वह अन्तरराज्यीय परिषद और राष्ट्रीय विकास परिषद का सदस्य होता है। इन दोनों परिषदों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।

(द) वह राज्य सरकार का मुख्य प्रवक्ता होता है।

(इ) आपातकाल के दौरान राजनीतिक स्तर पर वह मुख्य प्रबंधक होता है।

(फ) राज्य का नेता होने के नाते वह जनता के विभिन्न वर्गों से मिलता है और उनसे उनकी समस्याओं आदि के संबंध में ज्ञापन प्राप्त करता है,

(ज) वह सेवाओं का राजनीतिक प्रमुख होता है।

इस तरह वह राज्य प्रशासन में बहुत महत्वपूर्ण एवं अहम भूमिका अदा करता है। हालांकि राज्यपाल का विवेकाधिकार राज्य प्रशासन में मुख्यमंत्री की कुछ शक्तियों, प्राधिकार, प्रमुख, प्रतिष्ठा स्थिति आदि में कटौती कर सकता है।

राज्यपाल के साथ संबंध

संविधान में राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री के बीच संबंधों से संबंधित निम्नलिखित उपबंध हैं:

1. अनुच्छेद 163 : जिन बातों में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करे उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद होगी, जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा।

2. अनुच्छेद 164:

(अ) मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही करेगा।

(ब) मंत्रि राज्यपाल के प्रसारपर्यंत अपना पद धारण करेंगे, और

(स) मंत्रिपरिषद की सामूहिक जिम्मेदारी राज्य विधानसभा के प्रति होगी।

3. अनुच्छेद 167 : मुख्यमंत्री का कर्तव्य है कि वह

(क) राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रिपरिषद् के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित करे।

(ख) राज्य के कार्यों के प्रशसन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी राज्यपाल मांगे, वह दे, और

(ग) किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने निश्चिय कर दिया है किन्तु मंत्रिपरिषद् ने विचार नहीं किया है, राज्यपाल द्वारा अपेक्षा किए जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिए रखे।

तालिका 27.1 मुख्यमंत्री से संबंधित अनुच्छेद, एक नजर में

अनुच्छेदविषय-वस्तु
163मंत्रिपरिषद द्वारा राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देना
164मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान
165राज्य सरकार द्वारा कार्यवाही संचालन
167राज्यपाल को सूचना प्रदान करने से संबंधित मुख्यमंत्री के दायित्व

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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