नागरिकता : 6

अर्थ एवं महत्व

किसी अन्य आधुनिक राज्य की तरह भारत में दो तरह के लोग हैं, नागरिक और विदेशी। नागरिक भारतीय राज्य के पूर्ण सदस्य होते हैं और उनकी इस पर पूर्ण निष्ठा होती है। इन्हें सभी सिविल और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। दूसरी ओर, विदेशी किसी अन्य राज्य के नागरिक होते हैं इसलिए उन्हें सभी नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। इनकी दो श्रेणियां होती हैं- विदेशी मित्र एवं विदेशी शत्रु। विदेशी मित्र वे होते हैं, जिनके भारत के साथ सकारात्मक संबंध होते हैं। विदेशी शत्रु वे हैं, जिनके साथ भारत का युद्ध चल रहा हो। उन्हें कम अधिकार प्राप्त होते हैं तथा वे गिरफ्तारी और नजरबंदी के विरुद्ध सुरक्षित नहीं होते (अनुच्छेद 22) ।

संविधान भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार एवं विशेषाधिकार प्रदान करता है। विदेशियों को नहीं:

1. धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 15) ।

2. लोक नियोजन के विषय में समता का अधिकार (अनुच्छेद 16) ।

3. वक् स्वातंत्र्य एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सम्मेलन, संघ, संचरण, निवास व व्यवसाय की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) ।

4. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 व 30) ।

5. लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान का अधिकार।

6. संसद एवं राज्य विधानमंडल की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार।

7. सार्वजनिक पदों, जैसे- राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राज्यों के राज्यपाल, महान्यायवादी एवं महाधिवक्ता की योग्यता रखने का अधिकार।

उपरोक्त अधिकारों के साथ नागरिकों को भारत के प्रति कुछ कर्तव्यों का भी निर्वहन करना होता है। उदाहरण के लिए कर भुगतान, राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान का सम्मान, देश की रक्षा आदि।

भारत में नागरिक जन्म से या प्राकृतिक रूप से राष्ट्रपति बनने की योग्यता रखते हैं, जबकि अमेरिका में केवल जन्म से नागरिक ही राष्ट्रपति बन सकता है।

संवैधानिक उपबंध

संविधान के भाग-II में अनुच्छेद 5 से 11 तक में नागरिकता के बारे में चर्चा की गई है। इस संबंध में इसमें स्थायी और विस्तृत उपबंध नहीं हैं, यह सिर्फ उन लोगों की पहचान करता है, जो संविधान लागू होने के समय (अर्थात् 26 जनवरी, 1950) भारत के नागरिक बने। इसमें न तो इनके अधिग्रहण एवं न ही नागरिकता की हानि की चर्चा की गई है। यह संसद को इस बात का अधिकार देता है कि वह नागरिकता से संबंधित मामलों की व्यवस्था करने के लिए कानून बनाए। इसी प्रकार संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 को लागू किया, जिसका 1986, 1992, 2003 और 2005 में संशोधन किया गया।

संविधान निर्माण के उपरांत (26 जनवरी, 1950) संविधान के अनुसार चार श्रेणियों के लोग भारत के नागरिक बनेः

1. एक व्यक्ति, जो भारत का मूल निवासी है और तीन में से कोई एक शर्त पूरी करता है। ये शर्तें हैं- यदि उसका जन्म भारत में हुआ हो, या उसके माता-पिता में से किसी एक का जन्म भारत में हुआ हो या संविधान लागू होने के पांच वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो।

2. एक व्यक्ति, जो पाकिस्तान से भारत आया हो और यदि उसके माता-पिता या दादा-दादी अविभाजित भारत में पैदा हुए हों और निम्न दो में से कोई एक शर्त पूरी करता हो, वह भारत का नागरिक बन सकता है- यदि वह 19 जुलाई, 1948 से पूर्व स्थानांतरित हुआ हो, अपने प्रवसन की तिथि से उसने सामान्यतः भारत में निवास किया हो; और यदि उसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके बाद भारत में प्रवसन किया हो तो वह भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हो, लेकिन ऐसे व्यक्ति का पंजीकृत होने के लिए छह माह तक भारत में निवास आवश्यक है (अनुच्छेद 6)।

3. एक व्यक्ति, जो 1 मार्च, 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान स्थानांतरित हो गया हो, लेकिन बाद में फिर भारत में पुनर्वास के लिए लौट आए तो वह भारत का नागरिक बन सकता है। उसे पंजीकरण प्रार्थना-पत्र के बाद छह माह तक रहना होगा’ (अनुच्छेद 7)।

4. एक व्यक्ति, जिसके माता-पिता या दादा-दादी अविभिाजित भारत में पैदा हुए हों लेकिन वह भारत के बाहर रह रहा हो। फिर भी वह भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसने भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण कूटनीतिज्ञ तरीके या पार्षदीय प्रतिनिधि के रूप में आवेदन किया हो। यह व्यवस्था भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों के लिए बनाई गई है ताकि वे भारत की नागरिका ग्रहण कर सकें (अनुच्छेद 8)।

कुल मिलाकर ये व्यवस्थाएं, नागरिकों की चर्चा करती हैं-(i) व्यक्ति जो भारत का मूल निवासी हो, (ii) व्यक्ति पाकिस्तान से स्थानांतरित हुआ हो, (iii) व्यक्ति पाकिस्तान स्थानांतरित हुआ हो, लेकिन बाद में लौट आया हो, (iv) भारतीय मूल का व्यक्ति जो बाहर रह रहा हो।

नागरिकता संबंधी अन्य संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार हैं-

1. वह व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं होगा या भारत का नागरिक नहीं माना जायेगा, जो स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर लेगा (अनुच्छेद 9) ।

2. प्रत्येक व्यक्ति, जो भारत का नागरिक है या समझा जाता है, यदि संसद इस प्रकार के किसी विधान का निर्माण करे (अनुच्छेद 10) ।

3. संसद को यह अधिकार है कि वह नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में विधि बना सकती है (अनुच्छेद 11) ।

नागरिकता अधिनियम, 1955

नागरिकता अधिनियम (1955) संविधान लागू होने के बाद अर्जन एवं समाप्ति के बारे में उपबंध करता है। इस अधिनियम को अब तक चार बार संशोधित किया गया है। ये संशोधन इस प्रकार हैं:

1. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1986
2. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1992
3. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003
4. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2005

नागरिकता का अर्जन

नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने की पाँच शर्तें बताता है, जैसे-जन्म, वंशानुगत, पंजीकरण, प्राकृतिक एवं क्षेत्र समावष्टि करने के आधार पर।

1. जन्म से : भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद परन्तु 1 जुलाई, 1947 से पूर्व जन्मा व्यक्ति अपने माता- पिता के जन्म की राष्ट्रीयता के बावजूद भारत का नागरिक होगा। भारत में 1 जुलाई को या उसके बाद जन्मा व्यक्ति केवल तभी भारत का नागरिक माना जाएगा, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।

इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति का जन्म 3 दिसंबर, 2004 के बाद भारत में हुआ हो तो वह उसी दशा में भारत का नागरिक माना जायेगा, यदि उसके माता-पिता दोनों उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों या माता या पिता में से एक उस समय भारत का नागरिक हो तथा दूसरा अवैध प्रवासी न हो।

भारत में पदस्थ विदेशी राजनयिक एवं शत्रु देश के बच्चों को भारत की नागरिकता अर्जन करने का अधिकार नहीं है।

2. वंश के आधार पर : कोई व्यक्ति जिसका जन्म 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद परन्तु 10 दिसम्बर, 1992 से पूर्व भारत के बाहर हुआ हो वह वंश के आधार पर भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसके जन्म के समय उसका पिता भारत का नागरिक हो। यदि 10 दिसंबर, 1992 को या उसके बाद यदि किसी व्यक्ति का जन्म देश से बाहर हुआ हो तो वह तभी भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।

3 दिसंबर, 2004 के बाद भारत से बाहर जन्मा कोई व्यक्ति वंश के आधार पर भारत का नागरिक नहीं हो सकता, यदि उसके जन्म के एक वर्ष के भीतर भारतीय कांसुलेट में उसके जन्म का पंजीकरण न करा दिया गया हो या केंद्र सरकार की सहमति से उक्त अवधि के बाद पंजीकरण न हुआ हो। इस प्रकार के बच्चे का भारतीय कांसुलेट में पंजीकरण कराते समय आवेदन पत्र में माता-पिता को इस आशय का शपथ-पत्र देना होगा कि उनके बच्चे के पास किसी अन्य देश का पासपोर्ट नहीं है।

3 . पंजीकरण द्वारा : केन्द्र सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी व्यक्ति (अवैध प्रवासी न हो) को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है, यदि वह निम्नांकित श्रेणियों में से किसी से संबंद्ध हो, नामतः

(क) भारतीय मूल का व्यक्ति, जो नागरिकता प्राप्ति का आवेदन देने से ठीक पूर्व सात वर्ष भारत में रह चुका हो।

(ख) भारतीय मूल का वह व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर या किसी अन्य देश में अन्यत्र रह रहा हो।

(ग) वह व्यक्ति जिसने भारतीय नागरिक से विवाह किया हो और वह पंजीकरण के लिए प्रार्थनापत्र देने से पूर्व सात वर्ष से भारत में रह रहा हो।

(घ) भारत के नागरिक के नाबालिग बच्चे ।

(ङ) कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा उसके माता-पिता भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हों।

(च) कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा वह या उसके माता-पिता स्वतंत्र भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हों या वह पंजीकरण का इस प्रकार का आवेदन देने से एक वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो।

(छ) कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा वह समुद्र पार किसी देश के नागरिक के रूप में पांच वर्ष से पंजीकृत हो या तथा वह पंजीकरण का इस प्रकार का आवेदन देने से एक वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो।

इस प्रकार के व्यक्ति को मूलतः भारत का निवासी माना जा सकता है, यदिः

(i) वह पंजीकरण का इस प्रकार का आवेदन देने से बारह माह पूर्व से भारत में रह रहा हो।

(ii) भारत में वह आठ वर्ष पूर्व से रह रहा हो तथा इस प्रकार का आवेदन देने के ठीक पहले से कम से कम 12 माह पूर्व से वह भारत में रह रहा हो।

एक व्यक्ति जन्म से भारतीय मूल का माना जायेगा, यदि वह या उसके माता-पिता में से कोई अविभाजित भारत में पैदा हुये हों या 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का अंग बनने वाले किसी भू-क्षेत्र के निवासी हों।

उपरोक्त सभी श्रेणियों के लोगों को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत होने के बाद निष्ठा की शपथ लेनी होगी। यह शपथ इस प्रकार होगी:

“मैं अमुक…………… . यह प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं भारत के संविधान का पालन करूंगा तथा उसके प्रति निष्ठा रखूंगा। मैं भारत की विधि का पालन करूंगा तथा भारत के नागरिक के दायित्वों का निवर्हन् करूंगा।”

1986 में नागरिकता अधिग्रहण (पंजीकरण द्वारा) काल को बढ़ाकर 6 माह से 5 वर्ष तक कर दिया गया।

4. प्राकृतिक रूप सेः केंद्र सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी व्यक्ति (अवैध प्रवासी न हो) प्राकृतिक रूप से नागरिकता प्रमाण-पत्र प्रदान कर सकती है। यदि वह व्यक्ति निम्नलिखित योग्यताएं रखता है:

(क) ऐसे देश से संबंधित नहीं हो, जहां भारतीय नागरिक प्राकृतिक रूप से नागरिक नहीं बन सकते।

(ख) कि यदि वह किसी अन्य देश का नागरिक हो तो वह भारतीय नागरिकता के लिए अपने आवेदन की स्वीकृति पर उस देश की नागरिकता को त्याग देगा।

(ग) यदि वह भारत में रह रहा हो या भारत सरकार की सेवा में हो या इनमे से थोड़ा कोई एक और थोड़ा कोई अन्य हो तो उसे नागरिकता संबंधी आवेदन देने के कम से कम 12 माह पूर्व से भारत में रह रहा होना चाहिए।

(घ) यदि 12 माह की इस अवधि से 14 वर्ष पूर्व से वह भारत में रह रहा हो या भारत सरकार की सेवा में हो या इनमें से थोड़ा एक में और थोड़ा अन्य में हो, इनकी कुल अवधि ग्यारह वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।

(ङ) उसका चरित्र अच्छा होना चाहिए।

(च) कि वह संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं का अच्छा ज्ञाता हो’ ।

(छ) कि उसे प्राकृतिक रूप से नागरिकता का प्रमाणपत्र प्रदान किए जाने की स्थिति में, वह भारत में रहने का इच्छुक हो या भारत सरकार सेवा या किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन में जिसका भारत सदस्य हो या भारत में स्थापित किसी सोसायटी, कंपनी या व्यक्तियों का निकाय हो में प्रवेश या उसे जारी रखे ।

हालांकि भारत सरकार उपरोक्त प्राकृतिक शर्तों के मामलों पर एक या सभी पर दावा हटा सकती है यदि व्यक्ति की विशेष सेवा विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य, विश्व शांति या मानव उन्नति से संबद्ध हो। इस प्रकार से नागरिक बने हर व्यक्ति को भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होगी।

5. क्षेत्र समाविष्टि द्वारा : किसी विदेशी क्षेत्र द्वारा भारत का हिस्सा बनने पर भारत सरकार उस क्षेत्र से संबंधित विशेष व्यक्तियों को भारत का नागरिक घोषित करती है। ऐसे व्यक्ति उल्लिखित तारीख से भारत के नागरिक होते हैं। उदाहरण के लिए, जब पांडिचेरी, भारत का हिस्सा बना, तो भारत सरकार ने नागरिकता (पांडिचेरी) आदेश, 1962 जारी किया। यह आदेश नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत जारी किया गया।

नागरिकता की समाप्ति

नागरिकता अधिनियम, 1955 में अधिनियम या संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार प्राप्त नागरिकता खोने के तीन कारण बताए गए हैं- त्यागना, बर्खास्तगी या वंचित करना होना।

1. स्वैच्छिक त्याग : एक भारतीय नागरिक जो पूर्ण आयु और क्षमता का हो। ऐसी घोषणा के उपरांत वह भारत का नागरिक नहीं रहता। अपनी नागरिकता को त्याग सकता है। यदि इस तरह की घोषणा तब हो जब भारत युद्ध में व्यस्त हो तो केंद्र सरकार इसके पंजीकरण को एकतरफ रख सकती है। जब कोई व्यक्ति अपनी नागरिकता का परित्याग करता है। तो उस व्यक्ति का प्रत्येक नाबालिग बच्चा भारतीय नागरिक नहीं रहता, यद्यपि इस तरह के बच्चे की उम्र 18 वर्ष भारतीय होने पर वह भारतीय नागरिक बन सकता है।

2. बर्खास्तगी के द्वाराः यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किस अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वयं बर्खास्त हो जाएगी। हालांकि यह व्यवस्था तब लागू नहीं होगी जब भारत युद्ध में व्यस्त हो।

3. वंचित करने द्वाराः केंद्र सरकार द्वारा भारतीय नागरिक को आवश्यक रूप से बर्खास्त करना होगा यदिः

(i) यदि नागरिकता फर्जी तरीके से प्राप्त की गयी हो।

(ii) यदि नागरिक ने संविधान के प्रति अनादर जताया हो।

(iii) यदि नागरिक ने युद्ध के दौरान शत्रु के साथ गैर- कानूनी रूप से संबंध स्थापित किया हो या उसे कोई राष्ट्रविरोधी सूचना दी हो।

(iv) पंजीकरण या प्राकृतिक नागरिकता के पांच वर्ष के दौरान नागरिक को किसी देश में दो वर्ष की कैद हुई हो।

(v) नागरिक सामान्य रूप से भारत के बाहर सात वर्षों से रह रहा हो।

एकल नागरिकता

यद्यपि भारतीय संविधान संघीय है और इसने दोहरी राजपद्धति (केंद्र एवं राज्य) को अपनाया है, लेकिन इसमें केवल एकल नागरिकता की व्यवस्था की गई है अर्थात् भारतीय नागरिकता। यहां राज्यों के लिए कोई पृथक् नागरिकता की व्यवस्था नहीं है। अन्य संघीय राज्यों, जैसे-अमेरिका एवं स्विट्जरलैंड में दोहरी नागरिकता व्यवस्था को अपनाया गया है।

अमेरिका में प्रत्येक व्यक्ति न केवल अमेरिका का नागरिक है, वरन उस राज्य विशेष का भी नागरिक है जहां वह रहता है। इस तरह उसे दोहरी नागरिकता प्राप्त है और इसी संदर्भ में उसे राष्ट्रीय सरकार एवं राज्य सरकार के दोहरे अधिकार प्राप्त हैं। यह व्यवस्था भेदभाव की समस्या पैदा कर सकती है। जैसा कि राज्य अपने नागरिकों के प्रति भेदभाव बरत सकता है। यह भेदभाव मताधिकार, सार्वजनिक पदों, व्यवसाय आदि को लेकर हो सकता है। ऐसी समस्या को दूर करने के लिए ही भारत में एकल नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया गया।

भारत में सभी नागरिकों को, चाहे उनका जन्म कहीं और निवास कहीं और हो, पूरे देश में समान नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं। उनके बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता। हालांकि भेदभाव रहित इस व्यवस्था में कुछ अपवाद भी हैं:

1. संसद (अनुच्छेद 16 के तहत) ऐसी व्यवस्था कर सकती है कि किसी राज्य विशेष में रहने वाले लोगों को कुछ नौकरियों या नियुक्तियों में अलग सुविधा मिले। यह सुविधा उस राज्य या केंद्र शासित क्षेत्र के तहत स्थानीय या अन्य प्रशासन के तहत हो सकती है। संसद ने इसी से संबंधित सार्वजनिक रोजगार (निवासी के रूप में जरूरत) अधिनियम, 1957 को प्रभावी बनाया। भारत सरकार को यह अधिकार दिया गया कि गैर-राजपत्रित पदों पर नियुक्ति के लिए आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा के लिए निवास की अनिवार्यता करे। जैसा कि यह अधिनियम 1974 में समाप्त हो गया, उसके बाद आंध्र प्रदेश को छोड़कर किसी भी राज्य में ऐसी व्यवस्था नहीं है।

2. संविधान (अनुच्छेद 15) किसी भी नागरिक के खिलाफ धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या निवास के आधार पर भेदभाव करने पर प्रतिबंध लगाता है। इसका अभिप्राय है कि निवास के आधार पर राज्य किसी को विशेष सुविधा दे सकता है, जो कि संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के सीमा क्षेत्र में आने वाला मामला न हो। उदाहरण के लिए एक राज्य अपने निवासियों के लिए शैक्षणिक शुल्क में छूट दे सकता है।

3. निवास एवं घूमने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 के अंतर्गत) अनुसूचित जनजातियों के हित में सुरक्षा का विषय है। दूसरे शब्दों में, जनजातीय क्षेत्रों में प्रवेश एवं निवास प्रतिबंधित है। निश्चित रूप से ऐसी व्यवस्था उनकी विशेष संस्कृति, भाषा, रिवाज आदि को बचाने के लिए किया गया है। यही नहीं, यह व्यवस्था उनकी संपत्ति एवं परंपरा को बचाने एवं उनके शोषण के विरुद्ध सुरक्षा कवच है।

4. जम्मू एवं कश्मीर के मामले में राज्य विधान मंडल को यह शक्ति दी गई है कि वह स्थायी निवासियों की व्याख्या करे और राज्य सरकार के तहत रोजगार एवं अधिकार मामले में उन्हें विशेष सुविधाएं दे। ये सुविधाएं राज्य में संपत्ति अधिग्रहण, राज्य में निवास और छात्रवृत्ति या अन्य सरकारी व्यवस्थाओं के अनुसार हो सकती हैं।

भारत का संविधान, कनाडा की तरह एकल नागरिकता का उपबंध करता है और एकीकृत अधिकार (कुछ मामलों को छोड़कर) प्रदान करता है। यह व्यवस्था भाई-चारे और लोगों के बीच एकता बनाए रखने के लिए की गई, ताकि एक शक्तिशाली भारतीय राष्ट्र की स्थापना हो सके। इसके बावजूद भारत में सांप्रदायिक दंगे, वर्ग संघर्ष, जातीय युद्ध, भाषायी विवाद आदि होते रहे हैं। इस तरह संविधान निर्माताओं का एक एकीकृत भारतीय राष्ट्र निर्माण का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका है।

विदेशी भारतीय नागरिकता

सितंबर 2000 में भारत सरकार (विदेश मंत्रालय) ने भारतीय डायस्पोरा पर एल.एम. सिंघवी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। कमिटी को वैश्विक भारतीय डायस्पोरा के व्यापक अध्ययन करने तथा उनके साथ रचनात्मक सम्बन्ध बनाने के उपायों पर अनुशंसा देने का कार्य सौंपा गया।

समिति ने अपनी रिपोर्ट जनवरी, 2002 में सौंपी। इसने नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन की सिफारिश की ताकि भारतीय मूल के व्यक्तियों (Persons of Indian Origin, PIOs) को दोहरी नागरिकता प्रदान को जा सके, लेकिन कुछ विशेष देशों के रहने वालों को ही।

उसी अनुसार नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 में विदेशी भारतीय नागरिकता का प्रावधान किया गया। 16 निर्दिष्ट देशों के पीआईओ, यानी भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिए, पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर। इस अधिनियम ने पूर्व मुख्य अधिनियम के राष्ट्रमंडल नागरिकता से सम्बन्धित सभी प्रावधान हटा दिए।

बाद में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2005 में सभी देशों के भारतीय मूल के व्यक्तियों को विदेशी भारतीय नागरिकता प्रदान करने के (अपवाद पाकिस्तान और बांग्लादेश) प्रावधान किए गए जब तक कि उनके गृह देश स्थानीय कानूनों के अनुसार दोहरी नागरिकता प्रदान करते हों।

पुनः नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 ने मुख्य अधिनियम में विदेशी भारतीय नागरिकता (OCI) सम्बन्धी प्रावधानों को संशोधित कर दिया। इसने “भारतीय विदेशी नागरिकता कार्डहोल्डर (Overseas Citizen of India Cardholder) के नाम से एक नई योजना शुरू की है जिसमें पीआईओ कार्ड स्कीम तथा ओसीआई कार्ड स्कीम को मिला (विलयित) कर दिया गया है।

पीआईओ कार्ड स्कीम को 19.08.2002 में शुरू किया गया था और उसके बाद ओसीआई कार्ड स्कीम 1.12.2005 में शुरू की गयी थी। दोनों स्कीम साथ-साथ चल रही थी, वैसे ओसीआई स्कीम अधिक लोकप्रिय थी। आवेदक इस कारण भ्रम की स्थिति में थे। आवेदकों का भ्रम दूर कर उन्हें अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने पीआईओ तथा ओसीआई को मिलाकर एकल स्कीम का सूत्रण किया जिसमें दोनों स्कीमों के सकारात्मक पक्षों को शामिल किया गया। इस प्रकार इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 अधिनियमित किया गया। पीआईओ स्कीम 9.1.2015 के प्रभाव से रद्द कर दी गयी और यह अधिसूचित किया गया कि सभी चालू पीआईओ कार्डधारक 9.1.15 से ओसीआई कार्डधारक मान लिए जाएंगे।”

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 ‘विदेशी भारतीय नागरिक’ को बदलकर ‘विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक’ (Overseas Citizen of India Cardholder) कर दिया और मुख्य अधिनियम में निम्नलिखित प्रावधान किए-

I. विदेशी भारतीय नागरिक कार्ड होल्डर का निबंधन

1. भारत सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक (होल्डर) को पंजीकृत कर सकती है-

(a) पूर्ण आयु एवं क्षमतावाला कोई व्यक्ति

(i) जोकि किसी अन्य देश का नागरिक है, लेकिन संविधान लागू होने के समय अथवा उसके बाद भारत का नागरिक था. अथवा

(ii) जोकि किसी अन्य देश का नागरिक है लेकिन संविधान लागू होने के समय भारत का नागरिक होने के लिए अर्ह था, अथवा

(iii) जोकि किसी अन्य देश का नागरिक है लेकिन उस भू-भाग से सम्बन्ध रखता है जो 15 अगस्त 1947 के भारत का भाग हो गया, अथवा

(iv) जोकि ऐसे किसी नागरिक का पुत्र/पुत्री या पौत्र/पौती या प्रपौत्र/प्रपौत्री हो, अथवा

(b) कोई व्यक्ति जो धारा (a) में उल्लेखित व्यक्ति का नाबालिग बच्चा हो, अथवा

(c) कोई व्यक्ति जोकि नाबालिग बच्चा हो जिसके माता-पिता भारत के नागरिक हैं अथवा दोनों में से एक भारत का नागरिक हो, अथवा

(d) भारतीय नागरिक का विदेशी मूल का/की पति/पत्नी, अथवा विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक का विदेशी मूल का/की पति/पत्नी जिसका विवाह निबंधित है और आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि के पूर्व कम-से-कम दो वर्ष तक लगातार चला हो।

कोई भी व्यक्ति जो स्वयं अथवा किसके माता-पिता में से कोई अथवा जिसके दादा दादी, परदादा/परदादी पाकिस्तान, बांग्लादेश अथवा ऐसे किसी देश जिन्हें भारत सरकार उल्लिखित कर सकती है, विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर के लिए निबंधन के लिए अर्ह नहीं होगा।

2. भारत सरकार उस आंकड़े/डाटा को उल्लिखित कर सकती है जिसमें से सूचीबद्ध भारतीय मूल के कार्डधारक व्यक्तियों को विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर मान लिया जाएगा।

3. बिन्दु (1) में कोई बात पहले रहते भी, केन्द्र सरकार अगर संतुष्ट हो कि कोई विशेष परिस्थिति बनती है, उन परिस्थितियों को लिखित में अभिलेखित कर, किसी व्यक्ति को विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर को निबंधित कर सकती है।

II. विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर को प्राप्त अधिकार

1. एक विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर को ऐसे अधिकार प्राप्त होंगे जैसा कि केन्द्र सरकार उल्लिखित या विशिष्ट निर्देशित कर सकती है-

2. एक विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर को निम्नलिखित अधिकार नहीं होंगे (जोकि किसी भारतीय नागरिक को होते हैं)-

(a) उसे सार्वजनिक रोजगार के मामले में अवसर की संभावना का अधिकार नहीं होगा।

(b) वह राष्ट्रपति चुने जाने के लिए अर्ह नहीं होगा।

(c) वह उप-राष्ट्रपति चुने जाने के लिए अर्ह नहीं होगा।

(d) वह सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के लिए अर्ह नहीं होगा।

(e) वह उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के लिए अर्ह नहीं होगा

(f) वह एक मतदाता के रूप में पंजीकृत किए जाने का अधिकारी नहीं होगा।

(g) वह लोक सभा या राज्य सभा का सदस्य बनने के लिए अर्ह नहीं होगा।

(h) वह राज्य विधानसभा या राज्य विधान परिषद का सदस्य चुने जाने के लिए अर्ह नहीं होगा।

(i) वह सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्ति तथा संघ अथवा राज्य के मामलों से सम्बन्धित पद के लिए अर्ह नहीं होगा, जब तक कि ऐसी सेवाओं एवं पदों पर नियुक्ति के लिए केन्द्र सरकार विशिष्ट निर्देश न दे।

III विदेशी भारतीय नागरिकता कार्ड का परित्याग

1. यदि कोई विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर निर्धारित प्रपत्र पद्धति से उस कार्ड के परित्याग की घोषणा करता है जो उसे विदेशी भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत करती है, तब इस घोषणा को केन्द्र सरकार द्वारा पंजीकृत किया जाएगा तथा इस पंजीकरण के पश्चात वह व्यक्ति विदेशी भारतीय नागरिक नहीं रह जाएगा।

2. जब एक व्यक्ति विदेशी भारतीय नागरिक कार्ड होल्डर नहीं रह जाता है तब उसका विदेशी मूल की उसकी का पत्नी/पति जिसने विदेशी भारतीय नागरिक कार्ड प्राप्त किया है और उसका नाबालिग बच्चा जो कि विदेशी भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत है. भारत का विदेशी नागरिक नहीं रह जाएगा।

IV विवेशी भारतीय नागरिक कार्डड़ोल्डन के रूप में पंजीकरण का रद्द होना

केन्द्र सरकार विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर के रूप में किसी व्यक्ति का पंजीकरण रद्द कर सकता है, यदि वह संतुष्ट है कि-

(a) विदेशी भारतीय नागरिकता कार्डहोल्डर धोखाध ड़ी, असत्य प्रतिनिधित्व अथवा भौतिक साक्ष्य को छुपाकर प्राप्त की गई है अथवा

(b) विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर ने भारत के संविधान के प्रति अनिष्ठा प्रदर्शित की है, अथवा

(c) विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर ने, ऐसे किसी युद्ध जिसमें भारत भी संलग्न है, के दौरान शत्रु के साथ गैरकानूनी रूप से संपर्क स्थापित किया है. अथवा

(d) विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर ने पंजीकरण के पांच वर्षों के अंदर दो वर्षों से कम की कैद की सजा भुगती है अथवा

(e) यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता एवं अखंडता भारत की सुरक्षा, किसी दूसरे देश के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध अथवा सामान्य जनता के हित में हो. अथवा

(f) किसी विदेशी भारतीय नागरिक कार्ड होल्डर का विकास –

(i) किसी सक्षम न्यायालय द्वारा या अन्य द्वारा भंग कर दिया गया हो अथवा

(ii) भंग नहीं किया गया हो, लेकिन ऐसे विवाह के बने रहते ही उसने किसी और के साथ विवाह कर लिया हो।

तालिका 6.1 एनआरआई, पीआईओ एवं ओसीआई कार्ड होल्डर की तुलना

क्रम संख्यातुलना के तत्वअप्रवासी भारतीय
(NRI)
भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO)विदेशी भरतीय नागरिक (OCI) कार्ड होल्डर
1.कौन?भारतीय नागरिक जो साधारणत: भारत के बाहर निवास करता हे और जिसके पास भारतीय पासपोर्ट हैएक व्यक्ति जो अथवा जिसका कोई पूर्वज भारतीय नागरिक और जो वर्तमान में अन्य देश की नागरिकता/राष्ट्रीय धारण करता/ती है जिसका वह विदेशी पासपोर्ट धारक है।एक व्यक्ति जो विदेशी भारतीय नागरिक (OCI) कार्डहोल्डर हो नागरिक अधिनियम 1955 के अंतर्गत
2.कौन अर्ह है?निम्नलिखित कोटि के विदेशी नागरिक OCI कार्डहोल्डर के रूप में पंजीकरण
के लिए अर्ह हैं-

1. जो संविधान लागू होने के समय 26.01. 1950 को या उसके बाद भारतीय नागरिक था, अथवा

2. जो 26.1.1950 को भारत का नागरिक बनने के लिए अर्ह था, अथवा

3. वह उस भूभाग का निवासी था जो 15 अगस्त 1947 को भारत का अंग बन गया, अथवा

4. जो ऐसे किसी नागरिक पुत्र/पुत्री, पौत्र/पौत्री, प्रपौत्र है, अथवा

5. जो उपरिल्लिखित व्यक्तियों की नाबालिग संतान हैं।

6. जो नाबालिग बच्चा है और जिसके माता पिता भारत के नागरिक हैं अथवा दोनों में से एक भारत का नागरिक है, अथवा

7. भारत के नागरिक की विदेश मूल को का पति/पत्निी अथवा विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर की/का विदेशी मूल की/का पति/पत्नि जिसका नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत पंजीकरण हुआ हो, और यह विवाह आवेदन की. प्रस्तुति के तुरंत पहले से लगातार कम-से-कम वर्ष तक चला हो।
3.प्राप्ति कैसे होगी?अर्ह व्यक्तियों को
ऑन लाइन आवेदन देना होगा।
4.कहां आवेदन करना है?उस समय तक जब तक कि ऑन लाइन भुगतान सुविधा आरंभ होती है, निम्नलिखित निर्देशों का पालन किया जाएगा-
(i) ऑन लाइन आवेदन का प्रिंट आउट, हर प्रकार से पूर्ण करके संलग्नक के साथ डिमांड ड्राफ्ट तथा फोटो की दो प्रतियों सहित भारतीय मिशन/पोस्ट। जिसका उस देश के अंदर क्षेत्राधिकार हो जहां का आवेदक नागरिक है, या यदि वह अपनी नागरिकता के देश में नहीं रह रहा रही है, भारतीय मिशन/पोस्ट जिसका क्षेत्राधिकार उस देश में हो जिसका. आवेदक साधारणतया एक निवासी है।

(ii) यदि आवेदक भारत में रह रहा है, ऑनलाइन आवेदन पत्र का प्रिंट आउट जो हर प्रकार से पूर्ण हो, संलग्नक सहित, डिमांड ड्राफ्ट और फोटो की दो प्रतियां विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (Foreigners Regional Registration Offices, FRROs) में अपने क्षेत्राधिकारिक नियंत्रण के अनुसार जमा करेगा/करेगी।
5.शुल्क (a) यदि आवेदन अन्य देश के स्थित भारतीय मिशन पोस्ट में जमा किया जाता है-यूएस डॉलर 275 अथवा स्थानीय मुद्रा के समतुल्य।

(b) यदि आवेदन भारत में ही जमा किया गया हो रु. 15000/
6.जिन देशों के नागरिक अर्ह हैंकोई भी व्यक्ति जो स्वयं अथवा उसके माता-पिता में एक दादा-दादी या परदादा- परदादी में से कोई एक पाकिस्तान, बांग्लादेश अथवा अन्य देश जिसके बारे में केन्द्र सरकार ने विशिष्ट निर्देश दिया हो, का नागरिक है या रहा था विदेशी भारतीय नागरिक कार्ड होल्डर के रूप में पंजीकरण के लिए अर्ह नहीं होगा।
7.क्या लाभ प्राप्त होगे?सभी लाभ जो भारतीय नागरिक की उपलब्ध है. जैसा कि भारत सरकार समय-समय पर अधिसूचना जारी करती है।कोई विशेष लाभ नहीं।(i) वह प्रविष्टि वाला आजीवन वीसा भारत आने के लिए चाहे किसी भी उद्देश्य से (हालांकि ओसीआई कार्ड होल्डर को भारत में शोधकार्य के लिए विशेष अनुमति देनी होगी जिसके लिए वे इंडिया मिशन/ पोस्ट/एफआरआरओ को आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं।

(ii) एफ आरआरओ (Foreigeners Re- gional Registration Officer) अथवा एफआरओ के साथ पंजीयन से छूट, भारत में कितने भी लंबे ठहराव के लिए

(iii) अप्रवासी भारतीय (NRIs) के अलाबा आर्थिक वित्तीय तथा शैक्षिक क्षेत्र में उपलब्ध हर सुविधा में बराबरी, लेकिन कृषि अथवा बागान परिसम्पत्तियों के अधिग्रहण के मामलो को छोड़कर।

(iv) पंजीकृत विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर भारतीय बच्चों के अंतरदेशीय दत्तकग्रहण के मामले में अप्रवासी भारतीयों (NRI) के समान समझे जाएंगे।

(v) पंजीकृत विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर भारत में घरेलू उड़ानों के किराए के मामले में अप्रवासी भारतीय (NRI) के बराबर समझे जाएंगे।

(vi) पंजीकृत विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर भारत से राष्ट्रीय उद्यानों एवं वन्य जीव अभ्यारण्यों में वही प्रवेश शुल्क लिया जाएगा जो घरेलू आंगतुकों से लिया जाता है।

(vii) अप्रवासी भारतीयों के साथ निम्नलिखित के सम्बन्ध में सफलता

(A) राष्ट्रीय संग्रहालयों, ऐतिहासिक स्थलों आदि के लिए प्रवेश शुल्क

(B) निम्नलिखित व्यवसाय करने के लिए प्रासंगिक कानूनों के प्रावधानों का पालन करते हुए-

(a) डाक्टर, डेडिस्ट, नर्स, फार्मासिस्ट
(b) वकील
(c) वास्तुकार (आर्किटेक्ट) तथा
(d) चार्टर्ड अकाउंटेड

(c) ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट तथा अन्य परीक्षाओं में अर्हता प्राप्त करने हेतु भाग लेना, प्रासंगिक कानूनों में निहित प्रावधानों के अनुपालन में

(vii) राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिए कि ओसीआई कार्डहोल्डर पंजीकरण उनको प्रदान की जाने वालो किसी भी सेवा के लिए उनके पहचान पत्र के रूप में व्यवहृत हो। यदि आवास के प्रमाण की आवश्यकता हो, ओसीआई कार्डहोल्डर यह शपथपत्र दाखिल कर सकता है कि कोई विशेष पता भारत में उसके आवास स्थान के रूप में व्यवहत हो।
8.क्या उसे भारत आने के लिए वीजा की आवश्यकता है?नहींहांजीवन भर बिना वीजा भारत आ सकता/ ती है।
9.क्या भारत में स्थानीय पुलिस प्राधिकारियों के साथ निबंधित होने की आवश्यकता है?नहींहां, यदि यहां ठहरने की अवधि 180 दिन से अधिक है।नहीं
10. भारत में कौन-सी गतिविधियां शुरू की जा सकती हैं?सभी गतिविधियांवीजा के प्रकार के अनुसार गतिविधियांसभी गतिविधियां, लेकिन शोधकार्य को छोड़कर जिसके लिए भारतीय मिशन/ पोस्ट/एफआरआरओ से विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है।
11.कोई व्यक्ति भारतीय नागरिकता कैसे प्राप्त कर सकता है।वह एक भारतीय नागरिक है।नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार उसे पंजीकरण आवेदन करने की तिथि से 7 वर्ष पूर्व तक साधारणतया भारत में निवास आना चाहिए।नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार कोई व्यक्ति यदि आईसीआई कार्डहोल्डर के रूप में पांच वर्ष के लिए पंजीकृत रहता है और जो नागरिकता पंजीकरण आवेदन के पहले लगातार बारह नाह तक साधारणतया भारत में निवास करता रहा है।

तालिका 6.2 नागरिकता से सम्बधित अनुच्छेदः एक नजर में

अनुच्छेद संख्या  विषयवस्तु
5.सविधान लागू होने के समय नागरिकता।
6.कुछ वैसे व्यक्तियों के नागरिकता अधिकार जिन्होंने पाकिस्तान से भारत में प्रव्रजन किया है।
7.पाकिस्तान के प्रव्रजित व्यक्तियों के नागरिकता अधिकार।
8. भारतीय मूल के वैसे लोगों के नागरिकता अधिकार जो भारत के बाहर विकास कर रहे हैं।
9. जो व्यक्ति स्वेच्छा से विदेशी राज्यों की नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं, उन्हें नागरिकता नहीं मिल सकती।
10.नागरिकता अधिकारों की निरंतरता।
11.संसद द्वारा कानून बनाकर नागरिकता अधिकारों का नियमन।

तालिका 6.3 नागरिकता अधिनियम (1955) एक झलक में (2015 तक संशोधित)

धाराएं विषयवस्तु
1.संक्षिप्त शीर्षक
2.व्याख्या
नागरिकता ग्रहण
3.जन्म से नागरिकता
4.वंश से नागरिकता
5.पंजीकरण से नागरिकता
6.प्रकृतिकरण से नागरिकता
6ए.असम समझौते से आवरित व्यक्तियों की नागरिकता सम्बन्धी विशेष प्रावधान
7.भूभाग सम्मिलिकरण से नागरिकता
विदेशी नागरिकता
7A. विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर का पंजीकरण
7B. विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर को अधिकार प्रदान करना
7C.विदेशी भारतीय नागरिक कार्ड का परित्याग
7D.विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर के रूप में पंजीकरण रद्द होना
नागरिकता की समाप्ति
8.नागरिकता का परित्याग
9.नागरिकत्ता को समाप्त करना
10.नागरिकता से वंचित करना
परिशिष्टीय/पूरक
11.राष्ट्रमंडलीय नागरिकता (निरस्त)
12.कतिपय देशों के नागरिकों को भारतीय नागरिकों के समान अधिकार देना (निरस्त)
13.संदेह की स्थिति में नागरिकता प्रमाण पत्र
14.धारा 5, 6 एवं 7A के अंतर्गत आवेदनों का निस्तारण
14A.राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना
15.पुनरीक्षण
16.शक्ति का प्रतिविधान
17.अपराध
18.कानून बनाने की शक्ति
19.निरसन (निरस्त)

तालिका 6.4 नागरिकता अधिनियम (1955) को अनुसूचियां : एक नजर में

सांख्य विषयवस्तु
पहली अनुसूचीराष्ट्रमंडल देशों से सम्बन्धित देशों की सूची 2003 सरबंधन द्वारा सिस्ट
दूसरी अनुसूचीनिष्ठा की शपथ
तीसरी अनुसूचीप्रकृतिनीकरण के लिए योग्यता
चौथी अनुसूचीविदेशी नागरिकता से सम्बन्धित देश 2005 संशोधन निरस्त

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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