संयोजी ऊतक (Connective Tissues)

इसकी उत्पत्ति भ्रूण के मीसोडर्म (mesoderm) से होती है। शरीर में ये ऊतक सबसे अधिक (लगभग 30%) होते हैं। ये सभी अंगों के मध्य पाए जाते हैं। इन ऊतकों का प्रमुख कार्य अंगों को सहारा देना है। ये अंगों को ढ़कते तथा परस्पर बाँधे रहते हैं। इन ऊतकों की कोशिकाएँ आधारभूत पदार्थ या मैट्रिक्स स्स्रावित करती हैं। अतः कोशिकाएँ मैट्रिक्स में पड़ी रहती हैं। संयोजी ऊतक में श्वेत कोलैजन या पीले लचीले तन्तु होते हैं, जो इनके कड़ेपन या लचीलेपन में सहायक हैं। संयोजी ऊतक में विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं; जैसे-फाइब्रोसाइट्स (fibrocytes), मैक्रोफेजेज (macrophages), मास्ट कोशिकाएँ (mast cells), लसीका कोशिकाएँ (lymphocytes), प्लाज्मा कोशिकाएँ (plasma cells), वसा कोशिकाएँ (fat or adipose cells)। ये कोशिकाएँ विभिन्न कार्य को सम्पन्न करती हैं। इनके प्रमुख कार्य अधोलिखित हैं। यथा- 1. अंगों में उपस्थित दूसरे ऊतकों को एक-दूसरे से बांधने का कार्य करता है।

2. कुछ संयोजी ऊतक संग्रह का कार्य करते हैं जैसे- वसीय ऊतक (adipose tissue) वसा का संग्रह करता है।

3. कंकालीय संयोजी ऊतक जैसे- उपास्थि (cartilage) तथा अस्थि (bone) शरीर को सहारा देते हैं।

4. संवहन ऊतक (vascular tissue) जैसे-रुधिर तथा लसिका विभिन्न प्रदार्थों का संवहन करते हैं।

5. संवहन ऊतक की प्लाज्मा कोशिकायें एन्टिबॉडी स्त्रावित करके शरीर को जीवाणुओं तथा अन्य बाहरी पदार्थों से रक्षा करते हैं।

6. अन्तरालित ऊतक (alveolar tissue) पैकिंग मैटेरियल का काम करते हैं जो अंगों के चारों ओर व्यवस्थित होकर उनकी सुरक्षा करते हैं।

संयोजी ऊतक मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

1. साधारण संयोजी ऊतक (Simple connective tissue)
2. कंकाल संयोजी ऊतक (Skeletal connective tissue)
3. संवहन ऊतक (vascular tissue)

➤ सामान्य, ढीला संयोजी ऊतक (Simple, Loos, Connective Tissue)

इसे अन्तरालीय संयोजी ऊतक (areolar connective tissue) भी कहते हैं। यह पूरे शरीर में सबसे अधिक फैला होता है। आन्तरांगों के चारों ओर, त्वचा और उपकलाओं (epithelium) के नीचे, पेशियों के बीच-बीच में, रुधिरवाहिनियों एवं तन्त्रिकाओं के चारों ओर, श्वासनाल (Trachea) एवं आहारनाल की अधः श्लेष्मिका में, आन्त्रयोजनियों अर्थात् मीसेन्ट्रीज में, तथा अनेक अंगों के ऊतकीय ढाँचे अर्थात् पीठिका (Stroma) में यही ऊतक होता है। इसका जैली- सदृश मैट्रिक्स पारदर्शक एवं चिपचिपा होता है। इसमें असममित आकार की चपटी बड़ी फाइब्रोसाइट्स तथा फाइब्रोब्लास्ट्स (Fibrocytes and fibroblasts) पाई जाती हैं, इनसे मैट्रिक्स तथा तन्तुमय प्रोटीन्स स्रावित होती है। अनियमित आकार की मैक्रोफेजेज (Macrophages) कोशिकाएँ हानिकारक; निरर्थक एवं मृत कोशिकाओं का भक्षण करती हैं। मैट्रिक्स में उपस्थित मास्ट कोशिकाओं से हिस्टेमीन (histamin), हिपैरिन (heparin), सिरोटोनिन (serotonin) आदि स्स्रावित होते हैं। ये एलर्जी, जलन तथा सूजन आदि प्रतिक्रियाओं में भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त मैट्रिक्स में प्रतिरक्षी का निर्माण करने वाली लिम्फोसाइट्स तथा वसा कोशिकाएँ पाई जाती हैं।

➤ सघन तन्तुमय संयोजी ऊतक (Dense Fibrous Connective Tissue)

इस प्रकार के संयोजी ऊतक के मैट्रिक्स में मुख्य रूप से फाइब्रोसाइट्स कोशिकाएँ अधिक होती हैं। ये तन्तुओं का निर्माण करती हैं। तन्तुओं की प्रकृति के आधार पर यह ऊतक दो प्रकार का होता है-

(i) श्वेत कोलैजन तन्तुमय संयोजी ऊतक (White Collagen Fibrous Connective Tissue)- इसमें श्वेत कोलैजन तन्तु प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। तन्तुओं के मध्य फाइब्रोसाइट्स कोशिकाएँ पाई जाती हैं। यह त्वचा की डर्मिस, अस्थियों, उपास्थियों, पेशियों तथा तन्त्रिकाओं का आवरण बनाता है। श्वेत कोलैजन तन्तु परस्पर मिलकर कण्डराओं (tendons) का निर्माण करते हैं।*

(ii) पीला इलास्टिक संयोजी ऊतक (Yellow Elastic Connective Tissue)- इसके मैट्रिक्स में पीले लचीले इलास्टिक तन्तु परस्पर सामान्तर समूहों में लगे रहते हैं। इनके समूह स्नायु (ligament) का निर्माण करते हैं। स्नायु शरीर के उन भागों में पाए जाते हैं जहाँ लोच की आवश्यकता होती है। इन्हें स्नायु अस्थियों को अस्थियों से जोड़ते हैं। स्नायु के टूट जाने से मोच (sprain) आ जाती हैं।

➤ विशिष्ट संयोजी ऊतक (Specialised Connective Tissue)

यह निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

(i) वर्णक संयोजी ऊतक (Pigmented Connective Tissue)- यह ऊतक त्वचा की डर्मिस, नेत्र की आइरिस (iris) तथा कोरॉइड (choroid) में पाया जाता है। यह सामान्य अन्तराली ऊतक के समान होता है। इसके मैट्रिक्स में शाखामय, प्रवर्धयुक्त वर्णक कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें क्रोमैटोफोर्स (chromatophores) कहते हैं। इनके कोशिकाद्रव्य में अनेक रंगीन कणिकाएँ होती हैं जिन्हें मेलैनिन (melanin) कहते हैं। इनके सिकुड़ने-फैलने से त्वचा का रंग हल्का व गहरा होता है। इस ऊतक में इलास्टिन तन्तु तथा लिम्फोसाइट्स भी पाए जाते हैं।

(ii) वसामय ऊतक (Adipose Tissue)- यह ऊतक त्वचा के नीचे पाया जाता है। व्हेल की त्वचा के नीचे से टनों चर्बी निकलती है। यह पीत अस्थि मज्जा में तथा रक्त वाहिनियों के आस-पास भी पायी जाती है। इसमें बड़ी-बड़ी गोल या अण्डाकार वसा कोशिकाएँ होती हैं, जो वसा गोलकों से भरी होता हैं। इसकी संरचना अन्तराली ऊतक के समान होती है। ऊँट के कूबड़ में भी वसामय ऊतक का संचय होता है। यह ऊतक वसा संग्रह के अतिरिक्त तापरोधी परत की भाँति भी कार्य करता है। शरीर की गर्मी को बाहर जाने से रोकता है। यह अंगों को अधिक दबाव, खिंचाव और धक्कों से बचाता है। भूरी वसा (brown fat) में सामान्य वसा से अधिक ऊर्जा होती है।*

(iii) जालमय संयोजी ऊतक (Reticular Connective Tissue)- इसका आधारभूत पदार्थ लसीका (lymph) होता है। इसे लसिका या लिम्फॉइड ऊतक (lymphoid tissue) भी कहते हैं। इसमें अत्यधिक शाखित रेटीकुलर तन्तुओं का एक घना जाल फैला होता है। तन्तुओं के बीच-बीच में अनियमित आकार की अनेक, बड़ी, शाखामय एण्डोथीलियल कोशिकाएँ (reticulo endothelial cells) होती है। यह ऊतक प्लीहा (spleen), थाइमस (thymus), टॉन्सिल्स (tonsils), अस्थि मज्जा (bone marrow) आदि में पाया जाता है।* यह शरीर में हानिकारक जीवाणुओं, मृत कोशिकाओं, अन्य हानिकारक पदार्थों का भक्षण करके उन्हें नष्ट करता है।*

➤ कंकाल संयोजी ऊतक (Skeletal Connective Tissue)

कंकाल का निर्माण भी संयोजी ऊतकों द्वारा होता है। ये दो प्रकार के होते हैं।

1. उपास्थि (cartilage)
2. अस्थि (bone)

1. उपास्थि (Cartilage)-

इसका मैट्रिक्स अर्द्धठोस होता है जो कॉण्ड्रिन (chondrin) नामक प्रोटीन का बना होता है। इसके मैट्रिक्स में अनेकों छोटी-छोटी थैलियां पायी जाती हैं जिन्हें रिक्तिकायें या गांर्तकायें (lacunae) कहते हैं। रिक्तिकाओं में एक से चार तक कॉन्ड्रियोब्लास्ट (chondrioblast) नामक कोशिकायें पायी जाती हैं।

यही कोशिकायें कॉन्ड्रिन का निर्माण करती है। उपास्थि चारों ओर से पेरीकॉन्ड्रियम (perichondrium) नामक झिल्ली ससे घिरी रहती है। इस झिल्ली में अनेक रुधिर वाहिनियाँ होती हैं जो उपास्थि में पोषक पदार्थ एवं ऑक्सीजन पहुंचाती हैं। मैट्रिक्स के आधार पर उपास्थि चार प्रकार की होती है।

(i) प्रभासी अर्थात् हाय लाइन (Hyaline) उपास्थि – इसका मैट्रिक्स स्वच्छ अर्द्धपारदर्शक तथा हल्के नीले रंग की होती है। यह उपास्थि अधिक लचीली होने के कारण दाब, झटकों आदि से बचाव करती है। मनुष्य में यह संधि स्थलों, नाक, स्वर यंत्र, श्वास यंत्र, श्वास नली और श्वसनियों (bronchi) आदि में पायी जाती है।

(ii) श्वेत तन्तुमय उपास्थि (White Fibrocartilage)- इसके मैट्रिक्स में श्वेत कोलेजन तन्तु अधिक मात्रा में पाये जाते हैं जिसके कारण ये अधिक मजबूत होती हैं। ये हड्डियों के घर्षण के प्रभाव को कम करती है। ये ऊतक उन्हीं स्थानों पर पायी जाती हैं जहां धक्का इत्यादि लगने से रगड़ द्वारा हानि पहुंचने की सम्भावना रहती है।

स्तनियों में यह दो कशेरुकाओं के बीच की अंतः कशेरुक गर्दिया (intervertebral disc) में पाया जाता है जहाँ यह कुशन (तकिया) की भाँति कार्य करती हैं।

(iii) कैल्सीफाइड उपास्थि (Calcified Cartilage)- प्रारम्भ में यह प्रभासी होता है परन्तु बाद में कैल्शियम लवणों के जमाव से यह बहुत कठोर तथा लोच रहित हो जाती है।

(iv) लचीली तन्तुमय उपास्थि (Elastic Fibrocartilage)- इसके मैट्रिक्स में पीले रंग के इलैस्टिन तन्तु पाये जाते हैं जो लचीलापन प्रदान करते हैं। ये नाक, कान, कंठ, कर्ण नलिका, एपिग्लोटिस तथा नसिका के छोर पर पाये जाते हैं।

2. अस्थि (Bone)-

यह अन्तः कंकाल के रूप में पाया जाता है। यह अनेक अस्थिकोशिकाओं (osteocytes) से मिलकर बना होता है। अस्थि कोशिकायें एक तरल पदार्थ में पड़े रहते हैं जिन्हें मैट्रिक्स (matrix) कहते हैं। अस्थि का मैट्रिक्स कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों के बने होते हैं। अकार्बनिक अंश में मुख्यतः कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के फास्फेट लवण भी पाये जाते हैं। इसी कारण अस्थि कठोर होता है। मैट्रिक्स के कार्बनिक पदार्थों को ओसीन (ossein) कहते हैं। अस्थि के बाहर की ओर श्वेत तन्तुओं का पर्तदार आवरण होता है जिसे अस्थिच्छद अर्थात् पेरीऑस्टियम (periosteum) कहते हैं। इसमें रुधिर कोशिकायें भी होती हैं। अस्थिच्छद के ठीक नीचे एक कोशिकीय स्तर होता है जिसे वाह्य अस्थिकोरक (outer osteoblast) कहते हैं। इस स्तर की कोशिकायें विभाजित होकर नई-नई कोशिकायें बनाती हैं इससे अस्थि की मोटाई में वृद्धि होती है। अस्थि के मध्य में एक गुहा होती है जिसे मज्जा गुहा (marrow cavity) कहते हैं। इस गुहा में वसीय ऊतक, तंत्रिकायें तथा रुधिर वाहिनियाँ पायी जाती हैं। इनको सामूहिक रूप से अस्थि मज्जा (bone marrow) कहते हैं।

मज्जा के चारों ओर झिल्लीनुमा कोशिकाओं का एक स्तर होता है जिसे अन्तराच्छद (endosteum) कहते हैं। इस स्तर की कोशिकाओं को अन्तः अस्थिकोरक (inner osteoblast) कहते हैं। यह बाहर की ओर ओसीन श्रावित करती है। अस्थि कोशिकाओं (Osteocytes) को ओस्टिओसाइट्स (osteocytes) कहते हैं, ये छोटी-छोटी थैलियों में बं रहते हैं इन थैलियों को गर्तिका (lacunae) कहते हैं। अस्थि कोशिकाओं के चारों तरफ प्लाज्मा झिल्ली के बने शाखान्वित प्रवर्ध निकले होते हैं। ये प्रवर्ध गर्तिकाओं से निकले महीन नलिका में बंद हुँते हैं इन नलिकाओं को कैनालिकुली (canaliculi) कहते हैं। अस्थि के मैट्रिक्स में ओसीन संकेन्द्री धारियों के रूप में दिखाई पड़ते हैं। इन धारियों को पटलिकायें (lamellae) कहते हैं। इन्हीं धारियों पर शाखान्वित गर्तिकायें (lacunae) पायी जाती हैं। गर्तिकाओं से निकली पतली-पतली शाखान्वित रचनाओं को नलिकायें या कैनालिकुली (canaliculi) कहते हैं। ये परस्पर जुड़कर मैट्रिक्स में नलिकाओं का जाल बनाती हैं।

स्तनियों (Mammals) के अस्थि की संरचना-मेढ़क की अस्थि में रुधिर वाहिनियां, लसिका तथा तंत्रिकायें मज्जा गुहा में होती हैं परन्तु स्तनियों में ये अस्थि के अन्दर मैट्रिक्स में फैली रहती है। मैट्रिक्स में इनके लिए बहुत सी नलिकायें (canals) भी बन जाती हैं जिन्हें हैवर्सियन नलिकायें (Haversian canals) कहते हैं। हैवर्सियन नलिकायें प्रायः हड्डी की लम्बाई के समानान्तर होती है।

➤ उपास्थि तथा अस्थि में अन्तर

उपास्थि (Cartilage) अस्थि (Bone)
1. इसका मैट्रिक्स अर्द्धपारदर्शी कॉण्ड्रिन (chondrin) प्रोटीन से बना होता है।इसका मैट्रिक्स अपारदर्शी ओसीन (ossein) प्रोटीन से बना होता है।
2. मैट्रिक्स में कोलैजन तथा पीले लचीले तन्तु होते हैं।मैट्रिक्स में कोलैजन तन्तु होते हैं।
3. उपास्थि सामान्यतया लचीली होती है। कैल्सीफाइड उपास्थि कैल्सियम लवणों के संचय के कारण कठोर हो जाती है।कैल्सियम तथा मैग्नीशियम लवणों के कारण अस्थियाँ कठोर होती हैं।
4. गर्तिकाओं में स्थित कॉण्ड्रोसाइट्स से कॉण्ड्रिन स्त्रावित होता है।संकेन्द्री गर्तिकाओं में स्थित ओस्टिओसाइट्स (osteocytes) से ओसीन स्त्रावित होती है।
5. उपास्थि के चारों ओर पेरीकॉण्ड्रियम का तन्तुमय आवरण होता है।अस्थि के चारों ओर तन्तुमय अस्थिच्छद का आवरण होता है।
6. उपास्थि में मज्जा नहीं पाई जाती है।खोखली अस्थियों में मज्जा गुहा पाई जाती है। मज्जा गुहा में वसीय ऊतक पाया जाता है।

➤ संवहन या तरल ऊतक (Vascular or Fluid Tissue)

जन्तु के शरीर में रुधिर (blood) और लसिका (lymph) दोनों संवहन या तरल ऊतक हैं क्योंकि ये शरीर में सदैव बहते रहते हैं। इनमें मैट्रिक्स द्रव अवस्था में होता है जिसे प्लाज्मा (plasma) कहते हैं। प्लाज्मा स्वयं निर्जीव है परन्तु इसमें असंख्य जीवित कोशिकायें (रुधिर कणिकायें) भ्रमण करती हैं। अन्य ऊतकों की भांति इसके प्लाज्मा में रेशे (fibres) नहीं पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त प्लाज्मा की कोशिकायें स्वयं प्लाज्मा (मैट्रिक्स) का स्त्राव नहीं करती हैं। संवहन ऊतक शरीर में विभिन्न पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का कार्य करते हैं। इसका विस्तृत वर्णन ‘परिसंचरण तंत्र’ नामक प्रभाग में किया गया है। रक्त की आनुवांशिकी एवं व्याधियों का वर्णन भाग : 3 के ‘मानव आनुवांशिकी’ प्रभाग में किया गया है।

पेशी ऊतक (Muscular Tissue)

ये शरीर में विभिन्न प्रकार की पेशियों का निर्माण करते हैं।

इनकी कोशिकाओं को पेशी तन्तु या पेशी कोशिकायें (muscle fibres) कहते हैं। पेशी ऊतक की कोशिकायें बड़ी एवं लम्बी होती हैं। इनकी कोशिकाओं में लम्बी-लम्बी महीन धारियों के रूप में पेशीतन्तुका (myofibrils) पाया जाता है जो ऐक्टिन (actin) तथा मायोसिन (myosin) प्रोटीन का बना होता है। पेशीतन्तुक के कारण पेशी कोशिकायें संकुचनशील होते हैं। इसी कारण प्रचलन तथा शरीर के विभिन्न अंगों में इन ऊतकों द्वारा गति प्रदान करने में सहायता मिलती है। इसके विस्तृत अध्ययन के लिए ‘मानव कंकाल, पेशी एवं व्याधियाँ’ संज्ञा के प्रभाग को देखें।

तंत्रिका ऊतक (Nerve Tissue)

शरीर की विभिन्न क्रियाओं का नियन्त्रण तथा नियमन तन्त्रिका तन्त्र (nervous system) द्वारा द्रुत गति से होता है। तन्त्रिका ऊतक का निर्माण तन्त्रिका कोशिकाओं (nerve cells or neurons) से होता है। इसके विस्तृत अध्ययन के लिए ‘तंत्रिका संस्थान एवं व्याधियाँ’ प्रभाग को देखें।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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