पौधे एवं जंतुओं का संरक्षण : अध्याय 5

हमने देखा था कि कक्षा VII में बूझो एवं पहेली ने प्रोफेसर अहमद एवं टीबू के साथ वन भ्रमण किया था। वह अपने सहपाठियों के साथ अपने अनुभव बाँटने के लिए बहुत उत्सुक थे। कक्षा के दूसरे सहपाठी भी अपने-अपने अनुभव बाँटने के लिए अत्यंत उत्सुक थे, क्योंकि उनमें से कुछ भरतपुर अभ्यारण्य भ्रमण करने गए थे। कुछ ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, लोकचाऊ वन्यजन्तु अभ्यारण्य तथा ग्रेट निकोबार बायोस्फियर रिजर्व (वृहद निकोबार जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र), बाघ संरक्षित क्षेत्र इत्यादि के बारे में सुना था।

5.1 वनोन्मूलन एवं इसके कारण

हमारी पृथ्वी पर नाना प्रकार के पौधे एवं जंतु पाए जाते हैं। ये मानवजाति के अस्तित्व एवं भली प्रकार से रहने के लिए आवश्यक होते हैं। आज इन जीवों के अस्तित्व के लिए वनोन्मूलन एक बहुत बड़ा खतरा बन गया है। हम जानते हैं कि वनोन्मूलन का अर्थ है वनों को समाप्त करने पर प्राप्त भूमि का अन्य कार्यों में उपयोग करना।

वन में वृक्षों की कटाई निम्न उद्देश्यों से की जाती है:

• कृषि के लिए भूमि प्राप्त करना

• घरों एवं कारखानों का निर्माण

• फर्नीचर बनाने अथवा लकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग।

दावानल एवं भीषण सूखा भी वनोन्मूलन के कुछ प्राकृतिक कारक हैं।

क्रियाकलाप 5.1

अपनी सूची में वनोन्मूलन के अन्य कारणों को लिखिए तथा इन्हें प्राकृतिक एवं मानव-निर्मित में वर्गीकृत कीजिए।

5.2 वनोन्मूलन के परिणाम

पहेली एवं बूझो ने वनोन्मूलन के परिणाम याद करने का प्रयास किया। उन्हें स्मरण है कि वनोन्मूलन से पृथ्वी पर ताप एवं प्रदूषण के स्तर में वृद्धि होती है। इससे वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता है। भौम जल स्तर का भी निम्नीकरण हो जाता है। उन्हें पता है कि वनोन्मूलन से प्राकृतिक संतुलन भी प्रभावित होता है। प्रो. अहमद ने उन्हें बताया था कि यदि वृक्षों की इसी प्रकार अनवरत कटाई चलती रही तो वर्षा एवं भूमि की उर्वरता में कमी आ जाएगी। इसके अतिरिक्त बाढ़ तथा सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

याद कीजिए कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधों को भोजन बनाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है। कम वृक्षों का अर्थ है कार्बन डाइऑक्साइड के उपयोग में कमी आना जिससे वायुमण्डल में इसकी मात्रा बढ़ जाती है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित ऊष्मीय विकिरणों का प्रग्रहण कर लेती है। अतः इसकी मात्रा में वृद्धि के परिणामस्वरूप विश्व ऊष्णन होता है। पृथ्वी के ताप में वृद्धि के जलचक्र का संतुलन बिगड़ता है और वर्षा दर में कमी आती है जिसके कारण सूखा पड़ता है।

मृदा के गुणों में परिवर्तन आने का मुख्य कारण वनोन्मूलन है। किसी क्षेत्र की मृदा के भौतिक गुणों पर वृक्षारोपण और वनस्पति का प्रभाव पड़ता है। भूमि पर वृक्षों की कमी होने से मृदाअपरदन अधिक होता है। मृदा की ऊपरी परत हटाने से नीचे की कठोर चूटानें दिखाई देने लगती हैं। इससे मृदा में ह्यूमस की कमी होती है तथा इसकी उर्वरता भी अपेक्षाकृत कम होती है। धीरे-धीरे उर्वर-भूमि मरुस्थल में परिवर्तित हो जाती है। इसे मरुस्थलीकरण कहते हैं।

वनोन्मूलन से मृदा की जलधारण क्षमता तथा भूमि की ऊपरी सतह से जल के नीचे की ओर अंतःस्रवण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ आती है। मृदा के अन्य गुण, जैसे पोषक तत्व, गठन इत्यादि भी वनोन्मूलन के कारण प्रभावित होते हैं।

हमने कक्षा VII में पढ़ा था कि वनों से हमें अनेक उत्पाद प्राप्त होते हैं। इन उत्पादों की सूची बनाइए। यदि हम वृक्षों की निरंतर कटाई करते रहें तो क्या हमें इन उत्पादों की कमी का सामना करना पड़ेगा?

क्रियाकलाप 5.2

वनोन्मूलन से वन्यप्राणी-जीवन भी प्रभावित होता है। कैसे? इन कारणों की सूची बना कर अपनी कक्षा में इसकी चर्चा कीजिए।

5.3 वन एवं वन्यप्राणियों का संरक्षण

वनोन्मूलन के प्रभाव जानने के पश्चात् पहेली एवं बूझो चिंतित थे। वे प्रो. अहमद के पास गए तथा उन्होंने पूछा कि वन एवं वन्यप्राणियों को किस प्रकार बचाया जा सकता है?

प्रो. अहमद ने पहेली, बूझो एवं उनके सहपाठियों के लिए जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र के भ्रमण का आयोजन किया। इसके लिए उन्होंने पचमढ़ी जैवमण्डलीय संरक्षित नामक क्षेत्र को चुना। वे जानते हैं कि इस क्षेत्र के पौधे एवं जंतु ऊपरी हिमालय की श्रृंखलाओं एवं निचले पश्चिमी घाट के समान हैं। प्रो. अहमद का विश्वास है कि इस क्षेत्र की जैव-विविधता अनूठी है। उन्होंने वन कर्मचारी श्री माधवजी से जैवमण्डलीय संरक्षित क्षेत्र में बच्चों का मार्गनिर्देशन करने का अनुरोध किया। उन्होंने बताया कि जैविक महत्त्व के क्षेत्रों का संरक्षण हमारी राष्ट्रीय परम्परा का एक भाग है।

जैवमण्डल पृथ्वी का वह भाग है जिसमें सजीव पाए जाते हैं अथवा जो जीवनयापन के योग्य है। जैव विविधता का अर्थ है पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न जीवों की प्रजातियाँ, उनके पारस्परिक संबंध एवं पर्यावरण से उनका संबंध।

माधवजी ने बच्चों को समझाया कि हमारे व्यक्तिगत प्रयासों एवं समाज के प्रयासों के अतिरिक्त सरकारी एजेंसियाँ भी वनों एवं वन्यजंतुओं की सुरक्षा हेतु कार्यरत हैं। सरकार उनकी सुरक्षा और संरक्षण हेतु नियम, विधियाँ और नीतियाँ बनाती है। वन्यजंतु अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र इत्यादि पौधों और जंतुओं के लिए संरक्षित एवं सुरक्षित क्षेत्र हैं।

वनस्पतिजात और प्राणिजात और उनके आवासों के संरक्षण हेतु संरक्षित क्षेत्र चिह्नित किए गए जिन्हें वन्यजीव अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान और जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र कहते हैं। वृक्षारोपण, कृषि, चारागाह, वृक्षों की कटाई, शिकार, खाल प्राप्त करने हेतु शिकार (पोचिंग) इन क्षेत्रों में निषिद्ध हैं :

वन्यजीव अभ्यारण्य : वह क्षेत्र जहाँ जंतु एवं उनके आवास किसी भी प्रकार के विक्षोभ से सुरक्षित रहते हैं।

राष्ट्रीय उद्यान : वन्य जंतुओं के लिए आरक्षित क्षेत्र जहाँ वह स्वतंत्र (निर्बाध) रूप से आवास एवं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं।

जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र वन्य जीवन, पौधों और जंतु संसाधनों और उस क्षेत्र के आदिवासियों के पारंपरिक ढंग से जीवनयापन हेतु विशाल संरक्षित क्षेत्र।

क्रियाकलाप 5.3

अपने जिले, प्रदेश एवं देश के राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजन्तु अभ्यारण्यों एवं जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्रों की संख्या ज्ञात कीजिए। सारणी 7.1 को भरिए। इन क्षेत्रों को अपने प्रदेश एवं भारत के रेखाचित्र में भी दर्शाइए।

5.4 जैवमण्डल आरक्षण

प्रो. अहमद एवं माधवजी के साथ बच्चों ने जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र में प्रवेश किया। माधवजी ने समझाया कि जैव विविधता के संरक्षण के उद्देश्य से जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं। [जैसाकि आप जानते ही हैं, जैव विविधता का अर्थ है किसी क्षेत्र विशेष में पाए जाने वाले सभी पौधों, जंतुओं और सूक्ष्मजीवों की विभिन्न प्रजातियाँ। किसी क्षेत्र का जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र उस क्षेत्र की जैव विविधता एवं संस्कृति को बनाए रखने में सहायक होता है।। किसी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत अन्य संरक्षित क्षेत्र भी हो सकते हैं। पचमढ़ी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र में सतपुड़ा नामक एक राष्ट्रीय उद्यान तथा बोरी एवं पचमढ़ी (चित्र 5.1) नामक दो वन्यजंतु अभ्यारण्य आते हैं।

सारणी 5.1: संरक्षण हेतु सुरक्षित क्षेत्र

संरक्षित क्षेत्रराष्ट्रीय उद्यानवन्यजंतु अभ्यारण्यजैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र
मेरे जिले में
मेरे प्रदेश में
मेरे देश में

क्रियाकलाप 5.4

आपके अपने क्षेत्र में जैव विविधता को विक्षोभित करने वाले कारकों की सूची बनाइए। इनमें से कुछ क्रियाकलाप अनजाने में ही जैव विविधता में विक्षोभ उत्पन्न कर सकते हैं। मनुष्य की इन गतिविधियों की सूची बनाइए। इन्हें कैसे रोका जा सकता है? अपनी कक्षा में इसकी चर्चा कीजिए तथा इसकी संक्षिप्त रिपोर्ट अपनी कॉपी में नोट कीजिए।

5.5 पेड़-पौधे एवं जीव-जंतु

बच्चों ने भ्रमण करते समय जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र की हरियाली संपदा की प्रशंसा की। वे लंबे-लंबे सागौन (टीक) के वृक्षों एवं वन्य प्राणियों को देखकर प्रसन्न थे।

पहेली ने अचानक एक खरगोश देखा और उसे पकड़ने का प्रयास किया। वह उसके पीछे दौड़ने लगी। प्रो. अहमद ने उसे रोका। उन्होंने समझाया कि जंतु अपने आवास में प्रसन्न रहते हैं। हमें उनको परेशान नहीं करना चाहिए। माधवजी ने समझाया कि कुछ जंतु एवं पौधे एक क्षेत्र विशेष में पाए जाते हैं। किसी विशेष क्षेत्र में पाए जाने वाले पेड़-पौधे उस क्षेत्र के ‘बनस्पतिजात’ एवं जीव-जंतु ‘प्राणिजात’ कहलाते हैं।

साल, सागौन, आम, जामुन, सिल्वर फर्न, अर्जुन इत्यादि वनस्पतिजात हैं तथा चिंकारा, नील गाय, बार्किंग हिरण, चीतल, तेंदुआ, जंगली कुत्ता, भेड़िया इत्यादि पचमढ़ी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र के प्राणिजात हैं (चित्र 5.2)।

क्रियाकलाप 5.5

अपने स्थानीय क्षेत्र के वनस्पतिजात और प्राणिजात की पहचान कर उनकी सूची बनाइए।

5.6 विशेष क्षेत्री प्रजाति

बच्चे शीघ्र ही शांतिपूर्वक गहरे वन में प्रविष्ट हो गए। बच्चे एक विशालकाय गिलहरी को देखकर अचंभित रह गए। इस गिलहरी की एक लम्बी फरदार पूँछ है। वे इसके विषय में जानने के लिए बहुत उत्सुक हैं। माधवजी ने बताया कि इसे विशाल गिलहरी कहते हैं और यह यहाँ की विशेष क्षेत्री स्पीशीज़ है।

पौधों एवं जन्तुओं की वह स्पीशीज जो किसी विशेष क्षेत्र में विशिष्ट रूप से पाई जाती है उसे विशेष क्षेत्री स्पीशीज्ज कहते हैं। ये किसी अन्य क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से नहीं पाई जाती। किसी विशेष प्रकार का पौधा या जन्तु किसी विशेष क्षेत्र, राज्य अथवा देश की विशेष क्षेत्री हो सकते हैं।

माधवजी ने पचमढ़ी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र में स्थित साल और जंगली आम [चित्र 5.3 (a)] के पेड़ को दिखाकर विशेष क्षेत्री वनस्पति जगत का उदाहरण दिया। विसन, भारतीय विशाल गिलहरी [चित्र 5.3 (b)] तथा उड़नेवाली गिलहरी इस क्षेत्र के विशेष क्षेत्री प्राणी है। प्रो. अहमद ने बताया कि इनके आवास के नष्ट होने, बढ़ती हुई जनसंख्या एवं नयी स्पीशीज़ के प्रवेश से विशेष क्षेत्री स्पीशीज के प्राकृतिक आवास पर प्रभाव पड़ सकता है तथा इनके अस्तित्व को भी खतरा हो सकता है।

स्पशीज सजीवों की समष्टि का वह समूह है जो एक दूसरे से अंतर्जनन करने में सक्षम होते हैं। इसका अर्थ है कि एक जाति के सदस्य केवल अपनी जाति के सदस्यों के साथ, अन्य जाति के सदस्यों को छोड़कर, जननक्षम संतान उत्पन्न कर सकते हैं। एक जाति के सदस्यों में सामान्य लक्षण पाये जाते हैं।

क्रियाकलाप 5.6

जिस क्षेत्र में आप रहते हैं वहाँ के विशेष क्षेत्री पौधों और जंतुओं का पता लगाइए।

5.7 वन्यप्राणी अभ्यारण्य

शीघ्र ही पहेली ने एक बोर्ड देखा जिस पर लिखा हुआ था ‘पचमढ़ी वन्यप्राणी अभ्यारण्य’।

प्रो. अहमद ने बताया कि आरक्षित वनों की तरह ही कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वन्यप्राणी (जंतु) सुरक्षित एवं संरक्षित रहते हैं। इन्हें वन्यप्राणी अभ्यारण्य कहते हैं। माधवजी पुनः बताते हैं कि अभ्यारण्य वह स्थान हैं जहाँ प्राणियों अथवा जंतुओं को मारना या शिकार करना अथवा पकड़ना पूर्णतः निषिद्ध एवं दंडनीय अपराध है।

कुछ महत्वपूर्ण संकटापन्न वन्य जंतु जैसे कि काले हिरण, श्वेत आँखों वाले हिरण, हाथी, सुनहरी बिल्ली, गुलाबी सिर वाली बतख, घड़ियाल, कच्छ मगरमच्छ, अजगर, गेंडा इत्यादि हमारे वन्यप्राणी अभ्यारण्यों में सुरक्षित एवं संरक्षित हैं। भारतीय अभ्यारण्यों में अनूठे दृश्यभूमि, बड़े समतल वन, पहाड़ी वन तथा बड़ी नदियों के डेल्टा की झाड़ी भूमि अथवा बुशलैंड हैं।

यह अफ़सोस की बात है कि संरक्षित वन भी जीवों के लिए सुरक्षित नहीं रहे क्योंकि इनके आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोग उनका (वनों का) अतिक्रमण करके उन्हें नष्ट कर देते हैं।

बच्चों को प्राणी उद्यान (चिड़ियाघर) भ्रमण की यादें ताज़ा करने को कहा जाता है। उन्हें स्मरण है कि प्राणी उद्यान भी वह क्षेत्र हैं जहाँ हम प्राणियों (जंतुओं) का संरक्षण करते हैं।

क्रियाकलाप 5.7

निकट के चिड़ियाघर (प्राणी उद्यान) का भ्रमण कीजिए। वहाँ के प्राणियों को किन परिस्थितियों (वातावरण) में रखा गया है। इसका प्रेक्षण कीजिए।

क्या वे जन्तुओं के जीवन के लिए उपयुक्त है? क्या जन्तु प्राकृतिक आवास की अपेक्षा कृत्रिम आवास में रह सकते हैं? आपके विचार में जंतु चिड़ियाघर में अधिक आराम से हैं अथवा प्राकृतिक आवास में?

5.8 राष्ट्रीय उद्यान

सड़क के किनारे एक और बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था ‘सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान’। बच्चे अब वहाँ जाने के लिए उत्सुक थे। माधवजी ने उन्हें बताया कि यह विशाल आरक्षित क्षेत्र है तथा पर्यावरण के संपूर्ण संघटकों का संरक्षण करने में पर्याप्त है। इन्हें राष्ट्रीय उद्यान कहते हैं। यह वनस्पतिजात, प्राणीजात, दृश्यभूमि . तथा ऐतिहासिक वस्तुओं का संरक्षण करते हैं। सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान भारत का प्रथम आरक्षित वन है। सर्वोत्तम किस्म की टीक (सागौन) इस वन में मिलती है।

सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान की चट्टानों में आवास (शरण) भी स्थित है। यह इन वनों में मनुष्य की गतिविधियों के प्रागैतिहासिक प्रमाण हैं जिससे हमें आदिमानव के जीवनयापन के बारे में पता चलता है।

चट्टानों के इन मानव आवासों में कुछ पेंटिंग कलाकृतियाँ भी मिलती हैं। पचमढ़ी जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र में 55 चट्टान आवास की पहचान की जा चुकी है।

जंतु एवं मनुष्य को इन कलाकृतियों में लड़ते हुए, शिकार, नृत्य एवं वाद्ययंत्रों को बजाते हुए दर्शाया गया है। आज भी अनेक आदिवासी जंगल में रहते हैं।

जैसे बच्चे आगे बढ़े, उन्हें एक बोर्ड दिखाई दिया जिस पर लिखा था ‘सतपुड़ा बाघ आरक्षित क्षेत्र।’ माधवजी बताते हैं कि हमारी सरकार ने बाघों के संरक्षण हेतु प्रोजेक्ट टाइगर अथवा ‘बाघ परियोजना’ लागू की। इस परियोजना का उद्देश्य अपने देश में बाघों की उत्तरजीविता एवं संवर्धन करना था।

बाघ (चित्र 5.4) उन स्पीशीज़ में से एक है जो धीरे-धीरे हमारे वनों से विलुप्त होते जा रहे है। परन्तु सतपुड़ा आरक्षित क्षेत्र में बाघों की संख्या में वृद्धि हो रही है अतः यह संरक्षण का अनूठा उदाहरण है। किसी समय शेर, हाथी, जंगली भैंसे (चित्र 5.5) तथा बारहसिंघा (चित्र 5.6) भी सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते थे। वे जंतु जिनकी संख्या एक निर्धारित स्तर से कम होती जा रही है और वे विलुप्त हो सकते हैं ‘संकटापन्न जंतु’ कहलाते हैं। बूझो को डायनासोर के विषय में याद दिलाया गया जो लाखों वर्ष पूर्व विलुप्त हो चुके थे। कुछ जीवों के प्राकृतिक आवास में व्यवधान होने से उनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। प्रोफ़ेसर अहमद ने बताया कि पौधों और जंतुओं के संरक्षण के उद्देश्य से सभी राष्ट्रीय उद्यानों में कड़े नियम लागू किए जाते हैं। मानवीय गतिविधियाँ जैसे चराना, अवैध शिकार, जानवरों को पकड़ना या मारना, जलावन पौधे की लकडी या औषधीय पौधे एकत्र करना स्वीकार्य नही है।

माधवजी पहेली को बताते हैं कि बड़े जंतुओं की अपेक्षा छोटे प्राणियों के विलुप्त होने की संभावना कहीं अधिक है। अक्सर हम साँप, मेंढक, छिपकली, चमगादड़ तथा उल्लू इत्यादि को निर्दयता से मार डालते हैं और पारितंत्र में उनके महत्त्व के विषय में सोचते भी नहीं है। उनको मारकर हम स्वयं को हानि पहुँचा रहे हैं। यद्यपि वे आकार में छोटे हैं परन्तु पारितंत्र में उनके योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता। वे आहार जाल एवं आहार श्रृंखला के भाग हैं।

किसी क्षेत्र के सभी पौधे, प्राणी एवं सूक्ष्मजीव अजैव घटकों जैसे जलवायु, भूमि (मिट्टी), नदी, डेल्टा इत्यादि संयुक्त रूप से किसी पारितंत्र का निर्माण करते हैं।

5.9 रेड डाटा पुस्तक

प्रो. अहमद बच्चों को ‘रेड डाटा पुस्तक’ के विषय में समझाते हैं। वह उनको बताते हैं कि रेड डाटा पुस्तक वह पुस्तक है जिसमें सभी संकटापन्न स्पीशीज्ज्र का रिकार्ड रखा जाता है। पौधों, जंतुओं और अन्य स्पीशीज्ज के लिए अलग-अलग रेड डाटा पुस्तकें हैं।

5.10 प्रवास

माधवजी के निर्देशन में भ्रमण पार्टी गहरे वन में प्रवेश करती है। वह तवा संरक्षित क्षेत्र में कुछ समय आराम करते हैं। पहेली ने नदी के समीप कुछ पक्षी देखे। माधवजी बताते हैं कि यह प्रवासी पक्षी हैं। ये पक्षी संसार के अन्य भागों से उड़कर यहाँ आए हैं।

जलवायु में परिवर्तन के कारण प्रवासी पक्षी प्रत्येक वर्ष सुदूर क्षेत्रों से एक निश्चित समय पर उड़ कर आते हैं। वह यहाँ अंडे देने के लिए आते हैं क्योंकि उनके मूल आवास में बहुत अधिक शीत के कारण वह स्थान उस समय जीवनयापन हेतु अनुकूल नहीं होता। ऐसे पक्षी जो उड़कर सुदूर क्षेत्रों तक लम्बी यात्रा करते हैं, प्रवासी पक्षी कहलाते हैं।

5.12 पुनर्वनरोपण

प्रो. अहमद का सुझाव है कि वनोन्मूलन का उत्तर पुनर्वनरोपण है। पुनर्वनरोपण में काटे गए वृक्षों की कमी पूरी करने के उद्देश्य से नए वृक्षों का रोपण करना है। रोपण वाले वृक्ष सामान्यतः उसी स्पीशीज्ज के होते हैं जो उस वन में पाए जाते हैं। हमें कम से कम उतने वृक्ष तो लगाने ही चाहिए जितने हम काटते हैं। प्राकृतिक रूप से भी वन का पुनर्वनरोपण हो सकता है। यदि वनोन्मूलित क्षेत्र को अबाधित छोड़ दिया जाए तो यह स्वतः पुनर्स्थापित हो जाता है। प्राकृतिक पुनर्वनरोपण में मानव गतिविधियों का कोई स्थान नहीं है। हम अपने वनों को अब तक बहुत अधिक नष्ट कर चुके हैं। यदि हमें अगली पीढ़ी के लिए हरी संपदा बनाए रखनी है तो अधिक वृक्षारोपण ही एकमात्र विकल्प है।

प्रो. अहमद ने उन्हें बताया कि भारत वन (संरक्षण) अधिनियम है। इस अधिनियम का उद्देश्य प्राकृतिक वनों का परिरक्षण और संरक्षण करना है साथ ही साथ ऐसे उपाय भी करना जिससे वन में और उसके समीप रहने वाले लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

कुछ समय विश्राम करने के पश्चात् माधवजी ने बच्चों को वापस चलने को कहा क्योंकि सूर्यास्त के पश्चात् वन में रुकना ठीक नहीं है। वापस आने के बाद प्रो. अहमद एवं बच्चों ने इस उल्लासपूर्ण अनुभव के लिए माधवजी का आभार व्यक्त किया।

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अभ्यास

1. रिक्त स्थानों की उचित शब्दों द्वारा पूर्ति कीजिए

(क) वह क्षेत्र जिसमें जंतु अपने प्राकृतिक आवास में संरक्षित होते हैं, चिड़ियाघर कहलाता है।

(ख) किसी क्षेत्र विशेष में पाई जाने वाली स्पीशीज विशेष क्षेत्री स्पीशीज कहलाती हैं।

(ग) प्रवासी पक्षी सुदूर क्षेत्रों से जलवायु परिवर्तन के कारण पलायन करते हैं।

2. निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए

(क) वन्यप्राणी उद्यान एवं जैवमण्डलीय आरक्षित क्षेत्र
Ans.
वन्यप्राणी उद्यान में केवल जंतु को सुरक्षा मिलती है और वहाँ पर इंसानों के दखल की सख्त मनाही होती है। जैवमण्डलीय आरक्षित क्षेत्र में जंतुओं के अलावा वहाँ की जैव विविधता और उस वन के आस पास रहने वाले लोगों की मूल आवश्यकताओं का भी खयात रखा जाता है। वन्यप्राणी उद्यान असल में जैवमण्डलीय आरक्षित क्षेत्र का एक हिस्सा होता है।

(ख) चिड़ियाघर एवं अभ्यारण्य
Ans.
चिड़ियाघर में जंतु अपने प्राकृतिक आवास में नहीं रहते हैं, जबकि अभयारण में जंतु अपने प्राकृतिक आवास में रहते हैं।

(ग) संकटापन्न एवं विलुप्त स्पीशीज
Ans.
जिस स्पीशीज पर विलुप्त होने का खतरा रहता है उसे संकटापन्न स्पीशीज कहते हैं। जो स्पीशीज अब पृथ्वी पर से हमेशा के लिए समाप्त हो चुकी है उसे विलुप्त स्पीशीज कहते हैं।

(घ) वनस्पतिजात एवं प्राणिजात
Ans.
किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले पादपों की प्रजातियों को सामूहिक रूप से उस क्षेत्र का वनस्पतिजात कहते हैं। किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले जंतुओं की प्रजातियों को सामूहिक रूप से उस क्षेत्र का प्राणिजात कहते हैं।

3. वनोन्मूलन का निम्न पर क्या प्रभाव पड़ता है, चर्चा कीजिए

(क) वन्यप्राणी
Ans. वनोन्मूलन के कारण वन्यप्राणि का आवास सिमटता जा रहा है। इससे उनके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।

(ख) पर्यावरण
Ans. वनोन्मूलन से पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो जाती है। भोमजल स्तर गिर जाता है और भीषण बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाता है।

(ग) गाँव (ग्रामीण क्षेत्र)
Ans. . गाँव में रहने वाले लोग सीधे तौर पर वन पर आश्रित नहीं होते हैं। लेकिन भीषण बाढ़ आने से जान माल का काफी नुकसान होता है।

(घ) शहर (शहरी क्षेत्र)
Ans. गाँव में बाढ़ से होने वाली तबाही के कारण भोजन की कमी होने लगती है जिसका असर शहरों पर भी पड़ता है। पर्यावरण में होने वाले बुरे बदलावों से हर किसी का जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है।

(ङ) पृथ्वी
Ans. पृथ्वी के पर्यावरण को काफी नुकसान होता है।

(च) अगली पीढ़ी
Ans. अगली पीढ़ी को बहुत ही दूषित पर्यावरण मिलने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसी भविष्यवाणी की जा रही है कि आने वाली समय में पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ जाएगा। भविष्य में बाढ़ और तूफान अधिक विनाशकारी हो जाएँगे।

4. क्या होगा यदि

(क) हम वृक्षों की कटाई करते रहे?
Ans. यदि हम वृक्षों की कटाई करते रहें तो एक समय ऐसा आएगा जब पृथ्वी के सारे वन्यजीवों का सफाया हो जाएगा। जमीन की उर्वरता बहुत कम हो जाएगी जिससे भोजन का संकट पैदा हो जाएगा। पर्यावरण इतना दुषित हो जाएगा कि जीना मुश्किल हो जाएगा।

(ख) किसी जंतु का आवास बाधित हो?
Ans. यदि किसी जंतु का आवास बाधित होता है तो उससे उस जंतु और इंसानों दोनों पर बुरे असर पड़ते हैं। आवास कम होने पर जंतु और इंसान के बीच टकराव बढ़ जाता है। गाँवों और खेतों पर तेंदुओं और हाथी के आक्रमण के आपने कई किस्से सुने होंगे। जंतु के आवास के कम होने से पारितंत्र का संतुलन भी बिगड़ जाता है।

(ग) मिट्टी की ऊपरी परत अनावरित हो जाए?
Ans. मिट्टी की ऊपरी परत हट जाने से वह जगह खेती के लायक नहीं रह जाती है। धीरे धीरे नीचे की कठोर चट्टानें दिखने लगती हैं। समय बीतने के साथ वह स्थान मरुस्थल में बदल जाता है जहाँ जीवन बहुत मुश्किल हो जाता है।

5. संक्षेप में उत्तर दीजिए

(क) हमें जैव विविधता का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
Ans. जैव विविधता से अभिप्राय किसी क्षेत्र विशेष में पाए जाने वाले सभी पोधों, जंतुओं तथा सूक्ष्मजीवों की विभिन्न प्रजातियों से है। इनका संरक्षण इसलिए जरूरी है ताकि इनको विलुप्त होने से बचाया जा सके।

(ख) संरक्षित वन भी वन्य जंतुओं के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं हैं, क्यों?
Ans. सख्त कानून बनने के बावजूद अपराधी प्रवृत्ति के लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं। संरक्षित वन में जानवरों के शिकार और उनकी तस्करी के मामले सामने आते रहते हैं। कुछ आम लोग भी अपनी जरूरतों को पूरा करने के चक्कर में वन के आस पास की जमीन को नुकसान पहुंचाते हैं।

(ग) कुछ आदिवासी वन (जंगल) पर निर्भर करते हैं। कैसे?
Ans. आदिवासी अपनी बहुत सी जरूरतों के लिए वन पर निर्भर करते हैं। वे जंगल से जलावन लेते हैं। वे जंगल से केंद्र पत्ता और लाख इकट्ठा करके बाजार में बेचते हैं। वे जंगल से जड़ी बूटियाँ भी इकट्ठा करते हैं।

(घ) वनोन्मूलन के कारक और उनके प्रभाव क्या हैं?
Ans. वनोन्मूलन का अर्थ हे वनों को समाप्त करने पर प्राप्त भूमि का अन्य कार्यों में उपयोग करना। वन में वृक्षों की कटाई निम्न उद्देश्यों से की जाती है:-

• कृषि के लिए भूमि प्राप्त करना
• घरों एवं कारखानों का निर्माण
• फर्नीचर बनाने अथवा तकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग
• दावानल एवं भीषण सूखा भी बनोन्मूलन के कुछ प्राकृतिक कारक हैं।

इसके प्रभाव भी निम्नलिखित है, जैसे:-

• पृथ्वी की ताप में वृद्धि होना
• वर्षा की दर में कमी
• मृदा के गुणों में परिवर्तन

(ङ) रेड डाटा पुस्तक क्या है?
Ans. यह एक किताब है जिसमें संकटापन्न प्रजातियों का रेकॉर्ड रहता है।

(च) प्रवास से आप क्या समझते हैं?
Ans. खराब मौसम से बचने के लिए पक्षी और जंतु लम्बी दूरी की यात्रा करते हैं। इस काम को प्रवास कहते हैं।

अथवा

जलवायु में परिवर्तन के कारण प्रवासी पक्षी प्रत्येक वर्ष सुदूर क्षेत्रों से एक निश्चित समय पर उड़ कर आते हैं। वह यहाँ अंडे देने के लिए आते हैं क्योंकि उनके मूल आवास में बहुत अधिक शीत के कारण वह स्थान उस समय जीवनयापन हेतु अनुकूल नहीं होता। ऐसे पक्षी जो उड़कर सुदूर क्षेत्रों तक लम्बी यात्रा करते हैं, प्रवासी कहलाता है।

6. फैक्ट्रियों एवं आवास की माँग की आपूर्ति हेतु बनों की अनवरत कटाई हो रही है। क्या इन परियोजनाओं के लिए वृक्षों की कटाई न्यायसंगत है? इस पर चर्चा कीजिए तथा एक संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार कीजिए।
Ans.
नहीं, फैक्ट्रियों एवं आवास की माँग की आपूर्ति हेतु कटाई करना न्यायसंगत नहीं है। पेड़ों को काटने से ऑक्सीजन में कमी आ जाती है, ग्लोबल वार्मिंग बढ़ जाती है। जिससे प्रत्येक व्यक्ति का जीवन दुभर हो जाता है। पेड़ों को काटने से ही वर्षा में कमी आई है। पेड़ वर्षा लाने में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।

7. अपने स्थानीय क्षेत्र में हरियाली बनाए रखने में आप किस प्रकार योगदान दे सकते हैं? अपने द्वारा की जाने वाली क्रियाओं की सूची तैयार कीजिए।
Ans.
अपने स्थानीय क्षेत्र में हरियाली बनाए रखने के लिए में अपने आस पड़ोस में पेड़ लगाउँगा। लोगों से अपील करूंगा कि जितना हो सके पेड़ लगाएँ। हर कोई अपनी बालकनी या बरामदे में छोटा सा बगीचा भी लगा सकता है।

8. वनोन्मूलन से वर्षा दर किस प्रकार कम हुई है? समझाइए।
Ans.
हम जानते हैं कि पेड़ वाष्पोत्सर्जन की क्रिया द्वारा वायुमंडल में भारी मात्रा में जलवाष्प छोड़ते हैं। इस तरह वर्षा में उनका अहम योगदान होता है। वनोन्मूलन के कारण यह योगदान कम पड़ता जा रहा है। इसलिए वनोन्मूलन से वर्षा दर कम हुई है।

अथवा

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधों को भोजन बनाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है। कम वृक्षों का अर्थ है कार्बन डाइऑक्साइड के उपयोग में कमी आना जिससे वायुमण्डल में इसकी मात्रा बढ़ जाती है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित ऊष्मीय विकिरणों का प्रग्रहण कर लेती है। अतः इसकी मात्रा में वृद्धि के परिणामस्वरूप विश्व कृष्णन होता है। पृथ्वी के ताप में वृद्धि के जलचक्र का संतुलन बिगड़ता है और वर्षा दर में कमी आती है जिसके कारण सूखा पड़ता है।

9. अपने राज्य के राष्ट्रीय उद्यानों के विषय में सूचना एकत्र कीजिए। भारत के रेखा मानचित्र में उनकी स्थिति दर्शाइए?
Ans.
बच्चे इसे स्वयं करेंगे।

10. हमें कागज की बचत क्यों करना चाहिए? उन कार्यों की सूची बनाइए जिनके द्वारा आप कागज की बचत कर सकते हैं।
Ans. 
कागज बनाने के लिए कच्चा माल पेड़ों से मिलता है। यदि कागज का अधिक इस्तेमाल होगा तो अधिक से अधिक पेड़ों को काटने की जरूरत पड़ेगी। इसलिए कागज की बचत जरूरी है। हम कई तरीकों से कागज की बचत कर सकते हैं। इस्तेमाल हुए लिफाफों पर हम गणित का रफ काम कर सकते हैं। यदि संभव हो तो लिफाफों को कई बार इस्तेमाल करना चाहिए। कॉपी के हर पन्ने पर लिखना चाहिए और किसी भी पन्ने को खाली नहीं छोड़ना चाहिए। पुराने और रद्दी कागज को कबाड़ी वाले को देना चाहिए ताकि कागज का पुनर्चक्रण हो सके।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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