उपभोक्ता अधिकार : अध्याय 5

उपरोक्त संग्रह उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के निर्णयों के कुछ समाचारों के नमूने हैं। इन मामलों में लोग इन संगठनों में क्यों गये? ये निर्णय इस लिए दिये गये क्योंकि कुछ लोग न्याय पाने के लिए दृढ़ एवं संघर्षरत रहे। किस तरह वे न्याय को पाने के लिए तरसते रहे? इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि जब उन्हें लगा कि उनके साथ गलत हुआ है, तो विक्रेताओं से यथोचित व्यवहार प्राप्त करने के लिए वे अपने उपभोक्ता अधिकार का प्रयोग कैसे कर सकते हैं?

बाज़ार में उपभोक्ता

बाजार में हमारी भागीदारी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है। वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादक के रूप में, हम पहले वर्णित कृषि, उद्योग या सेवा जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हो सकते हैं। उपभोक्ताओं की भागीदारी बाज़ार में तब होती है, जब वे अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं। उपभोक्ता के रूप में लोगों द्वारा उपभोग किए जानेवाली ये अंतिम वस्तुएँ होती हैं।

पिछले अध्यायों में हमने विकास को बढ़ावा देने के लिए जरूरी नियमों और नियंत्रणों या इसके लिए उठाये गए कदमों की आवश्यकता का वर्णन किया है। इनका महत्त्व असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की सुरक्षा के लिए उसी तरह हो सकता है, जिस तरह साहूकारों द्वारा लगाए जाने वाले उच्च ब्याज दर से लोगों को बचाने के लिए नियमों और नियंत्रणों की जरूरत होती है। इसी प्रकार से पर्यावरण की सुरक्षा के लिए नियमों एवं विनियमों की आवश्यकता है।

उदाहरण के लिए, अनौपचारिक क्षेत्रों के साहूकार जिनके बारे में आप पहले के अध्याय 3 में पढ़ चुके हैं, कर्जदार पर बंधन डालने के लिए तरह-तरह के दाँव-पेच अपनाते हैं। सामयिक ऋण के कारण वे उत्पादक को उत्पाद निम्न दर पर बेचने के लिए मजबूर कर सकते हैं। वे स्वप्ना जैसी महिला को ऋण चुकाने के लिए अपनी जमीन बेचने को विवश कर सकते हैं। इसी प्रकार, असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले बहुत से लोगों को निम्न वेतन पर कार्य करना पड़ता है और उन परिस्थितियों को झेलना पड़ता है, जो न्यायोचित नहीं होती हैं और प्रायः उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होती हैं। ऐसे शोषण को रोकने के लिए और उनकी सुरक्षा हेतु हमने नियमों एवं विनियमों की बात की है। ऐसी कई संस्थाएँ हैं जिन्होनें यह सुनिश्चित करने के लिए लम्बा संघर्ष किया है कि इन नियमों का अनुपालन हो।

बाज़ार में भी उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए नियम एवं विनियमों की आवश्यकता होती है, क्योंकि अकेला उपभोक्ता प्रायः स्वयं को कमजोर स्थिति में पाता है। खरीदी गयी वस्तु या सेवा के बारे में जब भी कोई शिकायत होती है, तो विक्रेता सारा उत्तरदायित्व क्रेता पर डालने का प्रयास करता है। सामान्यतः उनकी प्रतिक्रिया होती है: “आपने जो खरीदा है अगर वह पसंद नहीं है तो कहीं और जाइए।” मानो, बिक्री हो जाने के बाद विक्रेता की कोई जिम्मेदारी नहीं रह जाती। उपभोक्ता आंदोलन, जिसके बारे में हम आगे बात करेंगे, इस स्थिति को बदलने का एक प्रयास है।

बाज़ार में शोषण कई रूपों में होता है। उदाहरणार्थ, कभी-कभी व्यापारी अनुचित व्यापार करने लग जाते हैं, जैसे दुकानदार उचित वजन से कम वजन तौलते हैं या व्यापारी उन शुल्कों को जोड़ देते हैं, जिनका वर्णन पहले न किया गया हो या मिलावटी/दोषपूर्ण वस्तुएँ बेची जाती हैं।

जब उत्पादक थोड़े और शक्तिशाली होते हैं और उपभोक्ता कम मात्रा में खरीददारी करते हैं और बिखरे हुए होते हैं, तो बाज़ार उचित तरीके से कार्य नहीं करता है। विशेष रूप से यह स्थिति तब होती है, जब इन वस्तुओं का उत्पादन बड़ी कंपनियाँ कर रही हों। अधिक पूँजीवाली, शक्तिशाली और समृद्ध कंपनियाँ विभिन्न प्रकार से चालाकीपूर्वक बाज़ार को प्रभावित कर सकती हैं। उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए वे समय-समय पर मीडिया और अन्य स्त्रोतों से गलत सूचना देते हैं। उदाहरण के लिए, एक कंपनी ने यह दावा करते हुए कि माता के दूध से हमारा उत्पाद बेहतर है, सर्वाधिक वैज्ञानिक उत्पाद के रूप में शिशुओं के लिए दूध का पाउडर पूरे विश्व में कई वर्षों तक बेचा। कई वर्षों के लगातार संघर्ष के बाद कंपनी को यह स्वीकार करना पड़ा कि वह झूठे दावे करती आ रही थी। इसी तरह, सिगरेट उत्पादक कंपनियों से यह बात मनवाने के लिए कि उनका उत्पाद कैंसर का कारण हो सकता है, न्यायालय में लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। अतः उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियम और विनियमों की आवश्यकता है।

उपभोक्ता आंदोलन

उपभोक्ता आंदोलन का प्रारंभ उपभोक्ताओं के असंतोष के कारण हुआ, क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यावसायिक व्यवहारों में शामिल होते थे। बाज़ार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लम्बे समय तक, जब एक उपभोक्ता एक विशेष ब्रांड उत्पाद या दुकान से संतुष्ट नहीं होता था तो सामान्यतः वह उस ब्रांड उत्पाद को खरीदना बंद कर देता था या उस दुकान से खरीददारी करना बंद कर देता था। यह मान लिया जाता था कि यह उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि एक वस्तु या सेवा को खरीदते वक्त वह सावधानी बरते। संस्थाओं को लोगों में जागरुकता लाने में, भारत और पूरे विश्व में कई वर्ष लग गए। इसने वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी विक्रेताओं पर भी डाल दिया।

भारत में ‘सामाजिक बल’ के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ। अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ। 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत् स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी का आयोजन का कार्य करने लगीं थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ और राशन दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नज़र रखने के लिए उपभोक्म दल बनाया। हाल में, भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।

इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप, यह आंदोलन बृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 कानून का बनना था, जो COPRA के नाम से प्रसिद्ध है। आप COPRA के बारे में आगे पढ़ेंगे।

उपभोक्ता इंटरनेशनल

1985 में संयुक्त राष्ट्र ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देशों को अपनाया। यह उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उपयुक्त तरीके अपनाने हेतु राष्ट्रों के लिए और ऐसा करने के लिए अपनी सरकारों को मजबूर करने हेतु ‘उपभोक्ता की वकालत करने वाले समूह’ के लिए, एक हथियार था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह उपभोक्ता आंदोलन का आधार बना। आज उपभोक्ता इंटरनेशनल 100 से भी अधिक देशों के 200 संस्थाओं का एक संरक्षक संस्था बन गया है।

उपभोक्ता अधिकार

रेजी का कष्ट

रेजी मेथ्यू, कक्षा 9 का एक स्वस्थ लड़का, केरल के एक निजी चिकित्सालय में टॉन्सिल निकलवाने के लिए भर्ती हुआ। एक ई.एन.टी. सर्जन ने सामान्य बेहोशी की दवा देकर टॉन्सिल निकालने के लिए ऑपरेशन किया। अनुचित बेहोशी के कारण रेजी में दिमागी असामान्यता के लक्षण आ गए, जिसकी वजह से वह जीवन भर के लिए अपंग हो गया।

उसके पिता ने सेवा में चिकित्सा की गलती और लापरवाही के लिए राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण समिति में 5,00,000 के मुआवजे का दावा किया। राज्य समिति ने यह कह कर मामला खारिज कर दिया कि सबूत पर्याप्त नहीं है। रेजी के पिता ने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण समिति में पुनः अपील की। मामले की जाँच करने के बाद राष्ट्रीय समिति ने अस्पताल को चिकित्सा में लापरवाही का दोषी पाया और हर्जाना देने का निर्देश दिया।

रेजी की व्यथा यह साबित करती है कि कैसे एक अस्पताल में चिकित्सकों और कर्मचारियों द्वारा बेहोश करने में लापरवाही के कारण एक छात्र जिन्दगी भर के लिए अपंग हो जाता है। जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत-सी वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करते हैं, तो हमें वस्तुओं के बाजारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार होता है, क्योंकि ये जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक होते हैं। उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा नियमों और विनियमों का पालन करें। ऐसी बहुत सी वस्तुएँ और सेवाएँ हैं, जिन्हें हम खरीदते हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए, प्रेशर कूकर में एक सेफ्टी वॉल्व होता है, जो यदि खराब हो तो भयंकर दुर्घटना का कारण हो सकता है। सेफ्टी वॉल्व के निर्माता को इसकी उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करनी चाहिए। आपको सार्वजनिक या सरकारी कार्यवाहियों को देखकर यह सुनिश्चित करना होगा कि गुणवत्ता का पालन किया गया है या नहीं? फिर भी हमें बाजार में निम्न गुणवत्तावाले उत्पाद प्राप्त होते हैं, क्योंकि इन नियमों का पर्यवेक्षण उचित रूप से नहीं हो रहा है और उपभोक्ता आंदोलन भी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है।

वस्तुओं और सेवाओं के बारे में जानकारी

जब आप कोई वस्तु खरीदेंगे तो उसके पैकेट पर कुछ खास जानकारियाँ पाएँगे। ये जानकारियाँ उस वस्तु के अवयवों, मूल्य, बैच संख्या, निर्माण की तारीख, खराब होने की अंतिम तिथि और वस्तु बनाने वाले के पते के बारे में होती है। जब हम कोई दवा खरीदते हैं तो उस दवा के ‘उचित प्रयोग के बारे में निर्देश’ और उस दवा के प्रयोग के अन्य प्रभावों और खतरों से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जब आप वस्त्र खरीदेंगे तो ‘धुलाई संबंधी निर्देश’ प्राप्त करेंगे।

आखिर ऐसे नियम क्यों बनाये गए हैं कि वस्तु बनाने वाले को ये जानकारियाँ देनी पड़ती है? यह इसलिए कि उपभोक्ता जिन वस्तुओं और सेवाओं को खरीदता है, उसके बारे में उसे सूचना पाने का अधिकार है। तब उपभोक्ता वस्तु की किसी भी प्रकार की खराबी होने पर शिकायत कर सकता है, मुआवजे पाने या वस्तु बदलने की माँग कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि हम एक उत्पाद खरीदते हैं और उसके खराब होने की अन्तिम तिथि के पहले ही वह खराब हो जाता है, तो हम उसे बदलने के बारे में कह सकते हैं। यदि वस्तु खराब होने की अन्तिम समय-सीमा उस पर नहीं छपी है, तब विनिर्माता दुकानदार पर आरोप लगा देगा और अपनी जिम्मेदारी नहीं मानेगा। यदि लोग अंतिम तिथि समाप्त हो गई दवाओं को बेचते हैं, तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है। इसी तरह से यदि, कोई व्यक्ति मुद्रित मूल्य से अधिक मूल्य पर वस्तु बेचता है तो कोई भी उसका विरोध और शिकायत कर सकता है। यह अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) के द्वारा इंगित किया हुआ होता है। वस्तुतः उपभोक्ता, विक्रेता से अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) से कम दाम पर वस्तु देने के लिए मोल-भाव कर सकते हैं।

आज सरकार प्रदत्त विविध सेवाओं को उपयोगी बनाने के लिए सूचना पाने के अधिकार को बढ़ा दिया गया है। सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया जो RTI (राइट टू इनफॉरमेशन) या सूचना पाने का अधिकार के नाम से जाना जाता है और जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्य-कलापों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है। आर.टी.आई. एक्ट के प्रभाव को निम्नलिखित केसों के द्वारा समझा जा सकता है-

इंतज़ार …

अमृता नाम की एक इंजीनियरिंग स्नातक ने नौकरी पाने के लिए अपने सभी प्रमाणपत्रों को जमा करने तथा इंटरव्यू देने के बाद भी एक सरकारी विभाग में कोई रिजल्ट नहीं प्राप्त किया। कर्मचारियों ने भी उसके प्रश्नों का उत्तर देने से इनकार कर दिया। तब उसने एक्ट का प्रयोग करते हुए एक प्रार्थना पत्र दिया और यह कहा कि एक उचित समय तक परिणाम की जानकारी पाना उसका अधिकार था, जिससे कि वह अपने भविष्य की योजना बना सके। उसको न केवल रिजल्ट की घोषणा में देरी के कारणों के बारे में सूचित किया गया बल्कि उसको नियुक्ति के लिए बुलावे का पत्र मिल गया क्योंकि उसने इंटरव्यू अच्छा दिया था।

पैसे लौटाए गए

अंसारी नगर के अबिरामी नामक एक छात्रा ने दिल्ली में व्यावसायिक पाठ्यक्रम में पढ़ने के लिए एक क्षेत्रीय कोचिंग संस्थान के दो वर्षीय पाठ्यक्रम में नामांकन कराया। पाठ्यक्रम में भाग लेने के समय, पूरे दो वर्ष के अध्ययन के लिए करीब 61,020 रुपये जमा किए। लेकिन उसने यह पाया कि पढ़ाई का स्तर वहाँ ठीक नहीं है, इसीलिए उसने साल के अंत में पाठ्यक्रम को छोड़ देने का निश्चय किया। जब उसने एक साल का पैसा लौटाने की बात की, तो उसे मना कर दिया गया।

जब उसने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में मुकदमा दायर किया, तो आयोग ने संस्था को यह कहते हुए 28,000 रुपया लौटाने का आदेश दिया कि छात्रा को चुनने का अधिकार है। संस्थान ने पुनः राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। राज्य उपभोक्ता आयोग ने जिला आयोग के निर्देश को सुरक्षित रखते हुए आगे संस्थान को बेकार की अपील करने के लिए 25,000 का दंड लगाया। उसने संस्थान को 7,000 रूपये मुआवजे और याचिका खर्च के रूप में छात्रा को देने के लिए कहा।

राज्य आयोग ने सभी शिक्षा संस्थानों और व्यावसायिक संस्थाओं को विद्यार्थियों से पूरे साल की फीस को एडवांस में लेने से भी मना किया। आयोग के अनुसार, इस आदेश का उलंघन करने पर दंड शुल्क भरना पड़ सकता है साथ ही जेल भी हो सकती है।

हम इस घटना से क्या समझते हैं? किसी भी उपभोक्ता को जो कि किसी सेवा को प्राप्त करता है, चाहे वह किसी भी आयु या लिंग का हो और किसी भी तरह की सेवा प्राप्त करता हो, उसको सेवा प्राप्त करते हुए हमेशा चुनने का अधिकार होगा। मान लीजिए, आप एक दंतमंजन खरीदना चाहते हैं और दुकानदार कहता है कि वह केवल दंतमंजन तभी बेचेगा, जब आप दंतमंजन के साथ एक ब्रश भी खरीदेंगे। अगर आप ब्रश खरीदने के इच्छुक नहीं हैं, तब आपके चुनने के अधिकार का उलंघन हुआ है। ठीक इसी तरह, कभी-कभी जब आप नया गैस कनेक्शन लेते हैं तो गैस डीलर उसके साथ एक चूल्हा भी लेने के लिए दबाव डालता है। इस प्रकार कई बार हमें उन वस्तुओं को खरीदने के लिए भी दबाव डाला जाता है, जिनको खरीदने की हमारी इच्छा बिलकुल नहीं होती और तब आपके पास चुनाव के लिए कोई विकल्प नहीं होता।

इन उपभोक्ताओं को न्याय पाने के लिए कहाँ जाना चाहिए?

रेजी मैथ्यू और अबिरामी के प्रकरणों को पुनः पढ़ें, जो पिछले अध्यायों में दिया जा चुका है।

ये कुछ उदाहरण हैं, जिनमें उपभोक्ताओं के अधिकारों की अवहेलना की गई है। ऐसी घटनाएँ अक्सर हमारे देश में घटित होती रहती हैं। इस स्थिति में, इन उपभोक्ताओं को न्याय पाने के लिए कहाँ जाना चाहिए?

उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी और शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार है। यदि एक उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचाई जाती है, तो क्षति की मात्रा के आधार पर उसे क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूरा करने के लिए एक आसान और प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है।

उपभोक्ता, उपयुक्त उपभोक्ता केन्द्र के सम्मुख अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है, स्वयं किसी वकील के साथ अथवा वकील की सेवा के बिना।

ऑप यह जानने के लिए इच्छुक होंगे कि कैसे एक पीड़ित व्यक्ति अपनी क्षतिपूर्ति प्राप्त करता है। अब हम श्री प्रकाश के मामले को लेते हैं। इन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए अपने गाँव एक मनीऑडर भेजा। उनकी बेटी को जब इन पैसों की ज़रूरत थी, तब पैसे नहीं प्राप्त हुए। यहाँ तक कि महीनों बाद भी नहीं पहुँचे। प्रकाश ने नयी दिल्ली के एक जिला स्तर के उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में मुकदमा दर्ज किया। उन्होंने जो कदम उठाए, वे सभी विस्तार से नीचे दिए जा रहे हैं। आजकल उपभोक्ता, एक व्यक्ति के रूप में या एक समूह के रूप में (जिसे क्लास एक्शन सूट कहा जाता है), शारीरिक रूप में अथवा इंटरनेट के माध्यम से अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा अपने मुकदमों की कार्यवाही करवा सकते हैं।

7. वे आयोग कार्यालय में मुकदमें पर स्वयं बहस करते हैं।

8. आयोग कार्यालय के जज दस्तावेजों का सत्यापन करते हैं और पीड़ित पक्ष तथा दूसरे पक्ष, दोनों की दलीलें सुनते हैं।

भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने विभिन्न संगठनों के निर्माण में पहल की है, जिन्हें सामान्यतया उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता संरक्षण परिषद् के नाम से जाना जाता है। ये उपभोक्ता आयोग विवाद निवारण का मार्गदर्शन करती हैं कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज कराएँ। बहुत से अवसरों पर ये इन आयोगों में व्यक्ति विशेष (उपभोक्ता) का प्रतिनिधि त्व भी करते हैं। ये स्वयंसेवी संगठन जनता में जागरूकता पैदा करने के लिए सरकार से वित्तीय सहयोग भी प्राप्त करते हैं।

यदि आप एक आवासीय कॉलोनी में रहते हैं तो आपने ‘निवासी कल्याण संघ’ का नामपट्ट अवश्य देखा होगा। यदि उनके किसी सदस्य के साथ कोई अनुचित व्यावसायिक कार्रवाई होती है, तो उनकी तरफ से संस्था मामले को देखती है।

कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है। जिला स्तर का प्राधिकरण जिसे उपभोक्ता आयोग विवाद निवारण केन्द्र भी कहते हैं। 1 करोड़ तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करता है, राज्य स्तरीय प्राधिकारण जिसे राज्य आयोग कहते हैं। 1 करोड़ से 10 करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की प्राधिकरण राष्ट्रीय आयोग, 10 करोड़ से उपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती हैं। यदि कोई मुकदमा जिला स्तर के आयोग में खारिज कर दिया जाता है, तो उपभोक्ता राज्य स्तर के आयोग में और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर के आयोग में भी अपील कर सकता है।

इस प्रकार, अधिनियम ने उपभोक्ता के रूप में उपभोक्ता न्यायालय में प्रतिनिधित्व का अधिकार देकर हमें समर्थ बनाया है।

जागरूक उपभोक्ता बनने के लिए आवश्यक बातें

जब हम विभिन्न वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदते वक्त, उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे, तब हम अच्छे और बुरे में फर्क करने तथा श्रेष्ठ चुनाव करने में सक्षम होंगे। एक जागरूक उपभोक्ता बनने के लिए निपुणता और ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत होती है। हम अपने अधिकारों के प्रति सचेत कैसे हों? निम्नलिखित पृष्ठ और पहले के पृष्ठों के विज्ञापनों को देखें। आप क्या सोचते हैं?

कोपरा (COPRA) अधिनियम ने केंद्र और राज्य सरकारों में उपभोक्ता मामले के अलग विभागों को स्थापित करने में मुख्य भूमिका अदा की है। आप जो विज्ञापन देख चुके हैं, वह एक उदाहरण है, जिसके द्वारा सरकार कानूनी प्रक्रिया के बारे में नागरिकों को अवगत कराती है, जिसका वे प्रयोग कर सकें। आपने टेलीविजन चैनलों पर भी ऐसे विज्ञापन देखे होंगे।

विभिन्न वस्तुएँ खरीदते समय आपने आवरण पर लिखे अक्षरों- आई.एस.आई, एगमार्क, हॉलमार्क के शब्दचिन्ह (लोगो) को अवश्य देखा होगा। जब उपभोक्ता कोई वस्तु या सेवाएँ खरीदता है, तो ये शब्दचिह्न (लोगो) और प्रमाणक चिह्न उन्हें अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित कराने में मदद करते हैं। ऐसे संगठन जो कि अनुवीक्षण तथा प्रमाणपत्रों को जारी करते हैं, उत्पादकों को उनके द्वारा श्रेष्ठ गुणवत्ता पालन करने की स्थिति में शब्दचिह्न (लोगो को) प्रयोग करने की अनुमति देते हैं।

यद्यपि ये संगठन बहुत से उत्पादों के लिए गुणवत्ता का मानदंड विकसित करते हैं, लेकिन सभी उत्पादकों का इन मानदण्डों का पालन करना जरूरी नहीं होता। फिर भी, कुछ उत्पाद जो उपभोक्ता की सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं या जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर होता है, जैसे कि, एल.पी.जी. सिलिंडर्स, खाद्य रंग एवं उसमें प्रयुक्त सामग्री, सीमेंट, बोतलबंद पेयजल आदि। इनके उत्पादन के लिए यह अनिवार्य होता है कि उत्पादक इन संगठनों से प्रमाण प्राप्त करें।

उपभोक्ता आंदोलन को आगे बढ़ाने के संबंध में

24 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। 1986 में इसी दिन भारतीय संसद ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया था। भारत उन देशों में से एक है, जहाँ उपभोक्ता संबंधित समस्याओं के निवारण के लिए विशिष्ट न्यायालय हैं।

भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने संगठित समूहों की संख्या और उनकी कार्य विधियों के मामले में कुछ तरक्की की है। आज देश में 2000 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं, जिनमें से केवल 50-60 ही अपने कार्यों के लिए पूर्ण संगठित और मान्यता प्राप्त हैं।

फिर भी, उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है। कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। ये मुकदमें आयोग की कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते हैं। अधिकांश खरीददारियों के समय रसीद नहीं दी जाती हैं, ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना आसान नहीं होता है। इसके अलावा बाज़ार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटे फुटकर दुकानों से होती हैं।

उपभोक्ता के अधिकारों को मज़बूती देने हेतु कोपरा (COPRA) का वर्ष 2019 में संशोधन हुआ था। जिसमें अब इंटरनेट के माध्यम से खरीद भी शामिल है। यदि कोई सेवा में कमी या दोषपूर्ण उत्पाद है, तो सेवा प्रदाता और निर्माता को भी ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा और दंडित किया जाएगा। यहां तक कि जेल भी हो सकती है। उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के बाहर तटस्थ मध्यस्थ की सहायता से विवादों के निपटारे को अब उपभोक्ता आयोग के सभी तीन स्तरों पर प्रोत्साहित किया गया है। कोपरा के अधिनियम के 35 वर्ष बाद भी भारत में उपभोक्ता ज्ञान बहुत धीरे-धीरे फैल रहा है। श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद, खास तौर से असंगठित क्षेत्र में ये कमजोर हैं। इस प्रकार, बाजारों के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता।

फिर भी, उपभोक्ताओं को अपनी भूमिका और अपना महत्त्व समझने की जरूरत है। यह अक्सर कहा जाता है कि उपभोक्ताओं की सक्रिय भागीदारी से ही उपभोक्ता आंदोलन प्रभावी हो सकता है। इसके लिए स्वैच्छिक प्रयास और सबकी साझेदारी से युक्त संघर्ष की जरूरत है।

यह भी पढ़ें : वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था : अध्याय 4

अभ्यास

1. बाज़ार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़‌ती है? कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाएँ।
Ans.
बाजार में नियमों तथा भी नियमों की आवश्यकता इसलिए पड़ती है ताकि उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। क्योंकि जब उपभोक्ताओं का शोषण होता है तो वह प्राय स्वयं को कमजोर स्थिति में पाते हैं। खरीदी गई वस्तु के कीबारे में जब कोई भी शिकायत होती है, तो विक्रेता सारे उत्तरदायित्व क्रेता पर डाल देता है और कई तरीकों से उपभोक्ताओं का शोषण कर सकता है। कई बार तो उपभोक्ताओं को बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा मीडिया तथा अन्य स्त्रोतों में दी गई गलत सूचना के प्रभाव से भी ठगा जाता है।
उदहारण: व्यापारी अनुचित व्यापार करने लग जाते हैं, कम तौलने लगते हैं या मिलावटी वस्तुएं बेचने लग जाते हैं।

2. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में पता लगाएँ।
Ans.
सरकार ने दुकानदारों और निर्माताओं द्वारा उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए अनेक नियम बनाएं। ताकि उपभोक्ताओं को मिलावटी चीजों, दुकानदारों और उत्पादकों की चालाकी और ठगी, अन्य शुल्कों आदि से बचाया जा सके।

उपभोक्ता आंदोलन ग्राहकों को उत्पादकों व्यापारियों और दुकानदारों द्वारा ठगे जाने के कारण शुरू हुआ। यह 1960 के दशक में शुरू हुआ और अंत में 1986 ईसवी में उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पास हुआ।

अथवा

मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन, आदि की परंपरा भारत के व्यापारियों के बीच काफी पुरानी है। भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे। लेकिन 1970 के दशक तक इस प्रकार के आंदोलन का मतलब केवल अखबारों में लेख लिखना और प्रदर्शनी लगाना ही होता था। विगत कुछ वर्षों से इस आंदोलन ने गति पकड़ी है। इस लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप 1986 में कोपरा को लागू किया गया।

3. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत का वर्णन करें।
Ans.

1. उपभोक्ताओं को दुकानदारों द्वारा एमआरपी से अधिक मूल्य पर उत्पाद बेचे जाते थे, और एक्सपायर्ड वस्तुओं को भी बेच दिया जाता था।
2. कुछ बेईमान व्यापारियों और दुकानदारों ने खाद्य सामग्री में मिलावट करनी शुरू कर दी थी।

अथवा

उपभोक्ता जागरूकता की कई कारणों से आवश्यकता है

  • उपभोक्ता जागरूकता इसलिए आवश्यक है क्योंकि अपने स्वार्थों से प्रेरित होकर दोनों-उत्पादक और व्यापारी कोई भी गलत काम कर सकते हैं। जैसे—वे खराब वस्तु दे सकते हैं, कम तौल सकते हैं, अपनी सेवाओं के अधिक मूल्य ले सकते हैं, आदि। धन के लालच के कारण ही समय-समय पर जरूरी वस्तुओं के दाम बहुत बढ़ जाते हैं।
  • उपभोक्ता जागरूकता की इसलिए भी जरूरत है क्योंकि बेईमान व्यापारी अपने थोड़े से फायदे के लिए जनसाधारण के जीवन से खेलना शुरू कर देते हैं। जैसे विभिन्न खाद्य पदार्थों—दूध, घी, तेल, मक्खन, खोया और मसालों आदि में मिलावट करते हैं जिससे आम व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस कारण उपभोक्ता जागरूकता आवश्यक है जिससे व्यापारी हमारे स्वास्थ्य से खिलवाड़ न कर सकें।

4. कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें, जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है?
Ans.
उपभोक्ता के शोषण के कुछ कारक:

  • साक्षरता कम होना।
  • कंपनियों द्वारा आकर्षक विज्ञापनों द्वारा अपने उत्पादन के अवगुणों को छुपाना।
  • उपभोक्ता में जागरूकता की कमी।
  • उपभोक्ता शिकायत के मामले के निपटारे में देरी।

अथवा

व्यापारी, दुकानदार और उत्पादक कई तरीकों से उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख तरीके निम्नलिखित हैं

  1. घटिया सामान- कुछ बेईमान उत्पादक जल्दी धन एकत्र करने के उद्देश्य से घटिया किस्म का माल बाजार में बेचने लगते हैं। दुकानदार भी ग्राहक को घटिया माल दे देता है क्योंकि ऐसा करने से उसे अधिक लाभ होता है।
  2. कम तौलना या मापना- बहुत से चालाक व लालची दुकानदार ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की चीजें कम तोलकर | या कम मापकर उनको ठगने का प्रयत्न करते हैं।
  3. अधिक मूल्य- जिन चीजों के ऊपर विक्रय मूल्य नहीं लिखा होता, वहाँ कुछ दुकानदारों का यह प्रयत्न होता है कि ऊँचे दामों पर चीजों को बेचकर अपने लाभ को बढ़ा लें।
  4. मिलावट करना- लालची उत्पादक अपने लाभ को बढ़ाने के लिए खाने-पीने की चीजों, जैसे-घी, तेल, मक्खन, | मसालों आदि में मिलावट करने से बाज नहीं आते। ऐसे में उपभोक्ताओं का दोहरा नुकसान होता है। एक तो उन्हें घटिया माल की अधिक कीमत देनी पड़ती है दूसरे उनके स्वास्थ्य को भी नुकसान होता है।
  5. सुरक्षा उपायों की अवहेलना- कुछ उत्पादक विभिन्न वस्तुओं को बनाते समय सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करते। बहुत-सी चीजें हैं जिन्हें सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है, जैसे प्रेशर कुकर में खराब सेफ्टी वॉल्व के होने से भयंकर दुर्घटना हो सकती है। ऐसे में उत्पादक थोड़े से लालच के कारण जानलेवा उपकरणों को बेचते हैं।
  6. अधूरी या गलत जानकारी- बहुत से उत्पादक अपने सामान की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर पैकेट के ऊपर लिख देते हैं जिससे उपभोक्ता धोखा खाते हैं। जब वे ऐसी चीजों का प्रयोग करते हैं तो उल्टा ही पाते हैं और अपने-आप को ठगा हुआ महसूस करते हैं।
  7. असंतोषजनक सेवा- बहुत-सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें खरीदने के बाद एक लंबे समय तक सेवाओं की आवश्यकता होती है, जैसे- कूलर, फ्रिज, वाशिंग मशीन, स्कूटर और कार आदि। परंतु खरीदते समय जो वादे उपभोक्ता से किए जाते हैं, वे खरीदने के बाद पूरे नहीं किए जाते। विक्रेता और उत्पादक एक-दूसरे पर इसकी जिम्मेदारी डालकर उपभोक्ताओं को परेशान करते हैं।
  8. कृत्रिम अभाव- लालच में आकर विक्रेता बहुत-सी चीजें होने पर भी उन्हें दबा लेते हैं। इसकी वजह से बाजार में वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा हो जाता है। बाद में इसी सामान को ऊँचे दामों पर बेचकर दुकानदार लाभ कमाते हैं। इस प्रकार विभिन्न तरीकों द्वारा उत्पादक, विक्रेता और व्यापारी उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं।

5. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की जरूरत क्यों पड़ी?
Ans.
1986 पुख्ता सुरक्षा अधिनियम की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उपभोक्ताओं को उत्पादकों, व्यापारियों और दुकानदारों द्वारा अनेक प्रकार सेठ ठगा जा रहा था। उपभोक्ताओं को इस ठगी से बचाने के लिए सरकार ने 1986 ईस्वी में उपभोक्ता अधिनियम पास किया।

अथवा

बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लंबे समय तक उपभोक्ताओं का शोषण उत्पादकों तथा विक्रेताओं के द्वारा किया जाता रहा। इस शोषण से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकार पर उपभोक्ता आंदोलनों के द्वारा दबाव डाला गया। यह वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 कानून का बनना था, जो कोपरा (COPRA) के नाम से प्रसिद्ध है।

6. अपने क्षेत्र के बाजार में जाने पर उपभोक्ता के रूप में अपने कुछ कर्तव्यों का वर्णन करें।
Ans.
1. सामान खरीदते समय उसकी गुणवत्ता को अवश्य देखें और गारंटी लेना ना भूलें।
2. ISI या Agmark का निशान अवश्य देखें।
3. खरीदे हुए सामान की रसीद अवश्य लें।
4. अगर कोई दुकानदार आप को ठगने की कोशिश करें तो उपभोक्ता अदालत में उसकी शिकायत अवश्य करें।

7. मान लीजिए, आप शहद की एक बोतल और बिस्किट का एक पैकेट खरीदते हैं। खरीदते समय आप कौन-सा लोगो या शब्द चिह्न देखेंगे और क्यों?
Ans.
शहद की बोतल और बिस्किट का एक पैकेट खरीदते समय उन पर I.S.I. , ऐगमार्क अथवा हॉलमार्क में से कोई सा एक चिन्ह अवश्य देखना चाहिए। क्योंकि यह चिन्ह लोगों को इस बात का प्रमाण देते हैं, कि वे जो वस्तुएं खरीद रहे हैं वह शुद्ध और असली हैं।

8. भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा किन कानूनी मानदंडों को लागू करना चाहिए?
Ans.
भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा कोपरा के सभी प्रावधानों को सुचारु रुप से लागू करना चाहिए।

अथवा

भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा कानूनी मापदंडों को लागू किया जाना चाहिए। 1986 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम द्वारा उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए। राष्ट्रीय, राज्य तथा जिला स्तर पर तीन स्तरीय उपभोक्ता अदालतों का निर्माण किया गया। सरकार के लिए जरूरी है कि वह इन अदालतों में आए मुकदमों की शीघ्र सुनवाई करे और दोषी उत्पादक या व्यापारी के खिलाफ कार्रवाई करे। पीड़ित उपभोक्ता को उचित मुआवजा दिलवाया जाए। उपभोक्ताओं की शिकायतों का शीघ्र निपटारा करवाने के लिए इन कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना जरूरी है। सरकार कोशिश करे कि भारत में बननेवाली विभिन्न चीजों की गुणवत्ता की जाँच की जाए और उन्हें आई०एस०आई० या एगमार्क की मोहर लगाकर ही बाजार में बिकने के लिए भेजा जाए। सरकार बाजार में बिकनेवाली विभिन्न चीजों की जाँच करे कि वे सुरक्षा के मापदंड पूरे करती हैं या नहीं। ऐसी चीजों की बिक्री पर रोक लगा दी जाए जो सुरक्षा के मापदंड पूरे न करती हों। सरकार को कानून बनाकर जमाखोरी, कालाबाजारी आदि पर रोक लगाकर उपभोक्ताओं को शोषण से बचाना होगा। गरीब वर्ग के लोगों को कम कीमत पर आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इन विभिन्न कानूनी मापदंडों का प्रयोग करके सरकार उपभोक्ताओं को अधिकारों को प्राप्त कराने में समर्थ बना सकती है।

9. उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और प्रत्येक अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें।
Ans.
उपभोक्ताओं के कुछ अधिकार निम्नलिखित हैं:

1. चुनने का अधिकार: हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह देख परख कर अपनी इच्छा अनुसार चीजों का चुनाव कर सकता है।

2. सूचना का अधिकार: उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह खरीदे जाने वाली वस्तु की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता और मूल्य आदि के विषय में हर सूचना प्राप्त कर सकता है।

3. सुरक्षा का अधिकार: उपभोक्ताओं कोई अधिकार है कि वह हर एक ऐसी वस्तु की बिक्री से अपना बचाव कर सकें जो उसके जीवन और संपत्ति के लिए हानिकारक हो सकती है।

4. क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार: यदि किसी उत्पाद में किसी त्रुटि के कारण उपभोक्ता को कोई क्षति होती है, तो उसके पास क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार होता है।

10. उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं?
Ans.
उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन, शोषण के विरुद्ध अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझने पर सही तरीके से कर सकते हैं। उन्हें जागरूक रहने की आवश्यकता है। इसके लिए उपभोक्ता किसी उपभोक्ता समूह का हिस्सा बन सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर भी उपभोक्ता कई तरह से जागरूकता बढ़ा सकता है जैसे पोस्टर, सोशल मीडिया और ब्लॉग आदि के द्वारा।

11. भारत में उपभोक्ता आआंदोलन की प्रगति की समीक्षा करें।
Ans.
1960 के दशक में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत हुई थी। शुरू में यह केवल प्रदर्शन और लेख लिखने तक ही सीमित रहा। लेकिन 1980 आते- आते इनसे जोर पकड़ा। उसके बाद भारत सरकार ने उपभोक्ता सुरक्षा कानून पारित कर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हेतु आवश्यक क़दम बढ़ाया। इस प्रकार उपभोक्ता आंदोलन के परिणाम स्वरूप उपभोक्ताओं के लिए विमान विक्रेताओं से अपनी सुरक्षा करना आसान हो गया।

12. निम्नलिखित को सुमेलित करें-

1. एक उत्पाद के घटकों का विवरण(क) सुरक्षा का अधिकार
2. एगमार्क(ख) उपभोक्ता मामलों में संबंध
3. स्कूटर में खराब इंजन के कारण हुई दुर्घटना(ग) अनाजों और खाद्य तेलों का प्रमाण
4. जिला उपभोक्ता अदालत विकसित करने वाली एजेंसी(घ) उपभोक्ता कल्याण संगठनों की अंतरराष्ट्रीय संस्था
5. उपभोक्ता इंटरनेशनल(ङ) सूचना का अधिकार
6. भारतीय मानक ब्यूरो(च) वस्तुओं और सेवाओं के लिए मानक

Ans.

1. एक उत्पाद के घटकों का विवरण(ङ) सूचना का अधिकार
2. एगमार्क(ग) अनाजों और खाद्य तेलों का प्रमाणअनाजों और खाद्य तेलों का प्रमाण
3. स्कूटर में खराब इंजन के कारण हुई दुर्घटना (क) सुरक्षा का अधिकार
4. जिला उपभोक्ता अदालत विकसित करने वाली एजेंसी(ख) उपभोक्ता मामलों में संबंध
5. उपभोक्ता इंटरनेशनल(च) वस्तुओं और सेवाओं के लिए मानक
6. भारतीय मानक ब्यूरो(घ) उपभोक्ता कल्याण संगठनों की अंतरराष्ट्रीय संस्था

13. सही या गलत बताएँ ।

(क) कोपरा केवल सामानों पर लागू होता है। (गलत)

(ख) भारत विश्व के उन देशों में से एक है, जिसके पास उपभोक्ताओं की समस्याओं के निवारण के लिए विशिष्ट प्राधिकारण हैं। (सही)

(ग) जब उपभोक्ता को ऐसा लगे कि उसका शोषण हुआ है, तो उसे जिला उपभोक्ता आयोग में निश्चित रूप से मुकद्दमा दायर करना चाहिए। (सही)

(घ) जब अधिक मूल्य का नुकसान हो, तभी उपभोक्ता आयोग में जाना लाभप्रद होता है। (गलत)

(ड) हॉलमार्क, आभूषणों की गुणवत्ता बनाए रखनेवाला प्रमाण है। (सही)

(च) उपभोक्ता समस्याओं के निवारण की प्रक्रिया अत्यंत सरल और शीघ्र होती है। (सही)

(छ) उपभोक्ता को मुआवजा पाने का अधिकार है, जो क्षति की मात्रा पर निर्भर करती है। (सही)

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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