सहकारी समितियां : 57

2011 का 97वां संविधान संशोधन अधिनियम सहकारी समितियों को संवैधानिक स्थिति और संरक्षण प्रदान करता है। इस सिलसिले में इस विधेयक ने संविधान में निम्नलिखित तीन बदलाव किएः

1. इसने सहकारी समितियां बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया (धारा 19′)।

2. सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए इसने एक नए राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांत को जोड़ा (धारा 43-बी²)।

3. इसने संविधान में एक नया खंड IX – बी जोड़ा जिसका नाम “सहकारी समितियां’ (धारा 243- जेडएच से 243-जेडटी) है।

संवैधानिक प्रावधान

संविधान के खंड IX-बी में सहकारी समितियों से संबंधित निम्नलिखित प्रावधान हैं:

सहकारी समितियों का संस्थापनः स्वैच्छिक गठन, सदस्यों के लोकतांत्रिक नियंत्रण, सदस्यों की आर्थिक सहभागिता तथा स्वायत्त कार्यप्रणाली के सिद्धांतों के आधार पर राज्य विधानमंडल सहकारी समितियों के संस्थापन, नियमन एवं बंद करने सम्बन्धी नियम बनाएगा।

बोर्ड के सदस्यों एवं इसके पदाधिकारियों की संख्या एवं शर्तेंः राज्य विधानमंडल द्वारा तय किए गई संख्या के अनुसार बोर्ड के निदेशक होंगे।’ लेकिन किसी सहकारी समिति के निदेशकों की अधिकतम संख्या 21 से ज्यादा नहीं होगी।

जिस सहकारी समिति में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लोग और महिला सदस्य होंगे वैसे प्रत्येक सहकारी समिति के बोर्ड में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए एक सीट और महिलाओं के लिए दो सीटों के आरक्षण का प्रावधान राज्य विधानमंडल करेगा।

बोर्ड के सदस्यों एवं पदाधिकारियों का कार्यकाल निर्वाचन की तिथि से पांच साल के लिए होगा।

राज्य विधानमंडल बोर्ड के सदस्य के रूप में बैंकिंग, प्रबंधन, वित्त या किसी भी अन्य संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्ति के सहयोजन का नियम बना सकता है। लेकिन ऐसे सह-योजित सदस्यों की संख्या दो से अधिक नहीं होगी (21 निदेशकों के अतिरिक्त)।

साथ ही सह-योजित सदस्यों को सहकारी समिति के किसी चुनाव में वोट देने या बोर्ड के पदाधिकारी के रूप में निवार्चित होने का अधिकार नहीं होगा।

सहकारी समिति के क्रियाशील निदेशक बोर्ड के भी सदस्य होंगे और ऐसे सदस्यों की गिनती निदेशकों की कुल संख्या (जो 21 है) में नहीं होगी।

बोर्ड के सदस्यों का चुनाव

यह सुनिश्चित करने के लिए कि बहिर्गामी बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने के तुरंत बाद नव-निर्वाचित सदस्य पदभार ग्रहण कर लें, बोर्ड का चुनाव कार्यावधि पूरा होने के पहले कराया जाएगा।

मतदाता सूची बनाने के काम की देखभाल, निर्देशन एवं नियंत्रण तथा सहकारी समिति का चुनाव कराने का अधिकार विधानमंडल द्वारा तय किए गए निकाय को होगा।

बोर्ड का विघटन, एवं निलंबन तथा अंतरिम प्रबंधन : किसी भी बोर्ड को छह माह से अधिक समय तक तक विघटित या निलंबित नहीं रखा जाएगा। बोर्ड को निम्न स्थितियों में विघटित या निलंबित रखा जा सकता है:

(i) लगातार काम पूरा नहीं करने पर, या

(ii) काम करने में लापरवाही बरते जाने पर, या

(iii) बोर्ड द्वारा सहकारी समिति या इसके सदस्यों के हित के खिलाफ कोई काम करने पर, या

(iv) बोर्ड के गठन या कामकाज में गतिरोध की स्थिति बनने पर, या

(v) राज्य के कानून के अनुसार चुनाव कराने में निर्वाचन निकाय के विफल होने पर।

हालांकि किसी ऐसी सहकारी समिति के बोर्ड को विघटित या निलंबित नहीं किया जा सकता जहां सरकारी शेयर या कर्ज या वित्तीय सहायता या किसी तरह की सरकारी गारंटी नहीं है।

बोर्ड को विघटित किए जाने की स्थिति में ऐसी सहकारी समिति के कामकाज को देखने के लिए नियुक्त किए गए प्रशासक छह माह के अंदर चुनाव कराने की व्यवस्था करेंगे तथा निवार्चित बोर्ड को प्रबंधन सौंप देंगे।

सहकारी समितियों के खाते का अंकेक्षण

राज्य विधानमंडल सहकारी समितियों के खातों के अनुरक्षण तथा हर वित्तीय वर्ष में कम से कम एक बार खाते के अंकेक्षण का नियम बनाएगा। इसमें सहकारी समितियों के खातों के अंकेक्षण के लिए अंकेक्षकों एवं अंकेक्षण फर्मों की न्यूनतम योग्यता निधारित की जाएगी ।

प्रत्येक सहकारी समिति को सहकारी समिति की आम सभा द्वारा नियुक्त अंकेक्षक या अंकेक्षण फर्म से अपने खातों का अंकेक्षण कराना होगा। लेकिन ऐसे अंकेक्षकों या अंकेक्षण फर्मों की नियुक्ति राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी स्वीकृत पैनल से करनी होगी।

प्रत्येक सहकारी समिति के खातों का अंकेक्षण वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह माह के अंदर कराना होगा।

शीर्ष सहकारी समिति का अंकेक्षण रिपोर्ट राज्य विधानमंडल के पटल पर रखना होगा।

आमसभा की बैठक बुलाना

राज्य विधानमंडल प्रत्येक सहकारी समिति की आमसभा की बैठक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह माह के अंदर बुलाने का प्रावधान बना सकता है।

सूचना पाने का सदस्यों का अधिकार

राज्य विधानमंडल सहकारी समिति के हर सदस्यों को सहकारी समिति के कागजातों, सूचनाओं एवं खाता उपलब्ध कराने का प्रावधान कर सकता है। यह सहकारी समिति के प्रबंधन में सदस्यों की भागीदारी का प्रावधान भी कर सकता है। इसके अलावा यह सहकारी समिति के सदस्यों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण का प्रावधान कर सकता है।

रिर्टन

प्रत्येक सहकारी समिति को वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह माह के अंदर सरकार द्वारा नामित अधिकारी के पास रिर्टन दाखिल करना होगा। इसके साथ ही निम्नलिखित जानकारी देनी होगी:

(क) कार्यकलापों की वार्षिक रिपोर्ट,

(ख) खाते का अंकेक्षण रिपोर्ट,

(ग) बचा हुआ पैसा किस तरह खर्च करना है इस संबंध में आम सभा का निर्णय

(घ) सहकारी समिति की नियमावली में किए गए संशोधनों की सूची,

(ङ) आम सभा की बैठक की तिथि एवं चुनाव कराने की तिथि के बारे में घोषणा, तथा;

(च) राज्य के कानून के प्रावधानों के तहत निबंधक द्वारा मांगी गई कोई और जानकारी।

अपराध एवं दंड

राज्य विधानमंडल सहकारी समितियों के अपराधों के लिए कानून बना सकता है और ऐसे अपराधों के लिए सजा तय कर सकता है। ऐसे कानूनों में निम्नलिखित तरह की कारगुजारियों को अपराध माना जाएगा :

(क) सहकारी समिति द्वारा गलत रिर्टन दाखिल करना या गलत सूचना उपलब्ध कराना।

(ख) किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर राज्य के कानून के तहत जारी किए गए किसी सम्मन, मांगी गई जानकारी या जारी किए गए आदेश की अवज्ञा करना।

(ग) कोई भी नियोजक जो बगैर किसी पर्याप्त कारण के अपने कर्मचारियों से ली गई रकम को चौदह दिनों के अंदर सहकारी समिति में जमा नहीं करेगा।

(घ) कोई भी अधिकारी जो सहकारी समिति के दस्तावेजों, कागजातों, लेखा, कागजातों, अभिलेखों, नकदी, गिरवी रखे गए सामानों को जानबूझकर अधिकृत अधिकारी को नहीं सौंपेगा।

(ङ) कोई भी व्यक्ति जो बोर्ड के सदस्यों या पदाधिकारियों के चुनाव के दौरान या चुनाव के बाद गलत तरीकों का इस्तेमाल करेगा।

बहुराज्यीय सहकारी समितियों में इन कानूनों का कार्यान्वयन

इस खंड के प्रावधान बहुराज्यीय सहकारी समितियों में लागू होंगे। यह कार्यान्वयन राज्य विधानमंडल, राज्य के कानून, या राज्य सरकार द्वारा क्रमशः संसद, केन्द्रीय कानून या केन्द्र सरकार के हवाले से किए गए बदलावों के अनुसार होगा।

केन्द्र शासित क्षेत्रों में कानूनों का कार्यान्वयन

इस खंड के कानून केन्द्र शासित क्षेत्रों में लागू होंगे, लेकिन राष्ट्रपति निर्देश दे सकते हैं कि उनके द्वारा निदेर्शित कानून का कोई खास प्रावधान या अंश वहां लागू नहीं होगा।

मौजूदा काननों का बना रहना

2011 के 97वें संविधान संशोधन के ठीक पहले राज्यों में लागू सहकारी समितियों से जुड़े कानून, जो इस खंड से मेल नहीं खाते हैं, संशोधन किए जाने या निरस्त किए जाने या लागू होने के बाद एक साल की अवधि बीत जाने में से जो सबसे कम होगा, तक लागू रहेंगे। ‘

97वें संशोधन के कारण

97वें संविधान संशोधन द्वारा उपरोक्त प्रावधानों को कानून में शामिल किए जाने के निम्न कारण हैं:

1. पिछले वर्षों में सहकारी क्षेत्र ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अहम योगदान किया है और इसका काफी विकास हुआ है। फिर भी यह सदस्यों के हितों की रक्षा करने तथा सहकारी समितियों के गठन के उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा है। चुनावों को अनिश्चित काल तक स्थगित रखने तथा लंबे समय तक नामजद पदाधिकारियों या प्रशासकों के ऐसी संस्थाओं का प्रभारी बने रहने के उदाहरण सामने आए हैं। ऐसा होना अपने सदस्यों के प्रति सहकारी समितियों की जवाबदेही को कम करता है। कई सहकारी समितियों के प्रबंधन में पेशेवर (प्रोफेशनल) तरीका नहीं अपनाए जाने के कारण सेवाओं एवं उत्पादकता पर बुरा असर पड़ा है। सहकारी समितियों को सुस्थापित लेकतांत्रिक सिद्धांतों के अधार पर चलाने तथा समय पर निष्पक्ष एवं स्वतंत्र तरीके से इसका चुनाव कराने की जरूरत है। ऐसे में देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान देने तथा सदस्यों एवं लोगों के हितों की रक्षा करने तथा अपनी स्वायत्तता, लोकतांत्रिक तरीका तथा प्रोफेशनल प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए इन संस्थाओं को नई ताकत देने के लिए मूलभूत सुधार की जरूरत थी।

2. सहकारी समितियां संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्यसूची में 32वें नंबर पर हैं, और इसी के अनुरूप राज्य विधानमंडलों ने सहकारी समितियों से सम्बन्धित कानून बनाए हैं। राज्य के कानूनों की संरचना में बड़े पैमाने पर सहकारी समितियों के विकास को सामाजिक एवं आर्थिक न्याय हासिल करने एवं विकास के लाभ के समान वितरण के लिए आवश्यक माना गया है। फिर भी पाया गया है कि सहकारी समितियों के संतोषजनक विस्तार के बावजूद इनके कामकाज की गुणवत्ता वांछित स्तर की नहीं रही हैं। ऐसे में राज्यों की सहकारी समितियों के कानूनों में सुधार के लिए कई अवसरों पर एवं राज्यों के सहकारिता मंत्रियों के सम्मेलन में राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श किया गया। सहकारी समितियों को अनावश्यक बाहरी दखलंदाजी से मुक्त रखने तथा इनकी स्वायत्त ढ़ांचा एवं कामकाज का लोकतांत्रिक तरीका सुनिश्चित करने के लिए संविधान में संशोधन की अत्यधिक जरूरत महसूस की गई।

3. यह सुनिश्चित करने के लिए कि देश में सहकारी समितियां लोकतांत्रिक, पेशेवर (प्रोफेशनल), स्वायत्त तरीके से एवं आर्थिक रूप से अच्छी तरह काम करें  इसके लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध थी। आवश्यक सुधार लाने के मकसद से सहकारी समितियों के लोकतांत्रिक, स्वायत्त एवं पेशेवर तरीके से काम करने जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल करने के लिए संविधान में एक नया भाग जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया। ऐसी अपेक्षा की गई कि ये प्रावधान न सिर्फ सहकारी समितियों के लोकतांत्रिक, स्वायत्त एवं पेशेवर कामकाज सुनिश्चित करेंगे बल्कि सदस्यों एवं दूसरे स्टेकहोल्डरों के प्रति प्रबंधन की जवाबदेही भी सुनिश्चित करेंगे तथा कानूनों के उल्लंघन पर रोक लगाएंगे।

तालिका 57.1 सहकारी समितियों से संबंधित अनुच्छेद, एक नजर में

धाराएंविषय-वस्तु
243 ZHपरिभाषा
243 ZIसहकारी समितियों का संस्थापन
243 ZJबोर्ड के सदस्यों एवं इसके पदाधिकारियों की संख्या एवं कार्यावधि
243 ZKबोर्ड के सदस्यों का चुनाव
243 ZLबोर्ड का विघटन एवं निलंबन तथा अंतरिम प्रबंधन
243 ZMसहकारी समितियों के खाते का अंकेक्षण
243 ZNआम सभा की बैठक बुलाना
243 ZOसूचना पाने का सदस्यों का अधिकार
243 ZPरिर्टन
243 ZQअपराध एवं दंड
243 ZRबहुराज्यीय सहकारी समितियों को आवेदन
243 ZSकेंद्रशासित क्षेत्रों में कार्यान्वयन
243 ZTमौजूदा कानूनों का बना रहना

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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