बाज और सांप : अध्याय 13

समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत की अँधेरी गुफा में एक साँप रहता था। समुद्र की तूफ़ानी लहरें धूप में चमकतीं, झिलमिलातीं और दिन भर पर्वत की चट्टानों से टकराती रहती थीं।

पर्वत की अँधेरी घाटियों में एक नदी भी बहती थी। अपने रास्ते पर बिखरे पत्थरों को तोड़ती, शोर मचाती हुई यह नदी बड़े ज़ोर से समुद्र की ओर लपकती जाती थी। जिस जगह पर नदी और समुद्र का मिलाप होता था, वहाँ लहरें दूध के झाग-सी सफ़ेद दिखाई देती थीं।

अपनी गुफा में बैठा हुआ साँप सब कुछ देखा करता-लहरों का गर्जन, आकाश में छिपती हुई पहाड़ियाँ, टेढ़ी-मेढ़ी बल खाती हुई नदी की गुस्से से भरी आवाजें। वह मन ही मन खुश होता था कि इस गर्जन-तर्जन के होते हुए भी वह सुखी और सुरक्षित है। कोई उसे दुख नहीं दे सकता। सबसे अलग, सबसे दूर, वह अपनी गुफा का स्वामी है। न किसी से लेना, न किसी से देना। दुनिया की भाग-दौड़, छीना-झपटी से वह दूर है। साँप के लिए यही सबसे बड़ा सुख था।

एक दिन एकाएक आकाश में उड़ता हुआ खून से लथपथ एक बाज साँप की उस गुफा में आ गिरा। उसकी छाती पर कितने ही ज़ख्मों के निशान थे, पंख खून से सने थे और वह अधमरा-सा ज़ोर-शोर से हाँफ रहा था। जमीन पर गिरते ही उसने एक दर्द भरी चीख मारी और पंखों को फड़फड़ाता हुआ धरती पर लोटने लगा। डर से साँप अपने कोने में सिकुड़ गया। किंतु दूसरे ही क्षण उसने भाँप लिया कि बाज जीवन की अंतिम साँसें गिन रहा है और उससे डरना बेकार है। यह सोचकर उसकी हिम्मत बँधी और वह रेंगता हुआ उस घायल पक्षी के पास जा पहुँचा। उसकी तरफ कुछ देर तक देखता रहा, फिर मन ही मन खुश होता हुआ बोला- “क्यों भाई, इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली?”

बाज ने एक लंबी आह भरी “ऐसा ही दिखता है कि आखिरी घड़ी आ पहुँची है लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं है। मेरी जिंदगी भी खूब रही भाई, जी भरकर उसे भोगा है। जब तक शरीर में ताकत रही, कोई सुख ऐसा नहीं बचा जिसे न भोगा हो। दूर-दूर तक उड़ानें भरी हैं, आकाश की असीम ऊँचाइयों को अपने पंखों से नाप आया हूँ। तुम्हारा बड़ा दुर्भाग्य है कि तुम जिंदगी भर आकाश में उड़ने का आनंद कभी नहीं उठा पाओगे।”

साँप बोला “आकाश! आकाश को लेकर क्या मैं चाहूँगा ! आकाश में आखिर रखा क्या है? क्या मैं तुम्हारे आकाश में रेंग सकता हूँ। ना भाई, तुम्हारा आकाश तुम्हें ही मुबारक, मेरे लिए तो यह गुफा भली। इतनी आरामदेह और सुरक्षित जगह और कहाँ होगी?”

साँप मन ही मन बाज़ की मूर्खता पर हँस रहा था। वह सोचने लगा कि आखिर उड़ने और रेंगने के बीच कौन-सा भारी अंतर है। अंत में तो सबके भाग्य में मरना ही लिखा है-शरीर मिट्टी का है, मिट्टी में ही मिल जाएगा।

अचानक बाज ने अपना झुका हुआ सिर ऊपर उठाया और उसकी दृष्टि साँप की गुफा के चारों ओर घूमने लगी। चट्टानों में पड़ी दरारों से पानी गुफा में टपक रहा था। सीलन और अँधेरे में डूबी गुफा में एक भयानक दुर्गंध फैली हुई थी, मानो कोई चीज़ वर्षों से पड़ी पड़ी सड़ गई हो।

बाज के मुँह से एक बड़ी ज़ोर की करुण चीख फूटी पड़ी “आह! काश, मैं सिर्फ़ एक बार आकाश में उड़ पाता।”

बाज की ऐसी करुण चीख सुनकर साँप कुछ सिटपिटा-सा गया। एक क्षण के लिए उसके मन में उस आकाश के प्रति इच्छा पैदा हो गई जिसके वियोग में बाज इतना व्याकुल होकर छटपटा रहा था। उसने बाज से कहा- “यदि तुम्हें स्वतंत्रता इतनी प्यारी है तो इस चट्टान के किनारे से ऊपर क्यों नहीं उड़ जाने की कोशिश करते। हो सकता है कि तुम्हारे पैरों में अभी इतनी ताकत बाकी हो कि तुम आकाश में उड़ सको। कोशिश करने में क्या हर्ज है?”

बाज में एक नयी आशा जग उठी। वह दूने उत्साह से अपने घायल शरीर को घसीटता हुआ चट्टान के किनारे तक खींच लाया। खुले आकाश को देखकर उसकी आँखें चमक उठीं। उसने एक गहरी, लंबी साँस ली और अपने पंख फैलाकर हवा में कूद पड़ा।

किंतु उसके टूटे पंखों में इतनी शक्ति नहीं थी कि उसके शरीर का बोझ सँभाल सकें। पत्थर-सा उसका शरीर लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा। एक लहर ने उठकर उसके पंखों पर जमे खून को धो दिया, उसके थके-माँदे शरीर को सफ़ेद फेन से ढक दिया, फिर अपनी गोद में समेटकर उसे अपने साथ सागर की ओर ले चली।

लहरें चट्टानों पर सिर धुनने लगीं मानो बाज की मृत्यु पर आँसू बहा रही हों।

धीरे-धीरे समुद्र के असीम विस्तार में बाज आँखों से ओझल हो गया।

चट्टान की खोखल में बैठा हुआ साँप बड़ी देर तक बाज की मृत्यु और आकाश के लिए उसके प्रेम के विषय में सोचता रहा।

“आकाश की असीम शून्यता में क्या ऐसा आकर्षण छिपा है जिसके लिए बाज ने अपने प्राण गँवा दिए? वह खुद तो मर गया लेकिन मेरे दिल का चैन अपने साथ ले गया। न जाने आकाश में क्या खजाना रखा है? एक बार तो मैं भी वहाँ जाकर उसके रहस्य का पता लगाऊँगा चाहे कुछ देर के लिए ही हो। कम से कम उस आकाश का स्वाद तो चख लूँगा।”

यह कहकर साँप ने अपने शरीर को सिकोड़ा और आगे रेंगकर अपने को आकाश की शून्यता में छोड़ दिया। धूप में क्षण भर के लिए साँप का शरीर बिजली की लकीर-सा चमक गया।

किंतु जिसने जीवन भर रेंगना सीखा था, वह भला क्या उड़ पाता? नीचे छोटी-छोटी चट्टानों पर धप्प से साँप जा गिरा। ईश्वर की कृपा से बेचारा बच गया, नहीं तो मरने में क्या कसर बाकी रही थी। साँप हँसते हुए कहने लगा-

“सो उड़ने का यही आनंद है- भर पाया मैं तो! पक्षी भी कितने मूर्ख हैं। धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाइयों को नापना चाहते थे। किंतु अब मैंने जान लिया कि आकाश में कुछ नहीं रखा। केवल ढेर-सी रोशनी के सिवा वहाँ कुछ भी नहीं, शरीर को सँभालने के लिए कोई स्थान नहीं, कोई सहारा नहीं। फिर वे पक्षी किस बूते पर इतनी डींगें हाँकते हैं, किसलिए धरती के प्राणियों को इतना छोटा समझते हैं। अब मैं कभी धोखा नहीं खाऊँगा, मैंने आकाश देख लिया और खूब देख लिया। बाज़ तो बड़ी-बड़ी बातें बनाता था, आकाश के गुण गाते थकता नहीं था। उसी की बातों में आकर मैं आकाश में कूदा था। ईश्वर भला करे, मरते-मरते बच गया। अब तो मेरी यह बात और भी पक्की हो गई है कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कहीं नहीं है। धरती पर रेंग लेता हूँ, मेरे लिए यह बहुत कुछ है। मुझे आकाश की स्वच्छंदता से क्या लेना-देना? न वहाँ छत है, न दीवारें हैं, न रेंगने के लिए जमीन है। मेरा तो सिर चकराने लगता है। दिल काँप-काँप जाता है। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है?”

साँप सोचने लगा कि बाज अभागा था जिसने आकाश की आज़ादी को प्राप्त करने में अपने प्राणों की बाज़ी लगा दी।

किंतु कुछ देर बाद साँप के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उसने सुना, चट्टानों के नीचे से एक मधुर, रहस्यमय गीत की आवाज उठ रही है। पहले उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। किंतु कुछ देर बाद गीत के स्वर अधिक साफ़ सुनाई देने लगे। वह अपनी गुफा से बाहर आया और चट्टान से नीचे झाँकने लगा। सूरज की सुनहरी किरणों में समुद्र का नीला जल झिलमिला रहा था। चट्टानों को भिगोती हुई समुद्र की लहरों में गीत के स्वर फूट रहे थे। लहरों का यह गीत दूर-दूर तक गूँज रहा था।

साँप ने सुना, लहरें मधुर स्वर में गा रही हैं।

हमारा यह गीत उन साहसी लोगों के लिए है जो अपने प्राणों को हथेली पर रखे हुए घूमते हैं।

चतुर वही है जो प्राणों की बाजी लगाकर जिंदगी के हर खतरे का बहादुरी से सामना करे।

ओ निडर बाज! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपना कीमती रक्त बहाया है। पर वह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे खून की एक-एक बूँद जिंदगी के अँधेरे में प्रकाश फैलाएगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी।

तुमने अपना जीवन बलिदान कर दिया किंतु फिर भी तुम अमर हो। जब कभी साहस और वीरता के गीत गाए जाएँगे, तुम्हारा नाम बड़े गर्व और श्रद्धा से लिया जाएगा।

“हमारा गीत जिंदगी के उन दीवानों के लिए है जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते।”

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प्रश्न-अभ्यास

शीर्षक और नायक

• लेखक ने इस कहानी का शीर्षक कहानी के दो पात्रों के आधार पर रखा है। लेखक ने बाज और साँप को ही क्यों चुना? आपस में चर्चा कीजिए।
Ans.
लेखक ने इस कहानी के लिए दो नायकों साँप और बाज का चयन इसलिए किया है; क्योंकि

• बाज को जहाँ आकाश की असीम शून्यता से प्यार है, वहीं साँप को अपने अंधकार युक्त खोखल से प्यार है।

• बाज साहस एवं वीरता का प्रतीक है जबकि साँप को कायरता का प्रतीक बताया गया है।

• बाज को आकाश में उड़ने की स्वतंत्रता से प्यार है, जबकि साँप को खोखल तक सिमटा रहना ही पसंद है

• बाज अंतिम घड़ी तक आकाश में उड़ पाने की अभिलाषा रखता है, जबकि साँप भूलकर भी दुबारा ऐसा नहीं करना चाहता है।

कहानी से

1. घायल होने के बाद भी बाज ने यह क्यों कहा, “मुझे कोई शिकायत नहीं है।” विचार प्रकट कीजिए।
Ans.
बाज ने अपने जीवन को व्यर्थ नहीं जाने दिया। उसने सदैव जीवन के द्वारा दिए गए सुख व दुख को समान भाव से भोगा। उसने आकाश की असीम ऊँचाइयों को भी अपने पंखों द्वारा नाप डाला था। उसने कभी डर से आकाश में उड़ना नहीं छोड़ा। जब तक उसके शरीर में ताकत रही। ऐसा कोई कार्य व सुख नहीं था जो उसने किया ना हो, उसने जीवन के समस्त सुखों का आनंद लिया था जिससे वह पूर्ण रूप से आश्वस्त था।

2. बाज जिंदगी भर आकाश में ही उड़ता रहा फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना क्यों चाहता था?
Ans.
बाज जिंदगी भर आकाश में उड़ता रहा, उसने आकाश की असीम ऊँचाइयों को अपने पंखों से नापा। बाज साहसी था। वह किसी भी कीमत पर समझौतावादी जीवन शैली पसंद नहीं करता था। अतः कायर की मौत नहीं मरना चाहता था। वह अंतिम क्षण तक जीवन की आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करना चाहता था।

3. साँप उड़ने की इच्छा को मूर्खतापूर्ण मानता था। फिर उसने उड़ने की कोशिश क्यों की?
Ans.
साँप उड़ने को मूर्खतापूर्ण मानता था, फिर भी उसने उड़ने की इसलिए कोशिश की क्योंकि उसने मृत्यु के निकट पहुँच चुके घायल बाज को उड़ने के लिए लालायित देखा था। उड़ने में असमर्थ बाज के मुँह से करुण चीख निकल रही थी। उड़ न पाने की पीड़ा उसे अंदर तक सता रही थी। उसकी उड़ने की असीम चाह देखकर साँप भी आकाश की असीम शून्यता को पाने के लिए लालायित हो उठा। वह भी आकाश में छिपे खजाने का रहस्य पाने तथा उड़ान का स्वाद चखने के लिए बेकरार हो उठा।

4. बाज के लिए लहरों ने गीत क्यों गाया था?
Ans.
बाज के लिए लहरों ने इसलिए गीत गाया क्योंकि उसने शत्रुओं से बहादुरी से लड़ते हुए अपना कीमती रक्त बहाया था। घायल होने के बाद भी उसके उत्साह में जरा भी कमी नहीं आई थी। वह आकाश की ऊँचाइ‌यों पाना चाहता था। अपनी जान हथेली पर रखकर घायल बाज आसमान में उड़ान भरने को निकल पड़ाबाज के साहस, वीरता और बहादुरी से प्रभावित होकर ही लहरों ने गीत गाया।

5. घायल बाज को देखकर साँप खुश क्यों हुआ होगा?
Ans.
साँप, बाज की मूर्खता पर हँस रहा था। उसके अनुसार बाज ने अपना समस्त जीवन व्यर्थ में उड़ने में व्यतीत कर दिया था। दूसरी ओर वह उसका परम शत्रु था क्योंकि बाज के होने के कारण साँप और बाज के बीच जाति से शत्रुता होती है। घायल बाज को देखकर साँप के लिए खुश होना स्वाभाविक ही था।

कहानी से आगे

1. कहानी में से वे पंक्तियाँ चुनकर लिखिए जिनसे स्वतंत्रता की प्रेरणा मिलती हो।
Ans.
कहानी की स्वतंत्रता से संबंधित पंक्तियाँ-

• जब तक शरीर में ताकत रही कोई सुख ऐसा नहीं बचा जिसे न भोगा हो। दूर-दूर तक उडानें भरी हैं. आकाश की असीम ऊँचाइयों को अपने पंखों से नाप आया हूँ।

• “आह! काश, में सिर्फ एक बार आकाश में उड पाता।”

• पर वह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे खून की एक

2. लहरों का गीत सुनने के बाद साँप ने क्या सोचा होगा? क्या उसने फिर से उड़ने की कोशिश की होगी? अपनी कल्पना से आगे की कहानी पूरी कीजिए।
Ans.
बाज की मृत्यु के बाद जब लहरों ने गीत गाया तो उस गीत को सुनने के बाद साँप में साहसपूर्ण जिंदगी जीने की प्रेरणा जाग उठी होगी उसके विचार बदले होंगे और उसने सोचा होगा कि यदि एक दिन मरना ही है तो क्यों न साहस से मरा जाए। उसकी कायरता उड़न छू हो गई होगी। साँप ने दुबारा उड़ने की कोशिश की होगी । उसने असीम ऊँचाइयाँ तथा विस्तार में उड़ने के लिए अपने शरीर को हवा में उछाल दिया होगा। कहानी की पूर्ति बाज की मृत्यु से अपने मन का चैन खो चुके साँप ने अपना शरीर हवा में उछाल तो दिया पर न उसके पंख थे और न उड़ने का ज्ञान साँप ने हिम्मत नहीं हारी आकाश की शून्यता एवं विस्तार उसमें जोश भर रहे थे। साँप ने पुनः आगे बढ़ने के लिए बल लगाया पर यह उड़ पाने के लिए यह काफी न था। हाँ बल लगाकर शरीर उछालने के कारण वह इस बार चट्टान पर न गिरके वह सरिता की धारा में गिरा। सरिता की सफेद फेन युक्त लहरों ने उसे अपने आँचल में भर लिया, पर साँप ने जल्दी ही अपना फन धारा के ऊपर उठाया और तैरकर बाहर आ गया। अब साँप बहुत ही खुश था क्योंकि उसे उड़ने का नया अनुभव जो मिल चुका था।

3. क्या पक्षियों को उड़ते समय सचमुच आनंद का अनुभव होता होगा या स्वाभाविक कार्य में आनंद का अनुभव होता ही नहीं? विचार प्रकट कीजिए।
Ans.
हाँ, पक्षियों को उड़ान भरते समय सचमुच ही आनंद का अनुभव होता होगा। प्रकृति ने उन्हें उड़ने के लिए ही पंख दिए हैं। इन पंखों की मदद से उनकी उड़ने की प्रसन्नता देखते ही बनती है इसके अलावा यदि हम पिंजरे में बंद किसी पक्षी को उड़ा दें तो कितना खुश होकर उड़ता है। वह पिंजरे में सारी सुविधाएँ (भोजन, पानी और आश्रय) पाने पर भी उदास रहता है ,लगता है कि उसकी खुशियाँ कहीं खो गई हैं। यदि हम किसी पक्षी को जब मुक्त करते हैं तो उसकी खुशियाँ उसे वापस मिल जाती हैं, इसलिए उन्हें उड़ने में सचमुच आनंद का अनुभव होता होगा। इसके अलावा पक्षियों को अपने घोंसले के लिए तिनका जुटाने, बच्चों के लिए भोजन लाने आदि स्वाभाविक कार्य में भी आनंद का अनुभव होता है।

4. मानव ने भी हमेशा पक्षियों की तरह उड़ने की इच्छा की है। आज मनुष्य उड़ने की इच्छा किन साधनों से पूरी करता है।
Ans.
मानव ने आदिकाल से ही पक्षियों की तरह उड़ने की इच्छा मन में रखी है। किन्तु शारीरिक असमर्थता की वजह से उड़ नहीं पा रहा था जिसका परिणाम यह हुआ कि मनुष्य हवाई जहाज का आविष्कार कर दिखाया। आज मनुष्य अपने उड़ने की इच्छा की पूर्ति हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर, गैस-बेलून आदि से करता है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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