आर्थिक वनस्पति विज्ञान : अध्याय 4

मनुष्य के जीवन-यापन, सुख-शान्ति व समृद्धि के लिये पौधे एवं उनके उत्पाद आवश्यक हैं। जीवन की आधारभूत आवश्यकताएँ भोजन, वस्त्र व मकानों में प्रयोग आने वाला बहुत-सा सामान विभिन्न पौधों से प्राप्त होता है।

आर्थिक आधार पर पौधों को निम्न श्रेणियों में रखा जा सकता है-

A. खाद्यान्न प्रदान करने वाले पौधे

B. रेशे प्रदान करने वाले पौधे

C. औषधियाँ प्रदान करने वाले पौधे

D. लकड़ी प्रदान करने वाले पौधे

E. तेल प्रदान करने वाले पौधे

F. रबर प्रदान करने वाले पौधे

G फल प्रदान करने वाले पौधे

H. तरकारी प्रदान करने वाले पौधे

I. मसालें प्रदान करने वाले पौधे

J. पेय पदार्थ प्रदान करने वाले पौधे

K. सूखे मेवे प्रदान करने वाले पौधे ।

खाद्यान्न फसलें (Cereal Crops)

खाद्यान्न का अभिप्राय घासकुल (ग्रेमिनी) के उन पौधों से है, जिन्हें दाने के लिए उगाया जाता है। ये फसलें सम्पूर्ण विश्व में भरण-पोषण का प्रमुख आधार (Staple food) प्रदान करती हैं। सामान्यतः खाद्यान्न वर्ग की फसलों को अधोलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है।

(1) प्रमुख खाद्यान्न (Majore Cereals) – इसके अन्तर्गत आजकल गेहूँ, धान तथा जौ को सम्मिलित किया जाता है।

(2) मोटे खाद्यान्न (Millets/Minore Cereals)- इसके अन्तर्गत मक्का, ज्वार तथा बाजरा को सम्मिलित किया जाता है।

(3) लघु खाद्यान्न (Smaller/Millets)- इसके अन्तर्गत मंडुवा या रागी, कोदों, साँवा, काकुन, चेना तथा कुटकी आदि सम्मिलित किये जाते हैं।

• विश्व के चार शीर्ष खाद्यान्न उत्पादक राष्ट्र क्रमशः हैं- चीन, अमेरिका, ब्राजील एवं भारत (2017)।

भारत के शीर्ष तीन खाद्यान्न उत्पादक राज्य
राज्य
उत्पादन (मि. टन) 
2016-17
1. उ.प्र. 
49.14
2. म.प्र. 
32.98
3. पंजाब 
27.99

• मधुमेह रोगियों के लिए मंडुवा एक उत्तम आहार है।*

• खाद्यान्त्रों की कृषि सर्वप्रथम नव पाषाण काल में प्रारम्भ हुई थी।

• कुल खाद्यान्न फसलों का 124.30 मि.हे. क्षेत्र अर्थात् 53.05 मि. हे. क्षेत्रफल सिंचित है।

• चावल क्षेत्र का 60.09%, गेहूँ क्षेत्र का 17.35% तथा तिलहन क्षेत्र का 27.4% भाग सिंचित है।*

➤ चावल (Rice)

• गुणसूत्र संख्या 2n = 24

• कुल ग्रेमिनी

• वानस्पतिक नाम ओराइजा सेटाइवा

• चावल एक स्वपरागित फसल है।

• जापान के वैज्ञानिकों ने धान की ऐसी प्रजाति विकसित की है, जिसमें हैजे की बीमारी का टीका समाहित है एवं जल्दी ही वे टीके वाले चावल को विकासशील देशों के गरीबों तक पहुँचायेंगे।

• भारत में भूमि के सबसे बड़े क्षेत्रफल पर (2016-17 में 43.19 मि.हे.) पर धान की ही खेती की जाती है। जो समस्त संसार का 21.15% धान उत्पादित कर दूसरा स्थान रखता है।*

• संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2004 को अन्तर्राष्ट्रीय चावल वर्ष के रूप में मनाया था।

• पश्चिमी बंगाल तथा तमिलनाडु में चावल की तीन फसलें उगाई जाती हैं। ऑस (सितम्बर-अक्टूबर में), अमन (जाड़ों) तथा बोरो (गर्मी में)।*

चावल प्रायः सभी एशियाई देशों में पर्याप्त मात्रा में पैदा किया जाता है। यह गरम आर्द्र प्रदेशों के लोगों का प्रमुख रुचिकर भोजन है। चावल के दाने में निम्नलिखित तीन प्रमुख भाग होते हैं : (1) बाहरी झिल्ली यह एल्यूरोन (Aleurone) की बनी होती है,* (2) भ्रूण पोष (Endosperm) और (3) अंकुर भाग (Embryo)।

➤ गेहूँ (Wheat)

गेहूँ घास कुल (Gramineae family) का एक वर्षीय पौधा है। इसका वंश (Genus) ट्रिटिकम (Triticum) है। जाति के अनुसार वंश ट्रिटिकम की कोशा में पाये जाने वाले क्रोमोसोम की जोड़ी (Pairs) की संख्या के आधार पर गेहूँ को निम्नलिखित वर्गों में बाँट सकते हैं। यथा :

• ट्रिटिकम एस्टिवम को पिसिया गेहूँ (Bread wheat or soft wheat) के नाम से जाना जाता है और संसार के लगभग सभी भागों में उगाया जाता है।* टेट्राप्लायड़ गेहूँ में से केवल टी. ड्यूरम ही ऐसा गेहूँ है, जो सबसे अधिक उगाया जाता है। इसे सख्त या कठिया गेहूँ (Mard wheat) के नाम से भी जाना जाता है।* सूजी, सेम्या तथा वर्मीसेला इसी गेहूँ प्रजाति से बनाया जाता है।*

• ईमर गेहूँ (Emmer wheat)-A tetraploid wheat of the group Triticum dicoccum – दक्षिणी भारत के कुछ क्षेत्रों में यह गेहूँ उगाया जाता है।

• भारतीय गेहूँ की प्रजाति है – Triticum Compactum एवं T. Sphaerococcum। मोहनजोदड़ों की खुदाई में उक्त प्रजाति के गेहूँ प्राप्त किये गये थे।

वर्तमान समय में T. Aestivum प्रजाति की खेती सम्पूर्ण भारत में होती है। इस प्रजाति के विकास का श्रेय डा. नार्मन ई. बोरलॉग (USA) को है, जिसे उन्होंने मैक्सिको में विकसित किया।

• गेहूँ के दाने में सामान्यतः 8-15% प्रोटीन, 65-75% कार्बोहाइड्रेट, 1.5% वसा तथा 2.0% खनिज पाये जाते हैं। गेहूँ के परिष्कृत स्वरूप में इन तत्वों का कुछ न कुछ ह्रास होता है।

• गेहूँ में ग्लूटिन नामक प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है।

• गेहूँ में विटामिन बी., बी. बी. व ई पाये जाते हैं। वसा में 2 घुलनशील इन बिटामिनों का पिसाई के समय ह्रास हो जाता है।*

• क्षेत्रफल और उत्पादन दोनों ही दृष्टि से विश्व में धान के बाद गेहूँ दूसरी महत्त्वपूर्ण फसल है।*

• देश में रबी की समस्त खाद्यान्न फसलों में 50% क्षेत्रफल तथा 70% उत्पादन गेहूँ का है।

• भारत में हरित क्रान्ति का सर्वाधिक प्रभाव गेहूँ पर ही पड़ा है। इसे गेहूँ – क्रान्ति कहना अतिश्योक्ति न होगा।

➤ मक्का (Maize)

• मक्का के दाने में कार्बोहाइड्रेट 79%, प्रोटीन 5-12%, वसा 5.0% तथा राख 2.0% पायी जाती है। सम्पूर्ण मक्का, थायमीन, पाइरिडॉक्सिन एवं पेन्टोथेनिक अम्ल का अच्छा स्त्रोत है।* ज्ञातव्य है कि धान्य फसलों के मुकाबले में इसमें स्टार्च की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती है।* ध्यातव्य है कि मक्का C4 पौधा है। * इसका वानस्पतिक नाम जिआ मेज (Zeo Mays) है, इसे ‘अनाजों की रानी’ की उपमा से अभिहित किया जाता है।

• धान्य फसलों में बायोडीजल के उत्पादन हेतु प्रयुक्त फसल है- मक्का*

• मक्का की उत्पत्ति पाइ कार्न से हुई है।*

• मक्का खरीफ, रबी एवं जायद अर्थात् तीनों ऋतुओं की फसल है। जायद में इसे चारे के रूप में उगाते हैं।*

• मक्का एक उभयलिंग श्रयी पौधा (monoecious plant) है। अर्थात् इसमें एक ही पौधे पर नर तथा मादा दोनों पुष्प होते हैं।* लेकिन मक्का में परपरागण (Cross pollination) होता है। * इसके नर पुष्पक्रम (Male infolorescence) को Tassel कहते हैं* तथा पौधे से tassel को हटाने की प्रक्रिया को Detasseling कहा जाता है। ‘Style’ एक बहुत लम्बा सिल्क जैसा फिलामेंट होता है जिसे ‘Silk’ कहा जाता है।*

• मक्का के प्रोटीन को ‘Zein’ कहते हैं तथा इसमें tryptophane एवं Lysine की कमी होती है।*

ज्वार (Sorghum)

ज्वार को काफिर कार्न (Kaffir corn), वनस्पति शास्त्र में सॉरधम बल्गेरी या माइलो (milo) भी कहते हैं। दक्षिणी भारत में विशेष रूप से ज्वार की खेती दाने के लिए की जाती है। मनुष्य ज्वार के आटे का प्रयोग, गेहूँ के आटे के समान ही रोटी बनाने के लिए करते हैं। कुछ स्थानों पर ज्वार के दाने को उबालकर भी खाया जाता है। इन उपयोगों के अतिरिक्त ज्वार के दाने का प्रयोग विभिन्न औद्योगिक पदार्थ बनाने के लिये किया जाता है। ज्वार के दानों की औसत रासायनिक रचना इस प्रकार है।

प्रोटीन (Protein) 10.4%; वसा (fat) 1.9; खनिज पदार्थ 1.8% व कार्बोहाइड्रेट 74.0% तक होता है। ज्वार की प्रोटीन में लाइसीन अमीनो अम्ल की मात्रा 1.4-2-4% तक पाई जाती है जो कि पौष्टिकता की दृष्टि से बहुत ही कम है। अमीनो अम्ल में ल्यूसीन की मात्रा अधिक (1.4-1.70%) होती है। ल्यूसीन की अधिक मात्रा के कारण ही अधिक ज्वार खाने वाले लोगों में पैलाग्रा (Pellagra) नामक बीमारी का प्रकोप होता है।*

ज्वार के दानों से एल्कोहल व बीयर (एक प्रकार की हल्की शराब) भी तैयार की जाती है। ज्वार के पौधे में हाइड्रोरासायनिक अम्ल (HCN) या प्रोसिक अम्ल पैदा होता है। पौधे की छोटी अवस्था में HCN विष का एकत्रीकरण पौधे में ज्यादा होता है। इस अवस्था में पशुओं को चारा अधिक खिलाने पर पशु की मृत्यु हो सकती है। एक बार में 0.5 ग्राम HCN का सेवन पशु के लिए हानिकारक हो सकता है। पौधे की वृद्धि के साथ-साथ HCN की सान्द्रता पौधों में कम होती चली जाती है। वर्षा या अधिक सिंचाई से भी पौधे में HCN% कम होती है। नत्रजन से HCN% पौधे में बढ़ती है। HCN अम्ल घुलनशील होता है। नीचे की पत्तियों की अपेक्षा ऊपरी पत्तियों में इनकी मात्रा सदैव ज्यादा होती है।

➤ बाजरा (Bajra)

बाजरा को वनस्पतिशास्त्र की भाषा में पैनीसेटम अमेरिकानम कहा जाता है। Pearl Millet, Bulrush Millet या Spiked Millet इसकी अन्य उपमाएँ हैं। हमारे देश में गरीब जनता बाजरे के दाने का प्रयोग मुख्य रूप से भोजन के लिये करती है। उत्तरी भारत में जाड़े के दिनों में बाजरा रोटी के लिये अधिक प्रयोग होता है। कुछ स्थानों पर दाने को उबालकर भी खाया जाता है। बाजरे की बाल को भूनकर भी खाया जाता है।

बाजरे में प्रोटीन 11.6%, वसा 5.0%, कार्बोहाइड्रेट 67%, खनिज 2.7% होते हैं। विटामिन ए व बी भी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। बाजरे के पौधे का प्रयोग हरे तथा सूखे रूप में जानवरों को खिलाने के लिये किया जाता है। चारे के लिये इसे बाल आने से पूर्व ही काटकर हरी अवस्था में ही जानवरों को खिला दिया जाता है। दाने की फसल की कटाई बालियों (Ears) के पकने के पश्चात् की जाती है तथा इस फसल की सूखी कड़वी जानवरों को खिलाने के लिए प्रयोग की जाती है।

➤ मंडुवा या रागी

इसे Fingermillet अथवा Birds Footmillet भी कहते हैं। इसका कुल-ग्रेमिनी है। मंडुवा की खेती दाना प्राप्त करने के लिए की जाती है। दाने के साथ ही फसल से जानवरों के लिये चारा भी प्राप्त होता है। दाने का प्रयोग भोजन एवं औद्योगिक रूप में भी किया जाता है। दाने को पीसकर आटा तैयार करके रोटी भी बनाई जाती है और दाने को उबालकर चावल की तरह भी खाया जाता है। दाने से उत्तम गुणों वाली शराब भी तैयार की जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में यह जनता का मुख्य भोजन है।* दक्षिण भारत में इससे केक, पुडिंग व मिठाइयाँ आदि बनाते हैं। इसके अंकुरित बीजों से माल्ट बनाते हैं, जो कि शिशु आहार तैयार करनें में काम आता है। मधुमेह रोगी के लिये यह उत्तम आहार है। इसमें 7.2% प्रोटीन, 72.7% कार्बोहाइड्रेट, 1.3% के लगभग वसा होती है तथा 2.24% खनिज होते हैं। फास्फोरस, कैल्शियम, विटामिन ए व बी भी पाये जाते हैं।

➤ कांगनी या काकुन

इसे Italian Millet या Foxtail Millet भी कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम – सिटेरिया इटैलिका (Setaria Italica L.) और कुल-ग्रेमिनी है। इसकी खेती दाना उत्पन्न करने के लिये की जाती है। दाने का प्रयोग रोटी बनाने के लिये किया जाता है। इसके साथ ही दूध में उबालकर भी काकुन खाया जाता है। इस उपयोग के अतिरिक्त काकुन के दाने का उपयोग शराब बनाने और चिड़ियों को चुगाने के लिये भी किया जाता है। इसके दाने में 12.3% प्रोटीन, 60.6% कार्बोहाइड्रेट, 4.7% वसा व 3.2% तक खनिज पाये जाते हैं।

➤ चीना या चेना

इसे Proso or Hog or Broom Corn or Aershey Millet भी कहा जाता है। इसका वनस्पतिक नाम पेनीकम मिलएसियम और कुल- ग्रेमिनी है। अन्य लघु धान्यों के समान ही चीना की खेती भी दाने के लिये की जाती है। बहुत कम समय में तैयार होने के कारण इसका उपयोग मनुष्य के आहार एवं पशुओं के चारे के लिए किया जाता है। इसके दानों को पीसकर रोटी बनायी जाती है कुछ स्थानों पर चावल की तरह उबालकर व भूनकर भी खाया जाता है।

सघन खेती के लिये सघन फसल चक्र के उपयुक्त है। जल सम्बन्धी आवश्यकता भी कम है। सिंचित क्षेत्रों में गर्मियों में व असिंचित क्षेत्रों में खरीफ में उगा सकते हैं।

इसके दाने मुर्गियों का अच्छा आहार है। इसमें प्रोटीन 7.7 तक व लाइसीन नामक अमीनों अम्ल 4.6% काफी पाया जाता है। इसमें 63.7% तक कार्बोहाइड्रेट व 4.7% तक वसा होती है।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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