निर्वाचन : 65

निर्वाचन व्यवस्था

संविधान के भाग-XV में अनुच्छेद 324 से 329 तक में हमारे देश के निर्वाचन से संबंधित निम्न उपबंधों का उल्लेख है:

1. संविधान (अनु. 324) देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था करता है। संसद, राज्य विधायिका, राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनावों के अधीक्षण, निदेशन तथा नियंत्रण की शक्ति निर्वाचन आयोग में निहित है’ वर्तमान समय में निर्वाचन आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा दो निर्वाचन आयुक्त हैं।

2. संसद तथा प्रत्येक राज्य विधायिका के चुनाव के लिए प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक मतदाता सूची होनी चाहिए। इस प्रकार संविधान ने सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व तथा अलग मतदाता सूची की उस व्यवस्था को खत्म कर दिया है जो देश के विभाजन को बढ़ावा देती है।

3. कोई व्यक्ति मतदाता सूची में नामित होने के लिए केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग अथवा इनमें से किसी एक के आधार पर अपात्र नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र की मतदाता सूची में केवल धर्म, नस्ल, जाति, अथवा लिंग अथवा इनमें से किसी एक के आधार पर दावा नहीं कर सकता। इस प्रकार संविधान ने मतदान में प्रत्येक नागरिक की समानता को स्वीकार किया है।

4. लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के लिए निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति जो भारतीय नागरिक है तथा 18 वर्ष की आयु का है, निर्वाचन में मत देने का अधिकार प्राप्त कर लेता है यदि वह संविधान के उपबंधों अथवा उपयुक्त विधायिका (संसद अथवा राज्य विधायिका) द्वारा निर्मित के अधीन अनिवास, चित्तवृत्ति, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर अन्यथा निरर्हित नहीं कर दिया जाता है।

5. संसद उन सभी व्यवस्थाओं का उपबंध कर सकती है जो संसद तथा राज्य विधायिकाओं के निर्वाचन मतदाता सूची की तैयारियों, निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन तथा सभी मामले जो संवैधानिक व्यवस्थाओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं।

इस शक्ति के प्रयोग द्वारा संसद ने निम्न विधियां बनाई हैं:

(i) 1950 का जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, जो मतदाता की अर्हता, मतदाता सूची की तैयारियों, निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन, संसद तथा राज्य विधायिकाओं में स्थानों के आवंटन आदि के बारे में उपबंध करता है।

(ii) 1951 का जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम जो निर्वाचन कराने तथा निर्वाचन में प्रशासनिक तंत्र की भूमिका, मतदान, निर्वाचन अपराध, चुनावी विवाद, उप- निर्वाचन, राजनैतिक दलों के पंजीकरण आदि का उपबंध करता है।

(iii) 1952 का परिसीमन आयोग अधिनियम जो स्थानों की पुनर्व्यवस्था, क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन तथा आरक्षण तथा अन्य संबंधित मामलों में उपबंध करता है।

6. राज्य विधायिका भी स्वयं के निर्वाचन से संबंधित सभी मामलों में, मतदाता सूची की तैयारियों के संबंध में तथा संबंधित संवैधानिक व्यवस्थाओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक सभी मामलों में उपबंध बना सकती है। परन्तु वे केवल उन्हीं मामलों में उपबंध बना सकते हैं, जो संसद के कार्यक्षेत्र में नहीं आते हैं। दूसरे शब्दों में वे केवल संसदीय विधि के अनुपूरक हो सकते हैं और उस पर अभिभावी नहीं हो सकते।

7. संविधान घोषणा करता है कि निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन अथवा इन निर्वाचन क्षेत्रों के लिए आबंटित स्थानों से संबंधित विधियों पर न्यायालय में प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। परिणामस्वरूप परिसीमन आयोग द्वारा पारित आदेश अंतिम होते हैं तथा उन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

8. संविधान के अनुसार संसद अथवा राज्य विधायिका के निर्वाचन पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता, केवल एक निर्वाचन याचिका के जो ऐसे प्राधिकारों के समक्ष ऐसे तरीके से प्रस्तुत की जाए जिसका उपबंध उपयुक्त विधायिका ने किया हो। 1966 से चुनावी याचिका पर सुनवाई अकेले उच्च न्यायालय करता है किंतु अपील का अधिकार क्षेत्र केवल उच्चतम न्यायालय में है।

अनुच्छेद 323 ख उपयुक्त विधायिका (संसद अथवा विधायिका) को निर्वाचन विवादों के निर्णय के लिए अधिकरण के गठन की शक्ति प्रदान करता है। ये ऐसे विवादों को सभी न्यायालयों के अधिकार क्षेत्रों से (उच्चतम न्यायालय के विशेष अवकाश अपील अधिकार क्षेत्र को छोड़कर) बाहर रखने का भी उपबंध करता है। अभी तक ऐसे किसी अधिकरण का गठन नहीं किया गया है। यहां यह जानना आवश्यक है कि चंद्रकुमार मामले (1997) में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि यह उपबंध असंवैधानिक है। यदि किसी समय ऐसा कोई अधिकरण गठित किया जाता है तो इसके निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

इन तीन विधियों (जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है।) के अतिरिक्त निर्वाचन से संबंधित अन्य विधियां तथा नियम इस प्रकार हैं:

(i) राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचन कानून, 1952

(ii) संघ राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम, 1963

(iii) दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम, 1991

(iv) मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्त (सेवा शर्तें) अधिनियम, 1991

(v) समानांतर सदस्यता निषेध अधिनियम, 1950

(vi) निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960

(vii) निर्वाचन नियम संहिता, 1961

इसके अतिरिक्त निर्वाचन आयोग ने निर्वाचन चिह्न (आरक्षण व आवंटन) आदेश 1968 पारित किया है। यह राजनैतिक दलों के पंजीकरण तथा मान्यता, निर्वाचन चिह्नों के आवंटन तथा उनके मध्य विवादों के निपटारे से संबंधित है।

चुनाव तंत्र

भारत का निर्वाचन आयोग (ई.सी.आई.)

भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत भारत के निर्वाचन आयोग को लोकसभा तथा राज्य विधान सभाओं के चुनावों का अधीक्षण निर्देशन तथा नियंत्रण का अधिकार प्राप्त है। भारत का निर्वाचन आयोग एक तीन सदस्यीय निकाय है जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो चुनाव आयुक्त होते हैं। भारत के राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करते हैं।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सी.ई.ओ.)

किसी राज्य/संघीय क्षेत्र का मुख्य चुनाव अधिकारी उस राज्य अथवा संघीय क्षेत्र में चुनाव कार्यों का पर्यवेक्षण करने को अधिकृत है, जिसका निर्वाचन आयोग अधीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण करता है। निर्वाचन आयोग राज्य सरकार/संघीय क्षेत्र की सरकार के किसी अधिकारी को राज्य सरकार। संघीय क्षेत्र प्रशासन के परामर्श से मुख्य चुनाव अधिकारी नामित करता है।

जिला निर्वाचन अधिकारी (डी.ई.ओ.)

मुख्य निर्वाचन अधिकारी के अधीक्षण, निदेशन तथा नियंत्रण में जिला निर्वाचन अधिकारी जिले में चुनाव कार्य का पर्यवेक्षण करता है। भारत का निर्वाचन आयोग राज्य सरकार के किसी अधिकारी को राज्य सरकार की सलाह पर जिला निर्वाचन अधिकारी नामित अथवा पद नामित करता है।

चुनाव अधिकारी (रिटर्निंग ऑफिसर) (आर.ओ.)

किसी संसदीय अथवा विधान सभा क्षेत्र के चुनाव कार्य के संचालन के लिए चुनाव अधिकारी उत्तरदायी होता है। भारत का निर्वाचन आयोग राज्य सरकार अथवा स्थानीय प्राधिकार के किसी पदाधिकारी को राज्य सरकार/संघीय क्षेत्र प्रशासन के परामर्श से प्रत्येक विधान सभा एवं संसदीय चुनाव क्षेत्र में एक चुनाव पदाधिकारी को नामित करता है। इसके अतिरिक्त भारत का निर्वाचन आयोग प्रत्येक विधान सभा तथा संसदीय चुनाव क्षेत्र में चुनाव अधिकारी के कार्यों में सहयोग देने के लिए एक या अधिक सहायक चुनाव अधिकारी भी नियुक्त करता है।

चुनाव निबंधन पदाधिकारी (इलेक्टॉरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर) (ई.आर.ओ.)

संसदीय चुनाव क्षेत्र में मतदाता सूची आदि को तैयार करने के लिए चुनाव पंजीकरण अधिकारी उत्तरदायी होता है। भारत का निर्वाचन आयोग राज्य/संघीय शासन के परामर्श से सरकार अथवा स्थानीय प्राधिकार में किसी अधिकारी को चुनाव पंजीकरण अधिकारी नियुक्त करता है। चुनाव पंजीकरण अधिकारी के सहयोग के लिए भारत का निर्वाचन आयोग एक या अधिक सहायक चुनाव पंजीकरण अधिकारियों की नियुक्ति कर सकता है।

पीठासीन अधिकारी (प्रेजाइडिंग ऑफिसर) (पी.ओ.)

पीठासीन अधिकारी मतदान अधिकारियों के सहयोग से मतदान केन्द्र पर मतदान कार्य सम्पन्न कराता है। जिला निर्वाचन अधिकारी पीठासीन अधिकारियों एवं मतदान अधिकारियों की नियुक्ति करता है। संघीय क्षेत्रों के मामले में चुनाव अधिकारी ऐसी नियुक्तियाँ करता है।

पर्यवेक्षक (ऑब्जर्बर)

भारत का निर्वाचन आयोग सरकारी पदाधिकारियों को संसदीय एवं विधानसभा चुनाव क्षेत्रों के लिए पर्यवेक्षक (सामान्य पर्यवेक्षक तथा चुनाव खर्च पर्यवेक्षक) नामित करता है। ये पर्यवेक्षक निर्वाचन आयोग द्वारा सौंपे गए कार्यों को पूरा करते हैं। वे सीधे आयोग को प्रतिवेदन देते हैं।

चुनाव प्रक्रिया

चुनाव का समय

लोकसभा तथा प्रत्येक राज्य विधान सभा के हर पाँच वर्ष पर चुनाव होते हैं। राष्ट्रपति पाँच वर्ष पूरा होने के पहले भी लोकसभा को भंग कर सकते हैं, अगर सरकार लोकसभा में बहुमत खो देती है तथा किसी वैकल्पिक सरकार की संभावना नहीं होती है।

चुनाव कार्यक्रम (शेड्यूल ऑफ इलेक्शन)

जब पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा हो जाता है अथवा विधायिका को भंग कर दिया जाता है और नये चुनाव की घोषणा होती है तब निर्वाचन आयोग चुनाव कराने के लिए अपने तंत्र को उपयोग में लाता है। संविधान यह उल्लेख करता है कि भंग लोकसभा के अंतिम सत्र तथा नई लोकसभा के गठन के बीच छह माह से अधिक का अंतराल नहीं होगा। इसलिए चुनाव इसी बीच करा लेना होगा।

आमतौर पर निर्वाचन आयोग चुनाव प्रक्रिया की शुरूआत के कुछ सप्ताह पहले एक संवाददाता सम्मेलन में नये चुनाव की घोषणा करता है। इस घोषणा के उपरांत उम्मीदवारों एवं राजनीतिक दलों पर चुनाव आचार संहिता तत्काल लागू हो जाती है। औपचारिक चुनाव प्रक्रिया चुनाव अधिसूचना जारी होने के साथ ही आरंभ हो जाती है। ज्योंही अधिसूचना जारी होती है उम्मीदवार जिस चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं।

अपना नामांकन दाखिल कर सकते है। नामांकन की अंतिम तारीख से एक सप्ताह पश्चात् नामांकनों की जाँच संबंधित चुनाव क्षेत्र के चुनाव अधिकारी करते हैं। जाँच के बाद दो दिनों के अंदर वैध उम्मीदवार नाम वापस लेंकर चुनाव से हट सकते है। चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को चुनाव अभियान के लिए मतदान की तिथि के पहले दो हफ्ते का समय मिलता है।

मतदाताओं की भारी संख्या एवं बहुत बड़े पैमाने पर की जाने वाली चुनावी कार्यवाही को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय चुनाव के लिए कई दिनों मतदान कराया जाता है। मतगणना के लिए एक अलग तिथि निर्धारित की जाती है तथा प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के लिए संबंधित चुनाव अधिकारी द्वारा परिणाम घोषित किए जाते हैं।

आयोग निर्वाचित सदस्यों की सूची बनाता है तथा सदन के गठन के लिए उपयुक्त अधिसूचना जारी करता है। इसी के साथ चुनाव की प्रक्रिया सम्पन्न हो जाती है तथा लोकसभा के मामले में राष्ट्रपति तथा विधानसभाओं के लिए संबंधित राज्यों के राज्यपाल सदन/सदनों का सत्र आहूत करते हैं।

शपथ ग्रहण

किसी भी उम्मीदवार के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा अधिकृत अधिकारी के समक्ष शपथ लेनी पड़ती है। मुख्यतः चुनाव अधिकारी तथा सहायक चुनाव अधिकारी चुनाव आयोग द्वारा इस उद्देश्य के लिए अधिकृत किए जाते हैं। ऐसे उम्मीदवारों के लिए जो बंदी हों अथवा जिन्हें निरुद्ध किया गया हो संबंधित कारा अधीक्षक अथवा अवरोधन शिविर (Detention camp) के समादेष्टा (Commandent) को शपथ ग्रहण के अधिकृत किया जाता है। ऐसे उम्मीदवारों के लिए जो कि अस्पताल में हों और बीमार हों तब अस्पताल के प्रभारी चिकित्सा अधीक्षक अथवा चिकित्सा अधिकारी को इसके लिए अधिकृत किया जाता है। यदि कोई उम्मीदवार भारत के बाहर हो तब भारत के राजदूत अथवा उच्चायुक्त अथवा उनके द्वारा अधिकृत राजनयिक कॉन्सलर के समक्ष शपथ ली जाती है। उम्मीदवार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह नामांकन पत्र दाखिल करने के फौरन बाद शपथ-पत्र प्रस्तुत करेगा या कम से कम नामांकन पत्र जाँच की तारीख से एक दिन पहले तक अवश्य जमा कर देगा।

चुनाव प्रचार

प्रचार वह अवधि है, जबकि राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों को सामने लाते हैं तथा अपने दल तथा उम्मीदवारों के पक्ष में मत डालने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं। उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मिलता है। नामांकन पत्रों की जाँच चुनाव अधिकारी करते हैं। नामांकन पत्र सही नहीं पाये जाने पर एक सुनवाई के पश्चात् उन्हें अस्वीकृत कर दिया जाता है। वैध नामांकन वाले उम्मीदवार नामांकन पत्र जाँच के दो दिन के अंदर अपना नामांकन वापस ले सकते हैं। औपचारिक चुनाव प्रचार उम्मीदवारों की सूची के प्रकाशन से मतदान समाप्त होने के 48 घंटे पूर्व कम से कम दो सप्ताह चलता है।

चुनाव प्रचार के दौरान चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों तथा राजनीतिक दलों से यह अपेक्षा की जाती है कि निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों की आम सहमति के आधार पर तैयार की गई आदर्श आचार संहिता का वे पालन करेंगे। आचार संहिता में ऐसे मार्ग-निर्देश दिए हुए हैं कि राजनीतिक दलों तथा उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार के दौरान किस प्रभार का व्यवहार करना चाहिए। इसका उद्देश्य चुनाव प्रचार में स्वस्थ तरीकों का इस्तेमाल करना, राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों अथवा उनके समर्थकों के बीच संघर्षों एवं झगड़ों को रोकना तथा शांति व्यवस्था तब तक बनाए रखना है जब तक कि परिणाम घोषित न कर दिए जाएँ। आचार संहिता केन्द्र अथवा राज्य में सतारूढ़ दल के लिए भी मार्ग-निर्देश तय करती है, जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चुनाव बराबरी के आधार पर लड़ा गया और ऐसी कोई शिकायत सामने नहीं आई, जिसमें कि सत्तारूढ़ दल को चुनाव प्रचार के दौरान अपनी सरकारी स्थिति का उपयोग किया हो।

एक बार जब चुनावों की घोषणा हो जाती है, विभिन्न दल अपने चुनाव घोषणापत्र जारी करना शुरू कर देते हैं जिनमें उन कार्यक्रमों की जानकारी होती है जिन्हें वे चुनाव जीतकर सरकार बनाने के पश्चात लागू करना चाहते हैं। इनमें दल अपने नेताओं के सामर्थ्य एवं विरोधी दलों एवं उनके नेताओं की कमियों एवं विफलताओं की चर्चा की जाती है। दलों एवं मुद्दों की पहचान के लिए नारों का इस्तेमाल किया जाता है, मतदाताओं के बीच इश्तहार एवं पोस्टर आदि वितरित किए जाते हैं। पूरे निर्वाचन क्षेत्र में रैलियाँ की जाती हैं, जिनमें उम्मीदवार अपने समर्थकों को उत्साहित करते हैं और विरोधियों की आलोचना करते हैं। व्यक्तिगत अपील और वादे भी उम्मीदवार मतदाताओं से करते हैं जिससे कि उन्हें अधिक से अधिक संख्या में अपने समर्थन में लाया जा सके।

मतदान दिवस

अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों के लिए सामान्यतया मतदान की तिथियाँ अलग-अलग होती हैं। ऐसा सुरक्षा प्रबंधों को प्रभावी बनाने तथा मतदान की व्यवस्था में लगे लोगों को अनुश्रवण का पूरा अवसर देने और यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष हैं।

मतपत्र एवं चुनाव चिह्न

जब उम्मीदवारों के नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है, चुनाव अधिकारी द्वारा चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की एक सूची बनाई जाती है तथा मतदान पत्र छपवाए जाते हैं। मतपत्रों पर उम्मीदवारों के नाम (चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित की गई भाषाओं में) तथा उन्हें आवंटित चुनाव चिह्न छपे रहते हैं। मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवारों को उनके दल का चुनाव चिह्न आवंटित किया जाता है।

मतदान प्रक्रिया

मतदान गुप्त होता है। सार्वजनिक स्थलों पर मतदान केन्द्र स्थापित किए जाते हैं, जैसे-विद्यालय या सामुदायिक भवन आदि अधिक से अधिक मतदाता मताधिकार का प्रयोग करें, यह सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग यह सुनिश्चित करने की कोशिश करता है कि प्रत्येक मतदाता से मतदान केन्द्र की दूरी 2 कि.मी. से अधिक नहीं हो साथ ही किसी भी मतदान केन्द्र में 1500 से अधिक मतदाता नहीं आएँ।

मतदान केन्द्र में प्रवेश करते ही मतदाता का नाम मतदाता सूची में देख-मिलाकर, उसे एक मतदान पत्र प्रदान किया जाता है। मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार के चुनाव चिह्न पर या उसके पास मुहर लगाता है। यह कार्यवाही मतदान केन्द्र में ही एक अलग छोटे-से कक्ष में होती है। मुहर लगाने के बाद मतदाता मतपत्र को मोड़कर एक साझी मतपेटी में पीठासीन अधिकारी तथा मतदान एजेंटों के सामने डालता है। चिह्न लगाने की इस प्रक्रिया से मतपत्रों को मतपेटी से वापस निकाले जाने की संभावना जाती रहती है।

1998 से निर्वाचन आयोग मतपत्रों के स्थान पर अधिक से अधिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम) का उपयोग कर रहा है। 2003 में सभी राज्य चुनावों और उप-चुनावों में ई.वी. एम का उपयोग किया गया। इस प्रयोग की सफलता से उत्साहित होकर निर्वाचन आयोग ने 2004 में लोकसभा चुनावों में केवल ई.वी.एम का उपयोग किया। 10 लाख ई.वी.एम. इसके लिए उपयोग में लाए गए।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम.)

यह एक सरल इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है। मतपत्रों के स्थान पर मतों को रिकॉर्ड करने के उपयोग किया जाता है। पारम्परिक मतपत्रों की प्रणाली की तुलना में ई.वी.एम के निम्नलिखित लाभ हैं:

(i) ई.वी.एम. से अवैध और संदेहास्पद मतों की संभावना समाप्त होती है, जो कि चुनाव से जुड़े विवादों तथा चुनाव याचिकाओं का प्रमुख कारण रहा है।

(ii) इससे मतगणना की प्रक्रिया आसान और द्रुत हो जाती है।

(iii) इसके उपयोग से कागज की खपत बहुत कम हो जाती है जिसका सीधा पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव होता है।

(iv) इससे छपाई की लागत बहुत कम हो जाती है क्योंकि इस प्रक्रिया में प्रत्येक मतदान केन्द्र में केवल एक मतपत्र की ही आवश्यकता रह जाती है।

चुनावों का पर्यवेक्षण

चुनाव आयोग बड़ी संख्या में पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करता है जो यह सुनिश्चित करते हैं कि मतदान स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से कराए गए और लोगों ने अपनी पसंद का उम्मीदवार चुना। चुनाव खर्च पर्यवेक्षक उम्मीदवार और दल के चुनाव खर्च की निगरानी करते हैं।

मतगणना

जब मतदान सम्पन्न हो जाता है चुनाव अधिकारी तथा पर्यवेक्षक की देखरेख में मतगणना की प्रक्रिया आरंभ होती है। मतगणना समाप्त होने के पश्चात् चुनाव अधिकारी सबसे अधिक मत पाने वाले उम्मीदवार का नाम विजयी उम्मीदवार के रूप में घोषित करते हैं।

लोकसभा चुनाव ‘फर्स्ट पास्ट दि पोस्ट’ पद्धति के अनुसार कराए जाते हैं। देश को चुनाव क्षेत्रों के रूप में अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है। मतदाता एक उम्मीदवार के लिए एक मत देते हैं और सबसे अधिक मत पाने वाला उम्मीदवार विजयी घोषित किया जाता है।

राज्य विधान सभा चुनाव भी लोकसभा चुनावों की तर्ज पर ही होते हैं जिनमें राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को एकल-सदस्य चुनाव क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है।

जन-माध्यमों में कवरेज

चुनावी प्रक्रिया को अधिक से अधिक पारदर्शी बनाने के लिए जन-माध्यमों (मीडिया) को चुनाव प्रक्रिया के कवरेज के लिए प्रोत्साहित किया जाता है तथापि मतदान की गोपनीयता को बनाए रखा जाता है। मीडिया कर्मियों को मतदान केन्द्रों तक पहुँचने के लिए विशेष पास दिए जाते हैं ताकि वे मतदान प्रक्रिया का कवरेज करें तथा मतगणना पत्रों में भी मतगणना पूरी प्रक्रिया का संज्ञान लें।

चुनाव याचिका

कोई भी चुनावकर्ता अथवा उम्मीदवार चुनाव याचिका दायर कर सकता है यदि उसे यह विश्वास हो कि चुनाव में कदाचार हुआ है। चुनाव याचिका एक सामान्य सिविल याचिका नहीं होती बल्कि इसमें पूरा चुनाव क्षेत्र संलग्न होता है। चुनाव याचिका की सम्बन्धित राज्य के उच्च न्यायालय में सुनवाई होती है, यदि शिकायत सही पाई गई तो निर्वाचन क्षेत्र में दोबारा चुनाव कराए जा सकते हैं।

तालिका 65.1 लोकसभा चुनावों के परिणाम

आम चुनाव (वर्ष)निर्वाचित स्थानदलों द्वारा जीते गए स्थान (मुख्य)
पहला (1952)489कांग्रेस 364, वामपंथी 27, समाजवादी 12, केएमपीपी 9, जन-संघ 3
दूसरा (1957)494कांग्रेस 371, वामपंथी 27, प्रजा समाजवादी 19, जनसंघ 4
तीसरा (1962)494कांग्रेस 361, वामपंथी 29, स्वतंत्र 18, जनसंघ 14, प्रजा समाजवादी 12, समाजवादी 6
चौथा (1967)520कांग्रेस 283, स्वतंत्र 44, जन संघ 35, सीपीआई 23, सीपीएम 19, संयुक्त समाजवादी 23, प्रजा समाजवादी 13
पांचवां (1971)518कांग्रेस 352, सीपीएम 25, सीपीआई 24, डीएमके 23, जनसंघ 21, स्वतंत्र 7, समाजवादी 5
छठा (1977)542जनता 298, कांग्रेस 154, सीपीएम 22, सीपीआई 7, एआईएडीएमके 18
सातवां (1980)542कांग्रेस 353, जनता (सेक्युलर) 41, जनता 31, सीपीएम 36, सीपीआई 11, डीएमके 16
आठवां (1984)542कांग्रेस 415, टीडीपी 28, सीपीएम 22, सीपीआई 6, जनता 10, एआईएडीएमके 12, भाजपा 2
नवां (1989)543कांग्रेस 197, जनता दल 141, भाजपा 86, सीपीएम 32, सीपीआई 12, एआईएडीएमके 11, टीडीपी 2
दसवां (1991)543कांग्रेस 232, भाजपा 119, जनता दल 59, सीपीएम 35, सीपीआई 13, टीडीपी 13, एआईएडीएमके 11
ग्याहरवां (1996)543भाजपा 161, कांग्रेस 140, जनता दल 46, सीपीएम 32, टीएमसीएम 20, डीएमके 17, एसपी 17, टीडीपी 16, एसएस 15, सीपीआई 12, बसपा 11
बारहवां (1998)543भाजपा 182, कांग्रेस 141, सीपीएम 32, एआईएडीएमके 18, टीडीपी 12, एसपी 20, समता 12, राजद 17
तेरहवां (1999)543भाजपा 182, कांग्रेस 114, सीपीएम 33, टीडीपी 29, एसपी 26, जेडी (यू) 20, एसएस 15, बसपा 14, डीएमके 12, बीजेडी 10, एआईएडीएमके 10
चौदहवां (2004)543कांग्रेस 145, भाजपा 138, सीपीएम 43, सीपीएम 43, एसपी 36, आरजेडी 24, बसपा 19, डीएमके 16, शिवसेना 12, बीजेडी 11, सीपीआई 10
पंद्रहवां (2009)543कांग्रेस 206, भाजपा 116, एसपी 23, आरजेडी 24, बसपा 21, जेडी (यू) 20, तृणमूल 19 डीएमके 18, सीपीएम 16, बीजेडी 14, शिवसेना 11, एनसीपी 9, एआईएडीएमके 9,टीडीपी 6, आरएलडी 5, सीपीआई 4, आजेडी 4, एसएडी 4

तालिका 65.3 लोकसभा चुनावों में महिलाए

आम चुनाव (वर्ष)उम्मीदवारनिर्वाचित
पहला (1952)22
दूसरा (1957)4527
तीसरा (1962)7034
चौथा (1967)6731
पांचवां (1971)8622
छठा (1977)7019
सातवां (1980)14228
आठवां (1984)16444
नवां (1989)19827
दसवां (1991)32539
ग्याहरवां (1996)59940
बारहवां (1998)27443
तेरहवां (1999)27749
चौदहवां (2004)35545
पंद्रहवां (2009)55659

तालिका 65.4 निर्वाचन व्यय की सीमा

आम चुनाव (वर्ष)

आम चुनाव (वर्ष)व्यय की अधिकतम सीमा
पहला (1952)10.45
दूसरा (1957)5.90
तीसरा (1962)7.81
चौथा (1967)10.95
पांचवां (1971)14.43
छठा (1977)29.81
सातवां (1980)37.07
आठवां (1984)78.28
नवां (1989)110
दसवां (1991)302.79
ग्याहरवां (1996)508.68
बारहवां (1998)664.50
तेरहवां (1999)850
चौदहवां (2004)1300
पंद्रहवां (2009)1120

तालिका 65.5 ग्राम चुनाव (2004) के सबसे बड़े एवं सबसे छोटे संसदीय क्षेत्र

क्रम निर्वाचित क्षेत्रराज्य केंद्रशासित प्रदेशक्षेत्रफल (वर्ग किमी)
I. सबसे बड़ा निर्वाचन क्षेत्र
1.लद्दाखजम्मू एवं कश्मीर173266.37
2.बाड़मेरराजस्थान71601.24
3.कच्छगुजरात41644.55
4.अरुणाचल पश्चिमअरुणाचल प्रदेश40572.29
5.अरुणाचल पूर्वअरुणाचल प्रदेश39749.64
II. सबसे छोटा निर्वाचन क्षेत्र
1.चांदनी चौकएनसीडी ऑफ दिल्ली10.59
2.कोलकाता नॉर्थ पश्चिमीबंगाल13.23
3.दक्षिण मुम्बईमहाराष्ट्र13.73
4.केन्द्रीय मुम्बई दक्षिणीमहाराष्ट्र18.31
5.दिल्ली सदरएनसीटी ऑफ दिल्ली28.09

तालिका 65.6 निर्वाचन से सम्बन्धित अनुच्छेद, एक नजर में

अनुच्छेदविषय-वस्तु
324चुनाव कार्य के अधीक्षण, निदेशन तथा निदेशन की शक्ति चुनाव आयोग में विहित
325चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने के लिए धर्म, नस्ल, जाति अथवा लिंग के आधार पर अयोग्य नहीं होगा अथवा इन्हीं आधारों पर शामिल होने का दावा नहीं कर सकता।
326लोकसभा अथवा विधान सभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर सम्पन्न होंगे।
327विधायिकाओं के चुनाव के सम्बन्ध में प्रावधान बनाने की संसद की शक्ति
328राज्य विधायिका का सम्बन्धित राज्य के अंदर चुनाव के सम्बन्ध में प्रावधान बनाने की शक्ति
329चुनाव सम्बन्धी मामलों के न्यायालयों के हस्तक्षेप पर रोक
329 Aप्रधानमंत्री तथा लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान -निरस्त

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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