चुनाव सुधार से संबंधित समितियां
विभिन्न समितियों एवं आयोगों ने हमारी चुनाव प्रणाली एवं चुनाव मशीनरी के साथ-साथ चुनाव प्रक्रिया की जांच की है और सुधार के सुझाव दिए हैं। इन समितियों और आयोगों का उल्लेख नीचे किया जा रहा है:
1. तारकुंडे समिति का गठन जयप्रकाश नारायण ने अपने संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान 1974 में किया था। इस गैर-सरकारी समिति ने 1975 में अपनी रिपोर्ट दी थी।
2. चुनाव सुधार के लिए दिनेश गोस्वामी समिति (1990)
3. अपराध और राजनीति के बीच के सांठगांठ की जांच करने के लिए वोहरा समिति (1993)
4. चुनाव खर्च सरकार द्वारा वहन करने पर इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998)
5. चुनाव कानूनों में सुधार पर भारत की विधि आयोग की रिपोर्ट (1999)
6. संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिए राष्ट्रीय आयोग (2000-2002) 13 एम.एन. वेंकटचलैया इस आयोग के अध्यक्ष थे।
7. प्रस्तावित चुनाव सुधारों पर भारत का चुनाव आयोग, की रिपोर्ट (2004)
8. शासन में नैतिकता के सवाल पर भारत सरकार के दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट (2007) वीरप्पा मोइली इस आयोग के अध्यक्ष थे।
9. चुनाव कानूनों एवं चुनाव सुधारों से जुड़े तमाम सवालों को देखने के लिए 2010 में गठित तनखा समिति ।
उपरोक्त समितियों एवं आयोगों की अनुशंसाओं के आधार पर चुनाव प्रणाली, चुनाव मशीनरी और चुनाव प्रक्रिया में कई सुधार किए गए। निम्नलिखित चार भागों में बांट कर इनका अध्ययन किया जा सकता है:
1. 1996 के पहले के चुनाव सुधार
2. 1996 का चुनाव सुधार
3. 1996 के बाद के चुनाव सुधार
4. 2010 से अब तक के चुनाव सुधार
1996 के पहले के चुनाव सुधार
वोट देने की आयु घटाना : 1988 के 61वें संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा के साथ-साथ विधानसभाओं के चुनाव में वोट डालने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया। प्रतिनिधित्व से वंचित देश के युवाओं को अपनी भावनाओं को प्रकट करने का अवसर प्रदान करने और चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनने में मदद करने के उद्देश्य से ऐसा किया गया।
चुनाव आयोग में प्रतिनियुक्ति: 1988 में प्रावधान किया गया कि चुनावों के लिए मतदाता सूची बनाने, पुनरीक्षण एवं संशोधन करने के काम में जो पदाधिकारी एवं कर्मचारी कार्यरत रहेंगे उन्हें यह काम करते रहने की अवधि तक चुनाव आयोग में प्रतिनियुक्त माना जाएगा। इस अवधि के दौरान ये कर्मचारी चुनाव आयोग के नियंत्रण, देखरेख एवं अनुशासन के अधीन रहेंगे।
प्रस्तावकों की संख्या में वृद्धिः 1988 में, राज्यसभा एवं राज्यों के विधान परिषदों के चुनाव के लिए नामांकन-पत्रों पर प्रस्तावक के रूप में हस्ताक्षर करने वाले निर्वाचकों की संख्या बढ़ाकर चुनाव क्षेत्र के कुल निर्वाचकों का दस प्रतिशत या ऐसे दस निर्वाचक, जो कम हों, कर दिया गया। ऐसा व्यर्थ के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए किया गया।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन: 1989 में चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के इस्तेमाल की व्यवस्था की गई। प्रयोग के तौर पर पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल 1998 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली विधानसभा के चुनाव में हुआ। 1999 के गोवा विधानसभा चुनाव में पहली बार ईवीएम का पूरे राज्य में इस्तेमाल हुआ।
बूथ कब्जाः 1989 में बूथ कब्जा होने पर चुनाव स्थगित करने या रद्द करने का प्रावधान किया गया। बूथ कब्जा में शामिल हैं: (i) मतदान केंद्र पर कब्जा कर लेना और अधिकारियों से मतपत्र या वोटिंग मशीन सरेंडर करा लेना, (ii) मतदान केंद्र को अपने कब्जे में ले लेना और सिर्फ अपने समर्थकों को वोट डालने की इजाजत देना, (iii) किसी भी मतदाता को मतदान केंद्र पर जाने को लेकर धमकाना और रोकना, तथा (iv) मतगणना केंद्र पर कब्जा कर लेना।
1996 के चुनाव सुधार
1990 में वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने तत्कालीन कानून मंत्री दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में चुनाव सुधार समिति का गठन किया। समिति से चुनाव प्रणाली का विस्तार से अध्ययन करने और प्रणाली की कमियों को दूर करने के लिए अपने सुझाव देने को कहा गया। समिति ने 1990 में ही
अपनी रिपोर्ट दे दी और चुनाव सुधार के कई सुझाव दिए। इनमें से कुछ अनुशंसाएं 1996 में लागू की गई। इनके बारे में नीचे बताया गया है:
उम्मीदवारों के नामों को सूचीबद्ध करना
उम्मीदवारों के नामों को सूचीबद्ध करने के लिए चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को तीन वर्गों में बांटा जाएगा। ये वर्ग हैं:
(i) मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवार,
(ii) पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवार, और;
(iii) अन्य (निर्दलीय) उम्मीदवार।
चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची और मतपत्र में उनके नाम अलग-अलग उप-रोक्त क्रम में रहेंगे तथा सभी वर्गों में नामों को वर्णक्रमानुसार रखा जाएगा।
राष्ट्रीय गौरव का अनादर करने पर अयोग्य घोषित करने का कानूनः राष्ट्रीय गौरव अपमान निरोधक अधिनियम, 1971 के तहत निम्नलिखित अपराधों के लिए सजा प्राप्त व्यक्ति छह साल तक लोकसभा और राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य होगा:
(i) राष्ट्रीय झंडे के अनादर का अपराध;
(ii) भारत के संविधान का अनादर करने का अपराध, और;
(iii) राष्ट्रगान गाने से रोकने का अपराध।
शराब बिक्री पर प्रतिबंधः मतदान खत्म होने की अवधि के 48 घंटे पहले तक मतदान केंद्र के इलाके में किसी दुकान, खाने की जगह, होटल या किसी भी सार्वजनिक या निजी स्थल में किसी तरह के शराब या नशीले पेय नहीं बेचा या बांटा जा सकता। इस कानून का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति 6 माह के कैद या 2000 रुपये के जुर्माने या दोनों सजा का भागी होगा।
प्रस्तावकों की संख्या : लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति अगर किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल का उम्मीदवार नहीं है तो उसके नामांकन-पत्र पर क्षेत्र के दस पंजीकृत मतदाताओं के हस्ताक्षर प्रस्तावक के रूप में होने चाहिए। अगर उम्मीदवार किसी मान्यता प्राप्त दल का है तो सिर्फ एक प्रस्तावक की जरूरत होगी। ऐसा व्यर्थ के लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए किया गया था।
उम्मीदवार की मृत्युः चुनाव लड़ रहे किसी उम्मीदवार का निधन मतदान के पूर्व हो जाने पर पहले चुनाव रद्द कर दिया जाता था और उसके बाद उस क्षेत्र में फिर से चुनाव प्रक्रिया शुरू होती थी। लेकिन अब मतदान के पूर्व चुनाव लड़ रहे किसी उम्मीदवार का निधन हो जाने पर चुनाव रद्द नहीं होता। हालांकि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के उम्मीदवार का निधन होने की स्थिति में उस दल को सात दिनों के अंदर दूसरा उम्मीदवार देने का विकल्प दिया जाता है।
उप-चुनाव की समय सीमा : संसद या राज्य विधानमंडल के किसी सदन की सीट खाली होने के छह महीने के अंदर उप-चुनाव कराना होगा। लेकिन यह व्यवस्था दो स्थितियों में लागू नहीं होती है:
(i) जिस सदस्य की खाली जगह भरी जानी है, उसका कार्यकाल अगर एक साल से कम अवधि का बचा हुआ हो, या
(ii) जब चुनाव आयोग केंद्र सरकार से सलाह-मशविरा कर यह सत्यापित करे कि निर्धारित अवधि के अंदर उप-चुनाव कराना कठिन है।
मतदान के दिन कर्मचारियों का अवकाशः किसी भी व्यवसाय, व्यापार, उद्योग या अन्य संस्थान में कार्यरत पंजीकृत मतदाता को मतदान के दिन वैतनिक अवकाश मिलेगा। यह नियम दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों पर भी लागू होगा। इसका उल्लंघन करने वाले नियोजक को 500 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। हालांकि यह नियम वैसे मतदाताओं पर नहीं लागू होगा जिसकी अनुपस्थिति से वह जिस रोजगार में लगा है उसे खतरा या अत्यधिक नुकसान होता हो।
दो से अधिक चुनाव क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर प्रतिबंधः एक साथ हो रहे आम चुनाव या उप-चुनाव में कोई उम्मीदवार लोकसभा या विधानसभा की दो से अधिक सीटों से चुनाव नहीं लड़ सकता। ऐसा ही प्रतिबंध राज्यसभा और राज्यों के विधानपरिषद के द्वि-वार्षिक या उप-चुनाव पर भी लागू होता है।
हथियार पर रोक : किसी मतदान केंद्र के आसपास किसी तरह के हथियार के साथ जाना संज्ञेय अपराध है। ऐसा करने पर दो साल की सजा या जुर्माना या दोनों दंड दिया जा सकता है। इसके अलावा कानून की अवहेलना करने वाले व्यक्ति का हथियार जब्त कर लिया जाएगा और उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। लेकिन यह व्यवस्था निर्वाचन पदाधिकारी, मतदान पदाधिकारी, किसी पुलिस अधिकारी या मतदान केंद्र पर शाति-व्यवस्था कायम करने के लिए बहाल किसी अन्य व्यक्ति पर लागू नहीं होता।
चुनाव प्रचार की अवधि में कमीः नामांकन वापस लेने की आखिरी तिथि और मतदान की तिथि के बीच का न्यूनतम अंतराल 20 दिनों से घटाकर 14 दिन कर दिया गया है।
1996 के बाद के चुनाव सुधार
राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति का चुनावः 1977 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए प्रस्तावक एवं समर्थक निर्वाचकों की संख्या 10 से बढ़ाकर 50 कर दी गई। इसी तरह उप-राष्ट्रपति पद के लिए यह संख्या 5 से बढ़ाकर 20 कर दी गई। साथ ही निरर्थक उम्मीदवारों को रोकने के लिए दोनों पदों का चुनाव लड़ने के लिए जमानत की राशि 2500 रु. से बढ़ाकर 15,000 रु. कर दी गई।
चुनाव ड्यूटी के लिए कर्मचारियों को बुलानाः 1998 में यह व्यवस्था की गई कि स्थानीय शासन, राष्ट्रीयकृत बैंकों, विश्वविद्यालयों, जीवन बीमा निगम, लोक उप-क्रमों, एवं सरकारी सहायता पाने वाले दूसरे संस्थानों के कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी पर तैनात करने के लिए बुलाया जा सकता है।
डाक मतपत्र के जरिए वोट डालनाः 1999 में कुछ खास तरह के मतदाताओं के लिए डाक मतपत्र के जरिए वोट देने की व्यवस्था की गई। चुनाव आयोग सरकार के साथ सलाह-मशविरा कर किसी भी श्रेणी के व्यक्ति को इस सुविधा के लिए अधिसूचित कर सकता है और इस तरह अधिसूचित व्यक्ति अपने चुनाव क्षेत्र में डाक मतपत्र के जरिए वोट डालेगा। वह किसी अन्य तरीके से वोट नहीं दे सकता।
प्रॉक्सी के जरिए वोट देने की सुविधाः 2003 में सशस्त्र सेना में कार्यरत वोटरों और ऐसे सशस्त्र बल में कार्यरत लोगों को, जहां सेना अधिनियम लागू होता है, को प्रॉक्सी के जरिए वोट देने का विकल्प चुनने की सुविधा उप-लब्ध कराई गई। ऐसे वोटर जो प्रॉक्सी के जरिए वोट डालना चाहते हैं उन्हें निर्धारित प्रपत्र में अपना प्रॉक्सी नियुक्त करना होगा और इसकी सूचना अपने निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव अधिकारी को देनी होगी।
उम्मीदवारों द्वारा आपराधिक इतिहास, संपत्ति आदि की घोषणाः 2003 में चुनाव आयोग ने संसद या राज्य विधानमंडल का चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों को अपने नामांकन-पत्र के साथ निम्नलिखित जानकारियां उप-लब्ध कराने का आदेश’ जारी कियाः
(i) क्या उम्मीदवार को पहले कभी किसी आपराधिक मामले में सजा मिली है, या निर्दोष करार दिया गया है या रिहा किया गया है? क्या उसे कैद की सजा या जुर्माना हुआ है?
(ii) नामांकन-पत्र दाखिल करने के छह महीने पहले, क्या उम्मीदवार किसी लंबित मामले का अभियुक्त है, जिसमें दो साल या इससे अधिक अवधि की कैद की सजा हो सकती है और उस मामले में अभियोग दाखिल हो चुका है या कोर्ट द्वारा संज्ञान लिया गया है? अगर ऐसा है तो इसका विवरण दाखिल करें।
(iii) उम्मीदवार, उसकी पत्नी/पति और आश्रितों की संपत्ति (अचल, चल, बैंकों में जमा राशि आदि) का विवरण।
(iv) देनदारी, अगर हो, खासकर क्या किसी सरकारी वित्तीय संस्थान या सरकार का बकाया है।
(v) उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता।
शपथ पत्र में कोई गलत जानकारी देना अब चुनावी अपराध है। इसके लिए छह माह तक के लिए कैद की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकता है।
राज्यसभा चुनाव में बदलाव
2003 में राज्यसभा चुनाव से संबंधित निम्नलिखित बदलाव किए गए:
(i) राज्यसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार की आवासीय अर्हता हटा ली गई। इसके पहले, उम्मीदवार को जिस राज्य से निवार्चित होना होता था, उसे वहां का मतदाता होना जरूरी होता था। अब उसका देश के किसी संसदीय क्षेत्र का वोटर होना पर्याप्त होगा।
(ii) राज्यसभा चुनाव में गुप्त मतदान की जगह खुला मतदान शुरू किया गया। ऐसा राज्य सभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग पर रोक लगाने एवं पैसे के खेल को समाप्त करने के लिए किया गया। नयी व्यवस्था में राजनीतिक दल के निर्वाचक को मतपत्र पर मुहर लगाने के बाद अपनी पार्टी के नामित एजेंट को मतपत्र दिखाना होता है।
यात्रा व्यय की छूट : 2003 के प्रावधान के अनुसार राजनीतिक दल का चुनाव प्रचार करने वाले नेताओं का यात्रा व्यय उम्मीदवार के चुनाव खर्च में नहीं शामिल किया जाएगा।
मतदाता सूची आदि की निःशुल्क आपूर्ति : 2003 के प्रावधान के अनुसार सरकार लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को मतदाता सूची की प्रति तथा आवश्यक सामग्री निःशुल्क उप-लब्ध कराएगी। साथ ही चुनाव आयोग को संबंधित चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं या मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को निर्धारित सामग्री उप-लब्ध करानी होगी।
राजनीतिक दलों को चंदा लेने की स्वतंत्रताः 2003 में राजनीतिक दलों को किसी व्यक्ति या सरकारी कंपनी छोड़कर बाकी किसी कंपनी से कोई भी राशि स्वीकार करने की स्वतंत्रता थी। अब आयकर में राहत का दावा करने के लिए उन्हें 20,000 रुपए से अधिक के हर चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी। साथ ही चंदे के रूप में दी गई रकम पर कंपनी को भी आयकर में छूट मिलेगी।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समय का आवंटन : 2003 के प्रावधान के तहत किसी मुद्दे को दिखाने या प्रचारित करने या जनता को संबोधित करने के लिए चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को केबल टेलीविजन नेटवर्क तथा दूसरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समान रूप से समय आवंटित करेगा। यह आवंटन पिछले चुनाव में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की उप-लब्धियों के आधार पर होगा।
2010 से लेकर अब तक के चुनाव सुधार
एक्जिट पोल पर प्रतिबंध: 2009 के प्रावधान के अनुसार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के दौरान एक्जिट पोल करने और उसके परिणामों को प्रकाशित करने पर रोक लग गई है। इस तरह चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचित अवधि के दौरान कोई व्यक्ति कोई एक्जिट पोल नहीं कर सकता तथा प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या किसी और तरीके से उस पोल के परिणामों को प्रकाशित-प्रचारित नहीं कर सकता। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति दो साल तक के कैद, या -जुर्माना या दोनों का भागी होगा।
“एक्जिट पोल” का मतलब जनमत सर्वेक्षण है कि वोटरों ने किस तरह वोट किया है या फिर चुनाव में सभी वोटरों ने किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार के बारे में क्या सोचा है।
अयोग्य घोषित कराने के लिए मामला दर्ज कराने की समय सीमाः 2009 में भ्रष्ट तरीका अपनाने वाले व्यक्ति को अयोग्य करार देने की प्रक्रिया सरल बनाने का प्रावधान किया गया। इसमें भ्रष्ट तरीका अपनाने का दोषी पाये गए व्यक्ति को अयोग्य करार देने के लिए उसके मामले को तीन माह के अंदर राष्ट्रपति के पास पेश करने का समय अधिकृत अधिकारी को दिया गया है।
भ्रष्ट तरीके के घेरे में सभी अधिकारी : 2009 में सभी अधिकारियों, चाहे वे सरकारी सेवा में हों या चुनाव आयोग द्वारा चुनाव संचालित कराने के लिए प्रतिनियुक्त किए गए हों, को किसी उम्मीदवार से चुनाव में उसकी जीत की संभावनाएं बढ़ाने के लिए किसी तरह की मदद लेने पर भ्रष्ट तरीका अपनाने के घेरे में लेने का प्रावधान किया गया।
जमानत की राशि में बढोतरी: 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों द्वारा जमा की जाने वाली जमानत की राशि सामान्य कोटि के उम्मीदवारों के लिए दस हजार से बढ़ाकर 25 हजार और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए पांच हजार से बढ़ाकर बारह हजार रुपया कर दी गई। इसी तरह राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले सामान्य कोटि के उम्मीदवारों की जमानत राशि पांच हजार से बढ़ाकर दस हजार और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए ढाई हजार से पांच हजार रुपया कर दी गई। ऐसा अगंभीर उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने से रोकने के लिए किया गया।
जिला में अपीलीय अधिकारीः 2009 में मतदाता निबंधन पदाधिकारी के किसी आदेश के खिलाफ सुनवाई के लिए जिला में अपीलीय अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान किया गया। पहले ऐसी शिकायतों की सुनवाई राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी किया करते थे। इस तरह मतदाता सूची को अद्यतन करने के क्रम में किसी क्षेत्र के मतदाता निबंधन पदाधिकारी के किसी आदेश के खिलाफ जिला दंडाधिकारी, या अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी या कार्यपालक दंडाधिकारी या जिला समाहर्ता या समान स्तर के किसी अन्य अधिकारी के पास अपील की जाएगी। इसके आगे जिला दंडाधिकारी या अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी के किसी आदेश के खिलाफ राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी के पास अपील होगी।
विदेशों में रहने वाले भारतीयों को वोट का अधिकारः 2010 में विभिन्न कारणों से विदेशों में रहने वाले भारतीयों को वोट का अधिकार प्रदान करने का प्रावधान किया गया। इसके अनुसार भारत का हर नागरिक (i) जिसका नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं है, (ii) जिसने किसी दूसरे देश की नागरिकता नहीं ग्रहण की है, और (iii) जो नौकरी, शिक्षा या किसी अन्य कारणों से भारत के अपने सामान्य निवास के बजाए विदेश में रहा है (चाहे अस्थायी रूप से या नहीं) अपना नाम अपने संसदीय/विधानसभा क्षेत्र, जो उसके पासपोर्ट में अंकित है, की मतदाता सूची में दर्ज करा सकता है।
चुनाव खर्च की सीमा बढीः केंद्र सरकार द्वारा 2011 में बड़े राज्यों में लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा बढ़ाकर 40 लाख रु. कर दिया गया। अन्य राज्यों एवं केंद्र शासित क्षेत्रों में चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा 16 से 40 लाख रु के बीच है। इसी तरह बड़े राज्यों में विधानसभा सीट के लिए खर्च की सीमा 16 लाख कर दिया गया। अन्य राज्यों एवं केंद्र शासित क्षेत्रों में यह सीमा 8 से 16 लाख रु. के बीच है।
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