विद्युत क्षेत्र (Electric Field)

किसी वैद्युत आवेश के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें कोई अन्य आवेश आकर्षण या प्रतिकर्षण बल का अनुभव करता है, वैद्युत क्षेत्र (Electric Field) अथवा वैद्युत बल क्षेत्र (Field of Electric Force) कहलाता है। यदि विद्युत क्षेत्र में रखा गया आवेश चलने के लिए स्वतंत्र हो तो वह वैद्युत क्षेत्र अर्थात् बल की दिशा में चलने लगेगा। सिद्धान्ततः किसी आवेश से उत्पन्न विद्युत क्षेत्र का प्रभाव क्षेत्र अनन्त होता है, परन्तु जैसे-जैसे आवेश से दूरी बढ़ती है, विद्युत क्षेत्र की तीव्रता घटती जाती है और इस प्रकार कुछ दूर बाद विद्युत क्षेत्र का प्रभाव नगण्य हो जाता है।

विद्युत बल रेखाएँ (Electric Lines of Force) – वैद्युत क्षेत्र में किसी स्वतंत्र धन आवेश के मार्ग को ‘वैद्युत बल रेखा’ कहते हैं। इस प्रकार विद्युत बल रेखा वह पथ (Path) है जिस पर स्थित कोई धन आवेश चलने की प्रवृत्ति रखता है अथवा चलता है।

वैद्युत बल रेखाओं के गुण (Characteristics of Electric Lines of Force)

(i) वैद्युत बल रेखाएँ धनावेश (Positive Charge) से चलती हैं व ऋणावेश (Negative Charge) पर समाप्त होती हैं।

(ii) बल रेखा के किसी बिंदु पर खींची गई स्पर्श रेखा (Tangent), उस बिंदु पर धन आवेश पर लगने वाले बल की दिशा प्रदर्शित करता है।

(iii) ये रेखाएँ खिंची हुई लचकदार (Flexible) डोरी की तरह लम्बाई के अनुदिश सिकुड़ने का प्रयत्न करती हैं। यही कारण है कि विपरीत आवेशों में आकर्षण होता है।

(iv) ये रेखाएँ अपनी लम्बाई के लम्बवत् दिशा में एक – दूसरे से दूर हटने का प्रयत्न करती हैं। इसी कारण समान आवेशों मैं प्रतिकर्षण होता है।

(v) कोई भी दो बल रेखाएँ एक दूसरे को काट नहीं सकतीं।

वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता (Intensity of Electric Field)

वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर रखे परीक्षण आवेश (Test Charge) पर लगने वाले बल तथा परीक्षण आवेश के मान के अनुपात को उस बिंदु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता (E) कहते हैं।

Vector(E) = Vector(F)/qo जहाँ, F परीक्षण आवेश पर लगने वाला बल है
व qo परीक्षण आवेश का मान है। इसका मात्रक न्यूटन/कूलाम है तथा यह एक सदिश राशि है।

अन्य शब्दों में विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी बिंदु पर स्थित इकाई धनावेश पर कार्य करने वाले बल को उस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता कहते हैं। ध्यातव्य है कि यदि परीक्षण आवेश ऋण आवेश हो तो विद्युत क्षेत्र की तीव्रता ( vector E ) की दिशा ऋणावेश (-ve charge) पर लगने वाले बल की दिशा के विपरीत होगी।

वैद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole)

वैद्युत द्विध्रुव वह निकाय (System) है जिसमें दो बराबर किन्तु विपरीत प्रकृति के बिंदु आवेश एक-दूसरे से अल्प दूरी पर स्थित होते हैं। जैसे – पानी (H2O) अमोनिया (NH3) मीथेन (CH4) इत्यादि के अणु (molecule) वैद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole) होते हैं। चूंकि अणु दो या अधिक परमाणुओं (atoms) से मिलकर बनता है। कुछ पदार्थों के परमाणुओं में नाभिक व इलेक्ट्रॉनों की व्यवस्था इस प्रकार होती है कि अणु (molecule) के एक सिरे पर धन आवेश तथा दूसरे सिरे पर उतना ही ऋण आवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार के अणु वैद्युत द्विध्रुव होते हैं। परमाणु में धनावेशों (+ve charges) व ऋणावेशों (-ve charges) का केंद्र एक ही होता है। अतः परमाणु विद्युत रूप से उदासीन होता है अर्थात् परमाणु वैद्युत द्विध्रुव नहीं होता। परन्तु यदि परमाणु को किसी वैद्युत क्षेत्र में रख दें तो धन व ऋण केंद्र एक दूसरे के सापेक्ष हट जाते हैं तथा परमाणु वैद्युत द्विध्रुव बन जाता है।

वैद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण (Moment of Electric Dipole)

किसी एक आवेश तथा दोनों आवेशों के बीच की अल्प दूरी के गुणनफल को वैद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण (P) कहते हैं।

यदि वैद्युत द्विध्रुव के आवेश ‘-q’ व ‘+q’ है व उनके बीच की दूरी 21 मीटर है तो वैद्युत द्विध्रुव की आघूर्ण Vector(P) = q * 2l

कूलाम-मीटर है। यह एक सदिश राशि है जिसकी दिशा द्विध्रुव के अक्ष के अनुदिश ऋण आवेश से धन-आवेश की ओर होती है।

➤ चालक (Conductor)

जिन पदार्थों से आवेश का प्रवाह सरलता से हो जाता है उन्हें विद्युत चालक पदार्थ कहते हैं। सभी धातुएँ (चाँदी, पारा, ताँबा, लोहा इत्यादि) अम्लीय जल (Acitic water), लवणों (Salts) के जलीय विलयन, जीवों का शरीर (body living things) एवं पृथ्वी आदि विद्युत के चालक पदार्थ हैं।

➤ अचालक (Non-conductor)

वे पदार्थ जिनसे होकर आवेश का प्रवाह नहीं हो पाता, विद्युत के अचालक पदार्थ कहलाते हैं। जैसे- मोम, सूखी लकड़ी, आसुत जल (Distile water), काँच, एबोनाइट, रेशम, चीनी मिट्टी, लाख, रबर व अधिकांश अधातुएँ विद्युत की कुचालक हैं।

➤ अर्धचालक (Semi-Conductor)

कुछ पदार्थ ऐसे हैं जो सामान्य अवस्था में अचालक होते हैं परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों (जैसे उच्चताप या अशुद्धियाँ मिलाने पर) में चालक जैसा व्यवहार करने लगते हैं, उन्हें अर्धचालक कहते हैं। जैसे – सिलिकॉन, जर्मेनियम, कार्बन व सेलेनियम इत्यादि। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल इत्यादि में प्रयुक्त होने वाले ट्रांजिस्टर अर्धचालक पदार्थों से ही बनाये जाते हैं।*

➤ अतिचालक (Super Conductor)

वे पदार्थ जो निम्न ताप पर अधिक चालक हो जाते हैं उन्हें अतिचालक (Super conductor) पदार्थ कहते हैं। कारण यह है कि निम्न ताप पर इनका वैद्युत प्रतिरोध अत्यंत कम हो जाता है और शून्य केल्विन (K) तक लगभग शून्य हो जाता है। इसके द्वारा विद्युत ऊर्जा का ह्रास न के बराबर होता है। इसकी चालकता असीमित होती है।

➤ वैद्युत चालन की परमाणवीय व्याख्या (Atomic Explanation of Electric Conduction)

सामान्यतया धातुएँ विद्युत की सुचालक होती हैं। इनकी परमाणु संरचना इस प्रकार होती है कि सबसे बाहरी कक्षा में 1 या 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं व नाभिक से इनकी दूरी भी अपेक्षाकृत अधिक होती है। अतः कूलाम के नियमानुसार नाभिक में स्थित धनावेशित प्रोटानों द्वारा इस पर आरोपित आकर्षण बल कम हो जाता है। इस प्रकार इनका नाभिक से बन्धन (binding) क्षीण होने के कारण ये आसानी से दूसरे परमाणु की बाहरी कक्षा में प्रवेश कर जाते हैं। इन इलेक्ट्रानों को इनके मूल स्थान से, पदार्थ को रगड़ कर या गर्म कर, हटाया जा सकता है। इनमें से अनेक इलेक्ट्रॉन अपने परमाणुओं से अलग होकर पूरे पदार्थ में (परमाणुओं के मध्य रिक्त स्थानों में) यादृच्छिक (irregular) गति करते रहते हैं, इन्हें मुक्त इलेक्ट्रॉन (Free electron) अथवा चालक इलेक्ट्रॉन (Conductor Elec- tron) कहते हैं। ये इलेक्ट्रॉन ही आवेश को पदार्थ में एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाते हैं। अतः किसी ठोस पदार्थ की विद्युत चालकता उसके भीतर मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है। धातुओं में यह संख्या बहुत अधिक (लगभग 1029 प्रति घन मीटर) होती है। इसी कारण धातुएँ विद्युत की सुचालक (Good conductor) होती हैं। चाँदी विद्युत का सबसे अच्छा चालक है,* उसके बाद क्रमशः ताँबा, सोना व ऐल्यूमीनियम हैं।* जिन पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत ही कम अथवा नगण्य होती हैं उनमें आवेश का प्रवाह संभव नहीं हो पाता और इसीलिए वे विद्युत के कुचालक (Bad Conductor or Insulator) कहलाते हैं।*

ध्यातव्य है कि ताप बढ़ाने पर चालक पदार्थों का विद्युत प्रतिरोध बढ़ता है अर्थात् उसकी चालकता घटती है,* जबकि अर्द्ध- चालक पदार्थों की चालकता ताप के घटाने पर घटती है और ताप के बढ़ाने पर बढ़ती है।* परम शून्य ताप पर अर्द्ध-चालक (Semi- conductor) पदार्थ आदर्श अचालक (Non-conductor) के सदृश्य व्यवहार करता है।* ज्ञातव्य है कि अर्द्ध-चालक पदार्थों में अशुद्धियाँ मिलाने पर उसकी विद्युत चालकता बढ़ जाती है।*

वैद्युत चालन केवल ठोसों या धातुओं में ही नहीं होता बल्कि द्रवों (liquids) व गैसों (Gasses) में भी होता है। परन्तु दोनों में अंतर है। धातुओं में विद्युत का चालन मुक्त इलेक्ट्रानों के चलने से होता है जबकि द्रवों तथा गैसों में यह धन तथा ऋण दोनों प्रकार के आवेश वाहकों (i.e. – आयनों) के चलने से होता है। *

➤ स्थिर विद्युत प्रेरण (Electrostatic Induction)

यदि किसी उदासीन चालक के समीप किसी आवेशित चालक को इस प्रकार ले जायें कि वह उसे स्पर्श न करे तो उदासीन चालक के उस सिरे पर जो आवेशित चालक के समीप रहता है, आवेशित चालक के विपरीत आवेश उत्पन्न हो जाता है तथा दूसरे सिरे पर आवेशित चालक के समान आवेश उत्पन्न हो जाता है। इस घटना को ही स्थिर वैद्युत प्रेरण कहते हैं। इसका कारण भी समान आवेशों के बीच प्रतिकर्षण व विपरीत आवेशों के बीच आकर्षण ही है। आवेशित चालक को हटा लेने पर दूसरा चालक पुनः उदासीन हो जाता है। इस प्रभाव का प्रयोग करके हम किसी वस्तु या चालक को आवेशित भी कर सकते हैं।

➤ आवेश का पृष्ठ घनत्व (Surface Density of Charge)

किसी चालक के इकाई क्षेत्रफल पर उपस्थित आवेश की मात्रा को उस आवेश का पृष्ठ घनत्व कहते हैं। किसी चालक का पृष्ठ घनत्व चालक के आकार (size) तथा चालक के आसपास स्थित अन्य चालकों पर निर्भर करता है।

पृष्ठ घनत्व = आवेश (q)/क्षेत्रफल (A)

किसी चालक के पृष्ठ के विभिन्न भागों पर आवेश का वितरण भी उन स्थानों के आकार पर निर्भर करता है। नुकीले भाग पर पृष्ठ घनत्व सबसे अधिक होता है क्योंकि नुकीले भाग का क्षेत्रफल सबसे कम होता है। जब हवा के कण किसी नुकीले (pointed) आवेशित चालक से टकराते हैं तो प्रेरण द्वारा वे भी आवेशित हो जाते हैं और समान प्रकृति का आवेश प्राप्त करने के कारण प्रतिकर्षण द्वारा दूर चले जाते हैं और उनके स्थान पर हवा के दूसरे कण आते हैं और उनके साथ भी यही क्रिया दुहराई जाती है। फलतः नुकीले भाग द्वारा आवेश वायु में फैल जाता है। इस प्रकार वायु के कणों द्वारा आवेश को बाहर ले जाने की घटना संवहन विसर्जन (Convection discharge) और इस संवहन धारा (Convection current) को विद्युत पवन (electric wind) कहते हैं।

➤ तड़ित व तड़ित चालक (Lightening and Lightening Conductor)

आवेशित मेघों (Charged Clouds) के आपस में टकराने से भारी मात्रा में आवेश का प्रवाह पृथ्वी की तरफ होता है जिसे तड़ित (Lightening) या आकाशीय बिजली कहते हैं।

तड़ित चालक किसी धातु प्रायः ताँबे या लोहे का एक छड़ (Rod) होता है जो तड़ित के आघात से भवनों को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है। इसके ऊपरी सिरे पर कई नुकीले सिरे बने होते हैं जिसे भवनों (buildings) के सबसे ऊपरी हिस्से में आकाशोन्मुखी (Towards Sky) दिशा में लगा देते हैं तथा इसे किसी विद्युत सुचालक तार (Wire) द्वारा भूसम्पर्कित कर दिया जाता है। तड़ितघात (Lightening) होने पर आपतित आवेश तड़ित चालक द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है और तार के माध्यम से पृथ्वी में भेज दिया जाता है। कुछ आवेश संवहन धाराओं (Convection Currents) द्वारा वायु में भी संचरित या विसर्जित कर दिया जाता है। इस प्रकार भवन व उसमें स्थित लोग तड़ित के आघात से बच जाते हैं।

➤ खोखले चालक के भीतर विद्युत क्षेत्र (Electric Field in a Hallow Conductor)

जब किसी खोखले चालक को आवेशित किया जाता है तो संपूर्ण आवेश उसके बाहरी पृष्ठ पर ही वितरित हो जाता है। भीतरी पृष्ठ पर कोई आवेश नहीं रहता, अर्थात् खोखले चालक के भीतर वैद्युत क्षेत्र शून्य होता है। इस तरह खोखला गोला एक विद्युत परिरक्षक (Electrostatic Shield) की भाँति कार्य करता है। यही कारण है कि कार से यात्रा करते समय यदि कार पर तड़ित का आघात होता है तो उसके अन्दर यात्री सुरक्षित बच जाते हैं क्योंकि यदि कार के शीशे पूर्णतः बंद हैं तो आवेश कार के भीतर प्रवेश ही नहीं कर पाता।

विद्युत विभव (Electric Potential)

किसी इकाई धनावेश को अनन्त से किसी विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी बिन्दु तक लाने में जितना कार्य करना पड़ता है उसे उस बिंदु का वैद्युत विभव कहते हैं।

वैद्युत विभव (v) = w/q

जहाँ, W = किसी आवेश को विद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य व q = आवेश की मात्रा है।

वैद्युत विभव वह भौतिक राशि है जो दो आवेशित वस्तुओं के बीच आवेश के प्रवाह की दिशा को निर्धारित करती है। यदि दो वस्तुओं के वैद्युत विभव बराबर है तो उन्हें संपर्क में लाने पर आवेश का प्रवाह बिल्कुल भी नहीं होगा।

इसका S.I. मात्रक जूल/कूलॉम या ‘वोल्ट’ होता है। इसका मात्रक ‘वोल्ट’ इटली के वैज्ञानिक ‘एल सेन्ड्रो वोल्टा’ के सम्मान में रखा गया है। यह एक अदिश राशि है।*

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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