विद्युत परिपथ (Electrical Circuits)

विभिन्न वैद्युत उपकरणों एवं यंत्रों का ऐसा संयोजन जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित कर वैद्युत ऊर्जा का उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्य करने में किया जा सके, विद्युत परिपथ कहलाता है।

किसी सरल परिपथ में मुख्यतः तीन प्रकार के उपकरण होते हैं। यथाः

(i) अमीटर (Ammeter)- इसका निर्माण धारामापी (Galvanometer) के समानान्तर क्रम में शंट (shunt-अत्यन्त कम प्रतिरोध वाला तार) लगाकर किया जाता है। यह यंत्र विद्युत धारा को एम्पियर में मापता है, कारण स्वरूप इसे एम्पियर मीटर कहते हैं। अमीटर को विद्युत परिपथ में श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है। * एक आदर्श अमीटर का प्रतिरोध शून्य होना चाहिए।

(ii) वोल्ट मीटर (Volt meter)- यह एक ऊंचे प्रतिरोध वाला धारामापी (Galvanometer) है। जिसका प्रयोग परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर मापने के लिए किया जाता है। इसे उन बिन्दुओं के बीच समान्तर क्रम में जोड़ते हैं, जिनके बीच विभवान्तर की माप करनी होती है। एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनन्त होना चाहिए।

(iii) धारा नियन्त्रक (Rheostat)- यह उपकरण परिपथ में धारा की प्रबलता कम अथवा अधिक करने के काम आता है। इसमें प्रायः ऑक्सीकृत नाइक्रों का तार जिसका विशिष्ट प्रतिरोध अधिक तथा प्रतिरोध ताप गुणांक कम होता है, एक चीनी मिट्टी के खोखले बेलन पर लिपटा रहता है।

ओम का नियम (Ohm’s Law)

स्थिर ताप पर किसी चालक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा (i) चालक के सिरों के बीच विभवान्तर (v) के समानुपाती होती है। इसे ही ओम का नियम कहते हैं। इसका नियम प्रतिपादन सन् 1826 ई. में जर्मन वैज्ञानिक जार्ज साइमन ओम ने किया था। इस नियम का प्रयोग किसी चालक में प्रवाहित धारा एवं विभवान्तर में संबंध (अनुपात) ज्ञात करने में किया जाता है।

विभवान्तर (V) व धारा (i) के अनुपात का मान चालक के आकार (लंबाई व अनुप्रस्थ का क्षेत्रफल), पदार्थ तथा ताप पर निर्भर करता है। इस अनुपात को चालक का विद्युत प्रतिरोध (Electrical Resistance) ‘R’ कहते हैं। अर्थात् ( V/i =R (नियांतक)

विद्युत प्रतिरोध (Electrical Resistance)

विद्युत प्रतिरोध, किसी पदार्थ का एक गुण है जिसके कारण वह (पदार्थ) धारा के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करता है। इसका मान विभवान्तर व धारा के अनुपात के बराबर होता है। यह पदार्थ के चालकता (Conductivity) का विरोधी गुण है। इसीलिए सुचालकों का प्रतिरोध कम व कुचालकों का प्रतिरोध अधिक होता है। जिन पदार्थों का प्रतिरोध शून्य होता है, उन्हें अतिचालक (Super Conductor) कहते हैं। जैसे- पारा निम्न ताप (4K) पर अतिचालक की भांति व्यवहार करने लगता है। गर्म करने से चालकों का प्रतिरोध बढ़ता है। परन्तु अर्धचालकों का प्रतिरोध घटता है। प्रतिरोध का मात्रक वोल्ट प्रति ऐम्पियर होता है, जिसे ओम (Ohm) भी कहते हैं।

1 ओम = 1 वोल्ट/1एम्पियर होता है।

ओम को ग्रीक अक्षर ‘Ω’ (ओमेगा) से प्रदर्शित करते हैं।

विशिष्ट प्रतिरोध (Specific Registance)

किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लंबाई (L) के अनुक्रमानुपाती (Rxl) तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती (R∝l/A) होता है।

अर्थात् R∝l/A या, R = ρ(l/A)

जहां ‘ρ’ (rho – रो) एक नियतांक है जिसे चालक के पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध या प्रतिरोधकता (Resistivity) कहते हैं।

उक्त सूत्र से ρ = R.A/l

यदि A = 1 वर्ग मीटर व l = 1 मीटर हो तो ρ = R

अर्थात् “किसी पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध उस पदार्थ के 1 मीटर लंबे तथा 1 वर्ग मीटर अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल वाले तार के प्रतिरोध के बराबर होता है।” इसका मात्रक ओम मीटर होता है।

उक्त समीकरण से यह निष्कर्ष भी प्राप्त होता है कि किसी चालक का प्रतिरोध उसके पदार्थ के विशिष्ट प्रतिरोध (प्रतिरोधकता) के अनुक्रमानुपाती होता है। विशिष्ट प्रतिरोध का मान चालक पदार्थ की प्रकृति और उसके ताप पर निर्भर करता है।

सेल का आंतरिक प्रतिरोध (Internal Resistance of a cell)

जब हम किसी सेल को किसी परिपथ में प्रयुक्त करते हैं तो वाह्य परिपथ में (i.e. सेल के बाहर) वैद्युत धारा एनोड से कैथोड की ओर तथा सेल के भीतर विलयन या विद्युत अपघट्य में कैथोड से एनोड की ओर बहती है। सेल के अंदर सेल के विद्युत अपघट्य द्वारा, विद्युत धारा के मार्ग में अवरोध उत्पन्न किया जाता है, जिसे सेल का आंतरिक प्रतिरोध कहते हैं। सेल का आंतरिक प्रतिरोध r = (E – V)/i

जहां, E = सेल का विद्युत वाहक बल
v = सेल का विभवान्तर व
i = सेल में प्रवाहित धारा
इसका मात्रक भी ओम होता है।

प्रतिरोधों का संयोजन (Combination of Resistances)

किसी विद्युत परिपथ में वांछित धारा (derived current) व विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रतिरोधों या चालक तारों को विभिन्न क्रमों में जोड़ना पड़ता है। परिपथ में प्रतिरोधों का संयोजन दो प्रकार के क्रमों में हो सकता है।

(i) श्रेणीक्रम में (Inseries)- इसमें प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि प्रतिरोधों के संयोजन (Combination) में प्रत्येक प्रतिरोध का दूसरा सिरा अगले वाले प्रतिरोध के पहले सिरे से जुड़े। इस प्रकार इस संयोजन में सभी प्रतिरोधों में एक ही धारा प्रवाहित होती है। ऐसे में सभी प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध सभी प्रतिरोधों के जोड़ के बराबर होता है। अर्थात् R= R1 + R2 + R3 +….. अधिकतम प्रतिरोध प्राप्त करने श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है।

(ii) समान्तर क्रम में (In Parallel)- समान्तर क्रम संयोजन में प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि हर प्रतिरोध पर विभवान्तर समान रहे अर्थात् सभी के पहले सिरे एक बिंदु में तथा दूसरे सिरे, अन्य किसी बिंदु से जुड़े। इसमें सभी प्रतिरोधों के सिरों के बीच एक ही विभवान्तर होता है। न्यूनतम प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए इस संयोजन का प्रयोग करते हैं।

यदि R1 R2 R3 प्रतिरोध समान्तर क्रम में जुड़े हों तो उनका तुल्य प्रतिरोध निकालने हेतु निम्न सूत्र का प्रयोग करते हैं।

1/R = 1/R1 + 1/R2 + 1/R3 +……….

समान्तर क्रम में जुड़े प्रतिरोधों के तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम (reciprocal) उन प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।

चालकता (Conductivity)

किसी चालक में विद्युत के प्रवाह को चालक की चालकता कहते हैं। यह प्रतिरोध का व्युत्क्रम (Reciprocal) होता है। किसी G = 1/R चालक की चालकता जहां R चालक का प्रतिरोध है) चालकता का मात्रक ओम अथवा ओम (Omega ^ – 1) होता है। जिसे म्हो (mho) भी कहते हैं। इसके मात्रक को सीमेन (Simen) भी कहते है।

> विशिष्ट चालकता (Specific Conductivity)

किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालक की विशिष्ट चालकता कहते हैं। अर्थात् किसी चालक की विशिष्ट चालकता σ = 1/ρ जहां ρ = चालक का विशिष्ट प्रतिरोध है।
इसका मात्रक प्रतिओम मीटर या ओम-1 मीटर-1-1 m-1) या म्हो प्रति मीटर या सीमेन प्रतिमीटर (Sm-1) होता है।

प्रतिरोधों की ताप पर निर्भरता (Dependence of Resistance on Temperature)

(i) ताप बढ़ने से धातुओं की प्रतिरोधकता बढ़ जाती है। क्योंकि किसी शुद्ध धातु की प्रतिरोधकता, धातु के परमताप के लगभग अनुक्रमानुपाती होती है।

(ii) मिश्र धातुओं (Alloys) की प्रतिरोधकता भी ताप के बढ़ने पर बढ़ती है। परन्तु शुद्ध धातुओं की अपेक्षा बहुत कम ।

कुछ मिश्र धातुएं ऐसी हैं जिनके प्रतिरोधकता पर ताप का प्रभाव नगण्य होता है। जैसे- नाइक्रोम, मैगनिन व कान्सटेन्टन इत्यादि। इसी कारण इनका प्रयोग प्रमाणिक प्रतिरोध, प्रतिरोध बाक्स इत्यादि बनाने में किया जाता है।

(iii) अर्धचालकों की विद्युत चालकता अचालकों (Non-conductors) की अपेक्षा बहुत अधिक तथा सुचालकों की अपेक्षा बहुत कम होती है। जैसे- सिलिकान, जर्मेनियम, कार्बन इत्यादि। इन पदार्थों की प्रतिरोधकता ताप बढ़ाने पर घटती है अर्थात् चालकता बढ़ती है।

(iv) वैद्युत अपघट्यों (Electrolytes) की प्रतिरोधकता भी ताप बढ़ाने पर कम होती है। कारण यह कि ताप बढ़ने से विलयन की श्यानता (Viscosity) कम हो जाती है। जिससे उनके भीतर आयनों को चलने-फिरने की अधिक स्वतंत्रता मिल जाती है।

अति चालकता (Superconductivity)

जब किसी पदार्थ की प्रतिरोधकता OK (-273°C) पर शून्य हो जाती है, तो पदार्थ के इस गुण धर्म को अतिचालकता (Supercondictivity) कहते हैं। ध्यातव्य है कि इस दशा में पदार्थ के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र भी शून्य हो जाता है, जिसे मेसनर प्रभाव की संज्ञा दी जाती है। इस दशा में (अर्थात् निम्न ताप पर) पदार्थ अति चालक (Superconductor) बन जाता है। ताप जिस पर प्रतिरोधकता अचानक शून्य हो जाती है, को संक्रमण ताप (Transition Temperature) कहते हैं। यह ताप अलग-अलग पदार्थों के लिए अलग- अलग होता है। उल्लेखनीय है कि यह एक क्रांतिक ताप है, जिसे, प्राप्त करना व्ययसाध्य है। यदि परम ताप को सामान्य ताप एवं दाब पर प्राप्त कर लिया जाए, तो यह अत्यधिक महत्व का हो सकता है।

शून्य प्रतिरोधकता किसी पदार्थ की अतिचालक अवस्था का लक्षण है। यदि हम किसी ऐसे तार में जो अति चालकता की अवस्था में है, एक बार किसी विद्युत स्रोत से धारा प्रवाहित कर दें तो फिर स्स्रोत को हटा लेने पर भी तार में धारा घण्टों, दिनों अथवा महीनों प्रवाहित होती रहेगी।

अतिचालक : सिरेमिक ऑक्साइड

सिरेमिक ऑक्साइड एक नव आविष्कृत उच्च ताप अतिचालक पदार्थ है, जिसकी अतिचालकता का संक्रमित तापमान 133K होता है, जो सर्वाधिक है। इसका यह गुणधर्म पेरोस्टीक (Perovskites) की संज्ञा से विहित किया जाता है। ज्ञातव्य है कि मृत्तिका युक्त धातुओं का यह गुण इसमें सन्निहित मरकरी, थैलियम (Ti), बेरियम (Ba), कैल्शियम (Ca) एवं कॉपर ऑक्साइड (Cuo) के कारण होता है, जो इसे अतिचालकता का गुण प्रदान करते हैं। ध्यातव्य है कि अतिचालकता की दृष्टि से द्रव नाइट्रोजन का दूसरा स्थान है, जिसका संक्रमण अतिचालक तापमान 77K है।

पदार्थअतिचालक संक्रमण ताप
• टंगस्टन0.01K
• कैडमियम0.56K
• ऐल्युमिनियम1.19 K
• टिन3.7 k
• पारा4.2 K
• सीसा7.2 K
• तरल नाइट्रोजन77 K
• सिरेमिक ऑक्साइड133 K

अति चालक पदार्थों के उपयोग (Usages of Super Conductors)

(i) विद्युत ऊर्जा को बिना ह्यस के एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता है।

(ii) अतिरिक्त वैद्युत ऊर्जा को अति चालक रिंगों में संग्रहीत किया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर प्रयोग में लाया जा सकता है।

(iii) अतिचालकों से विद्युत चुम्बकों का निर्माण करके अति प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सकता है। ज्ञातव्य है कि अतिचालकता और भी महत्वपूर्ण हो जायेगी, यदि इसे सामान्य ताप पर प्राप्त करना संभव हो जाय। क्योंकि इससे लागत में काफी कमी आ जायेगी।

यह भी पढ़ें : विद्युत सेल (Electric Cell)

FAQs

Q1. अन-ओमीय प्रतिरोध क्या है?
Ans.
जो चालक ओम के नियम का पालन नहीं करते उनके प्रतिरोध को अन-ओमीय प्रतिरोध कहते हैं। जैसे- डायोड व ट्रायोड बाल्व का प्रतिरोध।

Q2. ट्रायोड व डायोड बाल्वों में प्लेट धारा किस नियम का पालन करती है?
Ans.
चाइल्ड लैंग्मूर का नियम ।

Q3. स्टोरेज बैट्री के आवेशन (Charging) हेतु किस धारा का प्रयोग होता है?
Ans.
दिष्ट धारा (D.C.) का।

Q4. विद्युत की उच्च वोल्टता वाले तार पर बैठे पक्षी को बिजली का झटका (Shock) क्यों नहीं लगता ?
Ans.
क्योंकि वह विद्युत धारा के प्रवाह के लिए संवृत्त पथ (Closed Circuit) नहीं बनाते।

Q5. ठोस अवस्था में विद्युत धारा प्रवाहित करने वाला अधातु कौन सा है?
Ans.
ग्रेफाइट।

Q6. विद्युत धारा से लगी आग बुझाने के लिए जल का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता?
Ans.
क्योंकि उससे झटका लगने (electrotution) का डर रहता है।

Q7. शुष्क सेल में एनोड किसका बनाया जाता है?
Ans.
कार्बन का

Q8. विद्युत परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति बताने वाले यंत्र को क्या संज्ञा प्रदान करते हैं?
Ans. धारामापी (Galvanometer)

Q9. बोल्ट के अतिरिक्त विभवान्तर का मात्रक क्या है?
Ans.
जूल/कूलॉम

Q10. ओम का नियम सत्य है?
Ans.
केवल धात्विक चालकों हेतु

Q11. किसी विद्युत परिपथ में एकांक धनावेश दो बिन्दुओं के बीच स्थानान्तरित करने में जो कार्य होता है, वह किसका माप है?
Ans.
विभवान्तर का

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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