प्रकृति पर्व – फूलदेई : पाठ -9

जानकी बहुत ही प्रसन्न थी। कल वह अपने सभी मित्रों के साथ फूलदेई पर्व के लिए जाएगी। अगले दिन उसकी इजा (माँ) ने उसे सुबह-सुबह उठा दिया। नहा-धोकर अपनी छोटी डलिया हाथ में लिए फूल चुनने के लिए वह निकल गई। आँगन में पहुँचते ही उसने हेमा, गीता,राधा बीर, गोविंद और मनोज को पुकारा। सब हाथ में छोटी-छोटी डलिया लेकर जंगल की ओर निकल पड़े।

फूलदेई उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार बच्चों द्वारा मनाया जाता है, इसलिए इसे ‘बाल पर्व’ भी कहा जाता है। यह चैत्र मास की संक्रांति के दिन मनाया जाता है। चैत्र माह हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है। फूलदेई वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। चैत्र ऋतु आते ही ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से बर्फ पिघलने लगती है। सर्दियों के ठंडे दिन बीत जाते हैं। उत्तराखंड के सुंदर पहाड़ फूलों से लद जाते हैं। जानकी और उसके मित्रों ने बुरांस, फ्योंली और कई प्रकार के फूल अपनी छोटी-छोटी डलियों में इकट्ठे कर लिए। अब यह टोली जिसे ‘फुलारी’ कहा जाता है, हर घर के मुख्य द्वार की देहली पर रुकती, अक्षत और फूल डालती और गाती जाती-

“फूल देई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार ये देली कैं बारंबार नमस्कार फूले द्वार….”

इसका अर्थ है, आपकी देहली फूलों से भरी रहे। मंगलकारी हो। सबको क्षमा प्रदान करें। सबकी रक्षा करें। देहली और घर में समृद्धि बनी रहे। सबके घरों में अन्न के भंडार भरे रहें।

सभी घरों में ‘फुलारी’ के आने की तैयारी की जाती है। घरों को पूर्णतः स्वच्छ करके देहली को गोबर-मिट्टी से लीपकर तैयार किया जाता है। ‘फुलारी’ जब गाकर अपना आशीर्वाद देते हैं तो हर घर से उन्हें चावल, गुड़ और भेंट के रूप में पैसे दिए जाते हैं। जानकी और सभी मित्र दिनभर देहली पूजकर बहुत थक गए थे पर वे बहुत प्रसन्न थे।

इस तरह फूलदेई का त्योहार उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्रों में आठ दिनों से लेकर महीनेभर तक चलता है। बच्चों द्वारा एकत्रित किए गए चावल और गुड़ को मिलाकर बच्चों के लिए हलवा, छोई या साई व पापड़ी जैसे अन्य स्थानीय व्यंजन बनाए जाते हैं। व्यंजन बनाने के लिए जमा पैसों से घी या तेल खरीदा जाता है। व्यंजन को सब एकत्रित होकर और मिलकर खाते हैं। फूलदेई बच्चों को प्रकृति प्रेम और सामाजिक सद्भाव की सीख बचपन से ही देने का पर्व है। यह त्योहार लोकगीतों, मान्यताओं और परंपराओं से जुड़ने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। यह प्रकृति तथा संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा भी देता है।

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बातचीत के लिए

1. त्योहार क्यों मनाए जाते हैं?
Ans.
त्योहार खुशी और उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। ये हमें अपनी संस्कृति, परंपराओं और आपसी भाईचारे से जोड़ते हैं।

2. आपका प्रिय त्योहार कौन-सा है?
Ans.
मेरा प्रिय त्योहार दीवाली है।

3. आप अपना प्रिय त्योहार कैसे मनाते हैं?
Ans.
मैं दीवाली पर घर की साफ-सफाई करता हूँ, दीप जलाता हूँ, मिठाइयाँ बाँटता हूँ और अपने परिवार के साथ आनंद मनाता हूँ।

4. वसंत ऋतु के आगमन पर भारत में मनाए जाने वाले त्योहार कौन-कौन से हैं?
Ans.
वसंत ऋतु के आगमन पर होली, वसंत पंचमी, फूलदेई, बिहू जैसे त्योहार मनाए जाते हैं।

5. उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में माँ को इजा कहकर पुकारते हैं। आप अपनी माँ को क्या कहकर पुकारते हैं?
Ans.
मैं अपनी माँ को माँ कहकर पुकारता हूँ।

सोचिए और लिखिए

1. फुलारी किसे कहते हैं?
Ans.
फूलदेई पर्व पर बच्चे फूल और अक्षत लेकर जब हर घर की देहली पर रुकते हैं और गीत गाते हैं, तो उन्हें फुलारी कहा जाता है।

2. फुलारी को मिले चावल और गुड़ से क्या-क्या बनाया जाता है?
Ans.
फुलारी को मिले चावल और गुड़ से हलवा, छोई, साई और पापड़ी जैसे स्थानीय व्यंजन बनाए जाते हैं।

3. फूलदेई को बाल पर्व क्यों कहा जाता है?
Ans.
फूलदेई मुख्य रूप से बच्चों द्वारा मनाया जाता है, इसलिए इसे बाल पर्व कहा जाता है।

4. फूलदेई पर्व बच्चों को प्रकृति से कैसे जोड़ता है?
Ans.
फूलदेई पर्व में बच्चे पहाड़ों और जंगलों से फूल चुनते हैं, लोकगीत गाते हैं और प्रकृति का सम्मान करते हैं। इस तरह यह पर्व बच्चों को प्रकृति प्रेम और सामाजिक सद्भाव से जोड़ता है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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