बल (FORCE)

“बल वह बाह्य कारक (external effort) है जो किसी वस्तु की विराम (rest) अथवा गति (motion) की अवस्था में परिवर्तन करता है या प्रिवर्तन करने का प्रयास करता है।” दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि “बल वह धक्का (Push) या खिंचाव (Pull) है जो एक निकाय द्वारा दूसरे निकाय पर आरोपित होता है।”

बल का S.I. मात्रक न्यूटन अथवा किग्रा. मी./से.2 होता है।* बुल आकर्षण (attraction) या प्रतिकर्षण (repulsion) किसी भी प्रकार का हो सकता है।

बल के प्रकार (Types of Force)

• संपर्क बल (Force of contact)

वह बल जो किसी व्यक्ति, जीव, वस्तु, यंत्र (machine) या निकाय (system) द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु, यंत्र या निकाय पर प्रत्यक्ष संपर्क द्वारा आरोपित (apply) किया जाता है, उसे संपर्क बल (Force of contact) कहते हैं। ऐसा बल आरोपित करने वाला कारक प्रत्यक्ष होता है। जैसे मनुष्य द्वारा किसी पत्थर को ढकेलना या खींचना, हवा द्वारा वृक्षों को हिलाना, गतिमान वस्तु द्वारा किसी स्थिर वस्तु को गतिमान बनाना या गतिमान बनाने का प्रयास करना इत्यादि। इसके अंतर्गत पेशीय बल (muscular force) आते हैं।

• असंपर्क बल (Force without Contact)

जब बल उत्पन्न करने वाला कारक प्रत्यक्ष दिखता नहीं है बल्कि केवल महसूस किया जा सकता है तो इसे अप्रत्यक्ष अध्यारोपित बल या असंपर्क बल कहते हैं। जैसे धरती के चुम्बकीय क्षेत्र में दण्ड चुम्बक को स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर उसका स्वतः घूमकर उत्तर-दक्षिण दिशा में आकर स्थिर हो जाना इत्यादि। यह बल भी कई प्रकार के होते हैं। यथा –

1. गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force)

ब्रह्माण्ड में स्थित प्रत्येक कण/पिण्ड (particle/body) दूसरे कणों/पिण्डों पर आकर्षण प्रकृति का एक बल आरोपित करता है, जिसकी दिशा पिंड के गुरुत्वीय केंद्र (Centre of gravity) की तरफ होती है। इसे हम गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। ब्रह्माण्ड में तारों, ग्रहों व उपग्रहों का जो निकाय (System) या एक निश्चित व्यवस्था (Stable arrangement) स्थापित है, वह इसी का परिणाम है।* इस बल का परिमाण दोनों पिण्डों (जिनके बीच आरोपित बल ज्ञात करना हो) के द्रव्यमानों (mass) के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती (directly proportional) व उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती (invertionly proportional) होता है। * इसका मान ज्ञात करने के लिए न्यूटन ने एक सूत्र निगमित (derive) किया है जो निम्नवत् है-

FG = Gm1 m2 /r2

जहाँ m1 m2 पिण्डों के द्रव्यमान, r पिण्डों के बीच की दूरी व G-सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक (Universal Gravitational Constant) है जिसका मान 6.67 * 10 – 11 न्यूटन मी.2/किग्रा.2 होता है।

पिण्ड m1 द्वारा पिण्ड m2 को अपनी तरफ आकर्षित (attract) किया जाता है जबकि उसी बल से पिण्ड m2 द्वारा पिण्ड m1 को अपनी तरफ आकर्षित किया जाता है।

इसी सूत्र से हम यह भी ज्ञात कर सकते हैं कि पृथ्वी पर स्थित 1 किग्रा. द्रव्यमान की वस्तु को पृथ्वी G me/Re2 न्यूटन बल से अपनी तरफ खींचती है। जहाँ Me पृथ्वी का द्रव्यमान व Re पृथ्वी की औसत त्रिज्या है। यहाँ G me/Re2 एक नियतांक है जिसे गुरुत्वीय त्वरण (Gravitational Acceleration) कहते हैं। इसका मान लगभग 9.8 मी./से.² होता है।* पृथ्वी की तरफ स्वतंत्रतापूर्वक गिर रही किसी वस्तु पर इसी के बराबर (9.8 मी./से.2) त्वरण उत्पन्न होता है।

2. विद्युत चुम्बकीय बल (Electro-magnetic Force):

यह बल निम्न दो बलों का संयुक्त प्रभाव होता है

• (A) चुम्बकीय बल (Magnetic Force)

• (B) स्थिर वैद्युत बल (Electrostatic force)

(A) चुम्बकीय बल (Magnetic Force) – प्रत्येक चुम्बक के दो ध्रुव (Poles) होते हैं- उत्तरी ध्रुव (north pole) व दक्षिणी ध्रुव (South pole)। इन दोनों ध्रुवों के मध्य लगने वाले बल को चुम्बकीय बल कहते हैं। इसकी गणना निम्न सूत्र से की जा सकती है

FM = 1/4πμ . i1i2/r2

जहाँ, i1 व i2 दोनों ध्रुवों की क्रमशः प्रबलता (intensity) है, । ध्रुवों के बीच की दूरी व ध्रुवों के बीच के माध्यम की पारगम्यता अथवा चुम्बकशीलता (Permeability) है।

(B) स्थिर वैद्युत बल (Electrostatic Force)- दो स्थिर (at rest) बिन्दु आवेशों (point charges) के मध्य लगने वाले बल को स्थिर वैद्युत बल कहते हैं। इसकी गणना निम्न सूत्र से की जाती है।

Fe = 1/4π∈ . q1q2/r2

जहाँ q1, q2 क्रमशः दो बिन्दु आवेशों की तीव्रता, दोनों आवेशों के बीच की दूरी व ∈ माध्यम की विद्युतशीलता (Permittivity) है।

विद्युत व चुम्बकीय बल मिलकर विद्युत-चुम्बकीय बल (electro-magnetic force) की रचना करते हैं। ये आकर्षण (attractive) या प्रतिकर्षण (repulsive) प्रकृति के हो सकते हैं। यदि दोनों आवेशों की प्रकृति समान हो तो बल प्रतिकर्षी तथा आवेशों की प्रकृति विपरीत होने पर बल आकर्षी प्रकृति का होता है।

ध्यातव्य है कि आवेश यदि स्थिर है तो इनके मध्य लगने वाला बल स्थिर वैद्युत बल (electro static force) तथा यदि आवेशों के बीच सापेक्ष गति होती है तो इनके बीच लगने वाले बल को विद्युत चुम्बकीय बल (electro magnetic force) कहा जाता है। विद्युत चुम्बकीय बल फोटॉन नामक कणों के माध्यम से कार्य करते हैं।

3. नाभिकीय बल (Nuclear Force)

परमाणु के नाभिकों के संयोजन (composition) या वियोजन या क्षय (decay) के लिए जिम्मेदार बलों को नाभिकीय बल कहते हैं। संयोजन व वियोजन के ही आधार पर इन्हें दो रूपों में बांटा जा सकता है।

(i) प्रबल बल (Strong Force)- नाभिक में प्रोटानों व न्यूट्रॉनों को बाँधे रखने के लिए जिम्मेदार बल को प्रबल बल कहते हैं। यह दो प्रोटानों, दो न्यूट्रानों या प्रोटान व न्यूट्रॉन के मध्य लगता है। जिसका परास (Range) बहुत कम (10-15 m of order) व प्रबलता बहुत अधिक होती है।

उदाहरण स्वरूप यदि दो प्रोटान एक फर्मी (10-15m) की दूरी पर हों तो इनके बीच कार्यकारी प्रबल बल जो कि आकर्षण प्रवृत्ति का होता है, दोनों के बीच लगने वाले प्रतिकर्षी स्थिर वैद्युत बल का दस गुना होता है। यही कारण है कि प्रोटॉन आपस में बँधे रहते हैं।

कणों के बीच लगने वाला प्रबल बल दूरी बढ़ने पर बहुत तेजी से घटता है। यदि दो प्रोटॉनों के बीच दूरी 15 फर्मी हो जाय तो यह बल नगण्य (negligible) हो जाता है। माना जाता है कि प्रबल बल दो क्वार्कों की पारस्परिक क्रिया द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये बल प्रकृति (nature) में सबसे शक्तिशाली माने जाते हैं।*

(ii) दुर्बल बल (Weak force)- रेडियोऐक्टिव प्रक्रिया (Radioactivity) के दौरान निकलने वाले β-कणों या इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन (emition) तब होता है जब नाभिक का कोई न्यूट्रॉन व प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन व एण्टीन्यूट्रिनों के रूप में परिवर्तित होता है।

0n11P1 + -1β0 + v

इलेक्ट्रानों व एण्टीन्यूट्रिनों के बीच होने वाली पारस्परिक अभिक्रिया (interaction), दुर्बल बलों के कारण ही होती है। इन्हें दुर्बल या क्षीण बल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका मान बहुत कम (प्रबल बलों का 1/1013 गुना) होता है। ऐसा माना जाता है कि ये बल W- बोसॉन नामक कण के आदान-प्रदान द्वारा उत्पन्न होते हैं। इन बलों को क्षीण बल भले ही कहा जाता है, परन्तु इनका परिमाण गुरुत्वाकर्षण बल का लगभग 1025 गुना होता है। साथ ही इनका कार्यकारी परास (acting range) बहुत कम होता है जो कि प्रोटॉन व न्यूट्रॉन के आकार (फर्मी) से भी कम होता है।

➤ घर्षण बल (Force of Friction)

जब किसी वस्तु की सतह पर किसी वस्तु को गति कराने का प्रयास किया जाता है या गति कराया जाता है तो सतह से समान्तर व गति (गति न होने पर बल) की दिशा के विपरीत एक गति अवरोधक बल (motion opposing force) कार्य करता है जिसे घर्षण बल कहते हैं। यह तीन प्रकार का हो सकता है-

(i) स्थैतिक घर्षण (Static Friction) – जब एक स्थिर सतह पर स्थित किसी वस्तु को बल लगाकर गतिमान करने का प्रयास किया जाता है, परन्तु वस्तु गतिमान नहीं होती। इस दशा में बल के बराबर व विपरीत दिशा में जो घर्षण कार्य करता है उसे स्थैतिक घर्षण कहते हैं।

(ii) सर्पी घर्षण (Sliding Friction)- किसी सतह पर जब कोई वस्तु गतिमान होती है तो सतह के समानान्तर व विपरीत दिशा में जो घर्षण कार्य करता है उसे सर्पी घर्षण बल कहते हैं।

(iii) लोटनिक घर्षण बल (Rolling Friction)- जब कोई गोलाकार वस्तु किसी सतह पर लुढ़कती है तो दोनों सतहों के बीच व गति की विपरीत दिशा में लगने वाले घर्षण बल को लोटनिक घर्षण कहते हैं।

➤ अभिकेन्द्रीय बल (Centripetal Force)

किसी वृत्तीय मार्ग पर एक समान चाल से गति करते हुए पिण्ड पर एक बल कार्य करता है जिसकी दिशा सदैव केंद्र की ओर रहती है। इस बल को अभिकेंद्रीय बल कहते हैं। इस बल की अनुपस्थिति में वृत्तीय गति संभव नहीं।

दृष्टव्य है कि यह बल गतिमान वस्तु में एक त्वरण उत्पन्न करता है जिसका परिमाण v²/r के बराबर होता है (जहाँ v वस्तु का वेग व वृत्ताकार मार्ग की त्रिज्या है) व प्रवृत्ति सदैव वस्तु की दिशा बदलने की होती है व दिशा सदैव केंद्र की ओर रहती है।

F = Mv2/r = mrω²
r जहाँ, m = पिण्ड का द्रव्यमान
v = पिण्ड का वेग
r = वृत्तीय पथ की त्रिज्या
ω (ओमेगा) = कोणीय वेग

➤ अपकेन्द्रीय बल (Centrifugal Force)

जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर गति करती है तो वृत्तीय मार्ग के केंद्र के विपरीत दिशा में एक बल का अनुभव होता है जिसे अपकेंद्रीय बल कहते हैं। यह एक आभासी बल है जिसकी उत्पत्ति वस्तु के जड़त्व गुण के कारण होती है। जैसे यदि कोई व्यक्ति कार से यात्रा कर रहा है और कार अचानक बायीं ओर घूम जाये तो व्यक्तियों को दायीं ओर की तरफ एक झटका लगता है, जो कि अपकेंद्रीय बल के कारण होता है। वाशिंग मशीन में कपड़े इसी सिद्धान्त पर साफ होते हैं।*

➤ तनाव बल (Tension Force)

जब किसी स्थिर (fix) वस्तु से किसी वस्तु को बाँध कर नीचे की तरफ लटकाया जाता है अथवा किसी दिशा में खींचा जाता है तो उस वस्तु में बाँधी गई वस्तु के भार या खींचने के लिए लगाये गये बल का विरोध किया जाता है, फलस्वरूप विपरीत दिशा में एक तनाव बल उत्पन्न होता है जो संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। जैसे रस्सी में बाँधकर किसी पत्थर को लटकाना। इसे ही तनाव बल कहते हैं।

➤  बलों का संतुलन (Balance of Force)

यदि किसी वस्तु पर एक से अधिक बल एक साथ कार्य कर रहे हों परन्तु उनका कोई प्रभाव न हो तो कहा जाता है कि बल संतुलन में है। ऐसी स्थिति में बलों का परिणामी बल (resultant force) शून्य होता है।

जैसे – रस्साकसी के खेल में जब दो टीमें रस्से को बराबर बल से अपनी-अपनी ओर खींचती हैं, तो रस्सा तथा दोनों टीमें अपने स्थानों पर स्थिर रहते हैं। इस स्थिति में दोनों टीमों द्वारा रस्से पर लगाये गये बल संतुलित होते हैं।

➤ जड़त्व (Inertia)

जड़त्व किसी वस्तु का वह गुण है जिसके कारण वह अवस्था परिवर्तन अर्थात् किसी निकाय द्वारा लगाये गये बल का विरोध करता है। वस्तुओं की इस प्रवृत्ति का नाम ‘जड़त्व’ गैलीलियो द्वारा दिया गया है। वस्तु का जड़त्व उसके द्रव्यमान (mass) पर निर्भर करता है। द्रव्यमान जितना अधिक होता है, वस्तु में जड़त्व अर्थात् बल का विरोध करने की प्रवृत्ति या क्षमता उतना ही अधिक होती है। इसीलिए अधिक भारी वस्तुओं को विरामावस्था से गति में लाने या गत्यावस्था से विरामावस्था में लाने में अधिक बल की आवश्यकता होती है। इस प्रकार किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप है।

न्यूटन के गति विषयक नियम (Newton’s Laws of Motion)

सर आइजक न्यूटन (Isac Newton) ने गैलीलियो के बाद वस्तुओं की गति के विषय में अध्ययन कर 1686 ई. में तीन नियमों का प्रतिपादन किया। यथा-

(i) प्रथम नियम (First Law) – यदि कोई वस्तु विरामावस्था (rest position) या गत्यावस्था (moving position = motion) में है तो उसकी अवस्था में परिवर्तन तभी होता है जब उस पर कोई बाह्य बल लगाया जाता है।

वस्तुओं की यह प्रवृत्ति उनके जड़त्व (Inertia) के कारण होती है। इसीलिए इसे जड़त्व का नियम (Law of Inertia) भी कहते हैं।*

उदाहरणस्वरूप – कार या गाड़ी में असावधानी पूर्वक बैठे यात्री गाड़ी के एकाएक तीव्र गति से गतिमान हो जाने के कारण पीछे की ओर गिर जाते हैं क्योंकि यात्रियों के शरीर का निचला भाग गाड़ी के साथ चलने लगता है परन्तु शरीर का ऊपर वाला भाग जड़त्व के कारण विरामावस्था में ही बना रहता है। फलतः यात्री के शरीर के ऊपरी भाग को पीछे की ओर धक्का लगता है।

(ii) द्वितीय नियम (Second Law)- यदि किसी वस्तु पर कोई बाह्य बल आरोपित होता है तो उस वस्तु में बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण आरोपित बल के समानुपाती (proportinal) होता है तथा वस्तु के द्रव्यमान के व्युत्क्रमानुपाती (inversily proportional) होता है। इसे हम निम्न सूत्र से प्रदर्शित कर सकते हैं –

F = m. a.

या बल द्रव्यमान × त्वरण

अर्थात्, “किसी वस्तु पर आरोपित बल F उस वस्तु के द्रव्यमान तथा उसमें बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण के गुणनफल के बराबर होत्ता है।”

(iii) तृतीय नियम (Third Law)- यदि कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर बल लगाती है तो दूसरी वस्तु भी पहली वस्तु पर उतना ही बल विपरीत दिशा में लगाती है। इसे क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम भी कहते हैं। उदाहरणस्वरूप जब बन्दूक से गोली छोड़ी जाती है तो बंदूक द्वारा गोली पर लगे बल से गोली आगे जाती है और प्रतिक्रिया बल के कारण बंदूक पीछे की ओर धक्का देती है।*

भार (Weight)

भार एक प्रकार का बल है जो पृथ्वी द्वारा किसी वस्तु पर लगाया जाता है। इसका संबंध गुरुत्वाकर्षण बल से है। पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण के कारण प्रत्येक वस्तु को अपनी तरफ खींचती है जिससे उस पर एक बल कार्य करने लगता है जिसे गुरुत्वीय बल कहते हैं और यदि वस्तु ऊर्ध्वाधर (vertical) गति कर रही है तो उसमें एक त्वरण भी उत्पन्न हो जाता है जिसे गुरुत्वीय त्वरण (g) कहते हैं। इस प्रकार,

किसी वस्तु पर लगने वाला गुरुत्वीय बल ही उसका भार (weight) कहलाता है। यदि वस्तु का भार w न्यूटन या किग्रा मीटर/सेकेंड2 हो तथा द्रव्यमान m किग्रा. हो, तो w = mg

• भार का मात्रक = किग्रा. मीटर/सेकेण्ड2 या, न्यूटन। इसे प्रायः किग्रा भार भी लिखा जाता है।

• गुरुत्वीय त्वरण का मात्रक – न्यूटन/किग्रा या, मीटर/सेकेण्ड2

• द्रव्यमान तथा भार में अंतर (Difference between mass and weight)

किसी पिण्ड (body) या वस्तु में पदार्थ (matter) की जितनी मात्रा (quantity) होती है, उसे वस्तु का द्रव्यमान (mass) कहते हैं, जबकि उस वस्तु को पृथ्वी जिस बल से अपनी तरफ खींचती है, उसे उस वस्तु का भार (weight) कहते हैं। द्रव्यमान सदैव नियत (fix) रहता है जबकि भार गुरुत्वीय त्वरण पर निर्भर होने के कारण परिवर्तनीय होता है। एक ही वस्तु का भार पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर भिन्न हो सकता है और दूसरे ग्रहों, उपग्रहों आदि पर ले जाने पर तो निश्चय ही बदल जाता है। जैसे – यदि हम किसी पिण्ड, जिसका भार पृथ्वी पर 6 किग्रा. (6 किग्रा मी./से.²) है, को लेकर चन्द्रमा पर जायें तो वहाँ पर उसका भार घटकर 1 किग्रा. मी/से2 ही रह जाता है। क्योंकि चंद्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण ‘gm‘ का मान पृथ्वी के गुरुत्वीय त्वरण ge का केवल 1/6 होता है। * ध्यातव्य है कि पृथ्वी के ध्रुवों पर वस्तु का भार अधिकतम तथा विषुवत रेखा पर न्यूनतम होता है। भार में यह परिवर्तन पृथ्वी की आकृति तथा पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन के परिणामस्वरूप होता है।

यह भी पढें : गति (Motion)

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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