वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था : अध्याय 4

आज के विश्व में, उपभोक्ता के रूप में हममें से कुछ के सामने वस्तुओं और सेवाओं के विस्तृत विकल्प हैं। विश्व के शीर्षस्थ विनिर्माताओं द्वारा निर्मित डिजिटल कैमरे, मोबाइल फोन और टेलीविज़न के नवीनतम मॉडल हमारे लिए सुलभ हैं। हमेशा भारत की सड़कों पर गाड़ियों के नए मॉडल देखे जा सकते हैं। वो दिन गुज़र गए, जब भारत की सड़कों पर केवल एम्बेसडर और फिएट कारें ही दिखाई देती थीं। आज भारतीय विश्व की लगभग सभी शीर्ष कंपनियों द्वारा निर्मित कारें खरीद रहे हैं। अनेक दूसरी वस्तुओं के ब्रांडों में भी इसी प्रकार की तीव्र वृद्धि देखी जा सकती है कमीज़ों से लेकर टेलीविज़नों और प्रसंस्करित फलों के रस तक।

हमारे बाज़ारों में वस्तुओं के बहुव्यापी विकल्प अपेक्षाकृत नवीन परिघटना है। दो दशक पहले भी आपको भारत के बाजारों में वस्तुओं की ऐसी विविधता नहीं मिलेगी। कुछ ही वर्षों में हमारा बाजार पूर्णतः परिवर्तित हो गया है।

हम इस तीव्र परिवर्तन को कैसे समझ सकते हैं? ऐसे कौन से कारक हैं जो इन परिवर्तनों को ला रहे हैं और ये परिवर्तन लोगों का जीवन किस प्रकार प्रभावित कर रहे हैं? इस अध्याय में हम इन प्रश्नों पर विचार करेंगे।

अन्तरदेशीय उत्पादन

बीसवी शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः देशों की सीमाओं के अंदर ही सीमित था। इन देशों की सीमाओं को लांघने वाली वस्तुओं में केवल कच्चा माल, खाद्य पदार्थ और तैयार उत्पाद ही थे। भारत जैसे उपनिवेशों से कच्चा माल एवं खाद्य पदार्थ निर्यात होते थे और तैयार वस्तुओं का आयात होता था। व्यापार ही दूरस्थ देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य जरिया था। यह बड़ी कंपनियों, जिन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कहते हैं, के परिदृश्य पर उभरने से पहले का युग था। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी वह है, जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व रखती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उन प्रदेशों में कार्यालय तथा उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम एवं अन्य संसाधन मिल सकते हैं। उत्पादन लागत में कमी करने तथा अधिक लाभ कमाने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ ऐसा करती हैं। निम्न उदाहरण पर विचार करते हैं-

यह बेंगलुरु स्थित एक कॉल सेंटर है जो पर्याप्त दूरसंचार सुविधाओं और इंटरनेट से सुसज्जित है। यह विदेशी ग्राहकों को सूचना एवं मदद उपलब्ध कराता है।

इस उदाहरण में, बहुराष्ट्रीय कंपनी केवल वैश्विक स्तर पर ही अपना तैयार उत्पाद नहीं बेच रही है बल्कि अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन विश्व स्तर पर कर रही है। परिणामतः उत्पादन प्रक्रिया क्रमशः जटिल ढंग से संगठित हुई है। उत्पादन-प्रक्रिया छोटे भागों में विभाजित है और विश्व भर में, फैली हुई है। ऊपर दिए गए उदाहरण में चीन एक सस्ता विनिर्माण केन्द्र होने का लाभ प्रदान करता है। मेक्सिको और पूर्वी यूरोप, अमेरिका और यूरोप के बाज़ारों से अपनी निकटता के कारण लाभप्रद हैं। भारत में अत्यंत कुशल इंजीनियर उपलब्ध हैं, जो उत्पादन के तकनीकी पक्षों को समझ सकते हैं। यहाँ अंग्रेज़ी बोलने वाले शिक्षित युवक भी हैं, जो ग्राहक देखभाल सेवायें उपलब्ध करा सकते हैं। ये सभी चीजें बहुराष्ट्रीय कंपनी की लागत का लगभग 50-60 प्रतिशत बचत कर सकती हैं। अतः वास्तव में, सीमाओं के पार बहुराष्ट्रीय उत्पादन प्रक्रिया के प्रसार से असीमित लाभ हो सकता है।

विश्व-भर के उत्पादन को एक-दूसरे से जोड़ना

सामान्यतः बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं जो बाज़ार के नज़दीक हो, जहाँ कम लागत पर कुशल और अकुशल श्रम उपलब्ध हो और जहाँ उत्पादन के अन्य कारकों की उपलब्धता सुनिश्चित हो। साथ ही, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ सरकारी नीतियों पर भी नज़र रखती हैं, जो उनके हितों का देखभाल करती हैं। आप बाद में, इस अध्याय में सरकारी नीतियों के बारे में और अध्ययन करेंगे।

इन परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के बाद ही बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उत्पादन के लिए कार्यालयों और कारखानों की स्थापना करती हैं। परिसंपत्तियों जैसे – भूमि, भवन, मशीन और अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किए गए निवेश को विदेशी निवेश कहते हैं। कोई भी निवेश इस आशा से किया जाता है कि ये परिसंपत्तियाँ लाभ अर्जित करेंगी।

कभी-कभी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं। संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कंपनी को दोहरा लाभ होता है। पहला, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अतिरिक्त निवेश के लिए धन प्रदान कर सकती हैं, जैसे कि तीव्र उत्पादन के लिए मशीनें खरीदने के लिए। दूसरा, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी अपने साथ ला सकती हैं।

लेकिन, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश का सबसे आम रास्ता स्थानीय कंपनियों को खरीदना और उसके बाद उत्पादन का प्रसार करना है। अपार संपदा वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ यह आसानी से कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, एक बहुत बड़ी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी कारगिल फूड्स ने परख फूड्स जैसी छोटी भारतीय कंपनियों को खरीद लिया है। परख फूड्स ने भारत के विभिन्न भागों में एक बड़ा विपणन तंत्र तैयार किया था, जहाँ उसके ब्राण्ड काफी प्रसिद्ध थे। परख फूड्स के चार तेल शोधक केन्द्र भी थे, जिस पर अब कारगिल का नियंत्रण हो गया है। अब कारगिल 50 लाख पैकेट प्रतिदिन निर्माण क्षमता के साथ भारत में खाद्य तेलों की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी है।

वास्तव में, कई शीर्षस्थ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संपत्ति विकासशील देशों की सरकारों के सम्पूर्ण बजट से भी अधिक है। ऐसी अपार संपत्ति वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों की शक्ति और प्रभाव पर विचार करें।

बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ एक अन्य तरीके से उत्पादन नियंत्रित करती हैं। विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का ऑर्डर देती हैं। वस्त्र, जूते-चप्पल एवं खेल के सामान ऐसे उद्योग हैं, जहाँ विश्वभर में बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों द्वारा उत्पादन किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इन उत्पादों की आपूर्ति की जाती है। फिर इन्हें अपने ब्राण्ड नाम से ग्राहकों को बेचती हैं। इन बड़ी कंपनियों में दूरस्थ उत्पादकों के मूल्य, गुणवत्ता, आपूर्ति और श्रम-शर्तों का निर्धारण करने की प्रचण्ड क्षमता होती है।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कई तरह से अपने उत्पादन कार्य का प्रसार कर रही हैं और विश्व के कई देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ पारस्परिक संबंध स्थापित कर रही हैं। स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी द्वारा, आपूर्ति के लिए स्थानीय कंपनियों का इस्तेमाल करके और स्थानीय कंपनियों से निकट प्रतिस्पर्धा करके अथवा उन्हें खरीद कर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूरस्थ स्थानों के उत्पादन पर अपना प्रभाव जमा रही हैं। परिणामतः दूर-दूर स्थानों पर फैला उत्पादन परस्पर संबंधित हो रहा है।

विदेश व्यापार और बाजारों का एकीकरण

लम्बे समय से विदेश व्यापार विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य माध्यम रहा है। इतिहास में आपने भारत और दक्षिण एशिया को पूर्व और पश्चिम के बाज़ारों से जोड़ने वाले व्यापार मार्गों और इन मार्गों से होने वाले गहन व्यापार के बारे में पढ़ा होगा। आपको यह भी याद होगा कि व्यापारिक हितों के कारण ही व्यापारिक कंपनियाँ जैसे, ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की ओर आकर्षित हुईं। आखिरकार विदेशी व्यापार का बुनियादी कार्य क्या है?

सरल शब्दों में कहा जाए, तो विदेश व्यापार घरेलू बाज़ारों अर्थात् अपने देश के बाज़ारों से बाहर के बाज़ारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाज़ारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेच सकते हैं, बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाज़ारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के समक्ष उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों का विस्तार होता है।

भारत में चीन के खिलौने

सामान्यतः व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाज़ार से दूसरे बाज़ार में आवागमन होता है। बाज़ार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। दो बाज़ारों में एक ही वस्तु का मूल्य एक समान होने लगता है। अब दो देशों के उत्पादक एक दूसरे से हजारों मील दूर होकर भी एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार, विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाज़ारों को जोड़ने या एकीकरण में सहायक होता है।

वैश्वीकरण क्या है?

विगत दो तीन दशकों से अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विश्व में उन स्थानों की तलाश कर रही हैं, जो उनके उत्पादन के लिए सस्ते हों। इन देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश में वृद्धि हो रही है, साथ ही विभिन्न देशों के बीच विदेश व्यापार में भी तीव्र वृद्धि हो रही है। विदेश व्यापार का एक बड़ा भाग बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित है। जैसे, भारत में फोर्ड मोटर्स का कार संयंत्र केवल भारत के लिए ही कारों का निर्माण नहीं करता, बल्कि वह अन्य विकासशील देशों को कारें और विश्व भर में अपने कारखानों के लिए कार-पुर्जों का भी निर्यात करता है। इसी प्रकार, अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों के क्रियाकलाप में वस्तुओं और सेवाओं का बड़े पैमाने पर व्यापार शामिल होता है।

अधिक विदेश व्यापार और अधिक विदेशी निवेश के परिणामस्वरूप विभिन्न देशों के बाजारों एवं उत्पादनों में एकीकरण हो रहा है। विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। विभिन्न देशों के बीच अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हो रहा है। विगत कुछ दशकों की तुलना में विश्व के अधिकांश भाग एक-दूसरे के अपेक्षाकृत अधिक सम्पर्क में आए हैं।

वस्तुओं, सेवाओं, निवेशों और प्रौद्योगिकी के अतिरिक्त विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का एक और माध्यम हो सकता है। यह माध्यम है विभिन्न देशों के बीच लोगों का आवागमन। प्रायः लोग बेहतर आय, बेहतर रोज़गार एवं शिक्षा की तलाश में एक देश से दूसरे देश में आवागमन करते हैं किन्तु, विगत कुछ दशकों में अनेक प्रतिबंधों के कारण विभिन्न देशों के बीच लोगों के आवागमन में अधिक वृद्धि नहीं हुई है।

वस्तुओं के परिवहन के लिए कंटेनर

वस्तुओं को कंटेनरों में रखा गया है, जिससे इन्हें जहाजों, रेलों, वायुयानों एवं ट्रकों पर बिना क्षति के लादा जा सके। कंटेनरों से ढुलाई-लागत में भारी बचत हुई है और माल को बाज़ारों तक पहुँचाने की गति में वृद्धि हुई है। इसी प्रकार, वायु यातायात की लागत में गिरावट आयी है। परिणामतः वायुमार्ग से अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में वस्तुओं का परिवहन संभव हुआ है।

वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारक

प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति वह मुख्य कारक है जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित किया। जैसे, विगत पचास वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में बहुत उन्नति हुई है। इसने लम्बी दूरियों तक वस्तुओं की तीव्रतर आपूर्ति को कम लागत पर संभव किया है।

इससे भी अधिक उल्लेखनीय है सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का विकास। वर्तमान समय में दूरसंचार, कंप्यूटर और इंटरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी द्रुत गति से परिवर्तित हो रही है। दूरसंचार सुविधाओं (टेलीग्राफ, टेलीफोन, मोबाइल फोन एवं फैक्स) का विश्व भर में एक-दूसरे से सम्पर्क करने, सूचनाओं को तत्काल प्राप्त करने और दूरवर्ती क्षेत्रों से संवाद करने में प्रयोग किया जाता है। ये सुविधाएँ संचार उपग्रहों द्वारा सुगम हुई हैं। जैसा कि आप जानते होंगे, जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में कंप्यूटरों का प्रवेश हो गया है। आपने इंटरनेट के चमत्कारिक संसार में भी प्रवेश किया होगा, जहाँ जो कुछ भी आप जानना चाहते हैं, लगभग उसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और सूचनाओं को आपस में बाँट सकते हैं। इंटरनेट से हम तत्काल इलेक्ट्रॉनिक डाक (ई-मेल) भेज सकते हैं और अत्यंत कम मूल्य पर विश्व भर में बात (वॉयस मेल) कर सकते हैं।

वैश्वीकरण में संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग

लंदन के पाठकों के लिए प्रकाशित एक समाचार पत्रिका की डिजाइनिंग और छपाई दिल्ली में की जानी है। पत्रिका का पाठ्य-विषय इंटरनेट के द्वारा दिल्ली कार्यालय को भेज दिया जाता है। दिल्ली कार्यालय में डिज़ाइनर दूरसंचार सुविधाओं का उपयोग करके लंदन कार्यालय से पत्रिका की डिज़ाइन के बारे में निर्देश प्राप्त करते हैं। डिजाइन तैयार करने का काम कंप्यूटर पर किया जाता है। छपाई के बाद पत्रिकाओं को वायुमार्ग से लंदन भेजा जाता है। यहाँ तक कि डिज़ाइन और छपाई के पैसे का भुगतान इंटरनेट (ई-बैंकिंग) के द्वारा लंदन के एक बैंक से दिल्ली के एक बैंक को तत्काल कर दिया जाता है।

विदेशी व्यापार तथा विदेशी निवेश नीति का उदारीकरण

हम भारत में चीनी खिलौनों के आयात वाले उदाहरण पर वापस लौटते हैं। मान लीजिए कि भारत सरकार खिलौनों के आयात पर कर लगाती है। तब क्या होगा? इसका अर्थ है कि जो इन खिलौनों का आयात करना चाहते हैं, उन्हें इन पर कर देना होगा। कर के कारण खरीददारों को आयातित खिलौनों की अधिक कीमत चुकानी होगी। चीन के खिलौने अब भारत के बाज़ारों में इतने सस्ते नहीं रह जाएँगे और चीन से उनका आयात स्वतः कम हो जाएगा। भारत के खिलौना-निर्माता अधिक समृद्ध हो जाएँगे।

आयात पर कर, व्यापार अवरोधक का एक उदाहरण है। इसे अवरोधक इसलिए कहा गया है, क्योंकि यह कुछ प्रतिबंध लगाता है। सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग विदेश व्यापार में वृद्धि या कटौती (नियमित) करने और देश में किस प्रकार की वस्तुएँ कितनी मात्रा में आयातित होनी चाहिए, यह निर्णय करने के लिए कर सकती हैं।

स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह अनिवार्य माना गया। 1950 और 1960 के दशकों में उद्योगों का उदय हो रहा था और इस अवस्था में आयात से प्रतिस्पर्धा इन उद्योगों को बढ़ने नहीं देती। इसीलिए, भारत ने केवल अनिवार्य चीजों जैसे, मशीनरी, उर्वरक और पेट्रोलियम के आयात की ही अनुमति दी। ध्यान दीजिए कि सभी विकसित देशों ने विकास के प्रारंभिक चरणों में घरेलू उत्पादकों को विभिन्न तरीकों से संरक्षण दिया है।

भारत में करीब सन् 1991 के प्रारंभ से नीतियों में कुछ दूरगामी परिवर्तन किए गए। सरकार ने यह निश्चय किया कि भारतीय उत्पादकों के लिए विश्व के उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करने का समय आ गया है। यह महसूस किया गया कि प्रतिस्पर्धा से देश में उत्पादकों के प्रदर्शन में सुधार होगा, क्योंकि उन्हें अपनी गुणवत्ता में सुधार करना होगा। इस निर्णय का प्रभावशाली अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने समर्थन किया।

अतः विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर से अवरोधों को काफी हद तक हटा दिया गया। इसका अर्थ है कि वस्तुओं का आयात-निर्यात सुगमता से किया जा सकता था और विदेशी कंपनियाँ यहाँ अपने कार्यालय और कारखाने स्थापित कर सकती थीं।

सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया उदारीकरण के नाम से जानी जाती है। व्यापार के उदारीकरण से व्यावसायियों को मुक्त रूप से निर्णय लेने की अनुमति मिली है कि वे क्या आयात या निर्यात करना चाहते हैं। सरकार पहले की तुलना में कम नियंत्रण करती है और इसलिए उसे अधिक उदार कहा जाता है।

विश्व व्यापार संगठन

हमने देखा कि कुछ बहुत प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने भारत में विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश के उदारीकरण का समर्थन किया। इन संगठनों का मानना है कि विदेश व्यापार और विदेशी निवेश पर सभी अवरोधक हानिकारक हैं। कोई अवरोधक नहीं होना चाहिए। देशों के बीच मुक्त व्यापार होना चाहिए। विश्व के सभी देशों को अपनी नीतियाँ उदार बनानी चाहिए।

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ.) एक ऐसा संगठन है, जिसका ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। विकसित देशों की पहल पर शुरू किया गया विश्व व्यापार संगठन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों को निर्धारित करता है और यह देखता है कि इन नियमों का पालन हो। विश्व के लगभग 160 देश विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं।

यद्यपि विश्व व्यापार संगठन सभी देशों को मुक्त व्यापार की सुविधा देता है, परंतु व्यवहार में यह देखा गया है कि विकसित देशों ने अनुचित ढंग से व्यापार अवरोधकों को बरकरार रखा है। दूसरी ओर, विश्व व्यापार संगठन के नियमों ने विकासशील देशों के व्यापार अवरोधों को हटाने के लिए विवश किया है। इसका एक उदाहरण कृषि उत्पादों के व्यापार पर वर्तमान बहस है।

व्यापार व्यवहारों पर वाद-विवाद

संयुक्त राज्य अमेरिका में एक आदर्श कपास क्षेत्र, जिसमें हजारों एकड़ भूमि है और जिसका स्वामित्व एक बड़ी कारपोरेट कंपनी के पास है।

भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव

विगत बीस वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण ने एक लम्बी दूरी तय की है। इसका लोगों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है? हम कुछ प्रमाण देखते हैं।

वैश्वीकरण और उत्पादकों-स्थानीय एवं विदेशी दोनों, के बीच वृहतर प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं, विशेषकर शहरी क्षेत्र में धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अब अनेक उत्पादों की उत्कृष्ट गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। परिणामतः ये लोग पहले की तुलना में आज अपेक्षाकृत उच्चतर जीवन स्तर का आनन्द ले रहे हैं। उत्पादकों और श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है।

पहला, विगत 20 वर्षों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में अपने निवेश में वृद्धि की है, जिसका अर्थ है कि भारत में निवेश करना उनके लिए लाभप्रद रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने शहरी इलाकों के उद्योगों जैसे सेलफोन, मोटर गाड़ियों, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, ठंडे पेय पदार्थों और जंक खाद्य पदार्थों एवं बैंकिंग जैसी सेवाओं के निवेश में रुचि दिखाई है। इन उत्पादों के अधिकांश खरीददार संपन्न वर्ग के लोग हैं। इन उद्योगों और सेवाओं में नये रोजगार उत्पन्न हुए हैं। साथ ही, इन उद्योगों को कच्चे माल इत्यादि की आपूर्ति करनेवाली स्थानीय कंपनियाँ समृद्ध हुई।

विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए उठाए गए कदम

दूसरा, अनेक शीर्ष भारतीय कंपनियाँ बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा से लाभान्वित हुई हैं। इन कंपनियों ने नवीनतम प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रणाली में निवेश किया और अपने उत्पादन-मानकों को ऊँचा उठाया है। कुछ ने विदेशी कंपनियों के साथ सफलतापूर्वक सहयोग कर लाभ अर्जित किया।

इससे भी आगे, वैश्वीकरण ने कुछ बड़ी भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरने के योग्य बनाया है। टाटा मोटर्स (मोटरगाड़ियाँ), इंफोसिस (आई. टी.), रैनबैक्सी (दवाइयाँ), एशियन पेंट्स (पेंट), सुंदरम फास्नर्स (नट और बोल्ट) कुछ ऐसी भारतीय कंपनियाँ हैं, जो विश्व स्तर पर अपने क्रियाकलापों का प्रसार कर रही हैं।

वैश्वीकरण ने सेवा प्रदाता कंपनियों विशेषकर सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कंपनियों के लिए नये अवसरों का सृजन किया है। भारतीय कंपनी द्वारा लंदन स्थित कंपनी के लिए पत्रिका का प्रकाशन और कॉल सेंटर इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त आँकड़ा प्रविष्टि (डाटा एन्ट्री), लेखाकरण, प्रशासनिक कार्य, इंजीनियरिंग जैसी कई सेवायें भारत जैसे देशों में अब सस्ते में उपलब्ध हैं और विकसित देशों को निर्यात की जाती है।

वैश्वीकरण ने बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों और श्रमिकों के लिए बड़ी चुनौतियाँ खड़ी की हैं।

बढ़ती प्रतियोगिता

रवि को यह अपेक्षा नहीं थी कि उसे एक उद्योगपति के रूप में अपने जीवन की छोटी अवधि में ही संकट का सामना करना पड़ेगा। रवि ने सन् 1992 में तमिलनाडु के एक औद्योगिक शहर होसुर में संधारित्रों का निर्माण करने वाली अपनी कंपनी शुरू करने के लिए बैंक से ऋण लिया। संधारित्रों का इस्तेमाल ट्यूबलाइटों, टेलीविजनों सहित अनेक घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है। तीन वर्षों के भीतर वह अपने उत्पादन का विस्तार करने में सक्षम हो गया और उसकी कंपनी में 20 कर्मचारी काम करने लगे।

अपनी कंपनी चलाने में उसका संघर्ष तब प्रारंभ हुआ, जब सरकार ने सन् 2001 में विश्व व्यापार संगठन के समझौते के अनुसार संधारित्रों के आयात पर से प्रतिबंधों को हटा दिया। उसके मुख्य ग्राहकों में टेलीविजन कंपनियाँ थीं, जो टेलीविजन सेटों का निर्माण करने के लिए संधारित्रों सहित विभिन्न पुर्जे थोक में खरीदती और टेलीविजन सेटों का निर्माण करती हैं। किंतु बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ब्रांडों से प्रतिस्पर्धा ने भारतीय टेलीविजन कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए संयोजन-कार्य करने के लिए विवश कर दिया। उनमें से कुछ जब संधारित्र खरीदती थीं, तो वे इनका आयात करना पसंद करती थी, क्योंकि आयातित सामानों की कीमत रवि जैसे लोगों द्वारा निर्धारित कीमत से आधी होती थी।

अब रवि वर्ष 2000 में निर्मित संधारित्रों से आधे से भी कम संधारित्रों का निर्माण करता है और उसके लिए केवल सात श्रमिक काम कर रहे हैं। रवि के अनेक दोस्तों ने, जो हैदराबाद और चेन्नई में इसी व्यवसाय में थे, अपनी इकाइयाँ बंद कर दीं।

वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता इन दिनों श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलापन पसंद करते हैं। इसका अर्थ है कि श्रमिकों का रोजगार अब सुनिश्चित नहीं है।

अब हम देखते हैं कि भारत में वस्त्र निर्यात उद्योग प्रतिस्पर्धा के दबाव को कैसे सहन कर रहे हैं?

अमेरिका और यूरोप में वस्त्र उद्योग की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय निर्यातकों को वस्तुओं की आपूर्ति के लिए आर्डर देती हैं। विश्वव्यापी नेटवर्क से युक्त बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ लाभ को अधिकतम करने के लिए सबसे सस्ती वस्तुएँ खोजती हैं। इन बड़े आर्डरों को प्राप्त करने के लिए भारतीय वस्त्र निर्यातक अपनी लागत कम करने की कड़ी कोशिश करते हैं। चूँकि कच्चे माल पर लागत में कटौती नहीं की जा सकती, इसलिए नियोक्ता श्रम लागत में कटौती करने की कोशिश करते हैं। जहाँ पहले कारखाने श्रमिकों को स्थायी आधार पर रोज़गार देते थे, वहीं वे अब अस्थायी रोज़गार देते हैं, ताकि श्रमिकों को वर्ष भर वेतन नहीं देना पड़े। श्रमिकों को बहुत लम्बे कार्य-घंटों तक काम करना पड़ता है और अत्यधिक माँग की अवधि में नियमित रूप से रात में भी काम करना पड़ता है। मजदूरी काफी कम होती है और श्रमिक अपनी रोजी-रोटी के लिए अतिरिक्त समय में भी काम करने के लिए विवश हो जाते हैं।

हालाँकि वस्त्र निर्यातकों के बीच प्रतिस्पर्धा से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अधिक लाभ कमाने में मदद मिली है, परन्तु वैश्वीकरण के कारण मिले लाभ में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा नहीं दिया गया है।

35 वर्षीया सुशीला ने दिल्ली के एक वस्त्र निर्यातक उद्योग में एक श्रमिक के रूप में कई वर्ष काम किया। जब वह एक स्थायी श्रमिक के रूप में नियुक्त थी तो स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि एवं अतिरिक्त समय में कार्य करने के लिए दुगुनी मज़दूरी की हकदार थी। जब 1990 के दशक के अंतिम वर्षों में सुशीला की फैक्ट्री बंद हो गई, तो छह माह तक रोज़गार की तलाश करने के बाद अंततः उसे अपने घर से 30 कि.मी. दूर एक रोज़गार मिला। कई वर्षों तक इस फैक्ट्री में काम करने के बावजूद वह एक अस्थायी श्रमिक है और पहले की तुलना में आधे से भी कम कमा पाती है। वह सप्ताह के सातों दिन सुबह 7.30 बजे अपने घर से निकलती है और शाम 10 बजे वापस आती है। एक दिन काम नहीं करने का अर्थ है, उस दिन की मजदूरी नहीं मिलना। उसे अब कोई अन्य लाभ नहीं मिलता है जो पहले मिलता था। उसके घर के समीप की फैक्ट्रियों को काफी अस्थिर आर्डर मिलते हैं और इसलिए वे कम वेतन भी देती हैं।

उपरोक्त कार्य-परिस्थितियाँ और श्रमिकों की कठिनाइयाँ भारत के अनेक औद्योगिक इकाइयों और सेवाओं में सामान्य बात हो गई है। आज अधिकांश श्रमिक असंगठित क्षेत्र में नियोजित है। यही नहीं, संगठित क्षेत्र में क्रमशः कार्य-परिस्थितियाँ असंगठित क्षेत्र के समान होती जा रही है। संगठित क्षेत्रक के श्रमिकों जैसे सुशीला को अब कोई संरक्षण और लाभ नहीं मिलता है, जिसका वह पहले उपभोग करती थी।

न्यायसंगत वैश्वीकरण के लिए संघर्ष

उपर्युक्त प्रमाण यह संकेत करते हैं कि वैश्वीकरण सभी के लिए लाभप्रद नहीं रहा है। शिक्षित, कुशल और संपन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है। दूसरी ओर, अनेक लोगों को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है।

चूँकि वैश्वीकरण अब एक सच्चाई है, तो वैश्वीकरण को अधिक ‘न्यायसंगत’ कैसे बनाया जा सकता है? न्यायसंगत वैश्वीकरण सभी के लिए अवसर प्रदान करेगा और यह सुनिश्चित भी करेगा कि वैश्वीकरण के लाभों में सबकी बेहतर हिस्सेदारी हो।

सरकार इसे संभव बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसकी नीतियों को केवल धनी और प्रभावशाली लोगों को ही नहीं बल्कि देश के सभी लोगों के हितों का संरक्षण करना चाहिए। आपने सरकार द्वारा किए जाने वाले कुछ उपायों के बारे में पढ़ा है। जैसे, सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि श्रमिक कानूनों का उचित कार्यान्वयन हो और श्रमिकों को अपने अधिकार मिले। यह छोटे उत्पादकों को कार्य-निष्पादन में सुधार के लिए उस समय तक मदद कर सकती है, जब तक वे प्रतिस्पर्धा के लिए सक्षम न हो जायें। यदि जरूरी हुआ तो सरकार व्यापार और निवेश अवरोधकों का उपयोग कर सकती है। यह ‘न्यायसंगत नियमों’ के लिए विश्व व्यापार संगठन से समझौते भी कर सकती है। विश्व व्यापार संगठन में विकसित देशों के वर्चस्व के विरुद्ध समान हितों वाले विकासशील देशों को मिलकर लड़ना होगा।

विगत कुछ वर्षों में, बड़े अभियानों और जनसंगठनों के प्रतिनिधियों ने विश्व व्यापार संगठन के व्यापार और निवेश से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित किया है। यह प्रदर्शित करता है कि जनता भी न्यायसंगत वैश्वीकरण के संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

सारांश

इस अध्याय में हमने वैश्वीकरण की वर्तमान अवस्था का अध्ययन किया। वैश्वीकरण विभिन्न देशों के बीच तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया है। यह अधिकाधिक विदेशी निवेश और विदेश व्यापार के द्वारा संभव हो रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। अधिक से अधिक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विश्व के उन स्थानों की खोज कर रही हैं, जो उनके उत्पादन के लिए ज़्यादा सस्ते हों। परिणामतः उत्पादन कार्य जटिल ढंग से संगठित किया जा रहा है।

देशों के बीच उत्पादन को संगठित करने में प्रौद्योगिकी. विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी ने एक बड़ी भूमिका निभायी है।

साथ ही, व्यापार और निवेश के उदारीकरण ने व्यापार और निवेश अवरोधकों को हटाकर वैश्वीकरण को सुगम बनाया है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, विश्व व्यापार संगठन ने व्यापार और निवेश के उदारीकरण के लिए विकासशील देशों पर दबाव डाला है।

जबकि वैश्वीकरण से धनी उपभोक्ता और कुशल, शिक्षित एवं धनी उत्पादक ही लाभान्वित हुए हैं परन्तु बढ़ती प्रतिस्पर्धा से अनेक छोटे उत्पादक और श्रमिक प्रभावित हुए हैं। न्यायसंगत वैश्वीकरण सभी के लिए अवसरों का सृजन करेगा और यह भी सुनिश्चित करेगा कि वैश्वीकरण के लाभों में सभी की बेहतर हिस्सेदारी हो।

यह भी पढ़ें : मुद्रा और साख : अध्याय 3

अभ्यास

1. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
Ans.
आज पूरी दुनिया की आर्थव्यवस्था जिस प्रकार से आपस में जुड़ी हुई है उस जुड़ाव को वैश्वीकरण कहते हैं। इसे समझने के लिए गूगल का उदाहरण लेते हैं। यह अमेरिका में स्थित है लेकिन इसके उपभोक्ता दुनिया के हर कोने में हैं। आप दिल्ली में हों या देहरादून में, गूगल की मदद से कोई भी सूचना आपको चुटकियों में मिल सकती है। आज इस कंपनी के ऑफिस भारत जैसे कई देशों में हैं। गूगल आज वैश्वीकरण का एक जीता जागता उदाहरण है।

अथवा

वैश्वीकरण का अर्थ एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से विदेशी व्यापार एवं विदेशी निवेश द्वारा जोड़ा जाता है। वैश्वीकरण के कारण आज विश्व में विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, तकनीकी तथा श्रम का आदान-प्रदान हो रहा है। इस कार्य में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं जब वे अपनी इकाइयाँ संसार के विभिन्न देशों में स्थापित करती हैं।

2. भारत सरकार द्वारा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाने के क्या कारण थे? इन अवरोधकों को सरकार क्यों हटाना चाहती थी?
Ans.
आजादी के समय भारत के निजी उद्यमियों के पास पूँजी की कमी थी। इसलिए उस समय स्थानीय उद्योग को संरक्षण की जरूरत थी। स्थानीय उद्योग धंधे फल-फूल सकें इसलिए भारत सरकार ने विदेश व्यापार और विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाये गये। धीरे-धीरे स्थितियाँ बदलने लगीं और भारत का बाजार आकर्षक बन गया। उसके बाद सरकार ने इन अवरोधकों को हटाने का निर्णय लिया।

अथवा

भारत सरकार द्वारा विदेशी व्यापार एवं विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाने के निम्नलिखित कारण थे:

  1. स्थानीय उद्योगों को संरक्षण देना ताकि वह पनप सकें।
  2. विदेशी स्पर्धा से देश के उत्पादकों को संरक्षण प्रदान किया जा सके।
  3. सिर्फ उन्हीं वस्तुओं का आयात किया जाए जिनके बिना काम चलाना अत्यंत कठिन है। जैसे: मशीनरी, पेट्रोलियम आदि।

जब भारतीय उद्योग विदेशी उत्पादों का मुकाबला करने में सक्षम हो गए थे तब सरकार ने इन अवरोधों को हटाना उचित समझा। ताकि प्रतिस्पर्धा के बीच चीजों की गुणवत्ता बढ़ सके और उपभोक्ता को बढ़िया गुणवत्ता वाले उत्पाद कम दामों में मिल सके।

3. श्रम कानूनों में लचीलापन कंपनियों को कैसे मदद करेगा?
Ans.
श्रम कानूनों में लचीलापन अनेक प्रकार से कम्पनियों की मदद करेगा जैसे श्रम लागत को कम करने के उद्देश्य से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को छोटी अवधि के लिए श्रमिकों को नियुक्त करने की अनुमति दी है। और काम के दवाब कम होते ही ये कम्पनियां ऐसे अस्थायी सदस्यों की छंटनी भी कर सकती है। इससे कम्पनियों के मुनाफे में भी सुधार होगा।

4. दूसरे देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार उत्पादन या उत्पादन पर नियंत्रण स्थापित करती है?
Ans.
दूसरे देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियां निम्नलिखित तरीकों से उत्पादन या उत्पाद पर नियंत्रण स्थापित करती हैं:

1. वे ऐसे स्थानों को चुनती हैं जहां उन्हें विभिन्न प्रकार के कारीगर और मजदूर सस्ते में मिल जाए, सामान ले जाने के लिए परिवहन के साधन अच्छे व सस्ते हो और स्थानीय सरकारें उनकी सहायता करने वाली हो।

2. वे बाजार के बिल्कुल निकट वाले स्थानों पर अपने उत्पादन केंद्र स्थापित करती है ताकि सामान बेचने में आसानी रहे और अच्छा लाभ कमाया जा सके।

3. कई बार बहुराष्ट्रीय कंपनियां कुछ स्थानीय कंपनियों को भी खरीद लेती है ताकि काम को बढ़ावा मिल सके और उत्पादन की लागत भी कम हो जाए।

5. विकसित देश, विकासशील देशों से उनके व्यापार और निवेश का उदारीकरण क्यों चाहते हैं? क्या आप मानते हैं कि विकासशील देशों को भी बदले में ऐसी माँग करनी चाहिए?
Ans.
अक्सर विकसित देश की कम्पनियाँ दूसरे देशों में व्यवसाय के लिये अनुकूल माहौल बनाने के लिए अपनी सरकार पर दबाव डालती हैं। उस दबाव में आकर विकसित देश, विकासशील देशों से उनके व्यापार और निवेश का उदारीकरण चाहते हैं। विकासशील देशों को भी ऐसा ही करना चाहिए।

अथवा

विकसित देश विकासशील देशों से उनके व्यापार और निवेश का उदारीकरण इसलिए चाहते हैं क्योंकि उन देशों की कंपनियां अक्सर दूसरे देशों में बिजनेस के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए अपनी सरकार पर दबाव डालती हैं। इसलिए कुछ विकसित देशों ने उल्टे सीधे हथकंडे अपनाकर विदेशी माल के आयात पर अंकुश लगा दिया है। विकसित देशों की ऐसी नीतियों ने विकासशील देशों के निर्यात को हानि पहुंचाई है। तभी तो कुछ लोग वैश्वीकरण के बहुत विरुद्ध हैं। क्योंकि उनका मानना है कि वैश्वीकरण ने उनके देश की प्रगति को बहुत क्षति पहुंचाई है।

6. ‘वैश्वीकरण का प्रभाव एक समान नहीं है’। इस कथन की अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।
Ans.
हां, हम इस बात से सहमत हैं कि वैश्वीकरण का प्रभाव एक समान नहीं हैं इससे लोगों के रोजमर्रा के कामों में बहुत बदलाव हुए हैं लेकिन जहां इसने विकसित देशों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े- बड़े उदयोगपतियों को तो लाभ पहुंचाया हैं वहीं इसने छोटे उदयोगपतियों को निः संदेह काफी हानि भी पहुंचाई है। इसके कार अमीर और अमीर होते गए हैं वहीं गरीब और गरीब हो गए।

7. व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण वैश्वीकरण प्रक्रिया में कैसे सहायता पहुँचाती है?
Ans.
व्यापार और निवेश नीतियों के उदारीकरण से वैश्विक प्रक्रिया में बहुत मदद मिलती है। इन नीतियों के कारण विदेशी निवेश का रास्ता साफ हो जाता है। इसके साथ ही आयात और निर्यात के रास्ते भी खुल जाते हैं। स्थानीय कम्पनियों और व्यवसायियों को क्वालिटी सुधारने की प्रेरणा मिलती है। कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इस बात का मौका मिल जाता है कि विभिन्न देशों से उत्पादन के विभिन्न चरणों को करवा सकें।

अथवा

उदारीकरण का अर्थ है कि व्यापार निवेश और उद्योगों के प्रति उदार नीति अपनाना। भारत सरकार विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए व्यापार और निवेश नीतियों में उदारीकरण को अपनाती है। व्यापार और निवेश नीतियों के उदारीकरण से वैश्वीकरण प्रक्रिया में बहुत सहायता मिली है। पहले बहुत सी वस्तुएं जिन के उत्पादन के लिए सरकार से अनुमति लेना आवश्यक होता था अब इस प्रक्रिया को काफी हद तक समाप्त कर दिया गया है और उन चीजों के उत्पादन के लिए सरकार से अनुमति नहीं लेनी पड़ती। इसी तरह निवेश नीतियों के उदारीकरण से भारत में विदेशी निवेश में जबरदस्त वृद्धि हुई है जिसके कारण कई बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में अपना उत्पादन शुरू किया है और जिसने रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी की है।

8. विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार मदद करता है? यहाँ दिए गए उदाहरण से भिन्न उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
Ans.
विदेशी व्यापार के कारण एक देश का उत्पादक वर्ग अपना माल दूर-दूर के देशों में बिक्री के लिए भेज सकता है जिसके कारण विश्व के विभिन्न बाजार आपस में जुड़ जाते हैं जिससे उनका एक ही कारण होता है। उदाहरण के लिए जैसे मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनियां मुख्यतः अमेरिका में है लेकिन उन मोबाइल का डिजाइन ज्यादातर चीन और ताइवान में तैयार होता है लेकिन उन्हें एसेंबल चीन या भारत में किया जाता है और फिर अंत में पूरी दुनिया में बेचा जाता है। यह उदाहरण विश्व के कई बाजारों के एकीकरण को दर्शाता है।

9. वैश्वीकरण भविष्य में जारी रहेगा। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आज से बीस वर्ष बाद विश्व कैसा होगा? अपने उत्तर का कारण दीजिए।
Ans.
आज से 20 वर्ष बाद दुनिया में टेक्नोलॉजी आज से ज्यादा विकसित होगी। जिसके कारण यातायात भी काफी तीव्र होगा। उस समय हम दुनिया के किसी भी कोने में स्थित कंपनी को अपना आर्डर दे सकते हैं और अपने अनुसार फेरबदल करके मंगवा सकते हैं।

10. मान लीजिए कि आप दो लोगों को तर्क करते हुए पाते हैं एक कह रहा है कि वैश्वीकरण ने हमारे देश के विकास को क्षति पहुँचाई है, दूसरा कह रहा है कि वैश्वीकरण ने भारत के विकास में सहायता की है। इन लोगों को आप कैसे जवाब दोगे?
Ans.
 मुझे लगता है कि वैश्वीकरण ने हमारे देश को क्षति और विकास दोनों पहुंचाएं हैं। जैसे वैश्वीकरण के कारण बड़ी-बड़ी कंपनियों ने हमारे देश में अपने उत्पादों को भारतीय बाजारों में लाना शुरू कर दिया जिसके कारण भारत के छोटे व्यापारियों का व्यापार काफी कम हो गया लेकिन वहीं दूसरी तरफ उपभोक्ता को नई चीजें उच्च तकनीकों के साथ कम कीमत में प्राप्त हुई।

11. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

दो दशक पहले की तुलना में भारतीय खरीददारों के पास वस्तुओं के अधिक विकल्प हैं। यह वैश्वीकरण की प्रक्रिया से नजदीक से जुड़ा हुआ है। भारत के बाजारों में अनेक दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं को बेचा जा रहा है। इसका अर्थ है कि अन्य देशों के साथ मेलजोल बढ़ रहा है। इससे भी आगे भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा उत्पादित ब्रांडो की बढ़ती संख्या हम भारत के बाजारों में देखते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश कर रही है क्योंकि अधिक लाभ की संभावना रहती है। जबकि बाजार में उपभोक्ताओं के लिए अधिक विकल्प इसलिए बढ़ते व्यापार और वाणिज्य के प्रभाव का अर्थ है उत्पादकों के बीच अधिकतम प्रतिस्पर्धा

12. निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए –

(क) बहुराष्ट्रीय कंपनियां छोटे उत्पादकों से सस्ते दरों पर खरीदती हैं।(अ) मोटर गाड़ियों
(ख) आयात पर कर और कोटा का उपयोग, व्यापार नियमन(ब) कपड़ा, जूते-चप्पल, खेल के सामान के लिए किया जाता है।
(ग) विदेशों में निवेश करने वाली भारतीय(स) कॉल सेंटर
(घ) आई. टी. ने सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में सहायता की है।(द) टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी
(ड) अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने उत्पादन करने के लिए निवेश किया है।(य) व्यापार अवरोधक

Ans.

(क) बहुराष्ट्रीय कंपनियां छोटे उत्पादकों से सस्ते दरों पर खरीदती हैं।ब) कपड़ा, जूते-चप्पल, खेल के सामान के लिए किया जाता है।
(ख) आयात पर कर और कोटा का उपयोग, व्यापार नियमन(य) व्यापार अवरोधक
(ग) विदेशों में निवेश करने वाली भारतीय(द) टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी
(घ) आई. टी. ने सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में सहायता की है।(स) कॉल सेंटर
(ड) अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने उत्पादन करने के लिए निवेश किया है।(अ) मोटर गाड़ियों

13. सही विकल्प का चयन कीजिए –

(अ ) वैश्वीकरण के विगत दो दशकों में द्रुत आवागमन देखा गया है

(क) देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और लोगों का
(ख) देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और निवेशों का
(ग) देशों के बीच वस्तुओं, निवेशों और लोगों का

Ans. (ग) देशों के बीच वस्तुओं, निवेशों और लोगों का

(आ) विश्व के देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निवेश का सबसे अधिक सामान्य मार्ग है

(क) नये कारखानों की स्थापना
(ख) स्थानीय कंपनियों को खरीद लेना
(ग) स्थानीय कंपनियों से साझेदारी करना

Ans. (ग) स्थानीय कंपनियों से साझेदारी करना

(इ) वैश्वीकरण ने जीवन स्तर के सुधार में सहायता पहुँचाई है।

(क) सभी लोगों के
(ख) विकसित देशों के लोगों के
(ग) विकासशील देशों के श्रमिकों के
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Ans. (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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