ग्राम श्री : अध्याय 11

फैली खेतों में दूर तलक
              मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
             चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर
             हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
             नभ का चिर निर्मल नील फलक !

रोमांचित सी लगती वसुधा
            आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
            किकिणियाँ हैं शोभाशाली।
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
            फूली सरसों पीली पीली,
लो हरित धरा से झाँक रही
           नीलम को कॉल तोसी नीली

रंग रंग के फूलों में रिलमिल
             हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकी
             छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
  फिरती हैं रंग रंग की तितली
             रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हैं फूल स्वयं
             उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर!

अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
              लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
             हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
             जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आडू, नींबू, दाड़िम,
            आलू, गोभी, बैंगन, मूली !

पीले मीठे अमरूदों में
             अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
             अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
             लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
             मिरचों की बड़ी हरी थैली !

बालू के साँपों से अंकित
         गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
         तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगुले
         कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
         मगरौठी रहती सोई!

हँसमुख हरियाली हिम-आतप
         सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी औंधयाली में निशि की
         तारक स्वप्नों में से खोए-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
         जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
         निज शोभा से हरता जन मन।

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प्रश्न-अभ्यास

1. कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है?
Ans.
कवि ने गाँव को ‘हरता जन-मन’ इसलिए कहा है क्योंकि उसकी शोभा अनुराग है। खेतों में दूर-दूर तक मखमली हरियाली फैली हुई है। उस पर सूरज की धूप चमक रही है। इस शोभा के कारण पूरी वसुधा प्रसन्न दिखाई देती है। इसके कारण गेहूँ, जौ, अरहर, सनई, सरसों की फसलें उग आई हैं। तरह-तरह के फूलों पर रंगीन तितलियाँ मँडरा रही हैं। आम, बेर, आड़, अनार आदि मीठे फल पैदा होने लगे हैं। आलू, गोभी, बैंगन, मूली, पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर, मिर्च आदि खूब फल-फूल रहे हैं। गंगा के किनारे तरबूजों की खेती फैलने लगी है। पक्षी आनंद विहार कर रहे हैं। ये सब दृश्य मनमोहक बन पड़े हैं। इसलिए गाँव सचमुच जन-मन को हरता है।

2. कविता में किस मौसम के सौदर्य का वर्णन है?
Ans.
कविता में सरदी के मौसम के सौंदर्य का वर्णन है। इसी समय गुलाबी धूप हरियाली से मिलकर हरियाली पर बिछी चाँदी की उजली जाली का अहसास कराती है और पौधों पर पड़ी ओस हवा से हिलकर उनमें हरारक्त होने का भान होता है। इसके अलावा खेत में सब्ज़ियाँ तैयार होने, पेड़ों पर तरह-तरह के फल आने, तालाब के किनारे रेत पर मँगरौठ नामक पक्षी के अलसीकर सोने से पता चलता है कि यह सरदी के मौसम का ही वर्णन है।

3. गाँव को ‘मरकत डिब्बे सा खुला’ क्यों कहा गया है?
Ans.
गाँव में चारों ओर मखमली हरियाली और रंगों की लाली छाई हुई है। विविध फसलें लहलहा रही हैं। वातावरण मनमोहक सुगंधों से भरपूर है। रंगीन तितलियाँ उड़ रही हैं। चारों ओर रेशमी सौंदर्य छाया हुआ है। सूरज की मीठी-मीठी धूप इस सौंदर्य को और जगमगा रही है। इसलिए इस गाँव की तुलना मरकत डिब्बे से की गई है।

4. अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं?
Ans.
अरहर और सनई फलीदार फ़सलें हैं। इनकी फ़सलें पकने पर, जब हवा चलती है तो इनमें से मधुर आवाज़ आती है। यह मधुर आवाज़ किसी स्त्री की कमर में बँधी करधनी से आती हुई प्रतीत होती है। इन्हीं मधुर आवाजों के कारण कवि को अरहर और सनई के खेत धरती की करधनी जैसे दिखाई देते हैं।

5. भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) बालू के साँपों से अंकित
       गंगा की सतरंगी रेती
Ans.
प्रस्तुत पंक्तियों में गंगा नदी के तट वाली ज़मीन को सतरंगी कहा गया है। रेत पर टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ हैं, जो सूरज की किरणों के प्रभाव से चमकने लगती हैं। ये रेखाएँ टेढ़ी चाल चलने वाले साँपों के समान प्रतीत होती हैं।

(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप सुख से अलसाए-से सोए
Ans.
इन पंक्तियों में गाँव की हरियाली का वर्णन प्रस्तुत किया गया है। हँसते हुए मुख के समान गाँव की हरियाली सर्दियों की धूप में आलस्य से सो रही प्रतीत होती है।

6. निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक
Ans.
हरे-हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
‘हरे-हरे’ ‘हिल-हरित’ में अनुप्रास अलंकार है।
‘हरित रुधिर’-रुधिर का रंग हरा बताने के कारण विरोधाभास अलंकार है।
‘तिनकों के हरे-भरे तन पर’ में रूपक एवं मानवीकरण अलंकार है।

7. इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है वह भारत के किस भू-भाग पर स्थित है?
Ans.
 इस कविता में गंगा के तट पर बसे गाँव का चित्रण हुआ है।

रचना और अभिव्यक्ति

8. भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
Ans.
 ‘ग्राम श्री’ कविता में उस ग्रामीण सौंदर्य का चित्रण है जो लोगों के मन को अनायास अपनी ओर खींच लेता है। गाँव हरियाली से भरपूर है। यह खेतों में लहराती फ़सलें हैं जिन पर रंग-बिरंगे फूल खिले हैं तो दूसरी ओर फलों से लदे पेड़ भी हैं जिन पर पके फलं मुँह में पानी ला देते हैं।

कविता में गंगा की सतरंगी रेती और जल क्रीड़ा करते पक्षियों का चित्रण भी है। हरा-भरा गाँव देखकर लगता है कि यह मरकत का कोई डिब्बा हो। कविता की भाषा सरल सहज बोधगम्य, प्रवाहमयी है जिसमें चित्रमयता है। वर्णन इतना प्रभावी है कि सारा का सारा दृश्य आँखों के सामने साकार हो उठता है। कविता में अनुप्रास, रूपक मानवीकरण और विरोधाभास अलंकारों का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग है। इस तरह ग्राम श्री’ कविता भाव एवं भाषा की दृष्टि से उत्कृष्ट है।

9. आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य को कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।
Ans.
 मैं कुशीनगर का रहने वाला हूँ। हमारा गाँव उस क्षेत्र में है जहाँ एक बहुत ही सुन्दर तालाब है। इस क्षेत्र में सरदी और गरमी दोनों ही खूब पड़ती हैं। मुझे गरमी का मौसम पसंद है। गरमी में तालाब के दोनों किनारों पर सब्जियों की खेती की जाती है जिससे हरियाली बढ़ जाती है। इन खेतों में जाकर खीरा, ककड़ी, खरबूजा, तरबूज आदि तोड़कर खाने का अपना अलग ही आनंद होता है। दोस्तों के साथ तालाब के उथले पानी में नहाने, रेत पर उछलने-कूदने और लोटने का मज़ा अलग ही है। इस ऋतु में सुबह-शाम जल क्रीड़ा करते हुए पक्षियों को निहारना सुखद लगता है। आम, फालसा, लीची आदि फल इसी समय खाने को मिलते हैं। यहाँ की हरियाली आँखों को बहुत अच्छी लगती है।

सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ। उनकी शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में हुई। आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने कालेज छोड़ दिया। छायावादी कविता के प्रमुख स्तंभ रहे सुमित्रानंदन पंत का काव्य-क्षितिज 1916 से 1977 तक फैला है। सन् 1977 में उनका देहावसान हो गया।

वे अपनी जीवन दृष्टि के विभिन्न चरणों में छायावाद, प्रगतिवाद एवं अरविंद दर्शन से प्रभावित हुए। वीणा, ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, पल्लव, युगांत, स्वर्ण किरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा आदि उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार एवं सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

पंत की कविता में प्रकृति और मनुष्य के अंतरंग संबंधों की पहचान है। उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता को एक नवीन अभिव्यंजना पद्धति एवं काव्यभाषा से समृद्ध किया। भावों की अभिव्यक्ति के लिए सटीक शब्दों के चयन के कारण उन्हें शब्द शिल्पी कवि कहा जाता है।

ग्राम श्री कविता में पंत ने गाँव की प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोहारी वर्णन किया है। खेतों में दूर तक फैली लहलहाती फसलें, फल-फूलों से लदी पेड़ों की डालियों और गंगा की सुंदर रेती कवि को रोमांचित करती है। उसी रोमांच की अभिव्यक्ति है यह कविता।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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