हिमालय का निर्माण एक लम्बे भू-गर्भिक ऐतिहासिक काल से गुजरकर सम्पन्न हुआ है। इसके निर्माण के सम्बन्ध में कोबर का भू- सन्नति का सिद्धान्त (Geo-syncline theory) एवं हैरी हेस का ‘प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत’ सर्वाधिक मान्य है।
• कोबर ने भू-सन्नतियों को ‘पर्वतों का पालना’ (Cradle of mountain)* कहा है। ये लंबे, संकरे व छिछले जलीय भाग हैं। उनके अनुसार आज से 7 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय के स्थान पर टेथिस (Tethys) भू-सन्नति या टेथीस सागर थी, जो उत्तर की अंगारालैंड को दक्षिण के गोंडवानालैंड से पृथक करती थी। इन दोनों के अवसाद टेथिस भू-सन्नति में जमा होते रहे एवं इन अवसादों का क्रमशः अवतलन होता रहा जिसके परिणामस्वरुप दोनों संलग्न अग्रभूमियों में दबाव जनित भू-संचलन उत्पन्न हुआ जिनसे क्युनलुन एवं हिमालय-काराकोरम श्रेणियों का निर्माण हुआ।*
• टेथिस भू-सन्नति के मध्य भाग का वलन से अप्रभावित या अल्प प्रभावित क्षेत्र ‘तिब्बत का पठार’ के नाम से जाना गया।*
• वर्तमान समय में हैरी हेस के द्वारा प्रतिपादित प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत हिमालय की उत्पत्ति की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या करता है। इसके अनुसार लगभग 7 करोड़ वर्ष पूर्व उत्तर में स्थित यूरेशियन प्लेट की ओर भारतीय प्लेट उत्तर-पूर्वी दिशा में गतिशील हुआ।* दो से तीन करोड़ वर्ष पूर्व ये भू-भाग अत्यधिक निकट आ गए, जिनसे टेथिस सागर के अवसादों में वलन पड़ने लगा एवं हिमालय का उत्थान प्रारम्भ हो गया। लगभग एक करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय की सभी श्रृंखलाएँ आकार ले चुकी थी।
• सेनोजोइक महाकल्प के इयोसीन व ओलिगोसीन (Oligocene) कल्प में वृहद् हिमालय का निर्माण हुआ।*
• मायोसीन (Miocene) कल्प में पोटवार क्षेत्र के अवसादों के वलन से लघु अथवा मध्य हिमालय का निर्माण हुआ।
• शिवालिक हिमालय का निर्माण वृहद एवं लघु हिमालय श्रेणियों के द्वारा लाए गए अवसादों के वलन से प्लायोसीन (Pliocene) कल्प में हुआ।*
• चतुर्थ युग (Quaternary) अर्थात् नियोजोइक महाकल्प के प्लीस्टोसीन (Pleistoence) व होलोसीन कल्प में भी हिमालय का निर्माण हुआ है। हिमालय वास्तव में अभी भी एक युवा पर्वत है, जिसका निर्माण कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है।*
• ज्ञातव्य है कि हिमालय के क्षेत्र में आने वाले भूकम्प, हिमालयी नदियों के निरन्तर परिवर्तित होते मार्ग एवं पीरपंजाल श्रेणी में 1500 से 1850 मीटर की ऊँचाई पर मिलने वाले झील निक्षेप (जिन्हें ‘करेवा’ भी कहा जाता है) हिमालय के उत्थान के अभी भी जारी रहने की ओर संकेत करते हैं।
हिमालय का महत्व
हिमालय भारतीय उपमहाद्वीप की प्राकृतिक एवं राजनीतिक सीमा बनाता है। हिमालय की भौगोलिक परिस्थिति के कारण ही, भारतीय उपमहाद्वीप का शेष एशिया से अलग व्यक्तित्व बन सका है।
भारत की जलवायु को निर्धारित करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्रीष्मकाल में हिमालय दक्षिणी-पश्चिमी जलवाष्प-युक्त मानसूनी हवाओं को रोककर देश में पर्याप्त वर्षा कराता है, जबकि यह शीत काल में साइबेरिया की शीतल हवाओं को रोक कर देश को अपेक्षाकृत गर्म रखता है। यही कारण है कि देश का अधिकांश भाग कर्क रेखा के उत्तर अर्थात् शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित है किन्तु यहाँ की जलवायु उपोष्ण या उष्णकटिबन्धीय है।*
हिमालय निम्न रूपों में आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, यथा –
• शंक्वाकार वन तथा उनसे औद्योगिक मुलायम लकड़ी की प्राप्ति।
• पशुचारण के लिए शीतोष्ण मुलायम घासें जैसे-जम्मू-कश्मीर में मर्ग तथा उत्तर प्रदेश में बुग्याल एवं पयाल ।*
• विभिन्न खनिजों जैसे चूना पत्थर, स्लेट, नमक-चट्टान, कोयला इत्यादि की प्राप्ति।
• चाय के बागों तथा फलोद्यान के लिए ढलुआ जमीन।
• ग्रीष्मकाल में गेहूँ, आलू तथा मक्का जैसी फसलों का सीढ़ीनुमा खेतों पर उत्पादन।
• पेय, सिंचाई एवं औद्योगिक उद्देश्यों हेतु मीठे जल की नदियाँ जो हिमनद्-पूरित तथा सतत् वाही हैं।*
• गंगा के मैदान में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी के निक्षेप का स्त्रोत।
• विभिन्न पर्वतीय पर्यटक स्थल जैसे श्रीनगर, शिमला, मसूरी,
नैनीताल, अल्मोड़ा तथा विभिन्न धार्मिक केन्द्रों जैसे- बद्रीनाथ, केदारनाथ इत्यादि की स्थिति।
• जलविद्युत परियोजनाओं जैसे भाखड़ा नांगल, पार्वती तथा पोंग (हिमाचल प्रदेश) दुलहस्ती तथा किशनगंगा (जम्मू-कश्मीर) टिहरी जलविद्युत परियोजना (उत्तराखण्ड) आदि की स्थिति।
• विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटी की प्राप्ति तथा जंगली जीव-जन्तुओं का विशाल आश्रय स्थल हिमालय है, अर्थात् हिमालय क्षेत्र को जैव-विविधता का विशाल भण्डार भी कहा जा सकता है।
उत्तर भारत का विशाल मैदानी भाग
यह नवीनतम भू-खण्ड है, जो हिमालय की उत्पत्ति के बाद बना है।* इसका निर्माण क्वार्टनरी या नियोजोइक महाकल्प के प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन कल्प में हुआ है।* टेथिस भू-सन्नति के निरन्तर संकरा व छिछला होने एवं हिमालयी व दक्षिण भारतीय नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के जमाव से यह मैदानी भाग निर्मित हुआ है। इसके पुराने जलोढ़ ‘बांगर’ एवं नए जलोढ़ ‘खादर’ कहलाते हैं।* इस मैदानी भाग में प्राचीन वन प्रदेशों के दब जाने से कोयला और पेट्रोलियम के क्षेत्र मिलते हैं।*
मैदानी भाग हमारी वृहद जनसंख्या के जीवन का आधार है, क्योंकि इसकी उपजाऊ जलोढ़ मृदा में विभिन्न तरह के फसल उपजाए जा सकते हैं। इससे हमारे जनसंख्या व पशुओं को आहार प्राप्त होता है। साथ ही अनेक कृषि आधारित उद्योगों को कच्चा माल भी प्राप्त हो पाता है। नदियों का क्षेत्र होने के कारण इस प्रदेश में नहरें निकालकर सिंचाई व नहरी परिवहन कार्य किए जा सकते हैं। इन मैदानी भागों में भूमिगत जल का विशाल भंडार है जिनसे लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। इन मैदानी भागों में नदियों की अधिकता के कारण इन क्षेत्रों में मत्स्य पालन का विकास किया जा सकता है। अवसादी भूगर्भिक संरचना के कारण ये पेट्रोलियम पदार्थों के संभावित संचित भंडार हैं। भूमि के प्रायः समतल होने के कारण इन क्षेत्रों में सड़क व रेल परिवहन का विकास अपेक्षाकृत आसानी से किया जा सकता है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि भारत का प्रायद्वीप भाग प्राचीनतम से लेकर आधुनिक काल तक की चट्टानों से सुसज्जित हैं यहाँ पर अनेक ऐसी प्राचीन चट्टानें पाई जाती हैं जो अपने वास्तविक (मूल) रूप को बदल चुकी हैं। इसके विपरीत हिमालय पर्वतीय प्रदेश व विशाल मैदान प्रमुख रूप से टरशियरी व आधुनिक काल की (Quaternary) चट्टानों से सुसज्जित हैं।
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FAQs
Q1. गोंडवाना क्रम का निर्माण किस अवधि में हुआ था?
Ans. ऊपरी कार्बोनीफेरस से जुरासिक युग के दीर्घ अवधि में।
Q2. किस भाग के उन्मग्नता (Emergency) के कारण ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह बदलकर पूर्व की ओर हो गया?
Ans. एक विशाल क्षेत्र अल्ला बन्द के कारण (पाकिस्तान)
Q3. राजस्थान में तांबा, कोबाल्ट तथा रांगा किस समूह की शैलों से प्राप्त होता है?
Ans. कुड़प्पा समूह
Q4. दक्कन ट्रैप का निर्माण मुख्यतः हुआ है?
Ans. बेसाल्टीय चट्टानों से
Q5. राजस्थान का मरुस्थलीय भाग भू-गर्भिक संरचना की दृष्टि से किसका विस्तार है?
Ans. प्रायद्वीपीय पठार का
Q6. मालाबार तट की विशेष स्थलाकृति है?
Ans. कयाल (Back Waters)
Q7. कायांतरित चट्टानों का क्रम किसे कहा जाता है?
Ans. आर्कियन समूह की शैलों को।
Q8. पृथ्वी के धरातल पर सबसे व्यापक हिमनद् कौन-सा था?
Ans. प्लीस्टोसीन हिमनद्
Q9. भारत में कैम्ब्रियन-पूर्व-महाकल्प की चट्टानें अधिकांशतः पायी जाती हैं ?
Ans. अरावली में
Q10. हिमालय एवं गिरिपाद के सहारे भूकम्पों की सर्वोत्तम व्याख्या की जाती है?
Ans. प्लेटों के अभिसरण के सन्दर्भ में
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